मंगलवार, 16 जून 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की कहानी -----परिचारिका


तकिये को दोनों हांथों में समेटे मुकुल की अश्रुधारा अचानक बह निकली । सामने उसकी पत्नि अवनि खड़ी थी । उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था ।
       मुकुल ने भी कभी अपनी पत्नी और बच्चों की परवाह नहीं की । पैसा उसके लिये सब कुछ था ।
सेवारत पत्नी के कंधों पर संतान की समस्त जिम्मेदारियां डालकर वह मस्त रहता । पैसे की कमी न होने के कारण उसके भाई बंधु चिकने मुख बिल्लियां चाटें वाली ,कहाबत को साकार कर रहे थे ।        अचानक एक दिन मुकुल की तवीयत बिगड़ने लगी । डॉ साहब ने चेक अप की सलाह दी ।जाँच में वही हुआ जिसका  डर था ,कोरोना पोसिटिव मुकुल जब हॉस्पिटल गया था तो भाई उसके साथ थे लेकिन सात आठ दिन के बाद उसके कोरोना पोसिटिव होने की बात सुनते उनके फोन स्वीच ऑफ हो गए।कई रिश्तेदारों को फोन लगाया पर रातों रात सब कि सब विना संपर्क मेआये ही .. ........".कोरोइंटिन ' ।
अब क्या करता ,पत्नी को फोन लगाया ।कई महीनों से  मायके में रह रही अवनि मुकुल की कॉल देख असमंजस में पड़ गई। उसकी धड़कने बढ़ गई । कहीं मुकुल...... 'नहीं"वो ऐसा नही करेगा ....। मुझे अपने से अलग नही करेगा ।वो मुझे प्रेम नही करता पर मैं तो ..... ...उसको ....।
पिछली सब बातों को एक पल में भूल कर फोन उठाया तो ,मुकुल की बेजान सी आवाज सुनी ।अवनि मुझे तुम्हारी .......। प्लीज आ जाओ ,मैं बहुत अकेला हूँ । सुख के साथियों ने मुझे अकेला छोड़ दिया .....है ।"आओगी न " बताओ ।" नहीं , कभी नही । तुम्ही ने तो कहा था कि यह मनहूस सूरत कभी मत दिखाना । तो नही दिखाउंगी .....। कह कर फोन काट दिया ।
वह नही जायेगी..... कभी नही जायगी ,उस मतलबी इंसान के पास । यह सोचते हुए अवनि की आँख लग गई । फिर सुवह बच्चों को किसी और काम का बहाना कर वह उस दिशा में चल दी जहाँ  वह जाना नही चाहती थी ।
मुकुल को अपनी गलतियों को की एक लंबी सूची अपनी आंखों में नजर आने लगी ।अवनि के सदगुण एक एक कर सामने से गुजरने लगे । ईश्वर मुझे माफ़ करना ,मैने अपने बच्चों  का ख़याल नही रखा ।पत्नी को सम्मान नही दिया ,आज मेरे बच्चे पत्नी मेरे साथ होते गर समय रहते मैं सम्हल जाता .........पर  ,अहम की बातें, मुझे सम्हलने नही देती थीं । इसी विलाप में हृदय  की भावनाओं ने एक कठोर इंसान को रुला दिया । वह सुबकने लगा पर  .......उसे सहारा देने वाला ....       उसके सामने था ।"अवनि तुम'उसके मुंह से निकला।और फिर .....एक जीवन संगिनी ,सच्ची परिचारिका अपने जीवन की परवाह किये बिना अपने कर्तव्य में तत्पर हो गई ।

✍️डॉ प्रीति हुँकार
मुरादाबाद

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