क्लिक कीजिए
रविवार, 20 दिसंबर 2020
वाट्सएप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक रविवार को वाट्सएप कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का आयोजन किया जाता है। इस आयोजन में साहित्यकार अपनी हस्तलिपि में अपनी रचना प्रस्तुत करते हैं। रविवार 6 दिसंबर 2020 को आयोजित 231वें वाट्सएप कवि सम्मेलन एवं मुशायरे में मुरादाबाद मंडल के साहित्यकारों रेखा रानी, रवि प्रकाश, वैशाली रस्तोगी, नवल किशोर शर्मा, राजीव प्रखर, मीनाक्षी ठाकुर, अनुराग रोहिला, संतोष कुमार शुक्ल सन्त, मनोरमा शर्मा, नजीब सुल्ताना, डॉ शोभना कौशिक, डॉ ममता सिंह, दीपा पांडे, अशोक विद्रोही, प्रीति चौधरी, डॉ पुनीत कुमार, रामकिशोर वर्मा, श्री कृष्ण शुक्ल ,सूर्यकांत द्विवेदी और डॉ मनोज रस्तोगी द्वारा प्रस्तुत काव्य रचनाएं उन्हीं की हस्तलिपि में -------
शनिवार, 19 दिसंबर 2020
मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ राकेश चक्र द्वारा किया गया श्रीमद्भागवत गीता के अध्याय तेरह का काव्यानुवाद --------
शुक्रवार, 18 दिसंबर 2020
मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था "हिन्दी साहित्य संगम" की ओर से सुप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी को राजेन्द्र मोहन शर्मा श्रृंग स्मृति साहित्य साधक सम्मान से किया गया सम्मानित
गुरुवार, 17 दिसंबर 2020
बुधवार, 16 दिसंबर 2020
मंगलवार, 15 दिसंबर 2020
मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था "राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति" के तत्वावधान में 14 दिसम्बर 2020 को आयोजित मासिक काव्य गोष्ठी
मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था "राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति" की मासिक काव्य गोष्ठी जंभेश्वर धर्मशाला लाइन पार मुरादाबाद में सोमवार 14 दिसम्बर 2020 को संपन्न हुई । काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता महाराजा हरिश्चंद्र महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ मीना कौल ने की। सरस्वती वंदना रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ ने प्रस्तुत की तथा मंच संचालन अशोक विद्रोही ने किया।
कार्यक्रम में योगेंद्र पाल विश्नोई ने कहा-
अरे पीर मन की किसी से ना कहना
पड़े चाहे पीड़ा में दिन रात गहन
अशोक विद्रोही ने कहा -
उठो राम भक्तों सब मिलकर
राम सिया गुणगान करो।
खत्म हुआ बनवास राम का
मंदिर का निर्माण करो।
डॉ . मीना कौल ने कहा -
धरती में आकाश बसा दो
धरती झूम जाएगी
नदिया में सागर बसा दो
नदियां झूम जाएगी
रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ ने पढ़ा-
वीरों हिम त्रिशूल उठाओ
गाओ वीरो की वाणी गाओ
रघुराज सिंह निश्चल ने कहा ---
बात का जख्म भरता नहीं है कभी
बात जब भी करो तो करो प्यार से
राजीव प्रखर का कहना था ---
लगा जो ध्यान गिरधर में, तजा घर-द्वार मीरा ने।
धर फिर रूप जोगन का, लिया इकतार मीरा ने।
प्रशांत मिश्र ने कहा ---
मेरे विरोधी ही मेरे अच्छे मित्र हैं
और मुझसे सच्चा प्यार करते हैं
मनोज मनु ने कहा -
पाप विनाशनी शुभ हर हर गंगे
हर हर गंगे,हर हर गंगे,हर हर गंगे!!
