पिछले दिनों,संतुलन नामक संस्था का दो दिवसीय ध्यान शिविर लगा था।ये आयोजन,केवल संस्था से जुड़े लोगो के लिए था।इसके लिए 300 रुपए सहयोग राशि निर्धारित की गई थी।
जो लोग उस समय सहयोग राशि नहीं दे पाए थे,उनके लिए आज एक स्पेशल काउंटर लगाया गया था।रमेश सबके रुपए जमा कर रहा। सबसे आगे सावित्री खड़ी थी।वो लोगो के यहां बर्तन मांजने का काम कर, बड़ी मुश्किल से गृहस्थी चला पाती थी।
लेकिन तुम तो शिविर में आई ही नहीं थीं,फिर ये रुपए क्यों जमा कर रही हो,---रमेश ने सावित्री से कहा
हां,बेटे को बुखार हो गया था,इसलिए आ नहीं सकी लेकिन ये रुपए तो मैंने पहले ही अलग निकाल कर रख लिए थे,इनको तो आप जमा कर लो,किसी और काम आ जाएंगे -- सावित्री ने जबरदस्ती रुपए रमेश के हाथ में पकड़ाए और अलग हट गई
उसके पीछे कपड़े के बहुत बड़े थोक व्यापारी प्रेम प्रकाश गुप्ता जी खड़े थे। उन्हें देख रमेश बोला --- अरे गुप्ता जी आप,आपके रुपए तो जमा है
----- वो तो ठीक है,लेकिन हम एक दिन ही आ पाए थे,और हमने लंच भी नहीं किया था।हमें तो कुछ रुपए वापस मिलने चाहिए --- गुप्ता जी ने रमेश से बड़े अधिकार से कहा।
रमेश विस्मय से गुप्ता जी और सावित्री को देखने लगा।उसकी समझ नहीं आ रहा था --- अमीर कौन है और गरीब कौन।
✍️ डॉ पुनीत कुमार
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कांठ रोड
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