अन्जान पथ मुश्किल भरे ।
काँटो से हैं ये सजे ।
दूर-दूर तक कोई नही अपना ।
अकेले हैं बस हम ,
और कोई नही अपना ।
यूँ ही हम चलते जाते हैं।
समय का साथ निभाते जाते हैं।
राह नई चुनते जाते हैं।
मंजिल यूँ ही नही मिलती प्यारे ।
ख्वाब उसके बुनते जाते हैं।
कटती हैं रातें भी कभी जागते हुए
दिन भी कटते हैं कभी ,
भूखें रहते हुए ।
तसल्ली रहती हैं,
फिर भी दिल को मेरे।
रोशन होगा एक दिन मेरे,
अरमानों का चमन ।
संघर्षो की अजीब दास्तां हैं ये पथ ।
अनुभवों की पाठशाला हैं ये पथ ।
कुछ न कुछ सिखाते हैं ये पथ ।
अपने आप ही कुछ ,
कह जाते हैं ये पथ ।
✍️ डॉ शोभना कौशिक, बुद्धिविहार , मुरादाबाद, उत्तरप्रदेश
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें