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रविवार, 31 अक्टूबर 2021
शनिवार, 30 अक्टूबर 2021
मुरादाबाद मंडल के चंदौसी (जनपद सम्भल) के साहित्यकार डॉ मूलचन्द्र गौतम का व्यंग्य ---- सोना उछ्ला चांदी फिसली
आज भी आम आदमी की समझ में सेंसेक्स और निफ्टी के बजाय प्याज , टमाटर की तरह सोने-चांदी की कीमतों से ही महंगाई का माहौल पकड़ में आता है। उसके लिये डालर और पौंड से रुपये की कीमत के बजाय सोने-चांदी का भाव ज्यादा प्रामाणिक है।सरकार भी जनता के मन में अपनी साख जमाने के लिये लगातार बताती रहती है कि उसके पास विदेशी मुद्रा के अलावा कितना सोना जमा है।
पुराने जमाने के आदमियों के पास सोने का भाव ही भूत और वर्तमान को नापने का पैमाना होता है।घी,दूध,गेहूँ,चना,गाय ,बैल और भैंस का नम्बर इनके बाद आता है।आजकल चाय का रेट भी इस दौड़ में शामिल हो गया है। कारण सबको मालूम है।
सोने पर अमीरों का एकाधिकार है बर्तन भले उन्हें चांदी के पसंद आते हों।उनके मंदिरों में भगवान भी अष्टधातु के बजाय शुद्ध सोने के होते हैं क्योंकि वहाँ उन्हें किसी सीबीआई और ईडी के छापों का डर नहीं होता।गरीबों का सपना भी हकीकत में न सही लोकगीतों में सोने के लोटे में गंगाजल पानी का होता था और मेहमानों के लिये भोजन भी सोने की थाली में परोसा जाता था।अब तो स्टील के बर्तनों ने गरीब पीतल और ताँबे के बर्तनों को प्रतियोगिता से आउट कर दिया है और दावतें भी पत्तलों के बजाय प्लास्टिक के बर्तनों पर होने लगी हैं ।
खरे सोने के नाम पर रेडीमेड जेवरों में मिलावट का पता ही नहीं चलता।जबसे सरकार ने हालमार्क छाप जेवरों की बिक्री अनिवार्य की है तब से मिलावटखोरों की नींद हराम है।ज्यादा अमीरों ने सफेद सोने के नाम पर प्लेटिनम खरीदना शुरु कर दिया है लेकिन पीले सोने को मार्केट में पीट नहीं पाये हैं।दो नम्बर का पैसा आज भी सोने में ज्यादा सुरक्षित रहता है भले बैंक के लाकरों में बंद पडा रहता हो ।
जबसे सोने के जेवरों की छीन झपट शुरु हुई है तबसे नकली गहनों ने जोर पकड़ लिया है।अब झपट मार भी पछताते हैं कि क्या उनकी मति मारी गयी थी जो इस धंधे में आये।इसलिये उन्होंने हथियारों की तस्करी शुरू कर दी है।
नोटबंदी के बाद रियलिटी मार्केट डाऊन है जबकि सोने में निरंतर उछाल है। सौ दो सौ कम होते ही सोना अपने प्रेमियों के लिये धड़ाम हो जाता है। सटोरियों के चक्कर में शुगर और ब्लड प्रेशर की तरह सोना थोडा ऊपर नीचे होता रहता है लेकिन आयात में आज भी वह नम्बर वन है। एयर पोर्टों पर ड्रग्स के मुकाबले सोने की तस्करी की खबरें ज्यादा आती हैं।तस्कर भाई बहिन पता नहीं शरीर के किन किन गुप्तांगों में सोना छिपाकर ले आते हैं। सोना आखिर सोना है।
✍️ डॉ मूलचंद्र गौतम
शक्ति नगर,चंदौसी, सम्भल 244412
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल 8218636741
शुक्रवार, 29 अक्टूबर 2021
मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में मुम्बई निवासी ) प्रदीप गुप्ता की कविता -- भूख
1
यह पेट की भूख भी अजीब है
मंदिर मस्जिद ,
हिंदू मुसलमान ,
यहूदी ईसाई ,
क़ब्रिस्तान शमशान ,
सवर्ण और दलित
के शोर गुल में इतनी दब जाती है
ये ख़्याल ही नहीं रहता
कई दिनों से पेट में
भूख के हिसाब से
अन्न का ग्रास नहीं पहुँचा है .
2
पैसे की भूख भी ख़ासी बड़ी है
जितना खीसे में पैसा आता है
यह उतनी ही और बढ़ती जाती है
सच तो यह है अगर एक बार
पैसे की भूख ज़ोर से लग गयी
तो मनपसंद खाने के लिए
चिकित्सक रोक लगा देता है
इसके बढ़ते ही,
बढ़ते जाते हैं दवा दारू के खर्चे
चश्मे के नम्बर बढ़ जाते हैं
हृदय से लेकर किडनी और दाँतों के
प्रत्यारोपण की बारी आ जाती है
3
एक और ग़ज़ब की भूख है
जिसे शोहरत का नाम दिया जाता है
जितनी इसे मिटाने की कोशिश की जाती है
उतनी और बढ़ जाती है
अपने सम्मान में अपने पैसे से अभिनंदन ग्रंथ
अपने नाम से साहित्य सम्मान
अपने नाम से खेल स्पर्धा ,
मुशायरों , कवि सम्मेलनों की सदारत
अपने नाम की कोई सड़क (गली भी चलेगी )
अपने पैसे से किसी चौराहे पर अपना बुत
इतना सब कुछ करने के बाद भी
कुछ तो रीतापन सा लगता है
क्योंकि शोहरत की भूख
अनादि-काल से जारी है
और सारी भूख पर भारी है
✍️ प्रदीप गुप्ता B-1006 Mantri Serene, Mantri Park, Film City Road , Mumbai 400065
सोमवार, 25 अक्टूबर 2021
रविवार, 24 अक्टूबर 2021
मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर के साहित्यकारों ने करवा चौथ के पर्व पर अपने जीवनसाथी के लिए लिखे गीत । इन गीतों को हमने लिया है धामपुर (जनपद बिजनौर ) से डॉ अनिल शर्मा अनिल के सम्पादन में प्रकाशित अनियतकालीन ई पत्रिका अभिव्यक्ति से ....
::::::प्रस्तुति::::::
बुधवार, 20 अक्टूबर 2021
मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर के तीन नवगीत
( एक )
कल सपने में आई अम्मा
कल सपने में आई अम्मा,
पूछ रही थी हाल।
जबसे दुनिया गई छोड़कर,
बदले घर के ढंग।
दीवारों को भी भाया अब,
बँटवारे का रंग।
सांझी छत की धूप बँट गयी,
बैठक पड़ी निढाल।
आँगन की तुलसी भी सूखी,
गेंदा हुआ उदास।
रिश्तों को मधुमेह हो गयी,
फीका हर उल्लास।
बाबू जी का टूटा चश्मा,
करता रहा मलाल।
घुटनों की पीड़ा से ज़्यादा,
दिल की गहरी चोट।
बीमारी का खर्च कह रहा,
बूढ़े में ही खोट।
बासी रोटी से बतियाती,
बची खुची सी दाल।
कल सपने में आई अम्मा,
पूछ रही थी हाल।
( दो )
अधरों पर मचली है पीड़ा
अधरों पर मचली है पीड़ा
कहने मन की बात।
आभासी नातों का टूटा
दर्पण कैसे जोड़ूँ?
फटी हुई रिश्तों की चादर
कब तक तन पर ओढ़ूँ
पैबंदों के झोल कर रहे
खींच तान, दिन- रात।
रोपा तो था सुख का पौधा
हमने घर के द्वारे
सावन -भादो सूखे निकले
बरसे बस अंगारे
हरियाली को निगल रही है,
कंकरीट की जात।
तिनका-तिनका, जोड़- जोड़कर
जिसने नीड़ बनाया
विस्थापन का दंश विषैला
उसके हिस्से आया।
टूटे छप्पर की किस्मत में
फिर आयी बरसात।
(तीन)
आस का उबटन
अवसादों के मुख पर जब भी,
मला आस का उबटन।
उम्मीदों के फूल खिलाकर,
हँसती हर एक डाली।
दुखती रग को सुख पहुँचाने,
चले पवन मतवाली।
अँधियारे ने बिस्तर बाँधा,
उतरी ऊषा आँगन ।
अवसादों के मुख पर ...
पाँवों में पथरीले कंकर
चुभकर जब गड़ जाते,
मन के भीतर संकल्पों के
ज़िद्दीपन अड़ जाते।
पाने को अपनी मंज़िल फिर
थकता कब ये तन- मन !
अवसादों के मुख पर जब भी...
जब डगमग नैया के हिस्से
आया नहीं किनारा,
ज्ञान किताबी धरा रह गया
पाया नहीं सहारा।
अनुभव ने पतवार सँभाली
दूर हो गयी अड़चन ।
अवसादों के मुख पर जब भी
मला आस का उबटन।
✍️ मीनाक्षी ठाकुर
मिलन विहार
मुरादाबाद 244001,
उत्तर प्रदेश, भारत
मंगलवार, 19 अक्टूबर 2021
मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर का नवगीत ----अधिकारों का ढोल पीटती / फर्ज़ भूलती नस्लें / जातिवाद के कीट खा रहे / राष्ट्रवाद की फसलें / पाँच वर्ष के बाद बहाया / घड़ियालों ने नीर
राजनीति के ठेले पर फिर,
बिकता हुआ ज़मीर।
चोरों से थी भरी कचहरी,
थी गलकटी गवाही।
दुबकी फाइल के पन्नो पर,
बिखरी कैसे स्याही।
मैली लोई वाला निकला
सबसे धनी फकीर!
जिम्मेदारी के बोझे से,
फटा बजट का बस्ता।
औनै पौनै दामों में तो,
दर्द मिले बस सस्ता।
बिके आत्मा टके सेर में,
टके सेर ही पीर।
अधिकारों का ढोल पीटती,
फर्ज़ भूलती नस्लें।
जातिवाद के कीट खा रहे,
राष्ट्रवाद की फसलें।
पाँच वर्ष के बाद बहाया,
घड़ियालों ने नीर।
✍️ मीनाक्षी ठाकुर, मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश, भारत
सोमवार, 18 अक्टूबर 2021
मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की लघुकथा --- मृत्यु प्रमाणपत्र
"सचमुच बहुत ही दुख हुआ बहन जी जानकर कि आप का इकलौता बेटा दुर्घटना में स्वर्ग सिधार गया"
नगर पालिका के कई चक्कर काट चुकी रोती हुई महिला को ढांढस बन्धाते हुए नगरपालिका के बड़े बाबू ने कहा "मृत्यु प्रमाण पत्र एक हफ्ते में मिल जाएगा हमारा पूरा स्टाफ आपके साथ है फिक्र करने की कोई बात नहीं "।
महिला-"ठीक है भैया अब आप ही लोगों का सहारा है!"
बड़े बाबू- " बस बहन जी हजार रुपए दे जाइएगा...!"
महिला अवाक बड़े बाबू को देखती रह गयी...!
✍️अशोक विद्रोही
412 प्रकाश नगर, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश,भारत
मोबाइल फोन 82 188 25 541
मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार संतोष कुमार शुक्ल संत की रचना ----हर चोला मक्कार हो गया, सच कहना दुश्वार हो गया।
अजब गजब बातें बतलाकर,
अजब ढंग से करके हल्ला।
सब्ज बाग दिखलाकर कहते,
सबसे अच्छा अपना गल्ला।।
नाम अजब है, काम अजब है,
अजब यहां व्यापार हो गया।।
हर चोला मक्कार हो गया।।
सच कहना दुश्वार हो गया।।
धर्म ध्वजा का कर आरोहण ।
जनता में भर के सम्मोहन ।।
बस्त्र गेरुए धारण करके ।
सन्त महन्त गिरि बन करके ।।
स्वयं स्वघोषित ब्रह्म कहाकर।
पुन्य पाप का भय दिखलाकर ।।
प्रवचन लच्छे दार सुनाकर,
मंदिर मठ बाजार हो गया।।
धर्म बड़ा व्यापार हो गया।
हर चोला मक्कार हो गया।।
सच कहना दुश्वार हो गया।।
कर्जे माफ करेंगे सारे ।
हमको बस कुर्सी दिलवा रे ।।
ऊपर का हिस्सा दे जा रे।
तू नीरव मोदी बन जा रे।।
बिजली पानी मुफ़्त मिलेगा ।
बिल का पैसा कौन भरेगा ?
कर द्वारा अर्जित धन पर भी,
नेता का अधिकार हो गया।।
जनता का धन पार हो गया।।
हर चोला मक्कार हो गया।।
सच कहना दुश्वार हो गया।।
अजब गजब ढपली के रागों ।
फटे हुए कपड़े के धागो ।।
तभी सवेरा जब तुम जागो।
आंखें खोलो अरे अभागों ।।
लोकतंत्र में राजा तुम हो,
सोच समझ कर वटन दबाओ।।
जिसकी लाठी भैंस उसी की,
यह तो अत्याचार हो गया।।
पैसा ही सरकार हो गया।।
हर चोला मक्कार हो गया।।
सच कहना दुश्वार हो गया।।
✍️ सन्तोष कुमार शुक्ल सन्त
रामपुर, उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद की साहित्यकार मोनिका मासूम की ग़ज़ल ---नए सपनों की बस्ती में बसी है आजकल आंखें
सड़क : चार दृश्य । मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा ---- बगुलाभगत, श्रीकृष्ण शुक्ल की कहानी--ईमानदार का तोड़, राजीव प्रखर की लघुकथा-- दर्द और अखिलेश वर्मा की लघुकथा---वो तो सब बेईमान हैं
बगुलाभगत
इंजीनियर ने ठेकेदार से क्रोध जताते हुए कहा ," क्या ऐसी सड़क बनती है जो एक बरसात में उधड़ गई, तुम्हारा कोई भी बिल पास नहीं होगा।" बड़े साहब मुझ पर गरम हो रहे थे उन्हें क्या जवाब दूंगा ? ठेकेदार बोला ," सर आप मेरी भी सुनेंगे या अपनी ही कहे जाएंगे।" बोलो क्या कहना है।" इंजीनियर ने कहा।
" सर 40%में ,मैं रबड़ की सड़क तो बना नहीं सकता,ठेकेदार ने कहा ,फिर आपकी भी तो उसमें ---------? अब क्या था इंजीनियर का चेहरा देखने लायक था -------।
✍️ अशोक विश्नोई
मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश, भारत
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ईमानदार का तोड़
क्या मैं अंदर आ सकता हूँ, आवाज सुनते ही सुरेश कुमार ने गरदन उठाकर देखा, दरवाजे पर एक अधेड़ किंतु आकर्षक व्यक्ति खड़े थे, हाँ हाँ आइए, वह बोले!
