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सोमवार, 22 फ़रवरी 2021
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष कैलाश चन्द्र अग्रवाल के 52 गीत । ये गीत उनके प्रथम काव्य संग्रह 'सुधियों की रिमझिम' में संगृहीत हैं । यह कृति सन 1965 में आलोक प्रकाशन मंडी बांस मुरादाबाद द्वारा प्रकाशित और प्रतिभा प्रेस मुरादाबाद द्वारा मुद्रित की गई थी । इस कृति की भूमिका लिखी है डॉ शिव बालक शुक्ल ने । इस कृति में उनके 64 गीत हैं -----
मुरादाबाद की संस्था कला भारती के तत्वावधान में 21 फरवरी 2021 को साहित्य समागम कार्यक्रम का आयोजन-----
मुरादाबाद की संस्था कला भारती के तत्वावधान में रविवार 21 फरवरी 2021 को साहित्य समागम कार्यक्रम का आयोजन मानसरोवर कन्या इंटर कॉलेज में किया गया जिसका विषय ज्ञान की देवी मां सरस्वती की वंदना रहा। कार्यक्रम की अध्यक्षता महाराजा हरिश्चंद्र डिग्री कॉलेज की प्राचार्य डॉ मीना कौल ने की । मुख्य अतिथि कला भारती के महामंत्री बाबा संजीव आकांक्षी रहे एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में हेमा तिवारी भट्ट मौजूद रही । कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती के चित्र के समक्ष माल्यार्पण के साथ किया गया ।
इस अवसर पर मयंक शर्मा ने पढ़ा कि :-
विनयशील, सद्भाव, यश गान दो मां
खड़े हैं विनीत शीश वरदान दो मां
योगेंद्र वर्मा व्योम ने पढ़ा कि:-
हटा कुहासा मौन का निखरा मन का रूप
रिश्तों मैं जब खिल उठी अपनेपन की धूप
राजीव प्रखर ने कहा कि:-
ज्ञान स्त्रोत मां वीणापाणि
तुमसे संचालित जग सारा
दिव्य स्वरूपों में तुमने ही
हमको है हर तम से तारा
डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि :-
स्वाभिमान भी रख गिरवी
नागों के हाथ
भेड़ियों के सम्मुख
टिका दिया माथ
ईशांत शर्मा ईशु ने कहा कि :-
जीवन को खुशियों से सजा दो मां शारदे मां
धरती से तुम अंधेरा मिटा दो हे शारदे मां
आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ ने कहा कि:-
मां शारदे मां शारदे मां शारदे
अज्ञानता के भंवर से मां हमें उबार दें
अशोक विश्नोई की रचना का पाठ करते हुए आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ ने कहा कि:-
मां शारदे मां शारदे
ज्ञान का भंडार दे
हमको तम ने है छला
दिव्य ज्योति तू जला
नव पथ संसार दे
हेमा तिवारी भट्ट ने कहा कि :-
श्वेतांबरा मां करे वीणा ज्ञान का आधार हो
मरालवाहिनी अम्ब मेरी दिव्य तुम अवतार हो
बाबा संजीव आकांक्षी ने पढ़ा कि :
बुद्धि हो शुद्ध अंतःकरण निर्मल हो
विचारों की नदियां में शीतल जल कल- कल हो
डॉ मीना कौल ने पढ़ा कि:
अनुपम वाणी अद्भुत काम प्रज्ञा दायिनी तुझे प्रणाम प्रीतम सौंदर्य नयनाभिराम श्रद्धा दायिनी तुम्हें प्रणाम
इस अवसर पर उपस्थित सभी कवियों ने स्वर ज्ञान विद्या की देवी मां सरस्वती को नमन किया और ऐसे कार्यक्रमों को भविष्य के लिए भी उपयोगी बताया ।कार्यक्रम का संचालन आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ ने किया।
::::प्रस्तुति:::::
आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ, मुरादाबाद
रविवार, 21 फ़रवरी 2021
मुरादाबाद की साहित्यकार मोनिका मासूम की ग़ज़ल यात्रा पर केंद्रित योगेन्द्र वर्मा व्योम का आलेख --... ख़याल बनके जो ग़ज़लों में ढल गया है कोई ...-
मुरादाबाद की मिट्टी में ही सृजनशीलता गहरे तक समाई हुई है, यही कारण है कि हिन्दी और उर्दू के साहित्य को महत्वपूर्ण रूप से समृद्ध करने वाले अनेक रचनाकार मुरादाबाद ने दिए हैं जिन्होंने अपनी रचनाधर्मिता के माध्यम से मुरादाबाद की प्रतिष्ठा को वैश्विक स्तर तक समृद्ध किया है। जिगर मुरादाबादी, हुल्लड़ मुरादाबादी, दुर्गादत्त त्रिपाठी, माहेश्वर तिवारी, डॉ मक्खन मुरादाबादी, मंसूर उस्मानी, डॉ कृष्ण कुमार नाज़, ज़िया ज़मीर आदि ऐसे अहम नाम हैं जिन्होंने अपने रचनाकर्म से मुरादाबाद की प्रतिष्ठा को उत्तरोत्तर समृद्ध करने का महत्वपूर्ण काम किया। वर्तमान में भी अनेक नवोदित रचनाकार अपनी रचनाओं की सुगंध से जहाँ एक ओर मुरादाबाद के उजले साहित्यिक भविष्य की संभावना बन रहे हैं वहीं दूसरी ओर मुरादाबाद का नाम मुरादाबाद से बाहर भी प्रतिष्ठित कर रहे हैं। राजीव प्रखर, हेमा तिवारी भट्ट, मीनाक्षी ठाकुर, मयंक शर्मा, फरहत अली सहित ऐसे रचनाकारों की फेहरिस्त में एक महत्वपूर्ण नाम मोनिका मासूम का भी है जिन्होंने बहुत ही अल्प समय में अपने ग़ज़ल-लेखन से मुरादाबाद के रचनाकारों के बीच अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाने में सफलता अर्जित की है।
साहित्य में ग़ज़ल एक बहुत ही महत्वपूर्ण और मिठास भरी विधा है जिसके परंपरागत स्वर में मुहब्बत की कशिश और कसक का मखमली अहसास ज़िन्दादिली के साथ अभिव्यक्त होता रहा है लेकिन समय के साथ-साथ ग़ज़ल की कहन में भी बदलाव आता गया और आम जनजीवन से जुड़े संदर्भ भी ग़ज़ल के कथ्य का हिस्सा बनने लगे, दुष्यंत कुमार इस संदर्भ में ऐसा महत्वपूर्ण नाम हैं जिन्होंने ना केवल ग़ज़ल की दिशा को सफलतापूर्वक नया मोड़ दिया बल्कि ग़ज़ल के शिल्प में कही गई आम आदमी की पीड़ा को और समसामयिक विद्रूपताओं को भी प्रभावी ढंग से कहने में सफल रहे। हालांकि उर्दू साहित्य-जगत ग़ज़ल के इस बदले हुए स्वरूप से कभी सहमत नहीं रहा। आज के समसामयिक विषय-संदर्भ को मोनिका जी बहुत ही संवेदनशीलता के साथ अभिव्यक्त करती हैं-
‘है सफ़र कितना पता चलता है संगे-मील से
कोई बतलाता नहीं है रास्ता तफ़सील से
मांगती है ज़िन्दगी हर मोड़ पर कोई सुबूत
आप ज़िन्दा हैं ये लिखवा लीजिए तहसील से’
जबसे हम प्रगतिशील हुए और वैज्ञानिक उपलब्धियों का दुरुपयोग करने लगे तभी से मानवीय संवेदना में तेज़ी से ह्रास होने लगा और समाज में विद्रूपताएं बलवती होती गयीं। कन्या-भ्रूण हत्या भी ऐसी ही संवेदनहीन सामाजिक विद्रूपता है जो इस सृष्टि का सबसे बड़ा पाप होने के साथ-साथ जघन्य अपराध भी है। एक नारी होने के नाते और माँ होने के नाते मोनिका जी अपने मन की टीस को ग़ज़ल में अभिव्यक्त करती हैं-'मुझको तेरा हक़ न तेरी मेहरबानी चाहिए
शान से जीने को बस इक ज़िंदगानी चाहिए
जन्म लेने से ही पहले मारने वाले मुझे
मर गया जो तेरी आँखों में वो पानी चाहिए'
सदियों से नारी को अबला और दोयम दर्ज़ा प्रदान करने वाले समाज को अपनी लेखनी के माध्यम से चुनौती देते हुए नारी स्वाभिमान की बात जब की जाती है तो मोनिका मासूम की लेखनी से स्वर गूंजता है-‘फूल,फ़ाख़्ता, तितली, चाँदनी नहीं हूँ मैं
मखमली कोई गुड़िया मोम की नहीं हूँ मैं
तुमको दे दिया किसने मालिकाना हक़ मुझ पर
मिल्क़ियत किसी के भी बाप की नहीं हूँ मैं’
ग़ज़लों में आए बदलाव के इस दौर में कथ्य की विषयवस्तु तो बदली ही, भाषा भी सहज हुई क्योंकि अरबी-फारसी की इज़ाफत वाले उर्दू शब्दों और संस्कृतनिष्ठ हिन्दी के शब्दों वाली रचनाएं आम पाठक को प्रभावित करने में अब सफल नहीं होती हैं। लिहाज़ा ग़ज़लों में भी नए-नए प्रतीकों के माध्यम से शे’र कहने का प्रचलन बढ़ा, मोनिका जी भी ऐसा ही प्रयोग करती दिखती हैं-
‘हो पायल चुप तो बिछुआ बोलता है
नई दुल्हन का लहजा बोलता है
अभी बाक़ी है अपना राब्ता कुछ
अभी रिश्ता हमारा बोलता है’
साहित्य की लगभग सभी विधाओं में प्रेम की सुगंध को मिठास भरा स्वर मिला है, उर्दू साहित्य में विशेष रूप से। उर्दू के अनेकानेक रचनाकारों ने अपनी-अपनी तरह से प्रेम को ग़ज़लों में नज़्मों में प्रभावशाली रूप से अभिव्यक्त किया है। मोनिका जी भी अपने विविध-रंगी अश्’आर में प्रेम को अपनी ही तरह से बयाँ करती हैं-‘बेचैन धड़कनों की हरारत बयां करे
लफ़्ज़ों में कैसे कोई मुहब्बत बयां करे
तू मेरी ज़िन्दगी से है वाबस्ता इस तरह
जैसे क़लम सियाही से निस्बत बयां करे’
या फिर-
‘ख़याल बनके जो ग़ज़लों में ढल गया है कोई
मेरे बुजूद की रंगत बदल गया है कोई
बदन सिहर उठा है लब ये थरथराए हैं
ये मुझमें ही कहीं शायद मचल गया है कोई
