गुरुवार, 14 मई 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा ------- फर्ज का कर्ज


सुना था कि अच्छाई का फल अच्छा ही मिलता है मगर आज ये भी असत्य प्रतीत होता है।जिन  सम्बन्धो को लेकर वह मान करती थी,आज उनकी कृतज्ञता ने उसे चूर चूर कर दिया।
जिंदगी के मध्य मे ही माता पिता के वैकुण्ठ चले जाने के बाद शान्ति ने अपने  दोनो भाई को बडा किया।अच्छी शिक्षा दिलवायी,बडे का मन पढाई मे न था तो स्नातक के बाद दुकान करवा दी , छोटा शुरू से ही पढने मे रूचि लेता था ।एम ए करते ही प्रतियोगी परीक्षा पास कर आयकर विभाग में नोकरी पा गया।सबकुछ ठीक ही चल रहा था।भाइयों की शादियाँ भी हो गई ।शान्ति को पता न लगा कि समय बदल रहा हैं वह उसी लय मे बही जा रही थी। अपनी भतीजी को संतान की तरह समझती रही थी क्योंकि उनका पालन पोषण शिक्षा सबकी व्यवस्था उसी ने की थी।एकदिन प्रियंका को उसने लैपटॉप पर गलत फिल्म देखते हुए पकड लिया।वह उसे बैठाकर जिंदगी की ऊँच नीच समझा रही थी कि उसकी भाभी ने पदार्पण किया और अपनी बेटी को बहकाने का आरोप लगा दिया।भाई से अपनी बात कहकर अपना पक्ष रखना चाहा मगर भाभी की चमकती आँखें देखकर भाईकी सच स्वीकार करने की हिम्मत नही पडी।बात बहस बढ गयीं शान्ति चिल्लाते हुए बोली,"रातो को जागने के लिए,डाक्टर के यहाँ जाने के लिए मै थी?""अब....आगे बात पूरी भी न हुई कि भाभी बोली,"तो क्या हुआ आपका फर्ज न था,रहती हो तो कर दिया कंही दूर होतीं तो क्या करती"।फर्ज का कर्ज तो उतारना होता है।
अपनी जिंदगी के बीस वर्षों के कर्मों का फल या पूर्व जन्म के दुष्कर्मो का दंड।
अपने भाई की कृतज्ञता के आगे वह कुछ न सोच सकी।

✍️ डॉ श्वेता पूठिया
मुरादाबाद 244001

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