मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति के तत्वावधान में मंगलवार 14 फरवरी 2023 को आयोजित काव्य गोष्ठी में योगेन्द्र पाल सिंह विश्नोई की काव्य कृति "संचेतना के फूल" का लोकार्पण हुआ। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ रमेश चन्द्र कृष्ण और विशिष्ट अतिथि कामेन्द्र सिंह रहे।संचालन राम सिंह निशंक एवं अशोक विद्रोही ने किया।
गुरु जंभेश्वर धर्मशाला में हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ महेश दिवाकर ने कहा .....
बदल गया है देश हमारा
आया है अद्भुत परिवर्तन!
सकल सृष्टि जयगान कर रही,
धरा, गगन सब करते नर्तन!!
योगेंद्र पाल सिंह विश्नोई ने कहा .....
सारी दुनिया गोल है,
गोल है इसका चलन!
चल पडा़ तो घूम करके
फिर वहीं आ जाऊंगा!
मक्खन मुरादाबादी का कहना था .....
समर्थ पांव
रेल बस विमानों में
नहीं रहते!
खुली छत के शौकीन
मकानों में नहीं रहते!
ओंकार सिंह ओंकार ने कहा.......
फूल खिलते हैं हसीं हम को रिझाने के लिए
यह बहारों का है मौसम गुनगुनाने के लिए
बाग में चंपा चमेली खेत में सरसों खिली
हर कली तैयार है अब मुस्कुराने के लिए
स्वदेश भटनागर ने कहा .....
कभी पांव में रात मत करना,
आंखें जुगनू के साथ मत करना!
बहते तिनकों से भूलकर भी तुम
तह के मोती की बात मत करना!!
राजीव सक्सेना ने कहा .....
दूर हैं किनारे
टूटी हैं पतवारें
अब किस पर भरोसा करें
नदी पर या नाव पर
जिंदगी है दांव पर
रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ ने कहा.....
तुम निराशा दो मुझे ,
विश्वास लेकर क्या करूंगा!
दीप ही मेरा नहीं ,
प्रकाश लेकर क्या करूंगा!!
अशोक विद्रोही ने कहा--
गुनगुनाते भ्रमरों की गा रही टोली,
मुस्कुराती हर कली अब आ रही होली,
गीत गाओ प्यार के मनुहार के साथी,
खोल दिल अब मिल भी जाओ ज्यों दिया-बाती
कृपाल सिंह धीमान ने कहा-
आ गया बसन्त का राज, आ गयी होली!
गूंज उठी शहनाइयां मृदंग छा गई होली!!
रघुराज सिंह निश्चल ने कहा--
शिशिर से यह कह दो, कहीं भाग जाये!
कुहासे से कह दो नहीं दे दिखाई!!
अब ऋतुराज का आगमन हो चुका है,
नहीं अब चलेगी, किसी की खुदाई!!
के पी सिंह सरल ने कहा -
जाग री ललना फिर, बसंत आया,
विगत निशा ठिठुर, प्राची दिनकर भाया!
कामेंद्र सिंह ने कहा....
कब तक दोगे मुंह तोड़ जवाब,
भारत माता मांग रही है अपने पुत्रों का हिसाब!!
मनोज मनु का कहना था ....
कसमसाती कल्पना में वास्तविक आधार भर दो,
ये मेरा प्रणय निवेदन स्वप्न अब साकार कर दो!!
राम दत्त द्विवेदी ने कहा-
लाखों बेघर हों तो हम छत छपाये कैसे!
भूखे वे हों तो हम एक कौर खायें कैसे !!
श्रीकृष्ण शुक्ल ने कहा -
वैलेंटाइन तुम जपो, अपना भला बसंत
अपने तो आदर्श हैं, शकुन्तला दुष्यन्त!
डॉ राकेश चक्र का कहना था-
छू लें इस अम्बर के तारे,
चित्र बनाते न्यारे न्यारे
पौधे रोपें खिले फूल तब,
खुशियाँ भरते नये नजारे
राजीव प्रखर ने कहा-
बहुत है दूर यह माना,
तुम्हारी प्रीत की नगरी।
तुम्हारे ध्यान में मोहन,
सदा भायी यही डगरी।
उड़ेगा प्राण-पंछी जब,
मुझे भव पार कर दोगे,
इसी विश्वास से मैंने,
सजाई शीश पर गगरी।
शुभम कश्यप ने कहा ....
मादरे हिन्द तिरी शान बढाने निकले
हम सर ए- दार तेरी मांग सजाने निकले
उनकी अज्मत को सलाम उनकी शहादत को सलाम
वो जो पुलवामा मे सर अपना कटाने निकले
राम सिंह निशंक ने कहा -
सारे जग से न्यारी मां ,
लगती कितनी प्यारी मां
कष्ट हरे सुख देती है
दुख सुख को सह लेती है
मनोज मनु ने कहा --
आ गये ऋतुराज लो मौसम सुहाना आ गया!
फूल, तरु, पल्लव कली को मुस्कुराना आ गया!!
गोष्ठी में कृष्ण कुमार नाज,विवेक निर्मल, कृपाल सिंह धीमान, डॉ मनोज रस्तोगी आदि ने भी काव्य पाठ किया। सभी ने एक से बढ़कर एक सुंदर काव्य पाठ किया।
:::::प्रस्तुति:::::::
अशोक विद्रोही
उपाध्यक्ष
राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति
मुरादाबाद ,उत्तर प्रदेश, भारत
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