रविवार, 21 फ़रवरी 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की कविता ---सूरज -

 


सुबह का सूरज देखा है?

​ ऊर्जा से ओतप्रोत

​ बिल्कुल मासूम बच्चे की तरह

​  नदी की लहरों के साथ

​  अठखेलियां करता

​   हिलता हुआ पानी की लहरों पर

​ धमा चौकड़ी करने को आतुर

​ मासूम से बच्चे की तरह

​ फैला देता है सारे जग पर फिर

​ अपनी असीम ऊर्जा की चादर

​ और ढक लेता है सारे संसार को

​ ऊर्जा की तपन से

​  कभी   झुलसाता है

​  तो कभी मन को भाता है

​ अपनी मीठी गर्माहट लिए

​ सर्दियों में

​ और जलाता है अपनी तपन से

​ गर्मियों में

​ सूरज तो वही है और वही रहता है

​ बस

​ बदल लेते हैं हम उसकी भूमिका

​ अपने सुख और अपने दुख

​  के अनुसार

​ शाम को फिर इकट्ठी करके अपनी सारी ऊर्जा

​ सो जाता है अनंत आकाश की गोद में

​ कल फिर उगने के लिए

​ जैसे कोई  इंसान

​ मृत्यु की गोद में सोने के बाद

​ पुनः जन्म लेता है

​ फिर अनोखी  ऊर्जा के साथ

​ यह समय का चक्र है

​ चलता रहता है सूरज की तरह

​ हर घड़ी हर पल हर दिन

​ शून्य से अनंत की ओर

​ और अनंत से शून्य  की ओर

​✍️राशि सिंह, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश

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