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डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822
भारतीय,भावुक नागरिक ने
नव- निर्वाचित नेता
को बधाई
देने का विचार बनाया,
उसने फोन घुमाया ,
नेता जी बोले
कौन है भाई
नागरिक ने उत्तर
दिये बिना ही
पश्न किया,
आप कहाँ से बोल रहे हैं
श्री मान
नेता जी
जो अभी तक
अभिमान के आवरण से
मुक्त नहीं हो पाये थे,
झुँझलाकर बोले,
जहन्नुम से-
नागरिक ने उत्तर दिया
मैं भी, यहीं सोच रहा था
कि
तुम जैसा नीच, कमीन, बेईमान
स्वर्ग में तो जा ही नहीं सकता ।।
✍️ अशोक विश्नोई, मुरादाबाद
--------------------------------------
फूल खिलते हैं हसीं हमको रिझाने के लिए ।
ये बहारों का है मौसम गुनगुनाने के लिए ।।
बाग़ में चंपा, चमेली ,खेत में सरसों खिली ,
हर कली तैयार है अब मुस्कुराने के लिए ।।
गुलमुहर के लाल फूलों की छटा है फागुनी ,
है रंगीली धूप धरती को सजाने के लिए ।।
देखकर फूलों को खिलता झूमती हैं तितलियाँ ,
मस्त भौंरे गुनगुनाते रस को पाने के लिए ।।
कोंपलों के फूटते ही आम बौराने लगे ,
आ गई डाली पे कोयल गीत गाने के लिए ।।
नाचती हैं तितलियाँ , मधुमक्खियाँ देती हैं ताल ,
मस्त धुन पंखों से बजती झूम जाने के लिए ।।
अब उदासी रात की धुलकर सहर होने लगी ,
आ गया फूलों का मौसम खिलखिलाने के लिए ।।
ताज़गी से भर गया उम्मीद का हर-इक ख़याल ,
गुनगुनी है धूप सर्दी को मिटाने के लिए ।।
उड़ रही है मस्त खुशबू हर तरफ़ 'ओंकार 'अब ,
दिल उसे करता है साँसों में बसाने के लिए ।।
✍️ओंकार सिंह 'ओंकार'
1-बी-241 बुद्धिविहार,मझोला,
मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश) 244001
------------------------------------------
फूल-फूल का मुख पुचकारे,
भौंरों की टोली,
कोयलिया झुरमुट में छुपकर,
बोले मृदु बोली,
तितली ने भी पंख खुशी में,
खोले बंद किए,
नवल रश्मियों-------------
माँ वाणी ने भी वीणा के,
किए तार झंकृत,
मानव ही क्या स्वयं देवता,
पीते रस अमृत,
सकल सृष्टि को आशीषों के,
भर-भर कलश दिए।
नवल रश्मियों--------------
ठिठुरन का संताप मिट गया,
आलस दूर हुआ,
शीतलहर का अहम स्वयंही,
चकनाचूर हुआ,
वासंती परिधान पहन कर,
सुंदर नृत्य किए।
नवल रश्मियों--------------
बौर लदी आमों की डाली,
झुककर नमन करें,
पशु-पक्षी भी एक-दूजे से,
प्यारी बात करें,
कवियोंको भी ऋतु वसंत ने,
नवस्वर दान किए।
नवल रश्मियों--------------
✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी, मुरादाबाद/उ,प्र, मोबाइल फोन नम्बर--9719275453
----------------------------------------
घर में भी पतले हुए, अब तो अपने हाल।
घरवाली के देखिए, बदल गये सुर ताल।।
सुबह हो गयी है प्रिये, चाय मिले तत्काल।
बोली स्वयं बनाइये, अपनी है हड़ताल।।
आप रिटायर हुए हो, मैं हूँ पूर्ण नियुक्त।
हाथ बँटाओ काम में, मत समझो जंजाल।।
गृहलक्ष्मी के हाथ में, अपनी जीवन डोर।
उनके ऊपर भाइयों, कब चलता है जोर।।
गृहलक्ष्मी को मानिए, अपना माई बाप।
सेल लगी है माल में, ले जाओ चुपचाप।।
पत्नी को संबोधित एक मुक्तक:
तुम आये तो आ गया जीवन में रस रंग।
तुमसे पहले तो रहा, ये जीवन बेढंग।।
टोक टोक कर रात दिन, बदली मेरी चाल।
पहले मैं लल्लू रहा, अब हूँ मिस्टर लाल।।
✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।
-------------------------------------------
इन्द्रधनुषी भवें तुम्हारी,
नैना कज़रारे कारे !
चेहरा सुंदर झील कमल सा,
होंठ दहकते अंगारे !!
निरख चांद भी चकित है ,
जैसे चांद की तुम परछाई हो!!
मेरे मन के मनमंदिर में
एक तुम्हीं तुम छाई हो!
कालिदास के मेघदूत की,
तुम्ही उर्वशी लगती हो!
आंखों में सिंदूरी सपने,
सोती हो या जगती हो!!
तुम ही दिलक़श ख्वाब ज़िगर
का ग़ालिब की रुबाई हो!!
मेरे मन के मनमंदिर में,
एक तुम्हीं तुम छाई हो!
लैला मजनूं,हीर रांझा सा,
मिलन मुझे मंजूर नहीं।।
प्रेम अगन और विरह व्यथा भी,
कर सकते मज़बूर नहीं !
सप्तपदी में सात जन्म तक,
तुम संग गांठ बंधाई हो!!
मेरे मन के मनमंदिर में,
एक तुम ही तुम छाई हो!!
छोड़ छाड़ कर मां बापू को,
तुम संग भाग नहीं सकता !
जो मुझको लाये दुनिया में ,
उनको त्याग नहीं सकता!!
परिणय तभी करूंगा तुम संग,
साथ बहन और भाई हो!!
मेरे मन के मनमंदिर में,
एक तुम्हीं तुम छाई हो !!
प्रेम निवेदन मेरा यदि प्रिय!
तुम को उत्तम लगता है ?
कर लेना स्वीकार यदि दिल ,
फिर भी धक धक करता है ?
वर्ना नाम न आये लव पर,
दोनों की रुसवाई हो !
मेरे मन के मनमंदिर में,
एक तुम्हीं तुम छाई हो!!
✍️अशोक विद्रोही , 412 प्रकाश नगर, मुरादाबाद, मोबाइल 8218825541
---------------------------------------------–-
तू पास आया तो बहार पर निखार आ गया
मृदंग बज उठे समां भी गीत गुनगुना गया ।
मिला नहीं कोई भी वक़्त पे जो काम आ गया
भरोसा जिस पे भी किया वही नज़र चुरा गया I
गई वो तंज मार के वफ़ा पे संग मार के
कि आइना तो टूटा ही दिलों में बाल आ गया ।
लिखा था मेरे हाथ में रहूँगा तन्हा तन्हा मैं
तू ज़िंदगी में आ के उस लकीर को मिटा गया ।
✍️ अखिलेश वर्मा
मुरादाबाद/अमरोहा
9897498343
-----------------------------------
इज्जत हो रही तार-तार देश में
हो रहे हैं रोज बलात्कार देश में
खुद ही कीजिएगा हिफाजत अपनी
गहरी नींद में हैं पहरेदार देश में
बढ़ रही है हैवानियत किस तरह
इंसानियत हो रही शर्मसार देश में
'एक्शन' के साबुन से हो जाएगी ये साफ
वर्दी जो हो गई है दागदार देश में
चीखने का कोई होगा नहीं असर
हो गई है बहरी अब सरकार देश में
टीआरपी चैनलों की बढ़ रही 'मनोज'
जमकर बिक रहे अखबार देश में
✍️ डॉ मनोज रस्तोगी, मुरादाबाद
- --------------------------------------
छुरी सियासत से कहे, चिन्ता का क्या काम।
मुझे दबाकर काँख में, जपती जा हरिनाम।।
गुमसुम पड़े गुलाल से, कहने लगा अबीर।
चल गालों पर खींच दें, प्यार भरी तस्वीर।।
कुर्सी-कुर्सी देश में जब खेले हुक्काम।
देने बैठीं दाढ़ियाँ, तिनकों को आराम।।
ऐसी भटकी राह से, रंगों की बौछार।
लुकता-छिपता फिर रहा, अब है शिष्टाचार।।
गले मिलाने इस बरस, कैसे आऊँ पास।
है साये में ख़ौफ़ के, अब भी फागुन मास।।
