गुरुवार, 3 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा ----श्रद्धा का फल


विनीता ने जब एम ए प्रथम वर्ष में प्रवेश लिया ,निरन्तर गुरु जनों के प्रति उसकी श्रद्धा का भाव उसकी छवि को कॉलेज में उज्ज्वल करता रहा ,लेकिन यह तो उसका स्वभाव ही था ।कुछ साथी उसकी इस अतिशय श्रद्धा भावना का मजाक भी उड़ाते । विनम्रता के कारण वह कुछ न कहकर हँस देती । विभाग में उसके मुकाबले और भी अच्छे छात्र छात्राएं थीं , किसी लेख अच्छा तो किसी का प्रस्तुति करण । कॉलेज अंतिम वर्ष में स्वर्णपदक के लिये जाने कितने लोग मेहनत कर रहे थे ।विनीता भी मन से लगी थी पर अचानक अंतिम पेपर में स्वास्थ्य खराब होने से उसका पेपर उतना अच्छा नहीं रहा।
जिन छात्रों ने मेहनत की थी ,वे सभी उत्तेजित थे ,परीक्षा परिणाम के लिये। विनीता का मन अशांत था ।काश!तवीयत ठीक होती तोकुच और...........। तभी लैंडलाइन फोन की घंटी बजी .....ट्रिन ......ट्रिन ट्रिन....। विनीता !  बधाई हो बहन ...टॉपर हो तुम ,संस्कृत फाइनल ईयर में ।
विनीता की सखी गीता ने बताया।

✍️ डॉ प्रीति हुँकार
मुरादाबाद


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