उखड़ी-उखड़ी साँस है, सपने चकनाचूर।
भारी बोझा पीठ पर, लाद चला मजदूर।।
भूख प्यास के गाँव में, देख रहा मधुमास।
मजदूरों की पीर का, है किसको आभास।।
तपती-जलती रेत में, रखे जमाकर पाँव।
मेहनतकश की आंख में, उम्मीदों का गाँव।।
मालिक की दुत्कार को, लिखा भाग्य में मान।
धारण की मजदूर ने, होठों पर मुस्कान।।
✍️ त्यागी अशोका कृष्णम्
कुरकावली, संभल
उत्तर प्रदेश, भारत
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें