बुधवार, 20 मई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ आर सी शुक्ल की काव्य कृति "मैं बैरागी नहीं" की योगेंद्र वर्मा व्योम द्वारा की गई समीक्षा --------- ‘दर्शन की पगडंडियों पर...’

       भारतीय काव्य परंपरा में अनेक रचनाकारों द्वारा किसी विषय या व्यक्ति को केन्द्र में रखकर लम्बी कविता अथवा खण्डकाव्य-महाकाव्य रचे जाते रहे हैं जो समय के पृष्ठ पर अपने अमिट हस्ताक्षर करने में सफल रहे हैं, चाहे वह तुलसीदास कृत ‘रामचरितमानस’ हो, जयशंकर प्रसाद की ‘कामायनी’ हो, हरिवंशराय बच्चन की ‘मधुशाला’ हो या फिर ब्रजभूषण सिंह गौतम अनुराग की ‘चाँदनी’ हो। कालान्तर में भिन्न-भिन्न स्वरूपों में लिखी जाने वाली लम्बी कविता की परंपरा धीरे-धीरे क्षीण होती चली गई और वर्तमान समय में तो आज के रचनाकारों से इस तरह की परंपरागत लम्बी कविता के सृजन की आशा करना संभव ही नहीं है किन्तु हिन्दी व अंग्रेज़ी भाषा के वरिष्ठ और विख्यात सृजक डॉ. राजेश चन्द्र शुक्ल द्वारा हिन्दी में लम्बी कविता की परंपरा को अपनी तरह से समृद्ध करने की दिशा में किया गया सृजन साहित्य में अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज़ कराता है।
वर्ष 2017 में आई लम्बी कविता की कृति ‘मृगनयनी से मृगछाला’ के पश्चात हाल ही में आई डॉ. आर.सी.शुक्ल की लम्बी कविता कृति ‘मैं बैरागी नहीं’ के माध्यम से उनकी समृद्ध रचनाधर्मिता के साथ-साथ अद्भुत कवि-दृष्टि को भी महसूस किया जा सकता है। पुस्तक की भूमिका में वरिष्ठ साहित्यकार श्री राजीव सक्सेना ने ‘मैं बैरागी नहीं’ को समय से संवाद की कविता मानने के साथ-साथ एक लम्बा प्रणायगीत भी माना है वहीं एक अन्य भूमिका में श्रीमती सुषमा शर्मा ने ‘मैं बैरागी नहीं’ को करुणा से ओतप्रोत हृदयस्पर्शी रचना माना है, किन्तु कृति के रचनाकार शुक्लजी ‘मैं बैरागी नहीं’ को एक प्रगीत रचना जिसे एकार्थकाव्य के अंतर्गत भी रखा जा सकता है, बताते हैं। पुस्तक के 190 छंदों से गुज़रने के पश्चात पृथकरूप से मेरा मानना है कि ‘मैं बैरागी नहीं’ शीर्षक से लम्बी कविता दर्शन की पगडंडियों पर दैहिक प्रेमानुभूतियों और परालौकिक आस्था व अंतश्चेतनाओं के बीच की दिव्ययात्रा है जिसे कवि ने अपने कल्पनालोक में बैराग्य के क्षितिज तक जाकर जिया है। वैसे यात्राएं सदैव सुविधाजनक और सुखकर रहती हों यह आवश्यक तो नहीं, हां अधिकांश यात्राएं कष्टप्रद अवश्य होती हैं। मेरी एक रचना की पंक्तियां हैं-‘कुछ यात्राएं/बाहर हैं/कुछ मन के भीतर हैं/यात्राएं तो/सब अनंत हैं/बस पड़ाव ही हैं/राह सुगम हो/पथरीली हो/बस तनाव ही हैं/किन्तु/नई आशाओं वाले/ताज़े अवसर है’। राग से बैराग्य तक की मन के भीतर की यह आनुभूतिक यात्रा भी शुक्लजी के लिए सहज नहीं रही होगी, यह कृति के छंद बता भी रहे हैं। बहरहाल यह यात्रा प्रारम्भ होती है कृति की इन आरंभिक पंक्तियों से-
‘मैं बैरागी नहीं किन्तु
बैराग्य मुझे भाता है
भूत नहीं होता भविष्य
पर लौट-लौट आता है’
 कबीर ने कहा था- ‘दुख में सुमिरन सब करें/सुख में करे न कोय/जो सुख में सुमिरन करे/दुख काहे को होय’। सुख-सुविधाओं का भोग करना कौन नहीं चाहता, सभी चाहते हैं वहीं दुखों से दूर रहना भी कौन चाहता होगा, कोई नहीं किन्तु बैराग्य को अपने अवचेतन में जीने वाला व्यक्ति निरपेक्ष रहते हुए सुख और दुख में समान रहता है, उसे न तो सुख में अतिशय आनंद की अनुभूति होती है और ना ही दुख में भीषण कष्ट। सभी जानते हैं कि सुखों की अति लालसा ही दुखों का मूल कारण है, किन्तु सबकुछ जानते हुए भी इस व्यामोह को त्याग नहीं पाते। देह का, नेह का मोह जब अपेक्षाओं के निकष पर खरा नहीं उतरता तो अवसाद का गहन अंधकार मन के भीतर चहलकदमी करने लगता है। कवि अपने छंद के माध्यम से इसी भाव को यथार्थ के नये अर्थ प्रदान करता है-
‘दुख से क्यों अवसादित रहते
 दुख तो तुम्हें जगाते
 दुख के कारण उठ जाते हो
 सुख में फिर गिर जाते
 दुख ही सुख का अभिभावक है
 कहां समझ आता है
 भूत नहीं होता भविष्य
 पर लौट-लौट आता है’
दरअस्ल, बैरागी कहलाना और बैराग्य को अपनी संवेदनाओं में जीना दो अलग-अलग बातें हैं। एक रचनाकार के मन-मस्तिष्क में जब कोई रचना स्वतः स्फूर्त रूप से आकार ले रही होती है तो निश्चित रूप से रचनाकार की वह प्रसव-स्थिति किसी बैराग्य से कम नहीं होती क्योंकि तथ्यों के, कथ्यों के अलग और अभिनव अर्थ तभी जन्म ले पाते हैं। दर्शन के धरातल पर बैराग्य को जीना संभवतः इसी को कहते हैं कि किसी जीव के जन्म लेने के कारकों और कारणों को अलग दृष्टि से भी महसूस किया जा सकता है क्योंकि जन्म के संदर्भ में विज्ञान की व्याख्या और आध्यात्मिक अवधारणा सर्वथा पृथक-पृथक हैं। जन्म की इस चिरस्थायी और अनसुलझी गुत्थी को कवि मथता है-
‘मूल प्रश्न है इस दुनिया में
 कौन हमें लाता है
 जो नन्हा शिशु बनकर आता
 बूढ़ा हो जाता है
 एक अवस्था आने पर
 जीवन भी थक जाता है
 भूत नहीं होता भविष्य
 पर लौट-लौट आता है’
यह यथार्थ है कि इस सृष्टि में जिसका आरम्भ है उसका अंत भी है, जिसका जन्म होता है उसकी मृत्यु भी निश्चित है। जीव के जन्म से मृत्यु तक की जीवन-यात्रा में कुछ भी तो सत्य नहीं है, संभवतः इसीलिए मृत्यु को इस सृष्टि का अंतिम सत्य कहा गया है। कवि अपने इस गूढ़ अर्थ वाले छंद के माध्यम से बैराग्य की इस अनुभूति को अपने ढंग से अभिव्यक्त करता है-
‘जीवन से भी बड़ी मृत्यु है
 जिससे सभी अपरिचित
 ईश्वर की सीमा मन्दिर
 चिर निद्रा बहुत अपरिमित
 जीवन तो घर ले आते
 पर मृत्यु कौन लाता है
 भूत नहीं होता भविष्य
 पर लौट-लौट आता है’
इसके अतिरिक्त मृत्यु के उस पार का सच और रहस्य भी सृष्टि के आरंभ से ही अनबूझा, अनसुलझा है, स्वभाविक रूप से कवि भी मृत्यु के उस पार का रहस्य जानने का इच्छा रखता है, मथता है स्वयं को और व्याख्यायित करता है अपनी मनःस्थिति अपने इस छंद के माध्यम से-
‘किन्तु मृत्यु के पीछे भी
 पूरा विस्तार छिपा है
 जिसको संबल कहते हैं
 उसका आधार छिपा है
 केवल मृत्यु बताती हमको
 कर्म कहाँ जाता है
 भूत नहीं होता भविष्य
 पर लौट-लौट आता है’
ज्ञान ग्रन्थों से भी प्राप्त होता है और अनुभव से भी किन्तु अपने अवचेतन मन-मस्तिष्क को बैराग्य की स्थिति तक पहुँचाकर जिस ज्ञान की प्राप्ति होती है वह ना तो ग्रन्थों में मिलता है और ना ही अनुभव से। जीव का जन्म लेना और मर जाना अथवा जन्म लेने से पूर्व ही मृत्यु को प्राप्त हो जाना क्या है और क्यों है, ऐसे अनेकानेक अनुत्तरित प्रश्न हैं जिन्हें अपने भीतर केवल बैराग्य को जीकर ही मथा जा सकता है। कवि ऐसे अनुत्तरित प्रश्नों के हल खोजने का प्रयास करता है अपने इस छंद के माध्यम से-
‘ग्रन्थों में वह ज्ञान कहां
 जो मोक्षधाम में रहता
 कितने उत्तर दे देता
 जो मुर्दा जल में बहता
 जन्म-मृत्यु कैसा रहस्य
 यह कौन समझ पाता है
 भूत नहीं होता भविष्य
 पर लौट-लौट आता है’
कहते हैं कि गया हुआ समय वापस नहीं आता किन्तु यह भी सच है कि बीते समय में घटित वर्तमान और भविष्य को प्रभावित तो करता ही है, संभवतः इसीलिए ‘मैं बैरागी नहीं’ कृति का प्रत्येक छंद ‘भूत नहीं होता भविष्य/पर लौट-लौट आता है’ पंक्ति रूपी सूत्रवाक्य के साथ पूर्ण होता है। यही सूत्रवाक्य जीवन का भी यथार्थ है और दर्शन की मनोभूमि पर बैराग्य का भी। यहाँ यह भी विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि पुस्तक के प्रत्येक छंद में गहन और गूढ़ अर्थ समाहित होने के कारण हर छंद पृथक रूप से विशद व्याख्या और विमर्श की अपेक्षा रखता है। हिन्दी के अप्रतिम गीतकवि स्व. भवानीप्रसाद मिश्र ने कहा है-‘जिस तरह तू बोलता है उस तरह तू लिख/और उसके बाद भी उससे बड़ा तू दिख।’ शुक्लजी के सहज-सरल व्यक्तित्व की तरह उनकी पूरी कविता में सहज भाषा के शब्दों का प्रयोग उनके अभीष्ट कथ्य को अर्थ और अहसास के नए क्षितिज प्रदान करता है। निश्चित रूप से शुक्लजी की यह कृति ‘मैं बैरागी नहीं’ साहित्य-जगत में पर्याप्त चर्चित होगी तथा सराहना पायेगी, यह मेरी आशा भी है और विश्वास भी।





कृति - ‘मैं बैरागी नहीं’ (लम्बी कविता)
रचनाकार   - डॉ. आर.सी.शुक्ल
प्रकाशक    - प्रकाश बुक डिपो,बरेली-243003
प्रकाशन वर्ष - 2019
मूल्य       - रु0 400/- (हार्ड बाइंड)
 ✍️  समीक्षक- योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’
ए.एल.-49, उमा मेडिकोज़ के पीछे
दीनदयाल नगर-।, काँठ रोड
मुरादाबाद- 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
चलभाष- 9412805981  

मुरादाबाद की साहित्यकार इला सागर रस्तोगी की कविता------ मैं मजदूर ...... भारत का ही परिवार हूं ....


मंगलवार, 19 मई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष सुरेंद्र मोहन मिश्र की रचना ------यह ली गई है लगभग 38 वर्ष पूर्व वर्ष 1982 में प्रकाशित वार्षिक स्मारिका "विनायक" से । यह स्मारिका मेला गणेश चौथ चंदौसी के अवसर पर प्रकाशित की जाती है ---


:::::::::प्रस्तुति :::::::::::

डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश ,भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष पंडित मदन मोहन व्यास का गीत ------ - यह गीत लिया गया है लगभग 38 वर्ष पूर्व वर्ष 1982 में प्रकाशित वार्षिक स्मारिका "विनायक" से । यह स्मारिका मेला गणेश चौथ चंदौसी के अवसर पर प्रकाशित की जाती है ---




::::::::प्रस्तुति::::::::::

डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता की तीन ग़ज़लें -----



(1)

वक़्त के साथ बदलते हैं ज़माने वाले 
फेर लेते हैं नज़र नाज़ उठाने वाले

कल तलक सर पे बिठाया था जिन्होंने हमको 
अब हमारे हैं वही ऐब गिनाने वाले 

मरने के बाद कहाँ याद कोई करता है 
रहते पर मर के अमर नाम कमाने वाले

जख्म भी मिलते हमें रहते यहाँ अपनों से 
होते हैं गैर नहीं दिल को दुखाने वाले

पढ़ते पढ़ते ही इन्हें गुनगुना उठते हैं लब 
गीत  होते हैं मधुर गा के सुनाने वाले

लोगों के कहने की परवाह नहीं करना तुम 
कुछ तो होते ही हैं बस बातें बनाने वाले 

है ये विश्वास कि डूबेंगे यहाँ हम भी नहीं 
आयेंगे 'अर्चना' हमको भी बचाने वाले


(2)

 मीलों की ये दूरियाँ, करते पैदल पार 
ये गरीब मजदूर भी, कितने हैं लाचार 

ऊँची बड़ी इमारतें, जो गढ़ते मजदूर 
वे ही बेघर हो गये,हैं कितने मजबूर 

बच्चा ट्रॉली पर लदा, बना हुआ भी बैल
कैसे कैसे दृश्य से, भरा हुआ है गैल

आती ही है आपदा, लेकर कष्ट अपार 
वक़्त बीत ये जाएगा, थोड़ा धीरज धार 


(3)

 सारा अनुमान गलत मेरा सरासर निकला 
हीरा अनमोल जिसे समझा वो पत्थर निकला 

मुस्कुराहट पे फिदा जिसकी ज़माना भर था 
आँखों में उसके भी लहराता समंदर निकला 

चीर कर रख दिया दिल उसकी जफ़ाओं ने ही 
प्यार समझे थे जिसे तेज़ वो खंजर निकला

मुझको रहने न दिया तन्हा कभी जीवन में 
रोज तन्हाइयों में यादों का लश्कर निकला 

कर्म की दौड़ में आगे रही फिर भी हारी 
और दुश्मन भी मेरा अपना मुकद्दर निकला

बाग फूलों का लगाया बड़े दिल से मैंने 
ऐसा उजड़ा कि न आँखों से वो मंजर निकला

'अर्चना' आपदा आई थी चली भी वो गई 
अब तलक भी न मेरे दिल से मगर डर निकला 


✍️  डॉ अर्चना गुप्ता 
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश

सोमवार, 18 मई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष बहोरन सिंह वर्मा प्रवासी जी की गीतिका ------ यह गीतिका ली गई है लगभग 38 वर्ष पूर्व वर्ष 1982 में प्रकाशित वार्षिक स्मारिका "विनायक" से । यह स्मारिका मेला गणेश चौथ चंदौसी के अवसर पर प्रकाशित की जाती है ---




मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष हुल्लड़ मुरादाबादी की कविता ---- सैंपल । यह कविता ली गई है बदायूं की साहित्यिक संस्था "मंच" की ओर से वर्ष 1986 में आयोजित काव्योत्सव के अवसर पर प्रकाशित स्मारिका से ।इस स्मारिका का संपादन डॉ उर्मिलेश और डॉ मोह दत्त साथी ने किया था ।



:::::::::::::प्रस्तुति:::::::::;;;
 
     डॉ मनोज रस्तोगी
     8, जीलाल स्ट्रीट
     मुरादाबाद 244001
     उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822

मुरादाबाद की साहित्यकार इला सागर रस्तोगी की कविता -------- मैं मां की नन्ही गुड़िया



 🎤 ✍️  इला सागर रस्तोगी
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

शनिवार, 16 मई 2020

मुरादाबाद के हिंदीसेवी स्मृतिशेष दयाशंकर पांडेय पर केंद्रित डॉ कृष्ण कुमार नाज द्वारा लिखा गया संस्मरणात्मक आलेख ----- ‘...... हो सके तो लौट के आना'


       कई साल पहले की बात है। शाम के क़रीब सात और आठ के बीच का समय होगा, मेरे घर की कालबेल बजी। मैंने दरवाज़ा खोला तो महानगर के हास्य-व्यंग्य कवि श्री कृष्ण बिहारी दुबे के साथ एक सज्जन खड़े थे। ठिगनी क़द-काठी, दुबला-पतला शरीर, क्लीनशेव चेहरा, खिचड़ी बाल, सर पर गांधी टोपी, खादी की सफे़द पैंट-शर्ट पहने, कंधे पर थैला लटकाए थे। मैंने उन्हें अभिवादन किया और आदर-सत्कार के साथ बैठक में बैठाया। थोड़ी ही देर में चाय आ गई। चाय की चुस्कियों के बीच दुबे जी ने उनसे परिचय कराया- श्री दयाशंकर पांडेय, रेल विभाग से सेवानिवृत्त, महानगर की प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था ‘राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति’ के संस्थापक व अध्यक्ष। मैं बहुत ख़ुश हुआ। पांडेय जी ने बग़ैर किसी लाग-लपेट के अपनी बात शुरू की- ‘'नाज़ साहब मैं आपको हिंदी प्रचार समिति का सचिव बनाना चाहता हूं। मैं चाहता हूं, समिति की जो गतिविधियां मद्धमगति से चल रही हैं, उनमें तेज़ी आए।’' उनकी आंखों में विश्वास की चमक, लहजे में दृढ़ता, व्यवहार में अपनत्व व निश्छलता और मातृभाषा के प्रति उनका समर्पण देखकर मैंने बग़ैर किसी हील-हुज्जत के जवाब दिया- ‘'मैं हाज़िर हूं, आप जो भी आदेश देंगे सर-आंखों पर।’' शायद मुझसे उन्हें इसी उत्तर की अपेक्षा थी, इसलिए उनकी प्रसन्नता उनके चेहरे पर स्पष्ट झलकने लगी। उन्होंने मुझे तत्काल समिति की पंजिकाएं सौंप दीं। पांडेय जी ने बताया कि समिति की गोष्ठियाँ प्रतिमाह 14 तारीख़ को शाम पांच बजे दूरभाष केंद्र स्थित शिवमंदिर प्रांगण में होती हैं।

    पांडेय जी से इस ख़ूबसूरत मुलाक़ात के बाद आने वाली 14 तारीख़ के दृष्टिगत मैंने समिति सचिव की हैसियत से महानगर के अपने सभी कवि साथियों को निमंत्रण पत्र भेजे। इस गोष्ठी में कुछ शायरों को भी आमंत्रित किया गया। चूंकि यह मेरी ख़ुशकि़स्मती है कि महानगर के सभी रचनाकारों का मुझे हमेशा प्यार मिला है, इसलिए मेरा अनुरोध सभी ने स्वीकार किया और सभी काव्यगोष्ठी में उपस्थित हुए। रचनाकारों की संख्या को देख पांडेय जी भी ख़ुश हुए। गोष्ठी के दौरान ही निकट स्थित होटल से चाय मंगा ली गई। इसी बीच पाँडेय जी ने अपने थैले से बिस्कुट के दो पैकेट निकाले और खोलकर रचनाकारों के सामने रख दिए। वह समिति के हर कार्यक्रम में अपने थैले में बिस्कुट के दो पैकेट ज़रूर डालकर लाते थे। इसी परिवारिक माहौल में समय बीतता गया, हर माह 14 तारीख़ आती रही और समिति के कार्यक्रम होते रहे। उसके पश्चात अपनी कुछ अत्यधिक व्यस्तता के चलते मैं समिति को पूरा समय नहीं दे सका और पांडेय जी से क्षमायाचना करते हुए सचिव पद छोड़ दिया।

    यहां मैं बड़ी विनम्रता के साथ एक बात और कहना चाहूंगा कि जीवन की साठ से अधिक सीढ़ियां चढ़ने के बाद भी पाँडेय जी को थकन नाम के किसी शब्द ने छुआ तक नहीं था। उनमें ग़ज़ब की लगन और इच्छाशक्ति थी। उनके प्रति मन इसलिए भी नतमस्तक हो उठता है कि वह न तो कवि थे, न कहानीकार और न ही हिंदी की किसी अन्य लेखन विधा से संबद्ध, इसके बावजूद हिंदी के प्रति उन्हें हृदय की गहराइयों के साथ लगाव था। हिंदी उनके लिए ‘मातृभाषा’ थी, ‘मात्र भाषा’ नहीं। पांडेय जी का हिंदी प्रेम उन ‘फ़ैशनेबुल’ और ‘दिखावापसंद’ लोगों के मुंह पर तमाचा है, जो रोटी तो हिंदी की खाते हैं और गुणगान दूसरी भाषाओं का करते हैं।

    काश, पांडेय जी की तरह देश का हर व्यक्ति मातृभाषा से प्यार करे, तो किसी भी भाषा की हिम्मत नहीं कि हिंदी को उसके सिंहासन से उतारने का प्रयास कर सके।

  यद्यपि पांडेय जी ने 06 नवंबर, 2002 को हमारा साथ छोड़कर उस दुनिया में अपना आशियाना बना लिया, जहां देर-सबेर सभी को पहुंचना है। हालांकि उनकी याद किसे विह्नल नहीं कर देती। आज भी मन कह उठता है- ‘...... ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना।’ पांडेय जी की प्रेरणा आज भी हमें ऊर्जावान बनाए हुए है।

✍️ डॉ. कृष्णकुमार 'नाज़'
 सी-130, हिमगिरि कालोनी
कांठ रोड, मुरादाबाद-244 001.
मोबाइल नंबर  99273 76877

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ मीना नकवी के रचना कर्म पर अंकित गुप्ता अंक का आलेख -----"दर्द से त्रस्त लोगों के ज़ख़्मों पर रुई के फाहे की तरह हैं डॉ मीना नकवी की ग़ज़लें " यह आलेख उन्होंने वाट्स एप समूह मुरादाबाद लिट्रेरी क्लब की ओर से 10 मई 2020 को आयोजित कार्यक्रम एक दिन एक साहित्यकार के तहत प्रस्तुत किया था ।



अंग्रेज़ी के एक बहुत बड़े कवि पी. बी. शैली ने भावों की अभिव्यक्ति के संदर्भ में एक जुमला दिया था कि "हमारे मधुरतम गीत वे होते हैं जो विचारों की अथाह गहराइयों से उपजते हैं ।"
एहसास की मिट्टी में जब शब्दों का बीजारोपण किया जाता है तभी डॉ. मीना नक़वी जैसा 'सायबान' 'दर्द पतझड़ का' झेलकर भी उफ़ुक़ पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराता है । उनकी शाइरी 'किरचियाँ दर्द की' हैं; जिनका फैलाव इन्द्रधनुषी है । यह शाइरी विरोधी तेवरों को भी उस शिद्दत से ओढ़ती है कि शाइरी की रूह भी ज़ख़्मी नहीं होती, शब्द अपनी लक्ष्मण-रेखा भी नहीं लाँघते; किंतु फिर भी लक्षितों को असहनीय तपिश भी महसूस होती है ।
भाषा को विशुद्ध संयमित रखते हुए भी वे जितने प्रभाव से अपनी बात कहती हैं; इससे सहज ही उनके मे'यार का पता चलता है । डॉ. मीना नक़वी बदलते हुए मानवीय संबंधों के प्रतिमानों के बारे में कह उठती हैं —

"इसलिये तेरे तअल्लुक़ से हैं हम सहमे हुये
इब्तेदा से पहले हम को फ़िक्र है अंजाम की"

कोई भी तख़्लीक़ तब तक मुकम्मल नहीं कही जा सकती जब तक उसमें फ़िलैन्थ्रॉपी (मानवप्रेम) का समावेश न हो । मीना नक़वी समाज में व्याप्त वैमनस्यता को यकजह्ती से 'रिप्लेस' करना चाहती हैं । वे आपसी सौहार्द्र की हिमायती हैं—


"है अज़ां अल्लाह की और आरती है राम की
गूँज है दोनों में लेकिन प्यार के पैग़ाम की“

'लव इज़ दि इटर्नल एंड अल्टिमेट ट्रूथ' अर्थात्  प्रेम को शाश्वत मानते हुए वे क्या ख़ूब रक़म करती हैं—

"प्रेम की मदिरा से भर दो, मन के आँगन का कलश
सच ये है क़ीमत नहीं होती है ख़ाली जाम की"

शिल्प के मुआमले में भी डॉ. मीना नक़वी एक बेहतरीन शाइरा हैं । ग़ज़ल तो  उनकी मूल विधा है ही, इसके अलावा गीत, दोहे, मुक्तकों के सृजन में भी वे परिणत हैं । ग़ज़लों के प्रवाह व प्रभाव की कसौटी पर वे किस क़दर खरी उतरती हैं इसकी बानगी उनकी रदीफ़ और क़ाफ़ियों की बेहतरीन जुगलबंदी से मिलती है । रवानी के हवाले से एक उदाहरण द्रष्टव्य है—

"पता है हम को कि उसकी आँखों,  में भावनाओं का जल नहीं है
इसीलिये प्रेम की दिशा में ,  हमारी कोशिश सफल नहीं है“

लगभग सभी प्रचलित बह्रों में उन्होंने अपना क़लम आज़माया है । बड़ी बह्रें सामान्य व स्वाभाविक रूप से प्रयोग में लाने में कम दुष्कर मानी जाती हैं जबकि छोटी बह्रों में यदि बात को प्रभावी ढंग से पहुँचाना हो तो यह हाथी का पाँव है । डॉ. मीना नक़वी इस इम्तिहान में भी अव्वल आती हैं—

"दिल का रिश्ता ख़त्म हुआ
दर्द पुराना ख़त्म हुआ

उसने नाता तोड़ लिया
एक सहारा ख़त्म हुआ

लम्हे भर की तल्खी़ से
रब्त पुराना ख़त्म हुआ"

और

"रुत में है कैसी सरगम
आँखें हैं पुरनम पुरनम

आँधी ने क्या ज़ुल्म किया
शाख़ें करती हैं मातम

उसके आने की आशा।
शम्अ की लौ मद्धम मद्धम

दस्तक आहट कुछ भी नहीं
फ़िर भी एक गुमाँ पैहम"

डॉ. नक़वी की शायरी फ़लसफ़ियाना सोच से मुज़य्यन है । वे तसव्वुफ़ की भी बात करती हैं और ऐस्थेटिक सेंस भी लिए रखती हैं । वे तशबीह(दृष्टांत) भी देती हैं और ज़िंदगी के 'यूनिवर्सल ट्रुथ' के प्रति सचेत भी करती हैं—


"आएगी एक दिन ज़ईफ़ी भी
सोचता कौन है जवानी में"

"उस से मिलते ही बात जान गये
हम नमक रख चुके है पानी में"

इश्क़े-मजाज़ी के साथ-साथ वे 'चरैवेति-चरैवेति' का कॉन्गलोमरेशन(सघन मिश्रण) भी बनाती हैं—

"मंज़िल नहीं मिल सकती कि तू साथ नहीं है
हो बाद-ए-मुखा़लिफ़*(विपरीत हवा), तो दिया कैसे जलेगा"


 'पाषाण',  'तरल', 'पटल', 'विटप', 'वेग', 'अधर' जैसे तत्सम शब्दों का स्थानानुरूप और लयबद्ध इस्तेमाल वे जिस तरह करती हैं; उससे देवनागरी के उनके विपुल भण्डार की भी सहज जानकारी मिलती है । जैसा पहले ही उल्लेख किया गया है कि डॉ. मीना नक़वी हिन्दी और उर्दू दोनों की मुख़्तलिफ़ तसानीफ़ में बराबर अधिकार रखती हैं । वे गीतों में भी वही असरपज़ीरी ला पाने में सक्षम हैं जो कि उनकी ग़ज़लों में झलकती है । उनके गीत श्रृंगार के रस में तो पगे हुए लगते ही हैं, साथ ही; उम्मीदों के वन में कलोल करते हुए हिरणों की तरह मासूम भी हैं ।
पी. बी. शैली अपने एक ओड में  कहते हैं, "ओ विंड!  व्हेन विंटर कम्स, कैन स्प्रिंग बि फ़ार बिहाइंड?" डॉ. मीना नक़वी ने भी अपने गीतों में इसी प्रकार की सकारात्मकता के बंदनवार लटकाए हैं  और आशा का स्वागत किया है—

"संध्या ने उजियार बुना है, दीप जले , तो सुन लेना।
मैने , प्रिय..!  इक गीत लिखा है समय मिले तो सुन लेना"

प्रस्तुत गीत भाव, छन्द और शिल्प की दृष्टि से एक श्रेष्ठ गीत है और डॉ. मीना नक़वी के गीतों के ज़ख़ीरे  में जमा'  सुंदर  रत्नों की नुमाइंदगी करता है । इस गीत की ही  "अंगनाई में यादों की जब बर्फ़ गले तो सुन लेना" पंक्ति में 'यादों की बर्फ़' का सुंदर प्रयोग हुआ है; जोकि गीत में विशिष्टता पैदा करता है ।  मैस्कुलिज़्म, पैट्रिआर्कल सोच से ग्रस्त तथाकथित एमसीपी समाज को ताक़ीद करते हुए वे अपनी दोहानुमा ग़ज़ल में क्या ख़ूब कटाक्ष करती हैं—

"मनसा वाचा कर्मणा मानव है वह दीन
महिला के किरदार पर जिसकी भाषा हीन"

इस प्रकार, डॉ. मीना नक़वी हिंदी-उर्दू अदब का वह नाम है; जिसके बिना दोनों ही भाषाओं में किसी भी तहरीर की कल्पना नहीं की जा सकती । उनकी ग़ज़लें दर्द से त्रस्त लोगों के ज़ख़्मों पर रूई के फाहे की तरह हैं तो वहीं उनके गीत आशा का उजास बिखेरते 'हारबिंजर' हैं । अपने निजी जीवन में वे जिन विकट स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रही हैं; उसके बावजूद उनका सतत्, विराट एवं उत्कृष्ट लेखन नई पीढ़ी के लिए निश्चित ही प्रेरणादायी है ।

✍️ अंकित गुप्ता 'अंक'
सूर्य नगर, निकट कृष्णा पब्लिक इंटर कॉलिज लाइनपार
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9759526650

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल (वर्तमान में गुरुग्राम निवासी) के साहित्यकार डॉ गिरिराज शरण अग्रवाल की ग़ज़ल ----क्यों हवा के हाथ में विष का खिलौना दे दिया उठ रही हैं मेरे अंदर आँधियाँ कल रात से


बंद हैं क्यों इन घरों की खिड़कियाँ कल रात से
पूछती हैं राह में परछाइयाँ कल रात से

क्यों हवा के हाथ में विष का खिलौना दे दिया
उठ रही हैं मेरे अंदर आँधियाँ कल रात से

आदमी था, मैं तो आखिर मोम का पुतला न था
 किस लपट में जल रही हैं, उँगलियाँ कल रात से

भीड़ का अनजान जंगल और मैं खोया हुआ
हँस रही हैं मुझ पे मिल की चिमनियाँ कल रात से

सामने सूरज है लेकिन डर अँधेरे का भी है
जल रही हैं मेरे घर में बिजलियाँ कल रात से

अंत आखिर यह हुआ, नाख़ून तक जाते रहे
किसलिए सुलझा रहा था गुत्थियाँ कल रात से

एक दस्तक और दो, सोए हुए कमरों के पास
जम रही हैं हर तरफ़ ख़ामोशियाँ कल रात से

रोशनी ख़ुद ही अँधेरा ओढ़कर बैठी रही
बंद आँखों-सा हुआ है आस्माँ कल रात से

खिड़कियों तक आ गया है, अब अँधेरे का बहाव
पेड़-पौधे पी रहे थे, ये धुआँ कल रात से

✍️  डॉ॰ गिरिराज शरण अग्रवाल
7838090732

मुरादाबाद की साहित्यकार रश्मि प्रभाकर की गजल-----नजरें झुकाना आपका, दीवाना कर गया। यूँ मुस्कराना आपका, दीवाना कर गया।।


🎤✍️ रश्मि प्रभाकर
10/184 फेज़ 2, बुद्धि विहार, आवास विकास, मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
फोन नं. 9897548736

दुर्लभ चित्र : प्रख्यात साहित्यकार हरिवंश राय बच्चन के साथ मुरादाबाद के साहित्यकार ।

बाएं से वीरेंद्र मिश्र, डॉ ज्ञान प्रकाश सोती, डॉ  हरिवंश राय बच्चन,........., डॉ शिवनाथ अरोड़ा, पंडित मदन मोहन व्यास औऱ गिरधर दास पोरवाल

शुक्रवार, 15 मई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा ------ असहाय


    जिला अस्पताल में पहुंच कर बीमार मोहन ने पर्ची कटवाई और डॉक्टर के कमरे में पहुँचा, डॉक्टर ने उसकी जांच कर कुछ दवाइयां लिख कर उसे दे दी और कहा जाकर काउंटर से ले लो ।काउंटर पर भीड़ थी कुछ देर बाद उसका नम्बर भी आ गया, उसने पर्ची कम्पाउंडर को थमा दी कम्पाउंडर ने पर्ची पर कुछ गोलियां रख कर और यह कह कर की इंजैक्शन बाहर मैडिकल स्टोर से ले लो उसे दे दी।वह  गिड़गिड़ा कर बोला ,मैं बहुत ही गरीब आदमी हूँ।मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं।कम्पाउंडर ने उससे कहा ''क्या तेरे लिए कहीं से खोद कर लाऊं, चले आते हैं ?''वह बोला आप ही कुछ प्रबंध कर दो ,मेरे पास तो घर जाने लायक ही पैसे हैं ।कम्पाउंडर ने कहा '' ला निकाल कितने पैसे हैं ।'' मोहन ने जेब से पैसे निकाल कर उसकी ओर बढ़ा दिये, उसने इंजैक्शन उसके हाथ पर रख दिया '' अब गरीब मोहन हाथ में लिये इंजैक्शन की ओर देखता तो कभी अपनी जेब की ओर उसके पास इंजैक्शन लगवाने के लिए भी पैसे नहीं बचे  थे, इस वेदना में उसकी आँखों से  आँसू टपककर  इंजैक्शन पर गिरने लगे, औऱ--------वह प्रश्न चिन्ह बना  खड़ा रहा??????
       
            ✍️ अशोक विश्नोई
               मुरादाबाद
               941180922

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की लघुकथा ---पड़ौसी

                                                          अशर्फीलाल और चिरंजीलाल में सुबह -सुबह तू तू मै मै होना कोई नई बात नहीं  थी । अशर्फीलाल का कहना था कि चिरंजी  अपने घर का कूड़ा उसके घर के सामने डाल देता है जबकि चिरंजीलाल का कहना था - वह तो सरकारी सड़क पर कूड़ा डालता है। आये दिन की दोनों की तू तू मै मैं से दोनों परिवार में मन मुटाव चला आ रहा था । 
     अचानक पांच मई को  65 वर्षीय अशर्फीलाल की तबियत खराब होने पर उन्हें पहले मुरादाबाद ले जाया गया और वहाँ से उन्हें मेरठ अस्पताल में रैफर कर दिया गया जहाँ 6 मई को उनकी कोरोना के लिये सैम्पलिंग हुई और 8 मई को उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई तो उनके सभी परिजनों को स्वास्थ्य विभाग की तरफ से क्वारन्टीन कर दिया गया। 10 मई को उपचार के दौरान उनकी मौत हो गई । मेरठ में अशर्फीलाल की ससुराल के कई रिश्तेदार थे, जिन्हें मौत की सूचना दी गई लेकिन कोरोना के खौफ के चलते कोई अस्पताल नहीं आया। कल तक जो लोग उनके आगे पीछे रहते थे उन्होंने नये नये बहाने बनाकर अस्पताल आने में अपनी असमर्थता जता दी थी। पड़ौस के गांव से मुंह बोले भतीजे विनोद को जब ताऊ की मौत की खबर मिली तो वह सारी बाधाएं पार करते हुए मेरठ पहुँच गया। उसने ताई सविता से फोन पर वार्ता की तो उन्होंने मेरठ में ही अंतिम संस्कार करने की बात कह दी लेकिन दो जिलों के बीच में अशर्फीलाल का अंतिम संस्कार भी उलझ गया। वह सोच रहा था कोरोना ने रिश्ते नाते तो क्या  संवेदनहीनता का वायरस भी समाज में फैला दिया है । ताऊ के परिजनों से कहकर  बड़ी मिन्नतों के बाद आखिरकार वह ताऊ का शव गांव ले आया। कोरोना व प्रशासन के खौफ़ के कारण गांव में भी लोग सांत्वना तक व्यक्त करने उसके ताऊ के घर नहीं आये । वहीं पड़ोस में चिरंजी लाल की पत्नी रजनी अपने पति व बच्चों को समझा रही थी कि पड़ोस में छोटी मोटी बात होती रहती है लेकिन कोई दुश्मनी थोड़ी हो जाती है। सविता की पूरी फैमिली क्वारन्टीन है ऐसे में पड़ोसी होने के नाते हमारा फर्ज है कि हम अशर्फीलाल का विधि विधान से अंतिम संस्कार कराएं।  अगले ही पल चिरंजीलाल अपने चारों बेटों के साथ पूरी सावधानी बरतते हुए अशर्फीलाल की अर्थी को कान्धा देने पहुँच गये । शमशान की दीवार से सिर टिकाए विनोद अपने ताऊ की चिता को जलते देख रहा था। अचानक उसके मुंह से निकल पड़ा - किसी  ने सच ही कहा है सौ गोती एक पड़ौसी बराबर होता है।

✍️कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
प्रधानाचार्य, अम्बेडकर हाई स्कूल बरखेड़ा (मुरादाबाद)
सिरसी (सम्भल)
9456031926

कंचनलता पांडेय की लघुकथा ----बुद्धू बक्सा






हे हेलो !  सो उठकर मुझे अकेले चीखते हुए छोड़कर जो तुम बाथरूम में घुस जाते हो, कोई सुनता भी है मुझे ? आज मेरा टीवी थोड़े शिकायती लहजे में बोला ।
क्या हुआ बुद्धू बक्से ? मैंने भी टूथपेस्ट का पैकेट खोलते हुए ही उसे चिढ़ाने के अंदाज़ में कहा ।
इतना सुनते ही वो तो भड़क गया !
क्या बोला ? बुद्धू बक्सा ! मैं बुद्धू बक्सा हूँ, और तुम ? तुम बहुत समझदार हो ? तो क्यों नहीं मेरे बिना रह लेते हो ? मैं तो नहीं आया था अपने आप तुम्हारे पास, तुम लेकर आए थे मुझे बड़े एहतियात से, याद  है ना और हाँ सुबह उठने से रात के सोने तक कोई न कोई चलाए रखता है मुझे । तुम्हें भी तो हर खबर मुझसे ही जाननी होती है चाहे कहीं और से सुनी हो तो भी और मैं बुद्धू बक्सा हुँह । मेरे बिना तुम्हारा ही नहीं तुम्हारे घर में किसी का काम नहीं चलता । तुम्हारी माता जी का भजन कीर्तन कथा योगा हो या बच्चों का कार्टून । और तो और आजकल तुम्हारा पूरा परिवार रामायण, महाभारत देखने और कितनी शिद्दत से बच्चों को भी दिखाने में लगा रहता है, बच्चों को संस्कार जो सिखाना है !
टीवी अब तक रौब में आ गया था और मुझे उससे बहस करने का न मूड था न समय, सो मै वहाँ से जाने के मुड़ गया । पर वो अभी चुप होने मूड में नहीं था, अब भी उसकी आवाज़ मेरे कानों में धीमी धीमी पड़ रही थी ।
घर का हर समान मुझे देखकर ही लाते हो, सुन रहे हो ? ये जो टूथपेस्ट लिए खड़े थे, वो भी मैंने ही बताया था तुम्हें । बड़े आए होशियार ।
साबुन सैपू ...
वो बोलता जा रहा था, पर अब तक मैंने नहाने के लिए पानी खोल दिया था और उसकी आवाज़ सुनाई देनी बंद हो गई, लेकिन उसकी कही हुई बातें सही ही तो थीं ! बल्कि मुझे तो वो सब (जो उसने कहा नहीं या मैंने सुना नहीं ) नज़र आने लगा । नास्ते की मेज़ पर रखा जैम अचार जूस सब जगह उसकी मौजूदगी दिखने लगी । मैं ऑफ़िस के लिए लेट हो रहा था और उसकी कही अनकही बातों को दिमाग़ से निकाल जल्दी ऑफ़िस जाने के लिए निकाल गया ।                                           
~कंचन
आगरा
9412806816

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की लघुकथा ---------अमीर गरीब


पिछले दिनों,संतुलन नामक संस्था का दो दिवसीय ध्यान शिविर लगा था।ये आयोजन,केवल संस्था से जुड़े लोगो के लिए था।इसके लिए 300 रुपए सहयोग राशि निर्धारित की गई थी।
जो लोग उस समय सहयोग राशि नहीं दे पाए थे,उनके लिए आज एक स्पेशल काउंटर लगाया गया था।रमेश सबके रुपए जमा कर रहा। सबसे आगे सावित्री खड़ी थी।वो लोगो के यहां बर्तन मांजने का काम कर, बड़ी मुश्किल से गृहस्थी चला पाती थी।
      लेकिन तुम तो शिविर में आई ही नहीं थीं,फिर ये रुपए क्यों जमा कर रही हो,---रमेश ने सावित्री से कहा
      हां,बेटे को बुखार हो गया था,इसलिए आ नहीं सकी लेकिन ये रुपए तो मैंने पहले ही अलग निकाल कर रख लिए थे,इनको तो आप जमा कर लो,किसी और काम आ जाएंगे -- सावित्री ने जबरदस्ती रुपए रमेश के हाथ में पकड़ाए और अलग हट गई
           उसके पीछे कपड़े के बहुत बड़े थोक व्यापारी प्रेम प्रकाश गुप्ता जी खड़े थे। उन्हें देख रमेश बोला --- अरे गुप्ता जी आप,आपके रुपए तो जमा है
----- वो तो ठीक है,लेकिन हम एक दिन ही आ पाए थे,और हमने लंच भी नहीं किया था।हमें तो कुछ रुपए वापस मिलने चाहिए --- गुप्ता जी ने रमेश से बड़े अधिकार से कहा।
         रमेश विस्मय से गुप्ता जी और सावित्री को देखने लगा।उसकी समझ नहीं आ रहा था --- अमीर कौन है और गरीब कौन।

✍️ डॉ पुनीत कुमार
T-2/505, आकाश रेसीडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
कांठ रोड
मुरादाबाद - 244001
M - 9837189600

गुरुवार, 14 मई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल की कहानी -------- घर वापसी


पापा, अभी कितना और चलना है, घर कब पहुँचेंगे, नन्हीं मुनिया ने राकेश से पूछा।
पहुँच जायेंगे बिटिया, जल्दी पहुँच जायेंगे, कहते कहते राकेश का स्वर भर्रा गया था।
तीन दिन हो गये चलते चलते, मुनिया अब परेशान होने लगी है, अभी और कितने दिन लगेंगे, राकेश की पत्नी संतोष ने पूछा।
मुनिया की माँ, अभी तो कई दिन लगेंगे, लेकिन जब घर से निकल आये हैं तो परेशानियां तो सहनी ही पड़ेंगी। वहाँ भी तो परेशान ही थे। न नौकरी रही, न आमदनी, ऊपर से मकान मालिक रोज मकान खाली करने को धमका रहा था। राकेश ने संतोष को समझाया।
हुम्म: वो तो अच्छा हुआ, मैंने मोटे मोटे रोट और मठरियां बनाकर साथ में रख ली थीं चार पाँच दिन का काम तो चल ही जायेगा, यहाँ तो रास्ते में कहीं कोई दुकान या ढाबा भी खुला हुआ नहीं मिल रहा, संतोष बोली।
लॉकडाउन को चालीस दिन हो चुके थे। पास की जमापूँजी खत्म हो चुकी थी। किसी से कोई सहायता की उम्मीद न थी। न रेलें चल रही थी न बसें। जी कड़ा करके उसने पैदल ही घर वापसी का निर्णय ले लिया। सिर पर बड़ी सी अटैची, पत्नी के पास भी एक गठरी थी और पाँच साल की नन्हीं मुनिया भी पैदल पैदल चल रही थी।
शाम हो चली थी। रास्ते में एक छोटा सा मंदिर देख कर राकेश बोला, आज की रात यहीं गुजार लेते हैं।
मंदिर बंद था। दोनों ने नल पर हाथ मुँह धोकर खाना खाया, मुनिया को खिलाया और चबूतरे पर लेट कर बतियाने लगे।
ऐसे ही चलते रहे तो दो दिन और लगेंगे गाँव पहुँचने में, राकेश बोला।
हूँ;   घर तो पहुँच जायेंगे, लेकिन अब करेंगे क्या। नौकरी तो चली गयी, संतोष ने पूछा।
अरे, अपना पुश्तैनी काम करेंगे। गाँव में अपना मकान दुकान सब कुछ है, पिताजी अकेले काम करते हैं उनसे अब इस उम्र में  इतना काम नहीं होता। वही काम सम्हालेंगे। वो तो कहते रहते थे, लल्ला अब मुझसे काम नहीं होता, तुम आकर काम संम्हालो, ये तो हमारी ही मति मारी गयी थी। पढ़ लिखकर बड़े शहर में नौकरी करने की। शहर की तड़क भड़क की जिंदगी जीने की। लेकिन शहर और गाँव का अंतर अब समझ आ रहा है। इतने साल जिस मालिक की नौकरी की उसने चार दिन भी न लगाये हमें बाहर करने में। तनख्वाह भले ही अच्छी मिलती थी, लेकिन बड़े शहर के बड़े खर्चों में सब फुर्र हो जाती थी। सरकार को भी हर साल टैक्स भरते थे, उसने भी हमारी सुध न ली।।
यहाँ, अपना काम होगा, किसी की नौकरी नहीं। चार पैसे कम मिलेंगे , कम खा लेंगे, गम खा लेंगे, लेकिन ऐसे दर दर भटकने की नौबत तो नहीं आयेगी।
बातें बातें करते करते दोनों सो गये, और भविष्य के सपनों में खो गये।

  ✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल
MMIG-69, रामगंगा विहार
मुरादाबाद 2
मोबाइल नं. 9456641400

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रामकिशोर वर्मा की लघुकथा------- लॉकडाउन में छूट


     कोविड-19 के कारण लॉक डाउन में रहते-रहते अब आदत सी पड़ गयी है । सभी घरों में बंद हैं । सभी काम बन्द हैं । पर्यावरण स्वत: शुद्ध होने लगा है । समाज में अपराध थम गये हैं ।                       असामाजिक तत्व भी तो आखिर इंसान हैं । मौत से उन्हें भी डर लगता है । कोरोना के भय ने आतंकियों के भय को मात कर दिया है ।
   लॉक डाउन में छूट क्या दी ! सरकार ने तीन महीने से प्यासे लोगों के लिए सबसे पहले मदिरालय खोल दिये । मंदिर इसलिए नहीं खोले कि वह तो भगवन भजन आप घर बैठे भी कर लेते हो ।
   अरे ! टी वी पर यह क्या समाचार आ रहा है ? लॉक डाउन से पहले की तुलना में लॉकडाउन के दौरान अपराधों में बहुत कमी आयी है । मैंने सोचा - " कोरोना के भय ने चोर-डकैतों और अपराधी प्रवृत्ति के लोगों पर अंकुश लगा रखा है ।"
   मगर लॉकडाउन के दौरान "कोरोना वारियर्स अर्थात् डॉक्टर, नर्स और पुलिस" पर हमला, पत्थरबाजी और बदतमीजी के अपराध ही घटित हुए ।
   अब सरकार ने ग्रीन जोन के लोगों के लिए अपने ही शहर में आने-जाने में और काम-काज में काफी छूट दे दी है । मेरा सिर घूम गया ।
     लॉक डाउन में मैं अपने शहर व प्रदेश से काफी दूर अपने बेटे के घर दूसरे शहर व प्रदेश में फंँस जाने के कारण निश्चिन्त होकर रह रहा था । घर पर ताला लगाकर आया था । पड़ौसी से घर का ध्यान रखने को कह आया था ।
   अभी टी वी समाचार में देखा कि शराब पीकर किसी ने आत्महत्या कर ली । महिलाएं शराब के विरोध में प्रदर्शन कर रही हैं ।
     अब जब लॉक डाउन में छूट दी गयी है तो मुझे भी अपने बंद घर की चिन्ता होने लगी है । क्योंकि सरकार ने सभी को अपने कामधंधो को करने में छूट जो दे दी है ।
        भगवान मेरे घर का ताला सही सलामत रहे ।

