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सोमवार, 24 अक्टूबर 2022
वाट्स एप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से माह के प्रत्येक रविवार को वाट्सएप कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का आयोजन किया जाता है । रविवार 23 अक्तूबर 2022 को आयोजित 327 वें वाट्स एप कविसम्मेलन एवं मुशायरे में शामिल साहित्यकारों डॉ अशोक कुमार रस्तोगी, श्री कृष्ण शुक्ल, नृपेंद्र शर्मा सागर, संतोष कुमार शुक्ल संत, त्यागी अशोका कृष्णम , दीपक गोस्वामी चिराग, अतुल कुमार शर्मा, अशोक विश्नोई, राजीव प्रखर, धन सिंह धनेंद्र और मनोरमा शर्मा की की रचनाएं उन्हीं की हस्तलिपि में
रविवार, 23 अक्टूबर 2022
मुरादाबाद मंडल के कुरकावली ( जनपद संभल ) निवासी साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम् के दोहे ......आलोकित हो जिंदगी, दीवाली सी रोज
शुभ शुभ शुभ शुभ कामना, शुभचिंतक संदेश।
आई शुभ दीपावली,जगमग सब परिवेश।।
धनतेरस दीपावली,आई भाई दूज।
गोवर्धन के साथ में ,मिलकर सबको पूज।।
लाई है दीपावली,अंधकार का नाश।
हारे मन की जीत है,विश्वासों के ताश।।
रौशन दीपों से हुआ, नगर गली हर गांव।
उखड़े उखड़े आज हैं,अंधकार के पांव।।
खील बताशे साथ में,खांड खीर के भोज।
आलोकित हो जिंदगी, दीवाली सी रोज।।
महलों में झालर लगीं, रौशन कुटिया द्वार।
लाये धन की बदलियां, दीपों का त्यौहार।।
धन वैभव यश कामना, दीवाली के साथ।
कृपा से प्रभु राम की, मिलें सभी पुरुषार्थ।।
अष्ट सिद्धि निधियाँ मिलें, नव, सुख हाथों हाथ।
धन देवी का आगमन,शुभ चरणों के साथ।।
✍️ त्यागी अशोका कृष्णम्
कुरकावली, संभल
उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल निवासी साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा की रचना ....एक दीपक मन में जला लो
एक दीपक मन में जला लो।
परम ज्योति उससे जगा लो।।
जो अंधज्ञान को मिटा दे,
ईर्ष्या का तम घटा दे,
जो दूसरों को प्रकाश दे,
निराशा को भी आस दे,
पाप की गगरी को चटका दे,
निशा का पथ भी भटका दे,
मन को पुण्य की राह चला लो,
एक दीपक मन में जला लो।।
माना आज सूरज भी शरमा जाए,
शरद मौसम भी दीपों से गर्मा जाए,
घना अंधेरा कहीं छिप न पाए,
परछाईं भी न परछाईं बनाए,
यह पर्व सदा जग रोशन कर जाए,
हममें भरपूर ज्ञान भर जाए,
रीति एक प्रीत की,ऐसी चला लो,
एक दीपक मन में जला लो।।
जो बुराई का दहन कर सके,
मन,सत्य को सहन कर सके,
जो धोखेबाजी का दफन कर सके,
कुनीति का कफन बन सके,
दया-धर्म का वक्ष बन सके,
अद्भुत प्रेम की ज्योति जला लो,
एक दीपक मन में जला लो।।
माना यह दीपक जलाए तुमने,
गली-मोहल्ले जगमगाए तुमने,
सोचो क्या नया किया तुमने?
क्या गिरते को सहारा दिया तुमने?
क्या गरीब की कुटिया को निहारा तुमने ?
क्या फैलाया उसमें उजियारा तुमने ?
आज कर किसी का भला लो,
एक दीपक मन में जला लो।
परम ज्योति उससे जगा लो।।
✍️ अतुल कुमार शर्मा
सम्भल
उत्तर प्रदेश, भारत
गुरुवार, 20 अक्टूबर 2022
मंगलवार, 18 अक्टूबर 2022
मुरादाबाद मंडल के चांदपुर (जनपद बिजनौर) की साहित्यकार उर्वशी कर्णवाल के गीत संग्रह...." मैं प्रणय के गीत गाती" की बिजनौर के साहित्यकार मनोज मानव द्वारा की गई समीक्षा....
192 पृष्ठों में 120 गीतों से सजा उर्वशी कर्णवाल का छंदबद्ध गीत संग्रह... ..." मैं प्रणय के गीत गाती", जिसमें मेरी दृष्टि से 25 सनातनी छंदों का प्रयोग किया गया है... द्विबाला, आनन्दवर्धक, सारः, लावणी, द्विमनोरम,स्रावि्गणी, राधेश्यामी , शृंगार, चतुर्यशोदा , माधव मालती, विधाता, भुजंगपर्यात, सार्द्धमनोरम, गंगोदक, मानव, गीतिका, नवसुखदा , द्विपदचौपाई, महालक्ष्मी, दोहा, वीर/आल्हा, विष्णुपद, चौपाई ।
शारदे माँ की सुंदर वंदना से गीत संग्रह का बहुत सुंदर प्रारम्भ किया गया है। गीत- संग्रह में प्रेम के तीनों रूपों को बहुत ही खूबसूरती से प्रस्तुत किया है , ग्रन्थ प्रणय से शुरू होकर विरह की यात्रा करता हुआ प्रेम के अंतिम एवं सबसे भव्य स्वरूप भक्ति पर समाप्त होता है।
यों तो संग्रह के सभी गीत छन्द एवं भावों का मधुर संगम के दर्शन कराते है लेकिन अधिकतर गीतों में भावों का विशाल सागर है जिसमें पाठक एक बार डुबकी लगाकर गहराई की ओर जाने से स्वयं को नहीं रोक पायेगा।देखिएगा प्रणय गीतों के कुछ ऐसे ही भाव--
" प्रेम पूज्य है, प्रेम ईश है, प्रेम हृदय का स्पंदन है।
प्रेम विधाता का अनुभव है , प्रेम दिव्य का दर्शन है।।
एक और गीत देखिएगा
" एक वनिता को व्यथित कर, जा रहे पुरुषत्व लेकर।
प्रीति की लय से विमुख हो, क्या किया बुद्धत्व लेकर।
उर निरंतर चाहता था , यह भुवन हो प्रीति सिंचित,
स्वाद रंगों से रहित यह, क्या करूंगी सत्व लेकर।
प्रीति की लय से विमुख हो, क्या किया बुद्धत्व लेकर।।
लेखिका ने प्रणय को बहुत ही खूबसूरती से परिभाषा दी है देखिएगा...
" व्याप्त हर कण में सुवासित, सृष्टि है चाहे प्रलय है।
डूबता जो वह तरेगा, सिंधु सा गहरा प्रणय है।
डूबकर पा ले चरम जो, या स्वयं को भी मिटा ले,
हो नहीं सकता पराजित , मृत्यु का उसको न भय है।
डूबता जो वह तरेगा, सिंधु सा गहरा प्रणय है।।
लेखिका ने चतुर्यशोदा जैसे अत्यंत कठिन छन्द को बहुत ही खूबसूरती से प्रस्तुत किया है , जिसकी बहुत सुरीली धुन है ...." रिहाले-मस्ती मकुंदरंजिश जिहाले हिजरा हमारा दिल है"
खुले-खुले से सुवास गेसू, मुदित हृदय को किये हुए है,
मंदिर-मंदिर सी, मलय अनोखी, लगे कि जैसे पिये हुए है।
प्रदीप्त स्वर्णिम, सवर्ण किरण सी प्रकाश करती उजास भरती।
झलक तुम्हारी अलग अनूठी कि प्राण लाखों दिए हुए हैं।।"
एक और मधुर छन्द माधवमालती का गीत देखिए
" जिंदगी के इस भँवर में, काल के लंबे सफर में,
शब्द उलझाते बहुत हैं, अर्थ तड़पाते बहुत हैं।
मौन को पढ़ना पड़ेगा,
पथ स्वयं गढ़ना पड़ेगा।।"
जब विरह के चरम पर कलम चले और उसे मधुर ताल युक्त गंगोदक छन्द का साथ मिल जाये तो क्या उत्कृष्टता आती है इस गीत में देखिएगा,
" भाव खो से गये शब्द मिलते नहीं, लय कहाँ गम हुई गीत कैसे लिखूँ,
श्वास या घड़कनें नाम में लीन है, पुष्प मुरझा गया पाँखुड़ी दीन है,
काँच की कोठरी , पात की झोपड़ी , पीर की ,अश्रु की, रीत कैसे लिखूँ ।"
वैसे तो संग्रह में ईश भक्ति , मातृ भक्ति के कई गीत है लेकिन एक गीत जो पितृ महिमा पर केंद्रित है बरबस आकर्षित करता है ।
" हमारे धन्य जीवन का, रहें आधार बाबू जी।
तुम्हारे पुण्य-कर्मों को, कहें आभार बाबू जी।।
घनी रातों में दीपक से, दिखाते रोशनी हमको,
बने चंदा सितारों में , दिखाते चांदनी हमको।
हमारे ग्रन्थ बाबू जी , हमारा सार बाबू जी ।।"
एक गीत में लेखिका ने समाज मे व्याप्त कोढ़ पर बड़ी सुंदर कलम चलायी है।
" शिकारी कुछ यहाँ ऐसे, चमन को छीन लेते हैं।
जरा सी दे धरा तुमको , गगन को छीन लेते हैं।।"
आज कम्प्यूटर नेटवर्क के जमाने में पुस्तकों के महत्व को दर्शाते हुए लेखिका कहती है....
" पढ़ो पढ़ाओ किताब सब जन, सखी सहेली किताब होती,
उठे जो मन मे हजार उलझन , सवाल का ये जबाब होती।"
अंत मे लेखिका ने गीत के माध्यम से कवि समाज के लिए संदेश दिया है कि --
" भूख- गरीबी लाचारी पर, होती खूब रही कविताई,
अब थोड़ा सा जगना होगा, अंगारों पर लिखना होगा।
कागज - कलम दवातें छोड़ो, तलवारों पर लिखना होगा
उठने से पहले दब जाती, चीत्कारों पर लिखना होगा।
यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा यह छंदबद्ध उत्कृष्ट गीत संग्रह, लेखिका को साहित्य जगत में अपनी एक अलग पहचान दिलाने के समस्त गुण रखता है ।
कृति : मैं प्रणय के गीत गाती (गीत संग्रह)
रचनाकार : उर्वशी कर्णवाल
प्रथम संस्करण : वर्ष 2022
मूल्य : 300 ₹
प्रकाशक : शब्दांकुर प्रकाशन , नई दिल्ली
समीक्षक : मनोज मानव
पी 3/8 मध्य गंगा कॉलोनी
बिजनौर 246701
उत्तर प्रदेश, भारत
दूरभाष- 9837252598
सोमवार, 17 अक्टूबर 2022
गुरुवार, 13 अक्टूबर 2022
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष क़मर मुरादाबादी के सत्रह शेर
हम सिखादेंगे हरेक क़तरे को तूफां होना
बे अदब हमसे न ऐ गरदिशे दौरां होना
कहीं फ़रेबे नज़र था कहीं तिलिस्मे जमाल
कहां से बच के गुज़रते कहां ठहर जाते
जुस्तजू का हमें शऊर नहीं
वरना मनज़िल कहीं से दूर नहीं
बारहा गरदिशे हालात पे आई है हंसी
बारहा गरदिशे हालाता पे रोना आया
जलवे जुदा-जुदा सही हुस्न जुदा-जुदा नहीं
एक अदा खिज़ा में है इक अदा बहार में
दौरे मय बन्द करो साज़ के नगमे रोको
अब हमें तज़करये दरदे जिगर करना है
रहेगा याद ये दौरे हयात भी हमको
के ज़िन्दगी में तरस्ते हैं ज़िन्दगी के लिये
एक ज़र्रे में महो- अन्जुम नज़र आने लगे
जब नज़र अपने पे डाली तुम नज़र आने लगे
कहाँ ढूंढोगे दीवानों का अपने
मुहब्बत का कोई आलम नहीं है
न वो गुल हैं न वो गुन्चे, न वो बुलबुल न वो नग़मे बहारों में ये आलम है, ख़िज़ा आई तो क्या होगा
नज़रों से ज़रा आगे कुछ दूर खयालों से
मैंने तुम्हे देखा है इक बार कहाँ पहले
साक़िया तन्ज़ न कर, चश्मे करम रहने दे
मेरे साग़र में अगर कम है तो कम रहने दे
हौसले बढ़ गये मौजों का सहारा पाकर
ज़िन्दगी और जवां हो गई तूफां के करीब
अपनी ही आग में जलता हूं ग़ज़ल कहता हूं-
शमआ की तरह पिघलता हूँ ग़ज़ल कहता हूँ
जब तेरा इन्तज़ार होता है
फूल नज़रो पे बार होता है
क़मर हम ज़माने से गुज़रे
लेकिन अपना ज़माना बनाकर
याद करेंगे मुददतों शाना व आईना कमर
बज़्म से उठ रहे हैं हम जुलफे़ ग़ज़ल संवार कर
✍️ क़मर मुरादाबादी
बुधवार, 12 अक्टूबर 2022
मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की बाल कहानी ---- बत्तख का बच्चा
सोना बत्तख अपने दोनों बच्चों सोनू और मोनू के साथ एक बड़ी सी झील में रहती थी.उस झील का पानी बहुत ही साफ और नीले रंग का था . उस झील में बहुत सुंदर- सुंदर लाल और सफेद रंग के कमल के बड़े- बड़े फ़ूल खिले हुए थे. सोना बत्तख बच्चों को लेकर झील के किनारे- किनारे ही तैरती रहती थी, झील के बीच में या अधिक दूर तक नहीं जाती थी, क्योंकि झील के बीच में एक बहुत ही बड़ी और खतरनाक मछली रहती थी, जो बत्तखों के छोटे बच्चों को पकड़ कर खा जाया करती थी.लेकिन वह झील के किनारे वाले पानी में नहीं आती थी, क्योंकि यहाँ पर बत्तखों के बहुत सारे परिवार आपस में मिलजुल कर रहते थे.अत: किसी भी बड़ी मछली के इस ओर आने पर सब बतखें एक साथ मिलकर, उस पर अपनी चोंच से हमला बोलकर उसे भगा देतीं थीं.
