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बुधवार, 14 जुलाई 2021
शनिवार, 19 जून 2021
मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी ----अनमोल बेटियां
........बड़ी मन्नतों के बाद जय को बेटे की उपलब्धि हुई थी....... घर में खुशियां ही खुशियां थीं....... उस दिन रजनी भी सुंदर सी फूली हुई गुलाबी फ्रॉक पहने उछलती कूदती फिर रही थी .....
"भैय्या आया भैय्या आया.....!'"
समय पर लगाकर उड़ गया..... बेटा बेटी दोनों ही डॉक्टर हो गए थे.....दोनों की शादी हो गयी थी........बेटी. हजार किलोमीटर दूर पति डॉ नवीन के संग सुख से रहने लगी थी...... बेटे की भी सरकारी नौकरी लग गई और पत्नी के साथ आनंद से रहने लगा......।
......... जय सेवानिवृत्त हो चुका था यद्यपि उसकी पेंशन नहीं थी फिर भी सारी जिम्मेदारियों से मुक्त होने के बाद के पति पत्नी चैन से रह रहे थे...!
........... परंतु कहते हैं न खुशियों की उम्र लंबी नहीं होती.......बेटे का एक हादसे में निधन हो गया! इलाज में जय की सारी जमा पूंजी खर्च हो गई परंतु बेटे को न बचा सका....... राधा का बसा बसाया घर उजड़ गया जैसे कोई किसी चिड़िया का घोंसला नौच ले.......!...... घर तिनके तिनके होकर बिखर गया......!
........... राधा को मृतक आश्रित पर नौकरी भी नहीं मिली...... हार कर .3 माह का बच्चा लिये सास ससुर के पास आ गई....!
..........बेटे के जाने के बाद जय और पूनम बिल्कुल टूट चुके थे..........हर समय उदास रहने लगे थे एक तरह से देखा जाए तो...... डिप्रेशन में ही आ गए थे ।
....... कुछ तो अधिक उम्र की वजह कुछ बेटे के सदमे में रो-रो कर जय की दोनों आंखें खराब हो रही थी.....आंखों में पूरी तरह मोतियाबिंद उतर आया था ....आंखों से अब कुछ भी ठीक से दिखाई नहीं देता था जब जब चश्मा बनवाने जाता डॉक्टरऑपरेशन के लिए कहता ......"आंखों में बहुत काम्पलिकेशन आ चुका है" ..... "ज्यादा देर करोगे तो दोनोंआंखें ही खो बैठोगे"..... "इस समय भी कन्शेशन के बाद अस्सी हजार का खर्च आयेगा .....!"
.........परन्तु जय पर अब पोते और बहु की जिम्मेदारी भी आजाने के कारण हाथ तंग चल रहा था....... जय मन मसोस कर रह जाता..!.... "आज बेटा होता तो सब संभाल लेता उसे कुछ भी परेशानी नहीं होती....."! जैसे तैसे उसने पैसों का इंतजाम किया।
............. बेटी बार बार कह रही थी आपरेशन मेरे आने पर ही करवाना । जैसे ही बेटी आयी। जय आपरेशन कराने के लिए तैयार हो गया सब लोग साथ में गए....... ऑपरेशन सफल हो गया ।
........ जय ने पेमेंट के लिए पैसे दिए जो कि.... "सारा पेमेंट हो गया है" कह कर डाक्टर ने वापस कर दिए ।
......सभी पेमेंट रजनी ने कर दिया था!........
..... जय उस पीढ़ी के लोगों में से था जो लोग लड़की के घर का पानी भी नहीं पीते इसलिए उसे यह बिल्कुल पसंद नहीं था..... . नवीन ने समझाया ....."पापा ये पैसे उसके अपने कमाए हुए हैं और वह आप पर ही खर्च करना चाहती हैं मना मत करो ....! वह हर समय आपकी चिंता में घुली जाती ..........है उसे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगेगा....!"
सच्चाई यह थी कि यह पेमेंट होने से जय को बेटी ने इस समय कर्जदार होने से बचा लिया था.....इस गहरी हमदर्दी अपनेपन ने जय की अन्तरात्मा को छू लिया। .......उसे लगा भगवान ने बेटा छीन लिया तो क्या हुआ बेटी तो है उस की आंखों से आंसू खुद वह खुद बहे.जा रहे थे.............! वह सोच रहा था....
....."लोग व्यर्थ ही बेटों की चाह में ऐसी अनमोल बेटियों को गर्भ में ही.......!"
✍️ अशोक विद्रोही, 412 प्रकाश नगर, मुरादाबाद मोबाइल 8218825541
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रविवार, 6 जून 2021
मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कुण्डलिया ---वनस्पति ,जंतु जगत, जलवायु मिल जाय, इन सबका संतुलन ही, पर्यावरण कहाय।।
वनस्पति ,जंतु जगत,
जलवायु मिल जाय।
इन सबका संतुलन ही,
पर्यावरण कहाय।।
पर्यावरण कहाय ,
हरे मत विरवे काटो,
वन्य जगत के जीवों,
को भी जीवन बांटो।
विद्रोही जीवन की ,
वर्ना होय दुर्गति ।
प्राणवायु हो शून्य ,
यदि न रहे वनस्पति।।
✍️ अशोक विद्रोही, मुरादाबाद
शुक्रवार, 4 जून 2021
मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी ---विश्वास
.... ट्रेन का समय हो चुका था ....जल्दी-जल्दी टैक्सी को पैसे दिये और भागते भागते ट्रेन पकड़ी ट्रेन में बहुत भीड़ थी ....
जैसे ही विकास अपनी बर्थ तक पहुंचा..... कि ट्रेन चल दी....
