बुधवार, 26 अगस्त 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष मदन मोहन व्यास की चार कुंडलियां--- पैसा जिसके पास में वह परमादरणीय। कोलतार सा कृष्ण भी, कहलाता कमनीय । कहलाता कमनीय, गधा भी घोड़ा होता। कुल कलंक को कंचन की गंगा में धोता......। ये ली गई हैं मुरादाबाद से लगभग 47 वर्ष पूर्व प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका "प्रभायन" के अक्टूबर 1973 के अंक से । इस पत्रिका के संपादक थे ललित भारद्वाज ।



मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष कैलाश चन्द्र अग्रवाल का गीत --- गीत कहा जाता है जिनको ,गीत नहीं वे पूजा के स्वर । यह गीत लिया गया है मुरादाबाद से 47 वर्ष पूर्व प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका "प्रभायन" के जून 1973 के अंक से । इस पत्रिका के संपादक थे ललित भारद्वाज ।


मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष दुर्गा दत्त त्रिपाठी का गीत --- विश्व अचेतन रहा, चेतना बनी रही अनजानी । श्रोता सोता रहा, और मैं कहता रहा कहानी । यह गीत लिया गया है मुरादाबाद से प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका प्रभायन के मई 1973 के अंक से । इस पत्रिका के संपादक थे ललित भारद्वाज ।

मंगलवार, 25 अगस्त 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष प्रो. महेंद्र प्रताप की जयंती पर "मुरादाबाद लिटरेरी क्लब" की ओर से उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर परिचर्चा ......


       वाट्स एप पर संचालित  साहित्यिक समूह 'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा "ज़मीं खा गयी आसमां कैसे कैसे" शीर्षक के तहत  मुरादाबाद के साहित्यकार एवं केजीके महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य स्मृतिशेष प्रोफेसर महेंद्र प्रताप को उनकी जयन्ती पर याद किया गया। ग्रुप के सभी सदस्यों ने उनके व्यक्तित्व एंव कृतित्व पर ऑन लाइन चर्चा की। चर्चा तीन दिन चली। सबसे पहले ग्रुप के सदस्य वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने उन के जीवन के बारे में विस्तार से बताया और उनकी रचनाएं प्रस्तुत कीं
चर्चा शुरू करते हुए विख्यात नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने कहा कि दादा के रचनाकार के विषय में मुझे पहले कुछ विशेष नहीं मालूम था। उसके विषय में कुछ तो अंतरा की गोष्ठियों में, कुछ कटघर पचपेड़ा मेरी ससुराल से और कुछ आदरणीय डॉ. शम्भुनाथ सिंह जी से चर्चा के माध्यम से जानकारी मिली। दादा के गीतों को हम उनका अन्तःगीत कह सकते हैं। उनके एक गीत, मैं तुमको अपना न सकूँगा / तुम मुझको अपना लो, को सुनकर ब्रह्मलीन स्वसुर संत संगीतज्ञ पुरुषोत्तम व्यास गदगद हो उठते थे। यह उनके लिए एक प्रार्थना गीत था। इसी गीत की एक पंक्ति है - मेरे गीत किसी के चरणों के अनुचर हैं। किसी नायिका के चरणों का अनुचर होने की गवाही नहीं देते।
मशहूर शायर मंसूर उस्मानी ने कहा कि प्रो साहब वाकई सायादार शजर थे। मुझे उनका जितना भी सानिध्य मिला मैंने उनसे कुछ न कुछ सीखा ही जिसमें इंसानियत से प्यार और उसका सम्मान बहुत बड़ी दौलत है। 1993 में उप्र उर्दू अकादमी का सदस्य मनोनीत होने पर मेरे मुहल्ले के लोगों ने एक जलसा किया था जिसमें प्रो साहब ने मेरी इज्जत अफजाई करते हुए कहा था कि यह जलसा शहर में कहीं और हुआ होता तो मुझे इतनी खुशी नहीं होती क्योंकि ये जलसा वह लोग कर रहे हैं जिन्होंने मंसूर को बचपन से देखा है और ये मंसूर की बड़ी उपलब्धि है।
वरिष्ठ कवि शचीन्द्र भटनागर ने कहा कि मैंने उन्हें गोष्ठी अथवा कवि सम्मेलन में कभी नहीं सुना पर एक बार मेरे बहुत आग्रह पर उन्होंने घर पर ही एक गीत सुनाया था। गीत पढ़ते समय वह तल्लीन हो गये थे साधक की तरह। उनके प्रणय गीतों में कहीं स्थूलता नहीं है। आत्म प्रेम है, आत्मा से संवाद है।उनकी वाणी में मिठास, होठों पर तनाव रहित मुस्कान और व्यक्तित्व में आकर्षण था। प्राचार्य के प्रशासनिक पद पर नितांत भारतीय वेशभूषा में उन्हें शांतचित्त  देखकर उनके व्यक्तित्व की विलक्षणता का आभास होता था।
वरिष्ठ व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि हिन्दी साहित्य ही नहीं दादा मुरादाबाद के साहित्यिक, सांस्कृतिक, सांगीतिक और सामाजिक सरोकारों के अगुआ थे। विषय का इतना सटीक गहराई से विश्लेषण करने वाला मुझे तो अब तक मिला नहीं है। उनके मुख से निकला एक-एक शब्द अपने आप में शिलालेख होता था। वह तार्किक नहीं थे अपितु विषयों के सैद्धांतिक जानकर थे। यदि मैंने आधुनिक हिन्दी साहित्य की विशद व्याख्या की होती तो साहित्य के उस कालखंड के आशु साहित्य की खोजबीन करके उसे  'महेन्द्र प्रताप-युग' का नाम देने के सभी यत्न किए होते।
वरिष्ठ कवि डॉ अजय अनुपम ने कहा कि मुरादाबाद के महत्त्वपूर्ण विद्वानों में अग्रगण्य स्व प्रो महेंद्र प्रताप जी एक चिन्तक व्याख्याता और ललित कलाओं के ज्ञाता प्रश्रय दाता तथा उन्नायक के रूप में सामने आते हैं। दिनांक छह दिसंबर १९४८को स्थानीय के जी के महाविद्यालय में हिंदी विभाग में कार्यभार ग्रहण करने वाले दिन ही सायंकाल हिन्दू कालेज में आयोजित कवि सम्मेलन में अध्यक्षता करने से उनकी यात्रा यहां आरंभ होती है। यहीं उनकी मित्रता पंडित मदनमोहन व्यास और प्रभुदत्त भारद्वाज से हुई, यह त्रिमूर्ति आगे चलकर मुरादाबाद में सांस्कृतिक और साहित्यिक जगत का पर्याय बन गई।
मशहूर शायरा डॉ० मीना नक़वी ने कहा कि वर्ष 2004 की बात है मेरी पहला ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित हो चुका था। डॉ.कृष्ण कुमार नाज़ के साथ मेरा स्मृति शेष आदरणीय महेन्द्र प्रताप जी के निवास-स्थान पर  पहली बार जाने का सुवसर प्राप्त हुआ। मैं सकुचाती हुई उनके घर में दाख़िल हुई। आ0 महेन्द्र प्रताप जी ने  बहुत स्नेह से मुझे बिठाया। नाज़ साहब ने मेरा परिचय कराया तो उन्होनेे मेरे डाक्टर होने के साथ हिंदी अंग्रेजी़ पर स्नातकोत्तर होने पर आश्चर्य व्यक्त किया। मैने अपनी पहली पुस्तक सायबान उन्हें भेट की। जो उन्होने सहर्ष स्वीकार की साथ ही मेरा उत्साह वर्धन भी किया। अज़ान के समय शांति से बैठ जाने की शिक्षा देने वाले सर्वधर्म के प्रति आदर व समभाव के वे जीते जागते उदाहरण थे और इसकी मैं साक्षी हूँ। ऐसे व्यक्तित्व वास्तव में युगों में पैदा होते है।
प्रख्यात रंगकर्मी डॉ प्रदीप शर्मा ने उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करते  हुए कहा कि प्रोफेसर महेंद्र प्रताप "आदर्श कला संगम" के संस्थापक अध्यक्ष थे। उनका व्यक्तित्व बहुआयामी था। वह एक कुशल मार्गदर्शक व पथ प्रदर्शक भी थे । आदर्श कला संगम ने उनकी याद को बनाए रखने के लिए उनकी स्मृति में "प्रोफेसर महेंद्र प्रताप स्मृति सम्मान" देना भी शुरू किया।
वरिष्ठ कवियत्री डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने कहा कि सरलता-सहजता से आच्छादित व्यक्तिव के धनी, विनम्रता की साक्षात प्रतिमूर्ति हमारे स्वर्गीय दादा प्रोफेसर महेंद्र प्रताप जी चिरकाल तक स्मृति में आज भी मार्गदर्शन करते हैं।
महाराजा अग्रसेन पब्लिक स्कूल मंडी बांस की पूर्व प्रधानाचार्य डॉ किरण गर्ग ने कहा कि दादा श्री के स्नेह और कृपा की प्राप्ति को मैं अपने जीवन की विशिष्ट उपलब्धि मानती हूं। उससे उऋण होना न मैं चाहती हूं न हो सकती हूं । दादा ज्ञान के समस्त पक्षों को आत्मसात करने के लिए सदैव आकांक्षी  रहते थे। मनीषियों व ज्ञानियों के साथ वह रात- दिन एक कर सकते थे। उनके लिए यहां तक मशहूर था कि दादा के पास जाओ तो पर्याप्त समय लेकर जाओ क्योंकि यदि किसी भी विषय पर उनसे चर्चा चल पड़े तो घंटों वह धाराप्रवाह बोले चले जाते थे, बिना अपने खाने-पीने की परवाह किए। सादा जीवन उच्च विचार की उक्ति उन पर पूर्णतया चरितार्थ होती है।
वरिष्ठ कवि शिशुपाल मधुकर ने कहा कि दादा कहते थे कि कभी भी प्रसिद्धि की स्प्राह मन में रखकर रचनाकर्म नहीं करना और कुछ भी मत लिखना, जो लिखना सार युक्त लिखना।