 ✍️ राम किशोर वर्मा
 जयपुर (राजस्थान)

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा ------- फर्ज का कर्ज


सुना था कि अच्छाई का फल अच्छा ही मिलता है मगर आज ये भी असत्य प्रतीत होता है।जिन  सम्बन्धो को लेकर वह मान करती थी,आज उनकी कृतज्ञता ने उसे चूर चूर कर दिया।
जिंदगी के मध्य मे ही माता पिता के वैकुण्ठ चले जाने के बाद शान्ति ने अपने  दोनो भाई को बडा किया।अच्छी शिक्षा दिलवायी,बडे का मन पढाई मे न था तो स्नातक के बाद दुकान करवा दी , छोटा शुरू से ही पढने मे रूचि लेता था ।एम ए करते ही प्रतियोगी परीक्षा पास कर आयकर विभाग में नोकरी पा गया।सबकुछ ठीक ही चल रहा था।भाइयों की शादियाँ भी हो गई ।शान्ति को पता न लगा कि समय बदल रहा हैं वह उसी लय मे बही जा रही थी। अपनी भतीजी को संतान की तरह समझती रही थी क्योंकि उनका पालन पोषण शिक्षा सबकी व्यवस्था उसी ने की थी।एकदिन प्रियंका को उसने लैपटॉप पर गलत फिल्म देखते हुए पकड लिया।वह उसे बैठाकर जिंदगी की ऊँच नीच समझा रही थी कि उसकी भाभी ने पदार्पण किया और अपनी बेटी को बहकाने का आरोप लगा दिया।भाई से अपनी बात कहकर अपना पक्ष रखना चाहा मगर भाभी की चमकती आँखें देखकर भाईकी सच स्वीकार करने की हिम्मत नही पडी।बात बहस बढ गयीं शान्ति चिल्लाते हुए बोली,"रातो को जागने के लिए,डाक्टर के यहाँ जाने के लिए मै थी?""अब....आगे बात पूरी भी न हुई कि भाभी बोली,"तो क्या हुआ आपका फर्ज न था,रहती हो तो कर दिया कंही दूर होतीं तो क्या करती"।फर्ज का कर्ज तो उतारना होता है।
अपनी जिंदगी के बीस वर्षों के कर्मों का फल या पूर्व जन्म के दुष्कर्मो का दंड।
अपने भाई की कृतज्ञता के आगे वह कुछ न सोच सकी।

✍️ डॉ श्वेता पूठिया
मुरादाबाद 244001

मुरादाबाद की साहित्यकार मंगलेश लता यादव की कहानी....... कुंडली

                   
  आज अचानक जब मोनिका को फेसबुक पर हंसते मुस्कुराते हुए अपने नातियों के साथ देखा। तो मन बहुत खुश हो गया ।
    जीवन में कभी कभी ऐसे पल आते है जब किसी दूसरे के जीवन की झांकी हमें बहुत कुछ सिखा जाती है। मोनिका की जीवन की कहानी भी कुछ ऐसी ही थी,याद आए वो दिन जब हम दोनों स्कूल से लेकर कालेज की पढ़ाई तक एक दूसरे की सच्ची दोस्ती निभाने में कौई कसर नहीं छोड़ते थेैं। बचपन से साथ खेल कर जवानी की दहलीज पर कदम रखा और दोनों के घरों में तैयारियां होने लगीं थीं कि अब इन्हें पराए घर जाना है । मोनिका ब्रह्ममण परिवार की चार भाई बहनों में सबसे बड़ी संतान थी, खूबसूरत भी थी , पैसे की भी कमी न थी तो घर और वर दोनों सुयोग्य मिलने में कौई  परेशानी तो होनी ही नहीं थी। सुयोग्य वर ढूंढने में रिश्तेदारों ने भी कौई कसर न छोड़ी , लेकिन सब कुछ अच्छा होने के बावजूद बात नहीं बन पाती थी , क्योंकि वर  और कन्या की कुण्डली में पंडित जी कौई न कौई कमी निकाल ही देते थे।इस बीच मेरी शादी माता पिता ने अपनी हैसियत और प्रतिष्ठा के अनुसार बिना कुंडली मिलान के कर दी।‌लेकिन मोनिका की कुंडली उसके घरवाले और रिश्तेदारों के कारण नहीं मिल पा रही थी । उम्र निकलती जा रही थी मोनिका अब अपना ध्यान पढ़ाई पर लगाने लगी थी और उसकी पी एच डी भी पूरी हो गयी थी।
   एक दिन एक रिश्ता ऐसा भी आया कि लड़के वालों को उसकी छोटी बहन पसंद आ गयी और उसकी कुंडली भी लड़के से मिलान कर गयी। परिवार वालों ने मोनिका के भाग्य को कोसना शुरू कर दिया था, अब मोनिका की सहनशक्ति जवाब दे गयी थी और फिर उसने वो फैसला लिया जो परिवार वालों के खिलाफ, था ,, पहुंच गयी थी एक दिन सिध्दार्थ के घर जो उन दिनों छुट्टी में घर आया हुआ था,।हम सब के साथ उसने स्कूल से लेकर कालेज तक की पढ़ाई की थी और कभी कभी मजाक में कह देता था , मोनिका क्या मुझसे शादी करोगी?और मोनिका जिसे अपने परिवार और खूबसूरती पर नाज था मुंह बना कर कह देती थी ,इतने काले लड़के से कौन करेगा शादी ,मेरी तुम्हारी कुंडली तो यहीं मिलान नहीं करती,आगे तो भगवान ही मालिक होगा और वो अपना सा मुंह लेकर चुप हो जाता था । पढ़ने में और अन्य क्रियाकलापों में होशियार था ग्रेजुएशन करने के तुरंत बाद उसका चयन आर्मी में सेकंड लेफ़्टिनेंट के पद पर हो गया था,पर अब तक शादी नहीं की थी पूछने पर हंस कर कहता किसी से कुंडली मिलती नहीं जब मिल जाएगी तो कर लूंगा।               अचानक मोनिका को सामने देख कर वो भी अपने घरपर, भौचक रह गया था , मोनिका ने बिना किसी औपचारिकता के सीधा सवाल किया था"सिध्दार्थ क्या मुझसे शादी करोगे?? सिध्दार्थ को समझ नहीं आया कि वो सपना है या हकीकत, अचकचा गया और बोला ....वो.. कुंडली....का मिलान.....बात पूरी से पहले ही मोनिका ने उसका हाथ पकड़ कर कहा "वो मैं मिला लूंगी बस तुम्हारी हां की जरुरत है।"सिध्दार्थ के मुंह से हां निकलते ही मोनिका ने घरवालों से पूछा शादी आप लोग करेंगे या मैं कोर्ट में कर लूं और फिर घरवालों ने अपनी बदनामी के डर से न चाहते हुए भी साधारण तरीके से शादी कर दी थी। अाज वहीं मोनिका अपनी छोटी बहन से भी ज्यादा सम्पन्न और सुखी थी क्योंकि उसने अपनी कुंडली खुद मिलायी थी।                                                                         
✍️ मंगलेश लता यादव
जिला पंचायत कोर्ट रोड
मुरादाबाद 244001
मोबाइल फोन नंबर 9412840699

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघु कथा ......'मुझे हक है '



​आज पूरे ऑफिस में हँसी  ठहाके गूंज रहे थे सबको जैसे हँसने  की वजह मिल गई हो और लाजिमी भी है क्योंकि कई  तो जिंदगी की भूल भुलैया में ऐसे उलझे कि  ठहाके की तो छोड़िए सपने में मुस्कराना तक भूल गए थे मगर आज शिवानी शर्मा की वजह से सभी के चेहरे खुश नजर आ रहे थे; ऐसा नहीं था कि वे सभी खुश थे बस दूसरों का उपहास उड़ाने वाली हँसी ही सजी थी l
​"मै तो यह कहता हूँ कि शिवानी जी को हो क्या गया है अरे अच्छी खासी जॉब दोनों बच्चे सेटल और उम्र पचपन .......क्या आवश्यकता थी इस उम्र में यह स्वांग रचने की ?"श्री विनोद शर्मा ने तम्बाखू चबाते हुए कहा l
​"वही तो ....देखो न लोग क्या कहेंगे ?"इस बार मंजू श्री जो शिवानी की हमउम्र थीं ने चिंता व्यक्त की l
​"मगर फिर भी उन्हौने जो किया सो किया उनको गिफ्ट तो देना ही होगा l"अवधेश जी ने अपने मन की बात कही l
​"सच कहूँ बिल्कुल दिल नहीं कर रहा l"लता देवी ने मूँह बनाते हुए कहा l
​"अरे विवाह किया ही तो पंद्रह साल पहले ही कर लेतीं कम से कम अच्छा पति तो मिल जाता ...कहाँ खुद पचपन की और मियाँ  ढूँढे  हैं अठत्तर के l"विनोद जी ने बमुश्किल हँसी को दबाते हुए कहा l
​विनोद जी के शब्दों  ने शिवानी के बढ़ते कदमों को रोक लिया उनकी मानसिकता देखकर वह सन्न नहीं हुईं क्योंकि उन्होने यह फैसला इन सब बातों पर विचार करने के बाद ही लिया था l
​"क्या विवाह का मतलब सिर्फ देह सुख ही विनोद जी ?"शिवानी का स्वर सुन सभी भौचक्के रह गए और इधर उधर बगलें झांकने लगे l विनोद जी को तो काटो तो खून नहीं l
​"सहारा ...मित्रता ..सुख- दुख बाँटना  मन की बात कहने के लिए किसी सहारे की किसी अपने की आवश्यकता होती है या नहीं ....अगर मै विवाह दैहिक सुख के लिए ही करती तो पति की म्रत्यु के तुरंत बाद भी कर सकती थी मगर बच्चों की परवरिश की भी जिम्मेदारी थी न ;पता ही नहीं चला वक्त कैसे बीत गया ?"शिवानी का गला रूँध गया और आँखे भर आई देखकर सभी नजरें चुराते से दिखाई देने लगे l
​"मुझे हक है मेरी जिंदगी के फैसले लेने का ....मुझे हक है सिर्फ मुझे l  वैसे आज बहुत दिनों बाद ऑफिस में खिलखिलाते हुए चेहरों से रूबरू हुई हूँ इसलिए मिठाई तो बनती है l"शिवानी ने मिठाई के डिब्बे को खोलकर विनोद जी को देते हुए कहा l

​✍️राशि सिंह
​मुरादाबाद 244001

मुरादाबाद की साहित्यकार इंदु रानी की लघुकथा ------ मजदूर


आज बहुत दिन बाद बुधिया को जाम का नशा चढ़ा मन ही मन सोच कर परेशान "आखिर महामारी के चलते इस लॉक डाउन मा जब सब कुछ बन्द हुई गवा तो फिर ई ससुरा मदिरालय खुल कइसे गवा... खैर कउनो बात नाही कुछ तो खुला "। आनन्दsss
         सुबह नशा उतरा और बुधिया फिर परेशान," जब कंस्ट्रक्शन का काम चल ही नही रहा तो हम का करेंगे यहां भिखारी की तरह पड़े पड़े। ना ढंग का भर पेट खाना न रहना ऊपर से शहर का अइसन बुरा व्यवहार हमको निकाल दिया खोली से.... का ऊ मकान मालकिन अनपढ़ है,मालूम नही का लॉक डाउन चल रहा। कैसे अब हम घर वालों को पैसा भेजेंगे कैसे मुनवा की पढ़ाई हुई है। काहें नाही समझत ई लोग काहे नाही समझत ई सरकार। नाही-नाही अब हमका जाई के पड़ी हम ना इहां रहिबै "।
ठीक तभी अपने मन की उधेड़ बुन मे बुधिया को पता चला कि जो मजदूर परिवार उनके साथ लाचारी मे फसा हुआ था उस पर एक और मुसीबत गिर पड़ी। वो मजदूर जो भोजन की व्यवस्था करने खाने का सामान जुटाने गया था। देश मे आपातकालीन स्थिती के चलते मृत लौटा उस मजदूर परिवार की औरत रोए जा रही थी दोनों बच्चो को सुबह से कुछ भी खाने नही मिला था। उसके मजदूर आदमी का अब कैसे अंतिम संस्कार किया जाए ये भी समझ नही आ रहा था। बुधिया ने जैसे तैसे पैसे मांग कर जुटाए और अंतिम संस्कार कर भोजन सामग्री उस परिवार तक ला कर दी। और फैसला किया चाहे भले गाँव मे ही कम खा-पहन जी लेंगे पर शहर के इस अमानवीय वातावरण मे नही लौटेंगे। बेशक कम मे रहेंगे पर अपने परिवार वालों को ऐसे हाल में नही छोड़ेंगे।
अब विभिन्न तरीकों से मजदूरों द्वारा सरकार से गुहार लगाई जा रही थी कि उन्हें उनके घर भिजवा दिया जाए उनकी यह गुहार सरकार तक पहुँची और उन सबको उनके गांव तक पहुँचाने के लिए ट्रेन भी चली पर यहां भी बुधिया परेशान उसे जाने के लिए स्पेशल चार्ज देना था जो के उसके पास नही था तभी उसकी मदद संग के सभी मजदूरों ने मिल कर की और वह अपने स्टेशन पर पहुँचा पर अफसोस वहां भी किस्मत का मारा बुधिया धक्के ही खाने मजबूर। गाँव वालों ने पूरा गाँव घेर कर बन्द कर डाला ताकी कोई बाहर का गाँव मे न आए और गाँव महामारी से सुरक्षित रहे। बुधिया को फिर परिवार से दूर वहां के सेनेटाइज किये हुए स्थान पर क्वारन्टाईन हो कर रहना पड़ा और अब तक बुधिया महामारी से संक्रमित हो चला था जिसको प्रशासन की गाड़ी ले जा चुकी थी और इलाज हेतु जिला अस्पताल  में रखा गया जहां उसकी हालत बिगड़ती गई अंततः उसे अब छूना परिवार से मिलना सब मना हो गया और परिवार से मिलने कुछ कहने की सारी तंमन्नाए उसके साथ स्वाहा हो लीं।
रहा तो सिर्फ बुधिया का परिवार जो उस के सहारे ही पल रहा था....

✍️ इन्दु रानी
मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी ---------- सपेरन


        रात के एक बजे का समय था। गहरी काली स्याह अंधेरी ...रात ...गांव के पीपल के पेड़ पर असंख्य जुगनू चम चम चमक रहे थे । मानो पूरे पेड़ पर सितारे जड़ें हों ...
   गुलशन चबूतरे पर बैठा बड़ी गहरी सोच में डूबा हुआ उसे देखे जा रहा था तभी उसने अंधेरे में एक साया आते हुए देखा ..वह एक  वृद्ध स्त्री थी जिसने अपने आप को एक काले लबदे से ढक रखा था ... धीरे-धीरे वह चबूतरे के किनारे -किनारे से गोपाल कुम्हार के घर की ओर बढ़ गई ... लौटते हुए गुलशन ने उसे टोका ,,किसे ढूंढ रही हो,,?..ठिठक कर बोली ,,यहां हरिशंकर का घर था !,,
     ,,वह तो कई साल पहले बेच कर दूसरे मुहल्ले में चला गया,,दो दिन पहले भी उसे इसी तरह जाते हुए गुलशन ने देखा था । गुलशन सोच में पड़ गया आखिर यह कौन स्त्री है जो बंजारन सी दिखाई देती है और रात के अंधेरे में गोपाल के घर की ओर जाती है ।कुछ दिन बाद मंदिर पर बहुत भीड़ लगी थी ,,...चोर! -चोर!  बच्चा चोर !,,!का शोर मच रहा था ...गांव वालों ने एक स्त्री को घेर रखा था ...उस स्त्री के शरीर पर गोदना गुदा था मोटे-मोटे मनकों की कई मालाएं गले में पहन रखीं थीं, देखने में ही सपेरन मालूम पड़ती थी । लोगों ने रात उसे पंडित हरिशंकर के  घर के पास से पकड़ा था। भीड़ उसको मारने पीटने को तैयार थी.. आगे बढ़कर  गुलशन ने जानने की कोशिश की कि  माजरा क्या है गहन पूछताछ पर पता लगा वह सपेरन है परंतु अपने आप को पंडित हरिशंकर की मां बता रही थी .,,.अरे वही हरि शंकर पंडित जो इंटरकालेज में संस्कृत साहित्य पढ़ाते हैं ।,,कोई मानने को तैयार नहीं था ... लालपुर में सपेरों के डेरे पड़े हैं वहीं से यह आई  है स्त्री की उम्र साठ- बासठ साल होगी हरिशंकर ने देखते ही पहचानने से साफ मना कर दिया....तभी नब्बे साल के किसन लाल ने पहचान लिया ,, हां ये सही कह रही  बीस साल पहले इसे सांप ने काट लिया था इस की मौत हो गई थी। मरने के बाद इसे नदी में बहा दिया गया था सपेरों ने निकाल कर इसे ज़िंदा कर लिया ,, ,,सुना था सपेरे ज़हर उतार कर  जिंदा कर लेते हैं आज देख भी लिया,, । परन्तु हरिशंकर ने मानने से इंकार कर दिया।
 दो ही महीने गुजरे थे कि हरिशंकर के छोटे बेटे दिनेश को सांप ने काट लिया और डॉक्टरों ने भी जवाब दे दिया ,,ब्लैक कोबरा ने काटा है ,,इंजेक्शन का भी असर नहीं हुआ,, हार कर लोगों ने कहा ,,सपेरन को ही बुलाकर लाओ ""क्या हरज है ,,?,,क्या पता ज़हर उतार ही दे ?,,हरिशंकर की पत्नी दहाड़े मार-मार कर रो रही थी.... आखिर कुछ लोग सपेरन को बुला लाये ... सपेरन ने चीरा लगाया ...बंध बांधे ..और मुंह से खून की चुस्की लगा दी.. तीन घण्टे बाद बालक को होश आने लगा ... परन्तु सपेरन की हालत बिगड़ने लगी अब हरिशंकर और उसकी पत्नी सपेरन को मां मानने को तैयार थे और ... जोर-जोर से बिलख रहे थे......
 सुबह होते होते सपेरन ने  दम तोड़ दिया .. परन्तु मरते हुए उसे सन्तोष था कि वह अपने पोते को बचा सकी .... सचमुच एक मां ही ऐसा कर सकती है  ।
 हरिशंकर ने विधि-विधान से अपनी मां का अंतिम संस्कार किया ।
 
✍️अशोक विद्रोही
412, प्रकाश नगर
मुरादाबाद 244001
मोबाइल फोन नंबर 8218825541

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघु कथा -------- पश्चाताप


 लॉक डाउन की लंबी अवधि में,वो भी बिना किसी रोजगार के ,शहर में रहना ,तीन बच्चो के पेट भरना ये सब  समस्याओं को देख मोहन ने वापस गांव की तरफ लौटना उचित समझा । कमला भी अब उसकी हां में  हाँ मिलती उसके पीछे चल दी ।किसी तरह मोहन गांव पहुँच गया । पहले दिन तो चचेरे तहरे भाइयों के घर से भोजन की व्यवस्था की गई । रामकली अम्मा जो बच्चों को जन्म के बाद नहलाती थी  सबेरे ही जग भर छाछ दे गईं। कमला आज फिर से उस दिन को स्मरण करके पानी पानी हो गई  जब घर वालों के लाख कहने पर भी पति के पीछे शहर को चल दी । मोहन को पता था कि दस हजार में गुजारा ही हो पायेगा फिर भी कमला की ऊंची नाक का गुस्सा नहीं उतर सका।रोने लगी  ,सिसकी भर कर बोली कि मैं भी जैसे रखोगे चटनी से खा लूंगी पर भैंस गोबर को हाथ भी न लगाउंगी ।
पत्नी का दीवाना मोहन उसको ले गया ।अम्मा रोकती रही ,बापू भी गुजर गए पर कमला गांव नही आई  ,मोहन को एक दिन की छुट्टी मिली सो  अंतिम संस्कार के दिन ही आया ।बड़े भैया ने सब
काम सम्हाल दिया ।तीन बच्चे हो गए पर उसने एक दो बार गांव की तरफ रुख किया ।  आज इतने दिनों बाद भी गांव के लोगों का व्यवहार बदला नहीं जबकि शहर की उन तंग गलियों में वह चार साल रहा पर दुःख के दिनों में कभी गली मोहल्ले के लोगों ने उसकी खबर नहीं ली ।
इन्हीं विचारों में मग्न मोहन का पूरा दिन बीत गया ।कमला ने घर की सफाई की ।जाले झाड़े। पानी से घर आंगन तर किया ।पुरानी चीजों को फिर सजाया ।उसका बदला व्यवहार देख मोहन को उस पर प्यार आया । कमला को पास बुलाया और बोला 'अम्मा से माफी मांग लो , आज फिर हम एक नई जिंदगी की शुरुआत करेंगे ।अम्मा की सेवा करेंगे तुम भाभी का हाथ  बंटाना ओर मैं भैया का । यही हमारी भूलों का पश्चाताप होगा ।

✍️डॉ प्रीति हुँकार
 मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की लघु कथा ------ नारी सशक्तिकरण


मानसी त्यागी बहुचर्चित, सुप्रसिद्ध लेखिका है। अभी कल की ही बात है, अपनी किताब "नारी सशक्तिकरण" के लिए साहित्य अकादमी से नवाजी गई हैं।
मानसी के पति आलोक सफल व्यवसाई हैं। व्यवसाय के क्षेत्र में उन्होंने कई बार अवार्ड लिया है।
मानसी के मोबाइल पर एक कॉल आता है
.... हैलो , हेलो मैम....जी बताएं, कौन?
मैम बधाई,मै सूरज बोल रहा हूं....
आपके सम्मान में हमने कल एक कार्यक्रम आयोजित किया है।
आप आए और अपने अनुभव को युवा पीढ़ी के साथ साझा करे....मैम आप अपने पति को भी लाए,सम्मान हमने आपके पति से दिलवाने को सोचा है।
कल सुबह 9 बजे मैम ।
जी भाई ,बिल्कुल,मै समय पर आ जाऊंगी।
रात होते ही खुशी से झूम रही मानसी ने अपने पति से कहा..... आप सुनकर खुश हो जाएंगे,कल मेरा सम्मान समारोह है। और यह सम्मान आपके द्वारा ही देने का निर्णय लिया गया है।
आप साथ चलेंगे ना.....
आलोक-  मैंने कई बार कहा, यह लिखना बंद करो ₹25000 की पुरस्कार से ज्यादा खुश ना हो। मेरे साथ काम कर लेती तो अच्छी खासी आमदनी हो जाती, पर लिखने की ज़िद...
मुझे फुर्सत नहीं है मेरा कल एक बिजनेस डील है...
और हां याद रखना समय पर घर आ जाना। कल रात मेरे 4-5 दोस्त घर आएंगे,खाना बनाकर रखना .....स्वादिष्ट
। आलमिरे में ऊपर के हिस्से में शराब की बोतल है,वो भी ग्लास में हमें  देना।
अब सो जाओ,मुझे जल्दी काम पर जाना है....उदास मानसी
समझ नहीं पा रही थी क्या कहे क्या नहीं....पूरी रात यही सोचती रही "नारी सशक्तिकरण "पर लिखी किताब और उसका सम्मान सब बेमानी सा लग रहा है.............
प्रवीण राही

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की लघुकथा ----- तोड़फोड़















नगरपालिका वाले नालियों के ऊपर ढके गए पत्थर आकर तोड़ रहे थे । पूरे बाजार में तोड़फोड़ का यही दृश्य था ।  एक पत्रकार ने अधिकारियों से पूछा "अब तोड़ने के बाद आप क्या करेंगे ?"
   वह बोला "हम क्या करेंगे ? हमें कुछ नहीं करना है । अब यह दुकानदार जानें कि वह क्या करेंगे । "फिर कुछ सेकंड के बाद उसके दिमाग में कुछ आया और कहने लगा " दुकानदार अब इस पर फोल्डिंग लोहे का जाल बनवा लें।"
    पत्रकार ने प्रश्न किया "नाला आपका है। आपकी संपत्ति है । उस पर क्या करना चाहिए ,यह निर्णय भी आपका होना चाहिए और खर्च भी आपका ही होना चाहिए ?"
        अधिकारी ने कहा "अगर कोई लोहे का जाल न बनवाना चाहे तो न बनवाए । उसकी मर्जी । हम उसे बाध्य थोड़े ही कर रहे हैं।"
        पत्रकार ने फिर प्रश्न किया "अगर किसी ने लोहे का जाल नहीं बनवाया और नाली खुली रही तथा उसमें कूड़ा कचरा गिरता रहा अथवा कोई व्यक्ति दिन में ही नाली में गिर गया ,तब उसका दोष किस पर आएगा ?"
     अधिकारी झल्ला उठा  " इसीलिए तो हम कह रहे हैं कि लोहे का जाल बनवा लो।"
       पत्रकार ने फिर से प्रश्न किया" लोहे का जाल तो केवल दिन में ही पड़ेगा। जब व्यापारी दुकान बंद करके चला जाएगा, तब नालियाँ खुली रहेंगी। हादसा उसके बाद भी कभी भी हो सकता है ।"
    अधिकारी ने क्रुद्ध होकर पूछा "तो आप क्या चाहते हैं ? "
       पत्रकार ने शांत भाव से कहा "नालियों के स्थान को सड़क में शामिल कर लिया जाए । दोनों ओर से दो-दो फीट जगह  सड़क की बढ़ जाएगी । यातायात सुगम हो जाएगा । समस्या का स्थाई हल निकलेगा।"
       अधिकारी ने उपेक्षा के भाव से पत्रकार को देखा और कहा "यह मेरे हाथ में नहीं है।  मैं केवल तोड़ सकता हूँ।"

 ✍️रवि प्रकाश
 बाजार सर्राफा
 रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99 97 61 545 1



बुधवार, 13 मई 2020

वाट्स एप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है मंगलवार 12 मई 2020 को आयोजित बाल साहित्य गोष्ठी में शामिल मुरादाबाद मंडल के साहित्यकारों डॉ अर्चना गुप्ता, डॉ पुनीत कुमार, मीनाक्षी ठाकुर, सीमा रानी, स्वदेश सिंह, जितेंद्र कमल आनन्द, वीरेंद्र सिंह बृजवासी , डॉ ममता सिंह , प्रीति चौधरी, राशि सिंह ,डॉ अनिल शर्मा अनिल, अशोक विद्रोही ,राजीव प्रखर , श्री कृष्ण शुक्ला , डॉ श्वेता पूठिया, डॉ रीता सिंह, मरगूब हुसैन, कमाल जैदी वफा ,मनोज वर्मा मनु, रामकिशोर वर्मा, डॉ प्रीति हुंकार और मनोरमा शर्मा द्वारा प्रस्तुत रचनाएं -------


कोरोना ने आग लगाई
कुछ भी देता नहीं दिखाई

स्कूलों ने की लंबी  छुट्टी
हम बच्चों की आफत आई

घर में बन्द पड़े रहते अब
करनी पड़ती हमें सफाई

पहले मिलता फोन नहीं था
आज उसी पर करें पढ़ाई

दोस्त सखी नहीं अब कोई
दूरी सबसे खूब बनाई

मुरझाया भोला सा बचपन
मायूसी सी उस पर छाई

जीतेंगे तुझसे कोरोना
माना लंबी अभी लड़ाई

  ✍️ डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद 244001
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लाठी टेक चला करतीं
सबसे जल्द उठा करतीं
उठ कर भरती पानी जी
नानी जी हां नानी जी

नकली दांत लगाती हैं
गन्ना तक खा जाती हैं
होती है हैरानी जी
नानी जी हां नानी जी

खाकर सत्संग में जाती
वापस वहां से जब आतीं
लाती हैं गुड धानी जी
नानी जी हां नानी जी

अच्छी बात बताती हैं
हंसते हुए सुनाती हैं
हर दिन नई कहानी जी
नानी जी हां नानी जी

चश्मा जब गुम हो जाता
कुछ भी नहीं है दिख पाता
हो जाती परेशानी जी
नानी जी हां नानी जी

✍️ डॉ पुनीत कुमार
T-2/505, आकाश रेसीडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
कांठ रोड, मुरादाबाद - 244001
M-9837189600
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बड़े जोर से छींकी छुटकी,
गिरी हाथ से उसके मटकी।

बिखर गया मटकी से पानी,
डाँट लगाये मम्मी  रानी।

सुनकर दौड़ी आयी नानी,
बोली फिर भर लाओ पानी

हँसे जोर से मामा -नाना,
आ जाओ ,अब खाओ खाना।

मामी-मौसी झटपट आयीं,
हलवा पूरी आलू लायीं ।

 ✍️ मीनाक्षी ठाकुर
 मिलन विहार
मुरादाबाद 244001
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घर पर रहकर प्यारे बच्चे,
बोर नहीं अब होना तुम |
नित नई मिठाई खाकर,
मन ही मन खुश हाेना तुम |

कभी जलेबी कभी रसगुल्ला,
कभी रसमलाई खुल्लमखुल्ला |
नई इमरती फिर  बस बालूशाही ,
जी भर खाओ मिलकर भाई |

आलू टिक्की और पानी पूरी
 इडली डाेसा फिर गर्म कचौड़ी |
 प्यारे मिल जुल खाओ तुम,
 जी भर मौज मनाओ तुम |

 लॉकडाउन का पालन करना,
 सभी सुरक्षित घर में रहना |
 दाे गज दूरी सबकाे समझाना,
बस याद रहे काेराेना काे हराना |

✍🏻सीमा रानी
   अमराेहा
मोबाइल फोन नंबर 7536800712
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काश, श्याम बादल बन जाऊँ

नील-गगन में दूर-दूर तक
सैर-  सपाटा मैं कर आऊँ

जब देखूँ यह सूखी धरती
उमड़- घुमड़ कर शोर मचाऊँ

बूँदें बनकर पानी लाऊँ
छम-छम कर बरसूं हर्षाऊँ

शुष्क धरा की प्यास बुझाऊँ
 ला हरियाली हरा बनाऊँ

काश श्याम बादल बन जाऊँ


✍️ स्वदेश सिंह
सिविल लाइन्स
मुरादाबाद
मोबाइल 9456222230
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मुश्किल बहुत 'कमल' होता है।
बच्चों पर भी कविता लिखना।।

बच्चे कितने सीधे-साधे,
सरल हृदय होते मतवाले।
पढ़ना-लिखना,खेल-खिलौने,
काम करें ये अज़ब निराले ।
बात-बात में ये हैं रूठें,
चलता रहता कहना- सुनना।
मुश्किल बहुत कमल होता है ।
बच्चों पर भी कविता लिखना ।।

शादी-ब्याह रचाते बच्चे,
गुड्डों के सँग खेले गुड़िया ।
ये वो क्या सब मिलकर खायें,
भाती है काते की बुढ़िया ।
पल में रोना,पल में हँसना,
सँग-सँग खेलें भय्या-बहना।
मुश्किल बहुत कमल होता है ।
बच्चों पर भी कविता लिखना ।।

मत पूछो,मैं अपना बचपन,
भूल कहाँ आया हूँ, माधो!
उन बागों, चौबारों को मैं--
छोड़ चला आया हूँ, साधो!
गिल्ली-डंडा,दौड़- भाग सब,
धमा-चौकड़ी, का क्या कहना।
मुश्किल बहुत कमल होता है ।
बच्चों पर भी कविता लिखना ।।

अब बच्चों में खोज रहा हूँ,
कैसा अचरज,अपना बचपन।
जोगी में जोगा को देखूँ,
पार हो गया अब तो पचपन।
बच्चों में अपनी दुनिया है ।
धूप-छाँव में सब कुछ सहना।
मुश्किल बहुत कमल होता है ।
बच्चों पर भी कविता लिखना ।।

✍️जितेन्द्र कमल आनंद
मंगल भवन, सांई विहार कालोनी,
रामपुर 244901
उत्तर प्रदेश, भारत
 मोबाइल फोन नम्बर 73006-35812
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गोलू आओ, मोलू आओ,
मोनीचंद  बतोलू   आओ,
प्रेम    एकता    भाईचारा,
सारी  दुनियाँ  में फैलाओ।

घर से  दूध जलेबी  लाओ,
सबके साथ बैठकर खाओ,
कम मिलने पर जोभी रूठे,
सारे  मिलकर उसे मनाओ।

रंग - बिरंगी   नाव  बनाओ,
पानी   में   उनको   तैराओ,
सिर्फ  दोस्ती रखो  सभी से,
कुट्टी करके मत दिखलाओ।

सोओ जल्द शीघ्रउठ जाओ,
नहीं समय को व्यर्थ गंवाओ,
खोया  समय  नहीं   लौटेगा,
सदा  सत्य को  गले लगाओ।

मात-पिता को सीस नवाओ,
खा पीकर  विद्यालय जाओ,
ध्यान लगाकर  करो   पढ़ाई,
नहीं  गुरु  की  हंसी उड़ाओ,

अश्वथ,फ्योना तुमभीआओ,
अन्वी, अस्मी को भी लाओ,
देखो कोयल कुहुक  रही  है,
मीठे स्वर का साथ निभाओ।
गोलू आओ-----------------
       
✍️  वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
 मुरादाबाद 244001
 मोबाइल फोन नंबर 9719275453
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तितली रानी ज़रा बताओ,
कौन देश से आती हो।
रस पी कर फूलों का सारा,
भला कहाँ छिप जाती हो।

इधर उधर उड़ती रहती तुम,
मन को बड़ा लुभाती हो।
अपने सुन्दर पंखों पर तुम,
लगता है इठलाती हो।

सब फूलों पर बैठ बैठ कर,
अपनी कला दिखाती हो।
पास मगर आने में सबके,
तुम थोड़ा सकुचाती हो।

पीले काले लाल बैंगनी,
कितने रंग सजाती हो।
मुझको तो लगता है ऐसा,
होली रोज़ मनाती हो।

✍️ डाॅ ममता सिंह
मुरादाबाद 244001
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मान कहना आदरणीय आपका
घर से बाहर न हम निकलेंगे
हम है देश के अनुशासित बच्चे
सीख आपकी सब मानेंगे
कोरोना को हराने के लिए
लोकडाउन का पालन हम करेंगे
देश हित में जो करना होगा
उससे कभी न पीछे  हटेंगे
रखो भरोसा,संकट के बादल
हमको डरा न पायेंगे
स्वयं प्रभा,दीक्षा के ज़रिए
पढ़ते नितदिन हम जायेंगे
कर रहे ख़ुद को तैयार
किसी मुसीबत से न घबरायेंगे
दहशत कोरोना के जो भी फैले
मनोबल को हमारे तोड़ न पायेंगे
योग,मनन ,चिंतन से
आंतरिक शक्ति को अपनी बढ़ायेंगे
मज़बूत इरादे देख हमारे
दाँतों तले उँगली लोग दबायेंगे
करते है वादा आपसे
देश का अपने सिर न झुकायेंगे
बन मिसाल दुनिया के समक्ष
अपने देश का मान बढ़ायेंगे
                 
                     ✍️प्रीति चौधरी
                                                               
                        (शिक्षिका)
                     राजकीय बालिका इण्टर कालेज
                      हसनपुर(अमरोहा)
               मोबाइल -9634395599
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एक था कौवा एक थी चील
बीच में उनके एक थी झील .

दोनों में हो गईऐसी  दोस्ती
जिसके चर्चे गूंजे बस्ती बस्ती .

​कौवा का  नाम था राजू
​चील कहलाती थी काजू .

​दोनों दिन भर साथ में रहते
​खूब धमाचौकड़ी दोनों करते .

​जब शाम को दोनों बिछड़ते
​आँखों से उनके आंसू उमड़ते .

​अपनी दोस्ती पर खूब इतराते
​हँसते गाते दोनों धूम मचाते .

​एक दूजे के काम में आते
​दोनों दोस्ती खूब निभाते .

​होमवर्क मिलजुलकर करते
​माता पिता की आज्ञा मानते .

​दोनों मम्मी पापा संग हाथ बांटते
​शाम को फिर दोनों खेलने जाते .

​✍️  राशि सिंह
​मुरादाबाद  244001
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मम्मी- पापा ! हमें बताओ,
क्या होता है आयुष क्वाथ?
इसको पीकर रहो सुरक्षित
सभी कह रहे एक ही बात ।।

राजा बेटा, रानी बिटिया,
प्रश्न तुम्हारा, मन भाया।
आयुष क्वाथ वहीं था बच्चों
दादी ने जो पिलवाया।।
तुलसी पत्र, सोठं या अदरक
काली मिर्च, दालचीनी ।
उन्हें पकाकर पानी में ,
वह दवा छानकर है पीनी ।।
ये ही आयुष क्वाथ है बच्चों,
रखे स्वस्थ इम्यूनिटी सिस्टम ।
इम्युनिटी मजबूत अगर तो,
नहीं बीमार पड़ेंगे हम ।।

इसी दवा को कहते काढ़ा,
नाम इसी का आयुष क्वाथ।
 थैंक्यू मम्मी, थैंक यू पापा!
समझ गए हम सारी बात।।

✍️ डॉ.अनिल शर्मा'अनिल'
धामपुर, उत्तर प्रदेश
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            कोरोना के जाल में
                          बच्चे हैं किस हाल में
            इस की झांकी देखिए
                          जंग है बाकी देखिए
             लंबी छुट्टी में भी घर में
                      रहने को मजबूर हुए
              नानी के घर जाने के सब
                      सपने चकना चूर हुए
             ऊब गए सब बच्चे नित
                अब धमा चौकड़ी करते हैं
             कभी खेलते कैरम, लूडो
                    कभी  खेल में लड़ते हैं
             पूछ रहे हैं प्रश्न पहेली
                            सूरज चंदा तारों पर
 रंग बिरंगी तितली परियों
                  फूलों और बहारों पर
बन जाते हैं रेल खेल में
                   सीटी कभी बजाते हैं
              दौड़ कभी ऊपर जाते हैं
                  छत पर पतंग उड़ाते हैं
 किंतु कभी कोरोना पर जब
                   मिल वह  बातें करते हैं
    प्रश्न करें दादी से क्यों सब
                  कोरोना से डरते हैं
 दादी कहती यह बीमारी
                    नई चीन से आई है
महामारी बनकर इसने
                दुनिया की नींद उड़ाई है
दादी कोरोना से कह दो
                अपने घर वापस जाये
और यदि है नहीं ठिकाना
               डूब नदी में मर जाए

  ✍️  अशोक विद्रोही
 412, प्रकाश नगर
मुरादाबाद 244001
 मोबाइल फोन नम्बर - 8218825541
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जन्मदिवस पर सबसे अच्छा,
पौधा हो उपहार।

उजड़ रहे हैं चहुँ दिशि उपवन,
बहुत विकट लाचारी।
ऐसे में तुम पर भी बच्चो,
आई ज़िम्मेदारी।
हरा भरा कल लाने को अब,
हो जाओ तैयार।
जन्मदिवस पर सबसे अच्छा,
पौधा हो उपहार।

आदत में अब कर लो शामिल,
क्यारी सदा सजाना।
हरियाली से ही जीवन है,
जन-जन को समझाना।
तुम ले जा सकते हो भू को,
इस संकट से पार।

जन्मदिवस पर सबसे अच्छा,
पौधा हो उपहार।

✍️ राजीव 'प्रखर'
मुहल्ला डिप्टी गंज
मुरादाबाद।
मो० 8941912642
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कोरोना तू जा जा जा।
खा के जहर कहीं मर जा।।

बहुत हो चुका तेरा राज।
बंद घरों में हैं हम आज।।
लॉबी, कमरा, बालकनी।
बस इतनी दुनिया अपनी।।
बंद हुआ है मौज मजा।
कोरोना तू अब तो जा।

कब हम बाहर जायेंगे।
यारों सँग बतियायेंगे।
फिर कब पिक्चर देखेंगे।
इंटरवल में खायेंगे।
डोसा,बर्गर या पिज्जा।
कोरोना तू अब तो जा।

घर यदि खुल भी जायेंगे।
गले न हम लग पायेंगे।
लंचबॉक्स इक दूजे के,
छूने से कतरायेंगे।
बहुत दे चुका हमें सजा।
कोरोना तू अब तो जा।

खाके जहर कहीं मर जा।
कोरोना तू जा जा जा।।

 ✍️श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।
MMIG-69, रामगंगा विहार
मुरादाबाद 244001
मोबाइल नं. 9456641400
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मेरा बचपन मेरे गीत,
मेरा आँगन मेरे मीत,
छोटे सपने लम्बी नींद,
मेरा बचपन मेरे गीत।
सुंदर तितली सुंदर फूल,
लाती बारिश सुंदर बूंद,
उनमे नाचूँ मै कूद कूद,
मेरे बचपन मेरे गीत।
मेरी गुडिया मेरी प्रीत,
मेरा घर मेरा संगीत,
मै इनको क्यूँ जाओ भूल,
मेरा बचपन मेरी प्रीत।।

   ✍️ डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद 244001
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चीं चीं चीं चीं गाए चिड़िया
दाना चुग-चुग खाए चिड़िया
मुनिया उसको पकड़ न पाए
फुर -फुर है उड़ जाए चिडिय़ा ।

चुन चुन तिनका लाए चिड़िया
सुंदर नीड़ बनाए चिड़िया
उड़ती फिरती कसरत करती
हिल-मिल प्यार बढ़ाए चिड़िया ।

सुबह सकारे आए चिड़िया
मीठा गीत सुनाए चिड़िया
राजू जगो भोर है प्यारी
सबके मन को भाए चिड़िया ।

 ✍️ डॉ. रीता सिंह
चन्दौसी (सम्भल)
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काश बड़ा मैं भी हो जाऊं,
आपी को फिर सबक सिखाऊं।
कैसे मुझपर हुक्म चलातीं,
बात न मानू चपत लगातीं।
मैं भी उनपर हुक्म  चलाऊँ,
काश बड़ा मैं भी हो जाऊं।
सुबह सवेरे मुझे जगाती,
कुल्ला मंजन खूब कराती।
सर्दी में भी हैं नहलाती,
मग भरकर फिर दूध पिलातीं।
चाहे मैं जितना चिल्लाऊं,
काश बड़ा मैं भी हो जाऊं।
शाला से जब घर आता हूं,
आपी को हँसते पाता हूं,
खुश होकर के मुझे चिढ़ातीं।
मुझसे कहतीं पानी लाऊं,
काश बड़ा मैं भी हो जाऊं।
मुन्ना कहकर मुझे बुलातीं,
काफी देर में खाना लातीं।
खाना खाकर हाथ धुलातीं,
फिर कहती है सबक सुनाऊं।
काश बड़ा मैं भी हो जाऊं।
अम्मा कहती आपी एक दिन,
हम सबसे जायेगी छिन।
प्यारा सा दूल्हा आयेगा,
आपी को संग ले जाएगा।
जब से अम्मा यह बतलाई,
मुझे रात भर नींद न आई।
चाहे आपी रोज सताये,
मुझे छोड़कर कहीं न जाये।
चाहे मुझ पर वह चिल्लाए,
या फिर मै उसपर चिल्लाऊं।
चाहे  जितना बड़ा हो जाऊं,
आपी से छोटा कहलाऊं।

✍️ कमाल जैदी 'वफा'
प्रधानाचार्य, अम्बेडकर हाई स्कूल बरखेड़ा मुरादाबाद
9456031926
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हम बच्चे अब
पहले जैसे बच्चे नहीं रहे,

अलग पले दादा -दादी का
 साथ न मिल पाया,
चाचा -चाची बुआ सभी
का मेहमानी साया,
एक अकेली आया है बस
 रिश्ते नहीं रहे,,

रंग -बिरंगे फूल- तितलियां
सब मॉनिटर पर,
आभासी दुनिया में जीते
हम ऐसे अवसर,
धूप सुनहरी क्या, वह छत
वह अंगने नहीं रहे,,

भेंट चढ़ गई प्रदूषण की
 होली - दीवाली,
क्या खुशियां त्योहारी सब
 लगता खाली खाली,
वह त्योहारी रंग-बिरंगे
सपने नहीं रहे,,

लगे हमारे बचपन में अब
सुर्खाबों  के  पर,
केवल   शिष्टाचार   ओढ़
जीना होता अक्सर,
बचपन से बतियाते दो पल
सच्चे नहीं रहे,

हम बच्चे अब
पहले जैसे बच्चे नहीं रहे,,...

✍️ मनोज वर्मा 'मनु'
मोबाइल फोन नम्बर    63970 93523
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खेल खेलना बंद किया है।
घर के अंदर बंद किया है ।।
खाने में शकरंद दिया है ।
कोरोना क्या फंद दिया है ।।
पढ़ना-लिखना बंद किया है ।
बातें करना चंद किया है ।।
गाने को बस छंद दिया है ।
कोरोना क्या फंद दिया है ।।
कब तक खेलें घर में घुसकर ।
कितना देखें टी वी पिक्चर ।।
कैसा यह अब दण्ड दिया है।
कोरोना क्या फंद दिया है ।।
चीन ने भी न सोचा होगा ।
बच्चे-बूढ़ों का क्या होगा?
सब कुछ उसने खण्ड किया है ।
कोरोना क्या फंद दिया है ।।
कब तक तेरा रोना होगा ।
सत्यानाश जल्द ही होगा ।।
तूने क्या पाखण्ड किया है ?
कोरोना क्या फंद दिया है ।।
पापा भी आफिस कब जाते ।
जैसे-तैसे खर्च चलाते ।।
तूने सबको झण्ड किया है ।
कोरोना क्या फंद दिया है ।।

✍️  राम किशोर वर्मा
   जयपुर (राजस्थान)
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याद बहुत आती है हमको
प्यारे  से विद्यालय मेरे ।
कब आयगा समय वो प्यारा
जब आएंगे द्वारे तेरे ।

शिक्षक बन्धु याद है आते
जिनका ज्ञान बड़ा अनमोल
कभी दिखाते हमपर गुस्सा
कभी बोलते मीठे बोल।
अबतो आलस बहुत सताय
पहले उठते रोज सबेरे ।
कब,,,,,,,,,,,,
छूट गए वो प्यारे साथी
जिनसे प्यार जताते थे
कभी लड़ाई कभी मेल से
उनको गले लगाते थे
हे प्रभु !सुनलो विनती हमारी
हम है अवसादों ने घेरे ।
कब,,,,,

✍️डॉ प्रीति हुँकार
मिलनविहार
मुरादाबाद 244001
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माँ-पापा का कभी ना जग में
दिल तुम  छोटा करना
तीखे बोलों से तुम उनको
कभी न आहत करना
तुम बच्चों की खातिर ही तो
नयनों में सपने पलते
उन नयनों में घृणा टीस के
मोती न जड़ने देना
अवगुण भी गुण बन जातें हैं
हम जब नम्र बन जाते
आशीर्वादों की छाया में
हम सब सुख में रहते ।
मर्यादाओं का रामराज्य
धरती पर लाना है
धरती है ये रत्न प्रसविनी
इसको हरा बनाना  है ।।।।
माँ पापा का कभी ना जग में
दिल छोटा तुम करना
तीखे बोलों  से  तुम उनको
कभी ना आहत करना।।।।

 ✍️ मनोरमा शर्मा
जट बाजार
अमरोहा
मोबाइल नं.7017514665
:::::::::::::::::::::::::::प्रस्तुति::::::::::::::::::::::::;::                     डॉ मनोज रस्तोगी
                     8, जीलाल स्ट्रीट
                     मुरादाबाद 244001
                     उत्तर प्रदेश, भारत
                    मोबाइल फोन नम्बर 9456687822