बुधवार, 12 अक्तूबर 2022

वाट्स एप पर संचालित समूह 'साहित्यिक मुरादाबाद ' में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है । मंगलवार 11 अक्तूबर 2022 को आयोजित गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों की कविताएं


बादल आए , पानी बरसा

अक्टूबर में ढमढम,

गर्मी रानी बोली रोकर 

अब समझो हम बेदम


एसी बंद करो

पंखे को दिन में सिर्फ चलाना,

आएगा अब नहीं पसीना

मूँगफली बस खाना


रोज रात को हुई जरूरी

गरमा-गरम रजाई,

कुल्फी के दिन गए

चाय की चुस्की मन को भाई 

✍️रवि प्रकाश

बाजार सर्राफा

रामपुर 

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल 99976 15451

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उमड़-घुमड़ कर बादल आए,

काली रात घनेरी लाए।

आजा रामू,आजा श्यामू,

खुशी निराली मन को भाए।।


टप-टप बूंदें गिरतीं हैं,

आसमान से झरतीं हैं।

देख नज़ारा इतना प्यारा,

मन में मस्ती भरतीं हैं।।


ठंडी-ठंडी हवा चली,

लगती कितनी भली-भली।

मन मस्ती से झूम उठा,

मच उठी अब खलबली।।


✍️अतुल कुमार शर्मा

 सम्भल 

उत्तर प्रदेश, भारत 

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सुंदर झरना जल बरसाता ।

कलकल करके बहता जाता।


सूरज के रंगों से मिलकर

 बन जाता रंगों का संगम, 

कभी न रुकता बाधाओं से

राहें हों कितनी भी दुर्गम, 

हर पत्थर को भेद-भेदकर 

आगे चलता , वेग बढ़ाता ।


कोमल जल है फिर भी देखो 

दूर हटाता पत्थर को भी, 

मृदुता का आदर करने का 

पाठ पढ़ाता भूधर को भी,

जल की मृदुतामय दृढ़ता को 

भूधर भी तो शीश झुकाता ।


हे नन्हे-प्यारे मानव तुम 

दृढ़ विश्वास बनाए रखना ,

कष्ट पड़ें चाहे कितने भी 

मानवता से कभी न हटना ,

पक्का- नेक इरादा ही तो 

हर मुश्किल को सरल बनाता ।

 ✍️ओंकार सिंह 'ओंकार'

1-बी-241 बुद्धि विहार ,मझोला,

मुरादाबाद(उत्तर प्रदेश) 244103 

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कापी ,पेंसिल ,चाक , सिलेट कभी हथियार थे हमारे ,

हम भी कभी "राजा" थे  दीपू, मुन्ना की सेना के सहारे 

सेना के "राजा" रोज बदल दिए जाते थे ,

कभी "राजा" तो कभी "सैनिक" हम बन जाते थे ,

लडाई  मे बाल खींचकर  पेंसिल की नोक हम चुभाते थे,

अगले दिन फिर रूठे मिञो को हम मनाते थे ,

चिंता मुक्त खेलना कूदना तो रोज का काम था ,

घर पहुँचकर न पूछो बस आराम ही आराम था ,

याद कर इन मीठी यादों को "बचपन" में खो जाता हूँ ,

बदल चुके परिवेश में खुद को बहुत अकेला पाता हूँ ,

लौट नहीं सकता वो "बचपन" , बीत गया सो बीत गया ,

जंग लड़ो अब जीवन की तुम , लड़ा वही जंग जीत गया ।

✍️विवेक आहूजा 

बिलारी 

जिला मुरादाबाद

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 9410416986

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आजा प्यारी गौरैया हम तुझको नहीं सतायेंगे।

दाने डाल टोकरी में अब तुझको नहीं फँसायेंगे।

छत पर दाना पानी रखकर हम पीछे हो जाएंगे।

छोटे छोटे घर भी तेरे फिर से नए बनाएंगे।

आजा प्यारी गौरेया अब तुझको नहीं सतायेंगे।।


हुई ख़ता क्या नन्हीं चिड़िया जो तू हमसे रूठ गयी।

या तू जाकर दूर देश में अपना रस्ता भूल गयी।

एक बार तू लौट तो आ हम सच्ची प्रीत निभाएंगे।

दूर से तुझको देख देखकर अब हम खुश हो जाएंगे।

आजा प्यारी गौरेया हम तुझको नहीं सतायेंगे।।


चीं चीं करती छोटी चिड़िया याद बहुत तू आती है।

जब कोई तस्वीर किताबों में तेरी दिख जाती है।

एक बार तू बापस आ हम फिर से रंग जमाएंगे।

सुंदर सी तस्वीर तेरी हम फिरसे नई बनाएंगे।

आजा प्यारी गौरेया हम तुझको नहीं सतायेंगे।।

✍️नृपेंद्र शर्मा "सागर"

ठाकुरद्वारा 

मुरादाबाद 

उत्तर प्रदेश, भारत 

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चूहे खाये बिल्ली रानी। 

आखिर कब तक यही कहानी।। 


बहुत सह चुके अब न सहेंगे ,

बिल्ली तेरी ये मन मानी।।


हम चूहों को खा-खा कर तुम ,

खुद को समझी ज्ञानी ध्यानी।। 


शक्ति एकता में है कितनी ,

बात न अब तक तुमने जानी।।


ख़ूब भगा कर मारेंगे हम, 

याद करा देंगे फिर नानी।।


छोड़ो खाना चूहे अब तुम ,

ढूंढो दूजा दाना पानी।।


✍️प्रो. ममता सिंह

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत 

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किया पराजित घने घनों को ,

छायी धूप सुहानी ।

तरसाने की बारिश ने थी,

मानों मन में ठानी ।।


पर सूरज जी के सामने,

चली नहीं मन मानी ।

गये घने घन घर हैं अपने , 

पहने चूनर धानी ।।


ॠतु शरद की बारी आयी , 

चमन फूल लायेगी ।

रंग बिरंगी क्यारी में ,

ठंड गुलाबी भायेगी ।।


✍️डाॅ. रीता सिंह 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत 

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ले आता मैं चाँद जमीं पर

लेकिन  अभी मैं छोटा हूं।

वैसे मैं  जिद्द का हूं पक्का,

पर कर लेता समझौता हूं।।


मूझे कोई कम न समझना

सब कहें 'सिक्का खोटा'हूं।

पल में इधर , पल में उधर,

बस मैं 'बेपेंदी का लोटा' हूं।।


सबसे मैं  लड़-भिड़ जाता ,

डर नहीं लगे-कि छोटा  हूं।

बच्चे  मुझसे भय खा भागें ,

क्योंकि कुछ तगडा़ मोटा हूं।।


छोड़ मुझे सब दावत खाते

मैं घर पहन खडा़ लंगोटा हूं ।

गोदी  उठा न  कोई  मनावे

अपने आंगन लोटा-पोटा हूं।।


कान्हा बाल-गोविंद बताओ,

क्या लगता  इतना मोटा  हूं ।

दस-दस रोटी सुबह शाम खा

दो लोटे दूध ही पीके सोता हूं।।

✍️धनसिंह 'धनेन्द्र'

चन्द्र नगर

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत 

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 बोली से पहचानो बच्चों

कौन  आपके  पास  खड़ा

कौन  देह  में  छोटा तुमसे

बोलो   तुमसे   कौन  बड़ा  ।


बड़े ध्यान से सुनो बताओ

बच्चों स्वर यह किसका है

इंदु  बोली   दीदी   यह  तो

गौरैया   के  स्वर    सा   है।


कांवकांव की बोली कर्कश

कौन   सुनाता   है   तुमको

बोला  चीनू    मुंडेरों     पर

दिखते   हैं    कौए   हमको।


कानों  को  चौकन्ना  करके

म्याऊँ    कौन   बोलता   है

गुड़िया बोली नन्हा बिल्ला

अपनी   पोल   खोलता है।


कोई  बतलाए  कुकड़ू   कूँ

करके   कौन   जगाता   है

मुर्गे का  स्वर ही  तो  दीदी

निंदिया   दूर    भगाता  है।


ऐसे  ही  अनेक  जीवों  के

स्वर    बच्चों   ने  पहचाने

घूम-घूमकर चिड़ियाघर में

लगे  सभी को  सिखलाने।


हैं  सबकी आँखों  के  तारे

सारे    ये     बच्चे      प्यारे 

यही  देश  के   कर्णधार  हैं

सही   स्वरों   के    रखवारे।

✍️वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 9719275453

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देखो बच्चों कितनी न्यारी ?

दुनिया कितनी प्यारी प्यारी?


नभ में ऊंचे पंछी उड़ते ,

किन्तु झुंड में वे ही जुड़ते ।

जो हैं एक से पंखों वाले,

करतब उनके बड़े निराले।

अजब प्रभु की माया सारी,

दुनिया कितनी प्यारी प्यारी?


उसका कितना अद्भुत खेला

जंगल में पशुओं का मेला।

नाना जाति विविध प्रकार,

भालू ,चीते, हिरन, सियार।

लौमड़ी, बन्दर हाथी भारी

दुनिया कितनी प्यारी प्यारी?


नदियां ,झरने, झील, तालाब,

बर्षा में जल राशि बहाव।

जल जीवों से भरे समंदर,

शार्क,ह्वेल,मछली जल अंदर,

कितने करें शिकार शिकारी।

दुनिया कितनी प्यारी प्यारी?


धरती पर फैली हरियाली,

पत्ती-पत्ती डाली डाली।

वियावान जंगल का शोर,

जिसका कोई ओर न छोर।

आक्सीजन दें हरें बिमारी,

दुनिया कितनी प्यारी प्यारी?


सदा रखो सुन्दर व्यवहार,

कभी नहीं तू हिम्मत हार।

धरती का बस यही आवरण।

कहलाता है पर्यावरण।

कर्म करो जो हो सुखकारी।

दुनिया कितनी प्यारी प्यारी?


✍️अशोक विद्रोही

412 प्रकाश नगर

मुरादाबाद 244001

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रंग बिरंगे पंखों वाली,तितली बोली बड़ी निराली

आओ बच्चों मेरे साथ, बहुत रंग हैं मेरे पास ॥


बच्चे बोले तितली रानी ,पंख हमें भी लाओ ना

रंग बिरंगे बाग बगीचे,हमको भी दिखलाओ ना ॥


सपने में भी अब तो हमको ,दिखती तितली रानी

परियों जैसी करते मस्ती और करते मनमानी ।


मन करता है कभी-कभी, कि मैं पक्षी बन जाऊँ 

अपने पंख पसारुँ मैं और नभ में उड़ जाऊँ ॥


रंग बिरगे पंखों वाली,तितली सा लहराऊँ

इतनी सुंदर मेरी सहेली, मन ही मन इठलाऊँ ॥


✍️विनीता चौरासिया

शाहजहाँपुर 

उत्तर प्रदेश, भारत 

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