मुल्ला उमर बहुत ही वहमी किस्म का इंसान था। वैसे तो वह खूब हट्टा-कट्टा इकहरे बदन का गोरा चिट्टा इंसान होते हुए भी बीमारी का वहम पाले रहता। उसकी खुराक भी ऐसी कि नौजवानों को भी पीछे छोड़ दे। फिर भी उसके दिमाग में यही फितूर रहता कि हो न हो मेरा शरीर पूरी तरह स्वस्थ नहीं है। बस इसी उधेड़ बुन में घरवालों से नई से नई चीजें बनवाकर खाता रहता। घर वालों के समझाने पर भी वह कुछ समझने को तैयार न होता। ज्यादा कुछ कहने पर घरवालों को ही उल्टा सीधा कहने लगता।
एक दिन वह एक पहुंचे हुए दरवेश हनीफ मियां के पास पहुँचा। आदाब अर्ज़ के पश्चात उसने मियां जी से कहा कि हे दरवेश, मुझे हर वक्त ऐसा क्यों लगता रहता है कि मेरे भीतर कोई बड़ी बीमारी पल रही है। मैं जिससे भी पूछता हूँ वह यही कहकर
टाल देता है कि तुम बिल्कुल ठीक हो। कहीं से भी बीमार नहीं लगते। यह तो केवल तुम्हारे मन का वहम है वहम, और वहम का इलाज तो हकीम लुकमान के पास भी नहीं।,,,,
क्या आप भी ऐसा ही मानते हैं दरवेश जी। दरवेश जी मुस्कुराकर बोले। बेटा,, यदि तुम इस वहम से छुटकारा ही पाना चाहते हो तो, जैसा मैं कहूँ वैसा करो। तुम्हारी शंका का समाधान तुम्हें अवश्य ही मिल जाएगा।
उमर ने कहा मोहतरम आपका हुक्म सर आंखों पर।
आप जो कहेंगे मैं वैसा ही करूंगा। दरवेश ने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा। बेटा, तुम अभी जाकर दुनियाँ के माने-जाने किसी अस्पताल में उसके मुख्य द्वार से प्रवेश करके वहाँ के सभी वार्डों में ज़ेरे इलाज मरीजों को ध्यान से देखते हुए अस्पताल के पिछले दरवाज़े से बाहर निकल जाना। तुम्हें तुम्हारी बीमारी का तुरंत समाधान मिल जाएगा।
उमर ने वैसा ही किया और एक जाने-माने अस्पताल के मुख्य द्वार से प्रवेश करके उसके भिन्न-भिन्न वार्डों से गुजरते हुए आगे बढ़ने लगा।
सबसे पहले हड्डी वार्ड का नज़ारा देखकर उसका दिल ही बैठने लगा। उसने देखा कोई रो रहा है, कोई बेहोश पड़ा है। किसी की टांगें शिकंजे में कसी हुई हैं, तो किसी की टांगों को वजन लटकाकर ऊपर उठा रखा है।किसी का पूरा शरीर ही पट्टियों से बंधा हुआ है।
थोड़ा और आगे बढ़ा तो उसने देखा डॉक्टर लोग एक मरीज के सीने को ज़ोर-ज़ोर से दबाकर उसे साँस दिलाने की कोशिश कर रहे हैं। उसने दिल पक्का करके एक डॉक्टर से पूछा आप ऐसा क्यों कर रहे हैं। तो डॉक्टर ने बताया भैया, इसका दिल कोई हरकत नहीं कर रहा है। दिल को चालू करने के लिए ऐसा करना पड़ता है। चल गया तो ठीक वर्ना,,,,,,,कह नहीं सकते। मुँह व नाक में कई नालियां देखकर उसने आगे बढ़ना ही ठीक समझा।
इस तरह वह कभी आंखों,कभी दांतों, कभी टी.बी. वार्ड तो कभी चीर फाड़ कर रहे डॉक्टरों के शल्य चिकित्सा कक्ष में दूर से ही झांकते हुए अल्लाह- अल्लाह करता हुआ आगे बढ़ गया। रास्ते में हर एक डॉक्टर के पास मरीजों की लंबी-लंबी लाइनें देखकर जल्दी से बाहर निकलने का रास्ता खोजने लगा। पूछते-पाछते वह अस्पताल के बाहर आकर सोचने लगा कि पीर साहब ने ठीक ही कहा था। अब मुझे पूरा यकीन हो गया है कि मुझे कोई बीमारी नहीं है ।
मुल्ला उमर ने दरवेश जी के साथ-साथ सभी घरवालों को आदाब करते हुए अपने ऊपर परवरदिगार के रहमोकरम की सराहना करते हुए सभी से कहा कि बेवजह वहम करना बहुत बड़ी नासमझी है भाई।
✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9719275453
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