भूमि को अशोक अंकल ने फोन करके अस्पताल आने को कहा।......
"भूमि!जल्दी, सिटी हास्पिटल पहुँचो ,दीपक को बहुत चोट आयी है।दीपक आइ सी यू में भर्ती है"
एक पल भी बिना गँवाए भूमि जिस हाल में थी उसी हाल में अस्पताल पहुँची। उसे डा. अशोक बाहर ही खड़े मिले। वो भूमि के पापा के अच्छे दोस्त थे। सुबह अस्पताल आते समय,दीपक को सड़क से उठाकर वही अस्पताल लाये थे। दीपक का इलाज भी वही कर रहे थे।....
भूमि को देखते ही बोले, "बेटी! मैं तुमको किसी अँधेरे में नहीं रखना चाहता हूँ। दीपक की साँसें चन्द घड़ी की मेहमान हैं। मैंने बहुत कोशिश की,उसको बचाने की पर सिर में चोट काफी गहरी लगी है, और खून भी बहुत बह चुका है।अतःमैं उसको नहीं बचा पाऊँगा।जाओ!आखिरी बार उससे जाकर मिल लो।" .......
यह सुनकर, भूमि के कदम जड़वत हो गये, गला रुँध गया, आँखें पथरा गयीं और शरीर चेतना खोने लगा। वो गिर ही जाती अगर अंकल ने उसको सम्भाल न लिया होता।
वो उसको साथ लेकर दीपक के पास गये। ......
भूमि दीपक से बस इतना ही बोल पायी, "दीपक! तुम मुझे छोड़कर नहीं जा सकते।"
तभी ,दीपक ने भूमि को देखकर आखिरी हिचकी ली,जैसे वो सिर्फ उसके आने का ही इन्तजार कर रहा था और जिन्दगी शरीर रुपी मुठ्ठी से सरक गयी ।वैसे ही जैसे बन्द मुट्ठी से रेत सरक जाती है। ......
अशोक अंकल ने भूमि को सहारा दिया,और बोले,"बेटा!दीपक बच सकता था ,अगर लोगों में थोडी़ सी भी संवेदनशीलता जिंदा होती।
भूमि बोली ,"मतलब अंकल?मैं कुछ समझी नहीं।"
"समझाता हूँ बेटा! मुझे दीपक सड़क पर बेहोश हालत में मिला तब तक उसका बहुत खून बह चुका था। आस-पास लोगों की भीड़ तो बहुत थी, लेकिन कोई मदद करने वाला नहीं था।सभी वीडियो बनाने में व्यस्त थे। अगर दीपक थोड़ी देर पहले हास्पिटल पहुँच जाता ,तो हम उसे बचा सकते थे।"
"तुमको याद होगी भूमि! सूरत हादसे में घटी घटना,कितने बच्चे असमय काल का ग्रास बन गये थे। मेरे मानस पटल से तो वो हटती ही नहीं।बच्चे आग से बचने के लिए एक-एक कर ऊपर से नीचे कूदते रहे। किसी ने नहीं सोचा उनको बचाने के बारे में।और तो और यह संवेदनहीनता ही हर रोज अनेकों दुर्घटनाग्रस्त लोगों की जान जाने का कारण है।
यह हमारा दुर्भाग्य है बेटी! हम अपनी भावनाओं को एकदम सूखी रेत बनाते जा रहे हैं।जबकि सूखी रेत रुक नहीं पाती, बन्द मुठ्ठी में भी नहीं।अगर वीडियो बनाने या फोटो खींचने की जगह उस चोटिल इन्सान को हस्पताल तक पहुँचा दें ,तो कई ज़िन्दगियाँ मुठ्ठी से नहीं फिसलेगी,यह मेरा दावा है।"
भूमि आँसू पौंछते हुये बोली, "अंकल! आज मैं ये प्रण लेती हूँ ।कभी भी भावनाओं की रेत को नहीं सूखने दूँगी अपनी भावनाओं को गीली रेत बनाउँगी। जिससे लोगों की मदद करने का ज़ज्बा मुझमें बरकरार रहे।"
"बंद मुट्ठी रेत सूखी अब न फिसलेगी कहीं।"
✍️ रागिनी गर्ग
रामपुर (यूपी)
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