सर मेरा नाम श्याम बाबू है, मेरा सड़क के निर्माण की लागत का चैक आपके पास रुका हुआ है!
अच्छा तो वो सड़क आपने बनाई है, लेकिन उसमें तो आपने बहुत घटिया सामग्री लगाई है, मानक के अनुसार काम नहीं किया है, सुरेश कुमार बोले!
कोई बात नहीं साहब, हम कहीं भागे थोड़े ही जा रहे हैं, पच्चीस साल से आपके विभाग की ठेकेदारी कर रहे हैं, जो कमी आयेगी दूर कर देंगे, आप हमारा भुगतान पास कर दो, हम सेवा में कोई कमी नहीं रखेंगे!
आप गलत समझ रहे हो श्याम बाबू, पहले काम गुणवत्ता के अनुसार पूरा करो,तभी भुगतान होगा, कहते हुए सुरेश उठ गये और विभाग का चक्कर लगाने निकल गये!
श्याम बाबू चुपचाप वापस आ गये!
पत्नी ने पानी का ग्लास देते हुए पूछा: बड़े सुस्त हो, क्या हो गया तो बोल पड़े एक ईमानदार आदमी ने सारा सिस्टम बिगाड़ दिया है, कोई भी काम हो ही नहीं पा रहा है, सबके भुगतान रुके पड़े हैं, बड़ा अजीब आदमी है!
खैर इसकी भी कोई तोड़ तो निकलेगी!
कुछ ही दिनों बाद लेडीज क्लब का उत्सव था, श्याम बाबू की पत्नी उसकी अध्यक्ष थीं, श्याम बाबू के मन में तुरंत विचार कौंधा और बोले: सुनो इस बार नये अधिकारी सुरेश बाबू की पत्नी सुरेखा को मुख्य अतिथि बना दो और सम्मानित कर दो!
कार्यक्रम के दिन पूर्व योजनानुसार सुरेखा को मुख्य अतिथि बनाया गया, सम्मानित किया गया, उन्हें अत्यंत कीमती शाल ओढ़ाया गया और एक बड़ा सा गिफ्ट पैक भी दिया गया!
कार्यक्रम के बाद श्याम बाबू की पत्नी पूछ बैठी: आप तो बहुत बड़ा गिफ्ट पैक ले आये, क्या था उसमें!
कुछ ज्यादा नहीं, बस एक चार तोले की सोने की चेन,शानदार बनारसी साड़ी और कन्नौज के इत्र की शीशी थी, श्याम बाबू बोले!
इतना सब कुछ क्यों,
कुछ नहीं, ये ईमानदार लोगों को हैंडिल करने का तरीका है!
कहना न होगा, अगले ही दिन श्यामबाबू का भुगतान हो गया!
✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल,
MMIG - 69, रामगंगा विहार,
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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दर्द
"साहब ! हमारे इलाके की सड़कें बहुत खराब हैं। रोज़ कोई न कोई चोट खाता रहता है। ठीक करा दो साहब, बड़ी मेहरबानी होगी.......", पास की झोपड़पट्टी में रहने वाला भीखू नेताजी के सामने गिड़गिड़ाया।
"अरे हटो यहाँ से। आ जाते हैं रोज़ उल्टी-सीधी शिकायतें लेकर। सड़कें ठीक ही होंगी। उनमें अच्छा मेटेरियल लगाया है......."। भीखू को बुरी तरह डपटने के बाद सड़क पर आगे बढ़ चुके नेताजी को पता ही न चला कब उनका पाँव एक गड्डे में फँसकर उन्हें बुरी तरह चोटिल कर गया।
"उफ़ ! ये कमबख्त सड़कें बहुत जान लेवा हैं......", दर्द से बिलबिलाते हुए नेताजी अब सम्बंधित विभाग को फ़ोन मिलाते हुए हड़का रहे थे।
✍️ राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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वो तो सब बेईमान हैं
" अरे वाह चौधरी ! मुबारक हो आज तो तुम्हारे गाँव की सड़क बन गई है .. अब सरपट गाड़ी दौड़ेगी । " भीखन ने खूँटा गाड़ते चौधरी को देखते हुए कहा ।
" पर यह क्या कर रहे हो , खूँटा सड़क से सटा कर क्यों लगा रहे हो । " वो फिर बोला ।
" सड़क किनारे की पटरी चौड़ी हो गई है ना .. तो कल से भैंसे यही बाँधूँगा .. अंदर नहलाता हूँ तो बहुत कीच हो जाती है घर में .. I " चौधरी बेफिक्र होकर बोला ।
" पर पानी तो सड़क खराब कर देगा चौधरी " भीखू बोला ।
" मुझे क्या । ठीक कराएँगे विभाग वाले , सब डकार जाते हैं वरना । " हँसकर चौधरी बोला ।
भीखू आगे बढ़ा ही था कि देखा रामदीन ट्रेक्टर से खेत जोत रहा था .. वो असमंजस से बोला , " अरे रामदीन भाई ! यह क्या कर रहे हो . तुमने तो अपने खेत के साथ साथ सड़क के किनारे की पटरी तक जोत डाली .. बिना पटरी के तो सड़क कट जाएगी । "
रामदीन जोर से हँसा और बोला , " अरे बाबा , यह फसल अच्छी हो जाए फिर से मिट्टी लगा दूँगा । और रही बात सड़क कटने की तो फिर से ठीक करेगा ठेकेदार .. उसकी दो साल की गारंटी होती है ... और विभाग वाले .. हा हा हा ! वो तो सब बेईमान हैं ।"
✍️ अखिलेश वर्मा
मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक की ग़ज़ल ---घोर अँधियारों में से ही फूटती है रौशनी, आप क्यों नाकामियों से अपनी घबराने लगे।
झूठ को जो हम हमेशा झूठ बतलाने लगे,
इसलिए सबके निशाने पर यहाँ आने लगे।
घोर अँधियारों में से ही फूटती है रौशनी,
आप क्यों नाकामियों से अपनी घबराने लगे।
दे दिया फूलों ने क़ुर्बानी का दुनिया को सबक़,
जिसने भी मसला उसी के हाथ महकाने लगे।
जिसकी मंज़िल का पता है और न कोई रास्ता,
जाने क्यों ऐसे सफ़र पे आदमी जाने लगे।
जो कहा करते थे ख़ुद को साफ़गोई का मुरीद,
चापलूसों से घिरे हमको नज़र आने लगे।
गुफ़्तगू औरों से करना ख़ुद जिन्हें आया नहीं,
गुफ़्तगू के सबको वो आदाब सिखलाने लगे।
✍️ ओंकार सिंह विवेक, रामपुर, उत्तर प्रदेश, मोबाइल--9897214710
मुरादाबाद मंडल के गजरौला (जनपद अमरोहा )की साहित्यकार प्रीति चौधरी की ग़ज़ल ---करें मदहोश जो मुझको, हिरन जैसी विचल आँखें
सज़ल आँखें कमल आँखें
लगे उसकी गज़ल आँखें
करें मदहोश जो मुझको
हिरन जैसी विचल आँखें
नहीं उम्मीद जब कोई
तलाशें क्या विरल आँखें
उमंगों से भरी देखों
चमकती अब सफल आँखें
नहीं करना भरोसा तुम
करें हैं प्रीति छल आँखें
✍️ प्रीति चौधरी
गजरौला, अमरोहा
उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग्य कविता ---लंबी रेस का घोड़ा
बचपन में सब मुझे चिढ़ाते थे
काली चमड़ी के कारण
काला कौआ कहकर बुलाते थे
मुझको अच्छी नहीं लगती थी पढ़ाई
इसी बात पर एक दिन
दादाजी ने जमकर डांट लगाई
सारे दिन हाथी की तरह खाता है
स्कूल क्यों नहीं जाता है
तेरा अगर यही रूटीन चलेगा
एक दिन गीदड़ की मौत मरेगा
मैने सांप की तरह हुंकार मारी
मैं अपनी जिंदगी
अपने हिसाब से बिताऊंगा
ज्यादा जिद करोगे
तो घर से भाग जाऊंगा
दादाजी बोले
बंदर घुड़की मत दिखाओ
बस्ता उठाओ और स्कूल जाओ
दादाजी के तेवर देख
सारा जोश ठंडा हो गया
मैं बकरी की तरह मिम्याने लगा
दस किलो का बस्ता
पीठ पर लाद स्कूल जाने लगा
मोहल्ले वालों को मुझ में
गधा नजर आने लगा
स्कूल में मास्टर जी ने
तोते की तरह पाठ रटाया
लेकिन मेरे उल्लू जैसे दिमाग में
कुछ नही घुस पाया
मास्टर जी अक्सर मुझे
मुर्गा बनाने लगे
मेरे नयन
घड़ियाली आंसू बहाने लगे
कुछ साथियों ने
मुझको समझाया
मेरे अंदर छुपे शेर को जगाया
मैने भी वफादार कुत्ते की तरह
अपना सर हिलाया
उनके बताए रास्ते पर
कछुए की तरह कदम बढ़ाया
लेकिन जैसे ही
भौतिकता की चकाचौंध दिखी
इच्छाओं के खरगोश ने ललचाया
और मन के मोर ने
जबरदस्त डांस दिखाया
मैं आभासी दुनिया की
गोदी में झूल गया
मौज मस्ती के चक्कर में
पढ़ना लिखना भूल गया
मास्टर जी ने मुझे
जबरदस्त डांट पिलाई
अबे चूहे ,
बरबाद मत कर मां बाप की कमाई
पढ़ाई से अगर तू दिल चुराएगा
जिंदगी में कभी कुछ कर नहीं पाएगा
मैने कहा गुरु जी
मुझे कूपमण्डूक नही बनना है
किताबों के सीमित दायरे में
नही बंधना हैं
मैं आपकी नजर में
सिरफिरा हूं,शरारती थोड़ा हूं
लेकिन सच ये है
मैं लंबी रेस का घोड़ा हूं
मैं सर्व अवगुण संपन्न हूं
मेरे खून में,
लोमड़ी की चालाकी है
कोई बुराई ऐसी नहीं
जो बाकी है
सब कुछ ठीक रहा तो
एकदिन राजनीति में छा जाऊंगा
और फिर
आपके पढ़ाकू और बुद्धिमान चेलों को
अपनी उंगलियों पर नचाऊंगा।
✍️ डॉ.पुनीत कुमार
T 2/505 आकाश रेजीडेंसी
आदर्श कॉलोनी रोड
मुरादाबाद 244001
M 9837189600
शनिवार, 16 अक्टूबर 2021
शुक्रवार, 15 अक्टूबर 2021
मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ ममता सिंह का गीत ----मुन्नी जब तक भीतर अपने, डेरा कपट जमायेगा, तब तक सच है दंभी रावण, कहाँ भला मर पायेगा।
आज दशहरे पर मुन्नी ने,
माँ से पूछा इक सवाल।
पुतला रावण का क्यूँ हम सब,
ये जलाते हैं हर साल।
बड़े प्यार से माँ ने उस को,
अपने क़रीब बैठाया।
रावण एक प्रतीक मात्र है,
मुन्नी को यह समझाया।
मुन्नी जब तक भीतर अपने,
डेरा कपट जमायेगा।
तब तक सच है दंभी रावण,
कहाँ भला मर पायेगा।
तो आओ पहले मिल कर हम,
मन को अपने साफ़ करें।
और सच की तूलिका से फिर,
अच्छाई के रंग भरे।
✍️ डाॅ ममता सिंह
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
रविवार, 10 अक्टूबर 2021
वाट्स एप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तम्भ के अंतर्गत स्मृतिशेष राजेन्द्र मोहन शर्मा श्रृंग के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर दो दिवसीय ऑनलाइन कार्यक्रम का आयोजन
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष राजेन्द्र मोहन शर्मा श्रृंग के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर वाट्स एप पर संचालित समूह 'साहित्यिक मुरादाबाद' की ओर से आठ व नौ अक्टूबर 2021 को दो दिवसीय ऑन लाइन आयोजन किया गया। चर्चा में शामिल साहित्यकारों ने कहा कि राजेन्द्र मोहन शर्मा श्रृंग का मुरादाबाद के हिन्दी साहित्य में उल्लेखनीय योगदान रहा है ।
मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तम्भ की नवीं कड़ी के तहत आयोजित इस कार्यक्रम में संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा 12 जून 1934 को जन्में राजेन्द्र मोहन शर्मा श्रृंग ने हिन्दी साहित्य की विभिन्न विधाओं में लेखन किया। उनका प्रथम गीत संग्रह 'अर्चना के गीत' वर्ष 1960 में प्रकाशित हुआ। उसके बाद प्रबंध काव्य 'शकुंतला' और गीत संग्रह 'मैंने कब ये गीत लिखे हैं' वर्ष 2007 में प्रकाशित हुए। उनकी अप्रकाशित रचनाओं में मुक्तक शतक (मुक्तक संग्रह), गहरे पानी पैठ (लघुकथा संग्रह), श्रृंगारिकता( मुक्त छंद), सीख बड़ों ने हमको दी (बालोपयोगी कविताएं), भूली मंजिल भटके राही, अंबर के नीचे (कहानी संग्रह), अंतर्दृष्टि , लेखांजलि, साहित्य के गवाक्ष में मुरादाबाद (मुरादाबाद के साहित्यकारों के व्यक्तित्व व कृतित्व पर विवेचनात्मक लेख) उल्लेखनीय हैं। उनका निधन 17 दिसंबर 2013 को हुआ।हिन्दी साहित्य संगम के अध्यक्ष रामदत्त द्विवेदी ने उनकी अनेक अप्रकाशित कृतियां साहित्यिक मुरादाबाद को उपलब्ध कराई जिन्हें स्कैन करके उन्हें ई पुस्तक के रूप में कार्यक्रम में प्रस्तुत किया गया। उन्होंने कहा कि आर्थिक रूप से सम्पन्न न होते हुए भी वह पूरे जीवन साहित्य सेवा में रत रहे । मुझे साहित्य जगत में लाने का श्रेय उन्हीं को है। उन्होंने अपने एक गीत के माध्यम से श्रृंग जी को श्रद्धासुमन अर्पित किए ।महाराजा हरिश्चंद्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य साहित्यकार डॉ विश्व अवतार जैमिनी ने कहा कि राजेन्द्र मोहन शर्मा श्रृंग मुख्य रूप से वेदना और संवेदना के कवि थे । देश समाज की समस्याओं की चिंता, उन पर चिंतन, उनका निवारण, इसकी आतुरता, पुनश्च आशावादिता का घरौंदा निर्माण,यही सब कुछ श्रृंग जी के काव्य का प्रतिपाद्य था जिसे उन्होंने सीधी-सपाट, रोचक तथा सामान्य इतिवृतात्मक शैली में लिखी कविताओं में उकेरा ।बीती शताब्दी के छठे और सातवें दशक में मेरी श्री राजेन्द्र मोहन शर्मा से ख़ासी घनिष्ठता रही । मैं केजीके कॉलेज का विद्यार्थी था और उन्होंने रेलवे की नौकरी में अपना मुक़ाम बना लिया था । दोनों का एक दूसरे के घरों पर आना जाना शुरू हुआ।गोष्ठी,सम्मेलन व अन्य आयोजनों में साथ साथ भाग लेने से नजदीकियां बनती गई। वे मेरी वीररस प्रधान कविताओं के प्रशंसक थे और मुझे उनके गीत गाने, सुनने- सुनाने, गुनगुनाने और मन को गुदगुदाने का चस्का लग गया । अपनी कविताओं में श्रृंग जी न बुद्धिजीवी बने हैं न परजीवी और न ही धनजीवी। उन्होंने श्रमजीवी बने रहना ही बेहतर समझा।कवियों की श्रेणी में उन्होंने संत बने रहने को श्रेयस्कर समझा। महंत बनने की उन्होंने कभी अभिलाषा नहीं की।
प्रख्यात साहित्यकार यशभारती माहेश्वर तिवारी ने कहा पं. राजेन्द्रमोहन शर्मा 'श्रृंग' स्वभाव से ही अत्यंत संकोची, सहज, सरल, किसी तरह के लाभ-लोभ से मुक्त व्यक्ति रहे। रचना उनके लिए एक सांस्कृतिक कर्म रही और उसे वे निष्ठापूर्वक जीवनभर सजाते-सँवारते रहे। मन से आध्यात्मिकता के प्रति समर्पित श्रृंगजी ने केवल निजता को ही नहीं गाया है, बल्कि सामाजिक स्थितियों की विसंगतियों को भी अपनी रचनाओं के माध्यम से अभिव्यक्ति दी है। उनकी रचनाशीलता का फलक बहुत बड़ा था और गद्य तथा पद्य में समान गति थी। उनका समग्र लेखन प्रकाशित होकर सामने आ जाता तो वह उनके व्यक्तित्व का पूरा परिचय देता और साहित्य के जगत में नवागतों को लिखने की प्रेरणा भी देता। मथुरा के सहायक निदेशक बचत व बाल साहित्यकार राजीव सक्सेना ने कहा कि श्रृंगजी के सृजन में जीवन के विविध रंगों यथा- आनंद, उल्लास, पीड़ा और संत्रास के दर्शन होते हैं। श्रृंगजी समर्थ रचनाकार होते हुए भी कभी बड़ा सर्जक होने का भ्रम नहीं पालते। वे अपने को सदैव माँ वीणा पाणि का एक विनम्र पुत्र ही स्वीकार करते हैं। कविता श्रृंगजी का शौक नहीं, बल्कि एक बाध्यता रही है, जो उन्हें सदैव कुछ नया रचने के लिए प्रेरित करती रही है। कविता अंदर की विवशता या हृदय की पुकार है, जिसे श्रृंगजी ने कभी अनसुना नहीं किया है। वह महज़ कुछ रचने के लिए ही गीत या कविताएँ नहीं रचते हैं। जब हृदय की पुकार जोरों पर होती है और भावनाओं का उद्रेक अपने चरम पर होता है, तब स्वतः उनकी लेखनी से गीत झरने लगते हैं। उनके गीति काव्य में प्रेम की सतरंगी अभिव्यक्ति हुई है। वह जीवन का बहुरंगी कोलाज हैं । उनका संपूर्ण रचनाकर्म एक बड़े सर्जक का समय के सापेक्ष दर्ज किया गया वक्तव्य है।
वरिष्ठ साहित्यकार अशोक विश्नोई ने कहा कि मुरादाबाद में हिन्दी के प्रति समर्पित रहने वाले कवि स्मृति शेष श्री राजेन्द्र मोहन शर्मा श्रृंग जी ने आजीवन हिंदी की सेवा की। श्रृंग जी का दुर्भाग्य ही कह सकते हैं कि जैसे वह उच्चकोटि के रचनाकार थे उस लिहाज़ से उनको प्रसिद्धि प्राप्त नहीं हो सकी। यहां मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि वह बहुत जिद्दी भी थे,साथ ही कई कवि उनसे लाभान्वित हुए फिर उनका साथ छोड़ दिया। लेकिन उन्होंने कभी कोई शिकायत दर्ज नहीं की। श्रृंग जी ने जितना रचा ,उतना ही जिया। हिन्दी साहित्य संगम के संस्थापक के रुप में तो वह जिन्दा हैं ही, एक अच्छे रचनाकार के रुप में भी सदैव अमर रहेंगे।वरिष्ठ साहित्यकार डॉ अजय अनुपम ने कहा कि समय बीतते देर नहीं लगती , बीत गए पचास वर्ष।श्रृंग जी रेलवे में नौकरी करते हुए भी हिन्दी को व्यवहार में लाने के लिए कार्य करने के हेतु सदैव तत्पर रहते थे। उन्होंने मुरादाबाद में अंग्रेजी हटाओ आंदोलन में भी सक्रिय भागीदारी निभाई ।सम्भवतः वर्ष 1964/1965 की बात होगी। मुरादाबाद में इम्पीरियल सिनेमा में लगी हुई पिक्चर का नाम रोमन में लिखा हुआ था। के जी के और हिन्दू कालेज के लड़कों ने हिन्दी में नाम लिखे जाने की मांग करते हुए जुलूस निकाला। पिक्चर के पोस्टर फाड़ डाले गए जमकर हंगामा हुआ। राजेन्द्र मोहन श्रृंग जी और मैं (डॉ अजय अनुपम) दोनों प्रायः मिलते रहते थे। हमने विचार किया कि हम सार्थक पहल करें। साहित्यकार मित्रों को जोड़ें और उन्हें प्रेरित करें कि वे अपने हस्ताक्षर हिन्दी में करना आरम्भ करें। श्रृंग जी और मैंने हाथ से लिखकर (फुलस्केप साइज़) का एक साहित्य-समाचार नामक पत्र भी निकाला जिस में कविता, कहानी,संस्मरण आदि सम्मिलित रहते थे। इसकेे सम्पादक श्रृंग जी ही थे। हर महीने पत्र तैयार करके साहित्यकारों तथा साहित्य प्रेमियों तक पहुंचाया जाता था। हम दोनों पत्र के वितरण का क्षेत्र बांट लेते थे। योजना एक वर्ष तक ही चल पायी।हमारा साहित्यकारों से मिलना भी हो जाता था। संतोष भी मिलता है।
वरिष्ठ कवि शिशुपाल सिंह मधुकर ने कहा कि स्मृति शेष श्री राजेंद्र मोहन श्रृंग जी मुरादाबाद के साहित्य जगत के उन मौन साधकों में से थे जिन्होंने पूरी लगन, ईमानदारी और निस्वार्थ भाव से जीवन पर्यंत हिंदी साहित्य की सेवा की। श्रृंग जी मेरे घर के पास में ही रहते थे अतः उनसे अक्सर भेंट होती रहती थी। कभी मैं उनके घर चला जाता था और कभी वे मेरे घर आ जाते थे तो घंटों साहित्य पर चर्चा होती रहती थी। श्रृंग जी का एक एक पल साहित्य को समर्पित था। मै यह बात इसलिए भी कह रहा हूँ कि वे साहित्यिक गतिविधियों से संबंधित हस्त लिखित साहित्यिक अखबार निकालते थे जो एक अत्यंत दुरूह कार्य था। "अर्चना के गीत " उनका पहला काव्य संग्रह था जिसको उन्होंने मुझे बड़े चाव से पढ़ने को दिया। इस काव्य संग्रह की रचनाओं ने मुझे बहुत प्रभावित किया। अपने निश्छल स्वभाव को श्रृंग जी ने अपने गीतों में पिरो दिया था।वरिष्ठ कवयित्री डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने कहा स्मृति शेष श्रृंग जी को मैने बहुत निकट से देखा और परखा भी। वे अत्यंत निश्छल प्रकृति के भाव पक्ष के धरातल पर एकनिष्ठ व्यक्तित्वव के धनी थे । उनका लेखन निराभिमानी था। उन्होंने ईश्वर को केंद्र में रख कर रचनाएं लिखी थीं। गजब की दीवानगी थी हिंदी के प्रति । वह हिंदी के पथ कण्टकों को उखाड़ फेंकने में एक समर्थ साहसी सैनिक थे। मै श्रृंग जी के द्वारा रचित साहित्य का ह्र्दय से सम्मान करती हूं शिक्षा ग्रहण करती हूं उनको स्मरण कर अपनी बुद्धि की अल्पज्ञता के अनुसार उनको वाणी माँ का विशिष्ट पुत्र मानकर नमन करती हूं ।
वरिष्ठ साहित्यकार ओंकार सिंह'ओंकार' ने कहा कि वे हिंदी भाषा के प्रति पूरी तरह समर्पित रहे तथा जीवन भर वे हिंदी भाषा के उत्थान के लिए कार्य करते रहे । उनके व्यक्तिगत आचरण के अनुरूप ही उनका रचनात्मक संसार है। वही सरलता, सहजता , ईमानदारी , ख़ुद्दारी और आध्यात्मिकता के प्रति समर्पण के भाव जो उनके व्यक्तित्व में थे,वही उनकी रचनाओं में मौजूद हैं । उनमें देशभक्ति कूट-कूट कर भरी थी । शकुंतला (प्रबंध-काव्य) में प्राकृतिक सौंदर्य , शृंगार रस, तात्कालिक सामाजिक स्थितियों का सुंदर चित्रण, आध्यात्मिकता,वीरता, तथा देशभक्ति आदि विषयों के सुन्दर काव्यात्मक चित्र हैं , जो पाठकों का मनोरंजन और ज्ञानवर्धन करते हैं। उनके संपूर्ण व्यक्तित्व और कृतित्व को समझने के लिए उनके काव्य सागर में गहरे उतरना पड़ेगा । परंतु संक्षेप में मैं इतना कह सकता हूं कि शृंग जी साधारण दिखने वाले , असाधारण रचनात्मक क्षमता वाले कवि थे। दिल्ली के साहित्यकार आमोद कुमार ने कहा कि राजेन्द्र मोहन शर्मा श्रृंग जितने सरल व्यक्ति थे उतनी ही पैनी उनकी रचनाओं की व्यंग शैली थी। उनकी रचनाएं व्यवस्था की दुरावस्था एवं गरीबी पर प्रहार करती है। श्रृंग जी से मेरा निकट का परिचय रहा था, जब मुरादाबाद मे मै गुलजारी मल धर्मशाला रोड पर रहता था तब मेरे निवास पर आयोजित काव्य गोष्ठियोंं मे वह आया करते थे।
वरिष्ठ साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल ने कहा कि स्मृतिशेष राजेन्द्र मोहन श्रृंग जी सादगी और सरलता की प्रतिमूर्ति थे । पटल पर उनकी प्रकाशित और अप्रकाशित रचनाएं भी पढ़ने को मिलीं, और अपनी रचनाधर्मिता पर स्वयं उनके विचार पढ़ उनकी सहज सरल छवि मन में अवतरित हो गयी! समाज में व्याप्त बुराइयों, असमानता कुरीतियों और विषमता पर भी समय समय पर उन्होंने लेखनी चलायी है और तीक्ष्ण प्रहार किया है, एक बानगी देखिए:
दीनों के ही तो बल पर ये
आज खड़ी है तेरी कोठी,
जग में जो होते न दीन तो,
बोल तेरी क्या हस्ती होती!
वर्तमान में होनेवाले, सम्मान और अभिनंदन कार्यक्रमों की वास्तविकता उजागर करते हुए, उनकी व्यंग्य रचना की ये पंक्तिया ऐसे कार्यक्रमों की असलियत उजागर करती हैं:
अब परम्परा बदल गयी है,
और अपना अभिनंदन
खुद ही कराने की प्रथा चल गयी है!
ऐसे विलक्षण साहित्यकार के साहित्य का अप्रकाशित रहना साहित्यिक जगत का ही अभाव है! मुरादाबाद के हम सभी साहित्यकारों को मिल जुल कर प्रयास करके उनके साहित्य को प्रकाशित करवाकर इस अभाव की पूर्ति करनी चाहिए। यही श्री श्रृंग जी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी!
रामपुर के साहित्यकार रवि प्रकाश ने कहा राजेंद्र मोहन शर्मा श्रंग के गीत स्वयं में अद्भुत छटा बिखेरते हैं । आप के काव्य में जहाँ एक ओर मनुष्य की रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ी हुई विवशताएँ उजागर हुई हैं तथा उसकी वेदना को स्वर मिला है वहीं दूसरी ओर आपने श्रंगार के वियोग पक्ष को असाधारण रूप से सशक्त शैली में अभिव्यक्ति दी है। आपके गीत अपनी प्रवाहमयता के कारण पाठकों को बरबस अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं तथा उनके हृदयों पर सदा-सदा के लिए अंकित हो जाते हैं । काव्य में वास्तविकता का पुट लाने में श्रृंगजी सिद्धहस्त हैं।
साहित्यकार हरी प्रकाश शर्मा ने कहा कि श्रंग जी के साहित्य का मूल्यांकन करने का न मुझमें साहस है और न ज्ञान,,लेकिन इतना अवश्य कह सकता हूं कि उनका ह्रदय और सोच बहुत पवित्र थी। राष्ट्र भाषा हिंदी प्रचार समिति की मासिक गोष्ठी के अतिरिक्त समीप ही आवास होने के कारण मुलाकात हो जाती थी। बेहद मधुर व्यवहार और राजनीति की धुंध से खुद को दूर रखने वाला व्यक्तित्व था उनका। सामान्यतः राजनीति पर व्यंग,कविता और लेख लिखते लिखते कवियों के पास राजनीति कुछ समय के लिए उनके पास परामर्श करने के लिए, ठहर ही जाती है,लेकिन श्रंग जी इन सभी धाराओं से मुक्त थे। मुम्बई के साहित्यकार प्रदीप गुप्ता ने कहा भाई मनोज आपका स्मृतिशेष शृंग जी पर केंद्रित यह प्रयास सराहनीय है । मुरादाबाद के वे साहित्यकार जो साहित्य प्रेमियों की उपेक्षा के कारण विस्मृत होते जा रहे हैं उनके बारे में खोज खोज कर प्रकाशित-अप्रकाशित सामग्री प्रकाश में लाना बहुत बड़ा कार्य है। श्रृंग जी ने लगातार साहित्य की श्रीवृद्धि की है । वे उन दीप स्तम्भों में से हैं जिन्होने मुरादाबाद के साहित्य जगत को आलोकित किया है
वरिष्ठ साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी जी ने कहा कि स्मृति शेष राजेन्द्र मोहन शर्मा श्रृंग जी बेहद शांत स्वभाव, निश्छल मन, हँसमुख प्रवृत्ति, आत्मीयता के प्रतीक एवं लगनशील इंसान थे। वे जिस काम को हाथ में लेते उसे पूरा करके ही दम लेते। आप रेलवे विभाग में हिंदी विभाग से सम्बद्ध रहे। हिंदी से इतना लगाव कि मुख्यालय से प्राप्त अंग्रेज़ी भाषा के पत्रों का उत्तर भी हिंदी में ही देना उनकी अनुपम कार्यशैली का उदाहरण बन चुके थे।इसके लिए कई बार उच्च अधिकारियों की नाराजगी भी सहन करनी पड़ जाती। परंतु श्रृंग जी पर ऐसी प्रताड़नाओं का कोई असर न होता। वे कहते कि ये अधिकारी तो अंग्रेज़ी भाषा को अपनाकर मातृ भाषा का अपमान कर रहे हैं। मैं ऐसा कभी नहीं कर सकता। चाहे कितना भी कष्ट क्यों न उठाना पड़े।वरिष्ठ साहित्यकार डॉ कृष्ण कुमार नाज ने कहा कि श्रृंग जी हिंदी के प्रबल समर्थक थे। वह जितने अच्छे साहित्यकार थे, उससे भी बहुत अच्छे इंसान थे। चश्मे के पीछे झाँकती हुई दो चमकदार आँखें, होंठों पर निरंतर अठखेलियाँ करती मुस्कान, सभी से हँसकर मिलना, सभी से उनकी और उनके परिवार की ख़ैर-ख़बर लेते रहना, उनके व्यक्तित्व की विशेषताएँ थीं। ऐसी विशेषताएँ जो सदैव स्मृतियों में रहेंगी। अगर हम लेखन की बात करें तो श्रृंगजी ने साहित्य की बहुत-सी विधाओं में रचनाएँ लिखीं। गीत उनकी प्रमुख विधा थी। इसके अलावा उन्होंने नाटक भी लिखे, हाइकु भी लिखे, बाल कविताएँ भी लिखीं और लघुकथाएँ भी लिखीं। एक ही साहित्यकार में इतनी साहित्यिक विशेषताएँ बहुत कम लोगों में देखने को मिलती हैं। लेकिन, श्रृंगजी इसका अपवाद हैं।
युवा साहित्यकार एवं समीक्षक डॉ अवनीश सिंह चौहान ने कहा कि श्रृंगजी का प्रथम गीत संग्रह 'अर्चना के गीत' 1960 में प्रकाशित हुआ था। यह संग्रह पारम्परिक गीतों की एक कड़ी के रूप में देखा जाता है, जिसमें साठोत्तरी कविता के प्रमुख तत्वों, विशेषताओं, यथा — आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक विसंगतियाँ और उनके प्रति विद्रोह एवं आक्रोश की भावना आदि का अवलोकन किया जा सकता है। श्रृंगजी बड़े ही गंभीर, संयमित एवं स्पष्ट व्यक्तित्व के धनी थे। युवा हों या वरिष्ठ हों— वह सभी रचनाकारों को साथ लेकर चलने में विश्वास रखते थे। वह अपने को अकिंचन और दूसरों को श्रेय देने वाले श्रृंगजी निर्मल हृदय के व्यक्ति थे। सहज एवं मितभाषी। जब भी बोलते, विनम्रता से बोलते। जब भी मिलते, अपनेपन से मिलते। अपनी संस्था 'हिन्दी साहित्य संगम' में साहित्यकारों का स्वागत करना, आगंतुकों का आदर करना, रसिकों पर स्नेह लुटाना — उन्हें अच्छा लगता था। युवा साहित्यकारों से उन्हें विशेष लगाव था। वे युवा रचनाकारों को न केवल प्रोत्साहित करते, बल्कि मंच प्रदान कर उनका मार्गदर्शन भी किया करते थे। युवा साहित्यकार राजीव प्रखर ने कहा कि श्री राजेन्द्र मोहन शर्मा 'श्रृंग', साहित्य के मौन व महान तपस्वी थे। उन्होंने किसी प्रसिद्धि, पद अथवा लाभ की चिन्ता किए बिना माँ वाणी की सतत् सेवा तथा साहित्य के प्रति पूर्ण समर्पण को ही महत्व दिया। उनकी महान साहित्य साधना के विषय में विभिन्न सूत्रों से मुझ अकिंचन को यह जानकारी मिली है, यद्यपि उनके इस महान सेवा-भाव एवं रचनाकर्म पर भी कुछ स्वयंभू महानुभावों ने अपनी भौहों में बल डालते हुए विपरीत प्रतिक्रिया की परन्तु, यह स्वाभाविक है। ऐसा प्रत्येक रचनाकार के साथ होता है। आज यह सर्व विदित है कि उन स्वयंभू महानुभावों ने श्रृंग जी जैसे महान साहित्यिक तपस्वी की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देख कर मात्र अपना अमूल्य समय ही नष्ट किया। मेरे वे सभी वरिष्ठ साहित्यकार/रचनाकार तथा साधक, जिन्होंने स्मृतिशेष श्रृंग जी के सानिध्य में एक लंबा समय व्यतीत किया, मेरी इस बात का अवश्य समर्थन करेंगे, ऐसा मैं मानता हूँ।
अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा ने कहा रेलवे में कार्य करते हुए वह अपनी मातृभाषा हिन्दी की सेवा विभिन्न माध्यमों से विभिन्न विधाओं में करते रहे ।वह आध्यात्मिक और आत्मपरक भावपूर्ण रचनाओं से हिन्दी साहित्य को उत्तरोत्तर समृद्ध करते रहे और साथ साथ उस समय के प्रतिष्ठित और नवोदित साहित्य प्रेमियों और रचनाकारों को एक मंच प्रदान कर उनका उत्साह वर्धन करते रहे ।सबसे बड़ी उपलब्धि 'हिन्दी साहित्य संगम ' जैसी संस्था की स्थापना की ।आपके लेखन में समाज का दर्शन व्यक्ति के मन का आनन्द पीड़ा ,संत्रास और आत्म मंथन और सहज प्रेम ,और समन्वय ,समन्वय समाज से ,अपने से ,अपने वातावरण से , उदारवादिता के साथ लक्षित होता है । इन पंक्तियों के साथ अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए अपनी लेखनी को विराम देती हूं -
भाव उमड़े जलधि की लहर से बढ़े
मिट गए तो कभी वे नजर में चढ़े ।
छू न पाए कभी वे तट- बंध को
कूल पर हम खड़े तिलमिलाते रहे ।
लिख सकी लेखनी एक भी गीत कब ?
कोशिशों भें निशा भी गई बीत सब ।...
.....देखते व्योम को हम रहे रात भर
पर पड़े टेक ही गुनगुनाते रहे ।
कवयित्री मीनाक्षी ठाकुर ने कहा कि साहित्य की अखंड ज्योति को जलाकर हिंदीपथ को आलोकित करने वाले मुरादाबाद के वरिष्ठ गीतकार व हिंदी साहित्य संगम के संस्थापक कीर्तिशेष श्री राजेंद्र शर्मा श्रृंग जी हिंदी के आकाश में चमकता हुआ वह तारा हैं जो दूसरों को अंधकार में दिशा प्रदान करता है। आपके गीतरुपी पुष्पों ने हर रंगरूप में ढलकर माँ शारदे की वंदना की है। देशप्रेम,सामाजिक स्थिति, भ्रष्टाचार, श्रृंगार, लगभग सभी विषय आपकी लेखनी की धार से समय के साथ बहते रहे।इतना विस्तृत साहित्यिक सृजन होते हुए भी उसे प्रकाशित करवाने की होड़ कभी आपके मन को न छू सकी।"गीतकार मत गीत लिखो ,प्रेयसी के श्रृंगार के
आज समय की माँग तुम्ही से,गीत लिखो अंगार के"
उपरोक्त पंक्तियों द्वारा आपने उन कवियों को भी जाग्रत करने का प्रयास किया है जो मात्र श्रृंगारिक रचनाओं में डूबे रहते हैं और समाज व देश की समस्याओं की ओर से आँखें मूँद लेते हैं।आपकी विलक्षण प्रतिभा और हिंदी के प्रति आपका अनुराग, दोनो एकसाथ मिले तो साहित्य की विभिन्न विधाओं की नदियों से एक विशाल सागर बन गया।आपसे कभी मेरी भेंट तो न हो सकी परंतु मिलन विहार में जब भी हिंदी साहित्य संगम की गोष्ठियों में जाना होता है तब वास्तव में भाई राजीव प्रखर के कथनानुसार मुझे भी आपकी उपस्थिति का आभास होता है।
युवा साहित्यकार फरहत अली खान ने कहा कि श्रृंग जी की कविताओं को पढ़ते हुए उन की सरलता और सहजता का अनुभव होता है। कविता के प्रिय विषय श्रृंगार के साथ साथ उन्हों ने समाज और राजनीति जैसे विषयों पर भी कविताएँ कही हैं। श्रृंग जी पर माहेश्वर सर का लेख पढ़ कर इस बात का एहसास हुआ कि वक़्त की गर्द ने ऐसे बहुत से साहित्य को आम-जन की नज़रों से ओझल कर दिया है, जिस पर आलोचनात्मक दृष्टि डाले जाने की सख़्त ज़रूरत है।वरिष्ठ साहित्यकार अशोक विद्रोही ने कहा राजेंद्र मोहन श्रृंग जी हिंदी साहित्य जगत की विराट विभूति थे। उन्होंने काव्यात्मक श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि
हे कवि-कभी आकर देखो
अपने संगम की महफिल में।
जो दीप जलाया था तुमने,
न उसकी ज्योति हुई फीकी।
उत्साहित स्वर अब भी गुंजित ,
गीतों की तान नहीं रीती।
वैसे ही सब कुछ चलता है,
अनुराग यहां पर पलता है।
हिंदी प्रेमी आते रहते,
और गीत यहां सीखे जाते।
हिंदी के छात्र यहां आकर
तुमसे ही प्रेरित होते हैं।
कुछ गीत उभरते जाते हैं,
साहित्य जगत पर छाते हैं।
हे कवि कभी आकर देखो
सब यूं ही निरंतर चलता है।
अनुराग यहां पर पलता है।।
हिंदी की सेवा की खातिर
श्रृंगार यहां गाया जाता,
पूछो यदि तो कुछ
खीज भरे तीखे स्वर भी,
तुम्हें समर्पित करते हैं
सब याद तुम्हें ही करते हैं
पर समय नहीं लौटा है कभी,
बस याद तुम्हारी आती है
और हृदय व्यथित कर जाती है।
कवयित्री सुदेश आर्य ने कहा कि श्रृंग जी ने अपनी पुस्तक "मैने कब यह गीत लिखे है" आर्य समाज स्टेशन रोड मुरादाबाद में आयोजित एक कार्यक्रम में मुझे दी थी। जब उन्हें पता चला मै भी लिखती रहती हूं कुछ न कुछ तो अपना फोन नंबर भी दिया था । उनके गीत मैंने पढ़े वास्तव में बहुत ही सुंदर गीत लिखे हैं उन्होंने।दयानन्द आर्य कन्या महाविद्यालय के प्रबंधक उमाकांत गुप्ता ने कहा कि स्मृतिशेष श्री श्रृंग जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आयोजित दो दिवसीय ऑन लाइन कार्यक्रम का पूरा रसास्वादन लिया और पटल पर प्रदत्त सामग्री का भी रसास्वादन लिया।श्री मनोज जी को उनके परिश्रम व जुनून पर बधाई व आभार ।
अंत में स्मृतिशेष राजेन्द्र मोहन शर्मा श्रृंग के सुपुत्र मुकुल मिश्र ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि मैं हृदय से धन्यवाद करता हूं भाई डॉ मनोज रस्तोगी एवं आदरणीय श्री राम दत्त द्विवेदी जी का जिनके प्रयास से यह कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम से जुड़े सभी साहित्यकारों जिन्होंने मेरे पिताश्री को स्मरण किया , का भी बहुत बहुत धन्यवाद, शत शत नमन ।
::::::::प्रस्तुति:::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822