गुरुवार, 20 अगस्त 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की लघुकथा ---- अभिव्यक्ति

 
सेठ जी ने पूरे पाँच हजार रुपये का ठेका अपनी कोठी की सजावट के लिए दिया था। वास्तव में बिजली के ठेकेदार ने इतनी सुंदर सजावट की कि कोठी जगमगा उठी ।सेठ जी कॉलोनी की अन्य कोठियों से अपनी तुलना करते हुए प्रसन्न - भाव से टहलते- टहलते गेट से कब बाहर निकल कर पड़ोस की टूटी- फूटी सड़क पर निकल पड़े ,उन्हें पता ही नहीं चला ।
    थोड़ी दूर चलने पर देखा कि एक साधारण - से मकान में बच्चे और बड़े मिलकर आठ - सात मिट्टी के दिए जला रहे थे और खुश हो रहे थे । सेठ जी का चेहरा यह दृश्य देखकर मुरझा गया । वह दबे कदमों से अपनी कोठी की ओर पीछे लौट पड़े ।

✍️ रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार राम किशोर वर्मा की लघुकथा-----वहम


    नीचे वाले फ्लैट में रह रहे चौधरी साहब और उनके पुत्र-पुत्री प्रतिदिन शाम को बिल्डिंग के नीचे आकर टहलते या उनके बच्चे ऊपर छत पर घूमने जरूर आते थे ।
    आज फ्लैट के दो-तीन परिवार  छत पर आये और सभी ने राम जन्म भूमि पूजन के पावन अवसर पर दीपक जलाये । मगर आज चौधरी साहब का परिवार छत पर दीप प्रज्जवलित करने नहीं आया ।
   दीप प्रज्जवलित करके थोड़ी देर खुशियां मनाकर सभी लोग अपने-अपने घर चले गए ।
    छत पर केवल गुप्ता जी और गहलोत जी ही रह गये थे। गुप्ताजी ने गहलोत जी से पूंँछा - "दो-तीन दिन से चौधरी साहब या उनके बच्चे दिखाई नहीं दे रहे। कुशल तो है?"
  गहलोत जी ने गुप्ता जी को बताया - "हम लोग रक्षाबंधन के पर्व पर बाजार के कई चक्कर लगा आयें हैं । इसलिए लगता है कि वह सुरक्षा की दृष्टि से कोरोना के बचाव में अपने-आप को घर में सुरक्षित रखे हुए हैं ।"
    गुप्ता जी बोले - "ऐसे तो यह भी रोज अॉफिस जा रहे हैं और इनका पब्लिक डीलिंग का काम है । तब हमने तो ऐसा नहीं सोचा।"
     गहलोत जी ने कहा - "बहम का कोई इलाज है क्या?"
     
 ✍️ राम किशोर वर्मा
 रामपुर

मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेन्द्र शर्मा सागर की लघुकथा -------दिल का मैल


"अजी सुनते हो? इस बार सावन मनाने क्या गीता बीबीजी को नहीं बुलाओगे?" सरिता ने अपने पति सागर से पूछा।
"क्यों?? तुम्हारा पिछले झगड़े से पेट नहीं भरा क्या, जो फिर उसे बुलाकर घर में महाभारत करवाना चाहती हो।
अभी तीन चार महीने पहले ही तो आयी थी वह जयदाद में हिस्सा माँगने। कितनी बातें सुनाई उसने हमें तरह-तरह की। और तुम्हे तो अपनी हर परेशानी के लिए जिम्मेदार तक ठहरा दिया", सागर ने थोड़ा उदास होकर कहा। उस समय अनायास ही उसकी नज़र अपनी कलाई की ओर चली गयी।
"अरे छोड़ो उन बातों को, भाई-बहन और भाई-भाई में ऐसी नोक-झोंक होना कोई नई बात नहीं है। और फिर अगर उन्होंने कुछ कह भी दिया तो अपना समझकर ही कहा होगा। कोई किसी गैर से तो इतने अधिकार से झगड़ भी नहीं सकता", सरिता ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
"ठीक है जैसी तुम्हारी मर्जी! तुम ही  उसे फोन कर लेना", सागर ने सपाट स्वर में कहा और ऑफिस के लिए निकल गया।
दोपहर में सारे काम से फुर्सत पाकर सरिता ने गीता को फोन लगाया-
"हैलो… हेल्लो.. मैं सरिता"
"नमस्ते भाभी कैसे हो और भैया कैसे हैं?" उधर से गीता की धीमी आवाज आई।
"सब ठीक है गीता बीबी जी, आपको तो हमारी याद भी नहीं आती अब", सरिता ने उलाहना दिया।
"ऐसी बात नहीं है भाभी.. वो घर के कामों में…!" गीता ने बात टाली।
"गीता बीबी जी सावन शुरू हुए कितने दिन हो गए आप आयी नहीं अपने घर?" सरिता ने बड़े अधिकार से कहा।
"मेरा घर? मेरा घर तो यही है भाभी। अब उस घर से मेरा क्या नाता रहा गया है", गीता ने धीरे से कहा।
"क्यों?? लाठी मारकर क्या पानी अलग होता है? और फिर अगर यहाँ कोई गैर है तो वह मैं हूँ। आप भाई-बहन का रिश्ता मेरी वजह से खराब हो रहा है। लेकिन क्या मेरी बजह से तुम राखी पर अपने भाई की कलाई सूनी रखोगी?" सरिता ने उदास होकर कहा।
"न..न..नहीं भाभी लेकिन भैया..!" गीता अटकते हुए बोली।
"हाँ तुम्हारे भैया ही कहकर  गए हैं कि तुमसे पूछ लूँ, खुद आएगी या कान पकड़ कर लेने आना पड़ेगा? देखो तीज से पहले ही आ जाना और सलूनो करके ही बापस जाना।
बाकी रही बात झगड़े की, तो उसके लिए सावन के अलावा भी ग्यारह महीने बाकी पड़े हैं", सरिता ने हँसकर कहा।
"भाभी…!!" गीता की हिलकी भर गयी।
इधर सरिता की आँखे भी नम हो आयीं थीं।
तभी आसमान में काली घटाएं घिर आयीं और बारिश की तेज बौछारें पड़ने लगीं मानों बादल भी दिलों पर जमी मैल को धोने के लिए बरस रहे हों।

✍️ नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा मुरादाबाद
उत्तरप्रदेश

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी -----अंत बुरे का बुरा...


