मंगलवार, 12 मई 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ ममता सिंह की गजल---- कभी दिल में मेरे उतर कर तो देखो


मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ पूनम बंसल का गीत


मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी की रचना


मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल निवासी साहित्यकार डॉ अलका अग्रवाल की कविता -- कोरोना, आखिर कौन हो तुम


मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर निवासी साहित्यकार रचना शास्त्री की कविता


मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की गजल


मुरादाबाद मंडल की जनपद अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा की कविता ---- संबंधों का जादू


मुरादाबाद की साहित्यकार धारणा मेहरोत्रा की कविता

https://youtu.be/y5faSHxbbjs

मुरादाबाद की साहित्यकार पूनम गुप्ता की कविता



मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल (वर्तमान में मेरठ निवासी) के साहित्यकार सूर्यकांत द्विवेदी की कविता--- मां


सबकी आंखों में
सबकी रातों में
आज माँ होगी
सामने हक़ीक़त..
कलम- कागज़ पर
उसकी इबारत होगी।।
कवि उपमाओं में
कोई तुलिकाओं में
तोलेंगें/ सजायेंगे..।।

माँ
शब्द सागर में
हिलोरें भरेगी
मुन्ने की कॉपी
में टास्क बनेगी
प्रतियोगिता होगी
माँ.. माँ ...माँ
किसकी माँ
सर्वश्रेष्ठ...!!

आज अल्फाजों में
अश्क ओ रश्क होंगे
भीगी हुई आँखों से
भीगी कलम होगी।

*जानती हो माँ...*
आज तुम्हारी
आरती होगी
महिमा होगी
जयकार होगी।
शंखनाद होगा
यशोगान होगा।।

*चित्र-1*
तुम एक कमरे में..
तन्हा खाट पर होगी
कविता आसमान से
पृष्ठ उतर रही होगी।।

*चित्र 2*
तुम अब नहीं हो मगर..
आज आओगी..पता है
सूरज/ चंदा/ तारे बन
मुझे जिताने आओगी।।

*चित्र-3*
लिखने के बाद मैं
आश्रम गया था.. याद है
तुमको कविताएं सुनाई थी
तुम देखती रहीं थीं मुझ को
अपलक..अनवरत..अनथक।

मैं कुछ देकर घर लौट आया
माँ सोचती रह गई.. अरे यह
कौन सा त्यौहार आ गया..??

इतना बड़ा हो गया.....
बचपना नहीं गया.... !!

✍️ सूर्यकांत द्विवेदी

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की रचना


मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल निवासी साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा की रचना


मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी का गीत ----मां ने लहु पिलाकर अपना तुमको जीवनदान दिया है


मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता की गजल


मुरादाबाद की साहित्यकार इंदु रानी की रचना


मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की रचना


सोमवार, 11 मई 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार कंचन खन्ना, डॉ मीरा कश्यप और ओंकार सिंह ओंकार की रचनाएं




मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार मुजाहिद चौधरी की रचना ---- गंगा जैसी मृदुल निर्मल सावन लगती है मां सुंदर लगती है सबसे पावन लगती है


मुरादाबाद के साहित्यकार अनुराग रोहिला की रचना


मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रामकिशोर वर्मा की रचना ---- मां


मांँ
आता
हैं मेरे
मन जब
दुख हो कोई
देखूंँ तो लगता
ये छूमंतर होई ।

मांँ
सच
की मैंने
मनमानी
अब लगता
नहीं करनी थी
थी केवल नादानी ।

माँ
नहीं
है अब
तब लगे
कुछ ग़लत
न कदम पड़ें
सच्चे रस्ते ही चलें ।

मांँ
तेरे
अनेक
लगें रूप
जननी भी तू
जन्म-भूमि भी तू
जगजननी भी तू ।

मांँ
कोई
सी भी हो
भले ही वो
पशु-पक्षी हों
ममता सभी में
समान पायी जाती ।

मांँ
से ही
संसार
चलाती है
वो परिवार
तभी तो हुई है
उसकी जयकार ।

_राम किशोर वर्मा_
   जयपुर (राजस्थान)
दिनांक :- 10-05-2020

मुरादाबाद की साहित्यकार इला सागर रस्तोगी की कविता------ ईश्वर का वरदान है मां


ममता और वात्सल्य की
पवित्र दिव्य मूरत
अपनी संतान के लिए
माँ है सबसे खूबसूरत ।
प्रेम, स्नेह से परिपूर्ण,
ईश्वर की कृत सर्वश्रेष्ठ रचना
सर्वप्रथम गुरुकुल,
सर्वप्रथम गुरु,
माँ है हर कार्य में निपुण।
माँ सा समर्पण संभव नहीं
संतान के लिए ही जीती माँ
त्याग माँ के समान
कोई कर सकता नहीं।
सर्वशक्तिशाली माँ खड़ी विरुद्ध
ढ़ाल बन संतान की ओर
आती हर मुश्किलों के ।
माँ तो है वो पावन धरा
जो खुद होकर बंजर
करती सर्वश्रेष्ठ पोषण
प्रत्येक संतान का।
मार्गदर्शन करती संतान का
एक सफल जीवन की ओर ।
कच्ची मिट्टी सी संतान को
देती रूप एक भले मानव का ।
माँ की व्याख्या कर सके
ताकत नहीं किसी कलम में ।
जीवन की तपिश में
अपनी शीतल छाया देती माँ।
मेरे सर्वस्व की पहचान है माँ
ईश्वर का वरदान है माँ।

 ✍️  इला सागर रस्तोगी
मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश

मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल का गीत-----यदा कदा होता रहता है, माँ तेरा अहसास।


लगता है तुम यहीं कहीं हो, छिपी हमारे पास।
यदा कदा होता रहता है, माँ तेरा अहसास।

तुमने ही जन्म दिया मुझको, जब आँख खुली तुमको पाया
पहला स्पर्श तुम्हारा था, तुमसे ही संरक्षण पाया
तेरे आँचल का माँ अब भी, होता है आभास
यदा कदा होता रहता है, माँ तेरा अहसास।

जीवन का पहला पाठ मुझे, तुमने ही तो बतलाया था
ठोकर खाना गिरना उठना, उठकर चलना सिखलाया था
तेरी उँगली हरदम रहती, थी मेरे ही पास
यदा कदा होता रहता है, माँ तेरा अहसास।

खुद आधी रोटी खाती थी, हमको भरपेट खिलाती थी
घर के खर्चों से बचा बचा, सबको कपड़े सिलवाती थी
मेरे वजूद में दिखता है माँ,  तेरा ही विश्वास
यदा कदा होता रहता है, माँ तेरा अहसास।

अब तो अम्मा तुम बस मेरे, सपनों में ही आती हो
बस यादों में ही आकर तुम,  मुझको बड़ा रुलाती हो
काश स्वप्न सच्चे हो सकते, रहे ह्दय मे आस
यदा कदा होता रहता है, माँ तेरा अहसास।

