शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का एकांकी --नेत्रदान महादान


काल
: आधुनिक काल 

स्थान : भारत का कोई भी साधारण-सा शहर 

पात्र 

वृद्धा : आयु लगभग 70 वर्ष

पड़ोसन :आयु लगभग 70 वर्ष 

दो युवक :आयु लगभग 25 वर्ष 

राम अवतार :आयु लगभग 25 वर्ष

कुछ अन्य पात्र : आयु कुछ भी हो सकती है


              【 दृश्य एक 】


दो नवयुवक एक मोहल्ले में जाकर किसी घर की कुंडी खटखटाते हैं । अंदर से महिला की आवाज आती है : कौन है ?


एक युवक : अम्मा जी ! हम आई बैंक से आए हैं । दरवाजा खोलिए ।

(एक वृद्धा घर का दरवाजा खोलती है।) वृद्धा : भैया ! कहाँ से आए हो ? क्या काम है?

दूसरा युवक : हम आई बैंक अर्थात नेत्र संग्रहालय से आए हैं । आपके शहर के आँखों के अस्पताल में अब आई बैंक खुल गया है । हम आपको नेत्रदान के लिए प्रोत्साहित करने आए हैं ।

वृद्धा : (चौंककर पीछे हटते हुए) हाय राम ! क्या तुम मेरी आँखें निकालने आए हो ? क्या तुम लोग मुझे अंधा करोगे ? अरे कोई है ? बचाओ ! बचाओ !

एक युवक : (वृद्धा को निकट जाकर समझाने का प्रयास करता हुआ ) मैया ! आप गलत समझ रही हो । हम जिंदा लोगों की आँखें नहीं निकालते हैं । हम तो यह कहना चाहते हैं कि आप मरणोपरांत अपनी आँखें दान करने का संकल्प-पत्र भरकर हमें दे दें । (अपने बैग में से एक कागज निकालता है ) देखिए अम्मा ! यह रहा संकल्प-पत्र ! आप नेत्रदान की घोषणा कर दीजिए ।

वृद्धा : मुझ बुढ़िया को मूर्ख बनाने आए हो। मेरी आँखें लेकर कोई क्या करेगा ? अब मुझे ही कौन-सा अच्छा दिखता है ?

(तभी वृद्धा की पड़ोसन जो कि स्वयं भी वृद्धा है ,आ जाती है )

वृद्धा  अरी पड़ोसन ! अच्छा हुआ ,तू आ गई। देख तो ,यह लोग मेरी आँखें निकालने की तैयारी कर रहे हैं ।

पड़ोसन : हाय रे हाय बहना ! ऐसा अत्याचार !

वृद्धा : हाँ ! यह कहते हैं कि नेत्रदान कर दो। 

पड़ोसन : (हाथ नचा कर ) बिल्कुल नहीं ! तुम अपनी आँखें कभी दान मत करना। मुझे सब मालूम है। यह लिखा-पढ़ी करके तुम्हारे मरने के बाद तुम्हारी आँखें निकाल कर ले जाएँगे और तुम्हारा चेहरा राक्षसों की तरह दिखने लगेगा। तुम बिल्कुल भूतनी नजर आओगी ।

एक युवक : नहीं अम्माजी ! यह गलत धारणा है । मरने के बाद आँखें निकालने के बाद भी चेहरे में कोई खराबी नहीं आती है। यह पता भी नहीं चलता कि किसी की आँखें निकाली गई थीं।

वृद्धा : क्या शरीर की चीर-फाड़ से कष्ट नहीं होगा ? आत्मा को अशांति नहीं होगी ?

दूसरा युवक : बिल्कुल नहीं । जो व्यक्ति मर गया है ,उसे कष्ट कैसा ? कष्ट तो जीवित रहने पर ही होता है । जहाँ तक मृतक की आत्मा की शांति का सवाल है ,तो मृतक को तो परम प्रसन्न होना चाहिए कि उसकी आँखें किसी के काम आ रही हैं ।

पड़ोसन : बेटा रे ! मुझे तो डायबिटीज रहती है । मेरी आँखें किसी के क्या काम आएँगी ?

पहला युवक : डायबिटीज का रोग होने के कारण आँखें बेकार नहीं हो जातीं। चश्मा लगाने वाला व्यक्ति भी अपनी आँखें दान कर सकता है । 

पड़ोसन : क्या बूढ़े-बुढ़िया भी ?

एक युवक : हाँ ! किसी भी उम्र का व्यक्ति अपनी आँखें दान कर सकता है ।

पड़ोसन : क्या आँखें आदमी के मरने के बाद सड़ती नहीं हैं ?

दूसरा युवक : अम्माजी ! मृत्यु के छह घंटे के भीतर अगर शरीर से आँखें निकाल ली जाएँ तो उन्हें नेत्रहीन व्यक्ति के लिए उपयोग में लाया जा सकता है ।

वृद्धा : (गुस्से में चीख कर ) अरे मरे नासपीटो ! तुम्हें इतनी देर से मरने की बातें ही सूझ रही हैं । क्या मैं मर गई हूँ ? भाग जाओ मेरे घर से । निकलो ! 

(वृद्धा जमीन पर पड़ी झाड़ू उठा कर दोनों युवकों को मारने के लिए दौड़ती है । दोनों युवक तेजी से घर से बाहर निकल जाते हैं।)


                     【दृश्य दो】


(रामअवतार जिसकी आयु लगभग 25 वर्ष है ,उसको कुछ लोग हाथों से सहारा देकर वृद्धा के घर में लाते हैं । रामअवतार की आँखों पर पट्टी बँधी है।)

वृद्धा : (चौंक कर) मेरे बेटे ! मेरे राम अवतार ! तुझे क्या हुआ ? तेरी आँखों पर यह चोट कैसी है ?

एक आगंतुक : अम्मा ! यह कार्यालय की सीढ़ियों से गिर गए थे । आँखों में चोट आई है । अब यह ...

वृद्धा : अब यह ...तुम क्या कहना चाहते हो ?

एक आगंतुक : अब यह देख नहीं सकते। इनकी आँखों की रोशनी चली गई है।

वृद्धा : (रोकर)  हाय ! मेरा बेटा अंधा हो गया । हाय राम ! इसकी आँखें चली गई ं। 

राम अवतार : (टटोलते हुए वृद्धा के निकट पहुँचता है तथा उसके सीने से लग जाता है) माँ ! बड़ी भयंकर चोट थी । किस्मत से ही मैं बच पाया ।

पड़ोसन : क्या बेटा राम अवतार ! तुम्हारी आँखें अब कभी ठीक नहीं होंगी ? किसी डॉक्टर को दिखाया ?

राम अवतार : मौसी ! मेरी आँखें ठीक हो सकती हैं। मैंने शहर के आँखों के अस्पताल के डॉक्टर को दिखाया था । उनका कहना है कि कोई अपनी आँखें दान कर दे ,तो मुझे आँखों की रोशनी मिल सकती है ।

वृद्धा और पड़ोसन : (एक साथ चीख कर कहती हैं ) नेत्रदान ! यह तुम क्या कह रहे हो ?

राम अवतार : हाँ माँ !अब तो हमारे शहर में भी आई बैंक खुल गया है । काश लोगों में इतनी चेतना आ जाए कि सब लोग नेत्रदान के संकल्प-पत्र को भरकर अपनी आँखें खुशी से दान करने लगें, तब मुझ जैसे अंधे को शायद आँखें मिल सकें।

पड़ोसन :( वृद्धा से कहती है ) बहना ! यह हमने क्या कर डाला ? 

वृद्धा : (पड़ोसन से)  हमने अपने पैरों पर आप ही कुल्हाड़ी मार ली ।

राम अवतार : मैं कुछ समझा नहीं ..

वृद्धा : मगर मैं सब कुछ समझ गई हूँ। मैं नेत्रदान जरूर करूँगी ,ताकि किसी अंधे को आँखों की रोशनी मिल सके ।

पड़ोसन : (कान पकड़कर)  मैं भी अपनी गलती की माफी चाहती हूँ। मैं भी नेत्रदान करूँगी।

वृद्धा तथा पड़ोसन : ( मिलकर कहती हैं) चलो ! हम अभी आँखों के अस्पताल के आई बैंक में जाकर नेत्रदान का संकल्प-पत्र भरते हैं । सुन लो मोहल्ले वालों ! सुन लो शहर वालों ! सुन लो हमारे घर वालों ! हमने आँखें दान करने का फैसला किया है । जब हम मर जाएँ तो आई बैंक वालों को बुलाकर हमारी आँखें दान जरूर करना । इसी से हमारी आत्मा को शांति मिलेगी ।

(पर्दा गिर जाता है।) 

✍️ रवि प्रकाश

बाजार सर्राफा

 रामपुर, उत्तर प्रदेश, भारत

 मोबाइल 99976 15451

गुरुवार, 7 अप्रैल 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल के गांव कुरकावली निवासी साहित्यकार स्मृति शेष रामावतार त्यागी का परिचय और 45 गीत ।ये गीत संकलित हैं क्षेमचंद सुमन द्वारा संपादित कृति 'रामावतार त्यागी परिचय एवं प्रतिनिधि कविताएं ' में। इस कृति का प्रकाशन वर्ष 1961 में राजपाल एंड संस दिल्ली ने किया था।


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डॉ मनोज रस्तोगी

8,जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

बुधवार, 6 अप्रैल 2022

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की कहानी ---छोटी सी आशा.......


"सुनो ! कल कमल को छुट्टी कह दूँ क्या"

"नहीं,बुला लो।"

"अरे छोड़ो न, एक दिन रेस्ट कर लेगा।"

"उसने कौनसा पहाड़ खोदना है?आराम ही तो है,बैठ कर गाड़ी ही तो चलानी है।"

"फिर भी, मुझे ठीक नहीं लग रहा कल बुलाना।कल मुझे कॉलेज जाना नहीं है और हम सब लोग मूवी देखने जा रहै हैं।वहाँ के लिए तो आप ही ड्राइव कर लोगे।"

"जब मैं कह रहा हूँ तो कह रहा हूँ।बस तू कह दे उसे।भले ही कल 2 बजे बुला ले क्योंकि तीन बजे का शो है" 

"ठीक है..." रमा ने बेमन से कहा।उसे अच्छा नहीं लग रहा था कि वह नये साल के दिन खुद तो परिवार के साथ एंजॉय करे और अपने ड्राइवर को बेवजह थोड़ी दूरी की ड्राइव करने के लिए भी बुला ले।उसने सोचा था कि वह कमल को कल की छुट्टी देकर उसे नये साल का जश्न मनाने को कहेगी तो उस गरीब के चेहरे पर भी एक छोटी सी मुस्कान आ जायेगी।

     'हम बड़ी चीजें न कर सकें पर अपने स्तर की छोटी छोटी खुशियां तो बाँट ही सकते हैं' रमा ने मन में बुदबदाया।उसे राघव पर झुंझलाहट आ रही थी,पर अपने पति की बात भी वह नहीं टाल सकती थी।

     कमल गैराज में गाड़ी पार्क कर चुका था और अंदर लॉबी में की-स्टेंड पर गाड़ी की चाभी टाँगने आया था।उसने रोज की तरह रमा से पूछा,

     "मैंने गाड़ी पार्क कर दी है,मैम।अब मैं जाऊँ....?और वो ...कल की तो छुट्टी रहेगी न मैम।आप कह रहे थे न कि कल कॉलेज नहीं जाना है।"

     "हाँ,कल कॉलेज तो नहीं जाना है पर सर बुला रहे हैं कल किसी काम से।तुम कल दो बजे आ जाना।" रमा ने सेन्टर टेबल पर फैली पड़ी मैग्जीन्स समेटने का उपक्रम करते हुए कहा।वह असहज महसूस कर रही थी क्योंकि उसने जो सोचा था वह हो नहीं पाया था।उसने चोर निगाह से कमल की ओर देखा।

     "ठीक है,मैम" कहकर कमल रोज की तरह गम्भीरता ओढ़े गर्दन झुका कर मेन गेट के पास खड़ी अपनी टीवीएस तरफ बढ़ गया।रमा के सिर पर उस उदास चेहरे का बोझ चढ़ गया था,वह जाकर अपने कमरे में लेट गयी।

        अगले दिन ठीक दो बजे कमल अपनी ड्यूटी पर था।

        "नमस्ते मैम,नमस्ते सर।आपको नये साल की बहुत बहुत मुबारकबाद।"

        "नमस्ते कमल,तुमको भी नया साल मुबारक।" राघव ने गर्मजोशी से कहा।

        रमा ने फीकी मुस्कान फैंकी।उसे राघव का कमल को छुट्टी के दिन भी काम पर बुलाना गलत लग रहा था।हालांकि महीने में चार-पाँच छुट्टियाँ कमल को आराम से मिल जाती थी क्योंकि सन्डे को तो रमा कॉलेज नहीं जाती थी।पर आज नया साल था और यही बात उसे खटक रही थी।

        रमा के दो बेटे थे जो युवा कमल से कुछ ही वर्ष छोटे किशोर वय के थे।वे दोनों भी तैयार होकर बाहर आ गये थे।कमल ने गैराज से गाड़ी बाहर निकाली और उसे साफ किया।राघव ड्राइवर के साथ वाली सीट पर बैठा और रमा दोनों बेटों सहित पीछे की सीट पर।

        गाड़ी शहर के सबसे शानदार मॉल कम मल्टीप्लेक्स के मेन गेट पर पहुँच चुकी थी।

        कार पार्किंग में ले जाने से पहले कमल ने मालिक के परिवार को कार से उतारते हुए मालिक से पूछा," सर,कितनी देर की मूवी है?मैं सोच रहा था कार पार्क कर के मैं भी थोड़ी देर पास में ही अपने रिश्तेदार के घर हो आता।जब मूवी ख़त्म हो आप मुझे कॉल कर देना,मैं तुरन्त आ जाऊँगा।"

        "नहीं,तुम कहीं नहीं जाओगे।कार पार्क कर के सीधे यहाँ आओ।"

        कमल चुपचाप कार पार्किंग की ओर बढ़ गया।अब तो रमा को बहुत ही गुस्सा आया पर सार्वजनिक स्थान पर और वह भी जवान बेटों के सामने वह अपने पति से क्या कहे।उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर राघव ऐसा क्यों कर रहे हैं?राघव ने मुस्कुराकर रमा की ओर देखा लेकिन उसने गुस्से से मुंह फेर लिया।

        थोड़ी देर में कमल कार पार्क कर के लौटा तो राघव ने उसके कन्धे पर हाथ रखा और पूछा, "मूवी वगैरह देख लेते हो या नहीं।आज तुम्हें हमारे साथ मूवी देखना है,ठीक है।" कमल का चेहरा कमल की तरह खिल गया।रमा के दोनों बेटे भी पापा को देखकर मुस्कुराने लगे और रमा.... वह तो हक्की बक्की रह गयी थी।राघव ने प्यार से जब रमा की तरफ देखा तो वह मुस्कुरा उठी।रमा के बेटों ने कमल का हाथ पकड़ कर उसे अपने साथ आगे बढ़ाया तो राघव ने रमा का हाथ पकड़ा।पाँच टिकट ऑनलाइन बुक कराये गये थे,थ्री डी मूवी थी जो रेटिंग्स में धूम मचाये हुए थी।ढाई घण्टे की मूवी देखकर हंसते खिलखिलाते सब हॉल से बाहर निकले।

        राघव पिज्जा कॉर्नर की तरफ बढ़ा और सबके लिए पिज्जा आर्डर किया।कमल के चेहरे पर संकोच मिश्रित प्रसन्नता के भाव थे।पाँच जगह पिज्जा सर्व  हुए।सबने खाना शुरू किया।लेकिन ये क्या कमल की आँखों में आंसू थे।राघव ने मज़ाक करते हुए पूछा,"क्या बात मूवी अच्छी नहीं लगी, कमल।"

"नहीं,सर नहीं,ऐसी बात नहीं है।बहुत अच्छी मूवी थी।पर.... मैंने अपने जीवन में आज तक कभी मल्टीप्लेक्स में मूवी नहीं देखी और थ्री डी मूवी भी पहली बार देखी।एक बात बताऊं ,सर।दो साल पहले मैंने इस पिज्जा कॉर्नर पर काम किया है।लेकिन मैंने कभी पिज्जा नहीं खाया।मैं बता नहीं सकता कि मैं आज कितना खुश हूँ।आप सचमुच बहुत बड़े दिल वाले हैं।वरना एक ड्राइवर को अपने साथ कौन बैठाता है,एक ड्राइवर के लिए इतना कौन सोचता है?" राघव ने कमल को गले से लगा लिया।

       रमा खुद पर शर्मिन्दा थी कि वह अपने ही पति की भलमनसाहत को आखिर क्यों नहीं पहचान पायी।पर उसे हल्का गुस्सा भी आया कि आखिर राघव ने उसे ये सब पहले क्यों नहीं बताया।? पर अगले ही पल उसने मन ही मन ढेर सारा प्यार राघव पर उड़ेला।दोनों बेटे बहुत खुश थे कि वे अपने व्यस्ततम माता पिता के साथ नये साल पर मूवी देखने आए।लौटते समय गाड़ी में बैठी सवारियों के भाव बिल्कुल बदले हुए थे।इस नये साल पर सबकी छोटी छोटी आशाएं जो पूरी हुई थीं।

 ✍️ हेमा तिवारी भट्ट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद सम्भल)निवासी साहित्यकार स्मृतिशेष रामावतार त्यागी की काव्य कृति - आठवां स्वर । इसका प्रकाशन 1958 में फ्रैंक ब्रदर्स एन्ड कम्पनी दिल्ली द्वारा किया गया था । इस कृति में उनके 58 गीत हैं ।भूमिका लिखी है प्रख्यात साहित्यकार रामधारी सिंह दिनकर ने ।



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मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद सम्भल)निवासी साहित्यकार स्मृतिशेष रामावतार त्यागी की काव्य कृति - गीत बोलते हैं । इसका प्रकाशन 1986 में आत्माराम एन्ड सन ,कश्मीरी गेट, दिल्ली द्वारा किया गया था ।


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मंगलवार, 5 अप्रैल 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल निवासी साहित्यकार राजीव कुमार भृगु का गीत---मेरी पीड़ा तुम क्या जानो


मेरी पीड़ा तुम क्या जानो,

कितने दर-दर में भटकी हूँ।

छोड़ा है जबसे दर तेरा,

बीच भँवर में मैं अटकी हूँ।


पाया नहीं किनारा मैंने,

जीवन में इतनी भटकन है।

पा न सकी फिर द्वार तुम्हारा,

विषयों की इतनी अटकन है।


देता कौन सहारा मुझको,

जग की आंखों में खटकी हूँ।


जब से मुझ पर यौवन आया,

जग के वैरी मुझे खींचते।

फैला जाल वासनाओं का,

मोह पाश में मुझे भींचते ।


जब से छूटा साथ तुम्हारा,

रोज़ अधर में मैं लटकी हूँ ।


तेरे घर से आकर मैंने,

ठौर नहीं जग में पाया है ।

नित्य बिकी हूँ बाजारों में,

नहीं किसी ने अपनाया है ।


स्वारथ के अंधों ने जग के,

बाँध डोर में मैं झटकी हूँ ।


अब तो एक चाह है मन की,

तेरे दर को फिर पा जाऊँ ।

इस भटकन को छोड़ जगत की,

तेरे चरणों में आ जाऊँ ।


क्या तुम मुझको अपना लोगे,

यही सोच कर मैं अटकी हूँ ।


✍️ राजीव कुमार भृगु

सम्भल, उ.प्र.,भारत

रविवार, 3 अप्रैल 2022

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम के तत्वावधान में रविवार 3 अप्रैल 2022 को आयोजित मासिक काव्य-गोष्ठी

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हिंदी साहित्य संगम'  की मासिक काव्य-गोष्ठी का आयोजन रविवार 3 अप्रैल 2022 को मिलन विहार स्थित मिलन धर्मशाला में किया गया। 

कवयित्री इंदु रानी द्वारा प्रस्तुत माॅं शारदे की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए रामदत्त द्विवेदी ने कहा - 

किस्मत से अपनी ऐसे हम मजबूर हो गये। 

अब खेत में अपने ही हम मजदूर हो गये।।

 मुख्य अतिथि ओंकार सिंह ओंकार ने अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति इस प्रकार की -

अरुण को सवेरे नमन कर रहा हूँ,

मैं उर्जित स्वयं अपना तन कर रहा हूँ।।

 सभी को खुशी का उजाला जो बांटे, 

उसे जमाने का जतन कर रहा हूँ।।

 विशिष्ट अतिथि के रूप में  विकास मुरादाबादी ने कहा -

जिससे हो वैमनस्य वो जज्बात छोड़ दो। 

बहुत हुआ अब नफरतों की बात छोड़ दो।। 

डॉ. मनोज रस्तोगी की अभिव्यक्ति इस प्रकार रही - 

राह में कभी सीधा चलना 

हमें नहीं भाता है।

हमेशा उल्टा चलना ही 

सुहाता है।

नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम ने वर्तमान सामाजिक परिस्थिति का चित्र कुछ इस प्रकार खींचा - 

जनता-हित के नाम पर, दिखावटी परमार्थ।

 राजनीति गढ़ती रही, कैसे-कैसे स्वार्थ ।। 

इधर भूख से चल रहा, बाहर-भीतर द्वंद्व। 

उधर नये रचती रही, राजनीति छल-छंद ।।

 कार्यक्रम का संचालन करते हुए राजीव प्रखर ने कहा --

बहुत व्यस्त है जन-सेवा में, हर फरमाबरदार। 

बाहर बोझा ढोती मुनिया, भीतर है त्योहार। 

कवयित्री मीनाक्षी ठाकुर ने अपनी अभिव्यक्ति करते हुए कहा - 

कल सपने में आई अम्मा, पूछ रही थी हाल। 

जबसे  दुनिया गई छोड़कर,

बदले घर के ढंग। 

दीवारों को भी भाया अब, 

बँटवारे का रंग। 

सांझी छत की धूप बँट गयी, बैठक पड़ी निढाल।  

इंदु रानी की अभिव्यक्ति इस प्रकार रही - 

मिले न बगुला भक्ति से, व्यर्थ करे अभिमान। 

जे मन चंगा राखिए, ह्रदय प्रभु विद्यमान।।

जितेंद्र जौली ने हास्य-व्यंग की फुहार छोड़ी -

 हम पर सारी रात ये, करते अत्याचार। 

लगता है अब चल रही, मच्छर की सरकार।। 

राशिद मुरादाबादी ने अपने भावों को अपने अशआर में  ढाला - 

नये झगड़े नई रंजिशें ईजाद करते हैं, 

अब कहाँ इन्सां मुहब्बत की बात करते हैं। 

 रामदत्त द्विवेदी द्वारा आभार-अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम विश्राम पर पहुॅंचा।












::::::प्रस्तुति:::::

जितेंद्र जौली 

महासचिव

हिन्दी साहित्य संगम

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत


शनिवार, 2 अप्रैल 2022

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की रचना --चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा की, सबको है शत बार बधाई


 नव संवत की बेला आई 

वसुधा ने पाई  तरुणाई


वीथि वीथि मंन्त्रों का गुंजन

मन मंदिर में माँ का वंदन 

प्रतिपल प्रकृति पुलकित मुखरित

महक उठा खुशियों का चंदन ।

पुण्य धरा पर आर्यवर्त की 

गूँज उठी पावन शहनाई ।

नव संवत की बेला आई ।


गेहूं और सरसों की फसलें 

घर आँगन में पटी हुईं है ।

खेत और खलिहान महकते 

जन की भीड़ें डटी हुई है ।

आम्रमंजरी झुकी धरा पर 

आलिंगन करने को आई ।

नव संवत की बेला आई ।.

मंद सुगंधित अनिल बही है 

भौरों का दल आया है ।

कुसुमाकर ने निज प्रभाव से 

मन सबका बहकाया है । 

चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा की 

सबको है शत बार बधाई ।

नव संवत की बेला आई ।

✍️ डॉक्टर प्रीति हुंकार 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत


मुरादाबाद मंडल के धामपुर (जनपद बिजनौर) निवासी साहित्यकार डॉ अनिल कुमार शर्मा की रचना ---नव संवत की बेला आई


आगत का स्वागत अभिनंदन

और विगत की करें विदाई।

नव संवत की बेला आई ।

नवल विचार - नवल कल्पना,

 नवल रंगोली - नवल अल्पना, 

नवल योजना - नव आशाएं

 नवल वर्ष मिल सभी मनाएं 

चेहरों पर आई अरुणाई ।

नव संवत की बेला आई ।।

नव उत्साह - नवल उमंगें

नवल नवल - नवीन तरंगे

नव उत्साह - नवल आयोजन

नवल मंच - नवल संयोजन

 झूम उठे जिसमें तरुणाई।

 नव संवत की बेला आई।

 नव आगत का स्वागत प्यारे

 नव आशाएं भविष्य संवारे 

कोई कार्य रहे न असंभव 

मंगलकारी हो यह वर्ष नव 

पल-पल हो इसका सुखदाई।

 नव संवत की बेला आई।।

✍️डॉ. अनिल शर्मा'अनिल'

धामपुर, बिजनौर

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ रीता सिंह की रचना ------ चैत्र माह का है उपहार


 

मुरादाबाद की साहित्यकार कंचन खन्ना की रचना ---नववर्ष अभिनन्दन हो ...


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल निवासी साहित्यकार सुभाष चन्द्र शर्मा की रचना ----सम्वत् अब नयी आयी, विगत का हो गया अन्त


सम्वत् अब नयी आयी, विगत का हो गया अन्त।

चैत्र सुदी पड़वा को, खुश होते दिक् दिगन्त।।

एक जनवरी को,अंग्रेजी वर्ष आता।

जब जोरदार जाड़ा, सभी को सताता।।

ठिठुरन होती इतनी, बजने लगते दन्त।

चैत्र सुदी पड़वा को,खुश होते दिक् दिगन्त।।

गर्मी बहुत तेज नहीं, नहीं तेज सर्दी।

सभी ने उठाकर रख दी, जाड़ों की वर्दी।।

अब ना ज्यादा सी गर्मी,और है जाड़े का अन्त।

चैत्र सुदी पड़वा को,खुश होते दिक् दिगंत।।

इसी दिन ब्रह्मा जी ने, डाली निज दृष्टि।

देख कर सूना-सूना,रच डाली सृष्टि।।

जीव-जंतु सभी बनाए, गृहस्थी एवं संत।

चैत्र सुदी पड़वा को,खुश होते दिक् दिगन्त।।

राम का राजतिलक,हुआ इसी रोज था।

जनहित में जोश,और वाणी में ओज था।।

न्याय दिया प्रजा को,अपने जीवन पर्यन्त।

चैत्र सुदी पड़वा को,खुश होते दिक् दिगन्त।।

नवरात्रि की पूजा,इसी दिन से होती।

तप व्रत से दुर्गा, मैया खुश होती।।

मंदिर सजा धजा कर,पूजा करें महन्त।

चैत्र सुदी पड़वा को,खुश होते दिक् दिगंत।।

कोई भी जन अन्न बिन, न रह सकता।

गेहूं चना सरसों मटर,इसी समय पकता।।

लहलहाती लखकर खेती,कृषक को खुशी अनंत।

चैत्र सुदी पड़वा को,खुश होते दिक् दिगन्त।।


✍️ सुभाष चन्द्र शर्मा

सम्भल

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल-9761451031

शुक्रवार, 1 अप्रैल 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की बाल कहानी ----- कच्चा हाउस


बंद मोहल्ले में पतली गलियाँ थीं। सैकड़ों साल पुराना मोहल्ले का ढाँचा था । पुराने तरह के मकान बने हुए थे। रास्ता बस इतना था कि रिक्शा मजे से आ जाती थी । जब से कार का चलन हुआ ,वह बड़ी मुश्किल से मोहल्ले के अंदर आ पाती थी । आने के बाद फिर और कुछ निकलने के लिए जगह नहीं बचती थी ।

      वैसे तो मोहल्ले में पच्चीस-तीस घर होंगे। सभी घरों में एक-दो बच्चे जरूर हैं। लेकिन उनका आपस में मिलना सिवाय गली से निकलते समय हाय-हेलो करके हो जाने के अतिरिक्त और कुछ नहीं था। एक दूसरे के घरों में जाकर बैठने का रिवाज कम ही था । खेलने के लिए जगह भला अब किसके घर में बची थी ? पुराने समय के बड़े-बड़े आँगन अब लिंटर पड़ने के बाद छोटे-छोटे कमरों में बदल चुके थे ।

                  इसी बीच एक घटना हुई । एक सज्जन मोहल्ला छोड़कर महानगर में शिफ्ट हो गए । उनका मकान गिराऊ हालत में था। वह जिसको बेच कर गए ,उसने तुड़वा कर बनवाने का विचार बनाया । लेकिन मकान टूटने के बाद जब मलवा उठा तो उसके बाद न जाने क्या परिस्थितियाँ आ गईं कि आगे का काम रुक गया । वह जगह पूरे मोहल्ले में एकमात्र खाली मैदान बनकर बच्चों को उपलब्ध हो गयी । उसी का नामकरण बच्चों ने "कच्चा-हाउस" कर दिया । 

           कच्चे-हाउस में अब रोजाना सुबह से देर रात तक बैडमिंटन और क्रिकेट खेला जाने लगा । जिस समय भी कच्चे-हाउस के पास चले जाओ ,दस-बारह बच्चे खेलते हुए नजर आ जाएँगे । बच्चों में एक दूसरे से आत्मीयता बढ़ने लगी । रोजाना मुलाकात से उनमें अंतरंगता उत्पन्न हो गई । चार तरह की बातें भी बच्चे आपस में करने लगे । बस यूँ कहिए कि कच्चे-हाउस के कारण महफिल जुड़ने का एक बहाना मिल गया । दोस्ती पक्की होने लगी । पहले शायद ही कभी कोई बच्चा किसी दूसरे बच्चे से बात करता हो ,लेकिन अब तो सब एक दूसरे के गले में बाहें डाल कर कच्चे-हाउस के आसपास घूमते नजर आने लगे । 

            बच्चों में बैडमिंटन और क्रिकेट का शौक शुरू हुआ ,तो हर घर में रैकेट खरीदा जाने लगा । मोहल्ले की स्त्रियाँ जिनको कभी किसी ने बैडमिंटन खेलते नहीं देखा था ,वह अब नियमित रूप से बैडमिंटन का अभ्यास करने लगीं। यूँ समझिए कि कच्चा-हाउस महिलाओं की "किटी-पार्टी" का भी केंद्र बन गया । सारी गपशप इसी कच्चे-हाउस में आकर होती थी । 

             अकस्मात एक दिन खुशी के इस मौसम में एक व्यवधान आ गया । कुछ लोग बाहर से कच्चे-हाउस का निरीक्षण करने आए थे । उनकी बातचीत से पता चला कि वह कच्चा-हाउस खरीदने में रुचि ले रहे हैं। बच्चों ने उनकी बात सुन ली थी और उसके बाद से पूरे मोहल्ले में एक उदासी छाई हुई थी। सब बच्चे यह सोच कर परेशान थे कि अगर कच्चा-हाउस बिक गया और यहाँ पर नए खरीदार ने अपना भवन बना लिया तो फिर यह जो खेल और दोस्ती का केंद्र पहली बार मोहल्ले को नसीब हुआ है ,वह हाथ से निकल जाएगा ।

           बच्चों की उदासी देखकर उनके घरों के बड़े लोग भी चिंतित हो उठे । बच्चों के मम्मी-पापा विशेष रूप से इस बारे में चर्चा करने लगे । सब को लग रहा था कि सचमुच कच्चे-हाउस ने मोहल्ले में जो सक्रिय उत्साह उत्पन्न किया है ,वह कहीं समाप्त न हो जाए ! 

       फिर क्या था ,सब बच्चों के मम्मी-पापा एक जगह बैठे और सबने एक निर्णय लिया।  उसके बाद सारे मम्मी-पापा मिलकर कच्चे-हाउस के मालिक के पास गए । बातचीत की और लौटकर साथ में मिठाई का डिब्बा लेकर मोहल्ले में प्रविष्ट हुए । 

       बच्चों ने पूछा "पापा ! क्या समाचार लाए हैं ,जो मिठाई का डिब्बा भी हाथ में है ?"

           सब बच्चों के पापा ने सामूहिक स्वर में कहा "हमने कच्चा-हाउस मोहल्ले के बच्चों के लिए खरीद लिया है । अब यहाँ पर पार्क बनेगा और उसकी देखभाल सब परिवारों की एक सोसाइटी बनाकर की जाएगी ।"

       सुनते ही बच्चे खुशी से झूम उठे । कच्चे-हाउस में उस दिन खूब जमकर होली खेली गई । नृत्य हुए तथा तबले-बाजे और ढोलक के स्वर देर रात तक गूँजते रहे ।

 ✍️ रवि प्रकाश 

बाजार सर्राफा

रामपुर

 उत्तर प्रदेश, भारत 

मोबाइल 99976 15451

मंगलवार, 29 मार्च 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग्य कविता ---उग्रवाद से फरियाद-


माई डियर उग्रवाद

बहुत करा चुके दंगे फसाद

मुझ गरीब की भी

सुन लो छोटी सी फरियाद

बेकारी,भुखमरी,गरीबी

सब समस्याओं से उबार दो

मेरे भी सीने में

एक गोली उतार दो

मेरी कई पीढ़ियों का

भविष्य सुधर जायेगा

और तुम्हारा जुनून भी

कुछ पल को उतर जायेगा

मैं मरना चाहता हूं

तुम मारना चाहते हो

फिर किस बात की देर है

समाज से मैं उपेक्षित हूं

क्या तुम्हारे यहां भी अंधेर है

तुम उग्रवाद हो

ईमानदारी से अपना धर्म निभाओ

मेरी बात मान लो

अपनी पहचान मत मिटाओ


उग्रवाद बोला

छोटा मुंह और बड़ी बात

कभी देखी है

अपनी हैसियत और औकात

जमीन पर रहते हो

और ख्वाब आसमान का

कुछ तो ख्याल करो

हमारे मान सम्मान का


मैने कहा

मुझे मार कर तो देखो

मेरी भी हैसियत बन जायेगी

कल सभी अखबारों में

मेरी फोटो आयेगी

पूरी सरकारी मशीनरी

मेरे लिए आंसू बहाएगी

मेरे परिवार के लिए

राहत पैकेज की

घोषणा की जायेगी

मेरी हत्या पर

सांसद में लंबी बहस छिड़ेगी

पूरे सत्र लगातार चलेगी

विपक्ष इस मुद्दे को लेकर

सड़क पर उतर आएगा

सरकार के द्वारा

एक आयोग

गठित कर दिया जाएगा

आयोग की रिपोर्ट

जब तक आएगी

तब तक सरकार बदल जाएगी

इसलिए मिस्टर उग्रवाद

चुप मत बैठो

कुछ बवाल करो

मेरा ना सही

नेताओं की

रोजी रोटी का तो ख्याल करो।

✍️ डॉ.पुनीत कुमार

टी 2/505 आकाश रेजीडेंसी

आदर्श कॉलोनी रोड

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मो 9837189600

शनिवार, 26 मार्च 2022

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की कविता ----'यत्र नार्यास्तु पूज्यन्ते'

 


मुझे गर्व है भारत की संस्कृति पर

'यत्र नार्यास्तु पूज्यन्ते' की धरती पर

मेरी संस्कृति सिखाती है.... 

सम्मान माँ का......

फिर......

क्यों मूर्ति रूप में ही पूजी जाती है माँ केवल?

क्यों जन्मदायिनी माँ उपेक्षित है....

और एक वय के बाद.....

मूर्तिवत बैठे रहने को अभिशप्त भी।

मेरी धरती पर...

प्रत्येक षड्मास में....

नौ दिन नौ रात होते हैं,

स्त्री के विभिन्न रूपों की उपासना के|

परन्तु यही उपासक..... 

तदुपरान्त क्यों भूल जाते हैं स्त्री की महत्ता?

पूज्य स्त्री.....

क्यों बन जाती है......

कभी दया,कभी उपहास का पात्र?

मेरी इस संस्कृतिशीला धरती पर

नवरात्र का पारायण 

कन्या पूजन से होता है|

बड़े ही भाव विवह्ल होकर

कन्या पूजी जाती है,

जिंवायी जाती है,

आमंत्रित की जाती है, 

देवी के समान

लेकिन फिर....

नैसर्गिक अवतरण भी उनका

होता है बाधित।

मिलते हैं उन्हें उम्र भर

ताने,उलाहने और बंदिशे....

और एक बोझ की तरह.....

ढोते हैं अभिभावक उन्हें|

मेरी संस्कृतिशीला धरती पर 

मुझे गर्व है और.....

अफसोस भी कि...

यहाँ मातृपूजन, देवीपूजन अथवा

कन्यापूजन के दिवस षड्मास में केवल नौ ही क्यों हैं?

क्यों.....? 

आखिर क्यों नहीं मिलता.....

इन दिवसों को.....

वर्ष पर्यन्त का सीमा विस्तार......


हेमा तिवारी भट्ट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

बुधवार, 23 मार्च 2022

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर' की ओर से आज बुधवार 23 मार्च 2022 को वाट्स एप पर 'शहीदों को नमन' काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी की अध्यक्षता अशोक विश्नोई ने की। मुख्य अतिथि - डॉ. प्रेमवती उपाध्याय और विशिष्ट अतिथि वीरेन्द्र सिंह 'ब्रजवासी' रहे । प्रस्तुत हैं गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों अशोक विश्नोई, डॉ. प्रेमवती उपाध्याय,वीरेन्द्र सिंह 'ब्रजवासी', योगेन्द्र वर्मा 'व्योम', डॉ. अर्चना गुप्ता, राजीव 'प्रखर', हेमा तिवारी भट्ट, मोनिका शर्मा 'मासूम', डॉ. ममता सिंह, मीनाक्षी ठाकुर, निवेदिता सक्सेना, डॉ. रीता सिंह और प्रशांत मिश्र की रचनाएं ----


जग बदलूँ संकल्प धरा है

वीरों  ने बलिदान  वरा  है

इस माटी की गन्ध बताती

सच सोने की तरह खरा है।

✍️ अशोक विश्नोई

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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राष्ट्र हित शीश बलिदान जो कर गए

उनको मेरा नमन और शत-शत नमन ।।

हँसते-हँसते लगाया गले मौत को, 

वीर बलिदानियों तुमको शत-शत नमन।।


स्वप्न आजाद भारत का मन में पला

चल पड़ा काफिला न रुका सिलसिला 

वर्ष पर वर्ष बीते शताब्दी गई 

मिटने वालों का बढ़ता गया होंसला

आततायियों के खट्टे किये दांत थे,

वीर महाराणा-सांगा को शत-शत नमन।।


कितनी वीरांगनाएं समर में लड़ी,

भाल ऊँचा किए आन पर थी अड़ी।

लक्ष्मीबाई का बलिदान भी याद है

पुत्र को बांध कटि में समर में लड़ी

आज आजाद-विस्मिल-भगतसिंह को, 

पंच प्यारों को करते हैं शत-शत नमन।।

तुमको है शत-शत नमन ।

✍️ डॉ प्रेमवती उपाध्याय

 मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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देकर  अपनी   सांस,  हमारे

जीवन  को  महकाया  तुमने

सकल गुलामी  के  बंधन  से

सबको  मुक्त  कराया  तुमने।


 तोड़ा  सब घमंड  गोरों  का

आज़ादी   के    दीवानों    ने

भरी  सभा  में करा  धमाका

भारत  माँ   की   संतानों  ने।


कफन बांधकर निकले सर पे,

प्राणों  की परवाह  नहीं   की,

आज़ादी   के   इन   वीरों   ने,

सुख वैभव की चाह नहीं की।


घोर  यातनाएं  सह  कर  भी,

भारत माता  की  जय  बोली,

टससे मस न कर सके उनको,

गोरों  के   हंटर   औ    गोली।


चूमा  फांसी   के   फंदों   को,   

राजगुरु,  सुखदेव,  भगत  ने,

वीरों  के साहस को  झुककर,

नमन किया  संपूर्ण  जगत ने।


आओ मिलकर सीस झुकाएं,

माँ  के  बलिदानी   बेटों   को,

मातृभूमि  से  दूर   रखें   सब,

गद्दारों,  किस्मत    हेटों   को।


मंत्र फूंककर  देश  भक्ति का,

दुनियां   को   चेताया   तुमने,

बड़ा   न   कोई  आजादी  से,

जन-जन को समझाया तुमने।

✍️ वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत        

9719275453

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अमर शहीदों के लिए, सुबह-दोपहर-शाम

नतमस्तक इस देश का, हर पल उन्हें प्रणाम

ऋणी रहेगा उम्रभर, उनका हिन्दुस्तान

किया जिन्होंने देश पर, प्राणों को बलिदान

✍️ योगेन्द्र वर्मा व्योम

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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हँसते हँसते जान भी, अपनी की कुर्बान 

राजगुरु, सुखदेव, भगत, थे वो वीर महान

थे वो वीर महान, देश था उनको प्यारा

जिस दिन हुए शहीद, रो पड़ा था जग सारा 

कहे 'अर्चना' बात, नमन हम उनको करते

फाँसी ली थी चूम, जिन्होंने हँसते हँसते 

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आज़ादी के दीवानों को, भूल नहीं हम पाते हैं।

सोच सोच कर उस मंजर को,भर- भर आँसू आते हैं।

हँसते हँसते जानजिन्होंने,  भारत माँ पर कर डाली,

उन वीरों को श्रद्धा से हम,अपने शीश नवाते हैं।

✍️ डॉ अर्चना गुप्ता

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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दुनियां के हर सुख से बढ़कर,

मुझको प्यारे तुम पापा ।

मेरे असली चंदा-सूरज,

और सितारे तुम पापा ।

ओढ़ तिरंगा घर लौटे हो,

बहुत गर्व से कहता हूॅं।

मिटे वतन पर सीना ताने,

मगर न हारे तुम पापा।।

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लिये गीत कुछ चल पड़े, बाॅंके वीर जवान।

हॅंसते-हॅंसते कर गए, प्राणों का बलिदान।।

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लगा रही है आज भी, माटी यही पुकार।

खड़ी न होने दीजिये, नफ़रत की दीवार।।

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चाहे गूंजे आरती, चाहे लगे अज़ान।

मिलकर बोलो प्यार से, हम हैं हिन्दुस्तान।।

✍️ राजीव प्रखर

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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फिर से भगत सिंह आओ तुम।

सोते है युवा जगाओ तुम।


अंग्रेजी ज्यों शासन डोला

बारूदी फिर फैंको गोला

अलसाये सिंह उठाओ तुम।

फिर से भगत सिंह आओ तुम।


सेवा को वय मुहताज़ नहीं

बिन त्याग सफल सुकाज नहीं

मक्कारों को समझाओ तुम।

फिर से भगत सिंह आओ तुम।


जब रंगा बसंती चोला था

कपटी सिंहासन डोला था

वो इंकलाब दोहराओ तुम।

फिर से भगत सिंह आओ तुम।


दुश्मन अब नक्कारी का है

विषबेली मक्कारी का है

कैसे भी इसे हटाओ तुम।

फिर से भगत सिंह आओ तुम।


शहादत व्यर्थ न जा पाये

रग रग में खून खौल जाये

हर दिल में भगत जगाओ तुम।

फिर से भगत सिंह आओ तुम।

हेमा तिवारी भट्ट

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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राजगुरु सुखदेव भगत सिंह

आजादी  के  दीवाने  थे ,

हँसते हँसते गए फँदे पर

वे बलिदानी मसताने थे ।


इंकलाब का नारा देकर

वो नयी चेतना लाये थे

देश प्रेम की ज्योत जलाकर

सरदार वही कहलाये थे ।


नाम शिवराम हरि राजगुरू  

वेदों और ग्रन्थों के ज्ञाता ,

छापामार युद्ध शैली से

था उनका नजदीकी नाता ।


सुखदेव थापर भगत सिँह ने

संग संग दीक्षा पायी थी ,

लाजपत की हत्या के बदले

साण्डर्स की बलि चढ़ायी थी ।


साहस का पर्याय थे तीनों 

भारत माँ न भूल पाएगी

ऐसे शहीदों की कुर्बानी 

युग युग तक गायी जाएगी ।

✍️ डॉ रीता सिंह

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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नमन उस मां की ममता को जो बेटा देखकर रोई

बहन बेटी के जज़्बे को नमन जिसने खुशी खोई

कि उस पत्नी के धीरज को नमन साष्टांग है मेरा

कलाई छोड़कर जिसकी शहादत बर्फ में सोई


घाटी से संसद तक पसरा मातम है , हंगामा है 

आतंकी कातरता का फिर साक्ष बना पुलवामा है

 जिसके शब्द -शब्द को पढ़कर दहक उठे ज्वाला मन में

वीरों ने यूं खून से अपने लिखा शहादत- नामा है

✍️ मोनिका मासूम

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वतन की आन पे तो जान भी क़ुर्बान है यारो। 

क़फन गर हो तिरंगे का तो बढता मान है यारो।।


न आने देंगे इसकी शान पर हम आँच कोई भी, 

वतन के नाम से ही तो मिली पहचान है यारो।। 


रहे ऊँचा जगत में नाम मेरे देश का  हर पल, 

मिटा दूँ ज़िन्दगी इस पे यही अरमान है यारो।। 


नहीं कर पायेगा दुश्मन हमारा बाल भी बाँका, 

खुला उसको हमारा आज ये ऐलान है यारो।। 


मिटा दे इसकी हस्ती को भला किसमें है दम *ममता* ,

वतन गीता वतन मेरे लिए कुरआन है यारो।।

✍️ डाॅ ममता सिंह 

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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जय हिंद दोस्तो है ,अपना तो एक नारा,

ये देश है उसी का ,जो देश पर है वारा।


ग़म की अँधेरी बदली, छायेगी अब न फिर से,

पाया है जान देकर ,आज़ादी का नज़ारा


जीते हैं हम  वतन पर, मरते है हम वतन पर

भारत सदा रहेगा प्राणो से हमको प्यारा


दुश्मन खड़ा है हर सू, ललकारता है हमको

माँ भारती ने देखो ,हमको है फिर पुकारा


बाँधा कफन है सर से ,हमने वतन की खातिर,

देकर लहू  जिगर का,हमने इसे  सँवारा।


मरता है हिंद पर ही ,भारत का हर निवासी,

सदियो तलक रहेगा बस दौर ही हमारा।


है आरज़ू ये मेरी, तेरी ज़मी ही पाऊँ,

सातो जनम ही चाहे, आना पड़े दुबारा।

✍️ मीनाक्षी ठाकुर

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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विजय है तुम्हारी विजय है ।

 जो कर्तव्य पथ पर चलें पग संभल कर 

सफलता निसंदेह तय है ।।

विजय है तुम्हारी विजय है।।

नहीं रोक पाए नहीं तुम्हें

 प्रात और रात 

बरसात हिमपात भारी ।।           

 अलखनाद जब

 हो गया मन के भीतर,

  उठा मन में उत्पात भारी ।।

पुकारा हिमालय  शिवालय ने तुमको 

कहां कोई त्यौहार देखा ,

न देखा सिसकता हुआ 

 मां का आंचल 

न राखी भरा प्यार देखा,

 चले कंटको को 

  पुआला समझकर 

न मुड़ करके 

फिर द्वार देखा ।।

तड़पती रही खनखनाने को चूड़ी न

 भार्या का श्रृंगार देखा 

 अटल हो गई जीत की लालसा जब 

  वही दुश्मनों की प्रलय है 

विजय है तुम्हारी विजय है।।

विजय है तुम्हारी विजय है।

✍️ निवेदिता सक्सेना

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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भगत सिंह की गर्जना से 

अंग्रेजों  का सिंहासन डोला था,

जब हिन्द के वीर सपूतों ने 

 भारत माँ की जय बोला था।


लाला लाजपत का लहू देख

 खून सुखदेव का भी खौला था,

जॉन सॉन्डर्स को धूल चटाने 

निर्भीक, बहादुर ने धावा बोला था।


जश्न शहादत चुनी  बाँकुरों ने 

न ओढ़ा माफ़ी का चौला था 

राजगुरु बाइस में लाहौर सेंट्रल जेल

दोनों संग हँसकर फांसी पर झूला था। 

✍️ प्रशान्त मिश्र

राम गंगा विहार, मुरादाबाद

उत्तर प्रदेश, भारत


मुरादाबाद के साहित्यकार शिशुपाल मधुकर की कविता --- भगत सिंह


ऐ, भगत सिंह

लोग कहते हैं कि

तुम्हें अंग्रेजों ने

फांसी पर चढ़ाया था

क्या यह सही है

मैं नहीं मानता

अंग्रेजों की हिम्मत ही नहीं थी कि

तुम्हें फांसी पर चढ़ा देते

वे तो तुम्हारे नाम से ही

थर -थर कांपते थे

वे तो तुम्हें छू भी नहीं सकते थे

अच्छा तुम्हीं बताओ

जब तुमने बहरे हुए अंग्रेजों के

कान खोलने के लिये

असेंबली में बम फेंका

तो क्या तुम्हें पकड़ने वाले 

अंग्रेज़ थे 

नहीं न

वे तो इसी देश के वासिन्दे थे

तुम यह भी अच्छी तरह जानते हो

कि तुम पर कोड़े बरसाने वाले

पुलिस वाले कौन थे

वे भी अंग्रेज़ नहीं थे, यहीं के

इसी देश के रहने वाले थे

तुम्हें जेल में यातना देने वाले 

कौन थे, कहाँ के थे वे, क्या नाम था उनका

इसका भी तुम्हें अच्छी तरह पता है

क्या वे अंग्रेज़ थे

नहीं न

तुम्हारे खिलाफ़ मुकदमा लड़ने वाला

वकील, इंग्लैंड से तो नहीं आया था

बताओ भगत सिंह

वह भी इसी  देश की मिट्टी का था ना

जिस देश की मिट्टी को आज़ाद कराने की

तुमने कसम खायी थी

और तुम्हें फांसी का हुक्म सुनाने वाला जज

जिसने सारे नियमों को तोड़ कर फांसी देने का षड्यंत्र रचा

कहाँ का था वह

इसी देश का था ना

जिसकी गुलामी की जंज़ीर तोड़ने के लिए

तुमने सारी सुख सुविधाओं का त्याग 

किया था

और वो जल्लाद

जिसने फांसी का लीवर खींच कर

तुम्हें मृत देह में बदल दिया था

क्या वह कहीं बाहर का था

ये वही लोग थे जिनके स्वाभिमान के लिए 

तुमने फांसी का फंदा चूमा था

पर ये लोग गुलामी की दलदल में

सुविधाओं के कमल से लिपटे हुए थे

ये वही लोग थे जो तुम्हारे सपनों के पंखों को 

नोचने के लिए अपना ज़मीर गिरवी रख चुके थे

अगर दुनिया तुम्हें महान देश भक्त कहती है तो

तुम्हारे खिलाफ़ साज़िश रचने वाले कौन हो सकते हैं

 क्या उन्हें गद्दार कहना उचित नहीं है

उन्हें जयचंद भी बुला सकते हैं

अंग्रेजों को दोष देने से ऐसे लोग 

दोषारोपण से साफ बच निकलते हैं

ये ही लोग सम्मानित और भद्र बनकर

तुम्हारे सपने को कुचलने में लिप्त थे

और उनके उत्तराधिकारी

तुम्हारी स्मृतियों को भुलाने की 

पुरजोर कोशिश में लगे हैं

उन्हें लगता है कहीं तुम 

वापिस न आ जाओ 

क्योंकि इस बार तुम वापिस आये 

तो ये बख्शे नहीं जायेंगे

यही डर उन्हें सताता रहता है

             

✍️ शिशुपाल "मधुकर "

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश

भारत

मंगलवार, 22 मार्च 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार एवं केजीके महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य स्मृतिशेष दादा प्रो.महेंद्र प्रताप जी द्वारा लिखित ललित मोहन भारद्वाज जी के मुक्तक संग्रह 'प्रतिबिम्ब' की भूमिका का अंश


'प्रतिबिम्ब' मुक्तक काव्य स्फूर्तियों का संकलन है। मुक्तक काव्य रचना का परम स्वाभाविक और प्राचीन रूप है और संसार के सभी साहित्यों में उस की सुदीर्घ और महत्वपूर्ण परम्परा मिलती है। भारतीय वाङ् मय में तो मुक्तक रचनाओं को और भी अधिक मान्यता और प्रतिष्ठा प्रदान की गई है। हमारे बहुसंख्यक वेदमन्त्र अत्यन्त सुन्दर काव्य मुक्तकों के उदाहरण हैं। संस्कृत में अष्टकों, शतकों और सप्तशतियों के रूप में ऐसे गौरवपूर्ण काव्य मुक्तकों के कितने ही संकलन पाये जाते हैं जिनकी महिमा प्रसिद्ध महाकाव्यों के समान ही मानी जाती है। लोक-प्रचलन और लोकप्रियता में तो वे किसी सीमा तक महाकाव्यों और नाटकों से भी आगे थे। 'प्राकृत सतसई', अमरुक का 'अमरु शतक', भर्तृहरि के 'शृंगार शतक', 'नीति शतक' तथा 'वैराग्य शतक तथा गोवर्द्धनाचार्य की 'आर्या सप्तशती' आदि ऐसी मुक्तक-कृतियां है जिन्हें अपने समकालीन काव्य रसिकों से भी मान मिला और जिन्हें आज भी पूरे आदर और निष्ठा के साथ स्मरण किया जाता है। हिन्दी का अधिकांश भक्ति और रीतिकालीन काव्य मुक्तकों के रूप में ही रचा गया है। कबीर, दादू, तुलसी, केशव, रहीम, बिहारी, देव, घनानन्द, आलम, बोधा, वृंद आदि कवियों की रचनाओं में प्रमुखता मुक्तकों की ही है। आधुनिक काल में भी मुक्तक के माध्यम से भारतेन्दु, रत्नाकर और हरिऔध जैसे महाकवियों ने अपार कीर्ति अर्जित की है।

     कुछ लोग कबीर, तुलसी और भारतेन्दु जैसे कवियों की पदशैली वाली काव्य रचनाओं को, प्रसाद, निराला, महादेवी आदि की आधुनिक प्रगीति रचनाओं को अंग्रेजी के शैली, कीट्स जैसे कवियों की ओडों और सानेटों को, तथा उर्दू की ग़ज़लों और गीतों को भी मुक्तकों की कोटि में ही गिनना चाहते हैं, किन्तु मेरे विचार से ऐसा करना ठीक नहीं है। बाहरी रचना की दृष्टि से मुक्तक का एक आवश्यक लक्षण यह है कि वह एक ही छन्द का होता है, चार चरणों वाले एक ही छन्द का। इस लक्षण का उल्लंघन होते ही रचना प्रकृत रूप में मुक्तक नहीं रह जाती। पद, गीत, गजल, सॉनेट आदि बहुछन्दीय रचनायें होती हैं। उन्हें शुद्ध मुक्तकों की कोटि में स्थान देने का आग्रह नहीं होना चाहिए। ऐसा करने से मुक्तक के एकछन्दीय होने का  कालातीत रूप में स्थिर लक्षण खण्डित और धूमिल हो जाता है।

      मशीनी मुद्रण के प्रचलन से पूर्व काव्य का प्रसार और आस्वादन मौखिक पाठ के माध्यम से हुआ करता था। स्मरण कर लेने और अवसर के अनुसार उद्धृत करने में सुविधा की दृष्टि से उस काल में मुक्तकों का महत्व बहुत अधिक था। पर मुक्तकों के इस गुण का महत्व आज भी किसी सीमा तक बना ही हुआ है।

    हिन्दी में मुक्तक रचना की शैली अभी कुछ समय पूर्व तक भक्ति और रीतियुगीन भाव-भूमि और शिल्प से जुड़ी हुई थी, जिसके चलते दोहाबलियों और सवैया तथा कवित्त छन्दों में लिखे मुक्तकों का प्रचलन था। पर इधर हाल में हिन्दी मुक्तकों ने उर्दू के 'कतों' का ढर्रा अपनाया है। ग़ज़ल अथवा नज्म सुनाने से पहले उर्दू के शायर 'कतों' के रूप में एकछन्दीय-मुक्तक सुनाया करते हैं। सुनने वालों पर इन 'कतों' का गहरा प्रभाव पड़ता देखा जाता है और अक्सर उर्दू के शायर इन 'कतों' के सहारे श्रोताओं में उस भावात्मकता को जाग्रत कर लेते हैं जो उनकी गजल अथवा नज्म के परिपूर्ण आस्वाद के लिये आवश्यक होती है। इन 'कतों' में अनुभूति और अभिव्यक्ति दोनों का ही निखार चरम रूप में लाने का प्रयत्न किया जाता है और इस कारण ये 'कते' बहुत ही मनोरम होते हैं।

    उर्दू की इस मुक्तक परम्परा का अनुसरण करते हुए हिन्दी में मुक्तक रचना का जो एक नया उल्लास सामने आया है, थोड़ी अवधि में ही उसकी उपलब्धियाँ बहुत विशिष्ट हो गई हैं। काव्य में रसात्मकता और संगीतात्मकता के हामी अधिकांश हिन्दी कवियों ने मुक्तक रचना के इस नये अभियान में अपना-अपना योगदान किया है। स्वीकार करना होगा कि इस नई शैली की मुक्तक रचना के शुभारम्भ और प्रचार में कवि श्री 'नीरज' के प्रयासों का विशेष महत्व है। यह जरूर है कि उर्दू भाषा और उर्दू शायरी के माहौल से बहुत अधिक प्रभावित होने के कारण श्री नीरज अपने मुक्तकों को वह रूप नहीं दे पाये जिसे उर्दू के मुक्तकों से अलग हिन्दी के मुक्तकों का अपना रूप कहा जा सकता। किन्तु हिन्दी में मुक्तक रचना को नई प्रेरणा और आयाम देने की दृष्टि से नीरज का योगदान बहुत विशिष्ट है, इसे स्वीकार करना ही होगा |

      इस नई मुक्तक रचना की कुछ अपनी विशेषताएं हैं। इन मुक्तकों में सौन्दर्य प्रेम और गहन जीवनानुभवों की मार्मिक अभिव्यक्ति होती है और उसे प्रभावशाली बनाने के लिये भाषा को लय, गति तथा छन्द का विशिष्ट सौन्दर्य प्रदान किया जाता है। मुक्तक रचना में अभिव्यंजना-सौन्दर्य पर इतना अधिक बल दिया जाता है कि कभी-कभी अनुभूति सम्बन्धी कोई विशेषता न होने पर भी मात्र अभिव्यञ्जना के सौन्दर्य के कारण ही कुछ मुक्तक सार्थक और सफल माने जाते हैं।

   'प्रतिबिम्ब' में संकलित श्री ललित भारद्वाज के ये मुक्तक हिन्दी की इसी नई मुक्तक परम्परा को आगे बढ़ाते है और उसे चिन्तन, अनुभूति तथा अभिव्यञ्जना को नई समृद्धि से मंडित करते हैं। श्री ललित की काव्य दृष्टि परम्परा प्राप्त काव्य-दृष्टि से जुड़ी हुई है और रसानुभूति तथा संगीतात्मक अभिव्यञ्जना का साथ कभी नहीं छोड़ती। मैं इसे ललित के व्यक्तित्व के स्वस्थ विकास का परिचायक मानता हूं। आस्तिकता, आध्यात्मिकता, दार्शनिकता तथा जीवन-निष्ठा के जो तत्त्व श्री ललित के इन मुक्तकों की पंक्ति-पंक्ति में अनुस्यूत हैं वे मेरे विचार से आज के विक्षुब्ध मानव की सबसे बड़ी आवश्यकताएँ हैं

रोम रोम परस करें तुझको अभिराम, 

प्राण पुलक बरस पड़े नित्य पूर्ण काम, 

मैं खड़ा रहूँ तमाम उम्र, एक पाँव, 

जो तेरे दरस मिले रोज सुबह शाम । 


साधना हूं, सिद्धि हूं, साधक स्वयं ही साध्य भी, 

नित्य आराधक रहा हूं, साथ ही आराध्य भी, 

स्वयं कृति हूं, अलंकृति हूं, विकृति भी, संस्कार भी,

 निरा बन्धनहीन हूं, लेकिन कहीं पर बाध्य भी।


नव गीतों की नव स्वर लहरी पर संचार करें, 

आगत के स्वागत द्वारा सपने साकार करें, 

हुआ अतीत व्यतीत, विसंगतियों को विजय करें, 

छोड़ो कथ्य अकथ्य पुराने, आओ प्यार करें ।


माना कि आज के जीवन में अनेक प्रकार की विषमताएँ, असंगतियाँ तथा विक्षोभकारी दबाव है किन्तु इनसे प्रभावित होकर दिव्य मानव-चेतना के वाहक और प्रकाशक कवि और कलाकार भी संत्रस्त, विक्षुब्ध और दिग्भ्रांत हो जायें इसे न मैं आवश्यक ही मानता है और न उचित ही। मुझे इस बात की गहरी खुशी है कि वर्तमान युग के अवसाद ने श्री ललित को जहां-तहां छुआ तो ज़रूर है लेकिन जीवन की मंगलमयता में उनके विश्वास को उसने कहीं भी धूमिल अथवा दुर्बल नहीं बनाया है-----

जुल्म जमाने भर के हम तुम साथ सहे तो कैसा हो ? 

अपनी अपनी राम कहानी साथ कहें तो कैसा हो ? 

लाख असंगतियाँ जीवन में एक साथ जब रह लेती

 हम यायावर तुम यायावर, साथ रहें तो कैसा हो ?


वे कभी-कभी ऐसा अनुभव जरूर करते हैं कि---


दरवाजों पर अपशकुनों के भटक रहे हैं साये 

 मुस्काने पर मजबूरी ने पहरे लाख लगाये

 जकड़ा है संत्रासित सांसों में सारा सम्वेदन, 

 भटक रहे हैं प्रतिबिंबों में बिम्ब बहुत बौराये।

किन्तु इस तरह को मानसिकता उनकी स्थिर मानसिकता नहीं  है । उनका विश्वास है कि----

जीवन अरमान मधुर, जीवन मुस्कान है,

जीवन तो जीवन का  सुमधुर सहगान है, 

जीवट से जीना ही जीवन को काम्य है, 

जीवन परमेश्वर का प्यारा वरदान है।

श्री ललित अपनी संवेदनाओं में अपने तक ही सीमित नहीं हैं, सम्भोग की तुलना में सहभोग में उनकी आस्था अधिक है। वे कहते हैं------

उपवन  का मधुसार न केवल मेरा है, 

सौरभ पर अधिकार न  केवल मेरा है,

 आओ मिलजुल कर रस पान करें हम सब,

 धरती का श्रृंगार न केवल मेरा है। 

और

अपने ही द्वार तक न फेंको उजियारा, 

दूर दूर तक देखो ढूंढो अंधियारा,

 जिस तिस की चौखट रह जाये न अंधेरी, 

 क्या जाने कोई भटका हो बनजारा ।


'प्रतिबिम्ब' में जीवन की दृष्टि से जन-जन के सहयोग और पारस्परिक सहभोग की यह स्वस्थ भावना बार-बार सामने आती है और मैं इसे ही इस रचना की सबसे महत्त्वपूर्ण उपलब्धि मानता हूँ। अन्य कारणों के अतिरिक्त एक स्वस्थ जीवन-निष्ठा के सम्पर्क में आने की दृष्टि से 'प्रतिबिम्ब' के मुक्तक बारम्बार पठनीय हैं। दुरूह और दुर्गम अभिव्यञ्जना काव्य का सबसे बड़ा दुर्गुण है और श्री ललित का काव्य इस दुर्गुण से सर्वथा मुक्त है, यह मेरे लिये बड़े सन्तोष की बात है -


निखर गया आतप लो बिखर गया सोना, 

फैल गया धीरे से हर ठिठुरा कोना, 

मिट चली सवेरे की सिहरती कंपकंपी, 

जाड़े की धूप है कि गुनगुना बिछौना ।


तन खुल जाता है सो लेने के बाद, 

कुछ मिल जाता है खो देने के बाद, 

जैसे धरती का  दर्पन सावन में चमके,

मन धुल जाता है रो लेने के बाद ।


बात तो तब है कि इंगित मात्र हो सन्देश, 

बात तो तब है न मन में हो अहम् का लेश, 

बदल जाता आदमी परिवेश के अनुरूप, 

बात तो तब है बदल दे आदमी परिवेश ।


श्री ललित की सौन्दर्यानुभूति की अभिव्यक्ति में भावावेग, कल्पना और पदलालित्य का समन्वित विन्यास दर्शनीय है


तुम चितवन से नहला दो, मैं धुल जाऊँ, 

प्रिय रोम रोम, रग रग में मैं घुल जाऊँ 

अभिव्यक्ति अनुरुक्ति, भक्ति सब तुम से है, 

तुम मुझे बाँध लो प्राण ! कि मैं खुल जाऊँ ।


श्वेत श्याम अरुणिम छवि दृग में भर लाई होगी, 

अलस गात मधु स्नात, कष्ट में मुस्काई होगी, 

बद्धाञ्जलि पूजन करती तुमको देखा होगा, 

तभी कमल की रचना विधि के मन आई होगी।


धुल धुल कर  निखरा है खेतों का रूप,

बरखा में गदराए गाँवों  के कूप, 

पनघट से चिपक गई भीगी चुनरी, 

अभी अभी चुपके से नहा गई धूप


कविता के विवाद-रहित निर्मल और शाश्वत रूप में श्री ललित की अडिग निष्ठा है। वे अपने बारे में स्वयं घोषित करते हैं---

मैं न घिरा हूं कविता और अकविता के परिवेश में, 

मैं न फिरा हूँ वाद और प्रतिवादों के आवेश में

 भूखे अपने राम सहज रस-गति-सुर-गुंजित भाव के,

  शब्द-शब्द अक्षर अक्षर पावन गीतों के वेश में।


श्री ललित के काव्य में जो बात मुझे सबसे ज्यादा रुचती है वह है उन की स्वस्थ जीवन-निष्ठा और अभिव्यंजना के क्षेत्र में प्रसाद गुण-युक्त शैली को निर्मल संगीतात्मकता---


पीड़ा से परिणय स्वीकार करो तो जानें, 

अंजलियाँ भर भर विषपान करो तो जानें. 

फूलों को देख देख  हाथ सब बढ़ाते हैं,

कांटों पर पाँव रखो मुस्काओ तो जानें ।


आँखों ही आँखों में सबकुछ पी लूं

खुशियों की गोट लगा कथरी सी लूं

 एक यही अभिलाषा मन में बाकी

 मरने से पहले जी  भर  कर जी लूं ।


तुमको अर्पित सारे बसन्त मनुहारों के, 

तुम मुस्का दो फिर देखो रंग बहारों के,

 यह लो मैं आसमान को और झुकाता हूं, 

 दोनों हाथों से फूल चुनो तुम तारों के ।


दर्द भुला कर मुस्कानों से होठ सिये कोई, 

रह कर नित अनाम अमृत के घूंट,

 प्रतिभा यदि साधना पगी है तो सब सम्भव है, 

 यश मिलता है तब जब यश के हित न जिये कोई।





✍️ महेंद्र प्रताप 




सोमवार, 21 मार्च 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल निवासी साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा की रचना---कविता कभी नहीं मरती


धरने पर बैठे किसानों के तंबुओं की तरह,

नहीं होती हैं कविताएं,

कि सरकार की सख्ती और हठधर्मिता के सामने,

यूं ही उखड़ जाएं।

या फिर तूफानों में उजड़ जाएं,

जंगलों की तरह,

या जल जाएं,

घास-फूस के छप्परों सी,

घुल जाएं जहरीली हवा में,

या दब जाएं ऑफिस की फाइलों सी।

मिल जाए जैसे दूध में पानी,

और कोहरे में छिप जाए,

सूरज की तरह,

कविता कविता है,

जो कभी नहीं मरती,

दिलों पर करती है राज,

एक रानी की तरह।

कविता की कीमत, 

कीमती आदमी ही जानता है,

उस की आन-बान-शान को पहचानता है,

संस्कृति से इसका अटूट नाता है,

कविता किसी सभ्य समाज की निर्माता है।

कविता को विचारों का भूखंड चाहिए,

भाव रूपी ईटों की मजबूती चाहिए,

हो समस्या की सरियों का जाल,

कुंठा को तोड़ने वाली,

ऐसी रेती चाहिए।

फिर लगाकर सहानुभूति का सीमेंट,

मिटाया जाता है,

खुरदुरेपन का एहसास,

डाल दी जाती है, संस्कारों की छत,

और पहना दिया जाता है प्यारा-सा लिबास।

करके दुनिया का श्रंगार फिर,

दीनता का समाधान बन जाती है कविता,

और पहन संस्कृति का परिधान,

हर समस्या का निदान बन जाती है कविता।


✍️ अतुल कुमार शर्मा

 सम्भल

उत्तर प्रदेश, भारत

 मोबाइल-8273011742

शनिवार, 19 मार्च 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार के पी सिंह सरल का गीत ----रंगों की बौछार होली खेलो रे ! -------


आई फाग बहार होली  खेलो रे !                                  रंगों का त्योहार , होली खेलो रे !!                  

रंग गुलाल हाथ में ले कर  ! 

साथी सभी साथ में ले कर  !! 

ले पिचकारी चल हुरियारे  ! 

कुछ भर लाओ रंग गुब्बारे  !! 

रंग पिचकारी रखो कमर पर ! 

चली है टोली गाँव डगर पर !! 

रंगों की बौछार होली खेलो रे ! -------       

इक दूजे को रंग लगाये  ! 

कोई घर पर भंग पिलाये !! 

गली गली में धूम मची है ! 

धरती मां भी खूब रची है !! 

हवा सुरमयी फिजा रॅगमयी ! 

हरियाली फसलों पर छा गयी !!

रंगीला संसार होली खेलो रे ! -----

दिल के सारे मैल हटा कर ! 

दुश्मन को भी गले लगा कर !! 

रंग लगाओ बैर भुलाओ ! 

सब को अपने गले लगाओ !! 

हिन्दू मुस्लिम सिक्ख इसाई ! 

सब बन जाओ. भाई भाई  !! 

मिले प्यार को प्यार होली खेलो रे !

रंगों का त्यौहार होली खेलो रे !!

✍️ के पी सिंह 'सरल'

मिलन विहार

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत




गोरे गालों को किया , जब देवर ने लाल ....तो क्या हुआ बता रहे हैं मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (सम्भल) के साहित्यकार त्यागी अशोक कृष्णम्


 

मुरादाबाद की साहित्यकार (वर्तमान में जकार्ता इंडोनेशिया ) निवासी वैशाली रस्तोगी के दोहे ----


 

शुक्रवार, 18 मार्च 2022

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ ममता सिंह का गीत --- होली खेलें नन्द के लाल


 

देवर-भाभी, जीजा-साली के मंसूबे....बता रहे हैं मुरादाबाद के साहित्यकार मनोज कुमार मनु


 

मुरादाबाद जनपद के बिलारी निवासी साहित्यकार नवल किशोर शर्मा नवल का गीत ---होली का त्योहार


 

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ रीता सिंह की रचना ---होली आई ...होली आई


 

मुरादाबाद के साहित्यकार धन सिंह धनेन्द्र का गीत --खेल़ूं ऐसी होली सजन, मुख से छूटे कभी न रंग

     


      मनेगा फाग  हमारे संग,

       तुम घर आना बन ठन।

       करेंगे तुम्हें नहीं हम तंग,

       पीयेंगे बस थोड़ी भंग।।

       मनेगा फाग हमारे........

        सखियाँ आऐं घर-आंगन,

        भर-भर हाथों अपने रंग।

         मंजीरा बजता ढ़ोल मृदंग,

         मस्त हो नाचेंगे सब संग।।

          मनेगा फाग हमारे .......

         आज भीगें सब तन मन,

         प्रेम में होगा ना हुड़दंग।

         खेल़ूं ऐसी होली सजन,

         मुख से छूटे कभी न रंग।।

         मनेगा फाग हमारे.........     

         गले मिले सब प्रियजन,

         एक हुए बिखरे संबध।

         गुजिया भुजिया के संग 

          रंग-बिरंगी मंद सुगंध।।

           मनेगा फाग हमारे.......

         ✍️ धनसिंह 'धनेन्द्र'

          म०नं० - 05 , लेन नं० -01  

          श्रीकृष्ण कालौनी,

           चन्द्रनगर , मुरादाबाद पिन-244001

           उत्तर प्रदेश, भारत

            मो०- 9412138808

                                 




गोरी तेरे गले लगेंगे.... कह रही हैं मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर