रविवार, 8 मई 2022

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हस्ताक्षर की ओर से विश्व मातृ दिवस की पूर्व संध्या शनिवार 07 मई 2022 को आयोजित काव्य-गोष्ठी में अध्यक्ष अशोक विश्नोई , मुख्य अतिथि वीरेंद्र सिंह बृजवासी, विशिष्ट अतिथि सविता लाल, डॉ अजय अनुपम, ओंकार सिंह विवेक ,योगेंद्र वर्मा व्योम, मुजाहिद फराज, जिया जमीर, मनोज मनु ,संचालक राजीव प्रखर,----- हेमा तिवारी भट्ट, मोनिका मासूम, निवेदिता सक्सेना, डॉ ममता सिंह ,आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ, शिवम वर्मा और प्रशांत मिश्र द्वारा प्रस्तुत की गईं रचनाएं -----


जाड़ों की गुनगुनी धूप

ज्येष्ठ की गर्मी में शीतल हवा

सावन में भीनी भीनी फुहार

संस्कृति की आदर्श

आशाओं की उत्कर्ष

मान - सम्मान से भरपूर

कुरीतियों से बहुत दूर

संस्कृति की वृहद आकार

आंखों में पढ़ने को अखबार

सेवा भाव में एक मिसाल

खुली खिड़की सा दिल

इरादों में बरगद

संस्कारों में बेमिसाल

श्रेष्ठता में सर्वश्रेष्ठ

आशीषों की पोटली

कर्तव्यनिष्ठ प्रतिमा ।

उधड़े रिश्तों की तुरपाई

करती है माँ ,

शबरी की तरह मीठे

बेर खिलाती है माँ ,

अनोखी निराली

होती है माँ ।।


✍️अशोक विश्नोई

मुरादाबाद,उत्तर प्रदेश, भारत

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मुझको पहला कौर खिलाया,

माँ       के       हाथों        ने,

झूला  बन  के  खूब  झुलाया,

माँ        के       हाथों       ने।

      

मालिश कर मुझेकोनहलाया,

माँ       के        हाथों       ने,

रेशम   का  झबला  पहनाया,

माँ        के        हाथों      ने।


हाथ थाम चलना सिखलाया,

माँ         के        हाथों     ने,

काला  टीका   रोज़  लगाया,

माँ         के        हाथों     ने।


पहला  अक्षर  ज्ञान   कराया,

माँ          के       हाथों     ने,

ग़लती का  एहसास  कराया,

माँ          के       हाथों     ने।


थपकी   देकर  मुझे  सुलाया,

माँ          के       हाथों      ने,

स्वयं   गुदगुदा  मुझे   उठाया,

माँ          के       हाथों     ने।


गिरने  पर  झट  मुझे  उठाया,

माँ           के       हाथों     ने,

अश्रु   पौंछकर  गले  लगाया,

माँ           के       हाथों     ने।


बीमारी    में   सर   सहलाया,

माँ          के       हाथों      ने,

खांसी  का  सीरप  पिलवाया,

माँ          के       हाथों      ने।


मेरे  मन   का   भोग   बनाया,

माँ          के       हाथों      ने,

ईश्वर   को    प्रसाद    चढ़ाया,

माँ           के       हाथों     ने।

       

✍️ वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर - 9719275453

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माँ एक ऐसा भाव है 

जो सहस्त्रों धाराओं से फूटता है

 उसकी ममता के रोम रोम में बसता 

और खिलखिलाता है …..

यही वो आँचल है…..

जो क़भी स्तनों में दूध बनकर उतरता है और

कभी अपने स्पर्श से सहलाता दुलारता है 

यही वो भरोसा है….

जो बचपन की किलकारियों में गूंजता और मुस्कराता है 

यही वो संबल है……

जो बचपन को ज़िन्दगी के उबड़खाबड़ पगडंडियों पर आगे बढ़ना सिखाता है…

माँ एक भाव एक आँचल एक भरोसा है 

एक संबल है एक आधार है एक शाश्वता है 

जो सृष्टि के आदि से अन्त तक 

सरस बहता रहता है । 

✍️ सरिता लाल

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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शुभ संकल्पित साधुवाद है

वह शुचिता का शंखनाद है

करुणा, कृपा,दया से दीपित

मां परमेश्वर का प्रसाद है।।

अमृत का अविकल्प स्वाद है

ममता का मधुमय निनाद है 

वह पावन प्रबोध जीवन का

मां परमेश्वर का प्रसाद है।।


✍️ डॉ अजय अनुपम

 मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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डगर का  ज्ञान होता है अगर माँ साथ होती है,

सफ़र  आसान होता है अगर माँ साथ होती है।

कभी मेरा जगत में बाल बाँका हो नहीं सकता,

सदा  यह भान होता है अगर माँ साथ होती है।

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दूर   सारे   अलम   और   सदमात  हैं,

माँ  है  तो  ख़ुशनुमा  घर के हालात हैं।


दिल को  सब  ठेस  उसके  लगाते  रहे,

ये न  सोचा  कि  माँ के भी जज़्बात हैं।


दुख  ही दुख  वो उठाती है सबके लिए,

माँ के हिस्से में कब सुख के लमहात हैं।


छोड़  भी आ  तू अब लाल  परदेस को,

मुंतज़िर  माँ  की  आँखें ये दिन-रात हैं।


मैं जो  महफ़ूज़ हूँ  हर बला से 'विवेक',

ये तो  माँ की  दुआओं  के असरात हैं।

  

✍️ओंकार सिंह विवेक

रामपुर, उत्तर प्रदेश, भारत

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नतमस्तक हो गिर पड़ी, मज़हब की दीवार।

आया मेरे सामने, जब माॅं का क़िरदार।।

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फिर नारों के शोर में, बहुत दिनों के बाद।

मातृ-दिवस पर आ गयी, बूढ़ी माॅं की याद।।

******

क्या तीरथ की कामना, कैसी धन की आस।

जब बैठी हो प्रेम से, अम्मा मेरे पास।।

*****

चहकी है फिर कोकिला, मिलकर मेरे साथ।

दुनिया वालो अब नहीं, कहना मुझे अनाथ।।

******

चलते-चलते जब मिले, जीवन-पथ पर जाम।

आया तेरी छाॅंव में, माॅं हमको आराम।।

******

दाना चुगते देख कर, तुमको अरसे बाद।

प्यारी चीं-चीं आ गयी, हमको अम्मा याद।।

******

सबको ख़ुशबू बाॅंट कर, खुद झेले जो शूल।

माॅं है घर-परिवार की, बगिया का वह फूल।।


✍️ राजीव 'प्रखर'

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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किसको चिन्ता किस हालत में

कैसी है अब माँ


सूनी आँखों में पलती हैं

धुंधली आशाएँ

हावी होती गईं फ़र्ज़ पर

नित्य व्यस्तताएँ

जैसे खालीपन काग़ज़ का

वैसी है अब माँ


नाप-नापकर अंगुल-अंगुल

जिनको बड़ा किया

डूब गए वे सुविधाओं में

सब कुछ छोड़ दिया

ओढ़े-पहने बस सन्नाटा

ऐसी है अब माँ


फ़र्ज़ निभाती रही उम्र-भर

बस पीड़ा भोगी

हाथ-पैर जब शिथिल हुए तो

हुई अनुपयोगी

धूल चढ़ी सरकारी फाइल

जैसी है अब माँ


✍️ योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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मेरी प्यारी मां ने मुझको, जीवन का उपहार दिया।

जाग जाग कर रात रात भर ,ममता और दुलार दिया ।।


कितने दुख सह कर भी उसने, हर  मुश्किल में साथ दिया। 

मेरे सपने अपने माने,कर सबको साकार दिया ।।


मेरे हँसने औ रोने पर , वो कितना बलिहार हुई।

मेरी इक किलकारी पर ही, अपना सब सुख वार दिया ।।


खून पिलाकर पाला पोसा , मुझको सदा दुलार दिया। 

सीने पर पत्थर रख कर फिर ,एक नया संसार दिया ।।


मेरे जन्मों के तप का ही शुभ फल है तेरी 'ममता'।

मुझको है वरदान सरीखा, माँ तूने जो प्यार दिया।।


✍️ डाॅ ममता सिंह 

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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मैं जब कुछ भी नहीं था

मुझे एक हैसियत उसने आता की

उसी की लोरियाँ सुन कर मैं सोया

उसी के मीठे नग़मों ने किया बेदार मुझ को,

उसी की गोद में पल कर

मैं अपने आप को समझा

ज़माने का चलन जाना

उसी ने रंग दुनिया के बताये

हैं कितने रूप इस के सब दिखाए 

कई दुख ओढ़ कर उसने ख़ुशी मुझ पर निछावर की

दुआओं से उसी की मैं 

घना एक पेड़ बन कर अब खड़ा हूँ

मेरी शाखें,

मेरी सब कोंपलें शादाब

ख़ुदा ने जिस क़दर इन'आम से मुझ को नवाज़ा

“मेरी माँ”

उन में सब से बेश क़ीमत

सब से दिलकश एक तोहफा है

बताऊं क्या

कि वह मेरे लिए क्या है

मेरी तारीक रातों का उजाला है,

मेरे मासूम बच्चों का खिलौना है,

वह बूढ़ी हो के भी मेरा सहारा है,

मेरी दुनिया का एक रौशन सितारा है

ख़ुदा रक्खे।


✍️ डा. मुजाहिद "फराज़"

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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मां का साथ

सर्दी में लिहाफ ।

मां का प्यार 

गर्मी में फुहार।

मां का सिंगार

पापा का व्यवहार।

मां का संसार 

अपना परिवार।

मां की पहचान 

बेटों के नाम।

मां की अंगूठियां 

खिल खिलाती बेटियां।

कोई उदास

 मां का उपवास ।

 बच्चों की खुश हाली

 मां की दीवाली।

मां का क्रोध 

सारा घर खामोश।

मां मुस्कुराई 

 रिश्तों को तुरपाई।

मां की अवहेलना

ताउम्र दुख झेलना।

अच्छी आदत 

 मां की अदालत ।

पापा का आंगन 

 मां के कंगन।

मां का हाथ

नहीं डर की कोई बात।

मां की आंखे 

सब पढ़ ले जब झांके ।

मां की प्रार्थना 

घर आए कोई आंच न।

मां की आदत 

प्रभु की इवादत ।

मां का जीवन 

सर्वस्व समर्पण ,सर्वस्व समर्पण,सर्वस्व समर्पण।।


✍️ निवेदिता सक्सेना

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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माँ का दामन खजाना दुआ का,

माँ के क़दमों में नेअमत है सारी,,

क़र्ज़  इस का   चुका ना   सकेंगे,

जिंदगी  भी  फ़ना  करके  सारी,,


बात  कोई  ज़रा  आ पड़े  तो,

ढाल बन जाए औलाद की वो,

जितनी नाज़ुक है ममतामयी है,

बन भी जाती है फ़ौलाद सी वो,,


फिर ज़माने की ताक़त ही क्या है,

माँ खुदाई  पे   पड़  जाए  भारी,,

              माँ का दामन खजाना..


 साया  होते  हुए सर पे माँ  का,

 जो नहीं जानते माँ की खिदमत,

 जानिए  उनसे  रूठी   हुई   है,

 साथ रहते हुए उनकी किस्मत,


 देखने  में   लगे  ना   भले  ही,

 बेसुकूँ  उम्र   रहते   हैं   सारी,,

            माँ का दामन सजाना...


सब्र कितना दिया माँ को रब ने,

काश  होती  ख़बर  आदमी को,

जिसकी क़ुव्वत के मद्देनजर ही,

माँ का रुतबा मिला है ज़मीं को,,


अब न ग़म की गुज़ारे ये घड़ियां,

जैसे  पहले   कभी   हों   गुजारी,,

              माँ का दामन खजाना..


अपनी ममतामयी माँ के  सदके,

आओ एक शाम अर्पित करें हम,

जिनसे अस्तित्व अपना जुड़ा है,

उनको यह शाम अर्पित करें हम,,


यूं तो क्या उनको हम दे सकेंगे,

जिनके आगे है दुनिया भिखारी,,

माँ का दामन खजाना दुआ का,

माँ के कदमों में नेअमत है सारी.,,


 ✍️ मनोज वर्मा 'मनु'

 मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

  मोबाइल फोन नम्बर- 6397093523

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मां पर कुछ लिखना है

क़लम उठाया

सोचा क्या लिखना है

लिखने का आसान तरीक़ा

यह होता है

उपमा देकर समझा देना


ममता को क्या उपमा दूं मैं

कौन सी शय इस जज़्बे को

आकार करेगी


लोरी के शब्दों को 

और गुनगुनाहट को

कौन से गीत से तोलूं


मां की गोद को दुनिया भर की 

किस नर्मी और गर्माहट से

मैं ताबीर करूं


मां की थपकी जैसी 

चोट न लगने वाली 

मां की डांट के जैसी 

दुख नहीं देने वाली

याद को कौन सी याद के साथ 

मिलाऊं


मां की हंसी को 

कौन से फूल के जैसा लिक्खूं

और आंसू को 

दिल पिघलाने वाली

किस पीड़ा से याद करूं


मां के चेहरे और हाथों की

सिकुड़न जैसी 

कौन सी सुंदर शय है

मां की तन्हाई सी 

कौन सी तन्हाई है


कितना मुश्किल काम है 

यह सब लिखना

छोड़ो

प्रेम गीत ही लिखता हूं मैं


✍️ ज़िया ज़मीर

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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मक्खन,पंख,रूई-सा कोमल,

है माँ का एहसास।

आक्सीजन वायु में जैसे,

रिश्तों में वह खास।

दो रोटी के चक्कर बाँटे,

सबको मजबूरी,

यों रहते सब आस पास में,

फिर भी है दूरी।

मीलों भी माँ रहे दूर पर,

हरदम दिल के पास।

मक्खन,पंख...


मुस्कानों का पाउडर सूखा

लेता सोख नमी,

करते दावा हम हँस हंँसकर,

कोई नहीं कमी,

माँ ढूँढ लाती पर कैसे 

कोने छुपी भड़ास।

मक्खन,पंख......


बच्चों के दिल रहती चाहत,

हमजोली हो माँ।

हर कोई डांटे उसको कहकर,

तुम भोली हो माँ,

पर मुश्किल में वही बचाती

उसके नुस्खे खास।

मक्खन,पंख....


नन्हें पौधे उसने सींचे

दे के अपना रक्त।

कोमलांगी चट्टान बन गयी,

बीता मुश्किल वक्त।

देखा सख्त जड़ों के बल पर

पल्लव में उल्लास।

मक्खन, पंख......


✍️ हेमा तिवारी भट्ट

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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हर खुशी को वो मेरे घर का पता देती है

माँ ग़मों को मेरी राहों से हटा देती है


चूम लेती है वह  जिस वक़्त मेरे माथे को 

हर बुरे साये को मां धूल चटा देती है


माँ का आँचल हो तो बीमारियां सब दूर रहें

दूध के साथ वो बच्चों को शिफ़ा देती है 


माँ की ममता को तरसते हैं फरिश्ते भी सदा 

माँ विधाता को भी अवतार नया देती है


वो सिखा देती है "मासूम" सबक़ जीवन का

हाथ बच्चे पे कभी मां जो उठा देती है


✍️ मोनिका "मासूम"

उत्तर प्रदेश, भारत

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माँ तेरी वंदना में..

मैं शीश वंदन क्या करूँ,

जीवन अर्पण हैं तुम्हें

और अर्पण क्या करूँ,

मिला जो कुछ मुझे

वो है दान तुम्हारा...

खाली हथेली, मैं निःशब्द

तेरा गुणगान क्या करूँ

जीवन तेरा तुझको अर्पण 

माँ 

मैं और अर्पण क्या करूँ...

✍️  प्रशान्त मिश्र

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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वो है मेरी धड़कन  वही मेरी जाँ है ़़़

मेरी माँ का आँचल मेरा आसमां है ़़़

 

दुआओं में उसकी खुदा का निशाँ है

 लगे वाणी  उसकी के जैसे अजाँ है


चरण जिसके चूमे ख़ुदा की वो जन्नत,

नहीं और कोई वो मेरी माँ है।। 


है वेदों की महिमा वही तो कुराँ है ़़़

कंही पर है सीता कंही फातिमा है ़़़


उसके ही कारण ये सारा जहाँ है ़़़

निर्मल है गंगा सी  पावन धरा है ़़़


काँटों के वन में गुलाबों सी है जो, 

नहीं और कोई वो मेरी माँ है।। 


दिन में ना सोये वो रातों को जागे ़़़

खिलाने को भोजन मेरे पीछे भागे ़़़


कितनी है शीतल वो कितनी सरल है ़़

 ममता का जिसके हृदय में तरल है ़़़


उस जैसा दूजा उदाहरण कहाँ है, 

नहीं और कोई वो मेरी माँ है..। 


✍️ शिवम वर्मा

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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केवल शब्द नही है ‘माँ’ बल्कि बालक का पूरा संसार है।

जिससे उत्पन्न हुआ ये जग सारा ‘माँ’ ऐसा अलौकिक अवतार है।

जब -जब धरती पर आए प्रभु तो उन्होंने भी माँ के है पाँव पखारे

उसकी गोद मे खेले है, स्वयं जगदीश्वर जो स्वयं जगत के पालनहार है।

माँ न होती तो जीवन कहाँ से पाते, उसकी ममता की छाया बिना कैसे पल पाते।

ममता और त्याग की मूरत है माँ, धरती पर प्रथम गुरु की सूरत है माँ।

जो जीवन जिये वो ‘श्रेष्ठ’ हो कैसे, हमको बताती हमारी है माँ।

प्रेम में ही नही दण्ड में भी दिए ‘माँ’ के वरदान है।

अगर कैकयी न भेजती वन राम को, तो क्या कोई कहता भगवन राम को।

केवल जीवनदाता नही अपितु भाग्यविधाता भी है माँ ।

जो न पूजे माँ को उसे धिक्कार, उसका जीवन जीना ही बेकार है।

त्रिलोक की वैभव सम्पदाओं से भी बढ़कर ‘माँ’ का प्यार है।


✍️ आवरण अग्रवाल “श्रेष्ठ”

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत







शनिवार, 7 मई 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का व्यंग्य ---आवारा कुत्तों की समस्या


 आपने कभी आवारा कुत्तों को ध्यान से देखा है ? यह बिना मतलब के इधर-उधर घूमते रहते हैं । न मंजिल का पता ,न रास्तों का ज्ञान । जिधर भाग्य ले गया ,उधर चल दिए । न चलने का सलीका है ,न बैठने की सभ्यता है । इनके पास कोई जीवन दर्शन है, इसकी तो आशा ही नहीं की जा सकती । इसके विपरीत पालतू कुत्तों को देखिए ! घर से निकलते हैं तो नहा-धोकर बाल काढ़ कर कितने सलीके से सड़क पर उतरते हैं ! देखो तो दूर से पता चल जाता है कि कोई पालतू कुत्ता आ रहा है । ऐसा नहीं कि केवल गले में पट्टा और हाथ में पकड़ी हुई चेन ही इनकी पहचान है । वास्तव में अगर सभ्यता है ,तो केवल पालतू कुत्तों में ही है । वरना आवारा कुत्तों ने तो सभ्यता का नाम-निशान मिटा देने का ही मानो संकल्प ले रखा है ।

         आवारा कुत्ते एक समस्या के रूप में सभी जगह हैं। क्या गाँव ,क्या शहर ,क्या गली-मोहल्ले और क्या सड़क ! जिधर से गुजर जाओ ,यह  दिखाई पड़ जाते हैं । अच्छा-भला आदमी प्रसन्नचित्त होकर कहीं जा रहा है और देखते ही देखते उदासी और भय से ग्रस्त हो जाता है ।

             आमतौर पर आवारा कुत्ते झुंड में मिलते हैं । इकट्ठे होकर चार-पाँच आवारा कुत्ते टहलना शुरू करते हैं । इन्हें कोई फिक्र नहीं होती । दुनिया में सबसे ज्यादा मस्ती इनको ही छाती है । चाहे जिधर को मुड़ गए।  जिसको देखा ,मुँह फैला लिया। दाँत दिखाने लगे और वह बेचारा इस सोच में पड़ जाता है कि इन से अपनी जान कैसे बचाई जाए ?

            कुछ आवारा कुत्ते जरूरत से ज्यादा आवारा होते हैं । यह जब देखो तब मनचले स्वभाव के साथ विचरण करते नजर आते हैं। इनको देखकर आदमी की हालत पतली हो जाती है । कई बार यह लोगों को दौड़ा देते हैं लेकिन आदमी की रफ्तार से आवारा कुत्ते की रफ्तार ज्यादा तेज होती है । यह छलांग लगाकर उसे पकड़ लेते हैं। कई बार काट खाते हैं । 

       आवारा कुत्ते हमेशा कटखने नहीं होते । कुछ बेचारे इतने सीधे-साधे होते हैं कि बच्चे तक उन्हें कंकड़-पत्थर मार देते हैं और वह रोते हुए चले जाते हैं । कुछ आवारा कुत्तों को लोग प्रेमवश भोजन भी कराते हैं । कुछ लोग बिस्कुट खिलाते हैं। अपनी-अपनी श्रद्धा के अनुसार लोग आवारा कुत्तों से प्रेम करते हैं लेकिन किसी के अंदर यह हिम्मत नहीं आती है कि वह आवारा कुत्ते को गोद में उठाकर अपने घर पर ले जाकर पाल ले । वह पंद्रह मिनट के लिए आवारा कुत्ते से प्रेम करेंगे और बाकी पौने चौबीस घंटे आम जनता को परेशान करने के लिए आवारा छोड़ देंगे ।

        यह तो मानना पड़ेगा कि पालतू कुत्ता शरीफ होता है हालांकि जिन घरों में कुत्ता पाला जाता है ,उसके गेट के भीतर कोई आदमी घुसना पसंद नहीं पड़ता क्योंकि मालिक से पहले कुत्ता अतिथि की आवभगत के लिए आकर खड़ा हो जाता है। यद्यपि मालिक का कहना यही रहता है कि हमारा कुत्ता काटेगा नहीं । लेकिन कुत्ता तो कुत्ता है । अगर काट ले तो कोई क्या कर सकता है ? मालिक को नहीं काटेगा , इसके मायने यह नहीं है कि वह किसी को नहीं काटेगा । जब पालतू कुत्ता किसी मेहमान को काट लेता है ,तब भी मालिकों के पास बड़ा सुंदर-सा जवाब रहता है कि हमारे कुत्ते के काटने से घबराने की कोई बात नहीं है । इससे कोई खतरा नहीं है । 

            मगर समस्या यह है कि पालतू कुत्तों से तो बचा जा सकता है मगर आवारा कुत्तों से कैसे बचा जाए ? क्या आदमी सड़कों पर निकलना बंद कर दे या गलियों-मोहल्लों में न जाए ?

