शनिवार, 9 मई 2020

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हस्ताक्षर की ओर से आज शनिवार 9 मई 2020 को मातृ दिवस की पूर्व संध्या पर ऑनलाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। "मां" को समर्पित इस काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता यश भारती माहेश्वर तिवारी जी ने की तथा संचालन राजीव प्रखर ने किया। गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों यश भारती माहेश्वर तिवारी जी, डॉ अजय अनुपम, डॉ मक्खन मुरादाबादी, डॉ मीना नकवी, डॉ प्रेमवती उपाध्याय, वीरेंद्र सिंह बृजवासी, डॉ मनोज रस्तोगी, योगेंद्र वर्मा व्योम, डॉ पूनम बंसल, जिया जमीर, ओंकार सिंह विवेक, श्री कृष्ण शुक्ल, अखिलेश वर्मा, मनोज मनु, डॉ अर्चना गुप्ता, अंकित गुप्ता अंक, राजीव प्रखर , हेमा तिवारी भट्ट, मोनिका मासूम, मयंक शर्मा, मीनाक्षी ठाकुर और डॉ ममता सिंह द्वारा प्रस्तुत रचनाएं------



रोटियां बनाती है माँ
बेटों के लिए कुछ नए सपने
आँच में पकाती है माँ

सपने जो सूरज हैं
कल की आज़ादी हैं
सपने जो खुशियों के
बोल हैं, मुनादी हैं
चूल्हे के पास बैठकर घंटों
उनको दुलराती है माँ

सपने जो वंशज हैं
सुलगते पसीने के
तौर-तरीके सिखलाती
उसको जीने के
आँखों से धुँए को ढकेलती
सपनों को गाती है माँ

माँ के सपने आकर
बेटों की आँखों में
हरापन जगाते हैं
मुरझाई शाखों में
सपनों को पाल-पोसकर
अपनी झुर्रियाँ घटाती है माँ

✍️ माहेश्वर तिवारी
मुरादाबाद 244001
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मां सुख का नादानुनाद है
मां परमेश्वर का प्रसाद है

वह शुचिता का शंखनाद है
शुभ संकल्पित साधुवाद है
करुणा कृपा दया से दीपित
मां परमेश्वर का प्रसाद है

प्रीति सुपावन निर्विवाद है
शुभता का भावानुवाद है
महाकाव्य है वह जीवन का
मां परमेश्वर का प्रसाद है

अमृत का अविकल्प स्वाद है
ममता का मधुमय निनाद है
अनहद है जिसकी लोरी में
मां परमेश्वर का प्रसाद है

✍️ डॉ अजय अनुपम
मुरादाबाद 244001
मोबाइल फोन नंबर 9761302577
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एक
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पिता पर
कविता लिखना
सहज नहीं है
दुर्लभ  बहुत  है ,
भले ही
पिता को जीने
और पिता होने का
अनुभव बहुत है ।
मां कृपा से
जब हुए कुछ शब्द
पिता को कहने में ,
बड़ी विवशताएं
दीखीं उस क्षण
पिता सा  रहने में ।
फिर भी हुई
कविता पिता पर
तो मां ,
मन ही मन मुस्काई ,
बोली-
' बहुत सुन्दर,
बहुत ही अच्छी है
ऐसी एक कविता
मुझ पर भी             
लिख दे मेरे कन्हाई ।'
मैं बोला -
' मां ! सुन , समझ ले
मुझ बेटे ने
जब - जब ,तुझ पर
लिखना चाहा
बस लाचार दिखा है ,
मैं उस पर
क्या लिक्खूंगा  मां
जिसने
मुझको संपूर्ण लिखा है।।
       
 --------
    दो
  ====
किस दुनिया में पहुंची मां ।
प्यारी  -  प्यारी    मेरी मां ।।
पड़ी  दूध  में  रहती   थी ,
सदा  बताशे    जैसी  मां ।।
उपवन सब   बेकार लगे ,
जब फूलों सी खिलती मां।।
लाल देख कर जेठ तपा ,
आंसू - आंसू   बरसी मां ।।
मेरी  भूल , दिखावे   को ,
बादल जैसी  तड़की मां ।।
लगी सदा थी खिचड़ी में,
देसी  घी  के  जैसी   मां ।।
मैंने भी कविता लिक्खी ,
लिखवाने  वाली भी मां ।।

  ✍️ डॉ. मक्खन मुरादाबादी
मुरादाबाद 244001 
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एक गीत का अंश 

माँ..!!
तुझे सलाम

दुख सह कर भी सुख देती है जो अपनी संतान को।
माँ के रूप में पाया मैंने भगवन के वरदान को।।

काँटा मुझ को लग जाने से पीड़ा माँ को होती है।
मुझ को सूखा बिस्तर दे कर ख़ुद गीले में सोती है।
देव रिषि तक नत मस्तक रहते हैं जिस के मान को।
माँ के रूप में पाया मैंने भगवन के वरदान को।।

जाग के रातों को लिखती है मेरे भाल पे उज्यारा।
जिस को सारे जग में लगता केवल रूप मेरा प्यारा।
अपनी जान से प्यारा समझा जिस ने मेरी जान को।
माँ के रूप में पाया मैंने भगवन के वरदान को।।

मीठी झिड़की दे कर, जो मुख मेरा देखा करती है।
भाव मेरे चेहरे के पढ़ कर, मन ही मन फ़िर डरती है।
दुलरा कर, बहला कर पाला जिस ने मुझ नादान को।
माँ के रूप में पाया मैने भगवन के वरदान को।।
    
✍️डा. मीना नक़वी
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प्यार सभी का स्वार्थ निहित है,
मां का प्यार अपरिमित होता।

मां का बस चलता तो चन्दा,
नभ से धरती पर ले आती।
अनगिन तारागण वह अपने,
सुत की झंगुली में टकवाती।

     पाने को ममता माता की, 
     ईश्वर भी लालायित होता ।।

सुत की पीड़ा आभासित कर,
व्यकुल हो जाता मां का मन।
व्याकुल बालक की माता का,
अन्तस् करने लगता क्रन्दन।

   हर पल-क्षण सुख पहुंचाने को ,
   माँ का मन उत्साहित होता।।

निज माँ का मान बढ़ाने को ,
बंध गए ओखली से कृष्णा।
मैया-मैया कहते-कहते ,
कान्हा की थकी नहीं रसना।

   निकष परम शुचिता-ममता का,
   माँ से सदा प्रमाणित होता।।

प्यार सभी का स्वार्थनिहित है,
माँ का प्यार अपरमित होता।

✍️डॉ प्रेमवती उपाध्याय
मुरादाबाद244001
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       जिसने  मेरा  अंकुर   पाला
      नौ माह तक  मुझे  संभाला
      धरती पर  लाकर  माता  ने
      जीवन रसको मुख में डाला
      मैं प्यारी  माँ  के  चरणों  में
      बारम्बार  नमन   करता  हूँ।

      दुविधाओं  से  मुझे  बचाया
      सुविधाओं  का  ढेर  लगाया
      मेरी   नींदों    को   सहलाने
      माँ  ने   गीत  सलोना  गाया
      मैं न्यारी  माँ  के  चरणों  में
      बारम्बार  नमन   करता  हूँ।

      सब पर ही  ममता बरसाती
      संतानों  पर   जान   लुटाती
      लिंग  भेद  करने  वालों  पर
      नहीं ज़रा भी रहम  दिखाती
      मैं सुखकारी  माँ  चरणों  में
      बारम्बार   नमन   करता  हूँ।

       तेरे    आशीषों    से   माता
       जीवनका हर पल मुस्काया
       प्रथम गुरू बनकर  माँ  तूने
       भाषाओं  का  ज्ञान  कराया
       मैं हितकारी  माँ  चरणों  में
       बारम्बार  नमन   करता  हूँ।

       तेरी   मुस्कानों   पर  माता
       सकल  देव जाते बलिहारी
       तेरी  गोदी   में   आने   को
       बन जाते  बालक अवतारी
        मैं  जगतारी माँ  चरणों में
        बारम्बार  नमन  करता हूँ।
         
             ✍️  वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
                  मुरादाबाद/उ,प्र,
                  मोबाइल फोन 9719275453
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       चरणों में तेरे मां, यह सिर हमेशा झुका रहे ।
प्रभु देना ऐसा वर, आशीष मां का सदा रहे।
करूं न कभी तिरस्कार, न करूं कभी अपमान।
करूं दिन रात सेवा, यह भाव मन में भरा रहे।

   ✍️डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822
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माँ का होना मतलब
दुनियाभर का होना है

तकलीफ़ें सहकर भी
सारे फ़र्ज़ निभाती है
उफ़ तक करती नहीं
हमेशा ही मुस्काती है
उसका मकसद घर-आँगन में
खुशबू बोना है

अँधियारों में से उजलेपन
को ही चुनती है
हर पल आने वाले कल के
सपने बुनती है
बच्चों का जीवन ही
उसका असली सोना है

जीवन की संध्या में
उसको कष्ट न कोई हो
ध्यान रहे उसकी अभिलाषा
नष्ट न कोई हो
माँ को खोना मतलब
दुनियाभर को खोना है

✍️योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'
मुरादाबाद 244001
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जीवन के तपते मरुथल में माँ गंगा की धार है 
अनसुलझे प्रश्नों के उत्तर माँ गीता का सार है 

थके कदम जब भी राहों में सदा मिले उसका सम्बल 
सपने भी मंज़िल पर जाते सर पर हो माँ का आँचल 
जागी आँखों की लोरी माँ थपकी और दुलार है 

संस्कार है देने वाली बच्चों की खातिर जीती 
त्याग और ममता की मूरत बाँट ख़ुशी आंसू पीती 
सारे तीरथ इसमें बसते ईश रूप साकार है 

सूर्य बनी माथे की बिंदिया पायल करे मधुर छन छन 
पल्लू में चाबी का गुच्छा चूड़ी करती है खन  खन 
उसकी खुशबू हर कोने में माँ घर का श्रृंगार है 

          ✍️  डॉ पूनम बंसल 
                 मुरादाबाद 244001
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घुटनों  की  पीड़ा  में   जाग  के   सोने   वाली  मां
इंसूलिन   की   गोली   से  खुश   होने   वाली  मां
सिलवटी  हाथों  से  कपड़ों  को  धोने   वाली  मां
पापा  की  इक  डांट  से  घुट  कर  रोने  वाली मां
बच्चों  से  छिप-छिप  कर  रोना  कैसा  होता   है
मां  हो  तुम  और  मां   का  होना  ऐसा  होता  है

पापा   की    इंटेलीजेंसी   तुम    पर    भारी    है
लेकिन  तुमने   प्रेम  की  गंगा   घर  में  उतारी  है
बांधना  घर  को  इक  धागे  में  कितना  भारी  है
इसमें   तुम्हारी   सिर्फ़ तुम्हारी   ही   हुशियारी  है
तुमको    है   मालूम    पिरोना   कैसा    होता   है
मां  हो  तुम  और  मां   का  होना  ऐसा  होता  है

दकियानूसी  कहकर  बिटिया  तुम  पर  हंसती है
'तुमको नहीं मालूम' की फबती तुम पर कसती है
'सीधी औरत'  की  उपमा  भी  तुम को  डसती है
और  तुम्हारी  इस  घर  में  ही  दुनिया  बसती  है
छत   दीवारें    कोना  -  कोना   कैसा   होता   है
मां  हो  तुम  और  मां  का   होना  ऐसा  होता  है

छोटी  सी  तनख़्वाह  में  कैसे करने  हैं सब काम
कभी नहीं  मिलता है  तुमको  मेहनत  का इना'म
और  नहीं  होता  है  जग  में  कभी तुम्हारा  नाम
धरती  मां  के  जैसे  तुम  भी  करती नहीं आराम
तुमको  क्या  मालूम  कि  सोना  कैसा   होता  है
मां  हो  तुम  और   मां   का  होना  ऐसा  होता है

✍️जिया ज़मीर
मुरादाबाद 244001
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दूर  रंजो  अलम  और  सदमात  हैं,
माँ है तो ख़ुशनुमा घर के हालात हैं

दुख ही दुख वो उठाती है सबके लिए,
माँ के हिस्से में कब सुख के लम्हात हैं।

कोई मुश्किल न होगी सफ़र में मुझे,
माँ के जब तक दुआ में उठे हाथ हैं।

सब फ़क़त माँ के दिल को दुखाते रहे,
यह न सोचा कि उसके भी  जज़्बात हैं।

लौट भी  आ  तू  अब  लाल परदेस से,
माँ के दहलीज़ पर नैन दिन रात हैं।

क्यों न महफ़ूज़ मैं हर  बला से रहूँ,
"मेरी  माँ  की  दुआएँ  मेरे साथ हैं।"

              ✍️ओंकार सिंह विवेक
                      रामपुर
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दोहे:

छप्पन व्यंजन भी मुझे, लगते हैं बेस्वाद।
माँ, जब तेरे हाथ की, रोटी आती याद।।

संकट में जब भी घिरा, आया मुश्किल दौर।
माँ के आँचल के सिवा, मिला न कोई ठौर।।
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गीत :
लगता है तुम यहीं कहीं हो, छिपी हमारे पास।
यदा कदा होता रहता है, माँ तेरा अहसास।

तुमने ही जन्म दिया मुझको, जब आँख खुली तुमको पाया
पहला स्पर्श तुम्हारा था, तुमसे ही संरक्षण पाया
तेरे आँचल का माँ अब भी, होता है आभास
यदा कदा होता रहता है, माँ तेरा अहसास।

जीवन का पहला पाठ मुझे, तुमने ही तो बतलाया था
ठोकर खाना गिरना उठना, उठकर चलना सिखलाया
था
तेरी उँगली हरदम रहती, थी मेरे ही पास
यदा कदा होता रहता है, माँ तेरा अहसास।

खुद आधी रोटी खाती थी, हमको भरपेट खिलाती थी
घर के खर्चों से बचा बचा, सबको कपड़े सिलवाती थी
मेरे वजूद में दिखता है माँ,  तेरा ही विश्वास
यदा कदा होता रहता है, माँ तेरा अहसास।

अब तो अम्मा तुम बस मेरे, सपनों में ही आती हो
बस यादों में ही आकर तुम,  मुझको बड़ा रुलाती हो
काश स्वप्न सच्चे हो सकते, रहे ह्दय मे आस
यदा कदा होता रहता है, माँ तेरा अहसास।

मुझसे ज्यादा बहू तुम्हारी, याद तुम्हें अब करती है
तुम जैसा ही प्यार आज, अपनी बहुओं को देती है
पदचिन्हों पर चले तुम्हारे, बन बैठी है सास
यदा कदा होता रहता है, माँ तेरा अहसास।

✍️श्री कृष्ण शुक्ल
 मुरादाबाद 244001
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ज़िंदगी है माँ सभी की और ये संसार माँ
प्यार है दुनिया में ग़र तो प्यार का आधार माँ ।

चक्की चूल्हा भाईयों ने कर लिया अपना अलग
पर उसी चक्की में गेहूँ सी पिसी हर बार माँ ।

माँ ने ही परिवार की बगिया सजाई इस तरह
फूल है बच्चों की ख़ातिर दुश्मनों को खार माँ ।

जब भी मैं होता परेशां हाथ सर पर फेरती
जान लेती हाल दिल का देख के इक बार माँ ।

सब बिखर जाएँ न ..चाचा ताऊ भाई औ'र बहन
जोड़कर रक्खे जो सबको ऐसा है किरदार माँ ।

✍️अखिलेश वर्मा
  चन्द्र भवन 
  एम आई जी - 26
  रामगंगा विहार द्वितीय (विस्तार)
   मुरादाबाद-244001
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मां का दामन खजाना दुआ का,
माँ के क़दमों में नेअमत है सारी,,
क़र्ज़  इस का   चुका ना   सकेंगे,
जिंदगी  भी  फ़ना  करके  सारी,,

बात  कोई  ज़रा  आ पड़े  तो,
ढाल बन जाए औलाद की वो,
जितनी नाज़ुक है ममतामयी है,
बन भी जाती है फ़ौलाद सी वो,,

फिर ज़माने की ताक़त ही क्या है,
माँ खुदाई  पे   पड़  जाए  भारी,,
              माँ का दामन खजाना..

 साया  होते  हुए सर पे माँ  का,
 जो नहीं जानते माँ की खिदमत,
 जानिए  उनसे  रूठी   हुई   है,
 साथ रहते हुए उनकी किस्मत,

 देखने  में   लगे  ना   भले  ही,
 बेसुकूँ  उम्र   रहते   हैं   सारी,,
            माँ का दामन खजाना...

सब्र कितना दिया माँ को रब ने,
काश  होती  ख़बर  आदमी को,
जिसकी क़ुव्वत के मद्देनजर ही,
माँ का रुतबा मिला है ज़मीं को,,

अब न ग़म की गुज़ारे ये घड़ियां,
जैसे  पहले   कभी   हों   गुजारी,,
              माँ का दामन खजाना..

अपनी ममतामयी माँ के  सदके,
आओ एक शाम अर्पित करें हम,
जिनसे अस्तित्व अपना जुड़ा है,
उनको यह शाम अर्पित करें हम,,

यूं तो क्या उनको हम दे सकेंगे,
जिनके आगे है दुनिया भिखारी,,
माँ का दामन खजाना दुआ का,
माँ के कदमों में नेअमत है सारी.,,

   ✍️ मनोज वर्मा 'मनु'
मोबाइल फोन नम्बर 6397093523
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पढ़ लेती जो दिल के अंदरखाने है
बिना कहे माँ हाल हमारा जाने है

कभी नहीं छुप सकता है माँ से कुछ भी
बच्चों का हर हाव भाव पहचाने है

मीठी मीठी नींद सुलाती बच्चों को
मधुर सुनाती माँ लोरी से गाने है

बच्चों के दुख में रोती सुख में हँसती
उनको ही माँ अपनी दुनिया माने है

नहीं देखती कष्ट कभी अपने तन के
करके रहती जो माँ मन में ठाने है

रखती नहीं हिसाब कभी माँ ममता का
सुनती रहती पर बच्चों के ताने है

बच्चों के जीवन से बीन ‘अर्चना’ गम
बोती रहती माँ खुशियों के दाने है

 ✍️ डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद 244001
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चेहरे पर मुस्कान भले पीड़ा से छलनी मन
माँ ये सब कैसे करती हो

अपनी इच्छाओं का कुआँ रिक्तता से पाटा
ख़ुद रहकर निचुड़ी-सी बदली हमको जल बाँटा
सारे घर ने सदा तुम्हारा किया सिर्फ़ दोहन
तुम लेकिन घर को मरती हो

दुख जब टकराए घर से, मुँह की खाकर लौटे
चौखट पर  ज्यों टाँगे  आशीषों   के   नज़रौटे
कुशल चितेरे का हो जैसे तुमने सीखा फ़न
हर सू नए रंग भरती हो

कहो न लेकिन दर्द तुम्हें भी होता तो होगा
बाहर से हँसता दिखता दिल रोता तो होगा
सब छोड़ें जब कठिन वक़्त में आशा का दामन
कैसे तुम धीरज धरती हो

  ✍️ अंकित गुप्ता 'अंक'
मुरादाबाद 244001
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पहले तेरी वंदना, फिर आगे हरिनाम।
अम्मा तुझमें ही दिखे, मुझको तीरथ-धाम।।

घर में सुख-समृद्धि की, बहुत बड़ी पहचान।
माँ के मुख पर खिल रही,  सुन्दर सी मुस्कान।।

क्या तीरथ की कामना, कैसी धन की प्यास।
जब बैठी हो प्रेम से, अम्मा मेरे पास।।

फिर नारों के शोर में, बहुत दिनों के बाद।
मातृ-दिवस पर आ गयी, बूढ़ी माँ की याद।

✍️ राजीव 'प्रखर'
डिप्टी गंज
मुरादाबाद 244001
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मक्खन,पंख,रुई-सा कोमल,
है माँ का एहसास।
आक्सीजन वायु में जैसे,
रिश्तों में वह खास।

दो रोटी के चक्कर बाँटे,
सबको मजबूरी,
यों रहते सब आस पास में,
फिर भी है दूरी।

मीलों भी माँ रहे दूर पर,
हरदम दिल के पास।
मक्खन,पंख...

मुस्कानों का पाउडर सूखा
लेता सोख नमी,
करते दावा हम हँस हंँसकर,
कोई नहीं कमी,

माँ ढूँढ लाती पर कैसे
कोने छुपी भड़ास।
मक्खन,पंख......

बच्चों के दिल रहती चाहत,
हमजोली हो माँ।
हर कोई डांटे उसको कहकर,
तुम भोली हो माँ,

पर मुश्किल में वही बचाती
उसके नुस्खे खास।
मक्खन,पंख....

नन्हें पौधे उसने सींचे
दे के अपना रक्त।
कोमलांगी चट्टान बन गयी,
बीता मुश्किल वक्त।

देखा सख्त जड़ों के बल पर
पल्लव में उल्लास।
मक्खन, पंख......

✍हेमा तिवारी भट्ट
मुरादाबाद  244001
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हर खुशी को वो मेरे घर का पता देती है
माँ ग़मों को मेरी राहों से हटा देती है

चूम लेती है वह  जिस वक़्त मेरे माथे को
हर बुरे साये को मां धूल चटा देती है

माँ का आँचल हो तो बीमारियां सब दूर रहें
दूध के साथ वो बच्चों को शिफ़ा देती है

माँ की ममता को तरसते हैं फरिश्ते भी सदा
माँ विधाता को भी अवतार नया देती है

वो सिखा देती है "मासूम" सबक़ जीवन का
हाथ बच्चे पे कभी मां जो उठा देती है

 ✍️ मोनिका "मासूम"
मुरादाबाद 244001
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एक सुखद एहसास हो तुम।
हर सम्बन्ध में ख़ास हो तुम।।

जीवन घोर निराशा तम में।
चमकीली सी आस हो तुम।।

संघर्षों के कंटक पथ पर।
मखमल दूब की घास हो तुम।।

तुमने दी जो इस काया की।
धड़कन हो और श्वास हो तुम।।

तुम हो तो दुख दूर रहेंगे।
वो अद्भुत विश्वास हो तुम।।

कहाँ ढूंढने जाऊं भगवन।
माँ, शिवधाम कैलास हो तुम।।

 ✍️ मयंक शर्मा
मुरादाबाद 244001
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मर चुकी है माँ!
स्तब्ध खड़ी हूँ मैं।
सूनी हैं आँखें,जिनमें अश्रु तैयार हैं,
पर गिरते नहीं धरा पर!

मानो कह रहें हों
उठ जाओ माँ!
उठो न ..!
देखो मैं आ गयीं..
"वे"भी आये हैं अबकी बार
साथ में..।

बाबू जी बैठे हैं
एक कोने में..
निःशब्द,मौन...!
क्यों नहीं बोलते ?
बाबू जी..!!!

सुनसान हो गया
घर का आँगन।
पायल अब बजती नहीं,
माँ की चूड़ियाँ भी अब खनकती नहीं।
सुनसान पड़ा माँ का कक्ष।
अचार,बड़ियों,पापड़ के डिब्बे
अब नहीं दिखते।

मायका तो माँ से ही होता है न कदाचित..?
अचानक भाभी ने पूछा,"जीजी!
चाय बनाऊँ क्या ?"
माँ तो कभी नहीं पूछती थी!!
अश्रु धरा पर गिर पड़े।
लगता है ...माँ चली गयी है .!!.
मुझे छोड़कर......सचमुच चली गयी है।


 ✍️ मीनाक्षी ठाकुर
मिलन विहार
मुरादाबाद 244001
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सारी दुनिया में नहीं, कोई मात समान।
बिगड़े काम सँवार दे, वह है बड़ी महान ।।

हर पल करती काम है, दिन हो चाहे रात।
सहती सब चुप चाप है, मौन रखे जज़्बात॥

माँ के चरणों में मिलें, सारे तीरथ धाम ।
इसकी सेवा मात्र से ,बनते बिगड़े काम॥

बच्चों की रक्षार्थ जो, करती व्रत उपवास।
वरदानों से कम नहीं , उस माँ का मृदु हास।।

जीवन तपती धूप है ,माँ शीतल जल धार।
उसकी लोरी में छिपा ,सारे जग का प्यार॥

माँ तुम बिन सूना लगे, मुझको यह संसार।
तुमसे बढ़ कर कौन है, जो दे  इतना प्यार।।

✍️ डाॅ ममता सिंह
मुरादाबाद 244001
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            :::::::::::::: प्रस्तुति :::::::::::::::::::

            डॉ मनोज रस्तोगी
            8, जीलाल स्ट्रीट
            मुरादाबाद 244001
            उत्तर प्रदेश, भारत
            मोबाइल फोन नंबर 9456687822


1 टिप्पणी:

  1. सभी को हार्दिक बधाई। आप सभी के सहयोग से कार्यक्रम सार्थक रहा।

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