मुझसे ज्यादा बहू तुम्हारी, याद तुम्हें अब करती है
तुम जैसा ही प्यार आज, अपनी बहुओं को देती है
पदचिन्हों पर चले तुम्हारे, बन बैठी है सास
यदा कदा होता रहता है, माँ तेरा अहसास।

श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर के दोहे -----


मुरादाबाद की साहित्यकार रश्मि प्रभाकर का गीत ----- मां शब्द है इतना विस्तृत जो खुद में ब्रह्मांड समेटे है


🎤✍️ रश्मि प्रभाकर
10/184 फेज़ 2, बुद्धि विहार, आवास विकास, मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
फोन नं. 9897548736

मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ला के दो दोहे


मुरादाबाद के साहित्यकार अखिलेश वर्मा की ग़ज़ल ----- है पिता चांद चांदनी है मां


मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की रचना ------ उसकी महानता है वह अपनी मां को मां मानता है


मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ रीता सिंह की रचना ------ मां तो बस मां होती है


मुरादाबाद की साहित्यकार मोनिका शर्मा मासूम की गजल----


मुरादाबाद की साहित्यकार प्रीति अग्रवाल की रचना


मुरादाबाद की साहित्यकार स्वदेश सिंह की रचना----


मुरादाबाद की साहित्यकार मंगलेश लता यादव की रचना ------ मैं मां का कर्ज चुकाऊं प्रभु


मुरादाबाद के साहित्यकार मनोज कुमार मनु की रचना ----


मुरादाबाद की साहित्यकार कंचनलता पांडेय की रचना


मुरादाबाद की साहित्यकार आयुषी अग्रवाल की रचना--- वो मां ही होती है जो सीने से लगाती है


रविवार, 10 मई 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रेमवती उपाध्याय का गीत ----- प्यार सभी का स्वार्थ निहित है मां का प्यार अपरिमित होता


मुरादाबाद के साहित्यकार शिशुपाल सिंह मधुकर का गीत ---औरों की सुन - देख देखकर मैंने तो माँ को है जाना


मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट का गीत ----मक्खन पंख रुई सा कोमल है मां का एहसास


मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की रचना--- सौ कष्ट सहकर मां तू दुनिया में मुझको लाई


मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर निवासी साहित्यकार डॉ अनिल शर्मा अनिल की रचना ----- मां तो केवल मां होती है


मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की कविता ------ मां


  जाड़ों की गुनगुनी धूप
  जेष्ठ की गर्मी में शीतल हवा
  सावन में भीनी भीनी फुहार
  संस्कृति की आदर्श
  आशाओं की उत्कर्ष
  मान -सम्मान से भरपूर
  कुरीतियों से बहुत दूर
  संस्कृति का वृहद आकार
  आँखों में पढ़ने को अखबार
  सेवा भाव में एक मिसाल
  खुली खिड़की सा दिल
  इरादों में बरगद
  संस्कारों में बेमिसाल
  श्रेष्ठता में सर्व श्रेष्ठ
  आशीषों की पोटली
  कर्तव्यनिष्ठ प्रतिमा ।
  अनोखी निराली थीं
   माँ ।
  ✍️अशोक विश्नोई

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की रचना ---- मां की कर लो वंदना मां का कर लो ध्यान


मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी ओंकार सिंह विवेक की ग़ज़ल


मुरादाबाद के साहित्यकार राशिद मुरादाबादी की ग़ज़ल ------- दुनिया में हमको जीना सिखाती है माँ,


ममता और प्यार इस तरह दिखाती है माँ,
तड़प कर बच्चों को सीने से लगाती है माँ,

ख़ुद सोती है कांटों भरी सेज पर ख़ुशी से,
बच्चों को मख़मल के बिस्तर पे सुलाती है माँ,

गर्दिश-ए-ज़िन्दगी के सफ़र की तेज़ धूप में,
सब्र-ओ-सुकूँ का ठंडा साया बन जाती है माँ,

हमारे वजूद पर लिखके ज़िन्दगी के उसूल,
दुनिया में हमको जीना सिखाती है माँ,

आती हैं जब भी मुश्किलें उसके बच्चों पर,
चट्टान सी बनकर सामने खड़ी हो जाती है माँ,

पालती है नौ महीने अपनी कोख में हमें,
इसीलियें ईश्वर का रूप कहलाती है माँ

माँ की कमी का एहसास कोई पूँछे उनसे,
जिनकी दुनिया से जल्दी चली जाती है माँ,

*राशिद मुरादाबादी

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार विपिन शर्मा का मुक्तक ---- मां के आंचल तले ये दुनिया चंदन वन सी लगती है


🎤✍️ विपिन कुमार शर्मा
 सीआरपीएफ गेट 3, ज्वालानगर
रामपुर
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9719046900
9458830001

मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेंद्र शर्मा सागर की रचना ---- जन्म देती है पालती है कष्ट सहती है, रहे हर हाल में हंसती वह मां होती है


मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की कविता------ बलिदान मजदूरों का.....


इधर सरकार
पृथकता और स्वच्छता का पाठ पढ़ाती रही
घर के अंदर रहना
और बार बार हाथ धोना सिखाती रही
सनिटाइज करती रही
शहर का कोना कोना
उधर कुछ मजदूरों को पड़ गया
जीवन से हाथ धोना
वे मजदूर थे
घर से,परिवार से बहुत दूर थे
भूख प्यास और भविष्य की चिंता से
उनकी हड्डियां हिल रही थीं
सहायता और सहानुभूति
सिर्फ कागजों पर मिल रही थीं
पारिवारिक मोह में
वे इतना अधिक मगरूर हो गए
पास आने को निकले थे
हमेशा के लिए दूर हो गए
चाहते थे,बिखरते जीवन को
पटरी पर लाना
नहीं जानते थे
बन जाएगा वो अंतिम ठिकाना
उनका ये बलिदान
व्यर्थ नहीं जाना चाहिए
हम सबको मिलकर
उनके,और सही अर्थों में अपने
अस्तित्व को बचाना चाहिए

 ✍️ डॉ पुनीत कुमार
T-2/505, आकाश रेसीडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
कांठ रोड,मुरादाबाद -244001
M -9837189600

मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर निवासी डॉ अशोक रस्तोगी का गीत ------ममता का अमूल्य उपहार है मां !! वात्सल्य की अजस्र जलधार है मां !!


ममता का  अमूल्य उपहार है मां !!
वात्सल्य की अजस्र जलधार है मां !!

खुद पीड़ा सहकर मां,पीड़ा से बचाती है !
दिन रात जागकर मां,बेटे को सुलाती है !
आंख मूंद ले लाल,सपनों में खो जा रे लाल ,
खुद  थककर  भी  मां ,लोरियाँ सुनाती है !

जीवन है, अमृत की रसधार है मां !!
ममता का  अमूल्य उपहार है मां !!

जब बाहर जाता हूँ, मां चिंतित रहती है !
हर आहट पर उठती, दरवाजा तकती है !
सबसे पूछती है, आया क्यों नहीं अब तक ?
जब तक न लौटूं घर,मां जागती मिलती है !

भीगी आंखों का,अधीर इंतज़ार है मां !!
ममता  का  अमूल्य  उपहार    है मां !!

जब तक नहीं खाता मैं, वह भूखी रहती है !
सूखी आंतों में वह ,इतनी ताकत रखती है !
खुद सूखा खाती है, मुझे घी दूध पिलाती है !
खुद आंसू पीती है,पर मुझको हंसाती है !

हर्ष और उल्लास का,एक संसार है मां !!
ममता   का  अमूल्य   उपहार   है   मां !!

प्रेम और अनुराग, मां का आंचल देता है !
धूप और छांव का,सुखद अहसास देता है !
धरती  सा धैर्य, स्वर्ग  सा आकाश देता है !
तिमिर से  पूरित  मन को, प्रकाश देता है !

नेह और करुणा का,अमित भंडार है मां !!
ममता    का   अमूल्य   उपहार   है  मां !!

✍️डा.अशोक रस्तोगी.
अफजलगढ़. बिजनौर.
मो.9411012038/8077945148

शनिवार, 9 मई 2020

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हस्ताक्षर की ओर से आज शनिवार 9 मई 2020 को मातृ दिवस की पूर्व संध्या पर ऑनलाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। "मां" को समर्पित इस काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता यश भारती माहेश्वर तिवारी जी ने की तथा संचालन राजीव प्रखर ने किया। गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों यश भारती माहेश्वर तिवारी जी, डॉ अजय अनुपम, डॉ मक्खन मुरादाबादी, डॉ मीना नकवी, डॉ प्रेमवती उपाध्याय, वीरेंद्र सिंह बृजवासी, डॉ मनोज रस्तोगी, योगेंद्र वर्मा व्योम, डॉ पूनम बंसल, जिया जमीर, ओंकार सिंह विवेक, श्री कृष्ण शुक्ल, अखिलेश वर्मा, मनोज मनु, डॉ अर्चना गुप्ता, अंकित गुप्ता अंक, राजीव प्रखर , हेमा तिवारी भट्ट, मोनिका मासूम, मयंक शर्मा, मीनाक्षी ठाकुर और डॉ ममता सिंह द्वारा प्रस्तुत रचनाएं------



रोटियां बनाती है माँ
बेटों के लिए कुछ नए सपने
आँच में पकाती है माँ

सपने जो सूरज हैं
कल की आज़ादी हैं
सपने जो खुशियों के
बोल हैं, मुनादी हैं
चूल्हे के पास बैठकर घंटों
उनको दुलराती है माँ

सपने जो वंशज हैं
सुलगते पसीने के
तौर-तरीके सिखलाती
उसको जीने के
आँखों से धुँए को ढकेलती
सपनों को गाती है माँ

माँ के सपने आकर
बेटों की आँखों में
हरापन जगाते हैं
मुरझाई शाखों में
सपनों को पाल-पोसकर
अपनी झुर्रियाँ घटाती है माँ

✍️ माहेश्वर तिवारी
मुरादाबाद 244001
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मां सुख का नादानुनाद है
मां परमेश्वर का प्रसाद है

वह शुचिता का शंखनाद है
शुभ संकल्पित साधुवाद है
करुणा कृपा दया से दीपित
मां परमेश्वर का प्रसाद है

प्रीति सुपावन निर्विवाद है
शुभता का भावानुवाद है
महाकाव्य है वह जीवन का
मां परमेश्वर का प्रसाद है

अमृत का अविकल्प स्वाद है
ममता का मधुमय निनाद है
अनहद है जिसकी लोरी में
मां परमेश्वर का प्रसाद है

✍️ डॉ अजय अनुपम
मुरादाबाद 244001
मोबाइल फोन नंबर 9761302577
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एक
-------
पिता पर
कविता लिखना
सहज नहीं है
दुर्लभ  बहुत  है ,
भले ही
पिता को जीने
और पिता होने का
अनुभव बहुत है ।
मां कृपा से
जब हुए कुछ शब्द
पिता को कहने में ,
बड़ी विवशताएं
दीखीं उस क्षण
पिता सा  रहने में ।
फिर भी हुई
कविता पिता पर
तो मां ,
मन ही मन मुस्काई ,
बोली-
' बहुत सुन्दर,
बहुत ही अच्छी है
ऐसी एक कविता
मुझ पर भी             
लिख दे मेरे कन्हाई ।'
मैं बोला -
' मां ! सुन , समझ ले
मुझ बेटे ने
जब - जब ,तुझ पर
लिखना चाहा
बस लाचार दिखा है ,
मैं उस पर
क्या लिक्खूंगा  मां
जिसने
मुझको संपूर्ण लिखा है।।
       
 --------
    दो
  ====
किस दुनिया में पहुंची मां ।
प्यारी  -  प्यारी    मेरी मां ।।
पड़ी  दूध  में  रहती   थी ,
सदा  बताशे    जैसी  मां ।।
उपवन सब   बेकार लगे ,
जब फूलों सी खिलती मां।।
लाल देख कर जेठ तपा ,
आंसू - आंसू   बरसी मां ।।
मेरी  भूल , दिखावे   को ,
बादल जैसी  तड़की मां ।।
लगी सदा थी खिचड़ी में,
देसी  घी  के  जैसी   मां ।।
मैंने भी कविता लिक्खी ,
लिखवाने  वाली भी मां ।।

  ✍️ डॉ. मक्खन मुरादाबादी
मुरादाबाद 244001 
------------------------------------------------- -  -----

एक गीत का अंश 

माँ..!!
तुझे सलाम

दुख सह कर भी सुख देती है जो अपनी संतान को।
माँ के रूप में पाया मैंने भगवन के वरदान को।।

काँटा मुझ को लग जाने से पीड़ा माँ को होती है।
मुझ को सूखा बिस्तर दे कर ख़ुद गीले में सोती है।
देव रिषि तक नत मस्तक रहते हैं जिस के मान को।
माँ के रूप में पाया मैंने भगवन के वरदान को।।

जाग के रातों को लिखती है मेरे भाल पे उज्यारा।
जिस को सारे जग में लगता केवल रूप मेरा प्यारा।
अपनी जान से प्यारा समझा जिस ने मेरी जान को।
माँ के रूप में पाया मैंने भगवन के वरदान को।।

मीठी झिड़की दे कर, जो मुख मेरा देखा करती है।
भाव मेरे चेहरे के पढ़ कर, मन ही मन फ़िर डरती है।
दुलरा कर, बहला कर पाला जिस ने मुझ नादान को।
माँ के रूप में पाया मैने भगवन के वरदान को।।
    
✍️डा. मीना नक़वी
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प्यार सभी का स्वार्थ निहित है,
मां का प्यार अपरिमित होता।

मां का बस चलता तो चन्दा,
नभ से धरती पर ले आती।
अनगिन तारागण वह अपने,
सुत की झंगुली में टकवाती।

     पाने को ममता माता की, 
     ईश्वर भी लालायित होता ।।

सुत की पीड़ा आभासित कर,
व्यकुल हो जाता मां का मन।
व्याकुल बालक की माता का,
अन्तस् करने लगता क्रन्दन।

   हर पल-क्षण सुख पहुंचाने को ,
   माँ का मन उत्साहित होता।।

निज माँ का मान बढ़ाने को ,
बंध गए ओखली से कृष्णा।
मैया-मैया कहते-कहते ,
कान्हा की थकी नहीं रसना।

   निकष परम शुचिता-ममता का,
   माँ से सदा प्रमाणित होता।।

प्यार सभी का स्वार्थनिहित है,
माँ का प्यार अपरमित होता।

✍️डॉ प्रेमवती उपाध्याय
मुरादाबाद244001
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       जिसने  मेरा  अंकुर   पाला
      नौ माह तक  मुझे  संभाला
      धरती पर  लाकर  माता  ने
      जीवन रसको मुख में डाला
      मैं प्यारी  माँ  के  चरणों  में
      बारम्बार  नमन   करता  हूँ।

      दुविधाओं  से  मुझे  बचाया
      सुविधाओं  का  ढेर  लगाया
      मेरी   नींदों    को   सहलाने
      माँ  ने   गीत  सलोना  गाया
      मैं न्यारी  माँ  के  चरणों  में
      बारम्बार  नमन   करता  हूँ।

      सब पर ही  ममता बरसाती
      संतानों  पर   जान   लुटाती
      लिंग  भेद  करने  वालों  पर
      नहीं ज़रा भी रहम  दिखाती
      मैं सुखकारी  माँ  चरणों  में
      बारम्बार   नमन   करता  हूँ।

       तेरे    आशीषों    से   माता
       जीवनका हर पल मुस्काया
       प्रथम गुरू बनकर  माँ  तूने
       भाषाओं  का  ज्ञान  कराया
       मैं हितकारी  माँ  चरणों  में
       बारम्बार  नमन   करता  हूँ।

       तेरी   मुस्कानों   पर  माता
       सकल  देव जाते बलिहारी
       तेरी  गोदी   में   आने   को
       बन जाते  बालक अवतारी
        मैं  जगतारी माँ  चरणों में
        बारम्बार  नमन  करता हूँ।
         
             ✍️  वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
                  मुरादाबाद/उ,प्र,
                  मोबाइल फोन 9719275453
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       चरणों में तेरे मां, यह सिर हमेशा झुका रहे ।
प्रभु देना ऐसा वर, आशीष मां का सदा रहे।
करूं न कभी तिरस्कार, न करूं कभी अपमान।
करूं दिन रात सेवा, यह भाव मन में भरा रहे।

   ✍️डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822
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माँ का होना मतलब
दुनियाभर का होना है

तकलीफ़ें सहकर भी
सारे फ़र्ज़ निभाती है
उफ़ तक करती नहीं
हमेशा ही मुस्काती है
उसका मकसद घर-आँगन में
खुशबू बोना है

अँधियारों में से उजलेपन
को ही चुनती है
हर पल आने वाले कल के
सपने बुनती है
बच्चों का जीवन ही
उसका असली सोना है

जीवन की संध्या में
उसको कष्ट न कोई हो
ध्यान रहे उसकी अभिलाषा
नष्ट न कोई हो
माँ को खोना मतलब
दुनियाभर को खोना है

✍️योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'
मुरादाबाद 244001
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जीवन के तपते मरुथल में माँ गंगा की धार है 
अनसुलझे प्रश्नों के उत्तर माँ गीता का सार है 

थके कदम जब भी राहों में सदा मिले उसका सम्बल 
सपने भी मंज़िल पर जाते सर पर हो माँ का आँचल 
जागी आँखों की लोरी माँ थपकी और दुलार है 

संस्कार है देने वाली बच्चों की खातिर जीती 
त्याग और ममता की मूरत बाँट ख़ुशी आंसू पीती 
सारे तीरथ इसमें बसते ईश रूप साकार है 

सूर्य बनी माथे की बिंदिया पायल करे मधुर छन छन 
पल्लू में चाबी का गुच्छा चूड़ी करती है खन  खन 
उसकी खुशबू हर कोने में माँ घर का श्रृंगार है 

          ✍️  डॉ पूनम बंसल 
                 मुरादाबाद 244001
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घुटनों  की  पीड़ा  में   जाग  के   सोने   वाली  मां
इंसूलिन   की   गोली   से  खुश   होने   वाली  मां
सिलवटी  हाथों  से  कपड़ों  को  धोने   वाली  मां
पापा  की  इक  डांट  से  घुट  कर  रोने  वाली मां
बच्चों  से  छिप-छिप  कर  रोना  कैसा  होता   है
मां  हो  तुम  और  मां   का  होना  ऐसा  होता  है

पापा   की    इंटेलीजेंसी   तुम    पर    भारी    है
लेकिन  तुमने   प्रेम  की  गंगा   घर  में  उतारी  है
बांधना  घर  को  इक  धागे  में  कितना  भारी  है
इसमें   तुम्हारी   सिर्फ़ तुम्हारी   ही   हुशियारी  है
तुमको    है   मालूम    पिरोना   कैसा    होता   है
मां  हो  तुम  और  मां   का  होना  ऐसा  होता  है

दकियानूसी  कहकर  बिटिया  तुम  पर  हंसती है
'तुमको नहीं मालूम' की फबती तुम पर कसती है
'सीधी औरत'  की  उपमा  भी  तुम को  डसती है
और  तुम्हारी  इस  घर  में  ही  दुनिया  बसती  है
छत   दीवारें    कोना  -  कोना   कैसा   होता   है
मां  हो  तुम  और  मां  का   होना  ऐसा  होता  है

छोटी  सी  तनख़्वाह  में  कैसे करने  हैं सब काम
कभी नहीं  मिलता है  तुमको  मेहनत  का इना'म
और  नहीं  होता  है  जग  में  कभी तुम्हारा  नाम
धरती  मां  के  जैसे  तुम  भी  करती नहीं आराम
तुमको  क्या  मालूम  कि  सोना  कैसा   होता  है
मां  हो  तुम  और   मां   का  होना  ऐसा  होता है

✍️जिया ज़मीर
मुरादाबाद 244001
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दूर  रंजो  अलम  और  सदमात  हैं,
माँ है तो ख़ुशनुमा घर के हालात हैं

दुख ही दुख वो उठाती है सबके लिए,
माँ के हिस्से में कब सुख के लम्हात हैं।

कोई मुश्किल न होगी सफ़र में मुझे,
माँ के जब तक दुआ में उठे हाथ हैं।

सब फ़क़त माँ के दिल को दुखाते रहे,
यह न सोचा कि उसके भी  जज़्बात हैं।

लौट भी  आ  तू  अब  लाल परदेस से,
माँ के दहलीज़ पर नैन दिन रात हैं।

क्यों न महफ़ूज़ मैं हर  बला से रहूँ,
"मेरी  माँ  की  दुआएँ  मेरे साथ हैं।"

              ✍️ओंकार सिंह विवेक
                      रामपुर
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दोहे:

छप्पन व्यंजन भी मुझे, लगते हैं बेस्वाद।
माँ, जब तेरे हाथ की, रोटी आती याद।।

संकट में जब भी घिरा, आया मुश्किल दौर।
माँ के आँचल के सिवा, मिला न कोई ठौर।।
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गीत :
लगता है तुम यहीं कहीं हो, छिपी हमारे पास।
यदा कदा होता रहता है, माँ तेरा अहसास।

तुमने ही जन्म दिया मुझको, जब आँख खुली तुमको पाया
पहला स्पर्श तुम्हारा था, तुमसे ही संरक्षण पाया
तेरे आँचल का माँ अब भी, होता है आभास
यदा कदा होता रहता है, माँ तेरा अहसास।

जीवन का पहला पाठ मुझे, तुमने ही तो बतलाया था
ठोकर खाना गिरना उठना, उठकर चलना सिखलाया
था
तेरी उँगली हरदम रहती, थी मेरे ही पास
यदा कदा होता रहता है, माँ तेरा अहसास।

खुद आधी रोटी खाती थी, हमको भरपेट खिलाती थी
घर के खर्चों से बचा बचा, सबको कपड़े सिलवाती थी
मेरे वजूद में दिखता है माँ,  तेरा ही विश्वास
यदा कदा होता रहता है, माँ तेरा अहसास।

अब तो अम्मा तुम बस मेरे, सपनों में ही आती हो
बस यादों में ही आकर तुम,  मुझको बड़ा रुलाती हो
काश स्वप्न सच्चे हो सकते, रहे ह्दय मे आस
यदा कदा होता रहता है, माँ तेरा अहसास।

मुझसे ज्यादा बहू तुम्हारी, याद तुम्हें अब करती है
तुम जैसा ही प्यार आज, अपनी बहुओं को देती है
पदचिन्हों पर चले तुम्हारे, बन बैठी है सास
यदा कदा होता रहता है, माँ तेरा अहसास।

✍️श्री कृष्ण शुक्ल
 मुरादाबाद 244001
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ज़िंदगी है माँ सभी की और ये संसार माँ
प्यार है दुनिया में ग़र तो प्यार का आधार माँ ।

चक्की चूल्हा भाईयों ने कर लिया अपना अलग
पर उसी चक्की में गेहूँ सी पिसी हर बार माँ ।

माँ ने ही परिवार की बगिया सजाई इस तरह
फूल है बच्चों की ख़ातिर दुश्मनों को खार माँ ।

जब भी मैं होता परेशां हाथ सर पर फेरती
जान लेती हाल दिल का देख के इक बार माँ ।

सब बिखर जाएँ न ..चाचा ताऊ भाई औ'र बहन
जोड़कर रक्खे जो सबको ऐसा है किरदार माँ ।

✍️अखिलेश वर्मा
  चन्द्र भवन 
  एम आई जी - 26
  रामगंगा विहार द्वितीय (विस्तार)
   मुरादाबाद-244001
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मां का दामन खजाना दुआ का,
माँ के क़दमों में नेअमत है सारी,,
क़र्ज़  इस का   चुका ना   सकेंगे,
जिंदगी  भी  फ़ना  करके  सारी,,

बात  कोई  ज़रा  आ पड़े  तो,
ढाल बन जाए औलाद की वो,
जितनी नाज़ुक है ममतामयी है,
बन भी जाती है फ़ौलाद सी वो,,

फिर ज़माने की ताक़त ही क्या है,
माँ खुदाई  पे   पड़  जाए  भारी,,
              माँ का दामन खजाना..

 साया  होते  हुए सर पे माँ  का,
 जो नहीं जानते माँ की खिदमत,
 जानिए  उनसे  रूठी   हुई   है,
 साथ रहते हुए उनकी किस्मत,

 देखने  में   लगे  ना   भले  ही,
 बेसुकूँ  उम्र   रहते   हैं   सारी,,
            माँ का दामन खजाना...

सब्र कितना दिया माँ को रब ने,
काश  होती  ख़बर  आदमी को,
जिसकी क़ुव्वत के मद्देनजर ही,
माँ का रुतबा मिला है ज़मीं को,,

अब न ग़म की गुज़ारे ये घड़ियां,
जैसे  पहले   कभी   हों   गुजारी,,
              माँ का दामन खजाना..

अपनी ममतामयी माँ के  सदके,
आओ एक शाम अर्पित करें हम,
जिनसे अस्तित्व अपना जुड़ा है,
उनको यह शाम अर्पित करें हम,,

यूं तो क्या उनको हम दे सकेंगे,
जिनके आगे है दुनिया भिखारी,,
माँ का दामन खजाना दुआ का,
माँ के कदमों में नेअमत है सारी.,,

   ✍️ मनोज वर्मा 'मनु'
मोबाइल फोन नम्बर 6397093523
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पढ़ लेती जो दिल के अंदरखाने है
बिना कहे माँ हाल हमारा जाने है

कभी नहीं छुप सकता है माँ से कुछ भी
बच्चों का हर हाव भाव पहचाने है

मीठी मीठी नींद सुलाती बच्चों को
मधुर सुनाती माँ लोरी से गाने है

बच्चों के दुख में रोती सुख में हँसती
उनको ही माँ अपनी दुनिया माने है

नहीं देखती कष्ट कभी अपने तन के
करके रहती जो माँ मन में ठाने है

रखती नहीं हिसाब कभी माँ ममता का
सुनती रहती पर बच्चों के ताने है

बच्चों के जीवन से बीन ‘अर्चना’ गम
बोती रहती माँ खुशियों के दाने है

 ✍️ डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद 244001
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चेहरे पर मुस्कान भले पीड़ा से छलनी मन
माँ ये सब कैसे करती हो

अपनी इच्छाओं का कुआँ रिक्तता से पाटा
ख़ुद रहकर निचुड़ी-सी बदली हमको जल बाँटा
सारे घर ने सदा तुम्हारा किया सिर्फ़ दोहन
तुम लेकिन घर को मरती हो

दुख जब टकराए घर से, मुँह की खाकर लौटे
चौखट पर  ज्यों टाँगे  आशीषों   के   नज़रौटे
कुशल चितेरे का हो जैसे तुमने सीखा फ़न
हर सू नए रंग भरती हो

कहो न लेकिन दर्द तुम्हें भी होता तो होगा
बाहर से हँसता दिखता दिल रोता तो होगा
सब छोड़ें जब कठिन वक़्त में आशा का दामन
कैसे तुम धीरज धरती हो

  ✍️ अंकित गुप्ता 'अंक'
मुरादाबाद 244001
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पहले तेरी वंदना, फिर आगे हरिनाम।
अम्मा तुझमें ही दिखे, मुझको तीरथ-धाम।।

घर में सुख-समृद्धि की, बहुत बड़ी पहचान।
माँ के मुख पर खिल रही,  सुन्दर सी मुस्कान।।

क्या तीरथ की कामना, कैसी धन की प्यास।
जब बैठी हो प्रेम से, अम्मा मेरे पास।।

फिर नारों के शोर में, बहुत दिनों के बाद।
मातृ-दिवस पर आ गयी, बूढ़ी माँ की याद।

✍️ राजीव 'प्रखर'
डिप्टी गंज
मुरादाबाद 244001
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मक्खन,पंख,रुई-सा कोमल,
है माँ का एहसास।
आक्सीजन वायु में जैसे,
रिश्तों में वह खास।

दो रोटी के चक्कर बाँटे,
सबको मजबूरी,
यों रहते सब आस पास में,
फिर भी है दूरी।

मीलों भी माँ रहे दूर पर,
हरदम दिल के पास।
मक्खन,पंख...

मुस्कानों का पाउडर सूखा
लेता सोख नमी,
करते दावा हम हँस हंँसकर,
कोई नहीं कमी,

माँ ढूँढ लाती पर कैसे
कोने छुपी भड़ास।
मक्खन,पंख......

बच्चों के दिल रहती चाहत,
हमजोली हो माँ।
हर कोई डांटे उसको कहकर,
तुम भोली हो माँ,

पर मुश्किल में वही बचाती
उसके नुस्खे खास।
मक्खन,पंख....

नन्हें पौधे उसने सींचे
दे के अपना रक्त।
कोमलांगी चट्टान बन गयी,
बीता मुश्किल वक्त।

देखा सख्त जड़ों के बल पर
पल्लव में उल्लास।
मक्खन, पंख......

✍हेमा तिवारी भट्ट
मुरादाबाद  244001
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हर खुशी को वो मेरे घर का पता देती है
माँ ग़मों को मेरी राहों से हटा देती है

चूम लेती है वह  जिस वक़्त मेरे माथे को
हर बुरे साये को मां धूल चटा देती है

माँ का आँचल हो तो बीमारियां सब दूर रहें
दूध के साथ वो बच्चों को शिफ़ा देती है

माँ की ममता को तरसते हैं फरिश्ते भी सदा
माँ विधाता को भी अवतार नया देती है

वो सिखा देती है "मासूम" सबक़ जीवन का
हाथ बच्चे पे कभी मां जो उठा देती है

 ✍️ मोनिका "मासूम"
मुरादाबाद 244001
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एक सुखद एहसास हो तुम।
हर सम्बन्ध में ख़ास हो तुम।।

जीवन घोर निराशा तम में।
चमकीली सी आस हो तुम।।

संघर्षों के कंटक पथ पर।
मखमल दूब की घास हो तुम।।

तुमने दी जो इस काया की।
धड़कन हो और श्वास हो तुम।।

तुम हो तो दुख दूर रहेंगे।
वो अद्भुत विश्वास हो तुम।।

कहाँ ढूंढने जाऊं भगवन।
माँ, शिवधाम कैलास हो तुम।।

 ✍️ मयंक शर्मा
मुरादाबाद 244001
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मर चुकी है माँ!
स्तब्ध खड़ी हूँ मैं।
सूनी हैं आँखें,जिनमें अश्रु तैयार हैं,
पर गिरते नहीं धरा पर!

मानो कह रहें हों
उठ जाओ माँ!
उठो न ..!
देखो मैं आ गयीं..
"वे"भी आये हैं अबकी बार
साथ में..।

बाबू जी बैठे हैं
एक कोने में..
निःशब्द,मौन...!
क्यों नहीं बोलते ?
बाबू जी..!!!

सुनसान हो गया
घर का आँगन।
पायल अब बजती नहीं,
माँ की चूड़ियाँ भी अब खनकती नहीं।
सुनसान पड़ा माँ का कक्ष।
अचार,बड़ियों,पापड़ के डिब्बे
अब नहीं दिखते।

मायका तो माँ से ही होता है न कदाचित..?
अचानक भाभी ने पूछा,"जीजी!
चाय बनाऊँ क्या ?"
माँ तो कभी नहीं पूछती थी!!
अश्रु धरा पर गिर पड़े।
लगता है ...माँ चली गयी है .!!.
मुझे छोड़कर......सचमुच चली गयी है।


 ✍️ मीनाक्षी ठाकुर
मिलन विहार
मुरादाबाद 244001
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सारी दुनिया में नहीं, कोई मात समान।
बिगड़े काम सँवार दे, वह है बड़ी महान ।।

हर पल करती काम है, दिन हो चाहे रात।
सहती सब चुप चाप है, मौन रखे जज़्बात॥

माँ के चरणों में मिलें, सारे तीरथ धाम ।
इसकी सेवा मात्र से ,बनते बिगड़े काम॥

बच्चों की रक्षार्थ जो, करती व्रत उपवास।
वरदानों से कम नहीं , उस माँ का मृदु हास।।

जीवन तपती धूप है ,माँ शीतल जल धार।
उसकी लोरी में छिपा ,सारे जग का प्यार॥

माँ तुम बिन सूना लगे, मुझको यह संसार।
तुमसे बढ़ कर कौन है, जो दे  इतना प्यार।।

✍️ डाॅ ममता सिंह
मुरादाबाद 244001
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            :::::::::::::: प्रस्तुति :::::::::::::::::::

            डॉ मनोज रस्तोगी
            8, जीलाल स्ट्रीट
            मुरादाबाद 244001
            उत्तर प्रदेश, भारत
            मोबाइल फोन नंबर 9456687822


मुरादाबाद के साहित्यकार शिव नारायण भटनागर साकी का गीत-----यह गीत लिया गया है लगभग 53 साल पहले प्रकाशित गीत संकलन 'उन्मादिनी' से । यह संग्रह कल्पना प्रकाशन , कानूनगोयान मुरादाबाद द्वारा सन 1967 में उन्हीं के संपादन में प्रकाशित हुआ था। इस संग्रह में देशभर के 97 साहित्यकारों के श्रृंगारिक गीत संग्रहीत हैं। इसकी भूमिका लिखी है डॉ राममूर्ति शर्मा ने



             ::::::::::::: प्रस्तुति :::::::::::::::

             डॉ मनोज रस्तोगी
             8, जीलाल स्ट्रीट
            मुरादाबाद 244001
            उत्तर प्रदेश , भारत
            मोबाइल फोन नंबर 9456687822

शुक्रवार, 8 मई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार शिव अवतार रस्तोगी 'सरस' की रचना --------लॉकडाउन के इस टाइम में कैसा अचरज कर डाला। कोरोना से पीड़ित रोगी पी सकता है मधु प्याला।



मधुशाला खुलने के कारण देख देख गड़बड़झाला
मचल रही है आज लेखनी करने को कागज काला।
देख रही है जैसा जग को वैसा ही यह लिखती है। तत्पर है फिर से लिखने को,सरस सुहावना मधुशाला।

लॉकडाउन के इस टाइम में कैसा अचरज कर डाला।
कोरोना से पीड़ित रोगी  पी सकता है मधु प्याला।
उसको तो वैसे भी मरना, पर संतोष  रहेगा यह ।
मरने से पहले मैं  फिर से ,देख सका था मधुशाला।

सुधा शहद मकरंद मुलैठी, माखन मिश्री मधु बाला।
छंद राग ऋतुराज दूध घृत, यह थी अर्थों की माला ।
इतने सारे अर्थ भूल  कर, एक अर्थ बस याद रहा
उस अनर्थ को आज सार्थक, फिर से करती मधुशाला।

एक आबकारी विभाग ही, सरकारी इनकम वाला ।आ जाती है आब आप  ही, खुले खजाने का ताला ।
एक हाथ है मद्य- विरोधी  और एक है विस्तारक  ।
इससे   दुगुनी और चौगुनी खुल जाती हैं मधुशाला।

✍️ शिव अवतार रस्तोगी 'सरस'
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

  

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार विपिन शर्मा के मुक्तक


🎤✍️ विपिन कुमार शर्मा
 सीआरपीएफ गेट 3, ज्वालानगर
रामपुर
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9719046900
9458830001

मुरादाबाद के साहित्यकार मंसूर उस्मानी की कृति 'अमानत' की डॉ कृष्ण कुमार 'नाज' द्वारा की गई समीक्षा---- मुहब्बतों का मुकम्मल दस्तावेज़ है अमानत

    मंसूर भाई ऐसे शायर हैं, जिनकी पहुंच सिर्फ़ मुशायरों तक नहीं, बल्कि कवि-सम्मलेनों तक भी है, हिंदी के कार्यक्रमों में भी वो बड़े सम्मान के साथ आमंत्रित किए जाते हैं। इसका एकमात्र कारण यही है कि भाषाओं के प्रति उन्होंने कभी दुराग्रहपूर्ण रवैया इखि़्तयार नहीं किया। सहजता और सरलता के साथ जिस भाषा का भी शब्द शेर कहते वक़्त उनके ज़ह्न में आया, प्रयोग कर लिया। वो चाहे हिंदी का हो, उर्दू का हो, अंग्रेज़ी का हो या लोकभाषा का। और फिर, हिंदी और उर्दू में धाार्मिकता की दूरबीन लगाकर अंतर तलाशने वाले लोग एक दिन ख़ुद ही पस्त होकर धराशायी हो जाएंगे। आखि़र कोई फ़र्क़ है भी कहां हिंदी और उर्दू में। हिंदी अगर दिल है, तो उर्दू उसकी धड़कन; हिंदी अगर शरीर है तो उर्दू उसकी आत्मा, हिंदी अगर आंख है तो उर्दू उसकी रोशनी। एक-दूसरे के बग़ैर दोनों का अस्तित्व बचा पाना मुश्किल ही नहीं, असंभव है। साहित्यिक इतिहास इस बात का साक्षी है कि जिस रचनाकार ने हिंदू या मुसलमान बनकर साहित्य सृजन किया, वह अतीत की गर्त में खो गया और जिन्होंने इंसान बनकर मानवमात्र के कल्याण के लिए सार्वभौमिक साहित्य रचा, उनकी आवाज़, उनके विचार सदियों बाद आज भी ज़िंदा हैं और हमारी आने वाली नस्लें उन आवाज़ों को, उन विचारों को सदियों तक महफ़ूज़ रखेंगी।
    हालांकि, यह सामाजिक विडंबना ही है कि यहां प्यार चोरी-छिपे करना पड़ता है, सबसे नज़रें बचाकर; जबकि नफ़रत खुलेआम की जा सकती है, उस पर कोई प्रतिबंध नहीं है। इसके लिए न किसी से नज़र बचानी है, न किसी से छिपना है। लेकिन, यह भी वास्तविकता है कि मुहब्बत करने वाले मुहब्बत कर रहे हैं। समाज को अम्न और शांति का संदेश दे रहे हैं, भले ही सामाजिक अव्यवस्थाएं उन्हें सूली पर क्यों न लटका दें, लेकिन सूली पर लटकने वाली आवाज़ चीख़-चीख़कर कहेगी कि उसने कोई जुर्म नहीं किया, कोई पाप नहीं किया। उस आवाज़ का साथ देने के लिए हज़ारों आवाज़ें नारों का रूप ले लेंगी। वह घायल आवाज़ ज़ालिमों के मुंह पर यह कहकर तमाचा मारेगी-

    तुमने दुनिया को अदावत के तरीक़े बांटे
    हमने दुनिया में लुटाई है ग़ज़ल की ख़ुशबू

    उसको हर दौर ने ऐज़ाज़ दिया है ‘मंसूर’
    जिसने लफ़्ज़ों में छुपाई है ग़ज़ल की ख़ुशबू

मंसूर भाई ने कभी समझौतावादी शायरी नहीं की। उन्होंने समाज में रहते हुए जो भी देखा, उसी का शब्दों के माध्यम से चित्रण किया। उनकी शायरी मात्र उनका अपना चिंतन नहीं, हर उस फटे हाल, तंगदस्त और अव्यवस्थाओं से दुखी आदमी की बात है, जो अपने से चंद सीढ़ियां ऊँचे आदमी से गिड़गिड़ाकर अपने कर्तव्यों की दुहाई देते हुए रहम की भीख मांग रहा है। उन्होंने इंसानियत से ख़ाली धर्म को मात्र दिखावा क़रार दिया है। उनके चंद ख़ूबसूरत अशआर प्रस्तुत हैं, जो मानवमात्र को संदेश देते हुए नज़र आते हैं-
    कांधों पे सब ख़ुदा को उठाए फिरे मगर
    बंदों का एहतराम किसी ने नहीं किया

    उसी से खाता हूं अक्सर फ़रेब मंज़िल का
    मैं जिसके पांव से कांटा निकाल देता हूं

    अब ऐसे ख़्वाब में नींदे ख़राब मत कीजे
    जो सारे शह्र को पागल बनाए देता है
    समझो कि ज़िंदगी की वहीं शाम हो गई
    किरदार बेचने का जहां भी सवाल आय

    ग़र्क़ हो जाती है जब नींद में सारी दुनिया
    जाग उठते हैं अदीबों के क़लम रात गए

    इतना धुंधला गए हैं आईने
    अपना चेह्रा नज़र नहीं आता

    वो दरख़्त आज कहां है जो कहा करता था
    मेरे साये में भी कुछ देर ठहरते जाओ

    मंसूर साहब ने अपने प्रिय की ख़ूबसूरती का बयान बड़े ख़ूबसूरत तरीक़े से किया है। एक शेर प्रस्तुत है-
 
            कैसा हसीन अक्स तुम्हारी हंसी का था
    साया कहीं पे धूप, कहीं चांदनी का था

    मंसूर भाई से मेरा परिचय क़रीब दो दशक पुराना है। यह उनकी मुहब्बतों का ही नतीजा है कि इस अंतराल में मैं उनके क़रीब से क़रीबतर होता गया। दोस्तों के बीच बैठकर गपशप करना, बात-बात पर चुटकुले सुनाकर सबको हंसाना और उनकी हंसी में बेबाकियत के साथ शरीक होना उनकी पहचान में शामिल है। वह स्थान चाहे उनके घर का ख़ूबसूरत ड्राइंगरूम हो या दफ़्तर का छोटा-सा तंग कमरा। लेकिन, मैंने अक्सर ये भी महसूस किया है कि उनके पुर-सुकून, मुस्कुराते चेह्रे के पीछे एक टूटा-फूटा वजूद, एक ठहरा हुआ ग़म का दरिया और दबा हुआ दर्द का एक तूफ़ान ज़रूर छिपा हुआ है, जो कभी पहलू बदलता है तो समय की चादर पर कुछ अशआर बिखर जाते हैं। ये दुनिया जिसकी एक झलक ही देख पाती है, बस।
    देशभर में अपनी उत्कृष्ट शायरी के ज़रिये धूम मचाने वाले और मुरादाबादी साहित्यिक गरिमा को और मज़बूत, और सुंदर बनाने वाले मंसूर भाई ने अनेक देशों की साहित्यिक यात्राएं की हैं और मुरादाबाद के साथ ही हिंदुस्तान का नाम रोशन किया है।
    ‘अमानत’ मंसूर साहब की पांचवीं किताब है। इससे पहले उनकी चार किताबें ‘मैंने कहा’, ‘जुस्तजू’, ‘ग़ज़ल की ख़ूशबू’ और ‘कशमकश’ ग़ज़ल के पाठकों में बहुत चर्चित हुई हैं। 140 पृष्ठीय इस पुस्तक में 89 ग़ज़लें, 26 क़तआत, 10 दोहे शामिल हैं। इसके अलावा 126 शेर ऐसे हैं जिन्हें मुतफ़र्रिक अशआर की श्रेणी में सम्मिलित किया जा सकता है। पुस्तक के आरंभ में सर्वश्री धर्मपाल गुप्त ‘शलभ’, पद्मश्री बेकल उत्साही, प्रो. मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद, पद्मभूषण गोपालदास ‘नीरज’, प्रो. वसीम बरेलवी, ज़ुबैर रिज़वी, डा. राहत इंदौरी, मुनव्वर राना, डा. उर्मिलेश, डा. कुंअर बेचैन, कृष्णकुमार ‘नाज़’, नित्यानंद तुषार और दीक्षित दनकौरी जैसे विद्वानों और साहित्यकारों की संक्षिप्त टिप्पणियां हैं, जिनमें मंसूर साहब के कृतित्व और व्यक्तित्व का उल्लेख किया गया है।


**कृति : अमानत
**रचनाकार : मंसूर उस्मानी
**प्रथम संस्करण : 2010
**प्रकाशक : वाणी प्रकाशन,नई दिल्ली 110002
**मूल्य: 95₹
**समीक्षक : डॉ. कृष्णकुमार ‘नाज़’
           सी-130, हिमगिरी कालोनी, कांठ रोड                       मुरादाबाद 244001
                  उत्तर प्रदेश, भारत

                       

गुरुवार, 7 मई 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार इला सागर रस्तोगी की कहानी ------ अनुचित शर्त


"क्या कह रही हो मम्मी आप अजय के घरवाले चाहते है कि मैं कौमार्य परीक्षण कराऊं.........." अंकिता भर्राती आवाज में बोली।
अंकिता की माँ मीना ने समझाते हुए कहा "करा ले न बिटिया क्या जाता है इसमें तेरा। देख हम तो जानते ही हैं कि तू पवित्र है पर अजय के घरवालों का भी तो विश्वास करना आवश्यक है।"
अंकिता ने मां की ओर उम्मीदभरी नजरों से देखते हुए पूछा "क्या अजय भी.........?"
 मां ने उत्तर दिया "हाँ बिटिया, अजय भी यही चाहता है।"
अंकिता ने अगला प्रश्न किया "लेकिन हर संभव जगह से तो उन्होंने मेरी इन्क्वायरी निकलवाई ही ली, चाहें आफिस हो या घर या पीजी, फिर भी विश्वास नहीं हुआ।"
तभी अंकिता के पिताजी आनंद कमरे में प्रवेश करते हुए बोले "बिटिया मुझे भी बुरा लगा सुनकर और मेरा मन किया कि मैं उन्हें रिश्ते से ही मना कर दूं परंतु यदि अगला और उसके अगला रिश्ता भी यह शर्त रखेंगे तो......?"
मीना बोली "बिटिया यह समाज ही ऐसा है जहां सती सी सीता को भी न जाने कितनी ही परीक्षायें देनी पड़ी थी जबतक वो पृथ्वी की गोद में न समा गईं। तू तो फिर भी बस एक मानव है.......कहते कहते मीना दुखी हो उठी।"
अंकिता ने उत्तर दिया "ठीक है मम्मी पापा मैं तैयार हूं।"
कौमार्य परीक्षण का परिणाम आशानुसार सही आया। धूमधाम से अंकिता और अजय का विवाह भी हो गया। परंतु अब अंकिता को नौकरी जारी रखने की आज्ञा नहीं थी।
विवाह के फोटोज़ देखते हुए अजय अपनी महिला मित्रों का इन्ट्रोडक्शन बता रहा था। तब अंकिता ने भी अपने महिला एवं पुरुष सहकर्मियों का इन्ट्रोडक्शन कराया तो अजय क्रोध से लाल होता बोला "बड़े शहर में अकेले रहकर नौकरी करती थी, घर से अलग पीजी में रहती थी, ऑफिस में न जाने कितने ही पुरुष सहकर्मी थे और कहती हो तुम पवित्र हो। वो तो मैंने शादी कर ली वरना तुम जैसी आवारा लङकी से कौन शादी करता।"
और अब अंकिता को अपनी हर छोटी बड़ी गलती पर यह ताना अवश्य ही सुनने को मिलता था।
एक वर्ष पश्चात अजय की छोटी बहन अनीता के रिश्ते की बात शुरू हो गई। वह दिल्ली शहर में रहकर नौकरी करती थी। जिसके साथ वो लिव-इन रिलेशन में पाँच वर्षों से थी उसने शादी का प्रस्ताव ठुकरा दिया था।
एक बहुत अच्छे एवं सम्भ्रान्त घर के लङके वालों ने उसे पसन्द कर लिया परन्तु कौमार्य परीक्षण की शर्त रख दी गई थी। सभी जानते थे कि अनीता तो इस परीक्षण में अवश्य ही फेल हो जाएगी अतः उन्होंने इस परीक्षण को
अत्याचारपूर्ण अनुचित शर्त की संज्ञा दे दी।
अजय बोला "मेरी बहन कोई सीता नहीं है जो उसे बार-बार परीक्षाओं से गुजरना पड़े। हमें उस पर पूरा विश्वास है और आपकी यह शर्त हमें बिल्कुल मंजूर नहीं है। आप रहने दीजिए मैं अपनी बहन के लिए दूसरा और अच्छा वर ढूंंढ लूंगा।"
वह दृष्टांत समक्ष घटते देखकर अंकिता सोच रही थी कि क्या यह वही अजय है जिसने स्वयं उसके लिए कौमार्य परीक्षण की शर्त रखी थी।


✍️  इला सागर रस्तोगी
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