रविवार, 10 मई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की कविता ------ मां


  जाड़ों की गुनगुनी धूप
  जेष्ठ की गर्मी में शीतल हवा
  सावन में भीनी भीनी फुहार
  संस्कृति की आदर्श
  आशाओं की उत्कर्ष
  मान -सम्मान से भरपूर
  कुरीतियों से बहुत दूर
  संस्कृति का वृहद आकार
  आँखों में पढ़ने को अखबार
  सेवा भाव में एक मिसाल
  खुली खिड़की सा दिल
  इरादों में बरगद
  संस्कारों में बेमिसाल
  श्रेष्ठता में सर्व श्रेष्ठ
  आशीषों की पोटली
  कर्तव्यनिष्ठ प्रतिमा ।
  अनोखी निराली थीं
   माँ ।
  ✍️अशोक विश्नोई

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