योगेंद्र पाल विश्नोई ने आभार व्यक्त किया ।
::::::::प्रस्तुति:::::::
अशोक विद्रोही
उपाध्यक्ष
राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति मुरादाबाद
गुरुवार, 10 दिसंबर 2020
मुरादाबाद की साहित्यकार (वर्तमान में नोएडा निवासी ) सपना सक्सेना दत्ता की रचना -----माटी का कर्ज चुकाते हैं, स्वेद-लहू बहाते हैं । हम धरती-पुत्र कहाते हैं, पर नेता नहीं सुन पाते हैं।।
माटी का कर्ज चुकाते हैं।
स्वेद-लहू बहाते हैं ।।
हम धरती-पुत्र कहाते हैं।
पर नेता नहीं सुन पाते हैं।।
हाड़ कँपाती सर्दी में,
मौसम की बेदर्दी में।
खुली सड़क पर बैठे हैं,
बैठे,खड़े,अधलेटे हैं ।
भूख प्यास को भूल भाल,
जीवन लगता, बन रहा काल।
तीन नियमों के विरोध में,
जीवन के गतिरोध में।
अपनी बात सुनाते हैं ।
पर नेता सुन नहीं पाते हैं।।
जीवन सारा बलिदान किया,
धरती माँ का सम्मान किया।
जिन तन पर पूरे वसन नहीं,
सर्दी-गर्मी की तपन सही।
किस विधि खेत बचाएंगे,
अब कैसे कर्ज चुकाएंगे।
कर्ज़ भी है, जुर्माना है,
विपदा का विषम खजाना है।
वह किसान कहलाते हैं।
पर नेता सुन नहीं पाते हैं।।
पराली से प्लेटें बनाओ तुम,
प्लास्टिक को दूर भगाओ तुम।
बायोडीजल बन सकता है,
पौष्टिक चारा बन सकता है।
पशुचारा पर्वत पहुंचाओ,
प्रगति की राह पर तुम आओ।
कल कारखाने लगाओ तुम,
कुछ आगे तो भी आओ तुम।
क्या करना है? बतलाते हैं।
पर नेता सुन नहीं पाते हैं।।
पराली नहीं जलाएंगे,
कंपोस्ट खाद भी बनाएंगे।
मशरूम उत्पादन कर लेंगे,
पैकिंग पशु चारे में देंगे।
जितनी लागत जितनी मेहनत,
भरे बरस की जब आगत।
तब मूल्य अवमूल्यन होता है,
पूरा परिवार जब रोता है।
लागत की राशि न पाते हैं।
पर नेता सुन नहीं पाते हैं।।
माटी का कर्ज चुकाते हैं।
स्वेद-लहू बहाते हैं ।।
हम-धरती पुत्र कहाते हैं।
पर नेता सुन नहीं पाते हैं।।
✍️ सपना सक्सेना दत्ता, सेक्टर 137, नोएडा
बुधवार, 9 दिसंबर 2020
वाट्स एप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है। मंगलवार 3 नवंबर 2020 को आयोजित गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों अशोक विद्रोही, डॉ ममता सिंह, रेखा रानी, डॉ शोभना कौशिक, धर्मेंद्र सिंह राजोरा, अटल मुरादाबादी, प्रीति चौधरी, वीरेंद्र सिंह बृजवासी, दुष्यंत बाबा, डॉ रीता सिंह, मीनाक्षी ठाकुर, अशोक विश्नोई और कंचन खन्ना द्वारा प्रस्तुत रचनाएं-----
मत समझो बालक हमको,
दुश्मन के लिए शमशीर बनें।
शौर्य पराक्रम से हम कल के
भारत की तकदीर बनें ।।
मां जीजा के वीर शिवा हम
जग ने गाथाएं गाईं।
आंधी जैसा था बचपन ,
और तूफानी थी तरुणाई।।
मुगल बादशाह थरथर कांपे,
भारत मां की पीर बनें।।
शौर्य पराक्रम से हम कल के,
भारत की तस्वीर बनें।।
मां सीता के लवकुश हम ही,
अश्व मेध घोड़ा रोका ।
दिखा दिया बाहूबल दमखम ,
जब पाया हमने मौका।।
अन्यायों से लड़ें सदा हम,
युद्ध लड़े रणधीर बने।।
शौर्य पराक्रम से हम कल के,
भारत की तस्वीर बनें।।
अभिमन्यु ने गर्भ काल में ,
ग्रहण किया था दुर्लभ ज्ञान।
अद्भुत रण कौशल दिखलाया,
शत्रु का तोड़ा अभिमान।।
रथ पहिया ले बढ़ा निहत्था,
भले काल थे तीर बने ।।
शौर्य पराक्रम से हम कल के,
भारत की तस्वीर बनें।।
✍️ अशोक विद्रोही विश्नोई, 412 प्रकाश नगर मुरादाबाद, मोबाइल फोन नम्बर 82 188 25 541
-------------------------------------------
चूहे खाये बिल्ली रानी।
आखिर कब तक यही कहानी।।
बहुत सह चुके अब न सहेंगे ,
बिल्ली तेरी ये मन मानी।।
हम चूहों को खा-खा कर तुम ,
खुद को समझी ज्ञानी ध्यानी।।
शक्ति एकता में है कितनी ,
बात न अब तक तुमने जानी।।
ख़ूब भगा कर मारेंगे हम,
याद करा देंगे फिर नानी।।
छोड़ो खाना चूहे अब तुम ,
ढूंढो दूजा दाना पानी।।
✍️ डाॅ ममता सिंह, मुरादाबाद
-------------------------------------
सोनू मोनू मोबाइल में
घंटों से कुछ सीख रहे हैं।
आंखें थकी हुई सी बोझिल
दोनों टिम- टिम मींच रहे हैं।
आज यकायक मोनू को
एक शरारत सूझी।
ऑन लाइन शिक्षण के बहाने
फ़ोन मिला था चूंकि।
गेम रिचार्ज कराने हेतु
नेट बैंकिंग जरूरी।
एटीएम पापा का ले
झट से की प्रक्रिया पूरी।
खाता खाली का मैसेज पा
पापा माथा पीट रहे हैं।
ऑन लाइन शिक्षण को ले
अभिभावक भी खीज रहे हैं।
माना रोचकता है काफी,
प्रशस्त विकास का मार्ग हुआ।
किन्तु इस मोबाइल युग में
गुम सा बचपन होने लगा है।
रेखा कुछ तरकीब लगाएं।
स्वस्थ मधुर बचपन दे पाएं।
✍️ रेखा रानी , गजरौला, अमरोहा
----------------------------------
आओ एक खेल खेलें हम ।
आँख -मिचौनी खेलें हम ।
तन्नू ,गोलू ,चिया, डुग्गू ,।
दौड़ -दौड़ कर खेलों तुम ।
हाथ न किसी के आना तुम ।
बच के हर किसी से रहना तुम ।
खेल हैं, सेहत के लिये अच्छे।
इनसे दोस्ती करके रहना तुम ।
✍️ डॉ शोभना कौशिक, मुरादाबाद
------------------------------------------
मम्मी पापा धर लो ध्यान
कहता है यही विज्ञान
पेड़🌴 लगाने है मिलजुल के
बड़े फायदे हैं जंगल के
फल फूल लकड़ी ईंधन
जीवन दायनी आक्सीजन
वातावरण शुद्ध बनायें
वर्षा ऋतु में वर्षा लायें
इनसे मिलती जड़ी बूटियां
दाल अनाज हरी सब्जियां
बड़े काम के है ये वन
इनसे मिलता है जीवन
✍️ धर्मेंद्र सिंह राजौरा, बहजोई
--------------------------------------
लंबू चाचा आये हैं।
खेल खिलोने लाये हैं।
रंग बिरंगे गुब्बारे हैं।
कांधे सबकुछ धारे हैं।।
बारह मन की धौबन है।
धरे बांसुरी मोहन है।
सबके मन पर छाये हैं।
लंबू चाचा आये हैं।।
काॅधे रखी गठरिया है।
उस पर चढी बॅदरिया है।
सॅग में एक जमूरा है।
बॅदरी बिना अधूरा है।
जाने क्या क्या लाये हैं।
लंबू चाचा आये हैं।।
✍️ अटल मुरादाबादी, नोएडा
---------------------- - --------------–-
बच्चों तुम चलते चलो, ले आशा के दीप।
ले जायेंगे लक्ष्य के, तुमको यही समीप।।
साहस रख बढ़ते चलो, अन्धेरे को चीर।
पथ अपना है ढूँढता, जैसे नदिया-नीर।।
✍️ प्रीति चौधरी, गजरौला,अमरोहा
---------------------------------------------
आसमान से उतरीं परियाँ
लेकर जादू की छड़ियाँ
फैल गया हरओर उजाला
चमकीं मोती की लड़ियाँ।
सोने सी पोशाकें उनमें
जड़ी हुईं मुक्ता-मणियां
हँसने पर झरती फूलों की
महक लुटातीं पंखुरियाँ।
चांदी जैसे पंख हिलाकर
करतीं नृत्य सभी परियाँ
बंधन मुक्त हुई स्वर लहरी
खुलने लगीं सभी कड़ियाँ।
चहुंदिस सजीं दीपमालाएं
छुटी प्यारकी फुलझड़ियां
रंग बिरंगी रंगोली से
सजा रहीं आंगन सखियां।
कोटि-कोटि आशीष देरहीं
अम्बर से उतरीं परियाँ
खील-बताशे बांट-बांटकर
घर-घर भेज रहीं खुशियां।
मैं भी परियों के संग नाचूँ
महक उठें मन की कलियां
जाग उठे अलसाया जीवन
महकें जीवन की बगियाँ।
✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी, मुरादाबाद/उ,प्र, मो0- 9719275453
------------------------------------
आज से अच्छा था समय वह पुराना
बहुत याद आता है वो गुजरा जमाना
हाथ से नेकर पकड़ के टायर चलाना
कंचों के जीतने पर अंगुली चटकाना
ट्यूवेल पर जाकर मन भर के नहाना
चप्पल काटकर ट्रेक्टर-ट्रॉली बनाना
गरीबी में अमीरी का अहसास पा जाना
वो वर्षा के पानी जहाज का चलाना
बागों में पेड़ों पर उछल-कूद मचाना
उबलती हांडी दूध-मलाई भी चुराना
हीरो-हीरोइन के फ़ोटो खूब सजाना
माचिस को फाड़कर ताश का बनाना
हमको संशाधनों से नही था तकाजा
पूर्ण आत्मनिर्भर था वो गुजरा जमाना
✍️ दुष्यंत 'बाबा', पुलिस लाईन, मुरादाबाद
---------------------------- ----–---
वृक्षो का दरबार
देखी जंगल में इक बस्ती
एक से एक बड़ी है हस्ती ,
रहते वृक्ष मानुष की भाँति
करते बहुत वहाँ वे मस्ती ।
बरगद पेड़ों का बन राजा
जब जी चाहे सभा बुलाता ,
घनी घनी अपनी छाया में
वृक्षों का दरबार सजाता ।
जटा बने हाथों से अपने
सब को है आदेश सुनाता ,
सेनापति बनाकर पीपल को
पेड़ों की रक्षा करवाता ।
आम वृक्ष बना महामंत्री
जंगल का पोषक बन जाता ,
नीम चिकित्सक - सा खड़ा हो
निर्माण औषधि का करवाता ।
दे आदेश सभी फूलों को
वन भवन में महक बिखराता ,
सुरभित तन मन रहते सबके
रोग शोक है कभी न छाता ।
चीड़ ,साल, सागौन, कीकर
सब उसके ही दरबारी हैं ,
जंगल की इस भरी सभा पर
स्वस्थ वसुन्धरा सारी है ।
✍️ डॉ रीता सिंह, मुरादाबाद
---------------------------------------
मक्कार लोमड़ी
सुंदरवन में सभी पशु -पक्षी मिलजुल कर रहते थे।वहाँ का राजा शेरसिंह था।शेरसिंह मनोरंजन हेतु प्रत्येक माह में एक बार रंगारंग कार्यक्रम का आयोजन करता था ।उस दिन कोई जानवर किसी का शिकार नहीं कर सकता था।अतः सभी जानवर निडरतापूर्वक उस आयोजन में हिस्सा लेते थे।जो आयोजन में हिस्सा नहीं लेते थे, दर्शक बनकर कार्यक्रम का आनंद लेते थे।
हर बार की तरह इस बार भी आयोजन नियत समय पर प्रारंभ हो गया।सबसे पहले साँवरी कोयल ने आकर मधुर स्वर में गीत सुनाया। तत्पश्चात रंगीले मयूर ने मनमोहक नृत्य किया जिसे देख सभी पशु- पक्षी झूम उठे ।मोहिनी मैना ने बहुत सुंदर कविता सुनायी, तो हरियल तोते ने मधुर भजन। चीनू चीते ने अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया तो भोलू भालू ने नये -नये करतब दिखाये।बंटी बंदर ने सभी को बहुत हँसाया। सभी दर्शक तालियाँ बजाकर प्रतिभागियों का उत्साहवर्धन कर रहे थे ।