 सिमलेश ...!.. तुम यहां !!!     तुम्हें तो वहीं रहना था... दादी के पास कौन है??.. पवन ने विसफारित नेत्रों से देखते हुए सिमलेश से पूछा....
......तुम्हारी चिट्ठी को देख कर ही तो मैं आई हूं अम्मा कहां है ? कैसी तबीयत है उनकी ?
उत्तर में विस्मय से सिमलेश ने कहा...
चिट्ठी....!.. कौन सी चिट्ठी ? हमने कब चिट्ठी भेजी.....?? जरूर कोई गड़बड़ हुई है.... !! खतरे को भांपते हुए पवन ने उन्हें कहा !!
 ....   तभी अम्मा  कमरे से बाहर आते हुए आश्चर्य से बोली आज बहुत बुरा हुआ ....निश्चय  ही तेरी दादी की जान को खतरा है रात बहुत हो गई है चलो अब सुबह देखेंगे....!!
    सुबह 6:00 बजे गांव से एक आदमी आया जिसने बताया दादी का मर्डर हो गया है...... डकैतों ने सब कुछ लूट कर दादी को मार डाला .......!!!
       दादी जो कि मुनसन के नाम से मशहूर थीं ..अवस्था 90 साल बड़ी सी हवेली, 1oo बीघा जमीन के अलावा घर में सोने, चांदी, हीरे ,जवाहरात का खजाना भरा था एक संदूक चांदी के रुपयों से ही भरा था ...मुनसन के अपनी कोई औलाद नहीं थी इसलिए उसने ससुराल वालों पर भरोसा न करके अपने भतीजे पवन के बेटे राकेश को गोद ले लिया था और उसी के नाम वसीयत लिख दी थी परंतु वह सब लोग शहर में रहते थे उनकी देखभाल के लिए राकेश की दादी और बुआ सिमलेश मुनसन के पास रह कर सेवा करते थे बगल में ही जेठ के लड़के शमशेर का मकान था जिसके बेटे महेश और देवेश हमेशा बुढ़िया की जान के दुश्मन बने रहते थे मौके की तलाश में रहते थे कि कब बुढ़िया अकेली मिले और उसका गला दबा दें और सारा माल साफ कर दें उन्होंने छल से  एक चिट्ठी लिखी और सिमलेश को वहां से हटा दिया और रात में पहुंच गए 90 साल की बुढ़िया पैरों पर गिर कर खूब रोई गिड़गिड़ाई .... मेरे प्राण छोड़ दो परंतु महेश दिनेश को दया नहीं आई... जरा सा गला दबाने से आसानी से बुढ़िया केप्राण निकल गए सारा माल खाली कर दिया और पुलिस में रिपोर्ट लिखा दी कि डाकू आए थे  रात को डाकू लूट कर ले गए और बुढ़िया को मार गए
    पुलिस के सुआ मोर पोस्टमार्टम में स्पष्ट हो गया कि मुनशन की हत्या गला दबाकर की गई
महेश और देवेश को पुलिस पकड़ कर ले गई घर में बहुत भीड़ थी काफी लोगों के बीच में वसीयत पढ़ी गई वसीयत में 50 बीघा जमीन मुनसन ने महेश और देवेश के नाम लिख रखी थी जांच कराई गई वसीयत असली थी यह देखकर महेश और देवेश के नाम लिखी थी जानकर महेश और देवेश को बहुत ही दुख हुआ
 सब किया कराया मुंनशन के जेठ के लड़के शमशेर  का था अब पश्चाताप के अलावा कुछ नहीं हो सकता था
कोर्ट द्वारा महेश और देवेश को आजन्म कारागार की सजा सुनाई गई शमशेर के अंतिम समय में उसके पास दोनों बेटों में से कोई भी ना था पश्चाताप में बड़ी ही मुश्किल से प्राण निकले !!!
.....किसी ने सच ही कहा है ....
अंत बुरे का बुरा......

 ✍️ अशोक विद्रोही
82 188 25 541
412 प्रकाश नगर मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा -------गुदड़ी में मोती


     जब वो घर के बाहर आती तो बच्चे उससे चिढ़ते थे ।लंबे बालों में ढेर सारा सरसों का तेल लगाती थी ।बेकार में नहीं घूमती ।जब उसकी मां कोई काम बताती ,तभी घर से निकलती अन्यथा केवल  घर से स्कूल और स्कूल से घर ।चार बहनों में सबसे बड़ी ,मासूम सी ।कोई बनावट नही ।मैं जब भी छत से देखती ,वह पढ़ती ही दिखती या रसोईं में काम ।
कभी वाद विवाद प्रतियोगिता ,कभी भाषण ,कभी काव्य पाठ ,यही सब उसके शौक थे ,जब नाम छपता था अखबार में तो मुझसे न्यूज़ पेपर की कटिंग ले जाती । बस एक सपना था उसका .......कि कोई नौकरी मिल जाय पढ़ाई के बाद ,जिससे वह अपने भाई बहनों को भी कुछ प्रेरित  कर सके । मैं खुश होती थी उसे देख क्योंकि अभावों में भी वह किसी से कम न थी ।
हाई स्कूल का रिजल्ट आने बाला था ।सब  स्टूडेन्ट दहशत में थे ,उस समय उसके चेहरे पर एक अजीब सी चमक थी ।
पास होने बाले मिठाई बांट रहे ,अपनी तारीफ करते घूम रहे ।पर वह अगले क्लास के नोट्स बना रही थी ।मैंने पूंछ लिया उससे कि रिजल्ट देखा क्या ?बोली,"नही ,पेपर वाला बीस रुपये  माँगता है ।पर मेरी मां पर नहीहै।स्कूल मार्कशीट तो आयगी न ।
अगली सुबह ,कई न्यूज़ पेपर वाले एक एक करके उससे मिलने को उसका इंतजार  करते उसके दरबाजे खड़े थे । बस मुझे समझने में देर न लगी । यही वही टीम थी जो टॉपर्स का इंटरव्यू छापते थे । मेरे मुख से स्वतः निकल गया........यह ,तो "गुदड़ी में मोती "है।

 डॉ प्रीति हुँकार
मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघुकथा ---------सन्नाटा

सन्नाटा..........दूर तक फैला था उस घर में......न पति पत्नी में नोक झोंक ,न बच्चों के खिलौने टूटने की आवाज़,बड़ें बूढ़ों के खाँसने की आवाज़ भी नही आती थी........
एक दिन चुपके से मैंने झाँक कर देखा कि उस घर में तीन लोग थे जो अपने अपने काम में व्यस्त थे ।उस घर में जो आदमी था वह लैपटॉप के सामने बैठे कोई महत्वपूर्ण गुत्थी सुलझाने में इतना व्यस्त था कि फ़ोन पर बात करते करते हुए भी लैपटॉप पर उँगलिया तेज़ी से चल रही थी।बच्चा मज़े से विडीओ गेम में दुश्मनो पर गोलियाँ दाग़ रहा था और मैडम किटी पार्टी की तैयारी में नाख़ून चमका रही थी कि तभी मैडम का फ़ोन बजा ....नेल पोलिश ख़राब होने के डर से स्पीकर पर डाल दिया ,जिससे आवाज स्पष्ट आ रही थी
‘’मैडम मैं वृद्धाश्रम से सोनू बोल रहा हूँ ।माँ, बाबू जी आप को बहुत याद करते हैं,,,,,,,।
 बस फिर क्या था मुझे उस घर की शान्ति का राज समझते देर नहीं लगी।मैं चुपचाप घर आ गई और देखा कि बच्चे अपने दादा दादी  के साथ खेल में व्यस्त थे।
                       
 ✍️ प्रीति चौधरी
 गजरौला,अमरोहा

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष ब्रजभूषण सिंह गौतम अनुराग की पुण्यतिथि पर " मुरादाबाद लिटरेरी क्लब" द्वारा उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर चर्चा ---


      वाट्स एप पर संचालित साहित्यिक समूह 'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा  "ज़मीं खा गयी आसमां कैसे कैसे" शीर्षक के तहत 17 अगस्त 2020 को साहित्यकार ब्रजभूषण सिंह गौतम अनुराग की पुण्यतिथि पर उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर चर्चा की गई। चर्चा दो दिन चली। सबसे पहले ग्रुप के सदस्य योगेंद्र वर्मा व्योम ने ब्रजभूषण सिंह गौतम अनुराग के प्रतिनिधि गीत पटल पर रखे।

चर्चा शुरू करते हुए प्रख्यात नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने कहा कि गौतम जी ने पर्याप्त मात्रा में लेखन किया है और छांदस कविता के क्षेत्र में प्रचलित लगभग सभी छंद विधानों में अपनी लेखनी चलाई है। ऐसी सामर्थ्य पूर्ण प्रतिभा विरल लोगों में ही होती है ।
वरिष्ठ कवि शचीन्द्र भटनागर ने कहा कि अनुराग जी आयु में लगभग दो वर्ष बड़े थे मुझसे, पर घर हो या मंच, मुझे भाईसाहब कहकर ही संबोधित करते थे। ग़ज़ब की बेबाकी थी उनमें, पर विनम्र भी इतने कि यदि किसी से उनका मन आहत हुआ वर्णन करते समय आंखें गीली हो जाती थीं। गौतम जी ने जो लिखा वह विपुलता और गुणवत्ता दोनों ही दृष्टियों से श्रेष्ठ है। उनकी सृजन क्षमता ग़ज़ब की थी। उनके स्वयं के शब्दों में वह एक दिन में एक दर्जन से अधिक नवगीत लिख देते थे।
वरिष्ठ कवि डॉ अजय अनुपम ने कहा कि अनुराग जी की रचनाओं में जीवन का बहुआयामी चित्रण मिलता है। अपने समय में बहुत परिश्रम से समाज में अपनी पहचान बनाई थी। ग्राम्य परिवेश और नगरीय वातावरण दोनों को बारीकी से देखना उन्हें भली-भांति आता था। साहित्य में मुरादाबाद में उनका स्थान रिक्त है। रचनाकर्म के प्रति अब वैसा समर्पण अलभ्य है।
वरिष्ठ व्यंग कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि अनुराग जी एक बड़े साहित्यकार थे।उनका लेखन लोकगान भी था और लोकधाम भी।उनका सृजन अपनी मिट्टी की सौंधी गंध से पूर्णतः महका हुआ है।लोक की चिंताओं के साथ-साथ लोक कल्याण की भावना भी उनके साहित्य में भरी पड़ी है। असमानता, असंगति,विसंगति और समाज की समरसता को उन्होंने गाया है।समाज को उन्होंने गहराई से पढ़ कर  उसके लिए जो गढ़ा है वह कविता और समाज के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
मशहूर शायरा डॉ  मीना नक़वी ने कहा कि स्मृति शेष कविता के मूर्धन्य समर्थ महाकवि अनुराग 'गौतम' जी को  अनेकानेक  गोष्ठियों में सुनने का गौरव प्राप्त हो चुका है। इसमें कोई संदेह नहीं कि इनकी रचनाओं का आकाश बहुत विस्तृत है जो अपनी धरती को एक क्षण नहीं भूलता। समर्थ छाँदस रचनायें उन्हें साहित्य में विशिष्ट स्थान दिलाती हैं।
वरिष्ठ कवियत्री डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने कहा कि गीतों के सरस अनवरत निर्झर झरने की प्रकृति के कवि गौतम जी एक कोमल ह्र्दय के कवि थे। उनके गीतों में श्रंगार रस की अभिव्यक्ति अधिक रही, चाहें संयोग हो अथवा वियोग रस। जीवन की कष्ट वेदनाओं की अपरमित गाथा उनकी गजलों, उनके गीतों में भरी पड़ी है। गौतम जी ने अपने दुख को भी बहुत संवेदनशीलता के साथ उन्मुक्त भाव से व्यक्त किया।
वरिष्ठ कवि आनंद कुमार गौरव का दर्पण मेरे गाँव का और चाँदनी जैसी अमर कृतियों के कीर्तिशेष काव्य साधक के रचनाकर्म पर टिप्पणी के रूप में कहना था कि "बना घरौंदे नम माटी के मन की गागर भर लेने दो"और "मनमुटाव से बुझे पड़े हैं मन के सभी अलाव" जैसे सहजतह स्वीकार्य अनुभावों के साथ"दादी अम्मा की खटिया पर टूटी छप्पर छाँव, कैसे आज लौटकर आऊँ फिर पुरुखों के गाँव" लिखकर विवशता और पीड़ा अभिव्यक्ति, स्वयं प्रमाणित कर देती है,कि सत्य की कडुवाहट को पीना और उसी सत्य के साथ जीना ही, सहज, सात्विक, अनुशासनप्रिय, अनुराग गौतम जी को सदा प्रिय रहा।
वरिष्ठ कवि डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि स्मृति शेष ब्रजभूषण सिंह गौतम 'अनुराग' जी के सम्पूर्ण साहित्य में ग्रामीण जीवन से लेकर महानगर की कोलाहल भरी जिंदगी तक के विभिन्न चित्र मिलते हैं। उनके गीतों में बहुआयामी प्रेम और विरह वेदना के स्वर है तो सामाजिक विषमताओं और विवशता की पीड़ा भी। जहां वह नायिका के रूप सौंदर्य का बखान करते हुए श्रंगार रस से परिपूर्ण गीत रचते हैं तो वहीं उनकी कलम आतंकवाद और राजनीति के छल प्रपंच के ऊपर भी चलती है। वह अपने आसपास होने वाली घटनाओं को भी अनदेखा नहीं करते। नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों के पतन पर भी चिंता व्यक्त करते हैं।
मशहूर नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम ने कहा कि अनुराग जी का कृतित्व निश्चित रूप से अनूठा है, अनौखा है, विलक्षण है इसलिए उनके कृतित्व की तुलना किसी भी अन्य देशी अथवा विदेशी व्यक्तित्व के कृतित्व से करना किसी भी दृष्टि से कदापि उचित नहीं होगा। उनके समग्र सृजन का यद्यपि अभी तक उस स्तर पर मूल्यांकन भले ही न हो पाया हो जिस स्तर के मूल्यांकन का सुपात्र उनका रचनाकर्म है, किन्तु यह अकाट्य सत्य है कि ‘अनुराग’ जी का समग्र सृजन हिन्दी साहित्य के इतिहास में मील का पत्थर है और भावी पीढ़ियों के लिए पथ-प्रदर्शक भी।
समीक्षक डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन ने कहा कि मेरे नज़दीक अनुराग जी को सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि उनकी जो कृतियां अभी तक अप्रकाशित हैं उन्हें प्रकाशित कराया जाए ताकि एक अनमोल धरोहर हमारे सामने आ सके। एक गुज़ारिश यह भी है कि ऐसे महान स्मृतिशेष व्यक्ति के संबंध में दो चार लेख इस तरह के आने चाहिएं जिससे नई पीढ़ी उन से भली-भांति परिचित हो जाए। जैसे उस व्यक्ति के प्रारम्भिक रचना कर्म पर लिखा जाए, जिन परिस्थितियों में जीवन गुजा़रा और साहित्य सर्जन के लिए जो परिश्रम किया उस पर लिखा जाए। तत्पश्चात कृतियों और रचनाओं पर चर्चा हो ताकि नई पीढ़ी को हौसला मिल सके और उसका मार्गदर्शन हो सके और यह मालूम हो सके कि ऐसे व्यक्ति को यहां तक पहुंचने में कितनी मेहनत करनी पड़ी है।
युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि श्री ब्रजभूषण सिंह गौतम 'अनुराग' अन्तस की वेदना को जीवंत कर देने वाले दुर्लभ रचनाकार थे। अपने मनमोहक गीतों के माध्यम से मुरादाबाद के साहित्यिक इतिहास में अमर 'अनुराग' जी ऐसे गीतकार हुए हैं, जिनकी रचनाऐं हृदय को भीतर तक स्पर्श करती हैं। जो वेदना उनकी रचनाओं के केन्द्र में रही, उसे उन्होंने स्वयं भी अवश्य अनुभव किया होगा, जिया होगा।
युवा कवियत्री हेमा तिवारी भट्ट ने कहा कि स्मृति शेष बृजभूषण सिंह गौतम अनुराग की विलक्षण प्रतिभा होने का ही साक्ष्य है क्योंकि प्रतिस्पर्धा में कुछ पंक्तियांँ, कुछ कविताएंं तो लिखी जा सकती हैं पर अस्वस्थता के बावजूद 190 छंद के मुकाबले 218 छंद लिखना वह भी कला और भाव पक्ष की स्तरीयता के साथ, यह कार्य किसी सामान्य लेखक के बूते का नहीं है। तभी तो वह मेरे लिए कौतूहल जगाते व्यक्तित्व ही हैं। उनका समर्पण भाव और सिद्धहस्तता ही उनके लेखन कौशल की वह विशेषता है जो आमतौर पर आज के समय के लेखकों में दुर्लभ है।
युवा कवि मयंक शर्मा ने कहा कि आदरणीय अनुराग जी के गीतों को पढ़कर सहज ही उनकी उत्कृष्ट लेखनी का अंदाज़ा लग जाता है। गीतों में प्रेम में मिलन की आस है तो विरह की वेदना भी है। सामाजिक विद्रूपताओं के विरुद्ध खड़ा होने वाला प्रतिनिधि कवि है तो प्रकृति का चितेरा, पुष्प की सुगंध और कांटों की चुभन को महसूस करने वाला कोमल ह्रदयी भी। शहरी जीवन से उकता कर गांव जाकर नीम की छाँव और मिट्टी की ख़ुशबू लेने की उत्कंठा भी है। हर रचना में सुंदर शब्दों से मनभावन वाक्य संयोजन किया गया है। इनको पढ़ना काव्य की कक्षा में अच्छा समय व्यतीत करने जैसा रहा।
युवा कवियत्री मीनाक्षी ठाकुर ने कहा कि अनुराग जी ने शायद समाज में आयी संबंधों की रिक्तता, स्वार्थपरता ,शहरीकरण, गाँवों का शहरों को पलायन, प्रकृति से दूरी का दर्द, सब कुछ तो समेट लिया है। दर्द के बावज़ूद कहीं न कहीं मानव मन में सहज भाव से उपजने वाले श्रृंगारिक भावों को भी बड़ी ही सुंदरता से जीवंत करता उनके  गीत बरबस ही प्रकृति व पुरूष के परस्पर आकर्षण को सजीव करते प्रतीत होते हैं। प्रकृति का सजीव चित्रण,दर्द की पीड़ा ,श्रृंगार की चमक ,समाज में अनुशासनहीनता व विद्ररुपता पर चलती पैनी कलम से सम्भवतः कहीं कुछ छुटा ही नहीं है।
ग्रुप एडमिन और संचालक शायर ज़िया ज़मीर ने कहा कि बृजभूषण सिंह गौतम अनुराग जी मुरादाबाद के वरिष्ठ कवि हैं। जिन्होंने बहुत लिखा है। गौतम जी के यहां प्रकृति से जुड़े शब्दों और प्रकृति से संबंधित गीत और रचनाएं अधिक देखने को मिलती हैं। जिसमें उन्होंने अपने कवि को व्यक्त किया है। इसके अलावा उनके यहां कुछ ऐसे शब्द भी हैं जो पुनरावृत हो कर आते हैं और खास तौर पर जिनका प्रयोग बाल साहित्य में अधिक होता है। इस तरह हम कह सकते हैं कि शब्दों को प्रयोग करने में उन्हें किसी तरह की झिझक नहीं थी चाहे वह साहित्यिक शब्द हो या ना हो इससे यह साबित होता है कि उनके पास शब्दों का बहुत अधिक भंडार था। यहां प्रस्तुत गीतों में बहाव भी है और भाव भी है। मुझे गौतम जी के कुछ गीत अच्छे लगे।

:::;;;:प्रस्तुति;;;;;;;;
ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
मुरादाबाद लिटरेरी क्लब
मो०8755681225

बुधवार, 19 अगस्त 2020

संस्कार भारती मुरादाबाद की ओर से रविवार 16 अगस्त 2020 को आयोजित ऑनलाइन काव्य गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों संजीव आकांक्षी, डॉ मीना कौल, डॉ पूनम बंसल, डॉ अर्चना गुप्ता, सुमित सिंह, डॉ रीता सिंह, डॉ ममता सिंह, राजीव प्रखर, एमपी बादल जायसी, इला सागर रस्तोगी, विभांशु दुबे विदीप्त, प्रशांत मिश्र, इंदु रानी, ईशांत शर्मा, आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ और डॉ मनोज रस्तोगी की रचनाएं ------


(1)
तुम झटकते हो
गीले गेसू
इत्र सा पानी
मुझको छू
झंकृत कर जाता है
मन वीणा के तार
देह में साँसें
बची रहतीं  हैं बस
ह्रदय धड़कता रहता है
बे बस
और कुछ क्षण के लिए
रच लेता हूँ
स्वर्ग सा सुन्दर
एक
सपनों का संसार।
(2)
तुम झटकते हो
हाथ मेरा
जब भी कभी
एकांत में
स्तब्ध होता हूँ
एक क्षण के
हज़ारवें हिस्से के लिए
और फिर बटोर कर
सारी हिम्मत
शौर्य से लबरेज़
खड़ा होता हूँ
तुम्हारे समक्ष
और कह देता हूँ
अपनी बातl
(3)
तुम झटकते हो
हाथ मेरा
जब भी कभी
किसी महफ़िल में
कुछ मिनट के लिए
स्तब्ध रह
बड़ा अपमान सह
और फिर अचानक
सजा लेता हूँ
चेहरे पर एक
बेशर्मी सी मुस्कान
पी लेता हूँ
विष सा क्रोध
पुरावृत्ति के दर से
कुछ घंटो के लिए
नहीं करता हूँ
कोई अनुरोध
फिर माफ़ कर देता हूँ
तुम्हें अपना मान
सारी बातें
तुमसे नहीं
स्वयं से कह ।

