"बहु आज पिताजी आ रहे हैं मेरे । दो-चार दिन ठहरेंगे यहाँ । सुबह को जरा जल्दी उठ जाया करना। उनको पसंद नहीं बहु बेटियों का देर तक सोना । "सास लक्ष्मी देवी ने पूजा के लोटे में जल भरते हुए कहा ।
"जी, माँ जी जल्दी ही तो उठती हूँ शीरु स्कूल जाता है न .......।"
"बस बहुओं से तो जुबान लड़वा लो । "सास ने पूजा की घंटी बजाते हुए कहा । "दो चार दिन ही की तो बात है चले जाएंगे फिर ....।"
"ट्रीन....ट्रीन!"
"हेल्लो ...हाँ पापा ...नमस्ते ...क्या ससुर जी से बात कराऊँ ....हाँ अभी कराती हूँ ।"कहकर बहु ने फोन अखबार पढ़ रहे ससुर जी को थमा दिया और खुद रसोई में चली गयी ।
"अजी सुनो लक्ष्मी ..!"
"पूजा भी नहीं करने दोगे क्या ?"
"अरे समधी जी का फोन था |"
"कौन से समधी ?"
बहु के पापा का ।"
"हाँ तो क्या करूँ ?"
"आ रहे हैं कल को यहाँ अपनी छोटी बेटी के लिए लड़का देखने ।"
"तो मैं क्या बधाई गाऊँ ...घर न सराय हो गया। जब मन करता है चले आते हैं मुँह उठाये । "लक्ष्मी देवी ने सूर्यनारायण को जल का अर्ध्य देते हुए गुस्से में कहा ।
बहु के हाथ से दूध का बर्तन छूटते-छूटते बचा ।
✍️ राशि सिंह
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
वाह,मार्मिक
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका ।
हटाएंबहुत कुछ कहती यह लघु कथा, मार्मिक है
हटाएं🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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