गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रागिनी गर्ग की लघुकथा---- गलतफ़हमी


आज अर्णव,आॅफिस से देर से घर आया। काफी थका -थका , निढाल सा।
माधवी, पानी का गिलास लेकर आयी।फिर व्यंगात्मक -अंदाज में  बोली :-"क्या बात अर्णव! काफी थके हुये लग रहो हो?क्या आज अपनी बाॅस रिनी के साथ चाय नहीं पी , या उसने तुमसे काम ज्यादा करा लिया?"
अर्णव बोला,"तुम्हारे दिमाग में  रिनी जी को लेकर जो शक का कीडा़ रेंग रहा है उसे निकाल बाहर करो। यह हमारे बीच रोज की क्लेश अच्छी  नही । मेरे और उनके बीच में बाॅस और सेक्रेटरी के अलावा न कोई रिश्ता है,  और  न होगा।" मैं बताता हूँ , "आज क्या हुआ -----?"
वो माधवी को कुछ बता पाता, इससे पहले ही माधवी की नजर अर्णव की कमीज पर लगी लिपस्टिक की ओर चली गयी।
"यह क्या है अर्णव?  अब मुझे कुछ नहीं सुनना , झूठ बोलने की भी हद होती है। छीः! मुझे शर्म आती है तुम पर। मैं  तुम्हारे साथ अब एक पल भी नहीं रह सकती। इसी समय  मम्मी के घर जा रही हूँ।' इतना कहकर  वो अपना सामन बाँधने लगी।
तभी दरवाजे की घन्टी बजी।
अर्णव ने दरवाजा खोला।माधवी भी बाहर आ गयी।
60-65 साल के एक बुजुर्ग- दम्पत्ति हाथ में फूलों का गुलदस्ता लिये खडे़ थे।उन दोनों ने एक स्वर से पूछा, "क्या अर्णव जी आप हैं?"
"जी हाँ! मैं हीअर्णव हूँ। पर माफ कीजियेगा, मैंने आपको पहचाना नहीं।"
 दोनों बुजुर्ग अर्णव के पैरों की ओर झुक गये, बोले:- बेटा! आप हमारे लिये भगवान हो। हम उसी जवान -बच्ची के माँ -बाप हैं, जिसकी आपने आज जान बचायी है। ट्रक वाला तो उसे मारकर चला ही गया था, अगर आप उसको समय पर अस्पताल न पहुँचाते तो हम अपनी बच्ची को जिन्दा नहीं पाते।
हमें आपके घर का पता अस्पताल के उस फाॅर्म से मिला जो आपने मेरी बेटी का संरक्षक बनकर भरा था।
अर्णव बोला, "आप मेरे माता-पिता जैसे हैं , कृपया मेरे पैर न पकडे़ं यह तो मेरा फर्ज था।"
पास ही खडी़ माधवी शर्म से, धरती में गढी़ जा रही थी।उसकी आँखों में पश्चाताप के आँसू थे। एक छोटी सी बात को लेकर इतनी बडी़ गलतफहमी पालकर वो अपना घर तोड़ने जा रही थी।

  ✍️ रागिनी गर्ग
रामपुर


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