गुरुवार, 14 मई 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघु कथा ......'मुझे हक है '



​आज पूरे ऑफिस में हँसी  ठहाके गूंज रहे थे सबको जैसे हँसने  की वजह मिल गई हो और लाजिमी भी है क्योंकि कई  तो जिंदगी की भूल भुलैया में ऐसे उलझे कि  ठहाके की तो छोड़िए सपने में मुस्कराना तक भूल गए थे मगर आज शिवानी शर्मा की वजह से सभी के चेहरे खुश नजर आ रहे थे; ऐसा नहीं था कि वे सभी खुश थे बस दूसरों का उपहास उड़ाने वाली हँसी ही सजी थी l
​"मै तो यह कहता हूँ कि शिवानी जी को हो क्या गया है अरे अच्छी खासी जॉब दोनों बच्चे सेटल और उम्र पचपन .......क्या आवश्यकता थी इस उम्र में यह स्वांग रचने की ?"श्री विनोद शर्मा ने तम्बाखू चबाते हुए कहा l
​"वही तो ....देखो न लोग क्या कहेंगे ?"इस बार मंजू श्री जो शिवानी की हमउम्र थीं ने चिंता व्यक्त की l
​"मगर फिर भी उन्हौने जो किया सो किया उनको गिफ्ट तो देना ही होगा l"अवधेश जी ने अपने मन की बात कही l
​"सच कहूँ बिल्कुल दिल नहीं कर रहा l"लता देवी ने मूँह बनाते हुए कहा l
​"अरे विवाह किया ही तो पंद्रह साल पहले ही कर लेतीं कम से कम अच्छा पति तो मिल जाता ...कहाँ खुद पचपन की और मियाँ  ढूँढे  हैं अठत्तर के l"विनोद जी ने बमुश्किल हँसी को दबाते हुए कहा l
​विनोद जी के शब्दों  ने शिवानी के बढ़ते कदमों को रोक लिया उनकी मानसिकता देखकर वह सन्न नहीं हुईं क्योंकि उन्होने यह फैसला इन सब बातों पर विचार करने के बाद ही लिया था l
​"क्या विवाह का मतलब सिर्फ देह सुख ही विनोद जी ?"शिवानी का स्वर सुन सभी भौचक्के रह गए और इधर उधर बगलें झांकने लगे l विनोद जी को तो काटो तो खून नहीं l
​"सहारा ...मित्रता ..सुख- दुख बाँटना  मन की बात कहने के लिए किसी सहारे की किसी अपने की आवश्यकता होती है या नहीं ....अगर मै विवाह दैहिक सुख के लिए ही करती तो पति की म्रत्यु के तुरंत बाद भी कर सकती थी मगर बच्चों की परवरिश की भी जिम्मेदारी थी न ;पता ही नहीं चला वक्त कैसे बीत गया ?"शिवानी का गला रूँध गया और आँखे भर आई देखकर सभी नजरें चुराते से दिखाई देने लगे l
​"मुझे हक है मेरी जिंदगी के फैसले लेने का ....मुझे हक है सिर्फ मुझे l  वैसे आज बहुत दिनों बाद ऑफिस में खिलखिलाते हुए चेहरों से रूबरू हुई हूँ इसलिए मिठाई तो बनती है l"शिवानी ने मिठाई के डिब्बे को खोलकर विनोद जी को देते हुए कहा l

​✍️राशि सिंह
​मुरादाबाद 244001

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें