मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिंदी साहित्य संगम की ओर से मासिक काव्य-गोष्ठी का आयोजन रविवार एक मई 2022 को आकांक्षा विद्यापीठ मिलन विहार में किया गया।
राजीव प्रखर द्वारा प्रस्तुत माॅं शारदे की वंदना व संचालन से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए रामदत्त द्विवेदी ने कहा ---
किस्मत से अपने आप हम मजबूर हो गए।
अपने ही खेत में हैं हम, मजदूर हो गए।
मुख्य अतिथि विकास मुरादाबादी ने सामाजिक परिस्थिति का चित्र खींचते हुए कहा -
हिन्दू व मुसलमान क्यों आपस में लड़ रहे,
क्यों अपने- अपने धर्म के कसीदे पढ़ रहे।
भरम त्याग दें, ये सारे धर्म एक ही तो हैं,
क्यों अपने- अपने धर्म के झण्डे पकड़ रहे।।
विशिष्ट अतिथि के रुप में वीरेन्द्र ब्रजवासी ने ब्रज की लोक संस्कृति को अपने सुंदर गीत में इस प्रकार अभिव्यक्त किया -
तन बैरागी मन बैरागी,
जीवन का हर क्षण बैरागी।
विशिष्ट अतिथि के रुप में नकुल त्यागी ने मजदूर दिवस पर पंक्तियां प्रस्तुत करते हुए कहा -
मेहनत जिसका कर्म है, मेहनत जिसका मीत।
भूखे पेट सोता नही, यह स्वाभिमान की जीत।।
दिन प्रतिदिन बढ़ती बेरोजगारी के सन्दर्भ गीत प्रस्तुत करते हुए डॉ. मनोज रस्तोगी ने कहा -
बीत गए कितने ही वर्ष हाथों में लिए डिग्रियां।
कितनी ही बार जलीं आशाओं की अर्थियां।
नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम की अभिव्यक्ति इस प्रकार थी -
द्वंद हर साँस का साँस के संग है।
हो रही हर समय स्वयँ से जंग है।
भूख - बेरोज़गारी चुभे दंश - सी,
ज़िन्दगी का ये कैसा नया रंग है।
रचना-पाठ करते हुए राजीव प्रखर ने कहा - फिर नारों के शोर में, बहुत दिनों के बाद। मातृ-दिवस पर आ गयी, बूढ़ी माॅं की याद।। क्या तीरथ की कामना, कैसी धन की आस। जब बैठी हो प्रेम से, अम्मा मेरे पास।।
जितेन्द्र जौली ने अपनी अभिव्यक्ति में कहा -
चुपके- चुपके खामोशी से, कुछ हम सबसे कहती है।
नदिया की पावन धारा जब, धीरे- धीरे बहती है।
::::::प्रस्तुति::::::
राजीव 'प्रखर'
डिप्टी गंज
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
8941912642
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