गुरुवार, 5 नवंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी -----जेवरों की चोरी


..........रात का तीसरा पहर आदित्य की आंखों में नींद नहीं थी.......... उसकी व्याकुलता इस कारण नहीं थी कि उसने कुछ खाया नहीं था........उसे इस बात का भी कतई मलाल नहीं था कि उसे इतनी छोटी उम्र में गुलामों की तरह अनिच्छा से इतना कठोर परिश्रम करना पड़ता था कि रात भर उसका शरीर दुखता रहता था बल्कि इससे उसका पढ़ने लिखने का इरादा और अधिक मजबूत होता था............वह पूर्ण निष्ठा लगन और मेहनत से लगातार सौंपा गया काम निरंतर करता रहता था। भूख उसे तोड़ नहीं पाई ,मेहनत उसे डिगा नहीं पाई! परन्तु चोरी का झूठा इल्जाम वह सह नहीं पा रहा था.... उसका आत्मबल उसका संयम सब जवाब दे गया था। उसका हर समय मुस्कुराता हुआ चेहरा मुरझा कर पीला पड़ गया था........ अपने चरित्र पर लगा यह दाग वह सह नहीं पा रहा था....... और अपनी ही रिश्तेदारी में इस तरह ज़लील होकर वह जाना नहीं  चाहता था.... इस तरह कलंकित होकर चले जाना उसे परेशान किए हुए था..... सुबह तो होगी परंतु उसके जीवन में तो हमेशा के लिए अंधेरा छाने वाला था ...... उसके अंदर का सब कुछ टूट रहा था उसके मन में आ रहा था कि वह आत्महत्या कर ले..... परंतु  दूसरी ओर उसके अंदर की कोई शक्ति उससे कह रही थी "हार कर मत जा ! ''चला गया तो यह दाग जीवन भर नहीं धुलने वाला !"....." हार कर भाग जाना कायरता है ."!....."जब तूने कुछ किया ही नहीं है तो फिर तू क्यों इस तरह बदनाम होकर दुनिया से जाये!" इसलिए उसने उन गहनों को फिर से ढूंढने का निश्चय किया .....

   घर की दीवारें मिट्टी की थीं। ऊपर से चूहों के बड़े-बड़े बिल। जेवरों पर लिपटा हुआ गुलाबी कागज़ वहीं उसी के कमरे में पड़ा हुआ मिला था यही उसके खिलाफ सबसे बड़ा सबूत था उसने दिमाग दौड़ाया.... कुछ भी था झूठा इल्जाम भी वे लगाने वाले नहीं थे। नुकसान तो हुआ था.....पर किसने??

यही यक्ष प्रश्न बार-बार मन में उठ रहा था। सहसा कुछ सोच कर आदित्य ने छैनी हथौड़ी उठाई और चूहों के बिल को तोड़ता  चला गया तोड़ने की आवाज से कृष्ण कुमार और मुन्नी जाग गये आवाज लगाई"आदित्य! आदित्य!! क्या कर रहे हो खोलो दरवाजा!!" 

दरवाजा खुल गया, वे बोले"दीवार क्यों तोड़ रहे हो?"

आदित्य बिना उत्तर दिये ,बिना रुके दीवार तोड़ता रहा.......

मुन्नी चिल्लाई "अरे आदित्य क्या पागल हो गया सुनता क्यों नहीं है?.."

....... तभी अचानक जो हुआ उसे देखकर सब चकित थे कंगन और जेवर सामने थे....!!!

हुआ यूं कि चूहे जेवरों  की पुड़िया को दिल में घसीट कर ले गए..... सभी चीजें (जे़वर) सही सलामत मिल गए!

आदित्य की आंखों में खुशी के आंसू थे!

कृष्ण कुमार और मुन्नी ने आदित्य को गले लगा लिया और माफी मांगी......!!

 ........  परन्तु ये क्या आदित्य सुबह पांच बजे वाली गाड़ी से अपना बैग लेकर जा चुका था !!.....

✍️अशोक विद्रोही

412, प्रकाश नगर, मुरादाबाद यूपी

82 188 25 541

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