मंगलवार, 8 दिसंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक के ग़ज़ल संग्रह --"दर्द का अहसास " की नवीन कुमार पांडेय द्वारा की गई समीक्षा ----

          ओंकार सिंह विवेक के  ग़ज़ल संग्रह "दर्द का अहसास" मेरे सामने है। इस ग़ज़ल संग्रह को जब पढ़ते हैं तो पाते है कि ग़ज़लकार ने जिस पैनी नजर से ज़िन्दगी को देखा और संघर्षों से मिलने वाले दर्द को महसूस किया है, उसे शब्दों में साफगोई से बयां कर दिया है। अपनी और अपने आस पास के लोगों की ज़िन्दगी में चल रही जद्दोजहद हो या फिर समाज का बदलता रूप, दोस्ती, रिश्ते-नाते आदि जीवन के तमाम पहलुओं को बड़े ही आसान तरीके से अपने अशआरों में रख दिया है। जब आप इनके शेरों को देखेंगे तो पायेंगे  कि बड़ी से बड़ी बात को आम बोलचाल के लब्जों में पिरो दिया है, मुझे लगता है कि यही ग़ज़लकार का खास हुनर है। 

इसकी बानगी देखिये कि ----                         

 दर्द दिल में रहा बनके तूफ़ान-सा,                        

 फिर भी मैं मुस्कुराता रहा जिंदगी।                                                                                           

 एक और शेर देखिये----

जब घिरा छल फरेबों के तूफ़ान में,
मैंने रक्खा यकीं अपने ईमान में।           
                      

उनका यह नसीहत देता हुआ शेर देखिये-

जीवन में ग़म आने पर जो घबरा जाते हैं,

उनको हासिल खुशियों की सौग़ात नहीं होती।                  

दूसरा शेर है ----
  वक़्त के साँचे में ढल, मत कर गिला सदमात से
  ज़िन्दगी प्यारी है तो लड़ गर्दिशे-हालात से ।
   बेसबब ही आपकी तारीफ़ जो करने लगें,
   फासला रक्खा करें कुछ, आप उन हज़रात से।   
         

 इनका यह शेर भी आपको खूब पसंद आएगा--

अभी तीरगी के निशान और भी हैं,
उजाले तेरे इम्तिहान और भी हैं।। 
हुआ ख़त्म मेरा सफ़र कैसे कह दूं,.
सितारों के आगे जहाँ और भी हैं।।

 इस ग़ज़ल के आखिरी शेर में सीख भी दी है कि----
अभी से मियाँ हौसला हार बैठे,
अभी राह में सख्तियाँ और भी हैं।।   
                            

  एक ग़ज़ल में उनका शेर देखिये कि----
आ गये हैं वो ही सब अफ़सोस करने, 
साजिशों से जिनकी यह बस्ती जली है।।       
                

 मौजूदा हालात के ये शेर देखिये कि------ 

लो वक़्त पे उसने भी किया मुझसे किनारा, 
मैं खुश था कि उससे मेरी पहचान बहुत है।।
भरोसा जिन पे करता जा रहा हूँ,
मुसलसल उनसे धोखा खा रहा हूँ।।     
                        

 इस शेर को भी आप पसंद करेंगे कि-----
असल कुछ है, कुछ बताया जा रहा है, 
आँकड़ों में सच छुपाया जा रहा है।।       
                                                                                    
एक और शेर देखिये जिसमें कर्म पर जोर दिया गया है------
जब भरोसा मुझको अपने बाजुओं पर हो गया,
साथ मेरे फिर खड़ा मेरा मुकद्दर हो गया।           
          

इस क़िताब में कुल 58 ग़ज़लें हैं। आशा है कि विवेक जी ने जिस अंदाज से अपनी ग़ज़लों का आगाज़ किया है, आगे हमें और भी बेहतर अशआर पढ़ने को मिलेंगे ।





कृति : दर्द का अहसास ( ग़ज़ल संग्रह)
कवि : ओंकार सिंह विवेक
प्रकाशक: गुंजन प्रकाशन, मुरादाबाद
मूल्य : 150₹

समीक्षक : नवीन कुमार पाण्डेय, 93, एल आई जी पुरानी आवास विकास कॉलोनी, सिविल लाइंस, रामपुर,उत्तर प्रदेश
मोबाइल फोन नंबर : 9411647489
मेल  : navin9rmp@gmail.com





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