क्लिक कीजिए
रविवार, 8 मई 2022
मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हस्ताक्षर की ओर से विश्व मातृ दिवस की पूर्व संध्या शनिवार 07 मई 2022 को आयोजित काव्य-गोष्ठी में अध्यक्ष अशोक विश्नोई , मुख्य अतिथि वीरेंद्र सिंह बृजवासी, विशिष्ट अतिथि सविता लाल, डॉ अजय अनुपम, ओंकार सिंह विवेक ,योगेंद्र वर्मा व्योम, मुजाहिद फराज, जिया जमीर, मनोज मनु ,संचालक राजीव प्रखर,----- हेमा तिवारी भट्ट, मोनिका मासूम, निवेदिता सक्सेना, डॉ ममता सिंह ,आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ, शिवम वर्मा और प्रशांत मिश्र द्वारा प्रस्तुत की गईं रचनाएं -----
जाड़ों की गुनगुनी धूप
ज्येष्ठ की गर्मी में शीतल हवा
सावन में भीनी भीनी फुहार
संस्कृति की आदर्श
आशाओं की उत्कर्ष
मान - सम्मान से भरपूर
कुरीतियों से बहुत दूर
संस्कृति की वृहद आकार
आंखों में पढ़ने को अखबार
सेवा भाव में एक मिसाल
खुली खिड़की सा दिल
इरादों में बरगद
संस्कारों में बेमिसाल
श्रेष्ठता में सर्वश्रेष्ठ
आशीषों की पोटली
कर्तव्यनिष्ठ प्रतिमा ।
उधड़े रिश्तों की तुरपाई
करती है माँ ,
शबरी की तरह मीठे
बेर खिलाती है माँ ,
अनोखी निराली
होती है माँ ।।
✍️अशोक विश्नोई
मुरादाबाद,उत्तर प्रदेश, भारत
-----------------------
मुझको पहला कौर खिलाया,
माँ के हाथों ने,
झूला बन के खूब झुलाया,
माँ के हाथों ने।
मालिश कर मुझेकोनहलाया,
माँ के हाथों ने,
रेशम का झबला पहनाया,
माँ के हाथों ने।
हाथ थाम चलना सिखलाया,
माँ के हाथों ने,
काला टीका रोज़ लगाया,
माँ के हाथों ने।
पहला अक्षर ज्ञान कराया,
माँ के हाथों ने,
ग़लती का एहसास कराया,
माँ के हाथों ने।
थपकी देकर मुझे सुलाया,
माँ के हाथों ने,
स्वयं गुदगुदा मुझे उठाया,
माँ के हाथों ने।
गिरने पर झट मुझे उठाया,
माँ के हाथों ने,
अश्रु पौंछकर गले लगाया,
माँ के हाथों ने।
बीमारी में सर सहलाया,
माँ के हाथों ने,
खांसी का सीरप पिलवाया,
माँ के हाथों ने।
मेरे मन का भोग बनाया,
माँ के हाथों ने,
ईश्वर को प्रसाद चढ़ाया,
माँ के हाथों ने।
✍️ वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर - 9719275453
--------------------------------
माँ एक ऐसा भाव है
जो सहस्त्रों धाराओं से फूटता है
उसकी ममता के रोम रोम में बसता
और खिलखिलाता है …..
यही वो आँचल है…..
जो क़भी स्तनों में दूध बनकर उतरता है और
कभी अपने स्पर्श से सहलाता दुलारता है
यही वो भरोसा है….
जो बचपन की किलकारियों में गूंजता और मुस्कराता है
यही वो संबल है……
जो बचपन को ज़िन्दगी के उबड़खाबड़ पगडंडियों पर आगे बढ़ना सिखाता है…
माँ एक भाव एक आँचल एक भरोसा है
एक संबल है एक आधार है एक शाश्वता है
जो सृष्टि के आदि से अन्त तक
सरस बहता रहता है ।
✍️ सरिता लाल
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
-------------------------
शुभ संकल्पित साधुवाद है
वह शुचिता का शंखनाद है
करुणा, कृपा,दया से दीपित
मां परमेश्वर का प्रसाद है।।
२
अमृत का अविकल्प स्वाद है
ममता का मधुमय निनाद है
वह पावन प्रबोध जीवन का
मां परमेश्वर का प्रसाद है।।
✍️ डॉ अजय अनुपम
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
---------------------------
डगर का ज्ञान होता है अगर माँ साथ होती है,
सफ़र आसान होता है अगर माँ साथ होती है।
कभी मेरा जगत में बाल बाँका हो नहीं सकता,
सदा यह भान होता है अगर माँ साथ होती है।
-------–-
दूर सारे अलम और सदमात हैं,
माँ है तो ख़ुशनुमा घर के हालात हैं।
दिल को सब ठेस उसके लगाते रहे,
ये न सोचा कि माँ के भी जज़्बात हैं।
दुख ही दुख वो उठाती है सबके लिए,
माँ के हिस्से में कब सुख के लमहात हैं।
छोड़ भी आ तू अब लाल परदेस को,
मुंतज़िर माँ की आँखें ये दिन-रात हैं।
मैं जो महफ़ूज़ हूँ हर बला से 'विवेक',
ये तो माँ की दुआओं के असरात हैं।
✍️ओंकार सिंह विवेक
रामपुर, उत्तर प्रदेश, भारत
-----------------------
नतमस्तक हो गिर पड़ी, मज़हब की दीवार।
आया मेरे सामने, जब माॅं का क़िरदार।।
******
फिर नारों के शोर में, बहुत दिनों के बाद।
मातृ-दिवस पर आ गयी, बूढ़ी माॅं की याद।।
******
क्या तीरथ की कामना, कैसी धन की आस।
जब बैठी हो प्रेम से, अम्मा मेरे पास।।
*****
चहकी है फिर कोकिला, मिलकर मेरे साथ।
दुनिया वालो अब नहीं, कहना मुझे अनाथ।।
******
चलते-चलते जब मिले, जीवन-पथ पर जाम।
आया तेरी छाॅंव में, माॅं हमको आराम।।
******
दाना चुगते देख कर, तुमको अरसे बाद।
प्यारी चीं-चीं आ गयी, हमको अम्मा याद।।
******
सबको ख़ुशबू बाॅंट कर, खुद झेले जो शूल।
माॅं है घर-परिवार की, बगिया का वह फूल।।
✍️ राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
--------------------------
किसको चिन्ता किस हालत में
कैसी है अब माँ
सूनी आँखों में पलती हैं
धुंधली आशाएँ
हावी होती गईं फ़र्ज़ पर
नित्य व्यस्तताएँ
जैसे खालीपन काग़ज़ का
वैसी है अब माँ
नाप-नापकर अंगुल-अंगुल
जिनको बड़ा किया
डूब गए वे सुविधाओं में
सब कुछ छोड़ दिया
ओढ़े-पहने बस सन्नाटा
ऐसी है अब माँ
फ़र्ज़ निभाती रही उम्र-भर
बस पीड़ा भोगी
हाथ-पैर जब शिथिल हुए तो
हुई अनुपयोगी
धूल चढ़ी सरकारी फाइल
जैसी है अब माँ
✍️ योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
-------------------------
मेरी प्यारी मां ने मुझको, जीवन का उपहार दिया।
जाग जाग कर रात रात भर ,ममता और दुलार दिया ।।
कितने दुख सह कर भी उसने, हर मुश्किल में साथ दिया।
मेरे सपने अपने माने,कर सबको साकार दिया ।।
मेरे हँसने औ रोने पर , वो कितना बलिहार हुई।
मेरी इक किलकारी पर ही, अपना सब सुख वार दिया ।।
खून पिलाकर पाला पोसा , मुझको सदा दुलार दिया।
सीने पर पत्थर रख कर फिर ,एक नया संसार दिया ।।
मेरे जन्मों के तप का ही शुभ फल है तेरी 'ममता'।
मुझको है वरदान सरीखा, माँ तूने जो प्यार दिया।।
✍️ डाॅ ममता सिंह
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
-------------------------
मैं जब कुछ भी नहीं था
मुझे एक हैसियत उसने आता की
उसी की लोरियाँ सुन कर मैं सोया
उसी के मीठे नग़मों ने किया बेदार मुझ को,
उसी की गोद में पल कर
मैं अपने आप को समझा
ज़माने का चलन जाना
उसी ने रंग दुनिया के बताये
हैं कितने रूप इस के सब दिखाए
कई दुख ओढ़ कर उसने ख़ुशी मुझ पर निछावर की
दुआओं से उसी की मैं
घना एक पेड़ बन कर अब खड़ा हूँ
मेरी शाखें,
मेरी सब कोंपलें शादाब
ख़ुदा ने जिस क़दर इन'आम से मुझ को नवाज़ा
“मेरी माँ”
उन में सब से बेश क़ीमत
सब से दिलकश एक तोहफा है
बताऊं क्या
कि वह मेरे लिए क्या है
मेरी तारीक रातों का उजाला है,
मेरे मासूम बच्चों का खिलौना है,
वह बूढ़ी हो के भी मेरा सहारा है,
मेरी दुनिया का एक रौशन सितारा है
ख़ुदा रक्खे।
✍️ डा. मुजाहिद "फराज़"
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
------------------------
मां का साथ
सर्दी में लिहाफ ।
मां का प्यार
गर्मी में फुहार।
मां का सिंगार
पापा का व्यवहार।
मां का संसार
अपना परिवार।
मां की पहचान
बेटों के नाम।
मां की अंगूठियां
खिल खिलाती बेटियां।
कोई उदास
मां का उपवास ।
बच्चों की खुश हाली
मां की दीवाली।
मां का क्रोध
सारा घर खामोश।
मां मुस्कुराई
रिश्तों को तुरपाई।
मां की अवहेलना
ताउम्र दुख झेलना।
अच्छी आदत
मां की अदालत ।
पापा का आंगन
मां के कंगन।
मां का हाथ
नहीं डर की कोई बात।
मां की आंखे
सब पढ़ ले जब झांके ।
मां की प्रार्थना
घर आए कोई आंच न।
मां की आदत
प्रभु की इवादत ।
मां का जीवन
सर्वस्व समर्पण ,सर्वस्व समर्पण,सर्वस्व समर्पण।।
✍️ निवेदिता सक्सेना
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
------------------------
माँ का दामन खजाना दुआ का,
माँ के क़दमों में नेअमत है सारी,,
क़र्ज़ इस का चुका ना सकेंगे,
जिंदगी भी फ़ना करके सारी,,
बात कोई ज़रा आ पड़े तो,
ढाल बन जाए औलाद की वो,
जितनी नाज़ुक है ममतामयी है,
बन भी जाती है फ़ौलाद सी वो,,
फिर ज़माने की ताक़त ही क्या है,
माँ खुदाई पे पड़ जाए भारी,,
माँ का दामन खजाना..
साया होते हुए सर पे माँ का,
जो नहीं जानते माँ की खिदमत,
जानिए उनसे रूठी हुई है,
साथ रहते हुए उनकी किस्मत,
देखने में लगे ना भले ही,
बेसुकूँ उम्र रहते हैं सारी,,
माँ का दामन सजाना...
सब्र कितना दिया माँ को रब ने,
काश होती ख़बर आदमी को,
जिसकी क़ुव्वत के मद्देनजर ही,
माँ का रुतबा मिला है ज़मीं को,,
अब न ग़म की गुज़ारे ये घड़ियां,
जैसे पहले कभी हों गुजारी,,
माँ का दामन खजाना..
अपनी ममतामयी माँ के सदके,
आओ एक शाम अर्पित करें हम,
जिनसे अस्तित्व अपना जुड़ा है,
उनको यह शाम अर्पित करें हम,,
यूं तो क्या उनको हम दे सकेंगे,
जिनके आगे है दुनिया भिखारी,,
माँ का दामन खजाना दुआ का,
माँ के कदमों में नेअमत है सारी.,,
✍️ मनोज वर्मा 'मनु'
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर- 6397093523
----------------------
मां पर कुछ लिखना है
क़लम उठाया
सोचा क्या लिखना है
लिखने का आसान तरीक़ा
यह होता है
उपमा देकर समझा देना
ममता को क्या उपमा दूं मैं
कौन सी शय इस जज़्बे को
आकार करेगी
लोरी के शब्दों को
और गुनगुनाहट को
कौन से गीत से तोलूं
मां की गोद को दुनिया भर की
किस नर्मी और गर्माहट से
मैं ताबीर करूं
मां की थपकी जैसी
चोट न लगने वाली
मां की डांट के जैसी
दुख नहीं देने वाली
याद को कौन सी याद के साथ
मिलाऊं
मां की हंसी को
कौन से फूल के जैसा लिक्खूं
और आंसू को
दिल पिघलाने वाली
किस पीड़ा से याद करूं
मां के चेहरे और हाथों की
सिकुड़न जैसी
कौन सी सुंदर शय है
मां की तन्हाई सी
कौन सी तन्हाई है
कितना मुश्किल काम है
यह सब लिखना
छोड़ो
प्रेम गीत ही लिखता हूं मैं
✍️ ज़िया ज़मीर
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
-------------------------
मक्खन,पंख,रूई-सा कोमल,
है माँ का एहसास।
आक्सीजन वायु में जैसे,
रिश्तों में वह खास।
दो रोटी के चक्कर बाँटे,
सबको मजबूरी,
यों रहते सब आस पास में,
फिर भी है दूरी।
मीलों भी माँ रहे दूर पर,
हरदम दिल के पास।
मक्खन,पंख...
मुस्कानों का पाउडर सूखा
लेता सोख नमी,
करते दावा हम हँस हंँसकर,
कोई नहीं कमी,
माँ ढूँढ लाती पर कैसे
कोने छुपी भड़ास।
मक्खन,पंख......
बच्चों के दिल रहती चाहत,
हमजोली हो माँ।
हर कोई डांटे उसको कहकर,
तुम भोली हो माँ,
पर मुश्किल में वही बचाती
उसके नुस्खे खास।
मक्खन,पंख....
नन्हें पौधे उसने सींचे
दे के अपना रक्त।
कोमलांगी चट्टान बन गयी,
बीता मुश्किल वक्त।
देखा सख्त जड़ों के बल पर
पल्लव में उल्लास।
मक्खन, पंख......
✍️ हेमा तिवारी भट्ट
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
-------------------------
हर खुशी को वो मेरे घर का पता देती है
माँ ग़मों को मेरी राहों से हटा देती है
चूम लेती है वह जिस वक़्त मेरे माथे को
हर बुरे साये को मां धूल चटा देती है
माँ का आँचल हो तो बीमारियां सब दूर रहें
दूध के साथ वो बच्चों को शिफ़ा देती है
माँ की ममता को तरसते हैं फरिश्ते भी सदा
माँ विधाता को भी अवतार नया देती है
वो सिखा देती है "मासूम" सबक़ जीवन का
हाथ बच्चे पे कभी मां जो उठा देती है
✍️ मोनिका "मासूम"
उत्तर प्रदेश, भारत
------------------------ --
माँ तेरी वंदना में..
मैं शीश वंदन क्या करूँ,
जीवन अर्पण हैं तुम्हें
और अर्पण क्या करूँ,
मिला जो कुछ मुझे
वो है दान तुम्हारा...
खाली हथेली, मैं निःशब्द
तेरा गुणगान क्या करूँ
जीवन तेरा तुझको अर्पण
माँ
मैं और अर्पण क्या करूँ...
✍️ प्रशान्त मिश्र
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
------------------------
वो है मेरी धड़कन वही मेरी जाँ है ़़़
मेरी माँ का आँचल मेरा आसमां है ़़़
दुआओं में उसकी खुदा का निशाँ है
लगे वाणी उसकी के जैसे अजाँ है
चरण जिसके चूमे ख़ुदा की वो जन्नत,
नहीं और कोई वो मेरी माँ है।।
है वेदों की महिमा वही तो कुराँ है ़़़
कंही पर है सीता कंही फातिमा है ़़़
उसके ही कारण ये सारा जहाँ है ़़़
निर्मल है गंगा सी पावन धरा है ़़़
काँटों के वन में गुलाबों सी है जो,
नहीं और कोई वो मेरी माँ है।।
दिन में ना सोये वो रातों को जागे ़़़
खिलाने को भोजन मेरे पीछे भागे ़़़
कितनी है शीतल वो कितनी सरल है ़़
ममता का जिसके हृदय में तरल है ़़़
उस जैसा दूजा उदाहरण कहाँ है,
नहीं और कोई वो मेरी माँ है..।
✍️ शिवम वर्मा
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
------ ------------------
केवल शब्द नही है ‘माँ’ बल्कि बालक का पूरा संसार है।
जिससे उत्पन्न हुआ ये जग सारा ‘माँ’ ऐसा अलौकिक अवतार है।
जब -जब धरती पर आए प्रभु तो उन्होंने भी माँ के है पाँव पखारे
उसकी गोद मे खेले है, स्वयं जगदीश्वर जो स्वयं जगत के पालनहार है।
माँ न होती तो जीवन कहाँ से पाते, उसकी ममता की छाया बिना कैसे पल पाते।
ममता और त्याग की मूरत है माँ, धरती पर प्रथम गुरु की सूरत है माँ।
जो जीवन जिये वो ‘श्रेष्ठ’ हो कैसे, हमको बताती हमारी है माँ।
प्रेम में ही नही दण्ड में भी दिए ‘माँ’ के वरदान है।
अगर कैकयी न भेजती वन राम को, तो क्या कोई कहता भगवन राम को।
केवल जीवनदाता नही अपितु भाग्यविधाता भी है माँ ।
जो न पूजे माँ को उसे धिक्कार, उसका जीवन जीना ही बेकार है।
त्रिलोक की वैभव सम्पदाओं से भी बढ़कर ‘माँ’ का प्यार है।
✍️ आवरण अग्रवाल “श्रेष्ठ”
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
शनिवार, 7 मई 2022
मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का व्यंग्य ---आवारा कुत्तों की समस्या
आपने कभी आवारा कुत्तों को ध्यान से देखा है ? यह बिना मतलब के इधर-उधर घूमते रहते हैं । न मंजिल का पता ,न रास्तों का ज्ञान । जिधर भाग्य ले गया ,उधर चल दिए । न चलने का सलीका है ,न बैठने की सभ्यता है । इनके पास कोई जीवन दर्शन है, इसकी तो आशा ही नहीं की जा सकती । इसके विपरीत पालतू कुत्तों को देखिए ! घर से निकलते हैं तो नहा-धोकर बाल काढ़ कर कितने सलीके से सड़क पर उतरते हैं ! देखो तो दूर से पता चल जाता है कि कोई पालतू कुत्ता आ रहा है । ऐसा नहीं कि केवल गले में पट्टा और हाथ में पकड़ी हुई चेन ही इनकी पहचान है । वास्तव में अगर सभ्यता है ,तो केवल पालतू कुत्तों में ही है । वरना आवारा कुत्तों ने तो सभ्यता का नाम-निशान मिटा देने का ही मानो संकल्प ले रखा है ।
आवारा कुत्ते एक समस्या के रूप में सभी जगह हैं। क्या गाँव ,क्या शहर ,क्या गली-मोहल्ले और क्या सड़क ! जिधर से गुजर जाओ ,यह दिखाई पड़ जाते हैं । अच्छा-भला आदमी प्रसन्नचित्त होकर कहीं जा रहा है और देखते ही देखते उदासी और भय से ग्रस्त हो जाता है ।
आमतौर पर आवारा कुत्ते झुंड में मिलते हैं । इकट्ठे होकर चार-पाँच आवारा कुत्ते टहलना शुरू करते हैं । इन्हें कोई फिक्र नहीं होती । दुनिया में सबसे ज्यादा मस्ती इनको ही छाती है । चाहे जिधर को मुड़ गए। जिसको देखा ,मुँह फैला लिया। दाँत दिखाने लगे और वह बेचारा इस सोच में पड़ जाता है कि इन से अपनी जान कैसे बचाई जाए ?
कुछ आवारा कुत्ते जरूरत से ज्यादा आवारा होते हैं । यह जब देखो तब मनचले स्वभाव के साथ विचरण करते नजर आते हैं। इनको देखकर आदमी की हालत पतली हो जाती है । कई बार यह लोगों को दौड़ा देते हैं लेकिन आदमी की रफ्तार से आवारा कुत्ते की रफ्तार ज्यादा तेज होती है । यह छलांग लगाकर उसे पकड़ लेते हैं। कई बार काट खाते हैं ।
आवारा कुत्ते हमेशा कटखने नहीं होते । कुछ बेचारे इतने सीधे-साधे होते हैं कि बच्चे तक उन्हें कंकड़-पत्थर मार देते हैं और वह रोते हुए चले जाते हैं । कुछ आवारा कुत्तों को लोग प्रेमवश भोजन भी कराते हैं । कुछ लोग बिस्कुट खिलाते हैं। अपनी-अपनी श्रद्धा के अनुसार लोग आवारा कुत्तों से प्रेम करते हैं लेकिन किसी के अंदर यह हिम्मत नहीं आती है कि वह आवारा कुत्ते को गोद में उठाकर अपने घर पर ले जाकर पाल ले । वह पंद्रह मिनट के लिए आवारा कुत्ते से प्रेम करेंगे और बाकी पौने चौबीस घंटे आम जनता को परेशान करने के लिए आवारा छोड़ देंगे ।
यह तो मानना पड़ेगा कि पालतू कुत्ता शरीफ होता है हालांकि जिन घरों में कुत्ता पाला जाता है ,उसके गेट के भीतर कोई आदमी घुसना पसंद नहीं पड़ता क्योंकि मालिक से पहले कुत्ता अतिथि की आवभगत के लिए आकर खड़ा हो जाता है। यद्यपि मालिक का कहना यही रहता है कि हमारा कुत्ता काटेगा नहीं । लेकिन कुत्ता तो कुत्ता है । अगर काट ले तो कोई क्या कर सकता है ? मालिक को नहीं काटेगा , इसके मायने यह नहीं है कि वह किसी को नहीं काटेगा । जब पालतू कुत्ता किसी मेहमान को काट लेता है ,तब भी मालिकों के पास बड़ा सुंदर-सा जवाब रहता है कि हमारे कुत्ते के काटने से घबराने की कोई बात नहीं है । इससे कोई खतरा नहीं है ।
मगर समस्या यह है कि पालतू कुत्तों से तो बचा जा सकता है मगर आवारा कुत्तों से कैसे बचा जाए ? क्या आदमी सड़कों पर निकलना बंद कर दे या गलियों-मोहल्लों में न जाए ?
कई बार लोग दो-चार का झुंड बनाकर उन गलियों से जाते हैं जहां आवारा कुत्तों के पाए जाने की संभावना अधिक होती है । लेकिन यह भी समस्या का कोई समाधान नहीं है । कई बार आवारा कुत्ता जब दो-तीन लोगों को एक साथ देखता है तो और भी ज्यादा खुश हो जाता है तथा सोचता है कि आज थोक में काटने के लिए लोग मिल गए । वह इकट्ठा दो-तीन को काट लेता है ।
नगरपालिका वाले अगर चाहें तो कुत्तों को पकड़कर एक "कुत्ता जेल" नामक स्थान पर ले जाकर बंद कर सकते हैं । कुत्ता-जेल में कुत्तों को खाना मुफ्त दिया जाता रहेगा लेकिन फिर वह किसी मनुष्य को नहीं काट पाएंगे । इस तरह आवारा कुत्तों की समस्या पूरी तरह हल हो जाएगी । दुर्भाग्य से न कुत्ता-जेल बन पाती है और न आवारा कुत्तों को पकड़ने की योजना क्रियान्वित हो पाती है । आवारा कुत्ते गलियों में आवारागर्दी करते हुए टहलते रहते हैं और शरीफ आदमी अपने घरों में बंद रहने के लिए मजबूर हो जाता है ।
✍️ रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
मुरादाबाद के साहित्यकार माहेश्वर तिवारी की दो ग़ज़लें ------
(1)
हाथ अपने जला के बैठ गए
आग सारी दबा के बैठ गए
एक दीवार की तरह रिश्ते
शाम तक भरभरा के बैठ गए
आ गए हम जो खोलने को भरम
लोग पर्दा गिरा के बैठ गए
एक गूँगी दुकान पर हम-तुम
शब्द अपने सजा के बैठ गए
हम हवा बन के बाँटने को थे
लोग खुशबू चुरा के बैठ गए
(2)
खिलखिलाहट उगा गईं शामें
खुशबुओं में नहा गईं शामें
फड़फड़ाहट बनीं परिंदों की
धड़कनों में समा गईं शामें
भीड़ ,रफ्तार ,गहमागहमी को
चुप्पियों से थाह गईं शामें
एक लट्ठे के थान से फैले
दिन को आकार तहा गईं शामें
फूल, चिड़िया, हवा, उदासी से
एक चेहरा बना गईं शामें
✍️ माहेश्वर तिवारी
नवीन नगर, कांठ रोड
मोबाइल-9456689998
मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मक्खन मुरादाबादी का गीत ----दंगा कैसे भड़का....
वाक् युद्ध में लगा रहे सब
अपना-अपना तड़का।
पता झूठ को भी है सच का
दंगा कैसे भड़का।
हमसे कथा कहानी में यह
कहा करे थी दादी।
सच होता है शांत भाव का
और झूठ उन्मादी।।
गलियों में उत्पात मचाता
फिरता किसका लड़का ।
मुश्किल से तो विदा हुआ है
भेदभाव का लफड़ा।
पहुँच रही निर्धन घर रोटी
इसका सदमा तगड़ा।।
डाल-डाल तू पात-पात मैं
ध्यान किसे है जड़ का।
आते हैं,सद्भाव बचाने
चले छतों से पत्थर।
इनमें भी अवसर ही ढ़ूँढे
राजनीति की चद्दर।।
उल्लू सीधा हो सबकी ही
अपनी-अपनी फड़ का।
✍️ डॉ. मक्खन मुरादाबादी
झ-28, नवीन नगर
काँठ रोड, मुरादाबाद
बातचीत: 9319086769
शुक्रवार, 6 मई 2022
मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में आगरा निवासी) ए टी ज़ाकिर की नज़्म --मुजरिम
मेरे किरदार कॊ मगरूर कहने वाले,
मेरे शेरों की ज़ुबां तल्ख़ बताने वाले।
आ, मेरे दिल की ज़रा सैर करा दूं तुझको,
अपने ज़ख्मों के बागी़चे से मिला दूं तुझको।
मेरे माज़ी पे दगे दाग़ दर्द करते हैं,
दिल के नासूर हर इक सांस खूं उगलते हैं।
इसलिए शेर मिरे तल्ख़ ज़ुबां होते हैं,
उनके हर्फों में मिरे दर्द बयां होते हैं।
मैंने बचपन से ज़माने की है नफ़रत को जिया,
सिर्फ तौहीन सही और हिक़ारत को पिया।
इसलिए जब भी दिल के वलवले उबलते हैं,
कलम की नोंक से शोले-ग़िले निकलते हैं।
जिगर की सारी तल्ख़ी शेरों में उतरती है,
दिल की हर टीस, मेरी नज़्म में उभरती है।
उरियां जज़बातों को मैं पैरहन पहनाता नहीं,
साफ़ कहता हूं सच को मैं झुठलाता नहीं।
इसलिए बात मिरी तल़्ख नज़र आती है,
मिरे क़िरदार पे उंगली उठाई जाती है।
मिरा हर तंज़ उन्हें आईना दिखाता है,
जो हैं बदकार मगर सभ्य बने रहते हैं।
मेरे जज़वात के तेज़ाब से झुलसे चेहरे,
इसलिए जल के मुझे तल्ख़ ज़ुबां कहते हैं।
✍️ ए टी ज़ाकिर
आगरा
उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद के साहित्यकार मंसूर उस्मानी की ग़ज़ल ...वो भी नयी हवाओं के जंगल में खो गया, बच्चा जो होनहार था एक खानदान में
सच्चाई क्या मिलेगी हमारे बयान में
लिखते हैं हम कसीदे सितमगर की शान में
इन्साफ मेहरबानी मोहब्बत वफ़ा ख़ुलूस
मिल जाएं तो बताना मिले किस दूकान में
मजलिस से उठ के चल दिए मुंसिफ लिबास लोग
क़ातिल का ज़िक्र आया जहाँ दास्तान में
वो भी नयी हवाओं के जंगल में खो गया
बच्चा जो होनहार था एक खानदान में
मंसूर हर क़दम पे बुराई के बावजूद
अच्छाइयाँ भी खूब हैं हिन्दोस्तान में।
✍️ मंसूर उस्मानी
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
गुरुवार, 5 मई 2022
मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की लघुकथा --- नाक
बहुत शानदार व्यवस्था थी।पंडाल की भव्यता, फूलों की सजावट,रंग बिरंगी लाइट,दिल को छूने वाला गीत संगीत,सब एक से बढ़कर एक। खाने में भी, हर क्षेत्र के व्यंजन। कस्बे में इतना भव्य आयोजन,पहले कभी, शायद ही हुआ हो।
अवसर था,प्राइमरी में अध्यापक,राजवीर की बेटी की शादी का। अपनी हैसियत से कहीं ज्यादा खर्च करके,उसने ये व्यवस्था की थी।
"बधाई हो सर, आपने तो पूरे कस्बे की नाक ऊंची कर दी।"रामसिंह ने हंसते हुए कहा।
"सब ईश्वर की कृपा है।"राजवीर ने अपने चेहरे पर बनावटी मुस्कान बिखेरने की कोशिश की। उसके मन में यही उधेड़ बुन चल रही थी कि झूठी शान के चक्कर में,उसने जो उधार लिया उसे कैसे लौटा पायेंगा। कहीं ऐसा ना हो उसकी खुद की नाक कट जाए।
✍️ डॉ.पुनीत कुमार
T 2 / 505 आकाश रेजीडेंसी
मुरादाबाद 244001
M 9837189600
सोमवार, 2 मई 2022
मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में मुम्बई निवासी ) प्रदीप गुप्ता की कविता ---अब तो शहरों में समा जाते हैं
बड़े शहरों में समा गए हैं
न जाने कितने अधूरे सपने
हमारे महानगर लील चुके हैं
गाँव और क़स्बे कितने
गाँव क़स्बों के ज़्यादातर माँ बाप
बच्चों में बड़े बड़े सपने जगाते हैं
अपनी पेंशन , बचत दांव पे रख के
उन्हें उच्च तकनीकी शिक्षा दिलाते हैं
उनके कौशल का इस्तेमाल
अधिकांशतः गाँव क़स्बे में नहीं होता
इसलिए वहाँ का प्रतिभाशाली युवा
अब अपने पुश्तेनी घर में नहीं रहता
उसका लक्ष्य बड़ी नौकरी पाना महानगरों में
वहीं सच हो सकते हैं माँ बाप के सपने
इस तरह महानगर लील रहे हैं
गाँव और क़स्बे कितने
तभी तो गाँव क़स्बों के
मध्यम वर्गीय घरों में या तो अब ताले है
या फिर उन घरों में बच गए
इक्का दुक्का बड़ी उम्र के रखवाले हैं
यही नहीं वहाँ की पूरी अर्थ-व्यवस्था
धीरे धीरे सिमट रही है
दुकानों , व्यवसाय और खेतों में
कार्यरत लोगों की संख्या घट रही है .
यहाँ का दुःख दर्द समझने को
बचे हैं बहुत कम अपने
हमारे महानगर लील चुके हैं
गाँव और क़स्बे कितने
शहरों में आकर जो युवा बस गए हैं
उनका अलग बुरा हाल है
वे अपनी जड़ों से कट चुके हैं
नए परिवेश में जमना बड़ा सवाल है
उनके दिन ऑफ़िस में और सुबह शाम
भीड़ में सफ़र करते हुए कट जाते हैं
शहर की संस्कृति से जुड़ाव चुनौती है
यहाँ आ के सभी रिश्ते सिमट जाते हैं
पैसे से बेशक सम्पन्न हो गए हैं
मगर पीछे छूट गए हैं बहुत से रिश्ते अपने
हमारे महानगर लील चुके हैं
गाँव और क़स्बे कितने
✍️ प्रदीप गुप्ता, मुम्बई
वाट्स एप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से माह के प्रत्येक रविवार को वाट्सएप कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का आयोजन किया जाता है । रविवार एक मई 2022 को आयोजित 302 वें वाट्स एप कविसम्मेलन एवं मुशायरे में शामिल साहित्यकारों अनुराग रोहिला,डॉ पुनीत कुमार, राम किशोर वर्मा, रवि प्रकाश, दीपक गोस्वामी चिराग, त्यागी अशोका कृष्णम्, श्रीकृष्ण शुक्ल,राजीव प्रखर, अशोक विद्रोही,इंदु रानी, दुष्यन्त कुमार और रेखा रानी की रचनाएं उन्हीं की हस्तलिपि में .....
मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार शशि त्यागी की रचना ---- धरा पे सब कुछ धरा रहेगा हंस तेरा उड़ जाएगा
बस इतना तू जान ले प्राणी
संग न कुछ भी जाएगा
धरा पे सब कुछ धरा रहेगा
हंस तेरा उड़ जाएगा ।
नाव पुरानी जरजर काया
कब तक तू बह पाएगा
बाहर भीतर बहे है लावा
कब तक तू सह पाएगा
इस दुनिया के छोड़ के धंधे
राम नाम गुन गाए जा
धरा पे सब कुछ धरा रहेगा
हंस तेरा उड़ जाएगा
उगता सूरज बहती नदिया
उपवन रोज सजाएगा
मगन फकीर श्वास हठीला
निशिदिन झांझ बजाएगा
मोह माया को छोड़ दे बंदे
राम नाम गुन गाए जा
धरा पे सब कुछ धरा रहेगा
हंस तेरा उड़ जाएगा
✍️ शशि त्यागी
अमरोहा