आज विनय काफी खुश था क्योंकि आज वह अपनी बेटी को मेडिकल की कोचिंग दिलाने दिल्ली लेकर जा रहा था। विनय की बेटी को मेडिकल की कोचिंग हेतु सौ परसेंट का स्कॉलरशिप जो मिला था और वह दो वर्षीय वीकेंड क्लासेस के लिए प्रत्येक शनिवार और इतवार को दिल्ली में कोचिंग करने के लिए जा रही थी ।
विनय रास्ते में सोच रहा था कि दिल्ली में तो उसकी कितनी सारी रिश्तेदारी है अगर वह सबसे एक या दो बार भी मिलेगा तो 2 वर्ष किस तरह बीत जाएंगे पता ही नहीं चलेगा। विनय ने अपने रहने की व्यवस्था पहले ही कोचिंग क्लास के निकट एक लॉज में कर ली थी। चूंकि वह उसका प्रथम दिन था उसने सोचा इस बार चलो चाचा जी से मिल लेते हैं क्योंकि चाचा जी कई बार उन्हें दिल्ली नहीं आने का उलाहना दे चुके थे ।
विनय अपनी बेटी के साथ अपने चाचा जी के पंजाबी बाग स्थित मकान पर उनसे मिलने पहुंच गया विनय व उसकी बेटी को देखकर चाचा जी बहुत प्रसन्न हुए और उनसे कुछ देर विश्राम करने को कहा और स्वयं सामान लेने बाजार चले गए । बाजार से लौटकर जब चाचा जी घर आए तो चाची ने उन्हें बाहर दरवाजे पर ही रोक लिया, विनय को कमरे में नींद नहीं आ रही थी और वह खिड़की के पास ही खड़ा था । चाची जी ,चाचा जी से कह रही थी कि अपने भतीजे और पोती की इतनी सेवा सत्कार मत करना कि वह प्रत्येक सप्ताह यहीं पर आ धमके यह सुन विनय के पैरों तले जमीन खिसक गई और वह मन में सोचने लगा कि वह तो अपनी रिश्तेदारी पर गर्व कर रहा था कि दिल्ली जाकर उसे किसी तरह की कोई परेशानी नहीं होगी परंतु रिश्तेदारी का यह चेहरा उसने पहली बार देखा था ।
चाचा जी ने मकान में प्रवेश किया तो विनय अपने चाचा जी को बताया कि उसने कोचिंग के समीप ही रहने की व्यवस्था कर ली है वह तो बस उनका हालचाल जानने के लिए मिलने चला आया , विनय ने अपनी बेटी को तैयार होने को कहा और कोचिंग के समीप लॉज में प्रस्थान किया ।
रास्ते में जाते वक्त विनय यह सोच रहा था की आज के दौर में रिश्ते इतने दरक चुके हैं कि वह अपनी सगी रिश्तेदारी का बोझ एक दिन भी सहन नहीं कर सकते उसके पश्चात विनय हर सप्ताह अपनी बेटी को लेकर दिल्ली आता रहा और उसने किसी रिश्तेदार के यहां जाना मुनासिब नहीं समझा।
✍️ विवेक आहूजा
बिलारी
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धन्यवाद
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