...... 5 दिन बाद रेनू की शादी है सभी तैयारियां विकास को ही करनी थीं.... बैंक से 100 की 500 की नए नोटों की गड्डियां कैश निकाला..., गहने ,कपड़े ,बनारसी साड़ियां बनारस से ही खरीदीं काफी सामान हो गया था ....इसीलिए उसके पास दो बड़े बड़े सूट केस हो गये.... जिन्हें संभाल कर उसने अपनी बर्थ के नीचे रख लिया।
....... सामने वाली बर्थ किसी दिनेश गोस्वामी की थी..... शायद उसकी भी ट्रेन छूट गई...... वैसे सभी बर्थें भरीं थीं......... प्रतापगढ़ से वह बर्थ *विश्वास* (दूसरी सवारी )को दे दी
गयी ....गोरा चिट्टा सजीला नौजवान सात फिटा.... किसी हीरो से कम आकर्षक व्यक्तित्व नहीं..... विकास के सामने वाली बर्थ पर आ गया चेहरे पर मुस्कुराहट ने बरबस ही विकास को उससे बोलने के लिए मजबूर कर दिया....।
धीरे-धीरे विकास और विश्वास में घनिष्ठता बहुत बढ़ गई खाने का समय हुआ तो दोनों ने अपने-अपने घर से लाया हुआ खाना निकाला साथ बैठकर खाना खाया हंसी मजाक होती रही । बातों ही बातों में विकास ने उसे बहन की शादी में आमन्त्रित भी कर दिया........ थोड़ी देर बाद विश्वास को टॉयलेट जाना पड़ा बड़े सुंदर से इंपोर्टेड दो सूटकेस इसके पास भी थे !....बर्थ पर रखकर विकास को सौंप कर चला गया.... शायद काफी देर से रोके हुए था... काफी देर में लौटा.... धीरे धीरे बरेली पास आ रहा था और विकास भी फ्रेश होने के लिए अपना सामान उसको सौंप कर टॉयलेट चला गया बरेली में ट्रेन रुकी....... लौट कर आने पर देखा विश्वास वहां नहीं था और ट्रेन बरेली से आगे खिसक चुकी थी सामने वर्थ पर विश्वास के सूट केस रखे हुए थे ..... जिन्हें देखकर विकास ने चैन की सांस ली..... जब काफी देर हो गई तो उसे चिंता हुई शायद वह बरेली स्टेशन पर उतरा हो और ट्रेन छूट गई हो.... काफी देर इंतजार करने के बाद भी जब वह नहीं लौटा जो विकास ने झांककर अपनी बर्थ के नीचे देखा ........ तो उसके होश उड़ गए... ........ये क्या ! विकास के दोनों सूटकेस गायब थे.... उसकी जैसे जान ही निकल गई हो.......फिर क्या था ....पूरे कंपार्टमेंट में और पूरी ट्रेन में विकास ने उसे खूब ढूंढा परंतु वह कहीं नहीं मिला .......पुलिस को सूचित किया....
मुरादाबाद आ चुका था उसके सूटकेस खुलवाए गए सूट केसों में अखबारों के बीच में पत्थर के टुकड़े भरे हुए थे......! फोन मिलाने पर बार-बार मैसेज आ रहा था यह नंबर मौजूद नहीं है कृपया नंबर की जांच जांच कर ले.........
....... विकास का सर चक्कर खाने लगा!
✍️ अशोक विद्रोही, 412 प्रकाश नगर, मुरादाबाद , मोबाइल फोन 82188 25 541
गुरुवार, 27 मई 2021
मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी --नौकरानी
.... "मालकिन आपने तो 1200 रुपए ही दिये हैं..... मेरे 1500 रुपए होते हैं।"".....
"अबकी तो मुझे बच्चों की फीस भी भरनी है।दूसरे मालिकों ने और भी मेरे पैसे कम कर दिए मैडम ऐसा मत करो हम गरीब लोग बिना पैसों के गुजारा कैसे करेंगे.."
"तुमने जो लॉकडाउन में छुट्टी करी थी उसी के पैसे मैंने काट लिये हैं।"
"मैडम इतने कम पैसों में हमारा पूरा नहीं पड़ता "।
"तुम्हारा पूरा नहीं पड़ता है तो काम छोड़ दो" मीरा मैडम ने कहा।
... हार कर सावित्री मन मार कर 12 00 रुपए ही ले कर चली गई........।
...... अगले दिन कामवाली के न आने पर दीप्ति ने कहा ,"बिना कामवाली के मैं काम नहीं करूंगी "।
........इस बात को लेकर घर में बहुत हंगामा हो गया । सास बहू में झगड़ा बढ़ते-बढ़ते बात इतनी बढ़ गई कि दीप्ति घर छोड़कर चली गई साथ में बैग में भरकर अपना सामान ले गई "अब आपसे मै अदालत में मिलूंगी.... मैंने भी एक एक को जेल न करा दी तो मेरा नाम दीप्ति नहीं.।"
...... शाम हो चुकी थी शहर से जाने वाली आखरी बस भी चली गई थी । सारे घर वाले परेशान हो गए ।सब जगह ढूंढा मगर जिद्दी दीप्ति कहीं नहीं मिली दीप्ति के घरवालों को फोन किया उनसे पूछा "दीप्ति घर पहुंची ?...... उन्होंने कहा नहीं घर तो नहीं पहुंची क्या बात है......? क्या हुआ?.... क्यों चली गई?? .... क्या हुआ ?"
आखिर पुलिस मैं रिपोर्ट लिखवाई पुलिस ने बहुत ढूंढा.... परंतु कहीं पता नहीं चला....... घर वाले बहुत परेशान हो गये हैं गंभीर सोच में पड़ गए कि यदि....... नहीं मिली तो क्या होगा
....."दीप्ति के मायके वालों ने केस लगा दिया तो लाखों रुपए के नीचे आ जाएंगे" मीरा ने कहा और बैठ कर रोने लगी।
....... सारे घर वाले एक जगह बैठे थे और यही विषम चल रहा था कि तभी देखा सावित्री बहू का बैग लिए चली आ रही है पीछे पीछे दीप्ति भी थी ।
सावित्री ने कहा "मैडम मैं शाम को बस स्टैंड से निकल रही थी सारी वसें जा चुकीं थी और दीप्ति मैडम बस स्टैंड पर अंधेरे में बैठे हुईं थीं...... कुछ गुंडे वहां पर इकट्ठे हो गए और मैडम के साथ बदतमीजी करने लगे ".....वो तो अच्छा हुआ मैं वहां पहुंच गई मैंने सारे गुंडों को धमकाया और दीप्ति मैडम को साथ लेकर अपने घर चली गई मैं रात तो रात को ही आना चाहती थी मगर दीप्ति मैडम किसी भी कीमत पर लौटने को तैयार नहीं हुईं कहने लगी मैं सुबह ही निकल जाऊंगी रात भर समझाने बुझाने से मैडम की समझ में आया।
... अब मैडम बहू को प्यार से रखो यहां का माहौल अच्छा नहीं है....
