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बुधवार, 7 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा----उचित निर्णय

"कब तुम्हारा... वो सम्बोधन ..मेरे जीवन की पहचान बन गया, मझे पता ही नही चला ।वह सम्मेलन जहाँ तुम्हारी कविता की शीतल बरखा मुझे अनजाने ही भिगो कर चली गई । अनजाने में ही सही ,पर तुमने ही मेरे अन्तर्मन में कविता का बीज वो दिया था ।कालेज में तुमको सम्मानित होते देख मेरा हृदय मयूर नर्तन करने लगता । किसी साहित्यिक परिचर्चा के सन्दर्भ में तुम्हारा क्षण भर का साथ असीम आनंद की अनभूति कराता ।फिर...... एक दिन ...उस मंच पर ,तुम और मैं ,एक साथ ।मुझको इंगित करके किसी गुरुजन ने कहा,"लङका बहुत आगे तक जाएगा ,पर किसी सहपाठी लङकी से आज कल इसके मेलजोल दिख रहे हैं, मेरा अच्छा शिष्य है ,.....इससे थोड़ा ....यह कहते कहते गुरुजी रुक गए।वो शब्द बहुत कुछ कह गए। अभी प्रेम का उदय कब अस्ताचल की ओर उन्मुख हुआ ,यह मैं ही जानती हूँ।यह निर्णय मेरा था ।तुमको ऊँचाई यों पर पहचान दिलाने के लिये यह उचित निर्णय लेना अपरिहार्य था । इस अपराध के लिए क्षमा की याचना तुमसे करूँ भी तो कैसे ?अवनि मन ही मनअपने उस बीस वर्ष पूर्व के युवा रूप और अतुलनीय व्यक्तित्व की सराहना  करने लगी ।

✍️डॉ प्रीति हुँकार, मुरादाबाद

बुधवार, 30 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा -----तारीफ

दीदी इतनी जिम्मेदारियों के बीच नौकरी और घर की व्यवस्था में सामन्जस्य कैसे बैठा लेती हो ?"नीति ने अपनी बहन अवनि की तारीफ करते हुए कहा"मैं तो घर पे रहती हूँ ,फिर भी बहुत ज्यादा अच्छे से घर को व्यवस्थित नहीं कर पाती । हर समय पत्नी की ओर उँगली उठाने वाले गौरव को अपनी पत्नी की यह तारीफ हजम नहीं हो सकी ,तो वह तेज नींद का बहाना करके दोनो बहनों की बातें देर तक सुनता रहा।

✍️डॉ प्रीति हुँकार , मुरादाबाद

गुरुवार, 17 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा ------नासमझी


       आज रश्मि को अपनी ससुराल छोड़े एक साल हो गया है, लेकिन जो गलती उसने जीवन में कई, वह हरपल उसे शूल जैसी चुभती है ।अपनी बहन, कभी जेठानी तो कभी माँ की दी गई गलत सीख अपने जीवन में न उतारती है तो आज उसने पूरे परिवार में रानी बन के बने रहने पर पर .... उसके व्यर्थ के अहंकार ने, उसके अकड़ ने उसके पति को भी हमेशा के लिए अलग कर दिया। कभी उसके मुख से जेठानी के लिए अपशब्द निकलते हैं तो कभी बहन और बहनोई को, जिसने उसकी ढेरों खुशियों को पल भर में आग लगा दी ।अब सिर्फ पछतावा है सिर्फ पछतावा .....। क्योंकि उसके पति ने व्यर्थ की शर्तों को कहा। मानने से स्वच्छ इंकार कर दिया ।अकड़ और घमंड के कारण वह गलती से भी माफी नहीं मांग सकी।यदि वह अपनी सास ससुर के पैर पड़ने अपनी स्थितियों के सुधरने की याचना करती है तो उसके घरौंदा दूसरों की नजर न लगती है ...। ..अब तो बहुत देर हो चुकी है .....वह सोचता है- सोंचते उसे वे सभी खुशी के पल एक एक करके याद आने लगे जो उसने कभी अपने बड़े परिवार के साथ रेफरी थे। उसकी नासमझी ने, अहम की भावना ने उसे विल्कुल अकेले कर दिया।भाई अपनी पत्नियों के साथ बच्चों के साथ, माता पिता भी एक दूसरे के साथ, जिन्होने उसके घर तोड़ा वे भी सुखी। 
डॉ। प्रीति हुँकार मुरादाबाद

मंगलवार, 8 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा ------अपाहिज सोच

किचिन में खाना बना रही अवनि सामने मोबाइल फोन रख कर बच्चों का ऑनलाइन होम वर्क भी देख रही थी ।कोरोना की वजह से सभी शिक्षकों को घर से ही बच्चों का होम वर्क देखना होता है ।यही समय घर के कामों का और यही पढ़ाने का । सोफे पे लेटी अवनि की सास आवाज लगाती हैं कि अरे !अवनि अवहीँ नाश्ता न ले आई देख वो लाला तो नाह धोय के आये गयो री ।हां, लाती हूँ, बस पाँच मिनट और बच्चे ऑनलाइन हैं अम्मा !अवनि ने रसोई में से बताया । अरे,नेक जल्दी कर लिया कर ,एक हाथ की अपाहिज लड़की हमारे छोरा के पल्ले बाँध के माँ बाप हय गए बेफिकर।मुसीबत तो हमरे नसीब पड़ी है ।अब भुगतो ।जिंदगी जाने कैसे कटेगी?अवनि की उलाहना देते हुए बोली ।अम्मा ,क्यों ताने देती हो ,जैसे यह ड्यूटी करते हैं मैं भी तो करती हूँ ,अब एक हाथ ही सही ..........यही तो ..कहते कहते अवनि नाश्ता ले आई ।बचपन में स्कूल जाते समय एक्सीडेंट में उसका हाथ चला गया पर अवनि के माता पिता ने उसकी इस अक्षमता को सक्षमता में कैसे बदला ,यह तो अवनि बहुत अच्छे से जानती थी ।उसकी सरकारी नॉकरी लगी ,तो लड़के वाले स्वयं उसका हाथ मांगने आने लगे । लोग अवनि की तनख्वाह पूछते तो उसके हाथ की कमी किसी को न दिखती ।गौरव को शिकायत थी पर माँ ने उसे खूब समझाया  ।पैसा ही समय पर काम आता है ।लड़की देखने में भी बुरी नही है। अवनि अपनी सास के उस व्यक्तित्व को मन ही मन दोहरा रही थी ।दया आ रही थी उसे समाज के ऐसे लोगों की सोंच पर ,जो किसी सक्षम को भी अपनी निम्न सोंच से बार -बार अपाहिज घोषित करके उसे नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं । असल में विकलांगता तो कहीं और है और ..........इसी चिन्तन में अवनि आपको शाबासी देती हुई अपनी सास को भी नाश्ता कराने लगी ।

✍️ डॉ प्रीति हुँकार
 मुरादाबाद

गुरुवार, 3 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा ----श्रद्धा का फल


विनीता ने जब एम ए प्रथम वर्ष में प्रवेश लिया ,निरन्तर गुरु जनों के प्रति उसकी श्रद्धा का भाव उसकी छवि को कॉलेज में उज्ज्वल करता रहा ,लेकिन यह तो उसका स्वभाव ही था ।कुछ साथी उसकी इस अतिशय श्रद्धा भावना का मजाक भी उड़ाते । विनम्रता के कारण वह कुछ न कहकर हँस देती । विभाग में उसके मुकाबले और भी अच्छे छात्र छात्राएं थीं , किसी लेख अच्छा तो किसी का प्रस्तुति करण । कॉलेज अंतिम वर्ष में स्वर्णपदक के लिये जाने कितने लोग मेहनत कर रहे थे ।विनीता भी मन से लगी थी पर अचानक अंतिम पेपर में स्वास्थ्य खराब होने से उसका पेपर उतना अच्छा नहीं रहा।
जिन छात्रों ने मेहनत की थी ,वे सभी उत्तेजित थे ,परीक्षा परिणाम के लिये। विनीता का मन अशांत था ।काश!तवीयत ठीक होती तोकुच और...........। तभी लैंडलाइन फोन की घंटी बजी .....ट्रिन ......ट्रिन ट्रिन....। विनीता !  बधाई हो बहन ...टॉपर हो तुम ,संस्कृत फाइनल ईयर में ।
विनीता की सखी गीता ने बताया।

✍️ डॉ प्रीति हुँकार
मुरादाबाद


गुरुवार, 20 अगस्त 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा -------गुदड़ी में मोती


     जब वो घर के बाहर आती तो बच्चे उससे चिढ़ते थे ।लंबे बालों में ढेर सारा सरसों का तेल लगाती थी ।बेकार में नहीं घूमती ।जब उसकी मां कोई काम बताती ,तभी घर से निकलती अन्यथा केवल  घर से स्कूल और स्कूल से घर ।चार बहनों में सबसे बड़ी ,मासूम सी ।कोई बनावट नही ।मैं जब भी छत से देखती ,वह पढ़ती ही दिखती या रसोईं में काम ।
कभी वाद विवाद प्रतियोगिता ,कभी भाषण ,कभी काव्य पाठ ,यही सब उसके शौक थे ,जब नाम छपता था अखबार में तो मुझसे न्यूज़ पेपर की कटिंग ले जाती । बस एक सपना था उसका .......कि कोई नौकरी मिल जाय पढ़ाई के बाद ,जिससे वह अपने भाई बहनों को भी कुछ प्रेरित  कर सके । मैं खुश होती थी उसे देख क्योंकि अभावों में भी वह किसी से कम न थी ।
हाई स्कूल का रिजल्ट आने बाला था ।सब  स्टूडेन्ट दहशत में थे ,उस समय उसके चेहरे पर एक अजीब सी चमक थी ।
पास होने बाले मिठाई बांट रहे ,अपनी तारीफ करते घूम रहे ।पर वह अगले क्लास के नोट्स बना रही थी ।मैंने पूंछ लिया उससे कि रिजल्ट देखा क्या ?बोली,"नही ,पेपर वाला बीस रुपये  माँगता है ।पर मेरी मां पर नहीहै।स्कूल मार्कशीट तो आयगी न ।
अगली सुबह ,कई न्यूज़ पेपर वाले एक एक करके उससे मिलने को उसका इंतजार  करते उसके दरबाजे खड़े थे । बस मुझे समझने में देर न लगी । यही वही टीम थी जो टॉपर्स का इंटरव्यू छापते थे । मेरे मुख से स्वतः निकल गया........यह ,तो "गुदड़ी में मोती "है।

 डॉ प्रीति हुँकार
मुरादाबाद

बुधवार, 29 जुलाई 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा --------- लक्ष्मी


          जेठ जी गांव में जाकर बड़े ताव में बोले "अब,दूसरा भी बेटा हुआ है ,हमारी घर वाली बड़ी लक्ष्मी आई है।देखो ,सब अच्छा ही हो रहा है ।मकान भी बन गया ।हम शहर में भी पहुँच गए।मजे से कट रही है जिंदगी ।"रसोई में चाय बना रही अवनि अपने लक्ष्मी होने पर संशय में थी ।70हजार की उसकी महीने की कमाई और उसके पति की 72हजार की कमाई किसी की नजर में नहीं थी ।एक बेटी को जन्म देने वाली अवनि  स्वयं में लक्ष्मी होने के कुछ प्रमाण खोजने में लगी थी ।

डॉ प्रीति हुँकार
 मुरादाबाद

शुक्रवार, 17 जुलाई 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा ----बेहयाई


समाज किस दिशा में जा रहा है ,यह सोंच कर विवेक बाबू चिंतित रहते थे । ।शांति प्रिय और समाज को दिशा दिखाने वालों को कभी- कभी लोभी और कुचालों के चक्कर में मानहानि और जीवन की हानि भी हो जाती है ।
विवेक बाबू एक सुलझे हुए कर्मठ शिक्षकों में से एक ।धूमधाम से बेटे का दहेजरहित विवाह किया ।बहु को बेटी का सम्मान दिया । और अपनी अधूरी पुस्तक ,बहु ही बेटी,को पूरा करने लगे।विवाह के दस दिन बाद बहु ने पति के साथ नोक झोंक में अपना हाथ चाकू से काट लिया और बूढ़े स्वसुर पर मारपीट का आरोप लगाकर उन्हें कारागार भिजवा दिया । पति को डरा धमका कर बड़ी बेहयाई से ससुराल में रह रही है पर घर का जो मुखिया है ,अपनी पुस्तक आज कारागार में ही पूरा करने को मजबूर है । क्योंकि बहु ही बेटी है ,को सिद्ध जो करना है।

डॉ प्रीति हुँकार
मुरादाबाद

गुरुवार, 9 जुलाई 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार प्रीति हुंकार की लघुकथा ------सड़क ने कहा


अमन एक बहुत ही अनुशासन प्रिय युवक था । लॉक डाउन खुलने के  कुछ ही दिन के बाद अमन को फिर घर में ऊब सी लगी ।मां से मार्केट जाने की बात कहकर ,उसने कानों में मोबाइल की  म्यूजिक लीड लगाई और बाइक से निकला ।अम्मा ने किचिन से आवाज दी कि जरा धीरे चलाना बाबू । सड़कें खाली है  ,लोग सर्राटे से चला रहे हैं वाहन।" वह आज किसी और ही धुन में रमा हुआ था। हैलमेट भी नही पहन सका ।आगे चौराहा था ।दो चार ही वाहन कभी कभी दिख जाते थे ।  दो माह से बाइक को हाथ नही लगाया था ।आज वह उस कमी को पूरा करना चाहता था । अचानक अपनी शर्ट के बटन खोलकर ,उसने बाइक को तेज स्पीड में हवा में लहराया ,फिर तेज स्पीड में किया और चौराहे की और नब्बे डिग्री पर घुमाया लेकिन यह क्या .........सामने से आती कार उसको सड़क के किनारे फेंक कर वहां कब गायब हो गई ,वह देख भी न सका ।नाक ,माथा दो हाथ सड़क से रगड़ गए और खून बहने लगा । आसपास कोई नही दिखा तो अमन खुद ही सरक कर एक पेड़ की छाया में बैठ गया ।आंखें नही खुल रही थी ।मूर्छा उसे घेरने लगी । अचानक उसे लगा ,"किसी ने उसके सिर पर हाथ रखकर सहलाया । फिर कुछ मंद स्वर उसके कर्ण विवर में प्रवेश पाने लगा ।तुम मानव !कब अनुशासन में रहना सीखोगे ?कब नियमों को मानोगे ? तुम्हारी अनुशासन हीनता और पाशविक प्रवृति के कारण ही हजारों दुर्घटनाओं को मैं अपने छाती पर सहती हूँ । कभी खून से सनती हूँ, तो कभी चीखों और कराहट से बेसुध होती हूँ।बेजुबान पशु दुर्घटना के शिकार होते हैं । कुछ ही मनुष्यों के कुकृत्यों का परिणाम पूरे मानव समुदाय को भोगना पड़ रहा है । " फिर जब आँखें खुलीं तो वह घर में बिस्तर पर था । बेसुध अवस्था में उसे कौन लाया वह नही जानता था पर बेसुध अवस्था में उसके कान में जो सड़क ने कहा ,वह अब भी उसके कान में गूंज रहा था ।

डॉ प्रीति हुँकार
मुरादाबाद

बुधवार, 1 जुलाई 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा --------अहसान


        कभी मारना, कभी गालियां देना ,कभी बिना किसी बात उसके चरित्र को दाग लगाना ,यही सब सहते अवनि को 10 वर्ष बीत गए ।दो बच्चों की परवरिश पूरी तरह अवनि ने सम्हाली ।उसकी मेहनत की कमाई पर पति का हक था ,पर पति अपनी कमाई कहाँ डालता है,यह पूछने की हिम्मत न जाने किस डर से वह कभी न कर सकी ।
अति रूपमती ,धनलक्ष्मी पत्नी और मां  सब होने पर भी वह किसी भी पद का सम्मान अर्जित न कर सकी । एक अहसान किया उसने अवनि के नाम के साथ अपना नाम जोड़कर ,जिसका उसको जीवन भर लाभ मिलता रहा । साथ रहकर भी साथ न रहने का एहसान अवनि के अस्तित्व को मिटा ही गया था।

  ✍️ डॉ प्रीति हुँकार
 मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार का गीत ----- स्वदेशी अपनाओ रे


चीज विदेशी छोड़ के भाई ,
देशी घर में लाओ रे ।
धोखेबाज पड़ोसी को अब,
मिलके मजा चखाओ रे ।
स्वदेशी अपनाओ रे ,स्वदेशी अपनाओ रे ।

ब्रांडेड का चक्कर छोड़ो ,
देशी को अपनाना है ।
लोकल को वोकल करके ही,
भारत भव्य बनाना है ।
स्वावलंबन का पथ अपनाओ,
करके कुछ दिखलाओ रे ।
स्वदेशी अपनाओ रे ,स्वदेशी अपनाओ रे ।

कचरा जिसने देश का अपने ,
भारत में भिजवाया है ।
इसकी चीजें नही खरीदें ,
सबको मिल समझाया है ।
माल हमारा लूट रहा जो ,
उसको आज भगाओ रे ।
स्वदेशी अपनाओ रे ,स्वदेशी अपनाओ रे।

लेकर प्रतिभा देश की अपने ,
देश का मिलकर करें उत्थान।
ड्रेगन हमसे तभी डरेगा ,
डूबेगा उसका दिनमान ।
 देश के हित को खुद भी समझो ,
औरों को समझाओ रे ।
स्वदेशी अपनाओ रे ,स्वदेशी अपनाओ रे ।
 
 ✍️ डॉ प्रीति हुँकार
मुरादाबाद

मंगलवार, 23 जून 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा ---कर्म ही पूजा


अवनि सात बजे कॉलिज जाने के लिये बाइक स्टार्ट करने लगी ।उसके बगल में रहने वाली मीना उसे पुकारा ,"अरे आज छुट्टी नहीं है ,इतना बड़ा त्योहार है आज "बढ़ मावस"। व्रत रखा है क्या ?
अवनि ने देरी की वजह से संकेत में न कहना चाहा,पर मीना ने व्यंग्य करके कहा ,पति की लंबी आयु के लिये रखा जाता है यह व्रत । पर तुम कहाँ इतना.........कर पाओगी ...पानी भी नही पिया जाता। अवनि चुप न रह सकी ,उसने भी उसी लहजे में कहा 'हाँ जानती हूँ। पर पति की उम्र व्रत करने से नही उसका सहयोग करने से बढ़ती है। मेरे पति निश्चय ही मेरे बिना व्रत किये ही दीर्घायु होंगे क्योंकि उनकी आधी से ज्यादा जिम्मेदारियां मैने अपने कंधों पर ले रखी हैं । कर्म ही मेरी पूजा है जिसको मैं तत्परता से कर रही हूं।"अवनि स्कूटी स्टार्ट करती उससे पहले ही वह ज्ञान बांटने  वाली अपनी राह चलती बनी।

✍️ डॉ प्रीति हुँकार
मुरादाबाद

मंगलवार, 16 जून 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की कहानी -----परिचारिका


तकिये को दोनों हांथों में समेटे मुकुल की अश्रुधारा अचानक बह निकली । सामने उसकी पत्नि अवनि खड़ी थी । उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था ।
       मुकुल ने भी कभी अपनी पत्नी और बच्चों की परवाह नहीं की । पैसा उसके लिये सब कुछ था ।
सेवारत पत्नी के कंधों पर संतान की समस्त जिम्मेदारियां डालकर वह मस्त रहता । पैसे की कमी न होने के कारण उसके भाई बंधु चिकने मुख बिल्लियां चाटें वाली ,कहाबत को साकार कर रहे थे ।        अचानक एक दिन मुकुल की तवीयत बिगड़ने लगी । डॉ साहब ने चेक अप की सलाह दी ।जाँच में वही हुआ जिसका  डर था ,कोरोना पोसिटिव मुकुल जब हॉस्पिटल गया था तो भाई उसके साथ थे लेकिन सात आठ दिन के बाद उसके कोरोना पोसिटिव होने की बात सुनते उनके फोन स्वीच ऑफ हो गए।कई रिश्तेदारों को फोन लगाया पर रातों रात सब कि सब विना संपर्क मेआये ही .. ........".कोरोइंटिन ' ।
अब क्या करता ,पत्नी को फोन लगाया ।कई महीनों से  मायके में रह रही अवनि मुकुल की कॉल देख असमंजस में पड़ गई। उसकी धड़कने बढ़ गई । कहीं मुकुल...... 'नहीं"वो ऐसा नही करेगा ....। मुझे अपने से अलग नही करेगा ।वो मुझे प्रेम नही करता पर मैं तो ..... ...उसको ....।
पिछली सब बातों को एक पल में भूल कर फोन उठाया तो ,मुकुल की बेजान सी आवाज सुनी ।अवनि मुझे तुम्हारी .......। प्लीज आ जाओ ,मैं बहुत अकेला हूँ । सुख के साथियों ने मुझे अकेला छोड़ दिया .....है ।"आओगी न " बताओ ।" नहीं , कभी नही । तुम्ही ने तो कहा था कि यह मनहूस सूरत कभी मत दिखाना । तो नही दिखाउंगी .....। कह कर फोन काट दिया ।
वह नही जायेगी..... कभी नही जायगी ,उस मतलबी इंसान के पास । यह सोचते हुए अवनि की आँख लग गई । फिर सुवह बच्चों को किसी और काम का बहाना कर वह उस दिशा में चल दी जहाँ  वह जाना नही चाहती थी ।
मुकुल को अपनी गलतियों को की एक लंबी सूची अपनी आंखों में नजर आने लगी ।अवनि के सदगुण एक एक कर सामने से गुजरने लगे । ईश्वर मुझे माफ़ करना ,मैने अपने बच्चों  का ख़याल नही रखा ।पत्नी को सम्मान नही दिया ,आज मेरे बच्चे पत्नी मेरे साथ होते गर समय रहते मैं सम्हल जाता .........पर  ,अहम की बातें, मुझे सम्हलने नही देती थीं । इसी विलाप में हृदय  की भावनाओं ने एक कठोर इंसान को रुला दिया । वह सुबकने लगा पर  .......उसे सहारा देने वाला ....       उसके सामने था ।"अवनि तुम'उसके मुंह से निकला।और फिर .....एक जीवन संगिनी ,सच्ची परिचारिका अपने जीवन की परवाह किये बिना अपने कर्तव्य में तत्पर हो गई ।

✍️डॉ प्रीति हुँकार
मुरादाबाद

बुधवार, 3 जून 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा -------- पुरस्कार



मैं अपनी कक्षा की चुप रहने वाली लड़कियों में से एक थी । टीचर के प्रश्न का उत्तर मालूम होते हुए भी खड़े होकर बोलने में डरती थी ।एक  दिन विद्यालय में शिक्षा विभाग की ओर से एक टीम विद्यालय के बच्चों का ज्ञान स्तर पता लगाने आई ।कुछ एक प्रश्नों के उत्तर बच्चों से पूछे गए।अधिकांश प्रश्नों के उत्तर अलग अलग विद्यार्थियों ने बताये पर एक प्रश्न का उत्तर किसी ने नहीं बताया ।मेरी कक्षा अध्यापिका जोर से डांटने लगी और बोली ,'बच्चों!कोई,तो बताओ ,विद्यालय की बदनामी होगी ।
यह सुनकर मैने हाथ खड़ा कर प्रश्न का सही उत्तर बताया ।टीम ने पुरस्कार दिया और मेरी पीठ थपथपाई।यह पुरस्कार  पांचवी कक्षा में बेसिक शिक्षा अधिकारी ने दिया। इसके बाद मैंने कई पुरस्कार जीते लेकिन यह पुरस्कार आज भी मुझे सब से अहम है क्योंकि अगर यह पुरस्कार मैं नही जीती होती ,तो मैं जीतना सीखती ही नहीं।

✍️ डॉ प्रीति हुंकार
मुरादाबाद

मंगलवार, 26 मई 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा -----बेबसी


      बुलाको काकी के पति सत्ताइस साल की उम्र में चार बच्चों के साथ उन्हें इस संसार अकेला छोड़ चल बसे ।काकी ने खेतों में धान गेहूं काट  कर बच्चों को जवान कर दिया ।दोनों लड़कों औऱ दो लड़कियों का विवाह किया ।विवाह के बाद दोनों लड़कियां ससुराल की होकर  रह गई।बीमार मां ने बुलाया तो भी नहीं आई।दोनोंं लड़कोंं की बहुएं अपने आदमियों के संग दिल्ली चली गई । फिर इन्हें याद नहीं आया कि इनकी बूढ़ी अम्मा गांव में पड़ी है।
आज एक लंबे अरसे के बाद विश्व  व्यापी आपदा के चलते जब सारे काम धंधे बंद हुए तो एक बार फिर अम्मा की याद आई । चल पड़े उसी ओर जहाँ काकी की आंखें वर्षो उनका इंतजार करते- करते थक गई थीं ।आज अचानक सब आये तो उसे लगा कि शायद उसके बेटे बहु को उसकी याद आई होगी ,तभी वे भागे चले आये। काकी के शरीर में फिर वही ताजगी उमड़ने लगी  लेकिन वह नहीं जानती थी आज अगर यह आपदा न आती तो  उसके बेटे बहु कभी इस ओर अपना रुख न करते ।

✍️ डॉ प्रीति हुँकार
 मुरादाबाद 244001

गुरुवार, 14 मई 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघु कथा -------- पश्चाताप


 लॉक डाउन की लंबी अवधि में,वो भी बिना किसी रोजगार के ,शहर में रहना ,तीन बच्चो के पेट भरना ये सब  समस्याओं को देख मोहन ने वापस गांव की तरफ लौटना उचित समझा । कमला भी अब उसकी हां में  हाँ मिलती उसके पीछे चल दी ।किसी तरह मोहन गांव पहुँच गया । पहले दिन तो चचेरे तहरे भाइयों के घर से भोजन की व्यवस्था की गई । रामकली अम्मा जो बच्चों को जन्म के बाद नहलाती थी  सबेरे ही जग भर छाछ दे गईं। कमला आज फिर से उस दिन को स्मरण करके पानी पानी हो गई  जब घर वालों के लाख कहने पर भी पति के पीछे शहर को चल दी । मोहन को पता था कि दस हजार में गुजारा ही हो पायेगा फिर भी कमला की ऊंची नाक का गुस्सा नहीं उतर सका।रोने लगी  ,सिसकी भर कर बोली कि मैं भी जैसे रखोगे चटनी से खा लूंगी पर भैंस गोबर को हाथ भी न लगाउंगी ।
पत्नी का दीवाना मोहन उसको ले गया ।अम्मा रोकती रही ,बापू भी गुजर गए पर कमला गांव नही आई  ,मोहन को एक दिन की छुट्टी मिली सो  अंतिम संस्कार के दिन ही आया ।बड़े भैया ने सब
काम सम्हाल दिया ।तीन बच्चे हो गए पर उसने एक दो बार गांव की तरफ रुख किया ।  आज इतने दिनों बाद भी गांव के लोगों का व्यवहार बदला नहीं जबकि शहर की उन तंग गलियों में वह चार साल रहा पर दुःख के दिनों में कभी गली मोहल्ले के लोगों ने उसकी खबर नहीं ली ।
इन्हीं विचारों में मग्न मोहन का पूरा दिन बीत गया ।कमला ने घर की सफाई की ।जाले झाड़े। पानी से घर आंगन तर किया ।पुरानी चीजों को फिर सजाया ।उसका बदला व्यवहार देख मोहन को उस पर प्यार आया । कमला को पास बुलाया और बोला 'अम्मा से माफी मांग लो , आज फिर हम एक नई जिंदगी की शुरुआत करेंगे ।अम्मा की सेवा करेंगे तुम भाभी का हाथ  बंटाना ओर मैं भैया का । यही हमारी भूलों का पश्चाताप होगा ।

✍️डॉ प्रीति हुँकार
 मुरादाबाद