मशहूर शायर डॉ कृष्णकुमार 'नाज़' ने कहा कि दादा ऐसे वृक्ष थे जिनकी शीतल छांव में बैठकर मुझे ऐसे बहुत से रचनाकार अपनी अगली मंज़िलों के निशान तलाशते थे। मुरादाबाद में जितने भी साहित्यिक आयोजन होते थे, उनमें अधिकतर की अध्यक्षता दादा महेंद्र प्रताप जी ही करते थे। उनका अध्ययन इतना विषद था कि किसी भी विषय पर उनसे वार्ता की जा सकती थी और उपयुक्त उत्तर मिल जाता था। यदि किसी विषय पर पक्ष और विपक्ष दोनों पर बोलने की आवश्यकता पड़े, तो दादा प्रवीणता के साथ दोनों ही पक्षों पर सम्यक रूप से विचार रखते थे।
वरिष्ठ कवि डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि बीती सदी का नवां दशक जब मैंने शुरू की थी अपनी साहित्यिक यात्रा। यही नहीं एक सामाजिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक संस्था ''तरुण शिखा'' का गठन भी कर लिया था। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि 'अंतरा' की गोष्ठियां ही मेरे साहित्यिक जीवन की प्रथम पाठशाला बनीं। इन गोष्ठियों में 'दादा', श्री अंबालाल नागर जी, श्री कैलाश चंद अग्रवाल जी, पंडित मदन मोहन व्यास जी, श्री ललित मोहन भारद्वाज जी, श्री माहेश्वर तिवारी जी ने मेरी अंगुली पकड़कर मुझे चलना सिखाया और उनके संरक्षण एवं दिशा निर्देशन में मैंने साहित्य- पत्रकारिता के मार्ग पर कदम बढ़ाए । दादा और आदरणीय श्री माहेश्वर तिवारी जी के सान्निध्य से न केवल आत्मविश्वास बढ़ा बल्कि सदैव ऐसा महसूस हुआ जैसा किसी पथिक को तेज धूप में वृक्ष की शीतल छांव में बैठकर होता है। लगभग सभी गोष्ठियों में दादा उपस्थित होते थे और मुझे प्रोत्साहित करते थे। यह मेरा सौभाग्य है कि लगभग 21- 22 साल तक मुझे दादा का आशीष प्राप्त होता रहा। दादा आज हमारे बीच में नहीं है लेकिन उनकी स्मृतियां, उनका दुलार, उनका आशीष सदैव मुझे आगे और आगे बढ़ने की प्रेरणा देता ही रहेगा ।
प्रसिद्ध नवगीतकार योगेंद्र वर्मा व्योम ने कहा कि दादा के गीतों से गुज़रते हुए भी उसी चंदन की भीनी-भीनी महक महसूस होती है जिसका ज़िक्र राजीव जी ने अपने वक्तव्य में किया है क्योंकि आध्यात्मिक भाव-व्यंजना के माध्यम से मनुष्यता के प्रति दादा की प्रबल पक्षधरता उनके लगभग सभी गीतों में प्रतिबिंबित होती है। दादा महेन्द्र प्रताप जी का रचनाकर्म मात्रा में भले ही कम रहा हो किन्तु महत्वपूर्ण बहुत अधिक है।उनकी रचनाओं में सृजन के समय का कालखण्ड पूरी तरह प्रतिबिंबित होता है, निश्चित रूप से दादा की सभी रचनाएँ साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं।
समीक्षक डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन ने कहा कि मुझे यह अवसर तो प्राप्त नहीं हो सका कि मैं महेंद्र प्रताप जी को किसी साहित्यिक संस्था के निजी प्रोग्राम में शरीक होकर उन्हें सुन पाता अपितु सार्वजनिक प्रोग्रामों में उन्हें कई बार सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। विशेष रुप से जनता सेवक समाज के कार्यक्रमों में उन्हें अक्सर सुना। सच पूछिए तो उन्हें सुनने के लिए ही प्रोग्राम में जाया करता था। क्योंकि मैं उनकी बोलने की कला से बहुत प्रभावित था। उनका बोलने का अपना अलग अंदाज़ था जो मंत्रमुग्ध कर दिया करता था। वह हर विषय पर धाराप्रवाह बोलते थे। ऐसा महसूस होता था कि वह इस विषय के विशेषज्ञ है। मैंने उन्हें जिगर मेमोरियल कमेटी के मुशायरों में उन्हें जिगर की शायरी पर बोलते हुए ख़ूब सुना है। मुंह में पान की गिलोरी दबाकर मुस्कुराते हुए उनकी गुफ़्तगू का अंदाज़ आज भी याद है। उनकी वाणी से उनके मन की निर्मलता और और भावों की कोमलता साफ़ झलकती थी। हालांकि मेरा छात्र जीवन था और वह मुझसे परिचित भी नहीं थे और मैं भी उनसे इतना परिचित नहीं था जितना आज हुआ। लेकिन मैं कार्यक्रम के पश्चात उनसे मिलकर आशीर्वाद प्राप्त करने की कोशिश ज़रूर करता था।
युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि निश्चित ही स्मृति शेष दादा महेंद्र प्रताप जी की गणना ऐसी महान साहित्यिक विभूतियों में की जा सकती है जिनके द्वारा प्रदत्त आलोक में बाद की पीढ़ियों का मार्ग प्रशस्त हुआ। आज पटल पर उनके गीतों का अवलोकन करने के पश्चात् मेरा मानना है कि उनकी लेखनी से साकार हुए ये अद्भुत गीत मात्र मधुर कंठ की शोभा बनने हेतु ही नहीं अपितु, उन्हें आत्मसात करते हुए मनन करने के लिए भी हैं। उनके अद्भुत गीतों का एकाग्रचित्त होकर श्रवण व मनन करने का अर्थ है पाठक/श्रोता का स्वयं को पहचानना तथा जीवन से साक्षात्कार करना।
युवा शायर फरहत अली खान ने कहा कि पटल पर तीन दिन तक प्रोफेसर साहब पर चली
चर्चा के ज़रिए ये निष्कर्ष निकलता हुआ देख रहा हूँ कि उन के साहित्य-कर्म पर एक बड़ा काम करने की ज़रूरत है।
युवा कवियत्री हेमा तिवारी भट्ट ने कहा कि मुरादाबाद के गौरवशाली साहित्यिक इतिहास के अभिन्न और अधिकतम द्युतिमान नक्षत्र स्व०प्रो०महेन्द्र प्रताप जी के बारे में जानने के बाद उन्हें साक्षात देखने व सुनने का अवसर न मिल पाने का अत्यन्त दुख है।
वरिष्ठ साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल ने कहा कि आदरणीय दादा महेंद्र प्रताप जी से मेरा प्रथम परिचय वर्ष 1967 में हुआ था। उसके बाद एक बार वर्ष 1972 में रेलवे मनोरंजन सदन में रेलवे के एक आयोजन में उन्हें सुना। कविता में पूर्णतः डूबकर किये गये उनके कविता पाठ ने मुझे बहुत आकर्षित किया। इन दो अवसरों पर उनके दर्शन का मष्तिष्क पर अमिट प्रभाव आज भी है ।
ग्रुप एडमिन और संचालक शायर ज़िया ज़मीर ने कहा कि स्वर्गीय प्रोफेसर महेंद्र प्रताप साहब के गीतों को पढ़कर यह लगता है कि उनका जीवन जहां साहित्य को पढ़ते हुए गुज़रा वहीं साहित्य के बड़े लोगों के साथ बैठते हुए भी उनका जीवन गुज़रा है। मैं यह समझता हूं कि उनके अंदर साहित्य के साथ-साथ साहित्यकारों को भी सहेजने का एक बड़ा गुण था। तभी तो उन्होंने "अंतरा" जैसी संस्था की दाग़-बेल डाली। हम अपने ऊपर गर्व कर सकते हैं कि हमारे शहर में मोहब्बत करने वाली, जोड़ने वाली एक ऐसी शख्सियत भी गुज़री है।
महेन्द्र प्रताप जी के सुपुत्र सुप्रीत गोपाल ने मुरादाबाद लिटरेरी क्लब की ओर से आयोजित इस सार्थक चर्चा के लिए सभी सदस्यों का शुक्रिया अदा किया। उन्होंने कहा कि दादा आज भी हम सबके प्रेरणास्त्रोत हैं।

:::::::प्रस्तुति:::::::

-ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
मुरादाबाद लिटरेरी क्लब
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मो०8755681225

मुरादाबाद के साहित्यकार विवेक आहूजा की कहानी -–- दरकते रिश्ते


       आज विनय काफी खुश था क्योंकि आज वह अपनी बेटी को  मेडिकल की कोचिंग दिलाने दिल्ली लेकर जा रहा था। विनय की बेटी को मेडिकल की कोचिंग हेतु सौ परसेंट का स्कॉलरशिप जो मिला था और वह दो वर्षीय  वीकेंड क्लासेस के लिए प्रत्येक शनिवार और इतवार को दिल्ली में कोचिंग करने के लिए जा रही थी ।
     विनय रास्ते में सोच रहा था कि दिल्ली में तो उसकी कितनी सारी रिश्तेदारी है अगर वह सबसे एक या दो बार भी मिलेगा तो 2 वर्ष किस तरह बीत  जाएंगे पता ही नहीं चलेगा। विनय ने अपने रहने की व्यवस्था पहले ही कोचिंग क्लास के निकट एक लॉज में कर ली थी। चूंकि  वह उसका प्रथम दिन था उसने सोचा इस बार चलो चाचा जी से मिल लेते हैं क्योंकि चाचा जी कई बार उन्हें दिल्ली नहीं आने का उलाहना दे चुके थे ।
       विनय अपनी बेटी के साथ अपने  चाचा जी के पंजाबी बाग स्थित मकान पर उनसे मिलने पहुंच गया विनय व उसकी बेटी को देखकर चाचा जी बहुत प्रसन्न हुए और उनसे कुछ देर विश्राम करने को कहा और स्वयं सामान लेने बाजार चले गए । बाजार से लौटकर जब चाचा जी घर आए तो चाची ने उन्हें बाहर दरवाजे पर ही रोक लिया, विनय को कमरे में नींद नहीं आ रही थी और वह खिड़की के पास ही खड़ा था । चाची जी ,चाचा जी से कह रही थी कि अपने भतीजे और पोती की इतनी सेवा सत्कार मत करना कि वह प्रत्येक सप्ताह यहीं पर आ धमके  यह सुन विनय के पैरों तले जमीन खिसक गई और वह मन में सोचने लगा कि वह तो अपनी रिश्तेदारी पर गर्व कर रहा था कि दिल्ली जाकर उसे किसी तरह की कोई परेशानी नहीं होगी परंतु रिश्तेदारी का यह चेहरा उसने पहली बार देखा था ।
        चाचा जी ने मकान में प्रवेश किया तो विनय अपने चाचा जी को बताया कि उसने कोचिंग के समीप ही रहने की व्यवस्था कर ली है वह तो बस उनका हालचाल जानने के लिए मिलने चला आया , विनय ने अपनी बेटी को तैयार होने को कहा और कोचिंग के समीप लॉज में प्रस्थान किया ।
        रास्ते में जाते वक्त विनय यह सोच रहा था की आज के दौर में रिश्ते इतने दरक चुके हैं कि वह अपनी सगी रिश्तेदारी का  बोझ एक दिन भी सहन नहीं कर सकते उसके पश्चात विनय हर सप्ताह अपनी बेटी को लेकर दिल्ली आता रहा और उसने किसी रिश्तेदार के यहां जाना मुनासिब नहीं समझा।