यह कहकर सावित्री लौटने लगी
तभी मीरा मैडम ने ... आगे बढ़कर सावित्री को गले लगा लिया बोलीं...."आज से तू इस घर की नौकरानी नहीं बेटी की तरह है ....कल से काम पर आ जाना......!"
✍️ अशोक विद्रोही,412 प्रकाश नगर, मुरादाबाद, मोबाइल फोन 8218825541
मंगलवार, 11 मई 2021
गुरुवार, 6 मई 2021
मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी ----बेसहारा हाउस..
बुधवार, 28 अप्रैल 2021
मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की रचना --- मैं विद्यालय जाऊं कैसे
कोरोना के नये दौर में ,
मैं विद्यालय जाऊं कैसे?
बाहर घूम रहा कोरोना,
घर के बाहर आऊं कैसे?
कभी सुनी न और न देखी,
ऐसी नयी कहानी लिख दी।
ब्रह्मा जी ने कभी रची न,
ऐसी अजब निशानी रच दी।।
मास्क लगा सबके ही मुख पर,
अपना मुख दिखलाऊं कैसे ?
बाहर घूम रहा कोरोना,
घर के बाहर आऊं कैसे??
हवा विषैली हो जाये तो,
हम तुम सांसें कैसे लेंगे .?
कटे वृक्ष धरती से कितने,
प्राण वायु फिर कैसे देंगे ?
घायल होती हरियाली में,
पर्यावरण बचाऊं कैसे?
बाहर घूम रहा कोरोना,
घर के बाहर आऊं कैसे??
बन्द हुए हैं विद्यालय सब,
किंतु फीस फिर भी बढ़ती हैं।
लाक डाउन के नये दौर में,
ओनलाइन क्लासें चलतीं हैं।।
दोस्त सभी अब छूट चुके हैं,
फिर से दोस्त बनाऊं कैसे ?
बाहर घूम रहा कोरोना,
घर के बाहर आऊं कैसे ?
कर के दया प्रभु परमेश्वर,
चमत्कार अब तो दिखला दो।
महामारी से त्रस्त हुए सब,
हे प्रभु इस को दूर भगा दो।।
छोड़ तुम्हारे चरणों को मैं ,
द्वार दूसरा पाऊं कैसे ?
बाहर घूम रहा कोरोना,
घर के बाहर आऊं कैसे ?
✍️ अशोक विद्रोही
412, प्रकाश नगर, मुरादाबाद
मोबाइल फोन 82 188 25 541
शुक्रवार, 23 अप्रैल 2021
मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी ----- मेरे अपने
..............."एक महीना हो गया इस आदमी को.... जब से मरा कोरोना फैला है ....किसी की फिक्र है इसे.... ? "
"... न मेरी......! न बच्चों की !सुबह 6:00 बजे निकल जाता है! और रात को 11:00 बजे पहुंचता है वापस घर।
..... घर में ! क्या सामान है ...... क्या नहीं ? राशन महीने में एक बार ही लाता है!..... फिर बीच में दो बार सब्जी..... बस हो गया ! मेरा तो मन भर गया इस आदमी से.!.... आखिर मेरा भी तो मन है.....कि ये मेरे साथ भी समय गुजारे...... !" मेरे मन की बात सुने अपने बच्चों के बीच में दो घड़ी बैठे बतियाये..!".... कभी साथ में पिक्चर देखे!..".
...."कभी कहीं अकेले नहीं जाना चाहता घूमने मेरे साथ ! प्रोग्राम भी बनाओ तो एक दो को चिपका ही लेता है !अपने साथ......!" तंग आ गई मैं तो इस आदमी से !
"अरे यही सब करना था तो शादी क्यों... की ?".......भगवान दुश्मन को भी ऐसा पति न दे.... फूट गयी मेरी किस्मत !...... दिन भर घर से गायब रहता है रात को खाना खाने चला आता है बेशर्म.....!"
" हमेशा समाज सेवा! समाज सेवा ! ! समाज सेवा!!! समाज सेवा न हुई मरी गुलामी हो गयी..!.... भूत सवार है इसके सर पर कभी अपने घर को देखता ही नहीं.....!... मैं तो तंग आ चुकी हूं !इसकी आवारागर्दी से... अगर इसे कौरोना हो गया तो कौन देखेगा ? बस सुघड़ भलाई से मतलब है !!
.....आज सुबह से ही किसी अनहोनी की कल्पना से बेचैन....... अनीता बड़बड़ाये जा रही थी। ...... मूड बिल्कुल खराब हो रहा था।
"..........मरे कोरोना में संघ वालों के साथ खाने के किट बांटते फिर रहे हैं न तन का होश है न वदन का !"
.....अगर इन्हें कोरोना हो गया तो हम लोग तो कहीं के ना रहेंगे"....? यह सोचते सोचते अनीता अपने कामों में लग गयी ।
......नगर में महामारी ने विकराल रूप ले लिया था...... .विशाल पूरे दिन कोरोना मरीजों को अस्पताल पहुंचाने ,सहायता पहुंचाने उनके घर वालों को भोजन किट पहुंचाने में ही व्यस्त रहने लगा था ......जो घर लौटा तो उसको गले में दर्द था .....अंदर से !..... बुखार सा भी था...... शाम से रात होते-होते तकलीफ बढ़ने लगी रात के 12:00 बजे तक गला बन्द... खांसी, जुकाम ,बुखार से बुरा हाल हो गया..... उसकी सूंघने व स्वाद ग्रहण करने की शक्ति भी खत्म हो गई थी!
