‘‘भाव पंछी जब पंख पसारे, उड़ा कल्पना लोक।
कुछ यथार्थ कुछ अभिनव, ढूंढा रहस्य भूलोक।
शब्दों की गूँथी माला, बेसुध पी रसववन्ती प्याला।
खोज-खोज अक्षर मोती, छन्द्धबद्ध नवनीत आला।
वश में कब रहता मनवा, भावुक कवि अनियंत्रित।
नभ के पार विचर पहुंची ,भाव-पंछी मुग्ध मोहित।’’
मेरी उपरोक्त काव्य पंक्तियाँ कवि दीपक गोस्वामी ‘चिराग’ की कृति को आद्योपांत पढ़ने के पश्चात् उमड़ पड़ी। वास्तव में कवि हृदय संवेदनाओं का उमड़ता हुआ सागर है जिसमें अपार बहुमूल्य वेशकीमती रत्नों का ढेर भरा पड़ा है। जितना उसमें डूबा उतना ही खजाना पा लिया। कवि संवेदनाओं के संसार में डूबकर अक्षरों की सुगढ़ माला का गुंठन करता है, उसमें कल्पना लोक की आकर्षक स्वप्निल दृश्यावली के साथ सार्थकता का सम्बन्ध भी अपना स्थान रखता है। साथ ही अपने भोगे, देखे और महसूस किये वातावरण से उत्पन्न आनन्द, उदासी, कलह और विवशता का चित्रण अपनी काव्य-प्रतिमा के सहारे व्यक्त करता है। यह संसार जितना सुकोमल संवेदनाओं से पूरित प्रतिभावान कवि का होगा उतनी ही विकलता उसकी काव्य मंजरी में रची-बसी होगी और पाठक उसे पढ़ने को उत्प्रेरित होगा। दीपक गोस्वामी इस उद्देश्य की पूर्ति करने में काफी हद तक सफल माने जायेंगे। यद्यपि काव्य-प्रतिभा का निखार जीवनभर ऊँचाईयाँ छूता रहता है। गोस्वामी ने अपने प्रथम काव्य-संग्रह में विभिन्न विषयों पर अपनी कलम चलाई है। वर्तमान में समाज को उद्वेलित करने वाली घटनाएँ कवि के मन को छूती हैं।
‘आह कब तक यों जलेंगे, लोग मेरे देश के,
जुल्म ये कितना सहेंगे, लोग मेरे देश के। (पृष्ठ 83)
तथा
यह कैसा धर्मवाद है? यह कैसा कर्मवाद है?
यह कैसा रे! जिहाद है? (पृष्ठ 133)
और -
खाता-पीता है भारत का, फिर भी पाक -पाक चिल्लाय।
दूसरी तरफ प्यार का अहसास कवि निम्न पंक्तियों में उमड़ता है।
मेरे खत का, जबाब आया है।
यार खत में, गुलाब आया है।
,(पृष्ठ 67)
एवं -
रूप की धूप से, पल भर में, पिघल जाओगे।
उम्र की सीढ़ियाँ, चिकनी हैं, फिसल जाओगे। (पृष्ठ 70)
‘प्रार्थना’ का भोलापन ईश्वर को सदैव प्रिय रहा है।
कवि‘चिराग’ पीछे नहीं हैं, प्रभु से दया मांगने में -
दया करना प्रभो! हम पर, कि तेरा ही सहारा है।
हैं बालक भोले-भाले हम, पिता तू सबसे न्यारा है। (पृष्ठ 109)
उपरोक्त काव्य-धारा दर्शाती है कि कवि ‘गोस्वामी’ के संवेदनात्मक हृदय संसार में भावों का पंछी भटकता हुआ समाज-परिवार-राष्ट्र सबके प्रति कुछ कहने के लिए विकल है। भ्रूण-हत्या से द्रवित कवि पुकार उठता है -
मत मार मुझे ओ माँ, मैं हूँ तेरी छाया।
मैं भी दुनिया देखूँ, मन मेरा हर्षाया।
सहज और सरल भाषा में रचित कविताएं क्लिष्टता से दूर पाठक के मन पर प्रभाव डालती हैं। अन्त में गोस्वामी की एक कविता प्रकृति रानी के सबसे उन्मुक्त उत्सव बसन्त की छटा इस प्रकार मन मोहती है कि कवि गा उठता है -
ओ! बसंत ऋतुराज पधारो, स्वागत आज तुम्हारा है।
मादक मोहक रूप तुम्हारा, सब ऋतुओं से न्यारा है।
* कृति : भाव पंछी (काव्य)
*रचनाकार : दीपक गोस्वामी 'चिराग'
*प्रकाशन :अंजुमन प्रकाशन इलाहाबाद,उ. प्र.
*प्रथम संस्करण : 2017 मूल्य : ₹ 140
*समीक्षक : रजनी सिंह
रजनी विला, डिबाई
बुलंदशहर, उ. प्र.
कुछ यथार्थ कुछ अभिनव, ढूंढा रहस्य भूलोक।
शब्दों की गूँथी माला, बेसुध पी रसववन्ती प्याला।
खोज-खोज अक्षर मोती, छन्द्धबद्ध नवनीत आला।
वश में कब रहता मनवा, भावुक कवि अनियंत्रित।
नभ के पार विचर पहुंची ,भाव-पंछी मुग्ध मोहित।’’
मेरी उपरोक्त काव्य पंक्तियाँ कवि दीपक गोस्वामी ‘चिराग’ की कृति को आद्योपांत पढ़ने के पश्चात् उमड़ पड़ी। वास्तव में कवि हृदय संवेदनाओं का उमड़ता हुआ सागर है जिसमें अपार बहुमूल्य वेशकीमती रत्नों का ढेर भरा पड़ा है। जितना उसमें डूबा उतना ही खजाना पा लिया। कवि संवेदनाओं के संसार में डूबकर अक्षरों की सुगढ़ माला का गुंठन करता है, उसमें कल्पना लोक की आकर्षक स्वप्निल दृश्यावली के साथ सार्थकता का सम्बन्ध भी अपना स्थान रखता है। साथ ही अपने भोगे, देखे और महसूस किये वातावरण से उत्पन्न आनन्द, उदासी, कलह और विवशता का चित्रण अपनी काव्य-प्रतिमा के सहारे व्यक्त करता है। यह संसार जितना सुकोमल संवेदनाओं से पूरित प्रतिभावान कवि का होगा उतनी ही विकलता उसकी काव्य मंजरी में रची-बसी होगी और पाठक उसे पढ़ने को उत्प्रेरित होगा। दीपक गोस्वामी इस उद्देश्य की पूर्ति करने में काफी हद तक सफल माने जायेंगे। यद्यपि काव्य-प्रतिभा का निखार जीवनभर ऊँचाईयाँ छूता रहता है। गोस्वामी ने अपने प्रथम काव्य-संग्रह में विभिन्न विषयों पर अपनी कलम चलाई है। वर्तमान में समाज को उद्वेलित करने वाली घटनाएँ कवि के मन को छूती हैं।
‘आह कब तक यों जलेंगे, लोग मेरे देश के,
जुल्म ये कितना सहेंगे, लोग मेरे देश के। (पृष्ठ 83)
तथा
यह कैसा धर्मवाद है? यह कैसा कर्मवाद है?
यह कैसा रे! जिहाद है? (पृष्ठ 133)
और -
खाता-पीता है भारत का, फिर भी पाक -पाक चिल्लाय।
दूसरी तरफ प्यार का अहसास कवि निम्न पंक्तियों में उमड़ता है।
मेरे खत का, जबाब आया है।
यार खत में, गुलाब आया है।
,(पृष्ठ 67)
एवं -
रूप की धूप से, पल भर में, पिघल जाओगे।
उम्र की सीढ़ियाँ, चिकनी हैं, फिसल जाओगे। (पृष्ठ 70)
‘प्रार्थना’ का भोलापन ईश्वर को सदैव प्रिय रहा है।
कवि‘चिराग’ पीछे नहीं हैं, प्रभु से दया मांगने में -
दया करना प्रभो! हम पर, कि तेरा ही सहारा है।
हैं बालक भोले-भाले हम, पिता तू सबसे न्यारा है। (पृष्ठ 109)
उपरोक्त काव्य-धारा दर्शाती है कि कवि ‘गोस्वामी’ के संवेदनात्मक हृदय संसार में भावों का पंछी भटकता हुआ समाज-परिवार-राष्ट्र सबके प्रति कुछ कहने के लिए विकल है। भ्रूण-हत्या से द्रवित कवि पुकार उठता है -
मत मार मुझे ओ माँ, मैं हूँ तेरी छाया।
मैं भी दुनिया देखूँ, मन मेरा हर्षाया।
सहज और सरल भाषा में रचित कविताएं क्लिष्टता से दूर पाठक के मन पर प्रभाव डालती हैं। अन्त में गोस्वामी की एक कविता प्रकृति रानी के सबसे उन्मुक्त उत्सव बसन्त की छटा इस प्रकार मन मोहती है कि कवि गा उठता है -
ओ! बसंत ऋतुराज पधारो, स्वागत आज तुम्हारा है।
मादक मोहक रूप तुम्हारा, सब ऋतुओं से न्यारा है।
* कृति : भाव पंछी (काव्य)
*रचनाकार : दीपक गोस्वामी 'चिराग'
*प्रकाशन :अंजुमन प्रकाशन इलाहाबाद,उ. प्र.
*प्रथम संस्करण : 2017 मूल्य : ₹ 140
*समीक्षक : रजनी सिंह
रजनी विला, डिबाई
बुलंदशहर, उ. प्र.
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