मिल-जुल कर ऐसी करें, रंगों की बौछार।
बह जायें अविलंब ही, मन के सभी विकार।।
✍️ राजीव 'प्रखर', मुरादाबाद
-------------------------------------------
बदले मिरे नसीब से हालात देखिये।
होने लगी है प्यार की बरसात देखिये।।मुझ पर हुआ है उनकी मुहब्बत का ये असर,
गाने लगी हूँ प्यार के नग़्मात देखिये।।
जब से मिली है उनकी वो तस्वीर इक मुझे,
आते हैं बस उन्हीं के ख़यालात देखिये।।
मौक़ा नहीं मिलेगा शिकायत का आपको,
इक बार हम पे कर के इनायात देखिये।।
आने लगीं हैं हिचकियाँ उनको भी रात-दिन,
*ममता* ये प्यार की है शुरूआत देखिये।।
✍️ डाॅ. ममता सिंह, मुरादाबाद
----------------------------------------
मैं ही दुर्गा मैं ही गौरी
मै ही शिवा कल्याणी हूँ |
शक्ति मेरी है अपरम्पार
अब जान लीजिए
उडना मैं भी चाहती हूँ,
खुला आसमान दीजिए |
मै ही बहना मैं ही माता,
मैं ही बनती जीवन संगिनी |
अनेकाें रूप हैं मेरे तो अब
पहचान लीजिए |
उडना मैं भी चाहती हूँ
खुला आसमान दीजिए |
मैं ही गीता मैं ही क्षमा,
मैं ही लक्ष्मी काली हूं |
बिन मेरे सृष्टि नही सम्भव,
अब मान लीजिए |
उडना मैं भी चाहती हूँ
खुला आसमान दीजिए |
माँ की लाडली
पिता की धडकन,
भाई का गहना हूँ मैं |
बिन मेरे आप सब सूने
जरा ध्यान दीजिए |
उडना मैं भी चाहती हूँ
खुला आसमान दीजिए |
बेटी मैं आपकी ही हूँ
जरा पहचान लीजिए,
उडना मैं भी चाहती हूँ
खुला आसमान दीजिए |
✍️ सीमा रानी, पुष्कर नगर, अमराेहा
--------------------------------------------
बहें जिस लहर सँग भाई वो , बहक हैं बेटियाँ
छोड़तीं राखी के लिये सभी , हक हैं बेटियाँ
हो जाती भस्म जिसमें , कुरुवंश की कुरूपता
याज्ञसैनी के उस क्रोध की , दहक हैं बेटियाँ ।
✍️ डॉ. रीता सिंह, मुरादाबाद
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थी कोई दौलत वो मेरी प्यार के सब रंग भरी
मेरे हिस्से की मिरी जागीर आधी रह गई
खिल उठा जीवन था मेरा बन सुगंधित फूल सा
चुभ गया काँटे सा बन औ तीर आधी रह गई
मीठे झरने का वो पानी पी जिसे मदहोश था
आदी था जिसका मैं वो तासीर आधी रह गई
वो रही गीतों मे मेरे,मेरी गजलों मे घुली
लिख रहा तो हूँ गजल पर, पीर आधी रह गई
वो मिरी ,मैं भी समर्पित, पा सका फिर भी नही
जल चिता मे रानी मेरी हीर, आधी रह गई
✍️ इन्दु,अमरोहा,उत्तर प्रदेश
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✍️ प्रशान्त मिश्र, मुरादाबाद
----------------------------------------------
✍️ आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ, मुरादाबाद
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अमृत वरसा दो माँ भू पर !
सुख - चैन भरे वसुधा ऊपर !
ऋतु राज करो ऐंसा जादू ;
मुस्कान व्याप्त हो हर मुंह पर !।
✍️ विकास मुरादाबादी , मो 9997235297
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✍️ नकुल त्यागी , मुरादाबाद
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मां तो मां है दुआ भी कमाल देती है
सर पे रखके हाथ बला को टाल देती है
मौहब्बत का किसी की क्या अंदाजा नजीब
खुदाई भी मौहब्बत की मां पर मिसाल देती है
✍️ नजीब सुल्ताना, रफातपुर, मुरादाबाद
धृतराष्ट्र के सारथी संजय ने धृतराष्ट्र से सैन्यस्थल का आँखों देखा हाल कुछ इस तरह कहा।
अर्जुन ने श्री कृष्ण से , किया शोक संवाद।
नेत्र सजल करुणामयी ,तन-मन भरे विषाद।। 1
श्री कृष्ण भगवान उवाच
------------------------------
प्रिय अर्जुन मेरी सुनो, सीधी सच्ची बात।
यदि कल्मष हो चित्त में, करता अपयश घात।। 2
तात नपुंसक भाव है, वीरों का अपमान।
उर दुर्बलता त्यागकर, अर्जुन बनो महान।। 3
अर्जुन ने भगवान कृष्ण से कहा
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हे!मधुसूदन तुम सुनो, मेरे मन की बात।
पूज्य भीष्म,गुरु हनन से, उन पर करूँ न घात।। 4
पूज्य भीष्म,गुरु मारकर, भीख माँगना ठीक।
गुरुवर प्रियजन श्रेष्ठ हैं, ये हैं धर्म प्रतीक।। 5
ईश नहीं मैं जानता,क्या है जीत-अजीत।
स्वजन बांधव का हनन, क्या है नीक अतीत।। 6
कृपण निबलता ग्रहण कर, भूल गया कर्तव्य।
श्रेष्ठ कर्म बतलाइए, जो जीवन का हव्य।। 7
साधन अब दिखता नहीं, मिटे इन्द्रि दौर्बल्य।
भू का स्वामी यदि बनूँ, नहीं मिले कैवल्य।। 8
संजय ने धृतराष्ट्र से इस तरह भगवान कृष्ण और अर्जुन का संवाद सुनाया
-----------------------------------------
मन की पीड़ा व्यक्त कर, अर्जुन अब है मौन।
युद्ध नहीं प्रियवर करूँ, ढूंढ़ रहा मैं कौन।। 9
सेनाओं के मध्य में, अर्जुन करता शोक।
महावीर की लख दशा, कृष्ण सुनाते श्लोक।। 10
श्री भगवान ने अर्जुन को समझाते हुए कहा
पंडित जैसे वचन कह, अर्जुन करता शोक।
जो होते विद्वान हैं, रहते सदा अशोक।। 11
तेरे-मेरे बीच में,जन्मातीत अनेक।
युद्ध भूमि में जो मरे, लेता जन्म हरेक।। 12
परिवर्तन तन के हुए, बाल वृद्ध ये होय।
जो भी मृत होते गए, नव तन पाए सोय।। 13
सुख-दुख जीवन में क्षणिक,ऋतुएँ जैसे आप।
पलते इन्द्रिय बोध में, धैर्यवान सुख- पाप।। 14
पुरुषश्रेष्ठ अर्जुन सुनो, सुख-दुख एक समान।
जो रखता समभाव है, मानव वही महान।। 15
सार तत्व अर्जुन सुनो, तन का होय विनाश।
कभी न मरती आत्मा, देती सदा प्रकाश।। 16
अविनाशी है आत्मा, तन उसका आभास।
नष्ट न कोई कर सके, देती सदा उजास।। 17
भौतिकधारी तन सदा, नहीं अमर सुत बुद्ध।
अविनाशी है आत्मा, करो पार्थ तुम युद्ध।। 18
सदा अमर है आत्मा , सके न हमें लखाय।
वे अज्ञानी मूढ़ हैं, जो समझें मृतप्राय।। 19
जन्म-मृत्यु से हैं परे, सभी आत्मा मित्र।
नित्य अजन्मा शाश्वती, है ईश्वर का चित्र।। 20
जो जन हैं ये जानते, आत्म अजन्मा सत्य।
अविनाशी है शाश्वत, कभी ना होती मर्त्य।। 21
जीर्ण वस्त्र हैं त्यागते, सभी यहाँ पर लोग।
