मेरी प्यारी माँ,
सादर प्रणाम,
समझ नहीं आ रहा क्या लिखूँ?आपके जीते जी मैंने आपको कभी खत नहीं लिखा। आज यह पहला खत लिख रही हूँ। आप मुझे बुलाया करती थीं। लेकिन मैं कभी परिवार ,कभी बच्चों की पढा़ई,कभी सास की बीमारी में ऐसी उलझी की आपसे मिलने बहुत कम आ पाती थी। जब मैंअपनी मजबूरी बताती थी तब आप कहती थीं, "ठीक है बेटा! मत आओ अपने परिवार में खूब खुश रहो" आज भी मुझे याद है भाई दूज से पहले पड़वा का वो दिन आपने फोन किया और कहा था, तुमसे मिलने को बहुत मन हो रहा है भाई- दूज पर आ जाओ।
मैंने आपको कहा, "मम्मी मैं नहीं आ पाऊँगी भाई दूज का टीका करने मेरी ननद आ रही हैं।" आपने गुस्से में यह कहकर कि मत आओ फोन कट कर दिया था। मेरे दोबारा मिलाने पर भी नहीं उठाया था।अगले दिन में मेरे घर ननद-ननदोई के आ जाने की वजह से मैं आपको फोन नहीं मिला पायी।
तीज के दिन सुबह चार बजे फोन की घन्टी घनघनाई और भाई ने बुरी खबर सुना दी, " 'चुनमुन' मम्मी नहीं रहीं" सच कहती हूँ मम्मी! मेरे पैरों तले जमीन खिसक गयी।मैंने भाई को बोला, "तुम झूठ क्यों बोल रहे हो।"
एक ही झटके में मेरी व्यस्तता समाप्त हो गयी और मैं दौड़ पडी़ आपसे मिलने। मैंने आपको बहुत जगाया पर आप नहीं जगीं। आप ऐसी नाराज हुयीं कि आपने मुझसे फिर कभी बात ही नहीं की। सात साल हो गये आपको गए खुद को कसूरवार मानती हूँ। काश! आपके बुलाने पर पहले ही दौड़ जाती तो आपसे बात तो कर पाती।
माँ! एक विशेष बात आपको बताना है, मैंने साहित्य पथ चुन लिया है।साहित्य में नित नवीन उपलब्धियाँ हाँसिल करके आपकी 'चुनमुन' आपका नाम रोशन कर रही है।
जब सब यह कहते हैं कि विमला की छोरी तो खूब नाम कमा रही है।मेरा सीना गर्व से फूल जाता है,और खुशी होती है मेरी मम्मी का नाम मेरे कारण आदर से लिया जा रहा है।मैंने किसी को आपको भुलाने नहीं दिया।बस अफसोस इस बात का है कि आपको अपने प्रतीक चिह्न न दिखा सकी। यह सब आपके जाने के बाद ही शुरू किया। लेकिन मैं जानती हूँ आप जहाँ भी हो अपना आशीर्वाद मुझे भेज रही हो, और मेरे लिए खुश हो रही हो। आपके आशीष से ही मुझे सफलताएँ प्राप्त हो रही हैं। बस एक बार माँ! मेरे सपने मैं ही आकर मुझसे बात कर लो।"
आपसे एक बार बात करने की इच्छा में
आपकी अपनी चुनमुन
✍️रागिनी गर्ग, रामपुर, यूपी
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