सोना बत्तख के दोनो बच्चे बहुत सुंदर और मोती जैसे सफेद रंग वाले थे.सोनू जहाँ समझदार था, वहीं मोनू बहुत ज़िद्दी, लापरवाह और नटखट था .वह किसी बड़े का कहना भी नहीं मानता था.सोना ने दोनो बच्चों को झील के बीच में न जाने की सख्त़ हिदायत दे रखी थी.एक दिन सोना दोनो बच्चों को झील के किनारे बैठाकर शाम के भोजन का इंतजाम करने अपनी सहेलियों के साथ थोड़ी देर के लिए कहीं चली गयी. जाते- जाते ,सोनू और मोनू से झील के अंदर जाने को मना कर गयी. लेकिन सोना के जाते ही मोनू चुपके से झील के पानी में उतर गया और अकेला तैरने लगा. उसे तैरने में बहुत मज़ा आ रहा था.रंग -बिरंगे कमल के फूलों को देखता हुआ, वह कब झील में बीचो -बीच पहुँच गया, उसे पता ही नहीं चला.जब उसने पीछे मुड़कर देखा तो वहाँ से किनारा बहुत दूर था.उसे मोनू और सोना कहीं नज़र नहीं आ रहे थे.
अब तो वह घबरा कर ज़ोर ज़ोर से रोने लगा. तभी उसने एक बड़ी सी मछली को अपनी ओर आते देखा. यह वही खतरनाक मछली थी, उसे देख वह भय से थर- थर काँपने लगा. तभी, उसे अपने पीछे से एक बड़ी मीठी सी आवाज सुनाई दी, "घबराओ मत प्यारे बच्चे..!आओ मेरे ऊपर बैठ जाओ..! जल्दी करो..!"उसने पीछे मुड़कर देखा तो एक सफेद रंग का बड़ा सा कमल का फ़ूल , उसे बुला रहा था.अतः मोनू तुरंत कूद कर उस कमल के फूल पर अपने शरीर को सिकोड़ कर बैठ गया.
वह बड़ी मछली जब उधर आयी तो सफेद रंग के कमल के फूल पर छिपे हुए सफेद बत्तख के बच्चे को नहीं देख पायी.इस प्रकार दोनो, एक रंग के होने के कारण उस मछली को चकमा देने में सफल हो गये.
थोड़ी देर में कमल का फ़ूल मोनू को लेकर तैरता हुआ, किनारे पर ले आया, जहाँ सोना और सोनू, मोनू के लिए बहुत परेशान हो रहे थे. मोनू को घर वापस आया देखकर वे दोनों बहुत खुश हुए, और सफेद कमल को उसकी दयालुता के लिए धन्यवाद दिया. मोनू ने भी अपनी माँ सोना से माफी माँगी और वादा किया कि वह अब कभी भी बिना बताये, घर से अकेला कहीं नहीं जायेगा और बड़ों का कहना मानेगा.अब तीनों मिलकर पहले की तरह खुशी -खुशी रहने लगे.
✍️ मीनाक्षी ठाकुर
मिलन विहार
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
वाट्स एप पर संचालित समूह 'साहित्यिक मुरादाबाद ' में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है । मंगलवार 11 अक्तूबर 2022 को आयोजित गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों की कविताएं
बादल आए , पानी बरसा
अक्टूबर में ढमढम,
गर्मी रानी बोली रोकर
अब समझो हम बेदम
एसी बंद करो
पंखे को दिन में सिर्फ चलाना,
आएगा अब नहीं पसीना
मूँगफली बस खाना
रोज रात को हुई जरूरी
गरमा-गरम रजाई,
कुल्फी के दिन गए
चाय की चुस्की मन को भाई
✍️रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल 99976 15451
.....................................
उमड़-घुमड़ कर बादल आए,
काली रात घनेरी लाए।
आजा रामू,आजा श्यामू,
खुशी निराली मन को भाए।।
टप-टप बूंदें गिरतीं हैं,
आसमान से झरतीं हैं।
देख नज़ारा इतना प्यारा,
मन में मस्ती भरतीं हैं।।
ठंडी-ठंडी हवा चली,
लगती कितनी भली-भली।
मन मस्ती से झूम उठा,
मच उठी अब खलबली।।
✍️अतुल कुमार शर्मा
सम्भल
उत्तर प्रदेश, भारत
......................................
सुंदर झरना जल बरसाता ।
कलकल करके बहता जाता।
सूरज के रंगों से मिलकर
बन जाता रंगों का संगम,
कभी न रुकता बाधाओं से
राहें हों कितनी भी दुर्गम,
हर पत्थर को भेद-भेदकर
आगे चलता , वेग बढ़ाता ।
कोमल जल है फिर भी देखो
दूर हटाता पत्थर को भी,
मृदुता का आदर करने का
पाठ पढ़ाता भूधर को भी,
जल की मृदुतामय दृढ़ता को
भूधर भी तो शीश झुकाता ।
हे नन्हे-प्यारे मानव तुम
दृढ़ विश्वास बनाए रखना ,
कष्ट पड़ें चाहे कितने भी
मानवता से कभी न हटना ,
पक्का- नेक इरादा ही तो
हर मुश्किल को सरल बनाता ।
✍️ओंकार सिंह 'ओंकार'
1-बी-241 बुद्धि विहार ,मझोला,
मुरादाबाद(उत्तर प्रदेश) 244103
.................................
कापी ,पेंसिल ,चाक , सिलेट कभी हथियार थे हमारे ,
हम भी कभी "राजा" थे दीपू, मुन्ना की सेना के सहारे
सेना के "राजा" रोज बदल दिए जाते थे ,
कभी "राजा" तो कभी "सैनिक" हम बन जाते थे ,
लडाई मे बाल खींचकर पेंसिल की नोक हम चुभाते थे,
अगले दिन फिर रूठे मिञो को हम मनाते थे ,
चिंता मुक्त खेलना कूदना तो रोज का काम था ,
घर पहुँचकर न पूछो बस आराम ही आराम था ,
याद कर इन मीठी यादों को "बचपन" में खो जाता हूँ ,
बदल चुके परिवेश में खुद को बहुत अकेला पाता हूँ ,
लौट नहीं सकता वो "बचपन" , बीत गया सो बीत गया ,
जंग लड़ो अब जीवन की तुम , लड़ा वही जंग जीत गया ।
✍️विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9410416986
...................................
आजा प्यारी गौरैया हम तुझको नहीं सतायेंगे।
दाने डाल टोकरी में अब तुझको नहीं फँसायेंगे।
छत पर दाना पानी रखकर हम पीछे हो जाएंगे।
छोटे छोटे घर भी तेरे फिर से नए बनाएंगे।
आजा प्यारी गौरेया अब तुझको नहीं सतायेंगे।।
हुई ख़ता क्या नन्हीं चिड़िया जो तू हमसे रूठ गयी।
या तू जाकर दूर देश में अपना रस्ता भूल गयी।
एक बार तू लौट तो आ हम सच्ची प्रीत निभाएंगे।
दूर से तुझको देख देखकर अब हम खुश हो जाएंगे।
आजा प्यारी गौरेया हम तुझको नहीं सतायेंगे।।
चीं चीं करती छोटी चिड़िया याद बहुत तू आती है।
जब कोई तस्वीर किताबों में तेरी दिख जाती है।
एक बार तू बापस आ हम फिर से रंग जमाएंगे।
सुंदर सी तस्वीर तेरी हम फिरसे नई बनाएंगे।
आजा प्यारी गौरेया हम तुझको नहीं सतायेंगे।।
✍️नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा
मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश, भारत
...............................
चूहे खाये बिल्ली रानी।
आखिर कब तक यही कहानी।।
बहुत सह चुके अब न सहेंगे ,
बिल्ली तेरी ये मन मानी।।
हम चूहों को खा-खा कर तुम ,
खुद को समझी ज्ञानी ध्यानी।।
शक्ति एकता में है कितनी ,
बात न अब तक तुमने जानी।।
ख़ूब भगा कर मारेंगे हम,
याद करा देंगे फिर नानी।।
छोड़ो खाना चूहे अब तुम ,
ढूंढो दूजा दाना पानी।।
✍️प्रो. ममता सिंह
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
.............................
किया पराजित घने घनों को ,
छायी धूप सुहानी ।
तरसाने की बारिश ने थी,
मानों मन में ठानी ।।
पर सूरज जी के सामने,
चली नहीं मन मानी ।
गये घने घन घर हैं अपने ,
पहने चूनर धानी ।।
ॠतु शरद की बारी आयी ,
चमन फूल लायेगी ।
रंग बिरंगी क्यारी में ,
ठंड गुलाबी भायेगी ।।
✍️डाॅ. रीता सिंह
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
..............................
ले आता मैं चाँद जमीं पर
लेकिन अभी मैं छोटा हूं।
वैसे मैं जिद्द का हूं पक्का,
पर कर लेता समझौता हूं।।
मूझे कोई कम न समझना
सब कहें 'सिक्का खोटा'हूं।
पल में इधर , पल में उधर,
बस मैं 'बेपेंदी का लोटा' हूं।।
सबसे मैं लड़-भिड़ जाता ,
डर नहीं लगे-कि छोटा हूं।
बच्चे मुझसे भय खा भागें ,
क्योंकि कुछ तगडा़ मोटा हूं।।
छोड़ मुझे सब दावत खाते
मैं घर पहन खडा़ लंगोटा हूं ।
गोदी उठा न कोई मनावे
अपने आंगन लोटा-पोटा हूं।।
कान्हा बाल-गोविंद बताओ,
क्या लगता इतना मोटा हूं ।
दस-दस रोटी सुबह शाम खा
दो लोटे दूध ही पीके सोता हूं।।
✍️धनसिंह 'धनेन्द्र'
चन्द्र नगर
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
.............................
बोली से पहचानो बच्चों
कौन आपके पास खड़ा
कौन देह में छोटा तुमसे
बोलो तुमसे कौन बड़ा ।
बड़े ध्यान से सुनो बताओ
बच्चों स्वर यह किसका है
इंदु बोली दीदी यह तो
गौरैया के स्वर सा है।
कांवकांव की बोली कर्कश
कौन सुनाता है तुमको
बोला चीनू मुंडेरों पर
दिखते हैं कौए हमको।
कानों को चौकन्ना करके
म्याऊँ कौन बोलता है
गुड़िया बोली नन्हा बिल्ला
अपनी पोल खोलता है।
कोई बतलाए कुकड़ू कूँ
करके कौन जगाता है
मुर्गे का स्वर ही तो दीदी
निंदिया दूर भगाता है।
ऐसे ही अनेक जीवों के
स्वर बच्चों ने पहचाने
घूम-घूमकर चिड़ियाघर में
लगे सभी को सिखलाने।
हैं सबकी आँखों के तारे
सारे ये बच्चे प्यारे
यही देश के कर्णधार हैं
सही स्वरों के रखवारे।
✍️वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9719275453
...............................
देखो बच्चों कितनी न्यारी ?
दुनिया कितनी प्यारी प्यारी?
नभ में ऊंचे पंछी उड़ते ,
किन्तु झुंड में वे ही जुड़ते ।
जो हैं एक से पंखों वाले,
करतब उनके बड़े निराले।
अजब प्रभु की माया सारी,
दुनिया कितनी प्यारी प्यारी?
उसका कितना अद्भुत खेला
जंगल में पशुओं का मेला।
नाना जाति विविध प्रकार,
भालू ,चीते, हिरन, सियार।
लौमड़ी, बन्दर हाथी भारी
दुनिया कितनी प्यारी प्यारी?
नदियां ,झरने, झील, तालाब,
बर्षा में जल राशि बहाव।
जल जीवों से भरे समंदर,
शार्क,ह्वेल,मछली जल अंदर,
कितने करें शिकार शिकारी।
दुनिया कितनी प्यारी प्यारी?
धरती पर फैली हरियाली,
पत्ती-पत्ती डाली डाली।
वियावान जंगल का शोर,
जिसका कोई ओर न छोर।
आक्सीजन दें हरें बिमारी,
दुनिया कितनी प्यारी प्यारी?
सदा रखो सुन्दर व्यवहार,
कभी नहीं तू हिम्मत हार।
धरती का बस यही आवरण।
कहलाता है पर्यावरण।
कर्म करो जो हो सुखकारी।
दुनिया कितनी प्यारी प्यारी?
✍️अशोक विद्रोही
412 प्रकाश नगर
मुरादाबाद 244001
................................
रंग बिरंगे पंखों वाली,तितली बोली बड़ी निराली
आओ बच्चों मेरे साथ, बहुत रंग हैं मेरे पास ॥
बच्चे बोले तितली रानी ,पंख हमें भी लाओ ना
रंग बिरंगे बाग बगीचे,हमको भी दिखलाओ ना ॥
सपने में भी अब तो हमको ,दिखती तितली रानी
परियों जैसी करते मस्ती और करते मनमानी ।
मन करता है कभी-कभी, कि मैं पक्षी बन जाऊँ
अपने पंख पसारुँ मैं और नभ में उड़ जाऊँ ॥
रंग बिरगे पंखों वाली,तितली सा लहराऊँ
इतनी सुंदर मेरी सहेली, मन ही मन इठलाऊँ ॥
✍️विनीता चौरासिया
शाहजहाँपुर
उत्तर प्रदेश, भारत
............................
.....................................
मंगलवार, 11 अक्टूबर 2022
मुरादाबाद की साहित्यकार पूजा राणा की पांच बाल कविताएं
(1) बारिश
धूप खिल रहीं थीं चारों ओर
तड़के की हो रहीं थीं भोर
तभी अचानक घिर आये बादल
बारिश हुई और नाचे मोर
झम झम बारिश की बरसे फ़ुहार
ऐसे लगे जैसे आ गयी बहार
पेड़ों के पंछी लगे चहचहाने
मानो जैसे कोई हो त्यौहार
सावन में मनभावन बारिश
जुड़ रहें हैं यूँ मन के तार
फ़िर माँ ने पीछे से आवाज लगाई
अंदर आओ यूँ डांट लगाई
मन में चंचलता बारिश को देखूँ
धीरे धीरे से हाथों में यूँ पानी ले लूँ
तभी माँ ने बंद किया दरवाजा
बोली पूजा अब तो आजा
मैं बोली थोड़ा रुको ज़रा
बारिश को देखूं सुनो ज़रा
छम छम में नाचूँ गाऊं
जोर जोर से शोर मचाऊं
देखो बारिश आज, खुशियाँ ले आयी हैं
गर्मी को दूर भगाएगी, आज ठंड हो जाएगी
ओ बारिश अब रोज ही आना
नित्य बरस के मन हर्षाना
(2) मेरी कल्पना
मन करता हैं उड़ जाऊं मैं भी
आसमान में पंछी बनकर
दुनिया देखूँ इन आँखों से
शोर मचाऊं मै भी तनकर
फिर नन्हे नन्हें कदमों से मैं
चलकर भागूँ और गिर जाऊं
प्यार से माँ उठाये मुझको
और गुस्से से मुँह फुलाऊं
माँ का वो ममता सा आँचल
मुझ पर प्यार लुटायेगा
माँ के आँचल में छुप जाना।
मुझे बहुत याद आएगा
(3) मैं नटखट कान्हा जैसा
ठुमक ठुमक चलु ऐसी चाल
कान्हा के जैसे हो गाल
सिर पर मेरे मोर मुकुट हो
ऊपर से ये घुंघराले बाल
छम छम करता नृत्य करूं
माँ के आँचल में छुपा रहूँ
ढूढ़ें गोपियां मुझको नित दिन
मैं मुँह से गोपी गोपी गोपी कहूँ
लीलाओं से अपनी मैं
कर दूं सबको तंग, बेहाल
सिर पे मेरे मोर मुकुट हो
ऊपर से घुंघराले बाल
(4) प्यारी सखी
आओ सखियों सब खेल रचायें
झूमे नाचे यूँ गीत सुनायें
मन में रखे भाव ख़ुशी का
औऱ एक दूजे की सखियां बन जायें
हरी भरी पेड़ों की डाली
काली कोयल की कूक निराली
हरे भरे पेड़ों को पानी देता
गुनगुनाता बाग का माली
सब देखें और ख़ुश हो जायें
झूमें नाचें और गीत सुनायें
(5) सुनो मेरा सपना
मीठी तान सुनाती कोयल
बौराई थी डालों पर
नज़र पड़ी थी मुझ पर हया की
मेरे घुंघराले बालों पर
ठुमक ठुमक चलती थी चिड़िया
दाना चुगकर लाती थीं
धीरे धीरे से अपने बच्चों को
चुपके से खिलाती थीं
भूल गयी थी दुनिया को मैं
अलबेली सी घटा छायी थी
यह मनोरम दृश्य देखकर
याद मुझे माँ आयी थी
फिर आँखे खुली थी,
उड़ गए थे सपनें
देखें भी थे, क्या
सच में सपनें
आँखे बंद थी तो कितना अच्छा था
लगता मुझको हर सपना सच्चा था
✍️ पूजा राणा
राम गंगा विहार
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद के साहित्यकार पंडित बलदेव प्रसाद मिश्र की दुर्लभ कृति...व्याख्यान रत्नमाला। यह कृति वर्ष 1922 में श्री वेंकटेश्वर मुद्रण यंत्रालय मुंबई द्वारा प्रकाशित हुई है। इस कृति में पण्डित दीनदयाल शर्मा, महामहोपदेशक पण्डित अम्बिकादत्त जी व्यास, साहित्याचार्य महामहोपदेशक पण्डित श्रीकृष्णशास्त्री, महामहोपदेशक पण्डित गोविन्दरामजी शास्त्री, विद्यावारिधि पण्डित ज्वालाप्रसाद जी मिश्र, स्वामी हंसस्वरूपजी, पं० दुर्गादत्त, पं० हरिदत्तजी शास्त्री तथा एनी बेसेंट आदि के अद्भुत व्याख्यान हैं।
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::::::::::प्रस्तुति:::::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822
सोमवार, 10 अक्टूबर 2022
मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ रीता सिंह की पांच बाल कविताएं
उठो लाल अब हुआ सवेरा
चिड़ियों ने डाला है डेरा,
किरणें भी द्वारे तक आयींं
लगा रहीं धरती पर फेरा ।
चमक रही सूरज की लाली
कोयल कूक रही है डाली,
सरर सरर पातों की धुन पर
झूम रही हवा बनी आली ।
कलियाँ मुस्कायीं उपवन में
उछल रहे शावक वन - वन में ,
देख भोर का समय सुहाना
घूमे खग दल दूर गगन में ।
2 - बादल आये बादल आये....
बादल आये , बादल आये
कितना सारा पानी लाये,
छत ,सड़क और सब खेतों में
रिमझिम-रिमझिम कर मुस्काये ।
मस्त पवन तरुवर लहराये
मानों मधुरिम गीत सुनाये,
मोती सी गिरती बूँदों ने
जिया सभी के बड़े लुभाये ।
पर फैली कीचड़ गलियों में
फंस गया कचरा नलियों में
कूड़ा फेंके जो सड़कों पर
अपनी करनी पर पछताये ।
3-बोले कागा काँव - काँव ...
बोले कागा काँव - काँव
चली भोर है पाँव - पाँव
नदी ,शिखर और खेत से
पहुँच गयी है गाँव - गाँव ।
घर की छत आकर बैठे
करे कबूतर गूटर - गूँ
देख - देख मुन्नी चहकी
बोली माँ से दाना दूँ ।
कहता मुरगा कुकड़ूँ - कूँ
अब तक मुन्ना सोया क्यूँ
उठ मुंडेरी पर तेरी
गाती चिड़िया चूँ चूँ चूँ ।
जपता मिट्ठू राम - राम
भजता वही प्रभु का नाम
कोयल गीत सुरीले गा
चली गयी है अपने ठाम ।
4-आओ चलें वनों की ओर....
आओ चलें वनों की ओर
जहाँ सुरीली होती भोर ,
खग समूह मिल सुर लगाते
खोल पंख उमंग दिखाते,
नाचे मस्ती में है मोर ।।
भानु किरण पहुँची हर कोर
नरम धूप की पकड़े डोर,
पात चमक उठे ज्यों झालर
उछल रहे तरुवर वानर,
एक छोर से दूजे छोर ।
आओ चलें वनों की ओर ।।।
दिन दहाड़े गज चिंघाड़े
भालू बजा रहे नगाड़े,
मृग नाचते ता - ता थैया
मनहु सब हैं भैया - भैया,
चारों ओर खुशी का शोर ।।
घूम रहे सिंह गरजते
जान जीव दल सब बचाते,
कहीं शिकार, कहीं शिकारी
सोच एक से एक भारी,
लगी जीतने की है होर ।
आओ चलें वनों की ओर ।।
5 -कोरोना ने पैर पसारे...
कोरोना ने पैर पसारे
घर में रहना मुन्ना प्यारे ,
दादी - दादा संग खेलना
खेल नये - पुराने सारे ।
योग ध्यान से जीवन जीना
हल्दी डाल दूध है पीना,
तुलसी ,अदरक और मुनक्का
काढ़ा इनका लेना मीना ।
स्याह ,मिर्च और दाल चीनी
रोग डरेंगे इनसे न्यारे ।।
सब जीवों की सुध है लेना
चिड़िया को है दाना देना,
देना गैया को भी चारा
जब तक उसका पेट भरे ना ।
कौआ कूकर माँगें रोटी
घूम रहे भूखे बेचारे ।।
पढ़ना पुस्तक सभी पुरानी
पूर्वजों की सत्य कहानी,
चलना आदर्शों पर उनके
जीवन जिनका अमिट निशानी ।
सूरज सम जो राह दिखाते
तम से कभी नहीं वे हारे ।
कोरोना ने पैर पसारे......
✍️ डॉ रीता सिंह
आशियाना 1, कांठ रोड
मुरादाबाद 244001
मोबाइल नंबर - 8279774842
मुरादाबाद के साहित्यकार माहेश्वर तिवारी को लखनऊ की प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था सर्वजन हिताय साहित्यिक समिति ने किया डॉ. अम्बिका प्रसाद गुप्त स्मृति सम्मान 2020 से सम्मानित
लखनऊ की प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था सर्वजन हिताय साहित्यिक समिति की ओर से रविवार नौ अक्टूबर 2022 को लखनऊ में हज़रतगंज स्थित प्रेस क्लब सभागार में आयोजित भव्य सारस्वत सम्मान समारोह में प्रख्यात साहित्यकार माहेश्वर तिवारी को वर्ष 2020 का 'डॉ. अम्बिका प्रसाद गुप्त स्मृति सम्मान' प्रदान किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष एवं विचारक प्रोफेसर सूर्य प्रसाद दीक्षित, विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. विश्वम्भर शुक्ल, नवगीतकार वीरेंद्र आस्तिक तथा संस्था के उपाध्यक्ष जगमोहन नाथ कपूर सरस, रामेश्वर प्रसाद द्विवेदी प्रलयंकर, राकेश बाजपेई के कर कमलों से समारोह के मुख्य अतिथि नवगीतकार माहेश्वर तिवारी को अंगवस्त्र, मानपत्र, प्रतीक चिह्न एवं सम्मान राशि भेंट कर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का संचालन संस्था के संस्थापक व संयोजक राजेन्द्र शुक्ल राज ने किया। कार्यक्रम में सम्मानित माहेश्वर तिवारी ने अपने नवगीत पढ़े-
"एक तुम्हारा होना क्या से क्या कर देता है
बेज़ुबान छत दीवारों को घर कर देता है
आरोहों अवरोहों से बतियाने लगती हैं
तुमसे जुड़कर चीज़ें भी बतियाने लगती हैं
एक तुम्हारा होना अपनापन भर देता है"।
इस अवसर पर लखनऊ के स्थानीय कवियों शिव भजन कमलेश, डॉ रंजना गुप्ता, सोम दीक्षित, अम्बरीष मिश्र आदि अनेक कवियों ने कविता पाठ किया।
श्री माहेश्वर तिवारी को लखनऊ में डॉ. अम्बिका प्रसाद गुप्त स्मृति सम्मान से सम्मानित किए जाने पर मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था अक्षरा, हस्ताक्षर एवं मुरादाबाद लिटरेरी क्लब की ओर से डॉ. अजय अनुपम, डॉ. मक्खन मुरादाबादी, डॉ. कृष्ण कुमार नाज़, योगेन्द्र वर्मा 'व्योम', ज़िया ज़मीर, राजीव प्रखर, हेमा तिवारी, डॉ. पूनम बंसल, डॉ. प्रेमवती उपाध्याय, डॉ. मनोज रस्तोगी, मनोज मनु, मयंक शर्मा, फरहत अली, राहुल शर्मा आदि ने बधाई दी।
:::::::प्रस्तुति::::::
योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'
संयोजक- अक्षरा, मुरादाबाद
मोबाइल-9412805981
रविवार, 9 अक्टूबर 2022
मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही का गीत ...अन्याय नहीं मन सह पाता, विद्रोही गीत सुनाता हूं
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न्याय
कैसे पुरवाई के झौंके!
और कैसी सावन की फुहार।
न भाये मुझको आलिंगन,
न मन चाहे सोलह श्रृंगार ।
जन जन के मन की पीड़ा को
मैं अपने गीत बनाता हूं।
अन्याय नहीं मन सह पाता
विद्रोही गीत सुनाता हूं।
जो थाम तिरंगा गलन भरे,
हिम शिखरों के ऊपर चलते।
सीना ताने सीमा पर जो,
पल-पल निशदिन तिल तिल गलते।
उन सब के घोर पराक्रम को ,
दर्पन बन कर दिखलाता हूं।
अन्याय नहीं मन सह पाता
विद्रोही गीत सुनाता हूं।
भारत माता का आर्तनाद !
जब सहन नहीं कर पाता हूं!
मन आक्रोशित हो जाता है,
शब्दों के बाण चलाता हूं ।
वीणापाणी से मिला प्यार मैं ,
कागज कलम उठाता हूं।
अन्याय नहीं मन सह पाता
विद्रोही गीत सुनाता हूं।
कितने ही बिषधर आस्तीन,
में सदा सदा यहां पलते हैं!
अन्न जल खाकर भारत मां का,
नित इससे ही छल करते हैं।
उनके चेहरों पर फ़ैल रही,
स्याही का रंग दिखाता हूं!
अन्याय नहीं मन सह पाता,
विद्रोही गीत सुनाता हूं!
जाति, भाषा और वर्ग भेद,
में जो समाज को बांट रहे।
हम एक बनें और नेक बनें,
के मूल मंत्र को काट रहे।
"भारत मां के बेटों जागो !"
की घर घर अलख जगाता हूं।
अन्याय नहीं मन सह पाता,
विद्रोही गीत सुनाता हूं!
दीवाने थे भारत मां के ,
कुछ अलवेले मस्ताने थे।
फांसी के फंदे चूम चूम ,
गूंजे जो अमर तराने थे।
उन अमर शहीदों की गाथा,
के केसरिया लहराता हूं !
अन्याय नहीं मन सह पाता,
विद्रोही गीत सुनाता हूं!
इस सोने की चिड़िया के पर,
आक्रांताओं ने नौचे थे।
सारी दुनिया अब जान चुकी,
वे चोर लुटेरे ओछे थे!
छू न पाये फिर इसे कोई ,
नित अंगारे दहकाता हूं।
अन्याय नहीं मन सह पाता,
विद्रोही गीत सुनाता हूं!
✍️ अशोक विद्रोही
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष पंडित बलदेव प्रसाद मिश्र (विद्यावारिधि पंडित ज्वाला प्रसाद मिश्र के अनुज) की दुर्लभ कृति... नन्द विदा नाटक । यह कृति वर्ष 1906 में लक्ष्मीनारायण यंत्रालय मुरादाबाद से प्रकाशित हुई है। हिन्दी साहित्य का इतिहास संबंधी अनेक ग्रंथों व कोशों में इस कृति का उल्लेख मिलता है।
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डॉ मनोज रस्तोगी
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शनिवार, 8 अक्टूबर 2022
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष पंडित बलदेव प्रसाद मिश्र (विद्यावारिधि पंडित ज्वाला प्रसाद मिश्र के अनुज) की दुर्लभ कृति... लल्ला बाबू प्रहसन । यह कृति वर्ष 1900 में श्री वेंकटेश्वर यंत्रालय मुंबई से प्रकाशित हुई है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने अपने ग्रंथ हिन्दी साहित्य का इतिहास में इस कृति का उल्लेख किया है।
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मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार संतोष कुमार शुक्ल संत की रचना .....
अन्दर की बात है, यूं नहीं बतायेंगे।
अपने ही जाल में, शिकारी फस जायेंगे।।
सपने सयाने हुए, अपने बेगाने हुए।
किसी पे भरोसा अब, हम न कर पायेंगे।।
उत्तराधिकारी तो, बेटा ही होता है।
अनर्गल प्रलापों से, हम क्या डर जायेंगे।।
अन्दर की बात है - - - -
चारा ही खाया था, नाम दिया घोटाला।
खाता यदि और कुछ तो, करते क्या तुम लाला ?
जानवर तो कोई नहीं, गुजरा कचहरी से।
आपके ही बाप का, गया क्या तिजोरी से ?
भैंस जाये ट्रक से, अथवा दुपहिये से !!
आपको तकलीफ क्या है, हमको समझायेंगे ?
अन्दर की बात है - - -
डाल डाल तुम सब तो, पात पात हम भी हैं।
खाने की आदत में, बच्चे भी कम नहीं हैं।।
चारा हमनें खाया, बच्चों ने मिट्टी है।
जांच ब्यूरो की भी, गुम सिट्टी पिट्टी है।।
पिताजी का नाम, बच्चे आगे बढ़ायेंगे।
सम्मन पर लालू, सपरिवार लिखे जायेंगे।।
अन्दर की बात है - - -
रुपया घोटाले गया, दो रुपये इन्क्वायरी में।
जेल भेजने को, चार खर्चे सरकारी में।।
आगे कचहरी का, अभी और खर्चा है।
आपकी तिजोरी का, यह भी एक पर्चा है।।
भैंस है हमारी, क्योंकि! लाठी भी हमारी है।
आँख भी तरेरेंगे, हाँक भी ले जायेंगे।।
अन्दर की बात है - - -
✍️ सन्तोष कुमार शुक्ल सन्त
ग्राम-झुनैया, तहसील - मिलक,
जनपद - रामपुर
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल : 9560697045
शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2022
मुरादाबाद मंडल के चंदौसी जनपद सम्भल (वर्तमान में अलीगढ़ निवासी ) के साहित्यकार लव कुमार प्रणय की दस ग़ज़लें ....
![]() |
एक
फ़ासला प्यार में बढ़ाने से
कुछ न पाओगे तुम ज़माने से
इन बहारों से पूछकर देखो
फूल खिलते हैं मुस्कुराने से
रात -दिन तुमको याद करते हैं
मिल भी' जाओ कभी बहाने से
एक दिन तो पता चलेगा ही
झूठ छिपता नहीं छिपाने से
क्या महक पाएगी कभी बगिया
काग़ज़ी फूल को लगाने से
ज़िन्दगी प्राणहीन सी लगती
एक उनके ही रूठ जाने से
सिर्फ़ इतना 'प्रणय' बतादो तुम
क्या मिलेगा तुम्हें सताने से
दो
हमें तो प्यार उनसे है मुहब्बत जिनके' मन में है
न भाते हैं हमें वे जन अदावत जिनके मन में है
गरीबों के जो दुख हरते नहीं उनसे बड़ा कोई
उन्हें ईश्वर भी चाहेगा इबादत जिनके मन में है
हमेशा झूठ पर बुनियाद जो घर की खड़ी करते भरोसा क्या करें उन पर सियासत जिनके मन में है
नहीं उम्मीद तुम रखना मधुर व्यवहार की उनसे
शरारत ही करेंगे वो शरारत जिनके मन में है
खपा दी उम्र सब अपनी मगर फिर भी नहीं माने
मनाते भी उन्हें कब तक शिकायत जिनके मन में है
जो सज्जन हैं न भटकेंगे कभी भी नेक राहों से
करेंगे बात सब उनकी शराफ़त जिनके मन में है
'प्रणय' तुम मान से उनको भले ही सिर पे बैठाओ
किसी के हो नहीं सकते बग़ावत जिनके मन में है
तीन
आरज़ू दिल की' तू छुपा तो' नहीं
प्यार करना कोई सज़ा तो' नहीं
दर्द देकर किसी को' खुश होगा
ऐसे' साँचे में' वो ढला तो नहीं
इतनी पाकीज़गी है चेहरे पर
वो मुहब्बत का देवता तो नहीं
क्या हुआ ग़म ये राम ही जाने
सामने उसने' कुछ कहा तो नहीं
किस तरह जाके' मिलते हम उससे
उसके' घर का हमें पता तो' नहीं
कितना' बेसुध सा लग रहा है वो
क्या किसी ने उसे छला तो नहीं
उससे' मिलने के बाद फिर अपने
दिल में' कोई 'प्रणय' बसा तो नहीं
चार
लग रही द्वार पर आज साँकल वही
घर तो' खाली पड़ा , है धरातल वही
जिसकी छाया तले धूप से मैं बचा
मेरी' माँ का मिला आज आँचल वही
प्यार से देख लो पास आकर मुझे
जो बरसता बहुत मैं हूँ' बादल वही
जब विरह ने मिलन की जगाई अगन
बज उठी प्यार में मीत पायल वही
हर समय हर घड़ी दिल ने' चाहा जिसे
दोस्त बनकर मेरा कर रहा छल वही
देखकर जिसको मन हो गया बावरा
आँख में लग रहा उनकी' काजल वही
किस तरह प्रेम का फूल खिलता 'प्रणय'
मिल रहा द्वेष का रोज दलदल वही
पांच
याद ने तुम्हारी आ रोज ही सताया है
दर्द को सदा हमने गोद में झुलाया है
भ्रम न पालना मन में , इससे' टूटते रिश्ते
प्यार में सदा भ्रम ने फ़ासला बढ़ाया है
क्या बताएं हम तुम को भावनाएं इस दिल की
हमने' तो दुखी जन को बस गले लगाया है
ज़िन्दगी भी'सुख -दुख का खेल खेलती रहती
वक़्त ने यहाँ ऐसा जाल सा बिछाया है
चाँद जब से' देखा है चाँदनी कहे उससे
प्यार से तुम्हें दिल ने आइए बुलाया है
ऐ पिता तुम्हीं से तो हर खुशी मिली मुझको
हर कदम पे कष्टों से आपने बचाया है
खिल उठीं सभी कलियाँ ,मस्त हो उठे भँवरे
इस 'प्रणय' ने' जब जब भी प्रेम गीत गाया है
छह
ज़रा पास आ मुस्कराओ कभी
हमें भी मुहब्बत सिखाओ कभी
हमेशा हमीं हैं मनाते तुम्हें
हमें भी तो आकर मनाओ कभी
सुना है ये दुनिया बहुत ही हसीं
हमें साथ चलकर दिखाओ कभी
नमी आँख की कह रही आपसे
कि बिछुड़े हुए दिल मिलाओ कभी
तुम्हारी छुअन से सँवर जाएंगे
हमें तुम गले से लगाओ कभी
सभी पीर - संतो को कहते सुना
कि कमजोर को मत सताओ कभी
जो' ग़ज़लें 'प्रणय' की पढ़ी आपने
उन्हें हमको गाकर सुनाओ कभी
सात
करें जो काम मेहनत से वो कब नाकाम होते हैं
लिखे उनकी ही किस्मत में सदा ईनाम होते हैं
सिखाया है जो अनुभव ने सुनाते हैं सुनो तुम भी
ज़माने में छलावे के तो किस्से आम होते हैं
सदा अपना समझकर जो निभाते हैं सभी रिश्ते
ज़माने में वही अक्सर बहुत बदनाम होते हैं
न जाओ छोड़कर मुझ को अकेला भीड़ में साथी
मुहब्बत के अलावा भी बहुत से काम होते हैं
करें जो नेकियाँ जग में जलाएं दीप खुशियों के
समय का फेर है ऐसा वही गुमनाम होते हैं
लगा लेते गले से जो मुसीबत में सुदामा को
वही मीरा, वही राधा के देखो श्याम होते हैं
जरूरी है बहुत ही आपसी विश्वास जीवन में
अगर विश्वास टूटे तो बहुत कोहराम होते हैं
आठ
तम को मिटा रहे हम खुद को जला जला के
इक बार देख लो तुम हालत हमारी आ के
इस ज़िन्दगी में हमने केवल तुम्ही को चाहा
अच्छा नहीं यूँ जाना दिलबर ये दिल दुखा के
अब क्या बतायें उनको कैसी गुज़र रही है
बारिश का मस्त मौसम आया बिना पिया के
असली है या है' नकली यदि जानना तुम्हें हो
सोने को देख लेना इक बार तुम तपा के
अच्छा नहीं है मौसम दुश्मन है ये ज़माना
घर से कहीं भी जाओ जाना ज़रा बता के
दिल चाहता यही है करता यही दुआ है
जीवन कटे सभी का इक दूजे को हँसा के
कहना यही 'प्रणय' का कितने भी कष्ट आयें
जीना नहीं कभी तुम अपनी नज़र झुका के
नौ
रात दिन मैं मिलन को मचलता रहा
बेवफ़ा पर बहाने से छलता रहा
क्या सुनाऊँ तुम्हें प्यार की दास्तां
मैं सुबह शाम सा रोज ढलता रहा
आज तक कब मिली रोशनी की किरन
मैं अँधेरों के घर में ही पलता रहा
वो न आए कभी पास में आज तक
मैं विरह की अगन में ही जलता रहा
जो कदम दर कदम मुझको ठगते रहे
सँग उन्हीं के हमेशा मैं' चलता रहा
ठोकरें तो लगीं ज़िन्दगी में बहुत
मैं मगर उनसे हर पल सँभलता रहा
दोस्तो की खुशी के लिए ही 'प्रणय'
मोम के बुत सा पल पल पिघलता रहा
दस
खुशी बाँटो ,न ग़म पालो ,रहो मिलकर मुहब्बत से
कभी मिलता नहीं कुछ भी यहाँ पर यार नफ़रत से
वही मौसम, वही बारिश, वही है दिन जुदाई का
चले आओ सनम अब तो न तोलो प्यार दौलत से
न जाओ छोड़कर मुझको तुम्हारा ही सहारा है
उठेगी फिर यही आवाज़ दिल की इस इमारत से
तुम्हारे रूप का जादू गिराता बिजलियाँ दिल पर
जिये कैसे कोई बोलो ज़माने में शराफ़त से
सताने का तुम्हारा ढँग निराला है , अनोखा है
निकल जाये न अपना दम कहीं फिर आज दहशत से
न कपड़ों से, न गहनों से अमीरी की परख करना
हमेशा हर किसी से पेश आना आप इज़्ज़त से
न कर उम्मीद होगा फ़ैसला तेरे मुकद्दर का
मिलेगी फिर 'प्रणय'तारीख तुझको इस अदालत से
✍️ लव कुमार 'प्रणय'
के-17, ज्ञान सरोवर कॉलोनी
अलीगढ़
उत्तर प्रदेश, भारत
चलभाष - 09690042900
ईमेल - l.k.agrawal10@gmail.Com