उसी तरह ये आत्मा, बदले तन का योग।। 22
अग्नि जला सकती नहीं, मार सके न शस्त्र।
ना जल में ये भीगती, रहती नित्य अजस्र।। 23
खंडित आत्मा ही सदा, है ये अघुलनशील।
सर्वव्याप स्थिर रहे, डुबा न सकती झील।। 24
आत्मा सूक्ष्म अदृश्य है, नित्य कल्पनातीत।
शोक करो प्रियवर नहीं, भूलो तत्व अतीत।। 25
अगर सोचते आत्म है, साँस-मृत्यु का खेल।
नहीं शोक प्रियवर करो, यह भगवन से मेल।। 26
जन्म धरा पर जो लिए, सबका निश्चित काल।
पुनर्जन्म भी है सदा,ये नश्वर की चाल।। 27
जीव सदा अव्यक्त है, मध्य अवस्था व्यक्त।
जन्म-मरण होते रहे, क्यों होते आसक्त।। 28
अचरज से देखें सुनें, गूढ़ आत्मा तत्व।
नहीं समझ पाएं इसे, है ईश्वर का सत्व।। 29
सदा आत्मा है अमर, मार सके ना कोय।
नहीं शोक अर्जुन करो, सच पावन ये होय।। 30
तुम क्षत्रिय हो धनंजय, रक्षा करना धर्म।
युद्ध तुम्हारा धर्म है, यही तुम्हारा कर्म।। 31
क्षत्री वे ही हैं सुखी, नहीं सहें अन्याय।
युद्धभूमि में जो मरे, सदा स्वर्ग वे पाय।। 32
युद्ध तुम्हारा धर्म है, क्षत्रियनिष्ठा कर्म।
नहीं युद्ध यदि कर सके, मिले कुयश औ शर्म।। 33
अपयश बढ़कर मृत्यु से, करता दूषित धर्म।।
हर सम्मानित व्यक्ति के, धर्म परायण कर्म।। 34
नाम, यशोलिप्सा निहित, चिंतन कैसा मित्र।
युद्ध भूमि से जो डरे, वह योद्धा अपवित्र।। 35
करते हैं उपहास सब,निंदा औ' अपमान।
प्रियवर इससे क्या बुरा, जाए उसका मान।।36
यदि तुम जीते युद्ध तो, करो धरा का भोग।
मिली वीरगति यदि तुम्हें, मिले स्वर्ग का योग।।37
सुख-दुख छोड़ो मित्र तुम, लाभ-हानि दो छोड़।
विजय-पराजय त्यागकर, कर्म करो उर ओढ़।।38
करी व्याख्या कर्म की, सांख्य योग अनुसार।
मित्र कर्म निष्काम हो, उसका सुनना सार।।39
भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को कर्मयोग का महत्व बताया
-----------------------------------
कर्म करें निष्काम जो, हानि रहित मन होय।
बड़े-बड़े भय भागते, जीवन व्यर्थ न होय।।40
दृढ़प्रतिज्ञ जिनका हृदय, वे ही पाते लक्ष्य।
मन जिनका स्थिर नहीं, रहते सदा अलक्ष्य।।41
वेदों की आसक्ति में, करें सुधीजन पाठ।
जीवन चाहे योगमय, ऐसा जीवन काठ।।42
इन्द्रिय का ऐश्वर्य तो, नहीं कर्म का मूल।
करें कर्म निष्काम जो, मानव वे ही फूल।।43
सुविधाभोगी जो बनें, इन्द्रि भोग की आस।
ईश भक्त ना बन सकें, रहता दूर प्रकाश।।44
तीन प्रकृति के गुण सदा,करते वेद बखान।
इससे भी ऊँचे उठो, अर्जुन बनो महान।।45
बड़ा जलाशय दे रहा, कूप नीर भरपूर।
वेद सार जो जानते, वही जगत के शूर।।46
करो सदा शुभ कर्म तुम,फल पर ना अधिकार।
फलासक्ति से मुक्त उर, इस जीवन का सार।।47
त्यागो सब आसक्ति को , रखो सदा समभाव।
जीत-हार के चक्र में, कभी न दो प्रिय घाव।।48
ईश भक्ति ही श्रेष्ठ है, करो सदा शुभ काम।
जो रहते प्रभु शरण में, होता यश औ नाम।।49
भक्ति मार्ग ही श्रेष्ठ है, रहता जीवन मुक्त।
योग करे, शुभ कर्म भी, वह ही सच्चा भक्त।।50
ऋषि-मुनि सब ही तर गए, कर-कर प्रभु की भक्ति।
जनम-मरण छूटे सभी, कर्म फलों से मुक्ति।।51
मोह त्याग संसार से, तब ही सच्ची भक्ति।