परंतु यह बात नीलू लोमड़ी को ज़रा भी अच्छी नहीं लग रही थी।ताली बजाना तो दूर,उल्टे नाक भौं सिकोड़कर सबकी मज़ाक बना रही थी।यह देखकर शरारती चीकू खरगोश से रहा नहीं गया और उसने मंच पर जाकर माइक से उद्घोषणा कर दी "आइये !!अब मिलते हैं नीलू मौसी से,कृपया नीलू मौसी जी मंच पर आयें और अपनी प्रस्तुति दें...!!कृपया सभी ज़ोरदार तालियों से नीलू मौसी जी का स्वागत करें !!"यह सुनते ही नीलू लोमड़ी सकपका कर बगलें झाँकने लगी,परंतु अब क्या कर सकती थी?अब तो माइक से उसके नाम की आवाज़ लग गयी थी,अतः मंच पर जाना ही पड़ा।
परंतु उसे तो न नाचना आता था,न गाना और न बजाना।बेचारी कोई करतब भी नहीं दिखा सकी ।जब उसे बहुत देर खड़े खड़े हो गयी तब दर्शकों में से हूटिंग की आवाज़ें आने लगीं ।तभी मीनू हिरनी ने खड़े होकर हँसते हुए पूछा,"आखिर तुम्हें आता क्या है जी ?...जो आता है वही करके दिखा दो..."
"म..म..मक्कारी !!"नीलू लोमड़ी के मुँह से हड़बड़ी में निकल गया।
इतना सुनते ही सभी पशु- पक्षी ज़ोर ज़ोर से हँसने लगे और नीलू लोमड़ी दुम दबाकर वहाँ से भाग खड़ी हुयी।
✍️ मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार, मुरादाबाद
----------------------------
राजा कौन बनेगा ?
जंगल के सभी पशु पक्षियों की मीटिंग में यह तय हुआ कि इस बार जंगल का राजा किसको बनाया जाये।आखिर प्रस्ताव पास हुआ और बन्दर को राजा बना दिया गया।एक दिन वास्तविक जंगल के राजा शेर ने लोमड़ी को दबोच लिया, जंगल में हड़कम्प मच गया।सभी ने एक स्वर में राजा बना बन्दर से कहा अरे क्या देख रहे हो लोमड़ी को बचाओ जल्दी से।अब बन्दर कभी इस डाली तो कभी उस डाली पर दौड़ता रहा ,आखिर शेर ने लोमड़ी का अंत कर दिया।सभी जंगल के पशु पक्षी नाराज़ हो गए और बन्दर से बोले क्या तुम्हें इसलिए राजा बनाया था।बन्दर बोला मैने तो बहुत मेहनत की पर क्या करता ।वास्तव में उसने मेहनत तो बहुत की कभी इस डाली तो कभी उस डाली।अब शेर जो गुर्राया तो बन्दर का पता नहीं चला कहाँ गया।
✍️ अशोक विश्नोई , मुरादाबाद
-----------------------------------------
मंगलवार, 8 दिसंबर 2020
मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर निवासी साहित्यकार अशोक मधुप की रचना -----कुछ गलती तो थी अपनी, क्यों ये विषधर पाले जी? नेता जी के दमपर ही खुश हैं साली - साले जी।
मॉल रहे या माले जी।
रुके नहीं घोटाले जी।
गंगा ही बस पावन है,
दूषित नदियाॅ, नाले जी।
उनके घर पकवान बने हैं,
इनके रोटी- लाले जी।
कुछ गलती तो थी अपनी,
क्यों ये विषधर पाले जी?
नेता जी के दमपर ही
खुश हैं साली - साले जी।
योगी मोदी अच्छे हैं,
अधिकारी मतवाले जी।
नए -नए हथकंडों से ,
करते काम निराले जी।
फाइल पैसे से चलती,
कैसे काम निकालें जी।
आओ बैठो सोचें कुछ,
बिगड़ी बात बनालें जी।
क्या लाये या ले जाएंगे ?
