जय , सुनील और संदीप की गिनती मौहल्ले के सबसे शैतान बच्चों में होती थी । तीनों आए दिन कोई न कोई शैतानी करते ही रहते थे , मोहल्ले वालों के साथ साथ उनके घर वाले भी उनकी इन शैतानों की वजह से बहुत परेशान रहते थे। क्योंकि वह पढ़ाई में लगातार पिछड़ते जा रहे थे , घर वालों की चिंता भी लगातार बढ़ रही थी । मगर खास बात यह थी कि तीनों की दोस्ती देखते ही बनती थी । जहां भी जाते तीनों संग संग ही जाते थे , चाहे कोई खुराफात हो घूमने जाना हो उनका संग हमेशा रहता था ।
एक दिन तो हद ही हो गई जब उन्होंने मंदिर के सामने बहुत सारे पटाखे छोड़ दिए आजिज होकर मोहल्ले वाले उनके घर शिकायत लेकर पहुंचे । शिकायत सुन घर वालों का पारा हाई हो गया , उन्होंने तीनों की जमकर लताड़ लगाई और आदेश पारित कर दिया कि अगर आइंदा ऐसा हुआ तो वह घर में ना घुसे । जय सुनील और संदीप को घर में पड़ी लताड़ इतनी बुरी लगी की उन्होंने घर छोड़ने का फैसला कर लिया और रात वाली ट्रेन से ही घर से भाग गए । जब सुबह उठकर घरवालों ने देखा तो जय , सुनील और संदीप घर पर नहीं थे । पूरे मोहल्ले में शोर हो गया कि तीनों बदमाश लड़के घर से भाग गए हैं , पूरे मोहल्ले ने राहत की सांस ली..... चलो कुछ दिन तो शांति रहेगी । लेकिन घरवाले बुरी तरह परेशान हो गए उन्होंने जगह-जगह उनकी तलाश करी पर उनका कहीं अता पता नहीं चला , हार कर वह भी टिक कर घर पर बैठ गए और मन ही मन सोचने लगे कि जब पैसे खत्म हो जाएंगे तो घर वापस आ जाएंगे ।
जय , सुनील व संदीप घर से भागकर ट्रेन में तो बैठ गए थे पर उन्हें पता नहीं था ट्रेन कहां जा रही है । पूरी रात का सफर कर ट्रेन सुबह शिमला के स्टेशन पर पहुंच गई शिमला के स्टेशन पर जय , सुनील व संदीप तीनों बहुत प्रसन्नता पूर्वक उतरे पर उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि शिमला के किसी महंगे होटल में रह सके , अतः शिमला के नजदीक ही एक गांव में एक किसान के घर पर रुक गए , गांव में उन्होंने सभी को यही बताया कि वे शिमला घूमने आए हैं । तीनों की घर पर इतनी बेइजती हुई थी कि अब उन्होंने पक्का फैसला कर लिया था कि घर वापस नहीं जाना है और बाहर रहकर ही खूब पैसा कमाएंगे । लेकिन दो-चार दिनों में ही उनके हौसले पस्त हो गए शिमला जैसे महंगे शहर में गुजारा करना उनके लिए मुश्किल हो गया उनके पैसे भी अब खत्म होने लगे थे , तीनों ने विचार किया चलो दिल्ली चलते हैं , वहां उन्हें जरूर काम मिलेगा यही सोच वह अपना बोरिया बिस्तरा उठा दिल्ली आ गए ।
दिल्ली पहुंचकर कई दिनों की भागदौड़ के पश्चात जय व सुनील को एक ढाबे पर वेटर की नौकरी मिल गई व संदीप एक मोटर मैकेनिक के पास लग गया । तीनो का अपनी नौकरी से प्राप्त धनराशि से मुश्किल से ही गुजारा हो पाता था । इस तरह 6 माह का समय गुजर गया इधर उनके घर वाले भी उनके घर ना आने की वजह से बहुत परेशान थे और जगह-जगह जाकर उनकी तलाश कर रहे थे । अब तीनों को अच्छे से समझ आ चुका था कि बगैर शिक्षा पूर्ण करें वह कभी कामयाब नहीं हो सकते और उनकी की गई कारगुजारीओं के कारण उनके घर वालों को कितना दुख हुआ होगा । अंततः उन्होंने वापस घर जाने का फैसला कर लिया 1 दिन तीनों ने अपना सारा सामान बांधा और वापस अपने शहर आ गए । तीनों को वापस घर पर पाकर घर वाले बहुत प्रसन्न हुए तीनों ने अपने घरवालों से माफी मांगी , वह आगे से पढ़ाई में पूरा ध्यान देने व किसी भी प्रकार की कोई शैतानी ना करने का वादा किया । घर वाले भी तीनों के स्वभाव में इस परिवर्तन को देख अति प्रसन्न थे , उनको पता था यह परिवर्तन जीवन में किए गए अथक संघर्ष के कारण हुआ है , क्योंकि उन्हें इसका अनुभव था । उन्होंने अपने बच्चों में आए इस परिवर्तन के लिए परम पिता का शुक्रिया अदा किया व मन ही मन प्रसन्न होते हुए कहा "अंत भला तो सब भला"
✍️ विवेक आहूजा , बिलारी, जिला मुरादाबाद
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