✍️ संजीव आकांक्षी
मुरादाबाद
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आओ लिखें नई कहानी,हम देश को सजाने की,
न हो जिसमे राजा- रानी,न हो बात खजाने की।1

ले अतीत से उजला सोना, वर्तमान को रचें सुनहरा
नीव में रखें अभिलाषा हम,भविष्य उच्च बनाने की।2

अपनी मिट्टी अपना पानी,अपना घर अपना समाज
अपनी धरती आप चुनें हम,फसलें नई उगाने की।3

चल सागर से मोती लाएं, अम्बर से तारे लाएं हम,
लिखें नाम हवाओं पर लें,सौगन्ध सुगंध फैलानेकी।4

सत्य अहिंसा करूणा क्षमा, चरित्र चेतना अनुशासन
जीवन शिक्षा हो संपादित ,सर्वत्र सर्वदा पढ़ाने की ।5

अपनी माता अपनी भाषा,निज गौरव इसे बनाएं हम
बन जाएँ आदर्श भावना,सकल विश्व को सिखाने की।

मन दर्पण पर जमी  हुईं ,भूलें सारी अब हटाएं हम
रखें सब पर समान दृष्टि ,वसुधैव कुटुंब बसाने की।7

हम ही राष्ट्र के सजग प्रहरी,हम ही वीरों की संतान
बात नहीं उठने देंगे कभी,निज देश को झुकाने की।8

रंग  बिरंगे सुमन खिलें , यहाँ सतरंगी छटा निखरे
अपनी डगर बना मीना, हर दिल में समा जाने की।9

 डाॅ मीना कौल
मुरादाबाद
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मुस्कानों के तिलक लगा कर आंसू का सत्कार करो
दुख सुख जो भी मिलें राह में सबको अंगीकार करो

दूर दूर तक द्वेष घृणा का फैल रहा है अँधियारा
रात अमावस की काली है नहीं तनिक है उजियारा
पहले बन कर दीप जलो तुम फिर तम पर अधिकार करो

फैशन की आंधी ने तोड़ीं लाज भरी मर्यादाएं
बढ़ती इच्छाओं ने ही दीं रोज़ नयी ये विपदाएं
छोटी छोटी खुशियों से ही स्वप्न बड़े स्वीकार करो

पैसे की खातिर रिश्तों ने रिश्तों का ही क़त्ल किया
ममता के आँचल को बेचा अहंकार का जाम पिया
भृष्ट आचरण के दानव का और नहीं विस्तार करो

डॉ पूनम बंसल
मुरादाबाद
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अपने भारत देश परकभी
आँच नहीं आने देंगे हम।
जान चली भी जाएगी तो
हमें नहीं होगा कोई गम।
वंदे मातरम, वंदे मातरम वंदे मातरम, वंदे मातरम

भारत की पावन नदियों का,
मीठा जल जैसे हो अमृत।
और यहाँ की माटी भी तो
नहीं महकती चंदन से कम।

दुश्मन अगर उठाता है सर
उसे कुचल देते है फौरन।
भारत को ललकार सके है,
नहीं किसी में भी इतना दम।

पूजे जाते जिस भारत में,
सूरज चाँद सितारे भी हैं।
कैसे कहीं ठहर सकता है
वहाँ कभी फिर कोई भी तम।

लोकतांत्रिक देश हमारा,
इस पर गर्व हमें होता है।
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई
सबको ही अधिकार मिले सम।

अतिथि होते देव सरीखे
सिखलाते संस्कार हमारे।
मगर सामने दुश्मन हो तो
हम भी बन जाते हैं फिर यम।

प्रत्येक क्षेत्र में हमने लोहा
 मनवाया है, मनवाएँगे।
लहराएगा सदा तिरंगा अपना
 सबसे ऊँचा परचम।

कहीं हिमालय की चोटी हैं,
कहीं बहे गंगा की धारा।
यहीं स्वर्ग कश्मीर हमारा,
छटा 'अर्चना' इसकी अनुपम।

डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद
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पागल मन में जितनी उलझन होती है
बाहर सबसे उतनी अनबन होती है

जब-जब ग़ुस्सा, घबराहट, डर बढ़ते हैं
तब-तब सांसों में इक सिहरन होती है

जिसकी साँसें भीतर सधने लगती हैं
उससे पूछो कैसी थिरकन होती है

उस घर की दीवारें गिरने लगती हैं
जिसकी बुनियादों में सीलन होती है

रमना मतलब एक जगह घुल-मिल जाना
बेमतलब चलना तो भटकन होती है

कौन बुझा सकता है उस लौ को,बोलो
जो उसकी मर्ज़ी से रौशन होती है

यूँ डसती है उम्र फिसलकर हाथों से
जैसे इक ज़हरीली नागन होती है

चलते-चलते जब मैं थकने लगता हूँ
मेरी हिम्मत मेरा ईंधन होती है

सुमित सिंह "मीत"
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रजनी बोली , अरी बदरिया !
क्यों बाबरिया मन तेरा है
ऐसा मेरे घर में क्या है
जो दर मेरा यूँ घेरा है ।

चमके उज्जवल नभ घनेरा
जब आते चाँद सितारे हैं
टिम टिम करते मुस्काते हैं
ये लगते कितने प्यारे हैं
डाल न इन पर भीगी चूनर
ये हीरे मोती न्यारे हैं ।

चम चम चम चम चमक चाँदनी
वसुन्धरा को चमकाती है
श्वेत रजत बिखरी कण कण में
मन में उमंग उपजाती है
बिखरा नभ में बूँद कणों को
क्यों पानी सब पर फेरा है !

रजनी बोली , अरी बदरिया ......।

डॉ रीता सिंह
मुरादाबाद
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आओ मिल कर कदम बढ़ाये।
देश की रक्षा में जुट जायें ॥

भारत के उन्नत ललाट को,
जग में ऊॅचा और उठायें ॥

प्राण दिये हैं  जिन वीरों ने ,
हम उनकी गाथाएँ गायें ॥

बुरी नजर जो डाले हम पर ,
हम उसको इक सबक सिखायें ॥

हर भारतवासी के मन में ,
देश प्रेम की अलख जगायें ॥

स्वतंत्रता के महापर्व को,
जन जन का हम पर्व बनायें ॥

डाॅ0 ममता सिंह
मुरादाबाद
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मुझको मुझमें ही मिले, सारे तीरथ-धाम।
अन्तस-पट पर जब लिखा, मैंने जय श्रीराम।

लो दुश्मन की नाक में, कसने चला नकेल।
भारत माँ का लाडला, महाबली राफ़ेल।।

क्या तीरथ की कामना, कैसी धन की प्यास।
जब बैठी हो प्रेम से, अम्मा मेरे  पास।।

जिस जंगल की रोज़ ही, उजड़ रही तक़दीर।
उसकी काग़ज़ पर मिली, हरी-भरी तस्वीर।।

चन्दा बिन्दी भाल की, तारे नौलख हार।
रजनी करके आ गयी, फिर झिलमिल श्रृंगार।।

प्यासे को संजीवनी, घट का शीतल नीर।
दम्भी सागर देख ले, तू कितना बलवीर।।

- राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद
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न आना है न जाना है
         ये हिला है बहाना है
आशिंके तशौबर में
          इ़क शहरे तमन्ना है

         ये ख्वाब कि दुनियाँ है
क्या इ़सका ठिकाना है
         मांझी के ख्यालो में
तुफा़न का आना है
     
ये उनकी अद़ायें हैं
            या दिल का जलाना है
तू लाख सितमगर है
            हम भी तो सहमसार हैं

            इक वो भी जम़ाना था
इक ये भी जम़ाना है
        हँस्ते थे कभी हम भी बादल
अब अश्क बहाना है
     
डा एम पी बादल जायसी
      आजा़द नगर मुरादाबाद
         93 193 18 919
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स्वतंत्र हुए परातंत्रता से
अंग्रेजो की हुकूमत से,
स्वतंत्रता का उद्घोष गूंजता
स्वतंत्रता दिवस के प्रत्येक जश्न संग।

लेकिन कर क्या रहें भारतवासी
अराजकता साम्प्रदायिकता रूपी विष फैलाके,
अंग्रेजों से स्वतंत्र हों
स्वार्थ की परांतत्रता में जकड़े।

हिन्दु मुस्लिम सिख ईसाई
नींव सभी धर्म भारत की,
जाति पांति के बंधनों में उलझ
उलझा रहे देशवासियों के सौहार्द को।

इस पावन मिट्टी को मान सम्पदा अपनी
चूर चूर कर रहे देश की अखण्डता को,
उस देश को जिसे एकता के सूत्र में बांधा
देशप्रेमी स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान ने।

बिसरे नागरिक, नहीं सम्पदा यह माटी उनकी
यह तो है धरोहर जो देनी अगली पीढ़ी को अपनी,
धर्म सम्प्रदायों में विभाजित कर
नफरत फैला देश का बंटाधार कर रहे।

समय अभी भी शेष है,
सावधान होने को उन चालाकों से,
जो झोंक रहे भारत की स्वतंत्रता को
स्वार्थसिद्धि, स्वार्थपूर्ति की भट्टी में।

इला सागर रस्तोगी
मुरादाबाद
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निधि बन जी के तरु शाख सब यूं मस्ती में लहरत हैं
कृष्ण राधिका के संग मिलकर निधि बन में यूँ महारास करत हैं

पूछीं गौरा शिव शंकर से, ये क्या लीला श्याम रचत हैं
जरा हमको भी समझाओ नाथ कैसे ये महारास रचत हैं

भेद जानने महारास का शिव रूप गोपी का धरत हैं
पहुँच बैठे निधिवन में जहाँ श्याम महारास करत हैं

कभीबंसी बजाए कभी नाच नचाये
कभी कमर लचाये कभी लटक जाये
आगे भागे राधा रानी ,पीछे पीछे श्याम फिरत हैं
कृष्ण राधिका के संग मिलकर निधि बन में यूँ महारास करत हैं

हर गोपी को निधिवन जी में खुद के श्याम मिलत हैं
देख दृश्य अद्भुत ये शिव शम्भू अचरज में परत हैं
जाने कैसी माया ये प्रभु की , कैसी लीला रचत हैं
कृष्ण राधिका के संग मिलकर निधि बन में यूँ महारास करत हैं

कहत मनमौजी राधा श्याम यूं निधि बन में रास करत हैं
राधा साधे मुरली हाथों में, श्याम राधा का भेस धरत हैं

पहन घाघरा डाले चुनरी,गालों पर लाली धरत हैं
कजरारे नैन, होठों पर लाली, श्याम राधा का भेस धरत हैं

निधि बन जी के तरु शाख सब यूं मस्ती में लहरत हैं
कृष्ण राधिका के संग मिलकर निधि बन में यूँ महारास करत हैं  ll

विभांशु दुबे विदीप्त "मनमौजी"
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हिंदुस्तान जब भी हारा है
अपने जयचन्दों से हारा है,
सीमा पर लाखों शहीद हुए
फिर भी ये कहते पाकिस्तान हमारा है

इनके नापाक इरादों की
अब तो होली जलनी होगी,
बीच चौराहा पकड़कर ठोक डालो
अब तो छाती छलनी करनी होगी

-प्रशान्त मिश्र
मुरादाबाद
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पलना के ललना खेलाय रही
देखी  लाल मुस्काय रही होssssss
बीती दुखयारी रतिया के घरवा अब
 नंद के अंजोर भइले हो।

नंद बाबा मन मन गाय रहे
हियरा बढाय रहे होssssssss
देखी चाँद को टुकड़ो अँगनवा त
ब्रज को बुलाय रहे हो।

सातों दर झूमे घुमड़ घन
 झम झम बरसेला होssssssss
झीनी झीनी आए बरखा बदरवा
 त अपनो आशीष दिहले हो।

चम चम चमके बिजुरिया
लहर उठे सागर होsssssss
सिंधु उठी उठी पगवा पखारे के
केतना अधीर भइले हो।

झुकी झुकी डरिया झुकल जाए
 फूल बरसावेले होssssssss
रात की रानिया हो गम गम गमके त
गालियां महकावे ले हो।

इंदु रानी
मुरादाबाद
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देश खड़ा है रणभूमि में
दुश्मन को यह समझाना है

बस एक साथ रहकर के
अपना धर्म निभाना है

सारे विश्व में अब भारत की
जय जयकार होगी,

जब हमारी सेना शरहद के पार होगी,

बहुत हो चुकी शांति शांति,
अब क्रांति की मशाल जलानी है

अपने देश की ये ताकत
 मिलकर के हमे दिखानी है,

वीरों की कुर्बानी को हम
बेकार नही जाने देंगे,

हम भारत के सपूत हैं
खून की नदियां बहा देंगे,                 

ईशांत शर्मा "ईशु"
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मैं फूल हूँ
सभी को जीवन का सार सीखता हूँ
हे मनुष्य  तुझे मानवीय व्यवहार सीखता हूँ
कांटो में खिलकर भी कभी कटीला नही हूँ
बिन भेदभाव के सभी पर खुशबू लुटाता हूँ
मैं फूल हूँ
सभी को जीवन का सार सीखता हूँ
गर्मी,सर्दी, बरसात सब सहता हूँ
भवरों पर भी अपना सब लुटाता हूँ
मैं फूल हूँ
सभी को जीवन का सार सीखता हूँ
अपने रस से मधु बनता हूँ
देवो के भी चरणों मे चढ़ाया जाता हूँ
कभी नहीं खुद पे इठतलता हूँ
सभी को दुनिया पर लूटना सीखता हूँ
मैं फूल हूँ
सभी को जीवन का सार सीखता हूँ

आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ
मुरादाबाद
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लेकर फिर हाथ में वो मशालें निकल पड़े हैं
बेकुसूरों  के  घर  वो जलाने निकल पड़े हैं
यह सोच कर उदास हैं चौराहों पर लगे बुत
हमारे शहर में  वो लहू बहाने निकल पड़े हैं

डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल ( वर्तमान में नोएडा निवासी) के साहित्यकार अटल मुरादाबादी की दो रचनाएं ------


सिर पर टोपी है रखी, मन में बहुत सवाल ।
इधर उधर अब झांकते,नहीं गल रही दाल।

मोदी जी पर नित नये,लगा रहे आरोप,
झूठे अब प्रपंच रच,करते बहुत बवाल।।

 सीट गयी इज्जत गयी,छूटा है अब ताज,
बनते थे इक शेर से, है गीदड़ की खाल।

 समझाए यह कौन अब,देश काल की बात,
अब मूरख जन हैं नहीं,फॅसें किसी ना हाल।।

मुॅह में हड्डी है फॅसी,अंदर-बाहर होय,
राजनीति भी दिख रही,अब जी का जंजाल।।

कुछ तो अच्छा कीजिए,अटल कहै है आज,
वरना डूबे नाव अब,हो गति बस बेहाल।।
(2)
भावना तो कहीं मर गयी देखिये ।
चंद आँसू नयन भर गयी देखिये।

कारवाँ तो जुडा पर हवा  हो गया,
भूख उसको हज़म कर गई देखिये।

नोक पर तीर की भाग्य की रेख है,
भाग्य की रेख तो मर गयी देखिये।

फूल तो  हैं खिलें खिल के मुरझा गये ,
गंध आँगन चमन झर गयी देखिये।

वक़्त तो कट गया फ़ासला छँट गया,
बेबसी प्यार को हर गयी देखिये।

✍️ अटल मुरादाबादी
बी -142 सेक्टर-52
नोएडा उ ०प्र०
मोबाइल फोन नम्बर 09650291108
8368370723न
Email: atalmoradabadi@gmail.com
& atalmbdi@gmail.com

मंगलवार, 18 अगस्त 2020

वाट्स एप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन होता है । मंगलवार 4 अगस्त को आयोजित गोष्ठी में प्रस्तुत मरगूब अमरोही, प्रीति चौधरी ,डॉ पुनीत कुमार ,नृपेंद्र शर्मा सागर, वीरेंद्र सिंह बृजवासी, दीपक गोस्वामी चिराग , अशोक विद्रोही, राजीव प्रखर , डॉ श्वेता पूठिया,डॉ प्रीति हुंकार और सीमा वर्मा की रचनाएं -------


गोलू मोलू थे दो भाई, पर होती उनमें हर रोज़ लड़ाई।
लड़ते रहते वो तो हर दम, करते रहते फिर हाथापाई।

मम्मी-पापा खूब समझाते,पर दोनों के समझ न आई।
ऐसे में जम करके एकदिन,जब दोनों को डांट पिलाई।

लड़ना तो गंदी आदत, उनको तो फिर समझ में आई।
ऐसे में दोनों ने मिलके, एक दिन फिर कसम ये खाई।

हम दोनों अब नहीं लड़ेंगे, ना ही होगी हमारी पिटाई।
दोनों अब मिलज़ुल कर रहते,खूब करते हंसी हंसाई।

चारों ओर तारीफें रहतीं, मिसाल बन गए दोनों भाई।
खुशी खुशी अब दोनों रहते,जमके खाते खूब मलाई।
       
मरग़ूब अमरोही
दानिशमन्दान, अमरोहा                        मोबाइल-9412587622
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नन्ही राधा नाचती ,देख नए उपहार
चम-चम चमके घाघरा,चुनरी जालीदार

कोकिल सी है कूकती,आए भाई द्वार
घर आंगन में डोलती,राधा इस त्योहार

 प्रीति चौधरी
 गजरौला,अमरोहा
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चीनी क्यों होती मीठी
नमक क्यों होता नमकीन
नीबू खट्टा क्यों होता
कड़वी क्यों होती है नीम
सोच रहा भोला भोलू

कौआ क्यों गाता भद्दा
कोयल क्यों मीठा गाती
हिरण तेज़ दौड़ता क्यों
क्यों सबसे मोटा हाथी
सोच रहा भोला भोलू

छे के बाद क्यों आता सात
दो और दो क्यों होते चार
हिमालय इतना ऊंचा क्यों
पवित्र क्यों गंगा की धार
सोच रहा भोला भोलू

ऐसे है कुछ और प्रशन
मन ढूंढ रहा जिनके उत्तर
वो दिन जाने कब आएगा
होगी प्रभु कृपा मुझ पर
सोच रहा भोला भोलू

डॉ पुनीत कुमार
T -2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद -244001
M-9837189600
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पों - पों करती  हॉर्न  बजाती,
गाड़ी आती है,
सब  बच्चों को दूर - दूर  की,
सैर कराती है।
     
गीता,  नीता,  गोलू   सब  को,     
पास बुलाती है,
अंजुम  और  शमा  दीदी  को,
घरसे  लाती है।

कच्ची-पक्की सब सड़कों पर,
दौड़ लगाती है,
बाग   बगीचों   तालाबों   की,
छटा दिखाती है।

मंदिर,  मस्ज़िद,  गुरुद्वारे  के,
दरस कराती है,
गिरजा  को  पावन  श्रद्धा  से,
सीस झुकाती है।

रामू     श्यामू     को   बैठाने,
हॉर्न बजाती है,
घर आने  पर   देखो   बच्चो,
खुद रुक जाती है।

सब बच्चों  को  सुंदर - सुंदर,
गीत सुनाती है,
बैठे - बैठे   बच्चों   को   भी,
नींद सताती है।

तभी  अचानक  गाड़ी  अपने,
ब्रेक लगाती है,
चालक  बोला  उतरो   गाड़ी,
कल फिर आती है।

  वीरेन्द्र सिंह  ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
9719275453
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माँ भारती के लाल हो तो मातृभूमि पर मरो।
हो ऊँची शान देश की तुम काम कुछ ऐसे करो।
मिटा दो दुश्मनों के मान डरें वो भारत नाम से।
नज़र करे तिरछी कोई तो धीर फिर तुम ना धरो।
माँ भारती के लाल हो तुम मातृभूमि पर मरो।
हो निज ध्वजा ऊँची सदा जो हिन्द की पहचान है।
खिलती जो तीन रंग में जहाँ से न्यारी शान है।
प्राणों से बढ़कर तुम सदा रक्षा तिरंगे की करो।
कभी ना इसको भूलना है कर्ज तुमपर वतन का।
जो देशहित बलि चढ़ गए उन शहीदों के कफ़न का।
मिली है आज़ादी हमें अब इसकी सुरक्षा करो।
माँ भारती के लाल हो तो मातृभूमि पर मरो।।

नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा , मुरादाबाद
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सपना देखा,सपना देखा ।
कल मैंने एक सपना देखा ।
लिए हाथ में लाल छड़ी, मैं।
परी बन गई बहुत बड़ी, मैं।

फिर बच्चे भी, आ गए सारे।
उड़ना चाहें, नभ में प्यारे।
पल भर में, फिर छड़ी घुमाई।
उनको नभ की, सैर कराई ।
उनको कुल्फी भी खिलवाई
संग थी रबड़ी और मलाई ।

*एक बना विद्यालय न्यारा ।
सबसे सुंदर सबसे प्यारा ।
वहाँ न कोई टीचर मारे।
खेल कूद और मौज बहारें ।
कैसा भी कोई छेद नहीं था।
जाति-धर्म का भेद नहीं था।

देश बन गया इतना प्यारा।
नतमस्तक था यह जग सारा।

दीपक गोस्वामी 'चिराग'
शिव बाबा सदन ,कृष्णा कुंज
बहजोई (सम्भल) 244410
(उ.प्र.) मो. 9548812618
ईमेल-deepakchirag.goswami@gmail.com
--------------------------   -

याद मेरे बचपन की
          मुझको जब भी आती है
मेरे मन की प्यारी सी
             खिड़की खुल जाती है
 ठुमक-ठुमक कर चलना
       सबको आकर्षित करता
रोना और मचल जाना
       ‌‌   भी आनंदित करता
थपकी देदे लोरी गा
            ‌ मां मुझे सुलाती है
मेरे मन की प्यारी सी
            खिड़की खुल जाती है
झड़ी लगाना प्रश्नों की
             नित मन था जिज्ञासु
डांट पड़ी तो गालों पर
               फिर बड़े-बड़े आंसू
बड़े प्यार से घंटों
              माता मुझे मनाती है
 मेरे मन की प्यारी सी
              खिड़की खुल जाती है
नानी दादी बड़े प्यार से
              गोदी में विठलातीं
लेती खूब बलैया काला-
              टीका रोज लगातीं
किस्सों में सुंदर परियां
              हमको दिखलाती है
मेरे मन की प्यारी सी
             खिड़की खुल जाती है
कंचे , खो-खो, चोर सिपहिया
       ‌            खेल कबड्डी करते
गुल्ली डंडा, छुपी छुपैया
                  नहीं किसी से डरते
बचपन के खेलों के
                 सारे चित्र दिखाती है
मेरे मन की प्यारी सी
               खिड़की खुल जाती है
बीत रहा हर पल जीवन
           है तेज समय की धारा
गया हुआ बचपन वापस
            फिर लौटे ना दोबारा
जाने यादें क्यों मेरे
              नैना छलकाती है
मेरे मन की प्यारी सी
                खिड़की खुल जाती है
        ‌
अशोक विद्रोही
82 188 25 541
412 प्रकाश नगर मुरादाबाद
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बच्चों ने मिलजुल कर देखो,
मीठी खीर पकाई।

रोज़ी लायी घर से चावल,
राजा लाया चीनी।
अहमद की केसर से फैली,
खुशबू भीनी-भीनी।
पापे ने भी हँसते-हँसते,
कलछी खूब चलाई।
बच्चों ने मिलजुल कर देखो,
मीठी खीर पकाई।

दादी, दादा, मम्मी, पापा,
या हों नाना-नानी।
देख-देख कर मुँह में सबके,
आया डट कर पानी।
चाचा जुम्मन करें शिकायत,
हमको नहीं चटाई।
बच्चों ने मिलजुल कर देखो,
मीठी खीर पकाई।

ज़ात-पात के भेद भुलाकर,
जब बच्चे मुस्काये।
बड़ों-बड़ों ने भी आँखों से,
पर्दे सभी हटाए।
सबके मन में अपनेपन ने,
अपनी पैठ जमाई।
बच्चों ने मिलजुल कर देखो,
मीठी खीर पकाई।

- राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद
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 माँ तुम मुझको आज सुनाओ
 ऐसी एक कहानी।
 जिसमें न होराजा कोई
और न कोई रानी,
बस मै हूँ और तुम हो
न हो कोई परेशानी।
जहाँ हमारे सपने हो और साथ हो माँ प्यारी
दुख न हो जहां पर
भरपेट मिले खाना
न तू भूखी सोये न
मुझे पडे कम खाना
माँ.....
सुन्दर सुखद हो कल हमारा,
मै हूँ राजा बेटा और तू हैं महारानी
ये कमरा है राजमहल
बाकी दुनिया बेमानी।
मां...।।।

डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद
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करो सफाई ,रखो सफाई
सदा मलिनता है दुःखदाई
जो बच्चे न साफ रहेंगे
वे अक्सर बीमार पड़ेंगे
रोज सबेरे जल्दी उठकर
करना है सबको स्नान
निज जीवन में आगे रहना
स्वस्थ शरीर की है पहचान।

डॉ प्रीति हुँकार
 मुरादाबाद
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परिश्रम का फल
अजय और राहुल बड़े पक्के दोस्त थे । एक ही कक्षा में पढ़ते थे । पर दोनों में एक बड़ा भारी अन्तर था । जहाँ राहुल एक समृद्ध परिवार से होने के कारण थोड़ा अकड़ में रहता वहीं निम्न मध्यमवर्गीय परिवार का अजय बेहद संयमित प्रकृति का था । राहुल हर चीज़ हासिल करना जानता था और अजय संतुष्टि से परिपूर्ण था । कभी - कभी अजय जब राहुल को किसी बात या  चीज़ के लिए ज्यादा मचलते देखता तो उसे समझाने की कोशिश करता पर राहुल उससे ही उलझ पड़ता पर अगले ही दिन दोनों एक दूसरे के गले में बाँहें डाले मिलते ।
      स्कूल में सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी घोषित होने की प्रतियोगिता थी । लड़कों में जबर्दस्त तरीके की प्रतिस्पर्धा थी । राहुल हर कोशिश कर रहा था । उसने अपने पिताजी से स्कूल फंड में भारी चंदा जमा करवाया था । साथ ही साथ निर्णायक मंडल में शामिल कई अध्यापकों के घरों में महँगे - महँगे उपहार भिजवाए थे । ऐसा  नहीं था कि कोई उसके प्रभाव में था पर वो हर तरीका अपना कर केवल खुद को आश्वस्त कर रहा था कि कोई ना कोई दाँव कामयाब रहेगा । वो मित्र मंड़ली में ये बातें खुल कर तो नहीं बताता था पर उसकी डींगों से लड़के सब समझ जाते । अजय या तो चुप रहता या राहुल से इस तरह की बातें करने को मना करता । पर राहुल उसकी सुनता ही कब था ।
      परिणाम घोषित हुआ । अजय विजेता बना । प्रधानाचार्य जी ने भाषण शुरू किया  " मैं पिछले कई वर्षों से अजय को देख रहा हूँ । वह एक निर्दोष , निडर व निष्पक्ष बालक है । निर्दोष इसलिए कि आसपास गलत होते हुए भी उसने किसी गलत आदत को नहीं अपनाया , निडर इसलिए कि अपने परिवार की स्थिति को वो निडरता से स्वीकार कर केवल परिश्रम के बलबूते पर ही इतने बड़े विद्यालय में पढ़ रहा है , निष्पक्ष इसलिए की ये जानते हुए भी कि उसके सभी साथी उस जैसे नहीं वो किसी भी बात को अपनी दोस्ती के आड़े नहीं आने देता । "
         हाल तालियों से गूँज रहा था । कुछ छात्र राहुल के चेहरे पर नजरें गड़ाए हुए थे कि अब राहुल की प्रतिक्रिया क्या होगी पर अजय पुरस्कार लेकर जैसे ही राहुल के पास पहुँचा राहुल ने दौड़कर उसे गले से लगा लिया । उसकी आँखों में आँसू थे पर इस बार ये हार या ईर्ष्या के नहीं दोस्त के परिश्रम की जीत के थे ।।

सीमा वर्मा
बुद्धि विहार
मुरादाबाद