सुनो! सुनाऊं, ध्यान से; सुन लो मेरे मीत।
गौरैया और गिद्ध में हुई अनोखी प्रीत।
ऐसी डूबी प्रीत में, इक गौरैया यार।
प्रीत करी इक गिद्ध से, किया न तनिक विचार।
समझाई माँ-बाप ने, समझ सुता यह मर्म।
गौरैया और गिद्ध के, नहीं निभेंगे धर्म।
लाख सीख दी भ्रात ने, मत कर ऐसी प्रीत।
माँ का आंचल रौंदकर ,गइ गौरैया जीत।
गौरैया पर गिद्ध का, चढ़ा प्रेम का रंग।
गौरैया फुर हो गई, छली-गिद्ध के संग।
लिप्त हुए फिर 'काम में, खूब बुझाई प्यास।
मात-पिता करते रहे, गौरैया की आस।
देह वासना में सखे!, बीते कुछ दिन- रैन।
देख रूप फिर गिद्ध का, गौरैया बेचैन।
उसका धन लुटता रहा, भइ गौरैया रंक ।
नोचे इक-इक गिद्ध ने, गौरैया के पंख।
हुई जुल्म की इंतेहा, फटा कलेजा यार।
गौरैया को गिद्ध ने, दिया एक दिन मार।
विनती करे 'चिराग' यह, दे! गौरैया ध्यान।
किसी प्रेम में तोड़ मत, मात-पिता की आन।
मात-पिता के प्रेम का, रख गौरैया मोल।
धरती के भगवान हैं, मात-पिता अनमोल।
✍️ दीपक गोस्वामी 'चिराग'
शिवबाबा सदन, कृष्णाकुंज
बहजोई -244410
जनपद संभल
उत्तर प्रदेश, भारत
मो. 9548812618
ईमेल-deepakchirag.goswami@gmail.com
वास्तव में समसामयिक घटना पर शानदार और संदेशप्रद रचना👌👌👍👍🙏💐💐
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