गोवा में सागर देखा तो पहली बार पता चला कि जलराशि कितनी विशाल हो सकती है ! बात केवल विशालता की ही नहीं है । सागर के स्वभाव से परिचय तब हुआ, जब उसके तट पर कुछ देर बैठना हुआ। सागर तो शांत बैठ ही नहीं रहा था । हम शांत बैठे हुए सागर को देख रहे थे और समुद्र निरंतर शोर करता जा रहा था ।
एक लहर उठती थी ..दूर से आती हुई दिखती थी .. फिर धीरे-धीरे पास आती थी और पानी का उछाल बन जाती थी । इसके बाद वह तट पर आकर बिखर जाती थी । जब तक यह लहर बिखरती और लहर का शोर समाप्त होता ,ठीक उससे ही पहले एक और लहर दूर से बनती हुई नजर आ जाती थी । वह लहर पहली वाली लहर की तरह ही आगे बढ़ती थी । जल की दीवार-जैसी धार में बदल जाती थी । पानी बिखरता था और तेजी के साथ तट पर चारों तरफ फैल जाता था । यह क्रम बराबर चल रहा था। एक मिनट के लिए भी ...और एक मिनट तो बहुत देर की बात है ,एक सेकेंड के लिए भी यह क्रम नहीं रुकता था। तब यह जाना कि सागर में लहर का उठना और बिखर जाना ...फिर उठना और फिर बिखर जाना, यह एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है । इसमें किसी भी प्रकार का विराम अथवा अर्धविराम संभव नहीं है । समुद्र अपनी गर्जना करता रहेगा । लहरों को पैदा करेगा और लहर फैलकर फिर समुद्र में ही मिल जाएगी । यही तो समुद्र की विशेषता है।
समुद्र में लहरों का उठना और बिखर कर फिर समुद्र में मिल जाना ,यह एक तरह की समुद्र की श्वास- प्रक्रिया है । जिस तरह मनुष्य अथवा कोई भी प्राणी बिना साँस लिए जीवित नहीं रह सकता ,वह बराबर साँस लेता रहता है और छोड़ता रहता है, ठीक उसी प्रकार समुद्र के गर्भ से लहरें उत्पन्न होती हैं और फिर समुद्र में ही विलीन हो जाती हैं। यही समुद्र की जीवन - प्रक्रिया है । यही समुद्र के लिए जीवन का क्रम है। समुद्र की लहरों को जीवन की शाश्वत - प्रक्रिया के रूप में मैंने देखा । आखिर एक लहर का जीवन ही कितना है ! कुछ सेकंड के लिए अस्तित्व में आई और फिर सदा - सदा के लिए समुद्र में विलीन हो गई । न लहर की कोई अपनी अलग पहचान होती है और न उसका कोई अलग से नाम होता है ।
हर लहर अपने आप में समुद्र ही तो है ! समुद्र ही लहर बनता है । समुद्र ही लहर के रूप में आगे बढ़ता है । लहर फिर समुद्र बनकर समुद्र में ही मिल जाती है । क्या हुआ ? कुछ भी तो नहीं ! क्या जीवन और क्या मृत्यु ? एक क्रम चल रहा है ,अविराम गति से तथा जब तक समुद्र है तब तक यह क्रम चलता रहेगा । तट पर बैठकर हम इस दृश्य को निहारते हैं और अगर हमने इसे समझ लिया तो फिर लहरों में और समुद्र में कोई अंतर नहीं रहेगा । लहर उठना और मिट जाना ,यह एक साधारण सी बात हो जाएगी । क्या इसी का नाम *आत्मज्ञान* है ?
आर्ट ऑफ लिविंग के कार्यक्रमों में इन पंक्तियों को हमने न जाने कितनी बार गाया और दोहराया होगा :
सागर में एक लहर उठी तेरे नाम की
तुझे मुबारक खुशियाँ आत्मज्ञान की
पर जब तक सागर प्रत्यक्ष न देखो और लहरों का दर्शन कुछ देर ठहर कर न करो ,कुछ भी समझ में नहीं आएगा । सारा मामला ही अनुभूतियों का है । अनुभूतियों की समृद्धि ही हमें धनवान बनाती है । इसी में जीवन का सारा सार छिपा हुआ है । समुद्र के तट पर सागर और लहर को देखकर जीवन का सार समझ में थोड़ा-थोड़ा आने लगा । थोड़ा-थोड़ा इसलिए क्यों कि न समुद्र की गहराई का हमें पता है और न इसकी विशालता का। जैसे आसमान अनंत है ,वैसे ही ज्ञान भी अनंत है । हम उसके किसी भी ओर -छोर का पता नहीं लगा सकते ।
समुद्र के तट पर चार फरवरी 2021 को पहुँचते ही हमने पहली फुर्सत में सूर्यास्त के दर्शन किए । डूबता हुआ सूरज देखना स्वयं में एक खुशी का अनुभव होता है । लाल बहता हुआ अंगारे के समान सूर्य जब धीरे-धीरे नीचे आता है और समुद्र के जल में मानो विलीन हो जाता है ,तब पता चलता है कि जैसे समुद्र का पानी सूर्य की तेजस्विता को सोख कर और भी धनवान हो गया । लेकिन फिर यह बिखरी हुई ठंडी रोशनी का नजारा धीरे-धीरे गायब होने लगता है और अंधेरा फैलने लगता है ।
अंधेरा होने से पहले ही सूर्यास्त की बेला में मैंने दो कुंडलियाँ ,जो यात्रा के दौरान लिखी थीं, पढ़कर तट पर सुनाईं और उन्हें मेरी पुत्रवधू ने वीडियो - रिकॉर्डिंग के द्वारा कैमरे में सुरक्षित कर लिया । एक कुंडलिया का शीर्षक था 'आओ प्रिय गोवा चलें' तथा दूसरी कुंडलिया का शीर्षक 'सागर और लहर' था
समुद्र के जल से पैरों का स्पर्श होना एक विद्युत प्रवाह की घटना महसूस हुई । अपनी जगह मैं तो खड़ा रहा। मगर समुद्र चलकर मेरे पैरों के पास आया । हल्का - सा झटका लगा ...और फिर सब कुछ सामान्य । समुद्र की ओर मैं थोड़ा और आगे बढ़ा । इस बार लहरों का प्रवाह कुछ तेजी के साथ महसूस हुआ । पैरों को समुद्र ने न केवल धोया बल्कि पैरों की मालिश भी की। मैं थोड़ा और आगे बढ़ा । इस बार लहरें एक दीवार की तरह सामने से आती हुई बिल्कुल निकट थीं। घुटनों तक उन्होंने मुझे भिगो दिया । मैं नेकर पहने हुए था । वह भी हल्का - सा भीग गया। पानी नमकीन था । मैंने दो बूँद चखकर देखा।
सागर चरण पखारे --किसी कवि के कहे गए यह भाव दिमाग में गूँज रहे थे। मन ने किसी कोने से आवाज देकर कहा "अरे नादान ! यह तो किनारे पर खड़े हुए हो, इस कारण सागर तुम्हारे चरणों को धो रहा है। अन्यथा कहाँ तुम और कहाँ बलशाली समुद्र ! अगर टकरा गए तो फिर कहीं के नहीं रहोगे । छह फुट का आदमी सागर की अनंत गहराइयों के मुकाबले में कहाँ दिखेगा ? "
मैंने दूर से ही सागर को प्रणाम करने में भलाई समझी । हमारे धन्य भाग्य जो हम तट पर आए और सागर स्वतः प्रक्रिया के द्वारा हमारे स्वागत के लिए अपने जल के साथ हमारे चरणों को धोने के लिए उपस्थित हो गया ।
समुद्र के तट पर सूर्योदय का अनुभव भी अद्भुत रहा । हम सुबह - सुबह तट पर पहुँचे । सोचा ,आज सुबह की सुदर्शन क्रिया और ध्यान समुद्र के तट पर ही करेंगे । वहां पहुँचकर तब बहुत खुशी हुई जब देखा कि लगभग एक दर्जन व्यक्ति गोल घेरा बनाकर काफी दूर पर बैठे हुए थे तथा कुछ ऐसी क्रियाएँ कर रहे थे ,जिसका संबंध कहीं न कहीं किसी उत्साहवर्धक योग - साधना से जुड़ता है । मेरा अनुमान सही था। जब हम अपनी क्रिया पूरी करके समुद्र तट से वापस जाने के लिए मुड़े ,लगभग उसी समय योगाभ्यासियों का समूह भी वापस जा रहा था । एक तेजस्वी महिला ग्रुप में पीछे रह गई थीं अथवा यूँ कहिए कि वह पीछे- पीछे चल रही थीं। आयु पैंतीस-चालीस वर्ष रही होगी । चेहरे पर तेज था । मैंने पूछा " मैं यहाँ आर्ट ऑफ लिविंग की सुदर्शन क्रिया कर रहा था । क्या यहाँ आप लोग योग करने के लिए उपस्थित हुए हैं ? "
वह कहने लगीं " हम लोग योग नहीं कर रहे थे बल्कि कोर्स कर रहे थे । हम लोग सूफी - मेडिटेशन कराते हैं । तीन - चार दिन का कोर्स रहता है । अगर आप कोर्स करने में रुचि लें तो हमसे संपर्क कर सकते हैं ।"
इसके बाद न तो मैंने कोर्स करने की इच्छा प्रकट की और न उन्होंने अधिक बातचीत करने में दिलचस्पी दिखाई । बाद में वह महिला हमारे होटल/रिसॉर्ट में ही फिर दिखाई दीं। दरअसल जिस समुद्र तट की मैं बात कर रहा हूँ, वह हमारे होटल " बैलेजा बॉय द बीच " का ही समुद्र तट है । रिसॉर्ट के पास समुद्र का तट है तथा रिसॉर्ट से समुद्र तट तक जाने के लिए मुश्किल से पाँच मिनट का पैदल का रास्ता है ,जो खूबसूरत पेड़ों से घिरा हुआ तथा पक्के फर्श का बना हुआ है।
समुद्र के तट पर मैंने अपनी सुदर्शन क्रिया तथा प्राणायाम आदि को दोहराया , जिन्हें मैं सितंबर वर्ष दो हजार सात से प्रतिदिन घर पर करता रहा हूँ। ध्यान में इस बार विशेष आनंद आया । ध्यान जल्दी लगा , अच्छा लगा और नारंगी रंग का प्रकाश बंद आंखों के सामने सौम्यता से खिलता हुआ उपस्थित था। यह प्रकाश जितना नजदीक नजर आ रहा था ,उतना ही दूर - दूर तक फैला हुआ था । मध्य में कभी ऐसा लगता था कि कुछ खालीपन है और कभी सब कुछ नारंगी प्रकाश से भरा हुआ लगता था । प्रकाश में किसी प्रकार की उत्तेजना अथवा चकाचौंध नहीं थी । अत्यंत शांत मनोभावों को यह नारंगी प्रकाश उत्पन्न कर रहा था । संसार से थोड़ा कटकर और थोड़ा जुड़े रहकर स्थिरता का यह भाव पता नहीं कितनी देर तक रहा । पाँच मिनट ..दस मिनट ..बीस मिनट ..कह नहीं सकता ? फिर उसके बाद सृष्टि की विराटता और भी निकट आ गई थी । सूफी मेडिटेशन की शिक्षिका से संवाद सुदर्शन क्रिया करने के बाद ही हुआ था ।
समुद्र तट पर दस-बारह स्त्री-पुरुषों का एक अलग जमावड़ा थोड़ी दूर पर स्पष्ट दिखाई दे रहा था । यह पचास-पचपन साल के व्यक्तियों का समूह था ,जिसमें कुछ लोग पैंसठ वर्ष के भी जान पड़ते थे । गोवा के समुद्र तट पर यह लोग भी हमारी तरह ही घूमने आए थे।
पालोलिम और कोल्बा के समुद्र तटों पर भीड़भाड़ और चहल-पहल बहुत ज्यादा थी । कोल्बा के समुद्र तट पर हम दोपहर को गए थे । सिर पर हैट तथा आँखों पर धूप के चश्मे ने हमें सूरज की तेज गर्मी से बचा लिया अन्यथा आँखों का बुरा हाल हो जाता । यद्यपि नेकर पहने हुए थे फिर भी गर्मी सता रही थी । अधिक देर तक तट पर बैठना कठिन हो रहा था । समुद्र और जल के कारण कुछ ठंडक रहती होगी लेकिन उसका आभास न के बराबर था। जितनी देर समुद्र में पैर पड़े रहते थे, ठीक-ठाक लगता था । रेत पर आकर फिर वही झुलसती हुई गर्मी ! मगर सब आनन्द से घूम रहे थे । सबके चेहरे पर मस्ती और मौज का भाव था ।
पालोलिम का समुद्री तट तो एक मेले के समान था । थोड़ी-बहुत एक बस्ती और बाजार बसा हुआ था । छोटा-मोटा शहर इसे कह सकते हैं । समुद्र का जल तो एक जैसा ही होता है ,लेकिन बेलेजा रिसोर्ट के समुद्र तट का जल कुछ ज्यादा साफ नजर आया। हो सकता है ,यहाँ भीड़ - भाड़ न होने के कारण अथवा मोटरबोट न चलने के कारण सफाई कुछ ज्यादा रहती हो। जो भी हो , समुद्र के तट का आनन्द समुद्र की लहरों में विराजमान होता है । यह लहरों का गर्जन ही इसे आकर्षण प्रदान करता है।
गोवा यात्रा के दौरान आनन्द और मस्ती के क्षणों कुछ कुंडलियों की भी रचना हुई । प्रस्तुत हैं ---- 13 कुंडलियाँ
🌷 *(1) आओ प्रिय गोवा चलें* 🌷
आओ प्रिय गोवा चलें ,सागर तट के पास
मैं तुममें मुझ में करो ,तुम खुद का आभास
तुम खुद का आभास ,सिंधु की फैली राहें
जितनी दिखें विराट , एक दूजे को चाहें
कहते रवि कविराय , गीत लहरों सँग गाओ
रहो सदा स्वच्छंद , घूमने गोवा आओ
🌻 *(2) सागर और लहर* 🌻
सागर तट पर जब दिखा ,मस्ती का अंदाज
मैंने पूछा सिंधु से , क्या है इसका राज
क्या है इसका राज , सिंधु ने यह बतलाया
लहरें मेरी मुक्त , व्यक्त करती हैं काया
कहते रवि कविराय , लहर हर खुद में गागर
सागर का प्रतिबिंब , समझिए इसको सागर
🌸 *(3) वायुयान की सैर* 🌸
आओ करते हैं चलें , वायुयान की सैर
ऊपर से धरती लगे , लोक एक ज्यों गैर
लोक एक ज्यों गैर , बादलों से उठ जाते
नीचे बादल यान , उच्च की सैर कराते
कहते रवि कविराय ,सात लोकों तक जाओ
बादल सारे चीर , घूम कर वापस आओ
🌹 *(4) सागर* 🌹
सागर को केवल पता , होता क्या तूफान
किसको कहते ज्वार हैं ,आते तुंग समान
आते तुंग समान , नदी सागर से छोटी
झील और तालाब , खेलते कच्ची गोटी
कहते रवि कविराय ,शेष सब समझो गागर
जल अथाह भंडार ,नील - नभ होता सागर
*तुंग* =पहाड़
🍁 *(5) लहर में पाँव भिगोएँ* 🍁
तट पर सागर के चलें ,सुनें सिंधु का शोर
मैं देखूंँ तुमको प्रिये , तुम प्रिय मेरी ओर
तुम प्रिय मेरी ओर ,लहर में पाँव भिगोएँ
नयन - नयन में डाल , एक दूजे में खोएँ
कहते रवि कविराय ,नेह की भाषा रटकर
हम पाएँ उत्कर्ष , सिंधु के पावन तट पर
🏵️ *(6)मादक अपरंपार* 🏵️
आकर गोवा में जिओ ,मस्ती का संसार
शहद हवा में ज्यों घुला ,मादक अपरंपार
मादक अपरंपार , मधुर रंगीन अदाएँ
घने नारियल वृक्ष , लहर सागर की पाएँ
कहते रवि कविराय ,सुहाना मौसम पाकर
पहनो नेकर रोज , स्वर्ग - गोवा में आकर
🍃🍂 *(7) सागर तट पर*🍂🍃
परिचय सागर ने दिया ,कर के चरण पखार
बोला बंधु पधारिए , स्वागत मेरे द्वार
स्वागत मेरे द्वार , कहा हमने बस काफी
आलिंगन का अर्थ , नहीं पाएँगे माफी
कहते रवि कविराय ,जिंदगी का होता क्षय
बलवानों के साथ , मित्रता दुष्कर परिचय
🟡 🪴 *(8)लहर* 🪴 🟡
बहती जैसे है नदी , सदा - सदा अविराम
वैसे ही क्षण-भर कहाँ ,सागर को आराम
सागर को आराम , हमेशा नर्तन करता
घुमा-घुमा कर पेट , सिंधु आलस सब हरता
कहते रवि कविराय ,लहर सागर की कहती
मैं सागर की साँस , जिंदगी बनकर बहती
✳️ *(9)देखा गोवा* ✳️
देखा गोवा हर जगह ,खपरैलों का भाव
संरक्षण प्राचीन का , भवनों में है चाव
भवनों में है चाव ,मनुज हरियाली गाते
वृक्ष नारियल बहुल , हर जगह पाए जाते
कहते रवि कविराय ,सिंधु है जीवन-रेखा
मस्ती का अंदाज , अनूठा तुझ में देखा
🌸 *(10)कैसीनो में लोग* 🌸
आते पैसा जीतने , कैसीनो में लोग
गोवा में अद्भुत दिखा , किस्मत का संयोग
किस्मत का संयोग ,अंक पर दाँव लगाते
हर चक्कर के साथ ,जुआरी खोते - पाते
कहते रवि कविराय ,स्वप्न - नगरी में जाते
सैलानी स्थानीय , रात मस्ती में आते
🌻 *(11)सिंधु गरजता* 🌻
सिंधु गरजता हर समय , नदी बह रही शांत
अपने-अपने भाव हैं , दोनों कभी न क्लांत
दोनों कभी न क्लांत , एक को शोर मचाना
दूजे को प्रिय मौन , सत्य जाना - पहचाना
कहते रवि कविराय ,सुकोमल पर चुप सजता
उच्छ्रंखल बलवान , रात - दिन सिंधु गरजता
*क्लांत* = थका हुआ
🟡 *(12) लहरें पहरेदार* 🟡
पहरेदारी कर रहीं , लहरें चारों ओर
सागर में घुसने नहीं , पाए कोई चोर
पाए कोई चोर , शोर हर समय मचातीं
सदा सजग मुस्तैद , घूमती पाई जातीं
कहते रवि कविराय ,जागना हर क्षण जारी
पाओ इनसे ज्ञान , सीख लो पहरेदारी
🟡 *(13)आओ कैसीनो चलें* 🟡
व्याख्या जीवन की यही ,जीवन है टकसाल
आओ कैसीनो चलें , खेलें कोई चाल
खेलें कोई चाल , जीतकर बाजी आएँ
कुर्सी पर फिर बैठ ,अंक पर दाँव लगाएँ
कहते रवि कविराय ,जिंदगी की यह आख्या
जुआ मस्तियाँ मौज ,मधुर साँसों की व्याख्या
*टकसाल* = जहाँ सिक्के ढलते हैं
✍️ रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश) मोबाइल फोन नम्बर 99976 15451
आदरणीय मनोज रस्तोगी जी ,आपने आत्मीयता पूर्वक मेरी गोवा यात्रा का वृतांत चित्रों और कुंडलियों के साथ प्रकाशित करके जो सुंदर कार्य किया है ,उसके लिए किन शब्दों में आपको धन्यवाद दूँ । बहुत अच्छा लग रहा है ।
जवाब देंहटाएं🙏🙏🌺🌹 भाई साहब सादर नमस्ते । वास्तव में बहुत सुंदर लिखा है । बहुत बहुत बधाई ।
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