गुरुवार, 14 मई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी ---------- सपेरन


        रात के एक बजे का समय था। गहरी काली स्याह अंधेरी ...रात ...गांव के पीपल के पेड़ पर असंख्य जुगनू चम चम चमक रहे थे । मानो पूरे पेड़ पर सितारे जड़ें हों ...
   गुलशन चबूतरे पर बैठा बड़ी गहरी सोच में डूबा हुआ उसे देखे जा रहा था तभी उसने अंधेरे में एक साया आते हुए देखा ..वह एक  वृद्ध स्त्री थी जिसने अपने आप को एक काले लबदे से ढक रखा था ... धीरे-धीरे वह चबूतरे के किनारे -किनारे से गोपाल कुम्हार के घर की ओर बढ़ गई ... लौटते हुए गुलशन ने उसे टोका ,,किसे ढूंढ रही हो,,?..ठिठक कर बोली ,,यहां हरिशंकर का घर था !,,
     ,,वह तो कई साल पहले बेच कर दूसरे मुहल्ले में चला गया,,दो दिन पहले भी उसे इसी तरह जाते हुए गुलशन ने देखा था । गुलशन सोच में पड़ गया आखिर यह कौन स्त्री है जो बंजारन सी दिखाई देती है और रात के अंधेरे में गोपाल के घर की ओर जाती है ।कुछ दिन बाद मंदिर पर बहुत भीड़ लगी थी ,,...चोर! -चोर!  बच्चा चोर !,,!का शोर मच रहा था ...गांव वालों ने एक स्त्री को घेर रखा था ...उस स्त्री के शरीर पर गोदना गुदा था मोटे-मोटे मनकों की कई मालाएं गले में पहन रखीं थीं, देखने में ही सपेरन मालूम पड़ती थी । लोगों ने रात उसे पंडित हरिशंकर के  घर के पास से पकड़ा था। भीड़ उसको मारने पीटने को तैयार थी.. आगे बढ़कर  गुलशन ने जानने की कोशिश की कि  माजरा क्या है गहन पूछताछ पर पता लगा वह सपेरन है परंतु अपने आप को पंडित हरिशंकर की मां बता रही थी .,,.अरे वही हरि शंकर पंडित जो इंटरकालेज में संस्कृत साहित्य पढ़ाते हैं ।,,कोई मानने को तैयार नहीं था ... लालपुर में सपेरों के डेरे पड़े हैं वहीं से यह आई  है स्त्री की उम्र साठ- बासठ साल होगी हरिशंकर ने देखते ही पहचानने से साफ मना कर दिया....तभी नब्बे साल के किसन लाल ने पहचान लिया ,, हां ये सही कह रही  बीस साल पहले इसे सांप ने काट लिया था इस की मौत हो गई थी। मरने के बाद इसे नदी में बहा दिया गया था सपेरों ने निकाल कर इसे ज़िंदा कर लिया ,, ,,सुना था सपेरे ज़हर उतार कर  जिंदा कर लेते हैं आज देख भी लिया,, । परन्तु हरिशंकर ने मानने से इंकार कर दिया।
 दो ही महीने गुजरे थे कि हरिशंकर के छोटे बेटे दिनेश को सांप ने काट लिया और डॉक्टरों ने भी जवाब दे दिया ,,ब्लैक कोबरा ने काटा है ,,इंजेक्शन का भी असर नहीं हुआ,, हार कर लोगों ने कहा ,,सपेरन को ही बुलाकर लाओ ""क्या हरज है ,,?,,क्या पता ज़हर उतार ही दे ?,,हरिशंकर की पत्नी दहाड़े मार-मार कर रो रही थी.... आखिर कुछ लोग सपेरन को बुला लाये ... सपेरन ने चीरा लगाया ...बंध बांधे ..और मुंह से खून की चुस्की लगा दी.. तीन घण्टे बाद बालक को होश आने लगा ... परन्तु सपेरन की हालत बिगड़ने लगी अब हरिशंकर और उसकी पत्नी सपेरन को मां मानने को तैयार थे और ... जोर-जोर से बिलख रहे थे......
 सुबह होते होते सपेरन ने  दम तोड़ दिया .. परन्तु मरते हुए उसे सन्तोष था कि वह अपने पोते को बचा सकी .... सचमुच एक मां ही ऐसा कर सकती है  ।
 हरिशंकर ने विधि-विधान से अपनी मां का अंतिम संस्कार किया ।
 
✍️अशोक विद्रोही
412, प्रकाश नगर
मुरादाबाद 244001
मोबाइल फोन नंबर 8218825541

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