..... जांच कराने के लिए कोरोना सेंटर पर ले गए ।कोरोना पाज़िटिव रिपोर्ट आयी !
.....अनीता क्रोध शोक से आपा खो बैठी ! ...."पड़ गयी ठंडक !"..होगयी समाज सेवा!!..... बहुत आखरी काट रखी थी....अरे मैं तो पहले ही कहती थी...मेरी सुनता कौन है? ...अब मरो बे मौत !"
....आखिर दुखों का पहाड़ जो टूट पड़ा था उस पर !
....... अनीता ने अपने मैके में भाइयों व ससुराल में देवर , जेठों सभी से बात की "भैया हमारी मदद करो ! हम मुसीबत में हैं !" परन्तु कोरोना की सुन कर सभी ने वहाने बाजी कर किनारा कर लिया ।..... अब क्या करे ....तीन तीन बच्चों को लेकर कहां जाये ? किससे मदद मांगे ?
......परन्तु ये क्या ! विशाल के मित्रों की टोली जैसे ही घर पहुंची ! खबर आग की तरह पूरे शहर में फ़ैल गयी......विशाल को कोरोना हुआ है !........फिर क्या था उसके घर पर सामान पहुंचाने वालों का तांता लग गया !
"हम हैं न!..भाभी जी !"
"चिन्ता मत करो !... "
"सब ठीक हो जाएगा"..!
..क्या क्या चाहिए ?.... सब हाजिर होने लगा ....क्या करना है ? रुपए पैसे से लेकर बिना मांगे ही लोग सहयोग में जुट गए!
.... विशाल भैया को कोई तकलीफ न हो सब अच्छे से अच्छे इंतजाम होने लगे ....अच्छे अस्पताल में भर्ती कराया गया.... हालत ज्यादा बिगड़ने पर तीर्थंकर से उसको मेरठ रेफर कर दिया गया...... रातों रात विशाल भैया को मेरठ में आंनद हास्पिटल में भर्ती कराया गया.....लोग रात दिन उसके बच्चों का ध्यान रख रहे थे । हर संभव परिवार की देखभाल कर रहे थे।
......अनीता को अपने उलाहनो पर आज पश्चाताप और मलाल हो रहा था ....और बहुत आश्चर्य भी ! ..... कि आज मुसीबत की घड़ी में जब सब अपनों ने उसका साथ छोड़ दिया था तब उसे सहायता पहुंचाने वाले .... इतने लोग....!
अपनो की कमी तो चुभ रही थी.... पर .... अपने लोगों की कोई कमी नहीं थी ।
.....उधर अस्पताल में प्लाज्मा देने वालों की लाइन लगी हुई थी.....
.....धीरे धीरे विशाल स्वस्थ होकर घर आया ......घर पर मिलने वालो की भीड़ लगी थी........तिल रखने की घर में जगह नहीं थी.....!
.......... अनीता को मानो... विशाल के व्यक्तित्व के विराट रूप का दर्शन हो रहा था..... वह व्यक्ति जो हजार ताने उलाहने सुन कर भी हमेशा जोर से हंस दिया करता था! जिसे अनीता ने हमेशा निकम्मा, संवेदन हीन, तुच्छ समझा कभी सम्मान की दृष्टि से भी नहीं देखा.....उसके इतने चाहने वाले !...
भीड़ को देख कर उसकी आंखों में आंसू थे.....शायद इसलिए कि उसका मन कह रहा था......!
........यही सब तो हैं मेरे अपने!
✍️ अशोक विद्रोही ,412 प्रकाशनगर मुरादाबाद
मोबाइल फ़ोन नम्बर 8218825541
बुधवार, 14 अप्रैल 2021
गुरुवार, 11 मार्च 2021
मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी -----बस अब और नहीं!
✍️ अशोक विद्रोही,412 प्रकाश नगर, मुरादाबाद, मोबाइल फोन नम्बर 82 188 25 541
गुरुवार, 4 मार्च 2021
मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी --हादसा.....
.... दहेज की बलि बेदी पर चढ़ गयी बेटी की भेंट ! लोभी दरिंदों ने आठ दिन तक अन्न का एक भी दाना नहीं दिया...बन्द कमरे में भूखी प्यासी मार दिया....!
थाने पहुंचे मम्मी-पापा . पोस्टमार्टम रिपोर्ट में रिपोर्ट आयी पेट में पिछले आठ दिनों से कुछ भी नहीं गया...परन्तु इसे पुलिस हत्या का सबूत नहीं मान रही पुलिस दुनिया भर के सबूत मांग रही है ....चक्कर लगा लगा कर थक गये ...अब पुलिस रिश्वत भी चाहती है...दो और जवान बेटियां घर में क्वारी बैठीं हैं....! माली हालत भी ठीक नहीं है... कार्रवाई रोकने के लिए लड़के वालों से मिली मोटी रकम के बाद पुलिस कार्यवाही कैसे करे ?......
....कैसी विडम्बना है ? एक तो ज़िगर का टुकड़ा गया .... अपराधी स्वतन्त्र घूम रहे हैं ! ऊपर से रिश्वत दोगे तभी एफ आई आर दर्ज होगी...!
.....सरवेस.... हिम्मत हारने लगा था थक चुका था भाग दौड़ करते करते...... परन्तु जब घर लौट कर घर में घुसता तो बेटी की फोटो का सामना नहीं कर पाता और लड़ने के लिए न जाने कहां से शक्ति आ जाती......दिन यूं ही गुजरते जा रहे थे.....
.......तब ही एक दिन अचानक अखबार पढ़ते पढ़ते सरवेस ड्यूटी छोड़ कर घर की ओर दौड़ा जाकर पत्नी को अखबार दिखाया.....
.......लिखा था 'भयानक हादसा एक ही घर के तीन लोगों की मौत'
कार और डंपर की भयानक टक्कर में कार बुरी तरह क्षति गस्त हो गई और उसमें बेटा मां और बाप की मृत्यु हो गई....
