सुबह का सूरज देखा है?
ऊर्जा से ओतप्रोत
बिल्कुल मासूम बच्चे की तरह
नदी की लहरों के साथ
अठखेलियां करता
हिलता हुआ पानी की लहरों पर
धमा चौकड़ी करने को आतुर
मासूम से बच्चे की तरह
फैला देता है सारे जग पर फिर
अपनी असीम ऊर्जा की चादर
और ढक लेता है सारे संसार को
ऊर्जा की तपन से
कभी झुलसाता है
तो कभी मन को भाता है
अपनी मीठी गर्माहट लिए
सर्दियों में
और जलाता है अपनी तपन से
गर्मियों में
सूरज तो वही है और वही रहता है
बस
बदल लेते हैं हम उसकी भूमिका
अपने सुख और अपने दुख
के अनुसार
शाम को फिर इकट्ठी करके अपनी सारी ऊर्जा
सो जाता है अनंत आकाश की गोद में
कल फिर उगने के लिए
जैसे कोई इंसान
मृत्यु की गोद में सोने के बाद
पुनः जन्म लेता है
फिर अनोखी ऊर्जा के साथ
यह समय का चक्र है
चलता रहता है सूरज की तरह
हर घड़ी हर पल हर दिन
शून्य से अनंत की ओर
और अनंत से शून्य की ओर
✍️राशि सिंह, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश
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