रोजी रोटी की तलाश में दीना ने अपनी जन्मभूमि से दूर जहां उसका बचपन और युवावस्था के कई साल गुजरे ,बचपन के संगी साथी और घर परिवार के लोगों का साथ छूटा इस बात से भी गुरेज नहीं किया .
उसको याद है जब वह पहली बार शहर आया तो उसकी हालत कैसी थी ? बड़ी मुश्किल से एक कंट्रक्शन कंपनी में दिहाड़ी मजदूर की नौकरी मिली थी जिसमें गाँव की अपेक्षा मजदूरी तो ज्यादा थी मगर खेतों से उठने वाली सौंधी खुशबू दूर दूर तक महसूस नहीं होती थी .
बड़ी मुश्किल से एक गन्दी सी बस्ती में एक छोटा सा पिंजड़ा नुमा कमरा मिला था जिसमें सीलन की दुर्गन्ध और धुप और हवा तो दूर दूर तक नहीं आते थे । गावं में घर कच्चा और घास फूस का तो था मगर हवा पानी और धुप फ्री था जितना ले सको उतना .
पेड़ों की शीतल हवा ...और पक्षियों का मधुर कलरव सब कुछ कितना मीठा था .
कभी कभी दीना बहुत उदास हो जाता था मगर वहां पर कोई भी सुख दुःख पूछने वाला नहीं था .लेकिन जब कभी बीच बीच में वह गाँव आता था तब खुद पर बड़ा रीझता था क्योंकि अब उसके पास अच्छे कपडे होते थे .थोड़े दिन बाद गाँव की कच्ची कोठरी को पक्का भी बना लिया था उसने जिससे उसके अडोसी पडोसी भी शहर जाने के लिए प्रेरित हुए बिना नहीं रह सके .
उसको क्या पता था कि शहर उसके लिए किराए की जगह मात्र है उसकी जड़ें तो अब भी गावं में ही है .
कोरोना के कारण शहर में काम धंधे बंद हो गए ऐसे में जब फांकों की स्थिति आ गई तो उसको वही गाँव फिर से याद आने लगा था जिससे उसको कुछ दिन पहले वितृष्णा सी होने लगी थी . वह व्याकुल हो उठा अपनी जड़ों की तरफ लौटने को .और पैदल ही निकल पड़ा अपने गाँव की तरफ धुप ,भूख और गर्मी की परवाह किये बिना .उसको आज भी विशवास था की उसकी जन्मभूमि उसको गले जरूर लगाएगी .
उसने गाँव में घुसते ही सबसे पहले वहां की मिटटी को माथे से लगाया और पीछे मुड़कर सपने के सापेक्ष से शहर को अलविदा भी कह दिया .
अब फिर से वह हकीकत और प्रेम से रूबरू हो गया था .
घर में अपनों का साथ और प्रेम उसको बेशकीमती लग रहा था जिसको उसने सिरे से नकारने की कुचेष्टा की थी ,jजिस गाँव को वह नादानी के कारण हेय की दृष्टि से देखने लगा था उसी गाँव ने उसको फिर से प्रेम के मोहपाश में कैद कर लिया .
✍️ राशि सिंह
मुरादाबाद 244001
रोजी रोटी की तलाश में दीना ने अपनी जन्मभूमि से दूर जहां उसका बचपन और युवावस्था के कई साल गुजरे ,बचपन के संगी साथी और घर परिवार के लोगों का साथ छूटा इस बात से भी गुरेज नहीं किया .
उसको याद है जब वह पहली बार शहर आया तो उसकी हालत कैसी थी ? बड़ी मुश्किल से एक कंट्रक्शन कंपनी में दिहाड़ी मजदूर की नौकरी मिली थी जिसमें गाँव की अपेक्षा मजदूरी तो ज्यादा थी मगर खेतों से उठने वाली सौंधी खुशबू दूर दूर तक महसूस नहीं होती थी .
बड़ी मुश्किल से एक गन्दी सी बस्ती में एक छोटा सा पिंजड़ा नुमा कमरा मिला था जिसमें सीलन की दुर्गन्ध और धुप और हवा तो दूर दूर तक नहीं आते थे । गावं में घर कच्चा और घास फूस का तो था मगर हवा पानी और धुप फ्री था जितना ले सको उतना .
पेड़ों की शीतल हवा ...और पक्षियों का मधुर कलरव सब कुछ कितना मीठा था .
कभी कभी दीना बहुत उदास हो जाता था मगर वहां पर कोई भी सुख दुःख पूछने वाला नहीं था .लेकिन जब कभी बीच बीच में वह गाँव आता था तब खुद पर बड़ा रीझता था क्योंकि अब उसके पास अच्छे कपडे होते थे .थोड़े दिन बाद गाँव की कच्ची कोठरी को पक्का भी बना लिया था उसने जिससे उसके अडोसी पडोसी भी शहर जाने के लिए प्रेरित हुए बिना नहीं रह सके .
उसको क्या पता था कि शहर उसके लिए किराए की जगह मात्र है उसकी जड़ें तो अब भी गावं में ही है .
कोरोना के कारण शहर में काम धंधे बंद हो गए ऐसे में जब फांकों की स्थिति आ गई तो उसको वही गाँव फिर से याद आने लगा था जिससे उसको कुछ दिन पहले वितृष्णा सी होने लगी थी . वह व्याकुल हो उठा अपनी जड़ों की तरफ लौटने को .और पैदल ही निकल पड़ा अपने गाँव की तरफ धुप ,भूख और गर्मी की परवाह किये बिना .उसको आज भी विशवास था की उसकी जन्मभूमि उसको गले जरूर लगाएगी .
उसने गाँव में घुसते ही सबसे पहले वहां की मिटटी को माथे से लगाया और पीछे मुड़कर सपने के सापेक्ष से शहर को अलविदा भी कह दिया .
अब फिर से वह हकीकत और प्रेम से रूबरू हो गया था .
घर में अपनों का साथ और प्रेम उसको बेशकीमती लग रहा था जिसको उसने सिरे से नकारने की कुचेष्टा की थी ,jजिस गाँव को वह नादानी के कारण हेय की दृष्टि से देखने लगा था उसी गाँव ने उसको फिर से प्रेम के मोहपाश में कैद कर लिया .
✍️ राशि सिंह
मुरादाबाद 244001
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