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बुधवार, 10 जून 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की कहानी ----- .'अतृप्त मन'


​''जल्दी आओ बच्चो।"हरिसिहं ने अपने पोते रिशू और अवन्तिका को जोर से आवाज लगाई खुद गेट के बाहर बडी सी चमचमाती गाडी मे बैठे हुए थे।
​''अभी आये दादा जी ।" दोनो बच्चे एक साथ अन्दर से चिल्लाये ।
​आज पूरा परिवार गाँव जा रहा है ।बच्चों के  विद्यालय बंद हो गये थे इसलिये सब अपने गाँव जाने के लिये बहुत ही उत्सुक थे ।
​"लीजिये आ गए दादाजी ।"
​"अरे तुम्हारी मम्मी नही आई बेटा अभी -?"हरि सिंह ने दोनो से पूँछा।
​''पापा भी नही आये दादू अभी ।"अवन्तिका ने शरारत करते हुए कहा ।
​''हाँ जब तक तेरी माँ नही आयेगी तब तक वो कैसे आ जायेगा ?''दादा जी ने बनावटी गुस्सा करते हुए कहा।
​''जल्दी आओ बच्चो।"हरिसिहं ने अपने पोते रिशू और अवन्तिका को जोर से आवाज लगाई खुद गेट के बाहर बडी सी चमचमाती गाडी मे बैठे हुए थे।
​''अभी आये दादा जी ।" दोनो बच्चे एक साथ अन्दर से चिल्लाये ।
​आज पूरा परिवार गाँव जा रहा है ।बच्चों के  विद्यालय बंद हो गये थे इसलिये सब अपने गाँव जाने के लिये बहुत ही उत्सुक थे ।
​"लीजिये आ गए दादाजी ।"
​"अरे तुम्हारी मम्मी नही आई बेटा अभी -?"हरि सिंह ने दोनो से पूँछा।
​''पापा भी नही आये दादू अभी ।"अवन्तिका ने शरारत करते हुए कहा ।
​''हाँ जब तक तेरी माँ नही आयेगी तब तक वो कैसे आ जायेगा ?''दादा जी ने बनावटी गुस्सा करते हुए कहा।
​''हम आ गये पापा जी ।"हरि सिंह के बहू और बेटे दोनो गेट से बाहर निकलते हुए बोले ।
​''दादा जी दादी जी भी ऐसे ही देर लगाती थीं क्या तैयार होने मै ?''इस बार रिशू बोला ।
​''नही बेटा वो तो सुबह ही तैयार होकर बैठ जाती थी '।"हरी सिंह ने चहकते हुए कहा।
​सब गाड़ी में बैठ गए और हरि सिंह
​यादों में खो गए ।
​हरी सिंह को गाँव छोडे 45 साल हो गये ।जब बचपन मे वो गाँव मे रहते थे तो हमेशा शहरी ज़िंदगी के ही सपने देखते थे ।
​शहर आकर खूब पैसा कमाया बेटा भी खूब पढ -लिखकर अचछी जॉब मे चला गया शादी हो गयी ,परिवार पूरा हो गया ,परंतु मन त्रप्त नही हुआ ।
​शहर आकर गाँव की बहुत याद सताती रही ,हमेशा गाँव की हरियाली , वहाँ के पक्षी ,निस्वारत लोग याद आते रहे!अब जब भी मौका मिलता है ,तभी गाँव चले जाते हैं ।
​मानव मन भी बडा अजीब होता है ,हमारे पास जो नही होता हम उसकी कल्पना करते रहते हैं और उसे पाने के लिये पागल हो जाते हैं ,और जब वो वस्तु मिल जाती है तो पुरानी दुनियाँ की याद आने लगती है ।
​''दादा जी गाँव आ गया ''!रिशू खुशी से उछला ।
​''हाँ बेटा ।''हरी सिंह ने धीरे से आह भरते हुए
​कहा ।
​तभी गाँव के बहुत सारे बच्चों ने गाडी को आकर घेर लिया कोई ,हरि  सिंह भांप गये .
​बच्चों की अभिलाषा .कोई गाडी को  छू रहा था तो कोई दूर से ही बड़ी मासूमियत से देख रहा था .एक बच्चा दुसरे से कह रहा था की वह भी शहर जाकर खूब पैसे कमायेगा और फिर एक बड़ी सी गाडी खरीदेगा .
​​हरिसिंह ने अपने बहु बेटों और पोते पोतियों को घर जाने को कहा और उन बच्चों को गाडी में बैठकर घुमाने ले गए .बच्चे बहुत खुश हो रहे थे उनको खुश देखकर हरिसिंह को भी अपना बचपन याद आ गया जब उनके सपने भी गाँव छोड़कर शहर जाकर खूब सारे रूपये कमाने का ही था .मगर आज गाँव उन्हें अपनी तरफ खींच लाता है .

​✍️राशि सिंह
​मुरादाबाद ,उत्तर प्रदेश

बुधवार, 27 मई 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघु कथा ----- रोटी


​रोजी रोटी की तलाश में दीना ने अपनी जन्मभूमि से दूर जहां उसका बचपन और युवावस्था के कई साल गुजरे ,बचपन के संगी साथी और घर परिवार के लोगों का साथ छूटा इस  बात  से  भी  गुरेज  नहीं  किया .
​ उसको  याद  है  जब  वह  पहली  बार  शहर  आया  तो  उसकी  हालत  कैसी  थी ? बड़ी  मुश्किल  से  एक   कंट्रक्शन  कंपनी  में  दिहाड़ी  मजदूर  की  नौकरी  मिली  थी  जिसमें  गाँव  की  अपेक्षा  मजदूरी  तो  ज्यादा  थी  मगर  खेतों  से  उठने  वाली  सौंधी  खुशबू  दूर  दूर  तक  महसूस  नहीं  होती  थी .
बड़ी मुश्किल से एक गन्दी सी बस्ती में एक छोटा सा पिंजड़ा नुमा कमरा मिला था जिसमें सीलन की दुर्गन्ध और धुप और हवा तो दूर दूर तक नहीं आते थे । गावं में घर कच्चा और घास फूस का तो था मगर हवा पानी और धुप फ्री था जितना ले  सको उतना .
​पेड़ों की शीतल हवा ...और पक्षियों का मधुर कलरव सब कुछ कितना मीठा था .
​कभी कभी दीना बहुत उदास हो जाता था मगर वहां पर कोई भी सुख दुःख पूछने वाला नहीं था .लेकिन जब कभी बीच बीच में वह गाँव आता था तब खुद पर बड़ा रीझता था क्योंकि अब उसके पास अच्छे कपडे होते थे .थोड़े दिन बाद गाँव की कच्ची कोठरी को पक्का भी बना लिया था उसने जिससे उसके अडोसी पडोसी भी शहर जाने के लिए प्रेरित हुए बिना नहीं रह सके .
​उसको क्या पता था कि शहर उसके लिए किराए की जगह मात्र है उसकी जड़ें तो अब भी गावं में ही है .
​कोरोना के कारण शहर में काम धंधे बंद हो गए ऐसे में जब फांकों की स्थिति आ गई तो उसको वही गाँव फिर से याद आने लगा था जिससे उसको कुछ दिन पहले वितृष्णा सी होने लगी थी . वह व्याकुल हो उठा अपनी जड़ों की तरफ लौटने को .और पैदल ही निकल पड़ा अपने गाँव की तरफ धुप ,भूख और गर्मी की परवाह किये बिना .उसको आज भी विशवास था की उसकी जन्मभूमि उसको गले जरूर लगाएगी .
​उसने गाँव में घुसते ही सबसे पहले वहां की मिटटी को माथे से लगाया और पीछे मुड़कर सपने के सापेक्ष से शहर को अलविदा भी कह दिया .
​अब फिर से वह हकीकत और प्रेम से रूबरू हो गया था .
​घर में अपनों का साथ और प्रेम उसको बेशकीमती लग रहा था जिसको उसने सिरे से नकारने  की  कुचेष्टा की थी ,jजिस गाँव को वह नादानी के कारण हेय की दृष्टि से देखने लगा था उसी गाँव ने उसको फिर से प्रेम के मोहपाश में कैद कर लिया .