✍️  विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
मोबाइल 9410416986
7906933255
Vivekahuja288@gmail.com

मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर निवासी साहित्यकार रचना शास्त्री की कविता


सुनो!
ओ मेरे जन्मों के साथी ,
मैंने बड़े जतन से
 सुमिरन की थपकी से थपक,
फोड़कर राग द्वेष के ढेले,
इकसार करके
मन का बंजर खेत
बो दिया था प्रेम।

पर अश्रु जल से सिंचित
इस मन के खेत में
प्रेम के संग
उगने लगी है
कामनाओं की विषैली
खरपतवार ।

सुनो!
तुम आ जाओ
विश्वास की खुरपी ले
दोनों करेंगे निराई मिलकर,
और फिर,
खेत की डोल पर
वैराग्य वृक्ष के तले
दोनों बैठ कर,
देखेंगे प्रेम की बेलि को
विस्तृत नभ को छूते हुए ।

मैं प्रतीक्षा में हूं
चले आओ
चले भी आओ
आ भी जाओ न .....।

  ✍️ रचना शास्त्री

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार मुजाहिद चौधरी की ग़ज़ल------ अजब मायूसी है,वहशत का आलम है जमाने में । नहीं गांव में कुछ खौ़फो़ ख़तर बस ये लगा मुझको ।।


मैं जब भी अपने पुरखों से मिला हूं ये लगा मुझको ।
मैं उनके ख्वाब जैसा हूं हमेशा ये लगा मुझको ।।

मेरे गांव के रस्ते, सूने घर, वीरान चौपालें ।
मेरे ही मुंतज़िर हैं वो हमेशा ये लगा मुझको ।।

कभी भूला नहीं बचपन के यारों को, बुजु़र्गों को ।
मैं जब भी घर गया उनसे मिला हूं ये लगा मुझको ।।

अजब मायूसी है,वहशत का आलम है जमाने में ।
नहीं गांव में कुछ खौ़फो़ ख़तर बस ये लगा मुझको ।।

ये हिंदू और मुस्लिम के जो झगड़े हैं शहर में हैं ।
मेरे गांव में हैं सब भाई भाई ये लगा मुझको ।।

ये दरिया धूप बादल और सितारे भी सभी के हैं ।
मेरा घर मेरा आंगन है सभी का ये लगा मुझको ।।

मुजाहिद एक इंसां है उसे इंसां से रग़बत है ।
मैं तन्हा हो के सबका हूं हमेशा ये लगा मुझको ।।

✍️ मुजाहिद चौधरी

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की कविता


सुनो
सुनो!
कच्चे धागे सा है
हमारा रिश्ता
बहुत नाजुक मगर
रूह सा मुलायम
जिसमें सुगंध भरी है
प्रेम और
विश्वास की
जो लचकता है
झूलता है
मगर सौम्यता से
फलता फूलता है
उम्र भर संभाल कर
चलना होगा
क्योंकि
मैं नहीं चाहती गाँठ पड़े उसमें
कोई
अविश्वास और स्वार्थ की
सुनो!

✍️  राशि सिंह
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश

सोमवार, 24 अगस्त 2020

वाट्सएप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है। मंगलवार 11 अगस्त 2020 को आयोजित गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों वीरेंद्र सिंह बृजवासी, अशोक विद्रोही, दीपक गोस्वामी चिराग, मरगूब अमरोही, कमाल जैदी वफ़ा, डॉ पुनीत कुमार , सीमा रानी, राजीव प्रखर, डॉ प्रीति हुंकार और रामकिशोर वर्मा की रचनाएं-----


उठो बालको शीघ्र  नहा  लो,
कंघी करके   काजल  डालो,
आजादी  का  दिन  आया है,
नाचो  गाओ  खुशी मना  लो।

उजली-उजली ड्रेस पहनकर,
उसपर  सुंदर  रिबन लगा लो,
स्वयं    तिरंगा   झंडा   लेकर,
गली -गली उसको फहरा लो।

खेल  कूद के  प्रतिभागी  बन,
सबकोअद्भुत खेल खिला लो,
देश भक्ति  के  गीत  सुनाकर,
दिल के  दरवाजे  खुलवा  लो।

सोनू,   मोनू,    सीता,    गीता,
वृक्षा  रोपण   को  अपना  लो,
घर आँगन  को   सुथरा  करके,
जीवन  को   जीवन  पहनालो।

आजादी    का    पर्व     मनाने,
जन,गण,मनअधिनायक गा लो,
ऊंचे   स्वर   में   स्वयं  बोलकर,
सबसे    जयकारा   लगवा  लो।

घर    जाने    से    पहले   सारे,
बच्चो  एक  कतार   बना   लो,
नुक्ती   का   दोना   ले   जाकर,
सबको  बांटो   खुदभी   खालो।

✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
  9719275453
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आज यहां पर नहीं है राजा
                और न कोई रानी
सब बच्चों की बात करूं
      ‌   ये नहीं है कोई कहानी
नई-नई हो गई ये दुनिया
                अब न रही पुरानी
डिजिटल सब कुछ हुआ
       यहां पर खेल हुए बेमानी
मोबाइल,टीवी, कंप्यूटर
           की दुनिया दीवानी
सुबह से लेकर रात तलक
          सब इन पर ही रहते हैं
दुनिया भर के काम सभी
         बस इन पर ही करते हैं
कोरोना के रूप में जग
            पर आई नयी तबाही
बंद हुए स्कूल इन्हीं पर
                  होने लगी पढ़ाई
खेल खेलते इन पर बच्चे
               इन पर ही पढ़ते हैं
इनके कारण कुंठित होकर
                बार-बार लड़ते हैं
हे मधुसूदन कृष्ण कन्हैया
      ‌      अब जल्दी आ जाओ
आज कंस से कोरोना से
             सबकी जान बचाओ
याद करो यह कहा तुम्हीं ने
             फिर फिर मैं जन्मूंगा
जब जब पाप बढ़ेगा जग में
              तब तब मैं आऊंगा
तांडव कोरोना का है अब
             उसकी है मनमानी
कब तक प्राण कोरोना
          लेगा चिंता ये अनजानी
खुशी खुशी खेलें बच्चे फिर
          ‌      ऐसा चक्र चला दो
इस ब्याधि कोरोना से
       प्रभु जग का फंद छुड़ा दो

 ✍️ अशोक विद्रोही
 412 प्रकाश नगर
 मुरादाबाद
82 188 25 541
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माँ! मैं भी बन जाउँ कन्हैया,
मुरली मुझे दिला दे।
और मोर का पंख एक तू,मेरे शीष सजा दे।
ग्वाल-बाल के साथ ओ! मैया,
मैं भी मधुबन जाऊँ।
प्यारी मम्मी! मुझको छोटी गैया एक दिला दे।

यमुना तट पर मित्रों के सँग,
गेंद-तड़ी फिर खेलूँ।
मारूँ तक कर गेंद,ओ माता!
मुझे पड़े तो झेलूँ।
और कदंब के पेड़ों पर मैं,पल भर में चढ़ जाऊँ।
कूद डाल से यमुना में फिर,गोते खूब लगाऊँ।

ऊँची डाली पर बैठूँ मैं,मुरली मधुर बजाऊँ।
मुरली मधुर बजा कर मैया,गैया पास बुलाऊँ।
मैं फोड़ूँ माखन-मटकी भी,माखन खूब चुराऊँ।
मेरे पीछे भागें गोपी,उनको खूब भगाऊँ।

✍️दीपक गोस्वामी 'चिराग'
शिव बाबा सदन,कृष्णाकुंज
बहजोई(सम्भल) 244410 उ. प्र.
मो. 9548812618
ईमेल-deepakchirag.goswami@gmail.com
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चिंटू मिंटू थे दो भाई, कभी ना करते वो तो पढ़ाई।
खेलते रहते वो तो हरदम,उम्र उन्होंने यूं ही गंवाई।।

करते न होमवर्क पूरा, स्कूल से ये शिकायत आई।
लाख समझाया उनको, फिर भी अक्ल नहीं आई।।

पढ़ लिखकर क्या करना है,ये कह देते दोनों भाई।
थके हारे पापा के मन में,एकदिन तो सोच ये आई।।

ले गए एक दिन,फिर दोनों की काउंसलिंग कराई।
धीरे धीरे उन दोनों के, बस फिर ये समझ में आई।।

इसके बिन जीवन व्यर्थ, इसी में है सब की भलाई।
जीवन का गहना ये तो, मेहनत से करनी है पढ़ाई।

✍️ मरग़ूब अमरोही
दानिशमन्दान, अमरोहा
मोब-9412587622
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गुड्डू भाई करो पढ़ाई,
लोग करेंगे तभी बड़ाई।

कोरोना सी आफत आई,
रखना देखो खूब सफाई।

चुन्नू की न करो पिटाई,
तुम हो उसके अग्रज भाई।

फास्ट फूड से नाता तोड़ो,
दूध पियो औ'खाओ मलाई।

मास्टर जी ने बतलाया था,
बुरी बात है मार कुटाई।

मेहनत करके दौलत लाना,
उससे करना सबकी भलाई।

✍️ कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
प्रधानाचार्य,                                                    अम्बेडकर हाई स्कूल बरखेड़ा
सिरसी (सम्भल)
9456031926
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मेरी जन्मभूमि भारत
सारे जग का प्राण है
सबसे महान है

इस विशाल भूमंडल में
ऐसा सुपावन कोई नहीं
सुंदर तो है देश कई पर
ऐसा मनभावन कोई नहीं

मेरी मातृ भूमि भारत
सारे जग की शान है
सबसे महान है

दीपक है गर अन्य देश
मेरा भारत दिनकर है
वो देश हो गया है रोशन
पड़ी रोशनी जिस पर है

मेरी कर्म भूमि भारत
सारे जग की आन है
सबसे महान है

डाॅ पुनीत कुमार
T -2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद 244001
M - 9837189600
------------------------

नंदलाल कन्हाई आओ रे,
फिर  माखन मिश्री खाओ रे |
अँखियाँ निशिदिन बरसत हैं,
क्या कृष्णकन्हाई साेवत हैं |
 पल पल ये जीवन बीत रहा ,
इक क्षण सुख ना चैन रहा |
 अब फिर से दरश दिखाओ रे,
 नन्दलाल कन्हाई आओ रे |

अब गीता ज्ञान सुनाओ रे,
और कर्मयोग समझाओ रे |
 चहुँ और अँधेरा छाया है ,
 ये कपटी मन घबराया है |
 लालच नफरत भरी पडी़,
 जाने मिलन की कौन घडी़ |
 अब नैय्या पार लगाओ रे,
 नन्दलाल कन्हाई आओ रे |

 जीवन की बेला बीत रही,
 नटखट की मुरली मौन रही |
 क्या माखन राेटी याद नही,
 या सुनते अब फरियाद नही |
 क्याेंकर मुखड़ा माेड़ लिया,
 क्याें बीच भंवर में छाेड़ दिया |
 अब फिर से माखन चुराओ रे,
  नन्दलाल कन्हाई आओ रे  |

✍🏻सीमा रानी
अमरोहा
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आओ बच्चो, खेलें मिलकर,
अब गोविन्दा आला।

ऊपर को देखो, हूँ लटकी।
सजी-धजी मैं माखन-मटकी।
राजा-जौनी-पापे-असलम,
दृष्टि सभी की मुझ पर अटकी।
कैसे कूदें सोच रहे हैं,
मोटे लल्लन लाला।
आओ बच्चो, खेलें मिलकर,
अब गोविन्दा आला।

बच्चे सारे बने कन्हैया।
करते जमकर ता-ता-थैया।
रज्जो-रज़िया यों मुस्कातीं,
जैसे हर्षित दोनों मैया।
माखन-मिश्री दूर भगाएं,
सारा गड़बड़झाला।
आओ बच्चो, खेलें मिलकर,
अब गोविन्दा आला।

जिन्हें समर्पित है यह ताली।
जिन पर दुनियां है मतवाली।
उन कान्हा की हर लीला में,
एक छिपी है बात निराली।
उन्हें चढ़ाएं भाव-पुष्प की
मनभावन यह माला।
आओ बच्चो, खेलें मिलकर,
अब गोविन्दा आला।

