शनिवार, 26 मार्च 2022

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की कविता ----'यत्र नार्यास्तु पूज्यन्ते'

 


मुझे गर्व है भारत की संस्कृति पर

'यत्र नार्यास्तु पूज्यन्ते' की धरती पर

मेरी संस्कृति सिखाती है.... 

सम्मान माँ का......

फिर......

क्यों मूर्ति रूप में ही पूजी जाती है माँ केवल?

क्यों जन्मदायिनी माँ उपेक्षित है....

और एक वय के बाद.....

मूर्तिवत बैठे रहने को अभिशप्त भी।

मेरी धरती पर...

प्रत्येक षड्मास में....

नौ दिन नौ रात होते हैं,

स्त्री के विभिन्न रूपों की उपासना के|

परन्तु यही उपासक..... 

तदुपरान्त क्यों भूल जाते हैं स्त्री की महत्ता?

पूज्य स्त्री.....

क्यों बन जाती है......

कभी दया,कभी उपहास का पात्र?

मेरी इस संस्कृतिशीला धरती पर

नवरात्र का पारायण 

कन्या पूजन से होता है|

बड़े ही भाव विवह्ल होकर

कन्या पूजी जाती है,

जिंवायी जाती है,

आमंत्रित की जाती है, 

देवी के समान

लेकिन फिर....

नैसर्गिक अवतरण भी उनका

होता है बाधित।

मिलते हैं उन्हें उम्र भर

ताने,उलाहने और बंदिशे....

और एक बोझ की तरह.....

ढोते हैं अभिभावक उन्हें|

मेरी संस्कृतिशीला धरती पर 

मुझे गर्व है और.....

अफसोस भी कि...

यहाँ मातृपूजन, देवीपूजन अथवा

कन्यापूजन के दिवस षड्मास में केवल नौ ही क्यों हैं?

क्यों.....? 

आखिर क्यों नहीं मिलता.....

इन दिवसों को.....

वर्ष पर्यन्त का सीमा विस्तार......


हेमा तिवारी भट्ट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

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