यह सत्य है कि आज से 10 वर्ष पहले तक मुरादाबाद की महिला रचनाकारों की सूची में 3-4 नाम यथा- डा. मीना नक़वी, डॉ. प्रेमवती उपाध्याय, डॉ. पूनम बंसल आदि ही प्रमुखता से चर्चा में आते थे लेकिन आज के समय में यह सूची काफी समृद्ध है और इस सूची में शामिल कई नवोदित महिला रचनाकार कविता के साथ-साथ गद्य लेखन में भी महत्वपूर्ण सृजन कर रही हैं। मोनिका जी की रचनात्मक प्रतिभा को भी प्रोत्साहन और प्रखरता प्रदान करने में डॉ. मनोज रस्तोगी जी द्वारा संचालित वाट्स एप ग्रुप ‘साहित्यिक मुरादाबाद’ की भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका रही है, जैसाकि मोनिका जी स्वयं भी कई बार इस बात को स्वीकार करती रही हैं। विशुद्ध गृहणी मोनिका जी की ग़ज़लों को पढ़ते हुए महसूस होता है कि ये ग़ज़लें गढ़ी हुई या मढ़ी हुई नहीं हैं। इन ग़ज़लों के अधिकतर अश्’आर पाठक के मन-मस्तिष्क पर अपनी आहट से ऐसी अमिट छाप छोड़ जाते हैं जिनकी अनुगूँज काफी समय तक मन को झकझोरती रहती है।✍️ योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’ मुरादाबाद-244001,मोबाइल- 9412805981
मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की कविता ---सूरज -
सुबह का सूरज देखा है?
ऊर्जा से ओतप्रोत
बिल्कुल मासूम बच्चे की तरह
नदी की लहरों के साथ
अठखेलियां करता
हिलता हुआ पानी की लहरों पर
धमा चौकड़ी करने को आतुर
मासूम से बच्चे की तरह
फैला देता है सारे जग पर फिर
अपनी असीम ऊर्जा की चादर
और ढक लेता है सारे संसार को
ऊर्जा की तपन से
कभी झुलसाता है
तो कभी मन को भाता है
अपनी मीठी गर्माहट लिए
सर्दियों में
और जलाता है अपनी तपन से
गर्मियों में
सूरज तो वही है और वही रहता है
बस
बदल लेते हैं हम उसकी भूमिका
अपने सुख और अपने दुख
के अनुसार
शाम को फिर इकट्ठी करके अपनी सारी ऊर्जा
सो जाता है अनंत आकाश की गोद में
कल फिर उगने के लिए
जैसे कोई इंसान
मृत्यु की गोद में सोने के बाद
पुनः जन्म लेता है
फिर अनोखी ऊर्जा के साथ
यह समय का चक्र है
चलता रहता है सूरज की तरह
हर घड़ी हर पल हर दिन
शून्य से अनंत की ओर
और अनंत से शून्य की ओर
✍️राशि सिंह, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश
मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ शोभना कौशिक की कविता ----अन्जान पथ
अन्जान पथ मुश्किल भरे ।
काँटो से हैं ये सजे ।
दूर-दूर तक कोई नही अपना ।
अकेले हैं बस हम ,
और कोई नही अपना ।
यूँ ही हम चलते जाते हैं।
समय का साथ निभाते जाते हैं।
राह नई चुनते जाते हैं।
मंजिल यूँ ही नही मिलती प्यारे ।
ख्वाब उसके बुनते जाते हैं।
कटती हैं रातें भी कभी जागते हुए
दिन भी कटते हैं कभी ,
भूखें रहते हुए ।
तसल्ली रहती हैं,
फिर भी दिल को मेरे।
रोशन होगा एक दिन मेरे,
अरमानों का चमन ।
संघर्षो की अजीब दास्तां हैं ये पथ ।
अनुभवों की पाठशाला हैं ये पथ ।
कुछ न कुछ सिखाते हैं ये पथ ।
अपने आप ही कुछ ,
कह जाते हैं ये पथ ।
✍️ डॉ शोभना कौशिक, बुद्धिविहार , मुरादाबाद, उत्तरप्रदेश
शनिवार, 20 फ़रवरी 2021
मुरादाबाद मंडल के गजरौला (जनपद अमरोहा ) की साहित्यकार रेखा रानी का गीत ----सजन मधु मास आया, रंगीला फाग लाया। धरा पर स्वर्ण बिखराया बसंत ऋतुराज आया।
दुख की रैना बीत चुकी है, आई बसंती भोर।
तुम संग बांधी साजन मैंने अमर प्रेम की डोर।
सजन मधु मास आया, रंगीला फाग लाया।
धरा पर स्वर्ण बिखराया बसंत ऋतुराज आया।
खेतों में फूली है सरसों, हरियाली चहुं ओर।
काली कोयल कूक रही है, मचा रही है शोर ।
सजन मधु मास आया , रंगीला फाग लाया।
धरा पर स्वर्ण बिखराया,बसंत ऋतुराज आया।
नव किसलय से फूटी लाली, चूनर केसर ओढ़।
महक उठी है डाली डाली,मलय बहे चहुं ओर।
सजन मधु मास आया, रंगीला फाग लाया।
धरा पर स्वर्ण बिखराया, बसंत ऋतुराज आया।
वीणा पाणी अतुलित निधियां,लूटा रहीं चहुं ओर।
दिनकर स्वर्णिम पुंजों से अब दे रहा स्वप्निल भोर।
सजन मधु मास आया, रंगीला फाग लाया।
धरा पर स्वर्ण बिखराया, बसंत ऋतुराज आया।
✍️ रेखा रानी, विजय नगर,गजरौला, जनपद अमरोहा।
मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी का गीत ---रिश्तों को जोड़ने का हुनर जानती है ये, दो - दो घरों के साए में खुश रहतीं बेटियां
दुनियाँ के सभी फ़र्ज़ अदा करती बेटियां,
माँ-बाप के लिए भी दुआ करतीं बेटियां,
बेटी से बड़ा कोई खज़ाना नहीं
होता,
खुशियों से ख़ज़ानेको भराकरतीं बेटियां।
भाई से बहुत प्यार किया करतीं बेटियां,
गुड़ियों का श्रृंगार किया करती बेटियां
बेटी नहीं तो कुछ भी नहीं है जहान में
दुख का कभी इज़हार नहीं करतीं बेटियां।
जग में किसी आफत नहीं डरतीं
बेटियां,
नफरत किसी रिश्ते से नहीं करतीं
बेटियां
रिश्तों को जोड़ने का हुनर जानती है ये,
दो - दो घरों के साए में खुश रहतीं बेटियां
रोटी भी थालियाँ में रखा करती बेटियां,
थोड़े में भी खुश होके रहा करतीं बेटियां,
छोटी बहन या भाईसे क्षणभर को झगड़तीं
अब मानभी जाओ ये कहा करतीं बेटियां।
चिड़ियों की तरह चहकती फिरती हैं बेटियां,
फूलों की तरह महकती फिरती हैं बेटियां,
आंगन में फुदकती हुई भाती हैं सभी को,
लेकर विदाई आँखें भरा करतीं बेटियां।
दुनियाँ के सभी फ़र्ज़----------
✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी, मुरादाबाद/उ,प्र, मोबाइल फोन नम्बर 9719275453
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष सुरेन्द्र मोहन मिश्र की काव्य कृति ---कविता नियोजन । इस कृति में उनकी सन 1972 से 1974 तक की 26 कविताएं संगृहीत हैं । इस कृति का प्रकाशन नवम्बर 1982 में प्रज्ञा प्रकाशन मंदिर चन्दौसी (उत्तर प्रदेश) से हुआ था । उनकी यह कृति मुझे डॉ विश्व अवतार जैमिनी जी ने प्रदान की थी ।
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:::::::::प्रस्तुति:::::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822
मुरादाबाद मंडल के चन्दौसी (जनपद सम्भल)निवासी साहित्यकार अतुल मिश्र का व्यंग्य ---देश सेवा एक नेता की !!
देश की सेवा करने के साथ ही अपनी और अपने परिवार की सेवा करने वाले नेता के कुछ ऐसे उसूल थे, जो खुद के अपने थे और उन पर जनता को भले ही नाज़ ना हो, मगर उन्हें इन पर नाज़ था. वे एक ऐसी पार्टी के वरिष्ठ नेता थे, जिसके कुछ अपने उसूल थे और जो वक़्त के हिसाब से बदल जाया करते थे. लेकिन नेता जी के उसूलों ने बदलने से मना कर दिया था, इसलिए वे यथावत रहे और आज भी हैं. उनकी पार्टी जब सत्ता में थी, तब भी उसूलों ने बदलने से शायद मना कर दिया था कि हमें नहीं बदलना. काम के बदले दाम अगर लेने हैं तो लेने हैं, यह नहीं कि फ़ोकट में काम कर दिया कि उनके साले के सगे साले के बहनोई का मसला है तो कुछ ना लें. देश की सेवा के लिए यह उनका पहला उसूल था और जिसके बिना वे देश-सेवा को असंभव मानते थे.
डकैती के पेशे में जब उन्होंने यह देखा कि कोई ख़ास इनकम अब नहीं रही और कभी भी पुलिस द्वारा पकड़े जाने पर हवालात में बैंतों से सुताई हो सकती है, तो वे देश की सेवा वाले काम में कूद पड़े. इसमें उन्हें ज़्यादा मुनाफा दिखाई दिया. जो लोग उन्हें कल तक ' कलुआ ' कहकर बुलाते थे, आज वही लोग उन्हें श्री काली प्रसाद जी कहकर संबोधित किया करते हैं. अपने इलाके से चुनाव जीतकर वे यह बात साबित कर चुके थे कि कितनी भी अत्याधुनिक वोटिंग मशीनें मंगा ली जाएं, उनके वोट उतने ही पड़ेंगे, जितने उन्होंने सोच रखे थे कि पड़ने चाहिए. डकैती के दिनों में उनकी गोपनीय समाज-सेवा भी इसकी एक अहम् वजह थी.
पहले वे सिर्फ़ अपने धर्म में ही आस्था रखते थे, मगर सियासत में आने के बाद वे सभी धर्मों को समानता के भाव से देखने लगे थे और अक्सर अन्य धर्मों के धार्मिक कार्यक्रमों में बिना निमंत्रण के ही पहुंच जाया करते थे. यह बात भी लोगों को बेहद प्रभावित करती थी कि जिसके मारे कभी पुलिस सहित सारा इलाका कांपता था, वह अब उनके समारोह में बिना बुलाये आने लगा है, तो लोगों ने दूसरे गुंडे और टुच्चे प्रत्याशियों की जगह उन्ही को वोट देना ज़्यादा मुनासिब समझा. इसी के बल पर वे कई सालों से चुनाव जीतकर देश की सेवा कर रहे थे.
उनके कई उसूलों में से एक यह भी था कि मंत्री बनने के बाद तमाम गांवों की ग़रीब महिलाओं के घर जाकर वे खाना ज़रूर खाते थे और बाक़ायदा अपने फ़ोटो भी खिंचवाते थे ताकि सनद रहे और वक़्त ज़रूरत अखबारों में न्यूज़ सहित छपवाने के काम आए. इस दौरान जिसके हाथ का खाना ज़्यादा अच्छा लगता था, वे एक रात उसके घर रुकने का सौभाग्य भी उसे प्रदान करते थे. ऐसे सौभाग्यों से वे कई महिलाओं को नवाज़ चुके थे. मीडिया वालों ने जब इस पर अपनी शंका ज़ाहिर की तो उन्होंने अपनी उम्र का हवाला देते हुए यह साफ़ कर दिया कि वे यह सब देश के लिए ही कर रहे हैं. और यह बात सही भी थी कि देश की इसी सेवा की बदौलत आज गांव-गांव में उनकी औलादें हैं और जो ग्राम-प्रधानी के चुनावों से अपनी देश की ख़ातिर नेतागिरी की शुरुआत कर रही हैं.
✍️ अतुल मिश्र, श्री धन्वंतरि फार्मेसी, मौ. बड़ा महादेव, चन्दौसी, जनपद सम्भल
मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का गोवा यात्रा वृतांत (4-7 फरवरी 2021) ----सागर में एक लहर उठी तेरे नाम की...
गोवा में सागर देखा तो पहली बार पता चला कि जलराशि कितनी विशाल हो सकती है ! बात केवल विशालता की ही नहीं है । सागर के स्वभाव से परिचय तब हुआ, जब उसके तट पर कुछ देर बैठना हुआ। सागर तो शांत बैठ ही नहीं रहा था । हम शांत बैठे हुए सागर को देख रहे थे और समुद्र निरंतर शोर करता जा रहा था ।
एक लहर उठती थी ..दूर से आती हुई दिखती थी .. फिर धीरे-धीरे पास आती थी और पानी का उछाल बन जाती थी । इसके बाद वह तट पर आकर बिखर जाती थी । जब तक यह लहर बिखरती और लहर का शोर समाप्त होता ,ठीक उससे ही पहले एक और लहर दूर से बनती हुई नजर आ जाती थी । वह लहर पहली वाली लहर की तरह ही आगे बढ़ती थी । जल की दीवार-जैसी धार में बदल जाती थी । पानी बिखरता था और तेजी के साथ तट पर चारों तरफ फैल जाता था । यह क्रम बराबर चल रहा था। एक मिनट के लिए भी ...और एक मिनट तो बहुत देर की बात है ,एक सेकेंड के लिए भी यह क्रम नहीं रुकता था। तब यह जाना कि सागर में लहर का उठना और बिखर जाना ...फिर उठना और फिर बिखर जाना, यह एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है । इसमें किसी भी प्रकार का विराम अथवा अर्धविराम संभव नहीं है । समुद्र अपनी गर्जना करता रहेगा । लहरों को पैदा करेगा और लहर फैलकर फिर समुद्र में ही मिल जाएगी । यही तो समुद्र की विशेषता है।
समुद्र में लहरों का उठना और बिखर कर फिर समुद्र में मिल जाना ,यह एक तरह की समुद्र की श्वास- प्रक्रिया है । जिस तरह मनुष्य अथवा कोई भी प्राणी बिना साँस लिए जीवित नहीं रह सकता ,वह बराबर साँस लेता रहता है और छोड़ता रहता है, ठीक उसी प्रकार समुद्र के गर्भ से लहरें उत्पन्न होती हैं और फिर समुद्र में ही विलीन हो जाती हैं। यही समुद्र की जीवन - प्रक्रिया है । यही समुद्र के लिए जीवन का क्रम है। समुद्र की लहरों को जीवन की शाश्वत - प्रक्रिया के रूप में मैंने देखा । आखिर एक लहर का जीवन ही कितना है ! कुछ सेकंड के लिए अस्तित्व में आई और फिर सदा - सदा के लिए समुद्र में विलीन हो गई । न लहर की कोई अपनी अलग पहचान होती है और न उसका कोई अलग से नाम होता है ।
हर लहर अपने आप में समुद्र ही तो है ! समुद्र ही लहर बनता है । समुद्र ही लहर के रूप में आगे बढ़ता है । लहर फिर समुद्र बनकर समुद्र में ही मिल जाती है । क्या हुआ ? कुछ भी तो नहीं ! क्या जीवन और क्या मृत्यु ? एक क्रम चल रहा है ,अविराम गति से तथा जब तक समुद्र है तब तक यह क्रम चलता रहेगा । तट पर बैठकर हम इस दृश्य को निहारते हैं और अगर हमने इसे समझ लिया तो फिर लहरों में और समुद्र में कोई अंतर नहीं रहेगा । लहर उठना और मिट जाना ,यह एक साधारण सी बात हो जाएगी । क्या इसी का नाम *आत्मज्ञान* है ?
आर्ट ऑफ लिविंग के कार्यक्रमों में इन पंक्तियों को हमने न जाने कितनी बार गाया और दोहराया होगा :
सागर में एक लहर उठी तेरे नाम की
तुझे मुबारक खुशियाँ आत्मज्ञान की
पर जब तक सागर प्रत्यक्ष न देखो और लहरों का दर्शन कुछ देर ठहर कर न करो ,कुछ भी समझ में नहीं आएगा । सारा मामला ही अनुभूतियों का है । अनुभूतियों की समृद्धि ही हमें धनवान बनाती है । इसी में जीवन का सारा सार छिपा हुआ है । समुद्र के तट पर सागर और लहर को देखकर जीवन का सार समझ में थोड़ा-थोड़ा आने लगा । थोड़ा-थोड़ा इसलिए क्यों कि न समुद्र की गहराई का हमें पता है और न इसकी विशालता का। जैसे आसमान अनंत है ,वैसे ही ज्ञान भी अनंत है । हम उसके किसी भी ओर -छोर का पता नहीं लगा सकते ।
समुद्र के तट पर चार फरवरी 2021 को पहुँचते ही हमने पहली फुर्सत में सूर्यास्त के दर्शन किए । डूबता हुआ सूरज देखना स्वयं में एक खुशी का अनुभव होता है । लाल बहता हुआ अंगारे के समान सूर्य जब धीरे-धीरे नीचे आता है और समुद्र के जल में मानो विलीन हो जाता है ,तब पता चलता है कि जैसे समुद्र का पानी सूर्य की तेजस्विता को सोख कर और भी धनवान हो गया । लेकिन फिर यह बिखरी हुई ठंडी रोशनी का नजारा धीरे-धीरे गायब होने लगता है और अंधेरा फैलने लगता है ।
अंधेरा होने से पहले ही सूर्यास्त की बेला में मैंने दो कुंडलियाँ ,जो यात्रा के दौरान लिखी थीं, पढ़कर तट पर सुनाईं और उन्हें मेरी पुत्रवधू ने वीडियो - रिकॉर्डिंग के द्वारा कैमरे में सुरक्षित कर लिया । एक कुंडलिया का शीर्षक था 'आओ प्रिय गोवा चलें' तथा दूसरी कुंडलिया का शीर्षक 'सागर और लहर' था
समुद्र के जल से पैरों का स्पर्श होना एक विद्युत प्रवाह की घटना महसूस हुई । अपनी जगह मैं तो खड़ा रहा। मगर समुद्र चलकर मेरे पैरों के पास आया । हल्का - सा झटका लगा ...और फिर सब कुछ सामान्य । समुद्र की ओर मैं थोड़ा और आगे बढ़ा । इस बार लहरों का प्रवाह कुछ तेजी के साथ महसूस हुआ । पैरों को समुद्र ने न केवल धोया बल्कि पैरों की मालिश भी की। मैं थोड़ा और आगे बढ़ा । इस बार लहरें एक दीवार की तरह सामने से आती हुई बिल्कुल निकट थीं। घुटनों तक उन्होंने मुझे भिगो दिया । मैं नेकर पहने हुए था । वह भी हल्का - सा भीग गया। पानी नमकीन था । मैंने दो बूँद चखकर देखा।
सागर चरण पखारे --किसी कवि के कहे गए यह भाव दिमाग में गूँज रहे थे। मन ने किसी कोने से आवाज देकर कहा "अरे नादान ! यह तो किनारे पर खड़े हुए हो, इस कारण सागर तुम्हारे चरणों को धो रहा है। अन्यथा कहाँ तुम और कहाँ बलशाली समुद्र ! अगर टकरा गए तो फिर कहीं के नहीं रहोगे । छह फुट का आदमी सागर की अनंत गहराइयों के मुकाबले में कहाँ दिखेगा ? "
मैंने दूर से ही सागर को प्रणाम करने में भलाई समझी । हमारे धन्य भाग्य जो हम तट पर आए और सागर स्वतः प्रक्रिया के द्वारा हमारे स्वागत के लिए अपने जल के साथ हमारे चरणों को धोने के लिए उपस्थित हो गया ।
समुद्र के तट पर सूर्योदय का अनुभव भी अद्भुत रहा । हम सुबह - सुबह तट पर पहुँचे । सोचा ,आज सुबह की सुदर्शन क्रिया और ध्यान समुद्र के तट पर ही करेंगे । वहां पहुँचकर तब बहुत खुशी हुई जब देखा कि लगभग एक दर्जन व्यक्ति गोल घेरा बनाकर काफी दूर पर बैठे हुए थे तथा कुछ ऐसी क्रियाएँ कर रहे थे ,जिसका संबंध कहीं न कहीं किसी उत्साहवर्धक योग - साधना से जुड़ता है । मेरा अनुमान सही था। जब हम अपनी क्रिया पूरी करके समुद्र तट से वापस जाने के लिए मुड़े ,लगभग उसी समय योगाभ्यासियों का समूह भी वापस जा रहा था । एक तेजस्वी महिला ग्रुप में पीछे रह गई थीं अथवा यूँ कहिए कि वह पीछे- पीछे चल रही थीं। आयु पैंतीस-चालीस वर्ष रही होगी । चेहरे पर तेज था । मैंने पूछा " मैं यहाँ आर्ट ऑफ लिविंग की सुदर्शन क्रिया कर रहा था । क्या यहाँ आप लोग योग करने के लिए उपस्थित हुए हैं ? "
वह कहने लगीं " हम लोग योग नहीं कर रहे थे बल्कि कोर्स कर रहे थे । हम लोग सूफी - मेडिटेशन कराते हैं । तीन - चार दिन का कोर्स रहता है । अगर आप कोर्स करने में रुचि लें तो हमसे संपर्क कर सकते हैं ।"
इसके बाद न तो मैंने कोर्स करने की इच्छा प्रकट की और न उन्होंने अधिक बातचीत करने में दिलचस्पी दिखाई । बाद में वह महिला हमारे होटल/रिसॉर्ट में ही फिर दिखाई दीं। दरअसल जिस समुद्र तट की मैं बात कर रहा हूँ, वह हमारे होटल " बैलेजा बॉय द बीच " का ही समुद्र तट है । रिसॉर्ट के पास समुद्र का तट है तथा रिसॉर्ट से समुद्र तट तक जाने के लिए मुश्किल से पाँच मिनट का पैदल का रास्ता है ,जो खूबसूरत पेड़ों से घिरा हुआ तथा पक्के फर्श का बना हुआ है।
समुद्र के तट पर मैंने अपनी सुदर्शन क्रिया तथा प्राणायाम आदि को दोहराया , जिन्हें मैं सितंबर वर्ष दो हजार सात से प्रतिदिन घर पर करता रहा हूँ। ध्यान में इस बार विशेष आनंद आया । ध्यान जल्दी लगा , अच्छा लगा और नारंगी रंग का प्रकाश बंद आंखों के सामने सौम्यता से खिलता हुआ उपस्थित था। यह प्रकाश जितना नजदीक नजर आ रहा था ,उतना ही दूर - दूर तक फैला हुआ था । मध्य में कभी ऐसा लगता था कि कुछ खालीपन है और कभी सब कुछ नारंगी प्रकाश से भरा हुआ लगता था । प्रकाश में किसी प्रकार की उत्तेजना अथवा चकाचौंध नहीं थी । अत्यंत शांत मनोभावों को यह नारंगी प्रकाश उत्पन्न कर रहा था । संसार से थोड़ा कटकर और थोड़ा जुड़े रहकर स्थिरता का यह भाव पता नहीं कितनी देर तक रहा । पाँच मिनट ..दस मिनट ..बीस मिनट ..कह नहीं सकता ? फिर उसके बाद सृष्टि की विराटता और भी निकट आ गई थी । सूफी मेडिटेशन की शिक्षिका से संवाद सुदर्शन क्रिया करने के बाद ही हुआ था ।
समुद्र तट पर दस-बारह स्त्री-पुरुषों का एक अलग जमावड़ा थोड़ी दूर पर स्पष्ट दिखाई दे रहा था । यह पचास-पचपन साल के व्यक्तियों का समूह था ,जिसमें कुछ लोग पैंसठ वर्ष के भी जान पड़ते थे । गोवा के समुद्र तट पर यह लोग भी हमारी तरह ही घूमने आए थे।
पालोलिम और कोल्बा के समुद्र तटों पर भीड़भाड़ और चहल-पहल बहुत ज्यादा थी । कोल्बा के समुद्र तट पर हम दोपहर को गए थे । सिर पर हैट तथा आँखों पर धूप के चश्मे ने हमें सूरज की तेज गर्मी से बचा लिया अन्यथा आँखों का बुरा हाल हो जाता । यद्यपि नेकर पहने हुए थे फिर भी गर्मी सता रही थी । अधिक देर तक तट पर बैठना कठिन हो रहा था । समुद्र और जल के कारण कुछ ठंडक रहती होगी लेकिन उसका आभास न के बराबर था। जितनी देर समुद्र में पैर पड़े रहते थे, ठीक-ठाक लगता था । रेत पर आकर फिर वही झुलसती हुई गर्मी ! मगर सब आनन्द से घूम रहे थे । सबके चेहरे पर मस्ती और मौज का भाव था ।
पालोलिम का समुद्री तट तो एक मेले के समान था । थोड़ी-बहुत एक बस्ती और बाजार बसा हुआ था । छोटा-मोटा शहर इसे कह सकते हैं । समुद्र का जल तो एक जैसा ही होता है ,लेकिन बेलेजा रिसोर्ट के समुद्र तट का जल कुछ ज्यादा साफ नजर आया। हो सकता है ,यहाँ भीड़ - भाड़ न होने के कारण अथवा मोटरबोट न चलने के कारण सफाई कुछ ज्यादा रहती हो। जो भी हो , समुद्र के तट का आनन्द समुद्र की लहरों में विराजमान होता है । यह लहरों का गर्जन ही इसे आकर्षण प्रदान करता है।
गोवा यात्रा के दौरान आनन्द और मस्ती के क्षणों कुछ कुंडलियों की भी रचना हुई । प्रस्तुत हैं ---- 13 कुंडलियाँ
🌷 *(1) आओ प्रिय गोवा चलें* 🌷
आओ प्रिय गोवा चलें ,सागर तट के पास
मैं तुममें मुझ में करो ,तुम खुद का आभास
तुम खुद का आभास ,सिंधु की फैली राहें
जितनी दिखें विराट , एक दूजे को चाहें
कहते रवि कविराय , गीत लहरों सँग गाओ
रहो सदा स्वच्छंद , घूमने गोवा आओ
🌻 *(2) सागर और लहर* 🌻
सागर तट पर जब दिखा ,मस्ती का अंदाज
मैंने पूछा सिंधु से , क्या है इसका राज
क्या है इसका राज , सिंधु ने यह बतलाया
लहरें मेरी मुक्त , व्यक्त करती हैं काया
कहते रवि कविराय , लहर हर खुद में गागर
सागर का प्रतिबिंब , समझिए इसको सागर
🌸 *(3) वायुयान की सैर* 🌸
आओ करते हैं चलें , वायुयान की सैर
ऊपर से धरती लगे , लोक एक ज्यों गैर
लोक एक ज्यों गैर , बादलों से उठ जाते
नीचे बादल यान , उच्च की सैर कराते
कहते रवि कविराय ,सात लोकों तक जाओ
बादल सारे चीर , घूम कर वापस आओ
🌹 *(4) सागर* 🌹
सागर को केवल पता , होता क्या तूफान
किसको कहते ज्वार हैं ,आते तुंग समान
आते तुंग समान , नदी सागर से छोटी
झील और तालाब , खेलते कच्ची गोटी
कहते रवि कविराय ,शेष सब समझो गागर
जल अथाह भंडार ,नील - नभ होता सागर
*तुंग* =पहाड़
🍁 *(5) लहर में पाँव भिगोएँ* 🍁
तट पर सागर के चलें ,सुनें सिंधु का शोर
मैं देखूंँ तुमको प्रिये , तुम प्रिय मेरी ओर
तुम प्रिय मेरी ओर ,लहर में पाँव भिगोएँ
नयन - नयन में डाल , एक दूजे में खोएँ
कहते रवि कविराय ,नेह की भाषा रटकर
हम पाएँ उत्कर्ष , सिंधु के पावन तट पर
🏵️ *(6)मादक अपरंपार* 🏵️
आकर गोवा में जिओ ,मस्ती का संसार
शहद हवा में ज्यों घुला ,मादक अपरंपार
मादक अपरंपार , मधुर रंगीन अदाएँ
घने नारियल वृक्ष , लहर सागर की पाएँ
कहते रवि कविराय ,सुहाना मौसम पाकर
पहनो नेकर रोज , स्वर्ग - गोवा में आकर
🍃🍂 *(7) सागर तट पर*🍂🍃
परिचय सागर ने दिया ,कर के चरण पखार
बोला बंधु पधारिए , स्वागत मेरे द्वार
स्वागत मेरे द्वार , कहा हमने बस काफी
आलिंगन का अर्थ , नहीं पाएँगे माफी
कहते रवि कविराय ,जिंदगी का होता क्षय
बलवानों के साथ , मित्रता दुष्कर परिचय
🟡 🪴 *(8)लहर* 🪴 🟡
बहती जैसे है नदी , सदा - सदा अविराम
वैसे ही क्षण-भर कहाँ ,सागर को आराम
सागर को आराम , हमेशा नर्तन करता
घुमा-घुमा कर पेट , सिंधु आलस सब हरता
कहते रवि कविराय ,लहर सागर की कहती
मैं सागर की साँस , जिंदगी बनकर बहती
✳️ *(9)देखा गोवा* ✳️
देखा गोवा हर जगह ,खपरैलों का भाव
संरक्षण प्राचीन का , भवनों में है चाव
भवनों में है चाव ,मनुज हरियाली गाते
वृक्ष नारियल बहुल , हर जगह पाए जाते
कहते रवि कविराय ,सिंधु है जीवन-रेखा
मस्ती का अंदाज , अनूठा तुझ में देखा
🌸 *(10)कैसीनो में लोग* 🌸
आते पैसा जीतने , कैसीनो में लोग
गोवा में अद्भुत दिखा , किस्मत का संयोग
किस्मत का संयोग ,अंक पर दाँव लगाते
हर चक्कर के साथ ,जुआरी खोते - पाते
कहते रवि कविराय ,स्वप्न - नगरी में जाते
सैलानी स्थानीय , रात मस्ती में आते
🌻 *(11)सिंधु गरजता* 🌻
सिंधु गरजता हर समय , नदी बह रही शांत
अपने-अपने भाव हैं , दोनों कभी न क्लांत
दोनों कभी न क्लांत , एक को शोर मचाना
दूजे को प्रिय मौन , सत्य जाना - पहचाना
कहते रवि कविराय ,सुकोमल पर चुप सजता
उच्छ्रंखल बलवान , रात - दिन सिंधु गरजता
*क्लांत* = थका हुआ
🟡 *(12) लहरें पहरेदार* 🟡
पहरेदारी कर रहीं , लहरें चारों ओर
सागर में घुसने नहीं , पाए कोई चोर
पाए कोई चोर , शोर हर समय मचातीं
सदा सजग मुस्तैद , घूमती पाई जातीं
कहते रवि कविराय ,जागना हर क्षण जारी
पाओ इनसे ज्ञान , सीख लो पहरेदारी
🟡 *(13)आओ कैसीनो चलें* 🟡
व्याख्या जीवन की यही ,जीवन है टकसाल
आओ कैसीनो चलें , खेलें कोई चाल
खेलें कोई चाल , जीतकर बाजी आएँ
कुर्सी पर फिर बैठ ,अंक पर दाँव लगाएँ
कहते रवि कविराय ,जिंदगी की यह आख्या
जुआ मस्तियाँ मौज ,मधुर साँसों की व्याख्या
*टकसाल* = जहाँ सिक्के ढलते हैं
✍️ रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश) मोबाइल फोन नम्बर 99976 15451