.....ये बेटी के सास ,ससुर और पति ही थे.....
✍️ अशोक विद्रोही, 412 प्रकाश नगर, मुरादाबाद, मोबाइल फोन नम्बर 8218825541
शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2021
मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी ------रैन भई चहुं देश
... विश्वास को जैसे ही पता लगा कि जसवन्त सिंह की तबीयत बिगड़ती ही
जा रही है वह तुरंत ही उनसे मिलने पहुंच गया जसवंत सिंह को अक्सीजन लगी थी आंखें खुली हुई थी प्रणाम का उन्होंने इशारों से ही प्रत्युत्तर दिया । बहुत कोशिश करने के बाद भी कंठ से कोई आवाज नहीं निकल पायी ।
..... उन्होंने हाथ जोड़े और दो आंसू उनकी आंखों से ढुलक पड़े.. मानो कह रहे हों.... मुझसे जीवन में जो भी गलतियां हो गई हैं ....कृपया अब उन्हें क्षमा कर देना .....
हम छोटी-छोटी बातों पर लड़ते रहते हैं परंतु जब यमराज लेने आते हैं और जिन्दगी अपना दामन समेटती है तो बोलने का मौका भी छीन लेती है।
.........बहुत सारी अनकही बातें उनकी आंखों और चेहरे के हाव भाव से सुनी और समझी जा सकती थीं ...........भगवान ने उनकी जुबान से आवाज को छीन कर आंखों की और चेहरे के हाव-भाव की भाषा ही दे दी......थी............ दुखद स्थिति में थोड़ी संवेदनशीलता अंतिम समय के लिए बचा कर रखनी ही चाहिए ..... थोड़ी देर पास बैठकर विश्वास घर के नंबर पर लोड करना
........ विश्वास के मस्तिष्क वही सारी बातें घूम रही थी रोजमर्रा की जीवन ..की।
...... मंदिर में आने पर आरती के बाद ₹1 का सिक्का जसवंत सिंह जी जोर से गिराते थे ......जसवन्त सिंह पर इसका कोई भी असर नहीं होता था कि लोग क्या कहेंगे मैंने सिक्का गिरा दिया....बस!
उन्होंने इशारों में कहां मझे माफ कर देना.....
भगवान जिसकी आवाज छीन लेते हैं उन्हें दूसरी शक्ति दे देते हैं ! चेहरे के हाव-भाव और आंखों की भाव भंगिमा यही सब दिखा रहा था..
जीवन भर हर कोई सोचता रहता हैं कि पता नहीं जीवन कितना लंबा है परंतु जब उम्र पूरी हो जाती है तो फिर आदमी कुछ भी साथ नहीं लेजा पाता.....
विश्वास ने बहुत बार कहा था अंकल जी थोड़ा धर्म-कर्म में खर्च कर दिया करो ! जसवंत सिंह ने कभी भी यह नहीं सोचा कि दुनिया से जाना भी है।
आज जसवंत सिंह का अंतिम समय आ गया था उन्होंने जीवन में दो तीन मकान बनाए बाग खरीदें पर मोह कभी नहीं त्याग पाए...... कभी किसी के मरने में शामिल नहीं हुए ।
विश्वास के पास आधे घंटे बाद फोन आया अंतिम संस्कार के लिए 4 लोग भी नहीं इकट्ठे हो पा रहे हैं....!.... लोगों को बुलाइए जिससे अंतिम यात्रा शुरू हो सके....
....... आज विश्वास को अपने ही शब्द याद आ रहे थे जो उसने बहुत बार जसवंत सिंह जी से गए थे........
...कर्म करले अच्छे जग में,
वर्ना फिर पछताएगा!
इस धरा का ,इस धरा पर,
सब धरा रह जाएगा।।
✍️ अशोक विद्रोही
412 प्रकाश नगर, मुरादाबाद 244001
मोबाइल फोन नम्बर 82 18825 541
बुधवार, 17 फ़रवरी 2021
रविवार, 14 फ़रवरी 2021
मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति मुरादाबाद की ओर से 14 फरवरी 2021 को मासिक काव्य गोष्ठी एवं वृद्ध साहित्यकार सम्मान समारोह का आयोजन
राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति मुरादाबाद की ओर से मासिक काव्य गोष्ठी एवं वृद्ध साहित्यकार सम्मान समारोह का आयोजन 14 फरवरी 2021 को जंभेश्वर धर्मशाला लाइनपार मुरादाबाद में किया गया। आयोजन की अध्यक्षता रामदत्त द्विवेदी ने की । मुख्य अतिथि टीकाराम, विशिष्ट अतिथि ओंकार सिंह ओंकार रहे। संचालन अशोक विद्रोही ने किया। सरस्वती वंदना राम सिंह निशंक ने प्रस्तुत की ।
समारोह में साहित्यकार योगेंद्र पाल सिंह विश्नोई, रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ, रामदत्त द्विवेदी, रघुराज सिंह निश्चल, कृपाल सिंह धीमान, टीकाराम को शॉल ओढ़ाकर एवं प्रतीक चिन्ह भेंट करते हुए सम्मानित किया गया।
काव्य गोष्ठी में योगेंद्र पाल विश्नोई ने रचना प्रस्तुत की -
प्रेम पूर्वक जीता है ,
जो जीवन में निष्काम ।
वही भक्त भगवान का है,
जो जपे राम का नाम।।
अशोक विद्रोही ने कहा ---
सरसों के फूलों ने देखो
सुंदर धरा सजाई है
खुशबूसे महका हर उपवन
ऋतु बसंत की आई है
रामदत्त द्विवेदी ने कहा ---
लाखों बेघर हों तो ,हम छत छवाएं कैसे?
राम सिंह निशंक का स्वर था ----
वृद्धों के प्रेम प्यार से, बढ़े हमारा मान।
इनका कर सम्मान हम,करते निज सम्मान।।
रश्मि प्रभाकर ने सस्वर रचनापाठ करते हुए कहा ----
कोई खुश होने लगता है
हमारे मुस्कुराने से।
कोई खुद मान जाता है
हमारे मान जाने से।।
रघुराज सिंह निश्चल ने रचना प्रस्तुत की ----
कवियों का ऐसा हो बसंत।
गूंजे कविताएं लिख दिगंत।।
प्रशान्त मिश्र ने कहा ---
सूरज ने बदली से कहा
इतना क्यों भड़कती हो।
महाराजा हरिश्चंद्र महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ मीना कौल ने कहा ----
मेरे रघुवर मेरे रघुनंदन ,
नजर मुझ पर भी कुछ डालो!
कृपाल सिंह धीमान ने कहा ---
आज मन व्याकुल बहुत है ,
कथित डर आकाश ।
आ गया ऋतुराज लेकिन,
तुम ना आए पास।।
ओंकार सिंह ओंकार का कहना था ---
फूल खिलते हैं हंसीं,
हम को रिझाने के लिए ।
जितेंद्र कुमार जौली ने आह्वान किया ---
देख चुनावी दौर जो ,लगे बांटने नोट
उसे कभी मत दीजिए, अपना कीमती वोट
डॉ मनोज रस्तोगी ने गीत प्रस्तुत किया ----
सूरज की पहली किरण
उतरी जब छज्जे पर
आंगन का सूनापन उजलाया।।
राजीव प्रखर ने कहा ---
विटप से कोकिला ने फिर
मधुर परिहास गाया है।
योगेंद्र वर्मा व्योम का दोहा था ---
महकी धरती देखकर पहने अर्थ तमाम,
पीली सरसों ने लिखा खत बसंत के नाम।
के पी सिंह सरल ने कहा ---
रश्मियां तेज होंगी अब दिवाकर की।
इसके अतिरिक्त शुभम कश्यप,टीकाराम, शवाब मैंनाठेरी, राशिद मुरादाबादी ने भी काव्य पाठ किया।
:::::प्रस्तुति :::::::
अशोक विद्रोही
उपाध्यक्ष
राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति, मुरादाबाद
शनिवार, 16 जनवरी 2021
मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति की ओर से मकर संक्रांति पर्व पर गुरुवार 14 जनवरी 2021 को काव्य गोष्ठी का आयोजन
मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति की ओर से मकर संक्रांति पर्व पर गुरुवार 14 जनवरी 2021 को जंभेश्वर धर्मशाला लाइनपार मुरादाबाद में योगेंद्र पाल सिंह विश्नोई की अध्यक्षता में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया।मुख्य अतिथि रघुराज सिंह निश्चल, विशिष्ट अतिथि- डॉ महेश दिवाकर रहे। संचालन अशोक विद्रोही ने किया । सरस्वती वंदना राजीव प्रखर ने प्रस्तुत की।कवि गोष्ठी के साथ-साथ मकर संक्रांति पर खिचड़ी का भी आयोजन किया गया सभी ने प्रेम पूर्वक प्रसाद ग्रहण किया तथा काव्य गोष्ठी में प्रतिभाग किया कवियों ने एक से बढ़कर एक रचना प्रस्तुत कीं।
योगेंद्र पाल विश्नोई ने कहा ----
हर रात के बाद दिन निकला भी तो क्या
दिन छिपेगा तो रात भी हो जाएगी।।
रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ ने कहा -
एक बृह्म है व्यापक, ब्रह्म का विस्तार,
विश्व चराचर है संसार बह्म आधार।
अशोक विद्रोही ने कहा-
मान माता तेरा हम बढ़ाएंगे,
धूल माथे से तेरी लगाएंगे।
एक क्या सौ जन्म तुझ पे कुर्बान मां
भेंट अपने सिरों की चढ़ाएंगे।।
डॉ महेश दिवाकर का स्वर था ---
पर्व मकर संक्रांति का, विश्व करे उत्कर्ष
आधि व्याधि का अंत हो, मानवता को हर्ष
राम सिंह निशंक ने कहा ---
जिसने जग रचाया ,जो सब में समाया
तू उसको मत भूल।।
रघुराज सिंह निश्चल ने रचना प्रस्तुत की --
एक झूठ सौ बार कहो,
सच्चा नहीं हुआ करता है।
कुत्तों के भौंके जाने से,
हाथी नहीं रुका करता है।।
डा.मनोज रस्तोगी ने कहा ---
कोरोना के मद्देनजर,
मुख्यमंत्री के पैकेज को
टीवी पर सुनकर
फूले नहीं समाये
हास्य कवि घनचक्कर
डॉ मीना कौल की रचना थी---
नहीं तुझे अब है डरना, और न डराना है,
हौसला रखना तुझे, हौंसला बढ़ाना है।।
राजीव प्रखर ने रचना प्रस्तुत की---
जहाँ जैसा मिले साधन,
करें हम दान श्रद्धा से।
यही तो पर्व यह पावन,
मकर संक्रांत कहता है।।
-मनोज वर्मा मनु ने कहा ---
हों प्रफुल्लित सूर्य के शुभ आगमन से प्राण श्रीमन्।
सूर्य की नव अरुणिमा निश्चित महा वरदान श्रीमन्।।
इसके अतिरिक्त जसवीर सिंह, कृपाल सिंह धीमान, रमेश गुप्ता एवं अन्य कवियों ने भाग लिया। अंत में कविवर जय प्रकाश विश्नोई के निधन पर श्रद्धांजलि अर्पित की गई।आभार राम सिंह निशंक ने व्यक्त किया।
:::::::: प्रस्तुति::::::
अशोक विद्रोही
उपाध्यक्ष
राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति,मुरादाबाद
मंगलवार, 12 जनवरी 2021
गुरुवार, 17 दिसंबर 2020
गुरुवार, 19 नवंबर 2020
मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी ----वह एक रात
.......... वाह क्या शानदार समारोह है?... शादी का !..... क्या लाजवाब इंतजाम.....? खाने में कोई ऐसी चीज नहीं छोड़ी गई थी जो ना हो इतना भव्य बड़ा पंडाल ....बड़े टेंट की शोभा देखते ही बनती थी ..
....."" बहुत ही आकर्षक "क्या अभी कुछ और भी बाकी है ?....
" क्यों नहीं ?
वैसे काफी रात हो गई है ..!
"परन्तु साहब......स्टेज सज गया.है यहां जौनपुर में आज भी शादी में नाच का प्रोग्राम न हो तो उसे शान के खिलाफ माना जाता है".!
.. मुजरा शुरू हो गया... क्या सुंदर नृत्य था स्वर्ग लोक की अप्सराएं भी शर्मा जाएं....
बिल्कुल राजा महाराजाओ जैसा माहौल....
अचानक नाचने वाली का चेहरा देखकर विनोद अवाक रह गया....."मिली! हां बिल्कुल हू वो हूं मिली ही तो है..... !"वही कद वही चाल वही.... ऐसी ही तो खूबसूरत थी...वह... बिल्कुल उसी की कॉपी ....."यार मुझे मिलना है उससे....!"बस एक बार बात करा दो मिनट भर को"....!"मिलना चाहता हूं उससे...!"
"परंतु यहां इतनी भीड़ में ! ....नहीं.... नहीं.... नहीं मिल सकते हो आप साहब!
"मुजरा चल रहा है। महफ़िल शबाब पर है"!
ड्राइवर तारा सिंह ने कहा !
" मैं पार्टी से बात करके आता हूं" बिक्रम सिंह ही मुलाकात करा सकते हैं"!
"गाड़ी पर ले आना जब दूसरी नाचनेवाली शुरू होगी तब ही ये आ सकेगी....!"
..... ऐसा ही हुआ थोड़ी देर बाद दूसरी नाचने वाली आ गई तो जिसको विनोद मिली समझ रहा था उसको तारा सिंह ले आया।
"विनोद ने पूछा"क्या नाम है तुम्हारा ?"
"प्रिया"! उत्तर मिला....
"तुम कहां से हो?"
" अरे बाबूजी कहां से क्या? हम लोगों का एक ठिकाना है?"कभी यहां कभी वहां"!
...... "फिर तुम यहां जौनपुर में कैसे?"
"जौनपुर अंड्डा है नाचने वालियों का! साहब!
तभी...प्रिया की मांग का शौर मच गया और वह वापस चली गई।
......विनोद ने प्रिया का नंबर ले लिया था
प्रिया वही नाचने वाली
ड्राइवर गाड़ी वापस ले चला परंतु विनोद के मन में चैन नहीं था......
तारा सिंह सोचता जा रहा था बेटी की उम्र की होगी प्रिया!! साहब को भी क्या पसंद आई !
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. विनोद उच्च प्रशासनिक पद पर आसीन था....... फोन करके और मोटी रकम देकर प्रिया को विनोद ने लखनऊ अपने बंगले पर बुलाया ।
पूछा,"तुम अल्मोड़ा की रहने वाली हो"?
. "नहीं..". वहां मेरी मां थी "!
"मेरा जन्म समय से 3 महीने पहले ही हो गया था जिसके कारण मेरी मां को बापू ने झूठा इल्जाम लगा कर घर से निकाल दिया .... कहकर
................"न जाने किसका पाप लेकर चली आई मेरे घर में मुझ से शादी करके"!
अब वहां हमारा कुछ भी नहीं है ।
कुछ भी नहीं है हमारे पास" !
मां की बीमारी में सब खत्म हो गया!"
तुम्हारा मन करता है? पहाड़ में रहने का?
मेरा मन बहुत करता है वहां रहने के लिए... परंतु....
"छूट गया सब कुछ मुझसे "!
"एक दोस्त भी था मेरा, जीवन, बचपन में ही,,
"अब किसी को पता भी नहीं है मैं कहां पर हूं"!
" मैं तुम्हें अल्मोड़ा बुलाऊं तो तुम आ सकती हो "जरूर आ सकती हूं पेमेंट करना होगा!"
"बिल्कुल पूरा!"
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पहाड़ी रास्ते मेंअचानक विनोद का एक्सीडेंट हो गया..... अल्मोड़ा अस्पताल में उसको भर्ती कराया गया उसी के कहने पर फोन करके प्रिया को फिर मोटी रकम देकर बुलाया गया....! उसकी हालत में अब थोड़ा सा सुधार था परंतु बचने की कोई उम्मीद नहीं थीं....... बिस्तर पर पड़े पड़े उसकी आंखों में अतीत की स्मृतियां चलचित्र की भांति ताजा हो रही थीं......
....वहअपने चार दोस्तों के साथ अपने मित्र मोहन की शादी में अल्मोड़ा गया था ।...
... बहुत सुंदर शानदार प्रोग्राम रहा जमकर खूब खाया पिया खूब हुड़दंग मचाया.... एक बड़े से शानदार होटल में बरात ठहरने का इंतजाम किया गया था उसे और उसके तीन दोस्तों को एक कमरा दे दिया गया था।......
.......परंतु अचानक.... इतना. बारिश आंधी तूफान.. आया कि सारे होटल की बत्ती गुल हो गई होटल ही क्या दूर दूर तक अंधेरा छा गया जिसको जहां आश्रय मिला उस जगह घुस गया।
विनोद के दोस्त दूल्हे के साथ लड़की वालों के घर चले गए थे
लड़की वालों का घर दूर था।
लड़की के पिता का विशेष आग्रह था कि लड़की के फेरे उसी के आंगन में पड़ेंगे इस भाग दौड़ में विनोद अकेला होटल में रह गया ....जैसे तैसे अपने कमरे में पहुंचा ...तभी अचानक कमरे का दरवाजा फिर खुला उसे लगा उसके दोस्त वापस लौट आए हैं!
"यहां कोई है "!
अचानक मीठी सी आवाज आई ।
"हां आ जाओ जब तक तूफान है बेझिझक अंदर आ जाओ!"
विनोद ने आगंतुक को अंदर बुला लिया।
ढूंढ कर मोमबत्ती जलाई मोमबत्ती के प्रकाश में जो दिखाई दिया विनोद उसे देखकर आश्चर्यचकित था बहुत ही सुंदर परी जैसी लड़की 17- 18 साल की कमरे में आ चुकी थी उसने दरवाजा बंद कर दिया था !
तूफान रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था कमरे में एक डबल बेड था उसी पर विनोद ने उसे बुला लिया और फिर...... अनायास ही मिले दो हंसों के जोड़े की तरह ही वे एक दूसरे में कब खो गए पता ही नहीं चला!
विनोद को खुमारी में कुछ भी नहीं सूझा ..... बस इतना ही पता चल सका उसका नाम मिली था
उसका घर कर्नाटक खोला अल्मोड़ा में था..... सुबह 5:00 बजे विनोद की आंख खुली ,मिली, कब की जा चुकी थी...
.........और उसका प्रतिरूप उसने प्रिया के रूप में इतने लंबे अरसे पाठक देखा....उसके जीवन की वह रात फिर उसे कभी नहीं भूली ,मिली, कि उसने बहुत तलाश की पर फिर दोबारा नहीं मिली!......
...... अल्मोड़ा में उसने एक शानदार बंगला बनवाया था ,मिली, की याद में जब कभी जिंदगी में वह उदास होता उसी बंगले में चला आता था बंगले से लगे हुए ही दो बगीचे भी थे जो फूलों और फलों से गुलजार रहते थे।
*****
....... विनोद के पास वक्त बहुत कम था और प्रिया थी कि पहुंच ही नहीं पा रही थी....
अस्पताल में आईसीयू में जैसे ही प्रिया के कदम पड़े विनोद ने उसे देखा..... मुंह से निकला बेटी! प्रिया!!और उसने अंतिम सांस ली.....!
.... चलते-चलते विनोद एक बड़ा सा लिफाफा छोड़ गया जिस पर लिखा था" मेरी प्यारी बिटिया के लिए"....
लिफाफे में प्रिया के नाम बंगले, बगीचों के स्वामित्व के कागजात , नकदी और जेवरात थे। ।
✍️ अशोक विद्रोही, 412 प्रकाश नगर, मुरादाबाद
मोबाइल फोन 82 188 25 541
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गुरुवार, 5 नवंबर 2020
मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी -----जेवरों की चोरी
..........रात का तीसरा पहर आदित्य की आंखों में नींद नहीं थी.......... उसकी व्याकुलता इस कारण नहीं थी कि उसने कुछ खाया नहीं था........उसे इस बात का भी कतई मलाल नहीं था कि उसे इतनी छोटी उम्र में गुलामों की तरह अनिच्छा से इतना कठोर परिश्रम करना पड़ता था कि रात भर उसका शरीर दुखता रहता था बल्कि इससे उसका पढ़ने लिखने का इरादा और अधिक मजबूत होता था............वह पूर्ण निष्ठा लगन और मेहनत से लगातार सौंपा गया काम निरंतर करता रहता था। भूख उसे तोड़ नहीं पाई ,मेहनत उसे डिगा नहीं पाई! परन्तु चोरी का झूठा इल्जाम वह सह नहीं पा रहा था.... उसका आत्मबल उसका संयम सब जवाब दे गया था। उसका हर समय मुस्कुराता हुआ चेहरा मुरझा कर पीला पड़ गया था........ अपने चरित्र पर लगा यह दाग वह सह नहीं पा रहा था....... और अपनी ही रिश्तेदारी में इस तरह ज़लील होकर वह जाना नहीं चाहता था.... इस तरह कलंकित होकर चले जाना उसे परेशान किए हुए था..... सुबह तो होगी परंतु उसके जीवन में तो हमेशा के लिए अंधेरा छाने वाला था ...... उसके अंदर का सब कुछ टूट रहा था उसके मन में आ रहा था कि वह आत्महत्या कर ले..... परंतु दूसरी ओर उसके अंदर की कोई शक्ति उससे कह रही थी "हार कर मत जा ! ''चला गया तो यह दाग जीवन भर नहीं धुलने वाला !"....." हार कर भाग जाना कायरता है ."!....."जब तूने कुछ किया ही नहीं है तो फिर तू क्यों इस तरह बदनाम होकर दुनिया से जाये!" इसलिए उसने उन गहनों को फिर से ढूंढने का निश्चय किया .....
घर की दीवारें मिट्टी की थीं। ऊपर से चूहों के बड़े-बड़े बिल। जेवरों पर लिपटा हुआ गुलाबी कागज़ वहीं उसी के कमरे में पड़ा हुआ मिला था यही उसके खिलाफ सबसे बड़ा सबूत था उसने दिमाग दौड़ाया.... कुछ भी था झूठा इल्जाम भी वे लगाने वाले नहीं थे। नुकसान तो हुआ था.....पर किसने??
यही यक्ष प्रश्न बार-बार मन में उठ रहा था। सहसा कुछ सोच कर आदित्य ने छैनी हथौड़ी उठाई और चूहों के बिल को तोड़ता चला गया तोड़ने की आवाज से कृष्ण कुमार और मुन्नी जाग गये आवाज लगाई"आदित्य! आदित्य!! क्या कर रहे हो खोलो दरवाजा!!"
दरवाजा खुल गया, वे बोले"दीवार क्यों तोड़ रहे हो?"
आदित्य बिना उत्तर दिये ,बिना रुके दीवार तोड़ता रहा.......
मुन्नी चिल्लाई "अरे आदित्य क्या पागल हो गया सुनता क्यों नहीं है?.."
....... तभी अचानक जो हुआ उसे देखकर सब चकित थे कंगन और जेवर सामने थे....!!!
हुआ यूं कि चूहे जेवरों की पुड़िया को दिल में घसीट कर ले गए..... सभी चीजें (जे़वर) सही सलामत मिल गए!
आदित्य की आंखों में खुशी के आंसू थे!
कृष्ण कुमार और मुन्नी ने आदित्य को गले लगा लिया और माफी मांगी......!!
........ परन्तु ये क्या आदित्य सुबह पांच बजे वाली गाड़ी से अपना बैग लेकर जा चुका था !!.....
✍️अशोक विद्रोही
412, प्रकाश नगर, मुरादाबाद यूपी
82 188 25 541