 ✍️ राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद
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सभी गोपियाँ मुझे चिड़ायें,
काला कहके मैया जी ।
ताली मारें मुझे नचायें ,
नाचूँ ता -ता थैया जी ।

लाज न आवै नग्न नहाएँ,
करतीं छप्पक छैया जी ।
सबक सिखाऊं बस्त्र चुराऊं,
कहती बस्त्र चुरैया जी ।

तारी मारैं******
लाठी लेकर उन्हें ढूंढते ,
देखो इनके सैया जी ।
इधर उधर जब बस्त्र न पाए,
करती दैया दैया जी ।
तारी मारैं******

अब न नग्न नहाएँ सर में ,
क्षमा करो हमें भैया जी।
बाल रूप में तुम ही कान्हा ,
सबके लाज बचैया जी ।
तारी मारैं****

✍️ डॉ प्रीति हुँकार
 मुरादाबाद
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अमिया जैसे डाल की
साड़ी भी ज्यों फॉल की
खुशियांँ हों बस हाल की
जय कन्हैया लाल की ।।

घोड़ी दौड़े नाल की
गठरी मिलती माल की
लल्ला झूले पालकी
जय कन्हैया लाल की ।।

बात बिगड़ जा जाल की
झुके कमर जब काल की
तिलक लगाते भाल की
जय कन्हैया लाल की ।।

ऊँचे भारत भाल की
बात गले जब दाल की
या हंँसी नौनिहाल की
जय कन्हैया लाल की ।।
   
 ✍️ राम किशोर वर्मा
रामपुर
मो० नं०- 8433108801

शनिवार, 22 अगस्त 2020

मुरादाबाद क़े साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की लघुकथा ----श्रद्धा


हर साल की तरह इस साल भी,कीर्तन मण्डल की ओर से,गुरु पूर्णिमा पर,एक भव्य शोभायात्रा निकाली गई।शोभा यात्रा में,शहर के अधिकांश गणमान्य व्यक्तियों सहित,काफी बड़ी संख्या में भक्त जन शामिल हुए।
  श्रद्धालुओं में अपूर्व उत्साह था।पूरे मार्ग में हलवा,चना शरवत आदि की जबर्दस्त व्यवस्था थी ।अपनी श्रद्धा के प्रदर्शन की लोगो में होड़ सी लगी थी।लगभग एक किलोमीटर लंबे रास्ते में पचास से अधिक स्थानों पर प्रसाद का वितरण हो रहा था।राह चलते लोगों को भी रोक रोक कर जबरदस्ती प्रसाद दिया जा रहा था। रात के 9 बजे तक ये सिलसिला इसी प्रकार चलता रहा।
     अगले दिन सुबह जब मैं टहलने के लिए  निकला तो मैंने देखा ,पूरी सड़क पर,खाली बोतल, ग्लास, दौने,प्लास्टिक की थैली,कागज की प्लेट,आदि के रूप मै,श्रद्धालुओं की श्रद्धा बिखरी पड़ी थी।
       
✍️  डॉ पुनीत कुमार
T -2/505 
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद -244001
M  -9837189600

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा---समय

 
        "" मारो ! इनको पता नहीं, कहाँ- कहाँ से से चले आते हैं परेशान करने----। मगर हजूर यह तो आप की प्रजा है रामू ने कहा।"
        " वो क्या होती है रे-----?"
   " हजूर वहीं जिसके बल पर आप राज कर रहे हैं---।"
       एक कटु मुस्कान के साथ " हूँ ------राज  कर रहे हैं। सुनो हम राज इनके बल पर नहीं, चाटुकारिता के बल पर कर रहे हैं, समझे।"

अशोक विश्नोई
मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की लघुकथा ------अथक परिश्रम

   
छोटी सी नौकरी और छोटी तनख्वाह में वीरू और उनकी पत्नी राजे का अपने तीन बच्चों के साथ गुजारा करना कठिन तो जरूर था लेकिन वे यह जानते थे कि नेक नीयत मंज़िल आसान किसी ने यूँ ही नहीं कहा है।सादा जीवन उच्च विचार कि उक्ति को चरितार्थ करते हुए भगवान पर पूरा भरोसा रखते हुए अपने परिवार में अत्यंत प्रसन्नता के साथ अपने जीवन की गाड़ी को निरंतर आगे बढ़ा रहे थे।
       उनकी जिंदगी का परम उद्देश्य यही था कि उनकी तीनों संतानें खूब पढ़ लिख कर बड़े अधिकारी बनें।इसी उधेड़ बुन में खूब मेहनत और लगन के साथ अपने काम को अंजाम देते। बच्चे भी पढ़ने-लिखने में अच्छे और परिश्रमी थे।हमेशा क्लास में प्रथम रहकर विद्यालय का नाम रौशन करते।
       एक दिन बैठे-बैठे वीरू ने अपने बच्चों से बड़े सहज भाव से यह पूछा कि बच्चों जब हम बूढ़े हो जाएंगे तो हमें अपने पास कौन बुलाएगा।तीनों बच्चों ने उत्सुकता जताते हुए अपने-अपने पास बुलाने की सहमति दी।यह देखकर वीरू ख़ुश तो जरूर हुआ लेकिन उसने बच्चों के सम्मुख एक शर्त भी रख दी।
         वीरू ने कहा कि हम ऐसे ही किसी के पास नहीं जाएंगे,हम तो केवल उसी के पास जाएंगे जिसकी चार पहियों की गाड़ी हमको स्टेशन से लेने आएगी।बच्चों ने स्पर्धा का भाव रखते हुए अपनी-अपनी गाड़ी से लाने को प्राथमिकता दी।
        तब वीरू ने बच्चों को यह समझाया कि बच्चो गाड़ी ऐसे ही नहीं मिलती वह तो अथक परिश्रम और सच्ची लगन के साथ पढ़ाई करने और कंपीटीशन में सर्वोच्च स्थान लाने के उपरांत ही मिलती है।तुम भी ऐसा ही करोगे तभी तुमें गाड़ी भी मिलेगी और सामाजिक सम्मान भी प्राप्त होगा।
         फिर क्या था बच्चो ने इसी को अपना लक्ष्य बना लिया और अंततः उसका बड़ा बेटा राघव जज बन कर ,छोटा बेटा पीयूष सरकारी विभाग  में सीनियर इंजीनियर बनकर तथा बिटिया हिम्मो भी कुशल इंजीनियर की डिग्री लेकर लौटी।
        यह देख कर माता-पिता की खुशी का ठिकाना न रहा।अब तीनों की गाड़ी ही पापा - मम्मी को स्टेशन से लेने जातीं हैं।अब पापा यह सोचते हैं कि किसकी गाड़ी में पहले बैठें।
                     
 ✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ, प्र,
 9719275453         
                     

शुक्रवार, 21 अगस्त 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा --- समाज सेवा


सोनू दीदी ने समाज सेवा के क्षेत्र में बहुत नाम कमाया। कई संस्थाओं ने उनके कार्यों की फोटो देखकर उन्हें सम्मानित भी किया। आज सोलह साल की एक लड़की फरीदा उनसे मदद माँगने आयी ।बोली,"दीदी मेरे माँबाप मेरी शादी एक 40 साल के व्यक्ति के साथ कर रहे है।प्लीज़ आप मुझे बचा लीजिए।मुझे पढ़ना है।अभी शादी नहीं करनी"।"अपने माँ पिता को समझाओ ", दीदी बोली।"मैने बहुत कहा मगर वो मान नहीं रहे,वो मेरे पिता का कर्ज भी चुकायेगा। ये तो मेरा सौदा हुआ न दीदी।मेरे घर से निकलने पर भी पाबंदी है। बड़ी मुश्किल से आयी हूँ।दीदी मुझे अपने घर में रख लीजिए"। सोनू दीदी बोली"अरे नहीं ऐसा नहीं कर पायेंगे, तुम तो मुस्लिम हो और कहींं हिन्दू मुस्लिम विवाद न हो जाये।तुम अपने घर जाओ।हम पुलिस भेज देंंगे"।फरीदा आँखों मे आँसू लिए खड़ी रह गयी।दीदी  गाड़ी मेंं बैठ अगले कार्यक्रम मेंं सम्मानित होने चली गयीं।

✍️ डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार नजीब जहां की लघुकथा ------ कल्पना


कल्पना के माता-पिता नहीं है। गरीब अनाथ बच्चों की सेवा करके कल्पना के मन को शांति मिलती है एक बार कल्पना ट्रेन से गोवा जा रही थी। उस ट्रेन में कुछ अनाथ लड़कियों को गुंडे किडनैप करके बेचने के लिए ले जा रहे थे।
   कल्पना ने अपनी जान जोखिम में डालकर उन गरीब अनाथ लड़कियों को गुंडों से बचाया, फिर क्या था अगली सुबह सारे न्यूज़पेपर्स में कल्पना की फोटो और खबरें छपी थीं। चारों और कल्पना के नाम की
चर्चा हो रही थी।

✍️  नजीब जहां
प्रेम वंडरलैंड, मुरादाबाद
9837508724

मुरादाबाद की साहित्यकार सीमा वर्मा की कहानी ------ - "नास्तिक"


  "अरे ssss"   "भाभीजी , छोड़िए आप ।"    "आप लोगों का क्या ?"    "भई , आप ठहरे नास्तिक लोग ।"    "आपका धर्म और आस्था से क्या लेना - देना ।"
शर्मा जी ने वाणी में मिश्री तो घोली , पर विष तो विष ही होता है । चाहे मीठी जुबान से ही क्यों ना उगला गया हो ।  सुनंदा और अभिषेक अवाक से खड़े रहे , कुछ कह नहीं पाए । वैसे भी जो-जो साथ खड़े थे उनमें हमउम्र कम ही थे  ज्यादातर उनसे बड़े ही थे ।
             सुनंदा और अभिषेक की यह तीसरी पीढ़ी थी जो इस मौहल्ले में रह रही थी ।  अभिषेक के दादा जी इस जगह को लेकर बहुत भावुक थे ।  इसलिए उनके जाने के बाद भी अभिषेक और उसके पिता ने यह घर नहीं बेचा था और सभी अभी तक यहीं रह रहे थे ।
             मौहल्ला क्या था बस यूँ समझिए नन्हा भारत था ।  सभी जातियों और धर्मों के लोग थे वहाँ । पीढ़ियों का साथ था एक दूसरे से ।  अभिषेक के दादा जी सर्जन थे  और पिता भी । वह खुद भी शहर का एक जाना- माना डॉक्टर था  और उसकी पत्नी भी डाॅक्टर थी ।  पूरे शहर में यह मशहूर था कि जिस किसी को इलाज के लिए पैसों की तंगी हो वो बस इनके परिवार से संपर्क कर ले उसका मुफ्त इलाज हो जाता था । किसी को भी दर्द में देख नहीं सकता था यह परिवार ।  ऐसे में पूरे मौहल्ले का मुफ्त इलाज तो होना ही हुआ ।  वैसे भी अभिषेक के पूरे परिवार ने जैसे एक प्रण लिया हुआ था कि वे सभी अपने पेशे से समाज को जितना सेवा दान दे सकते हैं देंगे और वो दे भी रहे थे  ।
        बस पीढ़ियों से इस खानदान पर एक ही बट्टा (इल्ज़ाम) लगा हुआ था कि इन का परिवार किसी भी तरह के धार्मिक अनुष्ठान में हिस्सा नहीं लेता था , जिसका कारण शायद इतना निजी था कि कभी किसी ने इस बात का खुलासा भी नहीं किया  ।
      पिछले कुछ हफ्तों में शहर में कुछ अलग तरह की हलचल थी ।  मौहल्लों में भी यही माहौल था  ।  हर कोई मंदिर निर्माण की बातों को बढ़ा-चढ़ा कर बतियाता दिखाई पड़ता था ।  कई जगहों पर चंदा आदि भी इकट्ठा किया जा रहा था ।  अभिषेक के मौहल्ले में भी चन्दा इकट्ठा करने कुछ लोग आज एक जगह एकत्रित थे ।  वहीं पर अचानक हास्पिटल से लौटते हुए सुनंदा और अभिषेक भी पहुंँच गए । उन्हें पूरी बात पता नहीं थी तो उत्सुकतावश  सुनंदा पूछ बैठी कि चंदा किस प्रक्रिया के लिए है ।
       बस प्रश्न के उत्तर ने उसे निरुत्तर कर दिया ।  और वो और अभिषेक एक दूसरे में अपने   "नास्तिक"  रूप को ढूंढने लगे  ।।

✍️ सीमा वर्मा
बुद्धि विहार
मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के सिरसी (जनपद सम्भल) निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की लघुकथा ------ दौलत

                  
'ज़रीना तुमने आज फिर प्लेट तोड़ दी  तुम रोज़ कुछ न कुछ नुक़सान कर देती हो मै तुमसे कितनी बार कह चुकी हूँ कि ध्यान से काम  किया करो लेकिन तुम हो कि एक कान से सुनती हो और दूसरे से निकाल देती हो' ।
ज़रीना ने मेम साहब की बात सुनकर फ़ौरन जवाब दिया - "हां- हां पूरा ध्यान रखती हूं अरे, अगर एक प्लेट टूट गई तो कौन सी ऐसी आफत आ गई"।
अगले दिन फिर किचिन से तड़ाक! के साथ किसी चीज के टूटने की आवाज आई मेम साहब किचिन में  गई तो वहा का नज़ारा देखकर हैरत व गुस्से से उनका चेहरा लाल हो गया अपने पर नियंत्रण न रख सकीं और ज़रीना पर उबल पड़ी - "अरे कमबख्त, तूने मेरा कितना क़ीमती सैट तोड़ दिया मेरी मामी ने मुझे यह लंदन से भेजा था"। ज़रीना ने पहले की तरह लापरवाही से जवाब दिया -"मेम साहब मैने यह जानकर तो नही तोड़ा "।जरीना का टका सा जवाब सुनकर मेम साहब का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया "खामोश, ज़बान लड़ाती है "
"इसमें ज़बान लड़ाने वाली कौन सी बात है "। ज़रीना ने तपाक से जवाब दिया ।अब मेम साहब से रहा नही गया  ज़रीना की ओर देखकर वह ज़ोर से चिल्लाई -"तुम गरीब लोगों में मैनर्स कहां, इसीलिये तुम गरीब हो और हम अमीरों से जलते हो जान बूझकर हमारा नुक़सान करते हो  इसीलिये दौलत तुमसे दूर भागती है "।  "बस- बस मेम साहब, दौलत का ज़्यादा घमंड मत दिखाओ जिस दौलत पर तुम इतना इतराती हो वह तुम्हे सुकून नही देती तुम्हारी यह दौलत तुम्हें अपनो से दूर करती है  यह दौलत दोस्त कम दुश्मन ज़्यादा बनाती है। अरे,  असली दौलत तो हमारे पास है प्यार की दौलत, मौहब्बत की दौलत,  मेरे पास मेरे बच्चो की, मेरे आदमी की ,मेरे माँ -बाप के प्यार की दौलत है। मैं यहां से थकी हारी जाती हूं तो घर पहुँचकर सबके प्यार की दौलत पाकर मुझे जो खुशी मिलती है वह तुम्हे कहां नसीब? "। कहती हुई ज़रीना मेम साहब के घर से निकल गई उसके जाने के बाद भी उसके कहे गये शब्द मेम साहब के कानों में गूंजते रहे वह सोचने लगीं कही जरीना सच तो नही कह रही ? दौलत कमाने के लिये उसके पति यू एस ए में है उसके दोनों बेटे दुबई में जॉब कर रहे है वो यहां अकेली है कभी कभी तो अकेलापन उसे बहुत कचोटता है यहां भी जो उसके अपने रिश्तेदार थे वह उसकी दौलत के घमंड में कही गई बातों से उससे दूर होते चले गये अब कोई उसके घर नही आता सोचते सोचते मेम साहब बुदबुदाने लगीं-" सच है, प्यार की दौलत सबसे बड़ी दौलत है "।

 ✍️ कमाल ज़ैदी "वफ़ा"
प्रधानाचार्य, अम्बेडकर हाई स्कूल बरखेड़ा
सिरसी (सम्भल)
9456031926

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की लघुकथा ---- प्रेमचंद

 
      बस कल ही की तो बात है, जगन ताऊ मेरे पापा के बचपन के घनिष्ठ मित्र लंदन से यहां मेरठ आए।आते ही शाम  को पापा से मिलने घर पर आ गए।
मैं उनके चरण स्पर्श करने आया.... आशीर्वाद लेने के बाद ताऊ जी ने मेरे पढ़ाई लिखाई के बारे में बात की, फिर मुझसे मेरे भविष्य में किसके जैसा बनना है इसके बारे में पूछे.....
मैं बचपन से ही लिखने में ज्यादा रूचि रखता हूं... सो जाहिर सी बात है, अपने उपन्यासकार और कलम के सिपाही मुंशी प्रेमचंद, जिनसे मैं सबसे ज्यादा प्रभावित रहा हूं.... उनके जैसा बनने की  ही इक्षा  जाहिर की।
ताऊ जी  के जाने के बाद पापा मुझ पर झल्लाते हुए कहे, यह क्या बकवास है, गरीब की जिंदगी जीनी है क्या?....
पढ़ लिख कर पैसा कमाने पर ध्यान दो।
दो दिन बाद जब हम सब  परिवार दिल्ली जा रहे थे। तो ट्रेन में किसी साहब को प्रेमचंद जी की किताब गोदान को पढ़ते हुए देखकर पापा ने कहा-  साहब मैंने भी प्रेमचंद जी की बहुत सारी उपन्यास ,नाटक,किताबे पढ़ी  है। कमाल की सटीक पकड़ और नजरिया था उनका, सामाजिक विसंगतियों पर आघात करने का... लगभग 80 साल बाद भी इनको पढ़ने के बाद  ये आज भी सार्थक नजर आते है।
ये सुनकर मेरा निश्चय और भी पक्का हो गया था।।

✍️ प्रवीण राही
मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार इला सागर रस्तोगी की लघुकथा ----असंतुलन


"इतना क्यों दुखी होती हो भाभी इतना क्यों रो रही हो?" ध्वनि ने भाभी को सांत्वना देते हुए चुप कराने की कोशिश करते हुए कहा।
भाभी ने सिसकियां भरते हुए उत्तर दिया "ध्वनि अब मैं थक गयी हूँ यह सब करते अब और नहीं किया जाता। महीने भर उन अच्छे दिनों का इंतजार फिर कोशिश करने के बाद वजन मत उठाओ, ज्यादा दौड़ो मत, गर्म चीजें मत खाओ, क्या पता इस बार ईश्वर सुन ही ले और फिर टैस्ट किट का प्रयोग और फिर नेगेटिव रिजल्ट फिर भी यही उम्मीद होती है कि शायद किट गलत हो या फलाना हार्मोन अभी अच्छी मात्रा में बने नहीं और फिर उन दिनों का आ जाना और अंत में मेरा बिलखते रोना, किस्मत को कोसना और फिर शुरू होती है एक नई साइकिल। पिछले दस साल से यही तो कर रही हूँ ध्वनि मैं पर अब थक गई । कितना कहा मैने इनसे कि बस अब मुझसे डॉक्टरों के चक्कर नहीं लगाए जाते पर ये भी मजबूर हैं। बच्चा तो चाहिए ही न।"
ध्वनि ने भाभी को गिलास से पानी पिलाते हुए कहा "दुखी मत हो भाभी ईश्वर के घर देर है अन्धेर नहीं। लो आप टीवी देखो मन बदलेगा।"
चैनल लगाते समय ध्वनि ने गलती से न्यूज चैनल लगा दिया। उसपर आती एक खबर ने दोनों का ध्यान आकर्षित किया। खबर में दिखा रहे थे कि किस प्रकार किसी नृशंस मानव ने नवजात जुड़वा बच्चियों को कूड़े के डिब्बे में मरने के लिए डाल दिया।
ध्वनि समझ नहीं पा रही थी कि इस खबर को देखने के बाद अपनी रोती हुई भाभी को वह अब क्या सांत्वना दे चुप कराए।

✍️ इला सागर रस्तोगी
मुरादाबाद