.......... वाह क्या शानदार समारोह है?... शादी का !..... क्या लाजवाब इंतजाम.....? खाने में कोई ऐसी चीज नहीं छोड़ी गई थी जो ना हो इतना भव्य बड़ा पंडाल ....बड़े टेंट की शोभा देखते ही बनती थी ..
....."" बहुत ही आकर्षक "क्या अभी कुछ और भी बाकी है ?....
" क्यों नहीं ?
वैसे काफी रात हो गई है ..!
"परन्तु साहब......स्टेज सज गया.है यहां जौनपुर में आज भी शादी में नाच का प्रोग्राम न हो तो उसे शान के खिलाफ माना जाता है".!
.. मुजरा शुरू हो गया... क्या सुंदर नृत्य था स्वर्ग लोक की अप्सराएं भी शर्मा जाएं....
बिल्कुल राजा महाराजाओ जैसा माहौल....
अचानक नाचने वाली का चेहरा देखकर विनोद अवाक रह गया....."मिली! हां बिल्कुल हू वो हूं मिली ही तो है..... !"वही कद वही चाल वही.... ऐसी ही तो खूबसूरत थी...वह... बिल्कुल उसी की कॉपी ....."यार मुझे मिलना है उससे....!"बस एक बार बात करा दो मिनट भर को"....!"मिलना चाहता हूं उससे...!"
"परंतु यहां इतनी भीड़ में ! ....नहीं.... नहीं.... नहीं मिल सकते हो आप साहब!
"मुजरा चल रहा है। महफ़िल शबाब पर है"!
ड्राइवर तारा सिंह ने कहा !
" मैं पार्टी से बात करके आता हूं" बिक्रम सिंह ही मुलाकात करा सकते हैं"!
"गाड़ी पर ले आना जब दूसरी नाचनेवाली शुरू होगी तब ही ये आ सकेगी....!"
..... ऐसा ही हुआ थोड़ी देर बाद दूसरी नाचने वाली आ गई तो जिसको विनोद मिली समझ रहा था उसको तारा सिंह ले आया।
"विनोद ने पूछा"क्या नाम है तुम्हारा ?"
"प्रिया"! उत्तर मिला....
"तुम कहां से हो?"
" अरे बाबूजी कहां से क्या? हम लोगों का एक ठिकाना है?"कभी यहां कभी वहां"!
...... "फिर तुम यहां जौनपुर में कैसे?"
"जौनपुर अंड्डा है नाचने वालियों का! साहब!
तभी...प्रिया की मांग का शौर मच गया और वह वापस चली गई।
......विनोद ने प्रिया का नंबर ले लिया था
प्रिया वही नाचने वाली
ड्राइवर गाड़ी वापस ले चला परंतु विनोद के मन में चैन नहीं था......
तारा सिंह सोचता जा रहा था बेटी की उम्र की होगी प्रिया!! साहब को भी क्या पसंद आई !
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. विनोद उच्च प्रशासनिक पद पर आसीन था....... फोन करके और मोटी रकम देकर प्रिया को विनोद ने लखनऊ अपने बंगले पर बुलाया ।
पूछा,"तुम अल्मोड़ा की रहने वाली हो"?
. "नहीं..". वहां मेरी मां थी "!
"मेरा जन्म समय से 3 महीने पहले ही हो गया था जिसके कारण मेरी मां को बापू ने झूठा इल्जाम लगा कर घर से निकाल दिया .... कहकर
................"न जाने किसका पाप लेकर चली आई मेरे घर में मुझ से शादी करके"!
अब वहां हमारा कुछ भी नहीं है ।
कुछ भी नहीं है हमारे पास" !
मां की बीमारी में सब खत्म हो गया!"
तुम्हारा मन करता है? पहाड़ में रहने का?
मेरा मन बहुत करता है वहां रहने के लिए... परंतु....
"छूट गया सब कुछ मुझसे "!
"एक दोस्त भी था मेरा, जीवन, बचपन में ही,,
"अब किसी को पता भी नहीं है मैं कहां पर हूं"!
" मैं तुम्हें अल्मोड़ा बुलाऊं तो तुम आ सकती हो "जरूर आ सकती हूं पेमेंट करना होगा!"
"बिल्कुल पूरा!"
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पहाड़ी रास्ते मेंअचानक विनोद का एक्सीडेंट हो गया..... अल्मोड़ा अस्पताल में उसको भर्ती कराया गया उसी के कहने पर फोन करके प्रिया को फिर मोटी रकम देकर बुलाया गया....! उसकी हालत में अब थोड़ा सा सुधार था परंतु बचने की कोई उम्मीद नहीं थीं....... बिस्तर पर पड़े पड़े उसकी आंखों में अतीत की स्मृतियां चलचित्र की भांति ताजा हो रही थीं......
....वहअपने चार दोस्तों के साथ अपने मित्र मोहन की शादी में अल्मोड़ा गया था ।...
... बहुत सुंदर शानदार प्रोग्राम रहा जमकर खूब खाया पिया खूब हुड़दंग मचाया.... एक बड़े से शानदार होटल में बरात ठहरने का इंतजाम किया गया था उसे और उसके तीन दोस्तों को एक कमरा दे दिया गया था।......
.......परंतु अचानक.... इतना. बारिश आंधी तूफान.. आया कि सारे होटल की बत्ती गुल हो गई होटल ही क्या दूर दूर तक अंधेरा छा गया जिसको जहां आश्रय मिला उस जगह घुस गया।
विनोद के दोस्त दूल्हे के साथ लड़की वालों के घर चले गए थे
लड़की वालों का घर दूर था।
लड़की के पिता का विशेष आग्रह था कि लड़की के फेरे उसी के आंगन में पड़ेंगे इस भाग दौड़ में विनोद अकेला होटल में रह गया ....जैसे तैसे अपने कमरे में पहुंचा ...तभी अचानक कमरे का दरवाजा फिर खुला उसे लगा उसके दोस्त वापस लौट आए हैं!
"यहां कोई है "!
अचानक मीठी सी आवाज आई ।
"हां आ जाओ जब तक तूफान है बेझिझक अंदर आ जाओ!"
विनोद ने आगंतुक को अंदर बुला लिया।
ढूंढ कर मोमबत्ती जलाई मोमबत्ती के प्रकाश में जो दिखाई दिया विनोद उसे देखकर आश्चर्यचकित था बहुत ही सुंदर परी जैसी लड़की 17- 18 साल की कमरे में आ चुकी थी उसने दरवाजा बंद कर दिया था !
तूफान रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था कमरे में एक डबल बेड था उसी पर विनोद ने उसे बुला लिया और फिर...... अनायास ही मिले दो हंसों के जोड़े की तरह ही वे एक दूसरे में कब खो गए पता ही नहीं चला!
विनोद को खुमारी में कुछ भी नहीं सूझा ..... बस इतना ही पता चल सका उसका नाम मिली था
उसका घर कर्नाटक खोला अल्मोड़ा में था..... सुबह 5:00 बजे विनोद की आंख खुली ,मिली, कब की जा चुकी थी...
.........और उसका प्रतिरूप उसने प्रिया के रूप में इतने लंबे अरसे पाठक देखा....उसके जीवन की वह रात फिर उसे कभी नहीं भूली ,मिली, कि उसने बहुत तलाश की पर फिर दोबारा नहीं मिली!......
...... अल्मोड़ा में उसने एक शानदार बंगला बनवाया था ,मिली, की याद में जब कभी जिंदगी में वह उदास होता उसी बंगले में चला आता था बंगले से लगे हुए ही दो बगीचे भी थे जो फूलों और फलों से गुलजार रहते थे।
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....... विनोद के पास वक्त बहुत कम था और प्रिया थी कि पहुंच ही नहीं पा रही थी....
अस्पताल में आईसीयू में जैसे ही प्रिया के कदम पड़े विनोद ने उसे देखा..... मुंह से निकला बेटी! प्रिया!!और उसने अंतिम सांस ली.....!
.... चलते-चलते विनोद एक बड़ा सा लिफाफा छोड़ गया जिस पर लिखा था" मेरी प्यारी बिटिया के लिए"....
लिफाफे में प्रिया के नाम बंगले, बगीचों के स्वामित्व के कागजात , नकदी और जेवरात थे। ।
✍️ अशोक विद्रोही, 412 प्रकाश नगर, मुरादाबाद
मोबाइल फोन 82 188 25 541
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