​ ✍️ राशि सिंह
​मुरादाबाद  244001


गुरुवार, 14 मई 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघु कथा ......'मुझे हक है '



​आज पूरे ऑफिस में हँसी  ठहाके गूंज रहे थे सबको जैसे हँसने  की वजह मिल गई हो और लाजिमी भी है क्योंकि कई  तो जिंदगी की भूल भुलैया में ऐसे उलझे कि  ठहाके की तो छोड़िए सपने में मुस्कराना तक भूल गए थे मगर आज शिवानी शर्मा की वजह से सभी के चेहरे खुश नजर आ रहे थे; ऐसा नहीं था कि वे सभी खुश थे बस दूसरों का उपहास उड़ाने वाली हँसी ही सजी थी l
​"मै तो यह कहता हूँ कि शिवानी जी को हो क्या गया है अरे अच्छी खासी जॉब दोनों बच्चे सेटल और उम्र पचपन .......क्या आवश्यकता थी इस उम्र में यह स्वांग रचने की ?"श्री विनोद शर्मा ने तम्बाखू चबाते हुए कहा l
​"वही तो ....देखो न लोग क्या कहेंगे ?"इस बार मंजू श्री जो शिवानी की हमउम्र थीं ने चिंता व्यक्त की l
​"मगर फिर भी उन्हौने जो किया सो किया उनको गिफ्ट तो देना ही होगा l"अवधेश जी ने अपने मन की बात कही l
​"सच कहूँ बिल्कुल दिल नहीं कर रहा l"लता देवी ने मूँह बनाते हुए कहा l
​"अरे विवाह किया ही तो पंद्रह साल पहले ही कर लेतीं कम से कम अच्छा पति तो मिल जाता ...कहाँ खुद पचपन की और मियाँ  ढूँढे  हैं अठत्तर के l"विनोद जी ने बमुश्किल हँसी को दबाते हुए कहा l
​विनोद जी के शब्दों  ने शिवानी के बढ़ते कदमों को रोक लिया उनकी मानसिकता देखकर वह सन्न नहीं हुईं क्योंकि उन्होने यह फैसला इन सब बातों पर विचार करने के बाद ही लिया था l
​"क्या विवाह का मतलब सिर्फ देह सुख ही विनोद जी ?"शिवानी का स्वर सुन सभी भौचक्के रह गए और इधर उधर बगलें झांकने लगे l विनोद जी को तो काटो तो खून नहीं l
​"सहारा ...मित्रता ..सुख- दुख बाँटना  मन की बात कहने के लिए किसी सहारे की किसी अपने की आवश्यकता होती है या नहीं ....अगर मै विवाह दैहिक सुख के लिए ही करती तो पति की म्रत्यु के तुरंत बाद भी कर सकती थी मगर बच्चों की परवरिश की भी जिम्मेदारी थी न ;पता ही नहीं चला वक्त कैसे बीत गया ?"शिवानी का गला रूँध गया और आँखे भर आई देखकर सभी नजरें चुराते से दिखाई देने लगे l
​"मुझे हक है मेरी जिंदगी के फैसले लेने का ....मुझे हक है सिर्फ मुझे l  वैसे आज बहुत दिनों बाद ऑफिस में खिलखिलाते हुए चेहरों से रूबरू हुई हूँ इसलिए मिठाई तो बनती है l"शिवानी ने मिठाई के डिब्बे को खोलकर विनोद जी को देते हुए कहा l

​✍️राशि सिंह
​मुरादाबाद 244001

गुरुवार, 7 मई 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा ----- राजनीति


​"सुन री भूरी आज पड़ोस के घर की लाली ने बछड़े को जन्म दिया है "जुगाली कर रही भूरी  गाय से काली गाय ने कहा l
​तो वह मुस्करा दी उसकी मुस्कराहट में व्यंग था जिसे काली गाय सह न सकी और सींग से झुरीयाते हुए बोली ...
​"क्यों हंस रही है फीकी हँसी ?"
​"और नहीं तो क्या करूँ ...कितनी अभागन है न लाली कि उसने बछड़े को जन्म दिया , अगर बछिया देती तो कम से कम जब तक दूध देती तब तक ज़ी तो लेती मगर .....?"
​"मगर क्या ?"
​"इसका बच्चा तो ज्यादा ज़ी भी नहीं पाएगा ...खेती में इस्की जरूरत नहीं ...दूध यह देता देगा नहीं फिर ...फिर इंसान इसको फ्री में थोड़े ही खिलाएंगे l"
​"हाँ इसके बछड़े पर तो हमारे जैसी राजनीति भी नहीं होगी l"कहकर दोनों जुगाली करने लगीं l


​ ✍️ राशि सिंह
मुरादाबाद  244001
​मोबाइल फोन नंबर --- 9410246421




गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की कहानी ----बहुत याद आते हैं '



​पूरे बाइस साल बाद आलोक आज अपने गाँव में पहुंचा उसके दोनों बेटे भी उससे लंबे निकल चुके थे , और पत्नी शुभि के चेहरा भी अब भर गया था कभी कांटे सी दिखने वाली शुभि थुलथुल तो नहीं मगर शरीर भर गया था .
​आलोक की फ्रेंच कट दाढ़ी भी उसकी मैचुअरटी  को दर्शा रही थी साथ ही आँखों पर चढ़ा चश्मा गंभीरता को बढ़ाने में सक्षम था .
​गाँव में घुसते ही उसको लगा जैसे वह किसी दूसरे कस्बे में घुस गया हो सब कुछ बदल चुका था .
​कभी गाँव की कच्ची सड़क और उसके किनारे दूर तक फैले खेत और बाग बगीचे थे अब बे सब शायद आबादी की भेंट चढ़ चुके थे l
​सड़क किनारे बहुत सारी दुकानें बन चुकीं थीं l
​जो लोग उसके विदेश जाने के समय अच्छी कद काठी के थे बूढ़े हो चुके थे l
​बड़ी मुश्किल से वह अपने घर तक पहुंचा वहाँ जीर्ण हुए घर पर ताला लटक रहा था जोकि पिछली बार यानि कहा जाए बाइस साल पहले पिताजी के निधन के वक्त लगाया गया था , हाथ लगाते ही लटक गया .
​घर के भीतर  बड़े बड़े पेड़ डेरा डाल चुके थे जामुन और बेरी के पेड़ अभी भी खड़े थे जोकि बड़े प्यार से पिताजी ने लगाए थे शायद इसलिए भी अभी हरे थे क्योंकि उनको ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं थी .
​पेड़ पर पक्षियों के घौसले थे जिनमें से उनके बोलने और फड़फड़ाने की आवाज आ रही थी .
​"डैड ...यह है आपका घर ?"बड़े बेटे ने मुंह बनाते हुए कहा l
​"बेटा ऐसे नहीं बोलते यह इनका ही नहीं हम सबका घर है l"शुभि ने बेटे को समझाया क्योंकि वह आलोक के चेहरे की दुख भरी उभरी लकीरों को पढ़ चुकी थी .
​"हाँ बेटा ...यही है हमारा घर जहाँ मेरा बचपन बीता और माँ बाबूजी का जीवन , आज भी ऐसा लग रहा है जैसे कि घर के हर कोने से माँ बाबूजी की आवाजें आ रही हों ।
​पड़ोसियों ने कई बार आलोक से बात की थी घर बेचने की मगर उसने मना कर दिया क्योंकि यह घर उसके माँ बाप के लिए बहुत अजीज था ।
​उसको याद है जब वह पहली दफा नौकरी के सिलसिले में विदेश गया तो माँ ने स्पष्ट लहजे में कहा था ,
​"बेटा चाहे कितने भी अमीर बन जाना मगर इस घर यानि अपनी जड़ का सौदा मत करना , इस घर में मेरी डोली आई है अर्थी तो निकलेगी ही मेरे मरने के बाद मेरी आत्मा भी इसी में बसेगी l
​तब आलोक हंस दिया था मगर अगले ही वर्ष माँ दुनियाँ को अलविदा कह गयीं , बाबूजी से बहुत कहा अपने पास आने को मगर वह नहीं आए , उसी घर के आंगन में कई पेड़ लगा लिए थे , और क्यारियों में फुलवारी । खाना खाने के बाद अपना ज्यादातर समय इन्ही की देखरेख में बिताते थे ।
​मगर दो साल बाद ही उनका भी निधन हो गया वह बहुत रोया मगर होनी को कौन टाल सकता है। वह क्रिया कर्म करने के बाद विदेश वापस चला गया और वहीं पर भारतीय मूल के परिवार की शुभि से विवाह कर लिया .
​सब कुछ भूल चुका था या यूँ कहिए कभी भूला ही नहीं बस दुनियाँ को कभी एहसास ही नहीं होने दिया कि आज भी उसके दिल में उसका वही घर बसता है कच्चा पक्का जहाँ माँ और पिताजी के साथ बचपन बीता , घर का कोना कोना उसके मन में पेंठ बनाए बैठा था l
​जब भी कहीं गाँव की बात चलती वह चहक उठता उसकी इस आदत को शुभि ने शिद्दत से महसूस किया था .
​"सुनो जी आज मिसेज भाटिया कह रहीं थीं कि वह अगले महीने पंजाब जाएंगी अपने गाँव l"शुभि ने प्यार से आलोक की आँखों में देखते हुए कहा चाय पीता हुआ अचानक शुभि की ओर देखने लगा उसके चेहरे पर कई भाव आकर चले गए .
​फिर दोनों बच्चों के साथ अपने गाँव आने की तैयारी शुरू कर दी .
​"सुनिए !"
​"कहिए !"
​"अब हम यहां जल्दी जल्दी आया करेंगे , पिताजी और माँ जी के लिए वही हमारी सच्ची सेवा होगी , और उनकी आत्मा के साथ हमारे मन को भी खुशी होगी l"शुभि ने आलोक का हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा , और सभी फिर से मिलकर सफाई में लग गए , क्यारियों को फिर से ठीक किया गया और उनमें हरे हरे पौधे रौपे गए l
​जाते समय आलोक गाँव के माली से अपने छोटे से आंगन की क्यारियों की देखभाल करने को भी कह गया , क्योंकि अब ज्यादा दिनों तक वह अपनी मिट्टी से दूर रहने में असमर्थ जो हो गया था l


​ ✍️  राशि सिंह
​मुरादाबाद 244001
 उत्तर प्रदेश

गुरुवार, 23 अप्रैल 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा---- निखरे रंग


आज आसमान बहुत खुश था .होता भी क्यों नहीं मुद्दतों बाद अपने असली रंग रूप को जो देख रहा था . और पक्षी भी तो कलरव करते हुए उसके आगोश में सिमटने को आतुर थे .थोड़ी उड़ान भरने पर ही जो आँखों से ओझल या बहुत ही फीके से दिखाई देने लगते थे आज उनका दूर से बहुत दूर से इएक एक पंख गिना जा सकता था .
धुंध का दूर दूर तक नामो निशाँ नहीं था और पवन की शीतलता बदलते मौसम की गर्मी पर बभारी पहो रही थी .
नदी का पानी भी मुस्करा रहा था और लहरें अठखेलियां करती प्रतीत हो रही थीं सूरज की किरणें उन पर पपड़कर वातावरण को और खूबसूरत बना रही थीं .
फूल डालिओं पर लटके अपना निखरा हुआ यौवन दिखाकर भौरों को अपनी औतरफ आकर्षित कर रहे थे .
​पूरी प्रकृति खुश थी मंगल गीत गाने को आतुर सी प्रतीत हो रही थी .
​आसमान इतना स्वच्छ की दिन में भी तारे गिने जा सकते तथे
​जंगली और आवारा कहे जाने वाले जानवर बड़ी शान्ति से अपने दिन बिताने में मशगूल थे .
​यह संभव कैसे हुआ प्रकृति भी आश्चर्य चकित थी .फिर उसको पता चचला की अपनी बुद्धिमता के लिए प्रसिद्ध मानव पर प्रकृति के महामारी नामक दंश ने उसको घर में कैद रहने के लिए विवश कर दिया है .
​इसलिए प्रकृति आज कहकर सांस और अपने चमकीले रंगों की दुनियां में फिर से लौट आई है .

​ ✍️ राशि सिंह
​मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश,भारत

बुधवार, 22 अप्रैल 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की बाल कहानी ----- नादान मोलू


   मोलू बंदर आज बहुत परेशान था   उसको समझ नहीं आ रहा कि  वह खुश कैसे  रहे? बह  आम के बाग में गया और एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर कूद कूद कर  उछल कूद करने लगा. इससे बहुत सारी   शाखाएं और अमरुद टूटकर नीचे गिर कर रोने लगे.
​ सबको कुछ समझ नहीं आ रहा था कि मोलू को आखिर हो क्या गया है?
​ कई अमरुद तो बहुत छोटे छोटे थे जो और बड़े हो सकते थे परंतु  मोलू  की नादानी के कारण हो जमीन पर गिरे बिलख रहे थे.
​ उधर छोटू बाबू  और कालू बंदर मजे से अमरूद खा रहे थे पके पके  अमरूदों को भी आत्म संतोष हो रहा था.
​  मोलू की आंखें लाल हो रही थी गुस्से के मारे और चेहरा सुखा  सा  कोई रौनक नहीं थी चेहरे पर.
​  मोलू अक्सर बहुत गुस्सा करता था इससे उसके माता-पिता हमेशा दुखी रहते  थे की मोलू खुश क्यों नहीं रहता  और  बच्चों के साथ खेलता क्यों नहीं ?
​ उसकी गुस्से के कारण धीरे-धीरे उसके सभी मित्रों से दूर होते गए और  वह अकेला रह गया अब उसको बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था कोई भी उससे बात करने वाला नहीं था.
​ एक दिन वो   मोलू बंदर की मम्मी चंपा ने उसको अपने पास बैठाया और उसकी उदासी का कारण पूछा.
​   मोलूने उदास होते हुए कहा कि उससे कोई नहीं बोलता उसके सारे मित्र  उससे दूर रहते हैं .
​ मम्मी ने प्यार से  मोलू के सिर पर हाथ फेरा और समझाते हुए कहा कि उसको थोड़ा शांत रहना चाहिए अपने आसपास की चीजों से प्रेम करना चाहिए.
​ किसी को भी सताना नहीं चाहिए पेड़ पौधों को भी नहीं क्योंकि उनके भी दर्द होता है जब उनको हम बेरहमी से तोड़ते हैं तो वह तड़पते हैं.
​    मोनू अपनी मम्मी के बात सुन तो रहा था लेकिन ध्यान बिल्कुल नहीं दे रहा था.
​  थोड़ी देर बाद मम्मी अपने घर के काम करने  लगी और  मोलू ने टीवी चला कर टीवी देखना शुरू कर दिया.
​ लेकिन उसे टीवी देखना है बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था उसको अपने मित्रों के बहुत याद आ रही थी जो उससे बोलते नहीं थे.
​ उसने उठकर अपना मुंह धोया और शीशे में खुद को गौर से देखा उसके माथे की लकीरें गहरी हो रही थी क्योंकि वह बहुत गुस्सा करता था.
​ उसने अपने बाल बनाए और आंखों में काजल लगाया, फिर   वह  अपनी मम्मी के पास किचन में गया, मम्मी गीत गाते हुए खाना बना ​​ थी और पापा मुस्कुराते हुए उनकी रसोई में सहायता कर रहे थे.
​  मोलू को दोनों ने अनदेखा कर दिया क्योंकि वह किसी की बात तो मानता नहीं था हमेशा रोता चिल्लाता रहता था.
​ उसने मम्मी से मुस्कुराते हुए कहा कि क्या है उनकी कोई हेल्प कर सकता है.
​ मम्मी पापा दोनों को बड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि उन्होंने पहली बार   मोनू का बदला हुआ रूप देखा था.
​" नहीं  मोलू तुम कुछ मत करो बाहर जाकर बैठ जाओ मैं सब कुछ कर लूंगी!"
​ मम्मी ने मुस्कुराते हुए कहा तो मोलू को एहसास हुआ कि हमें अपने सभी कार्य हंसते हुए ही करनी चाहिए.
​ कभी दूसरों पर गुस्सा नहीं करना चाहिए और हमेशा खुश रहना चाहिए.
​ इसके बाद मोलू ने खुश रहना से रहना शुरू कर दिया. उसके सभी मित्र फिर से उसके साथ खेलने लगे और पेड़-पौधे भी उससे खुश रहने लगे.

​  ✍️  राशि सिंह
​ मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
​( अप्रकाशित एवं मौलिक बाल कहानी)

रविवार, 29 मार्च 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की रचना -- घर के भीतर रहकर ​खुद को ही नहीं ,सब को बचाना है.


भयभीत नहीं होना है
​हिम्मत से इसे हराना है
​बढ़ाकर प्रतिरोधक क्षमता
​इससे टकराना है.

​ संयम और समझदारी से
​ इस विकट स्थिति से निपटना है
​ घर के भीतर रहकर
​ खुद को ही नहीं ,सब को बचाना है.

​ अनगिनत बार हम सबको
​ अपने हाथों को  धोना है
​ नाक आंख और मुंह से
​ हाथों को नहीं लगाना है.

​ बुरा दौर है बुरा वक्त है
​ यह  सभी ने माना है
​ गुजर जाएंगे यह लम्हे
​ मुश्किल में भी मुस्काना है.

​ रोने धोने से कुछ नहीं होता
​ हाथों को  बस धोना है
​ संयम बरतो मानव जाति
​ कोरोना को हराना है.


​ ***राशि सिंह
​वेब ग्रीन, रामगंगा विहार
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत