लॉक डाउन की लंबी अवधि में,वो भी बिना किसी रोजगार के ,शहर में रहना ,तीन बच्चो के पेट भरना ये सब समस्याओं को देख मोहन ने वापस गांव की तरफ लौटना उचित समझा । कमला भी अब उसकी हां में हाँ मिलती उसके पीछे चल दी ।किसी तरह मोहन गांव पहुँच गया । पहले दिन तो चचेरे तहरे भाइयों के घर से भोजन की व्यवस्था की गई । रामकली अम्मा जो बच्चों को जन्म के बाद नहलाती थी सबेरे ही जग भर छाछ दे गईं। कमला आज फिर से उस दिन को स्मरण करके पानी पानी हो गई जब घर वालों के लाख कहने पर भी पति के पीछे शहर को चल दी । मोहन को पता था कि दस हजार में गुजारा ही हो पायेगा फिर भी कमला की ऊंची नाक का गुस्सा नहीं उतर सका।रोने लगी ,सिसकी भर कर बोली कि मैं भी जैसे रखोगे चटनी से खा लूंगी पर भैंस गोबर को हाथ भी न लगाउंगी ।
पत्नी का दीवाना मोहन उसको ले गया ।अम्मा रोकती रही ,बापू भी गुजर गए पर कमला गांव नही आई ,मोहन को एक दिन की छुट्टी मिली सो अंतिम संस्कार के दिन ही आया ।बड़े भैया ने सब
काम सम्हाल दिया ।तीन बच्चे हो गए पर उसने एक दो बार गांव की तरफ रुख किया । आज इतने दिनों बाद भी गांव के लोगों का व्यवहार बदला नहीं जबकि शहर की उन तंग गलियों में वह चार साल रहा पर दुःख के दिनों में कभी गली मोहल्ले के लोगों ने उसकी खबर नहीं ली ।
इन्हीं विचारों में मग्न मोहन का पूरा दिन बीत गया ।कमला ने घर की सफाई की ।जाले झाड़े। पानी से घर आंगन तर किया ।पुरानी चीजों को फिर सजाया ।उसका बदला व्यवहार देख मोहन को उस पर प्यार आया । कमला को पास बुलाया और बोला 'अम्मा से माफी मांग लो , आज फिर हम एक नई जिंदगी की शुरुआत करेंगे ।अम्मा की सेवा करेंगे तुम भाभी का हाथ बंटाना ओर मैं भैया का । यही हमारी भूलों का पश्चाताप होगा ।
✍️डॉ प्रीति हुँकार
मुरादाबाद
बहुत सुंदर रचना 👏👏👏👏
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