मान या मत मान बंदे,सार यह तू पाएगा।
इस धरा का, इस धरा पर,सब धरा रह जाएगा।
यह तेरा, वह मेरा जग में, कैसी मिथ्या माया है?,
सबसे कर तू प्रीत जगत में, कोई नहीं पराया है।
जेब क़फ़न में कहाँ है होती, कोन तुझे समझाएगा?,
इस धरा का, इस धरा पर,सब धरा रह जाएगा.....
लोभ,मोह जिनके हित करता, करम का फल नहीं बाँटेंगे
चित्रगुप्त जब पोथी खोले,अलग राह ही छाँटेंगे।
जो है बोया वही कटेगा, और न कुछ भी पाएगा,
इस धरा का, इस धरा पर,सब धरा रह जाएगा.......
आज जवानी कल है बुढ़ापा, अंतकाल निश्चित आए।
तुझको जाना है हरि-द्वारे, प्राणी तू क्यों बिसराए।
मरा-मरा ही रट ले बंदे,राम-राम हो जाएगा।
✍️दीपक गोस्वामी 'चिराग'
शिव बाबा सदन, कृष्णा कुंज बहजोई (सम्भल) 244410 उ. प्र.
चलभाष-9548812618
ईमेल -deepakchirag.goswami@gmail.com
प्रकाशित कृति - भाव पंछी (काव्य संग्रह) प्रकाशन वर्ष - 2017
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