                   कई बार लोग दो-चार का झुंड बनाकर उन गलियों से जाते हैं जहां आवारा कुत्तों के पाए जाने की संभावना अधिक होती है । लेकिन यह भी समस्या का कोई समाधान नहीं है । कई बार आवारा कुत्ता जब दो-तीन लोगों को एक साथ देखता है तो और भी ज्यादा खुश हो जाता है तथा सोचता है कि आज थोक में काटने के लिए लोग मिल गए । वह इकट्ठा दो-तीन को काट लेता है ।

         नगरपालिका वाले अगर चाहें तो कुत्तों को पकड़कर एक "कुत्ता जेल" नामक स्थान पर ले जाकर बंद कर सकते हैं । कुत्ता-जेल में कुत्तों को खाना मुफ्त दिया जाता रहेगा लेकिन फिर वह किसी मनुष्य को नहीं काट पाएंगे । इस तरह आवारा कुत्तों की समस्या पूरी तरह हल हो जाएगी । दुर्भाग्य से न कुत्ता-जेल बन पाती है और न आवारा कुत्तों को पकड़ने की योजना क्रियान्वित हो पाती है । आवारा कुत्ते गलियों में आवारागर्दी करते हुए टहलते रहते हैं और शरीफ आदमी अपने घरों में बंद रहने के लिए मजबूर हो जाता है ।

✍️  रवि प्रकाश 

बाजार सर्राफा 

रामपुर (उत्तर प्रदेश)

 मोबाइल 99976 15451

मुरादाबाद के साहित्यकार माहेश्वर तिवारी की दो ग़ज़लें ------

 


(1)

हाथ अपने जला के बैठ गए 

आग सारी दबा के बैठ गए 


एक दीवार की तरह रिश्ते 

शाम तक भरभरा के बैठ गए 


आ गए हम जो खोलने को भरम 

लोग पर्दा गिरा के बैठ गए 


एक गूँगी दुकान पर हम-तुम 

शब्द अपने सजा के बैठ गए


हम हवा बन के बाँटने को थे 

लोग खुशबू चुरा के बैठ गए 

(2)

खिलखिलाहट उगा गईं शामें 

खुशबुओं में नहा गईं शामें 


फड़फड़ाहट बनीं परिंदों की 

धड़कनों में समा गईं शामें 


भीड़ ,रफ्तार ,गहमागहमी को 

चुप्पियों से थाह गईं शामें 


एक लट्ठे के थान से फैले 

दिन को आकार तहा गईं शामें 


फूल, चिड़िया, हवा, उदासी से 

एक चेहरा बना गईं शामें 


✍️ माहेश्वर तिवारी 

नवीन नगर, कांठ रोड

मोबाइल-9456689998

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मक्खन मुरादाबादी का गीत ----दंगा कैसे भड़का....


वाक् युद्ध में लगा रहे सब

अपना-अपना तड़का।

पता झूठ को भी है सच का

दंगा कैसे भड़का।


हमसे कथा कहानी में यह

कहा करे थी दादी।

सच होता है शांत भाव का

और झूठ उन्मादी।।

गलियों में उत्पात मचाता

फिरता किसका लड़का ।


मुश्किल से तो विदा हुआ है

भेदभाव का लफड़ा।

पहुँच रही निर्धन घर रोटी

इसका सदमा तगड़ा।।

डाल-डाल तू पात-पात मैं

ध्यान किसे है जड़ का।


आते हैं,सद्भाव बचाने

चले छतों से पत्थर।

इनमें भी अवसर ही ढ़ूँढे

राजनीति की चद्दर।।

उल्लू सीधा हो सबकी ही

अपनी-अपनी फड़ का।


✍️ डॉ. मक्खन मुरादाबादी

 झ-28, नवीन नगर

 काँठ रोड, मुरादाबाद

बातचीत: 9319086769

शुक्रवार, 6 मई 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में आगरा निवासी) ए टी ज़ाकिर की नज़्म --मुजरिम


मेरे किरदार कॊ मगरूर कहने वाले,

मेरे शेरों की ज़ुबां तल्ख़ बताने वाले।

आ, मेरे दिल की ज़रा सैर करा दूं तुझको,

अपने ज़ख्मों के बागी़चे से मिला दूं तुझको।


मेरे माज़ी पे दगे दाग़ दर्द करते हैं,

दिल के नासूर हर इक सांस खूं उगलते हैं।

इसलिए शेर मिरे तल्ख़ ज़ुबां होते हैं,

उनके हर्फों में मिरे दर्द बयां होते हैं।


मैंने बचपन से ज़‌माने की है नफ़रत को जिया,

सिर्फ तौहीन सही और हिक़ारत को पिया।

इसलिए जब भी दिल के वलवले उबलते हैं,

कलम की नोंक से शोले-ग़िले निकलते हैं।


जिगर की सारी तल्ख़ी शेरों में उतरती है,

दिल की हर टीस, मेरी नज़्म में उभरती है।

उरियां जज़बातों को मैं पैरहन पहनाता नहीं,

साफ़ कहता हूं सच को मैं झुठलाता नहीं।


इसलिए बात मिरी तल़्ख नज़र आती है,

मिरे क़िरदार पे उंगली उठाई जाती है।

मिरा हर तंज़ उन्हें आईना दिखाता है,

जो हैं बदकार मगर सभ्य बने रहते हैं।


मेरे जज़वात के तेज़ाब से झुलसे चेहरे,

इसलिए जल के मुझे तल्ख़ ज़ुबां कहते हैं।


✍️ ए टी ज़ाकिर

आगरा

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार मंसूर उस्मानी की ग़ज़ल ...वो भी नयी हवाओं के जंगल में खो गया, बच्चा जो होनहार था एक खानदान में


सच्चाई   क्या   मिलेगी   हमारे   बयान   में

लिखते हैं हम कसीदे सितमगर की शान में


इन्साफ मेहरबानी  मोहब्बत  वफ़ा  ख़ुलूस

मिल जाएं तो बताना मिले किस  दूकान  में


मजलिस से उठ के चल दिए मुंसिफ लिबास लोग

क़ातिल का ज़िक्र  आया  जहाँ  दास्तान  में


वो भी नयी हवाओं के  जंगल  में  खो  गया

बच्चा  जो  होनहार  था  एक  खानदान  में


मंसूर   हर   क़दम   पे   बुराई   के  बावजूद

अच्छाइयाँ   भी   खूब   हैं   हिन्दोस्तान   में।


✍️ मंसूर उस्मानी

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

गुरुवार, 5 मई 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की लघुकथा --- नाक


बहुत शानदार व्यवस्था थी।पंडाल की भव्यता, फूलों की सजावट,रंग बिरंगी लाइट,दिल को छूने वाला गीत संगीत,सब एक से बढ़कर एक। खाने में भी, हर क्षेत्र के व्यंजन। कस्बे में इतना भव्य आयोजन,पहले कभी, शायद ही हुआ हो।

    अवसर था,प्राइमरी में अध्यापक,राजवीर की बेटी की शादी का।  अपनी हैसियत से कहीं ज्यादा खर्च करके,उसने ये व्यवस्था की थी।

 "बधाई हो सर, आपने तो पूरे कस्बे की नाक ऊंची कर दी।"रामसिंह ने हंसते हुए कहा।

 "सब ईश्वर की कृपा है।"राजवीर ने अपने चेहरे पर बनावटी मुस्कान बिखेरने की कोशिश की। उसके मन में यही उधेड़ बुन चल रही थी कि झूठी शान के चक्कर में,उसने जो उधार लिया उसे कैसे लौटा पायेंगा। कहीं ऐसा ना हो उसकी खुद की नाक कट जाए।

✍️ डॉ.पुनीत कुमार

T 2 /  505 आकाश रेजीडेंसी

मुरादाबाद 244001

M 9837189600

सोमवार, 2 मई 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में मुम्बई निवासी ) प्रदीप गुप्ता की कविता ---अब तो शहरों में समा जाते हैं


बड़े  शहरों में समा गए हैं 

न जाने कितने अधूरे सपने 

हमारे महानगर  लील चुके  हैं  

गाँव और क़स्बे कितने 


गाँव क़स्बों के ज़्यादातर माँ बाप

बच्चों में बड़े बड़े सपने जगाते हैं 

अपनी पेंशन , बचत दांव पे रख के 

उन्हें उच्च तकनीकी  शिक्षा दिलाते हैं 

उनके  कौशल का इस्तेमाल 

अधिकांशतः गाँव क़स्बे में नहीं होता 

इसलिए वहाँ का प्रतिभाशाली युवा 

अब अपने पुश्तेनी घर में नहीं रहता 


उसका लक्ष्य बड़ी नौकरी पाना महानगरों में 

वहीं सच हो सकते हैं माँ बाप के सपने 

इस तरह महानगर  लील रहे हैं  

गाँव और क़स्बे कितने 


तभी तो गाँव क़स्बों के 

मध्यम वर्गीय घरों में या तो अब ताले है 

या फिर उन घरों में बच गए 

इक्का दुक्का बड़ी उम्र के  रखवाले हैं 

यही नहीं वहाँ की  पूरी अर्थ-व्यवस्था 

धीरे धीरे सिमट रही है 

दुकानों , व्यवसाय और खेतों में 

कार्यरत लोगों की संख्या घट रही है . 


यहाँ का दुःख दर्द समझने को 

बचे हैं बहुत कम अपने

हमारे महानगर  लील चुके  हैं  

गाँव और क़स्बे कितने  


शहरों में आकर जो युवा बस गए हैं 

उनका अलग  बुरा हाल है 

वे अपनी जड़ों से कट  चुके हैं 

नए परिवेश में जमना  बड़ा सवाल है 

उनके दिन ऑफ़िस में और सुबह शाम 

भीड़ में सफ़र करते हुए कट जाते हैं 

शहर की  संस्कृति से जुड़ाव चुनौती है 

यहाँ आ के  सभी रिश्ते सिमट जाते हैं 


पैसे से बेशक सम्पन्न हो गए हैं 

मगर पीछे  छूट गए हैं  बहुत से रिश्ते अपने 

हमारे महानगर  लील चुके  हैं  

गाँव और क़स्बे कितने

✍️ प्रदीप गुप्ता, मुम्बई


वाट्स एप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से माह के प्रत्येक रविवार को वाट्सएप कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का आयोजन किया जाता है । रविवार एक मई 2022 को आयोजित 302 वें वाट्स एप कविसम्मेलन एवं मुशायरे में शामिल साहित्यकारों अनुराग रोहिला,डॉ पुनीत कुमार, राम किशोर वर्मा, रवि प्रकाश, दीपक गोस्वामी चिराग, त्यागी अशोका कृष्णम्, श्रीकृष्ण शुक्ल,राजीव प्रखर, अशोक विद्रोही,इंदु रानी, दुष्यन्त कुमार और रेखा रानी की रचनाएं उन्हीं की हस्तलिपि में .....













 

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार शशि त्यागी की रचना ---- धरा पे सब कुछ धरा रहेगा हंस तेरा उड़ जाएगा


 बस इतना तू जान ले प्राणी 

संग न कुछ भी जाएगा

धरा पे सब कुछ धरा रहेगा 

हंस तेरा उड़ जाएगा ।

नाव पुरानी जरजर काया 

कब तक तू बह पाएगा 

बाहर भीतर बहे है लावा

कब तक तू सह पाएगा

इस दुनिया के छोड़ के धंधे

राम नाम गुन गाए जा

धरा पे सब कुछ धरा रहेगा

हंस  तेरा उड़ जाएगा

उगता सूरज बहती नदिया

उपवन रोज सजाएगा

मगन फकीर श्वास हठीला

निशिदिन झांझ बजाएगा

मोह माया को छोड़ दे बंदे

राम नाम गुन गाए जा

धरा पे सब कुछ धरा रहेगा

हंस तेरा उड़ जाएगा

✍️ शशि त्यागी

अमरोहा

रविवार, 1 मई 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार के डी शर्मा (कृष्ण दयाल शर्मा ) की ग्यारह रचनाएं उन्हीं की हस्तलिपि में


 











मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद सम्भल ) निवासी साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम् के दोहे


उखड़ी-उखड़ी साँस है, सपने चकनाचूर।

भारी बोझा पीठ पर, लाद चला मजदूर।।


भूख प्यास के गाँव में, देख रहा मधुमास।

मजदूरों की पीर का, है किसको आभास।।


तपती-जलती रेत में, रखे जमाकर पाँव।

मेहनतकश की आंख में, उम्मीदों का गाँव।।


मालिक की दुत्कार को, लिखा भाग्य में मान।

धारण की मजदूर ने, होठों पर मुस्कान।।


✍️ त्यागी अशोका कृष्णम्

कुरकावली, संभल

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिंदी साहित्य संगम की ओर से रविवार एक मई 2022 को मासिक काव्य-गोष्ठी का आयोजन

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिंदी साहित्य संगम की ओर से मासिक काव्य-गोष्ठी का आयोजन रविवार एक मई 2022 को आकांक्षा विद्यापीठ मिलन विहार में किया गया। 

       राजीव प्रखर द्वारा प्रस्तुत माॅं शारदे की वंदना व संचालन से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए रामदत्त द्विवेदी ने कहा ---

किस्मत से अपने आप हम मजबूर हो गए।

 अपने ही खेत में हैं हम, मजदूर हो गए।

मुख्य अतिथि विकास मुरादाबादी ने सामाजिक परिस्थिति का चित्र खींचते हुए कहा - 

हिन्दू व मुसलमान क्यों आपस में लड़ रहे,

 क्यों अपने- अपने धर्म के कसीदे पढ़ रहे।

 भरम त्याग दें, ये सारे धर्म एक ही तो हैं, 

क्यों अपने- अपने धर्म के झण्डे पकड़ रहे।।

    विशिष्ट अतिथि के रुप में वीरेन्द्र ब्रजवासी ने ब्रज की लोक संस्कृति को अपने सुंदर गीत में इस प्रकार अभिव्यक्त किया -

 तन बैरागी मन बैरागी, 

जीवन का हर क्षण बैरागी।

विशिष्ट अतिथि के रुप में नकुल त्यागी ने मजदूर दिवस पर पंक्तियां प्रस्तुत करते हुए कहा - 

मेहनत जिसका कर्म है, मेहनत जिसका मीत। 

भूखे पेट सोता नही,  यह स्वाभिमान की जीत।। 

दिन प्रतिदिन बढ़ती बेरोजगारी के सन्दर्भ गीत प्रस्तुत करते हुए डॉ. मनोज रस्तोगी ने कहा - 

बीत गए कितने ही वर्ष हाथों में लिए डिग्रियां। 

कितनी ही बार जलीं आशाओं की अर्थियां।

 नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम की अभिव्यक्ति इस प्रकार थी - 

द्वंद  हर  साँस  का साँस के संग है। 

हो  रही  हर  समय स्वयँ से जंग है।

भूख - बेरोज़गारी  चुभे   दंश - सी, 

ज़िन्दगी  का  ये  कैसा  नया रंग है। 

 रचना-पाठ करते हुए राजीव प्रखर ने कहा - फिर नारों के शोर में, बहुत दिनों के बाद। मातृ-दिवस पर आ गयी, बूढ़ी माॅं की याद।। क्या तीरथ की कामना, कैसी धन की आस। जब बैठी हो प्रेम से, अम्मा मेरे पास।। 

 जितेन्द्र जौली ने अपनी अभिव्यक्ति में कहा - 

चुपके- चुपके खामोशी से, कुछ हम सबसे कहती है।

 नदिया की पावन धारा जब, धीरे- धीरे बहती है।  






::::::प्रस्तुति::::::

राजीव 'प्रखर'

डिप्टी गंज

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

8941912642

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की कविता ---सेल्फी

 


पहले हम हर खास मौके पर

पेशेवर फोटोग्राफर बुलाते थे

यादगार तस्वीरें खिंचवाते थे

फोटोग्राफर बताता था

कैसा मुंह बनाना है

कब मुस्कराना है

कब खिलखिलाना है

कब गंभीरता को ओढ़ना है

कब सादगी को अपनाना है

कब ऊपर देखना है

कब नज़रे झुकाना है

कब तक खड़े रहना है

कब बैठ जाना है

इस तरह हम

अलग अलग तस्वीरें

बनवाते थे

भीतर से चाहें जैसे हो

बाहर से अपने आपको

अच्छा ही दिखाते थे

और शायद इसीलिए

महंगा से महंगा

फोटोग्राफर बुलाते थे

लेकिन अब जमाना 

बदल गया है

हम आत्मनिर्भर हो गए हैं

सेल्फी से काम चलाते हैं

समझ नही पाते हैं

कब क्या करना है

अपने ब्लैक एंड व्हाइट व्यक्तित्व में

कब कौन सा और कितना

रंग भरना है।

✍️ डॉ.पुनीत कुमार

T 2/505 आकाश रेजीडेंसी

मुरादाबाद 244001

M 9837189600

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई के पांच हाइकू


1--लोकतंत्र है

     झूंठ बोलता रह

     यही मंत्र है


2--रिश्ता टूटा है

     गिर गये स्वार्थ में

     साथ छूटा है


3--विचारो ज़रा

     भीड़ में वहां कहीं

     कौन है मरा


4--एक दो तीन

     आचरण सुंदर

     फिर भी दीन


5--हैं आस पास

    तुम्हारी मेरी याद

    क्यों हो उदास


✍️ अशोक विश्नोई

 मुरादाबाद

शनिवार, 30 अप्रैल 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार दुष्यंत बाबा की रचना --करिया रंग


सिपाही पहुंचा ससुराल में, अपने साथी संग

करिया रंग को देखकर, साली  हो  गयी दंग


बात करने से  बच  रही, बदल  रही  थी ढंग

दीदी हमारी गोरी चिठ्ठी, तुम हो काले भुजंग


दिल टूटा दीवान का,  थाना पहुँचा   तत्काल

एसओ साहब भी आ गए, बढ़ता देख बबाल


गुस्सा मत  करो प्यारे, हो जाओ  कुछ  शांत

ठंडा पानी पीकर तुम, सब बतलाओ वृतान्त


लगा बताने दीवान भी, उनपर कर  विश्वास

पहुंचा था ससुराल में, मन में थी कुछ आस


पर मेरी ससुराल  में, मुझ पर कसे गए तंज

साली मुझसे कह गयी, तुम हो काले भुजंग


गर्मी ऐसी भयंकर ,कि सिन्धु दरिया हो गया

दिनभर ड्यूटी करके, मैं भी करिया हो गया


मुंशी तुरंत बोल पड़ा, हो जायेगी हवा टाइट 

दिन की ड्यूटी के बाद, यदि लगा दी  नाईट


कारखास भी बोल पड़ा, खुद में बना महान

राज्य प्रहरी की  नौकरी, होती नही आसान 


हेड मोहर्रिर को  समझो, हर थाने की  दाई

समझा रहा  दिवान को, जैसे हो  बूढ़ी ताई


करिया रंग को  देखकर, मत हो ज्यादा तंग

राधा उन्ही को मिली हैं, जिनके करिया रंग

✍️ दुष्यन्त 'बाबा'

पुलिस लाइन

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद मंडल के चन्दौसी (जनपद सम्भल) निवासी साहित्यकार रमेश अधीर की रचना ---मेरे राम

 


शांति भी है साथ मेरे

अश्रुओं का नीर भी

सृष्टि का आनंद भी है

है जगत की पीर भी

मैं अकेला चल रहा हूँ

भावना की भीड़ में

रह रहा हूँ मस्त हो कर

यातना के नीड़ में

है नहीं मुझको शिक़ायत

अब किसी के काम से

चूँकि नाता जुड़ गया है

आज मेरा राम से !

लोग कहते हैं मुझे मैं

एक कुचला फूल हूँ

दौर के दरपन पे छायी

इक अभागी धूल हूँ

मैं मगर सब अनसुनी कर

मस्त रहता हूँ सदा

पूर्ण है आराम,पर मैं

व्यस्त रहता हूँ सदा

डर नहीं लगता मुझे अब

मौत के पैग़ाम से

चूँकि नाता जुड़ गया है

आज मेरा राम से !!

इस जहाँ से उस जहाँ तक

राम का ही रूप है

राम ही तारण तरण है

राम ही भवकूप है

पूछते हैं लोग मुझसे

राम तेरा कौन है

बोलता हूँ मैं सभी से

आत्मा है, मौन है

हो गया हूँ आज परिचित

आत्मिक आराम से

चूँकि नाता जुड़ गया है

आज मेरा राम से !!!

 ✍️ रमेश 'अधीर'

चन्दौसी, जिला सम्भल

उत्तर प्रदेश, भारत

       

सोमवार, 25 अप्रैल 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में आगरा निवासी ) ए टी ज़ाकिर की कविता ---हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और


हम नींद में कविताएँ सुना रहे थे,

हमेशा की तरह औरतों की हंसी उड़ा रहे थे

कि भगवान जी ने कमरे में आकर हमें जगाया-

ऒर एक चांटा हमारे गाल पे लगाया 

बोले,"गधे ! मेरी बात ध्यान से सुन,

उसे अपने मन में बुन

औरत के बिना मर्द का जीवन अधूरा है,

और तू समझ रहा है कि जीवन आदमी से ही पूरा है

हर आदमी को चौबीसों घंटों

औरत की ज़रूरत होती है

सुबह सोकर उठने से लेकर सारे दिन, रात भर और फिर

सुबह औरत ही तेरे साथ होती है

तुझे औरतों का साथ और बात 

,लगता है बखेड़ा,

अबे ,तू सचमुच में है गधेड़ा !

तुझे विद्या,लक्ष्मी और शांति की कामना होती है,

उषा से संध्या तक फिर निशा

में सपना बनकर वो तेरे पास

होती है.

सुबह उठते ही तू कभी गायत्री, कभी गीता,कभी साधना करता है 

श्रद्धा, पूजा ,आरती और वन्दना के मंत्र जपता है

अपने कर्म के बदले में तू प्रतिष्ठा और कीर्ति चाहता है

और फिर भी  औरत को मज़ाक उड़ाने की चीज़ मानता है

अंधेरे में ज्योति, बुढ़ापे में प्रेम

और युद्धभूमि में वह विजया बनकर तेरे साथ होती है

इस तरह, हर समय, हर जगह, हर आयु में औरत तेरे

पास होती है

मां बेटी ,बहन, पत्नी, प्रेमिका बनकर वो तेरा साथ निभाती है

और अपने आप को देख नाशुक्रे,

वो तुझसे अपनी हंसी

उड़वाती है

हमने कहा,

ठीक है भगवन, पर आपसे एक सवाल है,

क्या आपके यहाँ देवलोक में भी यही हाल है ?

भगवान नेअपना मुकुट हटाकर सिर खुजाया,

और

फुसफुसा कर ये, सच बताया

भय्या ए.टी ज़ाकिर ,

देव लोक में भी हमारी बीबियों का यही हाल है

और मेरे जॆसे हर भगवान की

ज़िन्दगी मुहाल है

अब देख यार,आज सुबह ही

हमारी देवीजी ने बिना चाय- नाश्ते के हमें घर से निकाला हॆ,

और तुझे ठीक करके आने 

का फंदा हमारी गर्दन में डाला है

अब तेरी मरम्मत करके ही हमें देव लोक में वापिस जाना हॆ,

वरना बेटा ,आज चाय- नाश्ता, खाना कुछ नहीं पाना है

✍️ ए टी ज़ाकिर

आगरा

उत्तर प्रदेश, भारत


बुधवार, 20 अप्रैल 2022

मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद सम्भल ) निवासी साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम का आलेख --- गीतों के सम्राट रामावतार त्यागी मानवता के संवाहक


नाम : रामावतार त्यागी, जन्म1935, स्थान : कुरकावली, तहसील संभल, जिला तत्कालीन मुरादाबाद, देहावसान : 12 अप्रैल 1985 नई दिल्ली, शिक्षा: स्नातकोत्तर हिंदी ,दिल्ली विश्वविद्यालय

    नया खून, मैं दिल्ली हूं, आठवां स्वर, गुलाब और बबूल वन, महाकवि कालिदास रचित मेघदूत का काव्य अनुवाद करने वाले, समाधान, चरित्रहीन के पत्र , दिल्ली जो एक शहर था, राम झरोखा ,व्यंग्य स्तंभ और गद्य रचनाएं रचने वाले, समाज, समाज  कल्याण, साप्ताहिक हिंदुस्तान, नवभारत टाइम्स में संपादन कार्य करने वाले, अनेक विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में उनकी रचनाएँ पढ़ाई जाने वाले, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ,हरिवंश राय बच्चन, गोपाल सिंह नेपाली, नरेंद्र शर्मा, शिवमंगल सिंह सुमन, बलवीर सिंह, देवराज दिनेश, वीरेंद्र मिश्र की कवि कुल पीढ़ी के ज्वालयमान नक्षत्र।

खड़ी है बांह फैलाए हुए हर और चट्टानें / गुजरती बिजलियां अपनी कमानें हाथ में ताने/ गजब का एक सन्नाटा कहीं पत्ता नहीं हिलता / किसी कमजोर तिनके का समर्थन तक नहीं मिलता । हो, या जिंदगी और बता तेरा इरादा क्या है अथवा विचारक है ना पंडित हैं ना हम धर्मात्मा कोई, बड़ा कमजोर जो होता वही बस आदमी हैं हम। जैसे सैकड़ों अमर गीतों के रचयिता गीत कवि रामावतार त्यागी के साहित्यिक अवदान के बारे में तो पूरा काव्य जगत मुझसे कहीं बहुत अधिक....बहुत अधिक ही जानता है, पहचानता है और मानता है। संपूर्ण हिंदी साहित्य जगत ने उनके गीतों की विशेष रूप से सराहना करते हुए उनकी प्रतिभा का लोहा भी माना है, किंतु रामावतार त्यागी के भीतर एक दूसरा संसार 'मानवता का संसार' भी रचा बसा हुआ था, जिसमें प्रेम, करुणा, दया ,आंसू से लवरेज जिंदगी के दर्शन होते हैं। उनके भीतर जिंदगी की अठखेलियां भी खूब रची- बसी थी ,जो बच्चों में भी बसती हैं और बड़ों में भी रहती हैं। वह बच्चों में भी खूब रमते थे और बड़ों में भी जमकर जमते थे। बच्चों जैसे उनके मन में उछलते हिरण दौड़ लगाते थे तो कभी रूठ कर बैठ जाते और मान भी जाते थे, जो उनके रूठने का अपना अलग अंदाज था और मानने का तो कोई जवाब ही नहीं। रामावतार त्यागी में ना जाने क्या-क्या तलाशने में लगे रहे काव्य जगत से जुड़े लोग उनके व्यापक और विराट व्यक्तित्व के बारे में शायद दो चार पायदान ही चल पाए हो।

     मैं जो उसी कुल गांव और गोत्र और कुरकावली के उसी खानदान में जन्मा जिसमें  रामावतार त्यागी (ताऊ जी) का अवतरण हुआ। मेरी आयु लगभग 9-10 वर्ष की रही होगी। सन 70 और 80 के दशक में तब ताऊ जी का किसी शादी - विवाह के अवसर पर गांव में आना-जाना हुआ करता था अथवा वह किसी साहित्यिक यात्रा पर जब इधर से निकलते थे चाहे वह मुरादाबाद हो, बदायूं हो, चंदौसी हो,  बरेली या शाहजहांपुर जाते थे तो निश्चित रूप से कुरकावली अवश्य आया करते थे। उनको अपनी जन्मभूमि किसी तीर्थ स्थान की तरह लगती थी। उनके समय के अनेक ख्याति प्राप्त सुकवि उनके साथ कुरकावली आकर दालान पर रात्रि प्रवास कर चुके थे । जाने कितने छपने और छापने वाले महान संपादक और कवि उनके घर की बनी बाजरे की रोटी, देसी घी पड़े साग से खाकर धन्य हो गए । पता नहीं, क्यों मुझे बचपन से ही उनके कवि होने से बेहद लगाव था। उनके अस्तित्व से मैं कुछ ज्यादा ही प्रभावित था । वह जब गांव आकर उठने बैठते, मेरे दादाजी बाबूराम त्यागी जो उन्हीं की उम्र के थे उनके पास आया करते थे तब उनके सभी खानदानी भाई चारों ओर खाटें बिछा कर बैठ जाया करते थे। उनको देखा करते और सुना करते थे। मैं जो बहुत अधिक गाने- बजाने में रुचि रखता था, पिताजी से डरकर किसी कोने में खड़ा होकर उनकी बातें सुना करता था। मुझे याद है कि उस समय 'जिंदगी और तूफान', महावीर अधिकारी जी के उपन्यास पर आधारित फिल्म आ  चुकी थी और उसमें उनके गीत का तहलका पूरे विश्व में मच चुका था तब गांव आने पर उन्होंने सभी को अपने अन्य गीत सुनाने के बाद 'जिंदगी और बता तेरा इरादा क्या है' बहुत मन के साथ सुनाया था। मेरी स्मृतियों में सुरक्षित है जब बहन शारदा की बारात हापुड़ के चमरी गांव से आई थी तो विदाई के समय बारातियों के विशेष अनुरोध पर उन्होंने यूं ही खड़े होकर अपने कुछ गीत सुनाए थे , जिसके बोल कुछ इस प्रकार थे----

 किसी गुमनाम से गांव में पैदा हुए थे हम

 नहीं है याद पर कोई अशुभ शाही महीना था 

रजाई की जगह ओढी पुआलो की भवक हमने

 विरासत में मिला जो कुछ हमारा ही पसीना था

 रामावतार त्यागी जी का व्यक्तित्व छल, प्रपंच, झूठ, पाखंड, हानि- लाभ, जीवन- मरण, यश- अपयश के बंधनों से बहुत दूर था । उन्होंने अपने आप को सभ्य, सुसंस्कृत, सुशील, शालीन, संस्कारित, सच्चरित्र दिखाने के लिए कभी मिथ्या आडंबर और चिकने चुपडे़, गंदे आवरण को अपने व्यक्तित्व पर कभी नहीं ओढ़ा। उनका जीवन एक खुली किताब की तरह था। एकदम सरलता से परिपूर्ण और कुटिलताओं से कोसों कोसों दूर। यह उनके चरित्र की एक बहुत वडी विशेषता थी । उन्होंने जो कुछ भोगा वही लिखा, जो कुछ लिखा वही कहा और सीना चौड़ा कर चीख चीख कर कहा। बेहद स्वाभिमानी व्यक्तित्व के धनी थे।

  रामावतार त्यागी के खरेरे खरे और खुरदरी व्यक्तित्व में यदि सच और कृतज्ञ भाव न होता तो वह एक अहंकारी व्यक्ति के रूप में जाने और पहचाने जाते । उनका अकड़पन उनका खरेरा पन ही उनके व्यक्तित्व को अनेक लोगों से कोसों दूर.... बहुत दूर ऊपर की ओर ले जाता है। मुझे भली-भांति याद है कि जब कभी भी उनका गांव आना होता था तो वह गांव के अपने सभी पुराने यार- दोस्तों से बिल्कुल गंवई अंदाज में मिलाजुला करते थे। कोई बनावट नहीं, कोई बड़प्पन का दिखावा भी नहीं। तहमद अर्थात लुंगी बांधे हुए गांव के बीचो-बीच कुंए की  मन पर बैठकर घंटों हास परिहास करना वह भी ठेठ ग्रामीण भाषा और शैली में  मजाक करना, जस्सू बाबा  की चौपाल पर  बैठकर घंटों हुक्का ताजी करवा कर पीने वाला व्यक्ति गणमान्य होते हुए कितना सामान्य है। यह आंखों पर मोटा चश्मा लगाए और हवाई चप्पल पहने हुए हाफ शर्ट पहने हुए गांव की शैली में हंसने हंसाने और प्यार में  गरियाने वाला व्यक्ति देश का जाना माना  स्थापित गीतों का शहंशाह रामावतार त्यागी है ।

यह था उनका विराट व्यक्तित्व जिसमें गांव जीवन उफान मारता था । भले ही देश की राजधानी के विशाल सभागारों और ऊंची ऊंची अट्टालिकाओं  में उनके गीत गूंजते थे लेकिन उनके भीतर पूरा एक गांव  जिंदा था जिसमें खेत थे, खलिहान थे, बाग थे, दालान थे, कहकहो का एक पूरा संसार था तभी तो प्यार, तकरार, झूठ , मनुहार वाले उनके तेवर थे। तभी तो वह कह भी दिया करते थे  

 मैं तो छोड़ मोह के बंधन अपने गांव चला जाऊंगा 

तुम प्यारे मेरे गीतों का गुंजन करते रह जाओगे 

उनकी हठ में प्रेम था और प्रेम में हठ... इस हद तक कि वह जिसको अपने जीवन में सर्वाधिक प्रेम करते थे उसी से संबंध विच्छेद कर देने में उन्हें तनिक भी संकोच नहीं हुआ लेकिन पश्चाताप में उन्होंने ऐसे हृदय विदारक विच्छेदनों को किसी उपासना से कम, किसी तीर्थ से कम अपने जीवनपर्यंत नहीं माना लोगों ने रामावतार त्यागी  के दूसरे विवाह के बारे में तो सुना ही होगा और साथ में उनसे जुड़ी अथवा जोड़ी गई बहुत सी बातें भी सुनी होंगी पर यह कम ही लोग जानते हैं कि उन्होंने अपने प्रथम विवाह का सम्मान जीवन पर्यंत पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ किया। मेरा आशय उनकी पहली पत्नी और हमारी ताई जी कांति त्यागी से है, जब तक वह जीवित रही रामावतार त्यागी जी ने कुरकावली के अपने घर ,जमीन, गांव एवं उनसे जुड़े रिश्तो के ऐश्वर्य से कभी भी छेड़छाड़ नहीं की। घर की संपूर्ण संपत्ति, यश और कीर्ति पर क्रांति ताई जी का ही हक जीवन पर्यंत  रहा। 

  रामावतार त्यागी बहुत संकोची एवं शर्मीले व्यक्ति भी थे। उस समय घर की आर्थिक परिस्थितियां उच्च शिक्षा के पक्ष में नहीं थी। जमीदार परिवार में जन्म लेने के बाद भी घर के हालात बहुत अच्छे नहीं थे किंतु वह पढ़ना चाहते थे। पिताजी का अध्यादेश यह था कि अब घर का अपने हिस्से का काम रामावतार तुझे भी करना है, इसका वह स्वयं विरोध नहीं कर पाए किंतु अपने चाचा जी भीमसेन त्यागी जी के द्वारा रोने धोने का कारण पूछने पर उनको ही अपनी व्यथा कथा सुनाई। चाचा जी भीमसेन जी के द्वारा पिताजी के समक्ष यह आश्वासन देने के उपरांत ही कि रामावतार के हिस्से का काम मैं कर लूंगा, के उपरांत ही गीतों की सुपरफास्ट राजधानी एक्सप्रेस को आगे बढ़ने की हरी झंडी मिल पाई । वह रिश्तो में बहुत ईमानदार और वफादार थे। बात उन दिनों की है जब उनका मुंबई आना- जाना हुआ करता था। वह मुंबई में थे अपने गीतों के सिलसिले में और चाचा भीमसेन जी का कुरकावली में घोड़े तांगे से गिरकर एक्सीडेंट हो गया था। दिल्ली सफदरजंग हॉस्पिटल में छोटे चचेरे भाई ओमवीर के हाथों में चाचा जी ने अपनी अंतिम सांस ले ली थी और ओमबीर सिंह को पिताजी का शव अस्पताल प्रशासन ने किसी कारण से देने से मना कर दिया था तब वह जैसे ही दिल्ली पहुंचे  अपना आपा खो बैठे।  इससे पहले शायद किसी ने उनका यह रूप पहले नहीं देखा था। उन्होंने अस्पताल के प्रशासन को जमकर लताड़ लगाई और वहीं जमीन पर बैठ गए और तब तक नहीं उठे जब तक तत्कालीन केंद्रीय मंत्री एचकेएल भगत, जगदीश टाइटलर, ललित माकन आदि जैसे लगभग आधा दर्जन कैबिनेट  मंत्री मौके पर नहीं आ गए । प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार विशेष सम्मान के साथ उनके चाचा जी की अंत्येष्टि संपन्न हुई और उसमें पूरे समय तक सभी उपस्थित रहे मंत्रीगण । ऐसे अड़ियल व्यक्तित्व के स्वामी भी थे रामावतार त्यागी। 

  रामावतार त्यागी को विसंगतियों  और विरोधाभासो  से युक्त व्यक्तित्व यूं ही नहीं कहा क्षेमचंद सुमन जी ने। उसके पीछे एक बहुत बड़ा और मजबूत आधार है। एक ओर जहां साहित्य जगत में उनके अकड़पन तुनक मिजाजी और अड़ियल रवैए को लेकर जीवन पर्यंत विवादों और चर्चाओं का बाजार गर्म रहा वहीं दूसरी ओर उनके भीतर बैठा एक प्रेम करने वाला  गीतकार अपने गीत रचता दिखाई देता रहा। कुछ इस प्रकार----

आंख दो टकरा गई हो 

जब किसी के लोचनो से 

हो गया हो मुग्ध जो भी

रूप के कुछ कम्पन्नो से

मौन जीवन वाटिका में प्यार के तर्वर तले

 मिल गए हो प्राण जिसको राह में आते वनों से

 उन मिलन के दोस्तों का नाम केवल जिंदगी 

रात की तड़पनो का नाम केवल जिंदगी


 इसी के साथ प्रेम की प्रेम की प्राणघातक पीड़ा जिस  हृदय मे अपना विजय ध्वज शान से फैला रही हो उसी ह्रदय के  रोशनदानो से आम जनों शोषितो वंचितों के लिए कितना गहरा दर्द था-----

 सौगंध हिमालय की तुमको

 योग का इतिहास बदल दो

यह भूखे कंगाल सिकुड़ते रातों में

दिया गया नूतन विधान जिनके हाथों में

 इससे तो पतझड़ अच्छा 

ऐसा मधुमास बदल दो 

सौगंध हिमालय की तुमको

 युग का इतिहास बदल दो

   ..कहने को और भी बहुत कुछ कहा जा सकता है, सुना जा सकता है, लिखा जा सकता है, पढ़ा जा सकता है  रामावतार त्यागी के विराट और अद्भुत विलक्षण व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में । मैं उन जैसे महान रचनाकार के बारे में क्या कह सकता हूं केवल बालस्वरूप राही के शब्दों के साथ अपने विचारों को विराम देना ही उचित समझता हूं। उन्होंने शायद ठीक ही कहा था कि आधुनिक गीत साहित्य का इतिहास उनके गीतों की विस्तार पूर्वक चर्चा किए बिना लिखा ही नहीं जा सकता ।

✍️ त्यागी अशोका कृष्णम्

 कुरकावली ,जनपद  संभल

 उत्तर प्रदेश, भारत