गुरुवार, 17 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा ------नासमझी


       आज रश्मि को अपनी ससुराल छोड़े एक साल हो गया है, लेकिन जो गलती उसने जीवन में कई, वह हरपल उसे शूल जैसी चुभती है ।अपनी बहन, कभी जेठानी तो कभी माँ की दी गई गलत सीख अपने जीवन में न उतारती है तो आज उसने पूरे परिवार में रानी बन के बने रहने पर पर .... उसके व्यर्थ के अहंकार ने, उसके अकड़ ने उसके पति को भी हमेशा के लिए अलग कर दिया। कभी उसके मुख से जेठानी के लिए अपशब्द निकलते हैं तो कभी बहन और बहनोई को, जिसने उसकी ढेरों खुशियों को पल भर में आग लगा दी ।अब सिर्फ पछतावा है सिर्फ पछतावा .....। क्योंकि उसके पति ने व्यर्थ की शर्तों को कहा। मानने से स्वच्छ इंकार कर दिया ।अकड़ और घमंड के कारण वह गलती से भी माफी नहीं मांग सकी।यदि वह अपनी सास ससुर के पैर पड़ने अपनी स्थितियों के सुधरने की याचना करती है तो उसके घरौंदा दूसरों की नजर न लगती है ...। ..अब तो बहुत देर हो चुकी है .....वह सोचता है- सोंचते उसे वे सभी खुशी के पल एक एक करके याद आने लगे जो उसने कभी अपने बड़े परिवार के साथ रेफरी थे। उसकी नासमझी ने, अहम की भावना ने उसे विल्कुल अकेले कर दिया।भाई अपनी पत्नियों के साथ बच्चों के साथ, माता पिता भी एक दूसरे के साथ, जिन्होने उसके घर तोड़ा वे भी सुखी। 
डॉ। प्रीति हुँकार मुरादाबाद

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