मन को ये समझालें जी,
बुरा समय आया था कल ,
भाग गये हमप्याले जी।
✍️ अशोक मधुप
25- अचारजान, कुंवर बाल गोविंद स्ट्रीट, बिजनौर 246701, उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक के ग़ज़ल संग्रह --"दर्द का अहसास " की नवीन कुमार पांडेय द्वारा की गई समीक्षा ----
ओंकार सिंह विवेक के ग़ज़ल संग्रह "दर्द का अहसास" मेरे सामने है। इस ग़ज़ल संग्रह को जब पढ़ते हैं तो पाते है कि ग़ज़लकार ने जिस पैनी नजर से ज़िन्दगी को देखा और संघर्षों से मिलने वाले दर्द को महसूस किया है, उसे शब्दों में साफगोई से बयां कर दिया है। अपनी और अपने आस पास के लोगों की ज़िन्दगी में चल रही जद्दोजहद हो या फिर समाज का बदलता रूप, दोस्ती, रिश्ते-नाते आदि जीवन के तमाम पहलुओं को बड़े ही आसान तरीके से अपने अशआरों में रख दिया है। जब आप इनके शेरों को देखेंगे तो पायेंगे कि बड़ी से बड़ी बात को आम बोलचाल के लब्जों में पिरो दिया है, मुझे लगता है कि यही ग़ज़लकार का खास हुनर है।
इसकी बानगी देखिये कि ----
दर्द दिल में रहा बनके तूफ़ान-सा,
फिर भी मैं मुस्कुराता रहा जिंदगी।
एक और शेर देखिये----
जब घिरा छल फरेबों के तूफ़ान में,
मैंने रक्खा यकीं अपने ईमान में।
उनका यह नसीहत देता हुआ शेर देखिये-
जीवन में ग़म आने पर जो घबरा जाते हैं,
उनको हासिल खुशियों की सौग़ात नहीं होती।
दूसरा शेर है ----
वक़्त के साँचे में ढल, मत कर गिला सदमात से
ज़िन्दगी प्यारी है तो लड़ गर्दिशे-हालात से ।
बेसबब ही आपकी तारीफ़ जो करने लगें,
फासला रक्खा करें कुछ, आप उन हज़रात से।
इनका यह शेर भी आपको खूब पसंद आएगा--
अभी तीरगी के निशान और भी हैं,
उजाले तेरे इम्तिहान और भी हैं।।
हुआ ख़त्म मेरा सफ़र कैसे कह दूं,.
सितारों के आगे जहाँ और भी हैं।।
इस ग़ज़ल के आखिरी शेर में सीख भी दी है कि----
अभी से मियाँ हौसला हार बैठे,
अभी राह में सख्तियाँ और भी हैं।।
एक ग़ज़ल में उनका शेर देखिये कि----
आ गये हैं वो ही सब अफ़सोस करने,
साजिशों से जिनकी यह बस्ती जली है।।
मौजूदा हालात के ये शेर देखिये कि------
लो वक़्त पे उसने भी किया मुझसे किनारा,
मैं खुश था कि उससे मेरी पहचान बहुत है।।
भरोसा जिन पे करता जा रहा हूँ,
मुसलसल उनसे धोखा खा रहा हूँ।।
इस शेर को भी आप पसंद करेंगे कि-----
असल कुछ है, कुछ बताया जा रहा है,
आँकड़ों में सच छुपाया जा रहा है।।
एक और शेर देखिये जिसमें कर्म पर जोर दिया गया है------
जब भरोसा मुझको अपने बाजुओं पर हो गया,
साथ मेरे फिर खड़ा मेरा मुकद्दर हो गया।
इस क़िताब में कुल 58 ग़ज़लें हैं। आशा है कि विवेक जी ने जिस अंदाज से अपनी ग़ज़लों का आगाज़ किया है, आगे हमें और भी बेहतर अशआर पढ़ने को मिलेंगे ।
कृति : दर्द का अहसास ( ग़ज़ल संग्रह)
कवि : ओंकार सिंह विवेक
प्रकाशक: गुंजन प्रकाशन, मुरादाबाद
मूल्य : 150₹
मोबाइल फोन नंबर : 9411647489
ई मेल : navin9rmp@gmail.com