मॉल रहे या माले जी।
रुके नहीं घोटाले जी।
गंगा ही बस पावन है,
दूषित नदियाॅ, नाले जी।
उनके घर पकवान बने हैं,
इनके रोटी- लाले जी।
कुछ गलती तो थी अपनी,
क्यों ये विषधर पाले जी?
नेता जी के दमपर ही
खुश हैं साली - साले जी।
योगी मोदी अच्छे हैं,
अधिकारी मतवाले जी।
नए -नए हथकंडों से ,
करते काम निराले जी।
फाइल पैसे से चलती,
कैसे काम निकालें जी।
आओ बैठो सोचें कुछ,
बिगड़ी बात बनालें जी।
क्या लाये या ले जाएंगे ?
मन को ये समझालें जी,
बुरा समय आया था कल ,
भाग गये हमप्याले जी।
✍️ अशोक मधुप
25- अचारजान, कुंवर बाल गोविंद स्ट्रीट, बिजनौर 246701, उत्तर प्रदेश, भारत
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (09-12-2020) को "पेड़ जड़ से हिला दिया तुमने" (चर्चा अंक- 3910) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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बहुत बहुत आभार, भाई साहब ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद ,आदरणीय ।
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