कर्म-धर्म का चक्र भी, बन्धन से दे मुक्ति।।52
ज्ञान बढ़ा जब भक्ति में, करें न विचलित वेद।
हुए आत्म में लीन जब, मन में रहे न भेद।।53
श्रीकृष्ण भगवान के कर्मयोग के बताए नियमों को अर्जुन ने बड़े ध्यान से सुना और पूछा--
अर्जुन बोला कृष्ण से, कौन है स्थितप्रज्ञ।
वाणी, भाषा क्या दशा, मुझे बताओ सख्य।।54
श्रीकृष्ण भगवान ने अर्जुन को फिर कर्म और भक्ति का मार्ग समझाया
--------------------------------------
मन होता जब शुद्ध है, मिटें कामना क्लेश।
मन को जोड़े आत्मा, स्थितप्रज्ञ नरेश।।55
त्रय तापों से मुक्त जो, सुख - दुख में समभाव।
वह ऋषि मुनि-सा श्रेष्ठ है, चिंतन मुक्त तनाव।।56
भौतिक इस संसार में, जो मुनि स्थितप्रज्ञ।
लाभ-हानि में सम दिखे , वह ज्ञानी सर्वज्ञ।।57
इन्द्रिय विषयों से विलग, होता जब मुनि भेष।
कछुवा के वह खोल-सा, जीवन करे विशेष।।58
दृढ़प्रतिज्ञ हैं जो मनुज, करे न इन्द्रिय भोग।
जन्म-जन्म की साधना, बढ़े निरंतर योग।।59
सभी इन्द्रियाँ हैं प्रबल, भागें मन के अश्व ।
ऋषि-मुनि भी बचते नहीं, यही तत्व सर्वस्व।।60
इन्द्रिय नियमन जो करें, वे ही स्थिर बुद्धि।
करें चेतना ईश में, तन-मन अंतर् शुद्धि।61
विषयेन्द्रिय चिंतन करें, जो भी विषयी लोग।
मन रमताआसक्ति में, बढ़े काम औ क्रोध।।62
क्रोध बढ़ाए मोह को, घटे स्मरण शक्ति।
भ्रम से बुद्धि विनष्ट हो, जीवन दुख आसक्ति।। 63
इन्द्रिय संयम जो करें , राग द्वेष हों दूर
भक्ति करें जो भी मनुज, ईश कृपा भरपूर।। 64
जो जन करते भक्ति हैं, ताप त्रयी मिट जायँ।
आत्म चेतना प्रबल हो, सन्मति थिर हो जाय।। 65
भक्ति रमे जब ईश में, बुद्धि दिव्य मन भव्य।
शांत चित्त मानस बने, शांति मिले सुख नव्य।। 66
यदि इंद्रिय वश में नहीं, बुद्धि होती है क्षीण।
अगर एक स्वच्छंद है, तन की बजती बीन।।67
इन्द्री वश में यदि रहें, वही श्रेष्ठ है जन्य।
और बुद्धि स्थिर रहे, मिले भक्ति का पुण्य।।68
आत्म संयमी है सजग, तम में करे प्रकाश।
आत्म निरीक्षक मुनि हृदय, मन हो शून्याकाश।।69
पुरुष बने सागर वही, नदी न जिसे डिगाय।
इच्छाओं से तुष्ट जो, वही ईश को पाय।। 70
इच्छा इंद्री तृप्ति की, करे भक्त परित्याग।
अहम, मोह को त्याग दे, मिले शांति का मार्ग।। 71
आध्यात्मिक जीवन वही, मानव करे न मोह।
अंत समय यदि जाग ले, मिले धाम ही मोक्ष।।72
इस प्रकार श्रीमद्भगवतगीता के द्वितीय अध्याय " गीता का सार" का भक्तिवेदांत तात्पर्य पूर्ण हुआ ।क्लिक कीजिये और पढ़िये पहले अध्याय का काव्यानुवाद
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✍️ डॉ राकेश चक्र, 90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001, उत्तर प्रदेश, भारत, मोबाइल फोन नंबर 9456201857
Rakeshchakra00@gmail.com
सत्संग चल रहा था. स्वामी जी अपनी हैसियत से ज़्यादा ऊंचे मंच पर बैठे थे. भक्त चूँकि अभी वह ऊंचाई पाने लायक पोज़ीशन हासिल नहीं कर पाए थे, इसलिए वे नीचे बैठे, स्वामी जी का चेहरा ही देख रहे थे. सत्संग जारी था.
“…….तो मैं बता रहा था कि कभी पराई नारी की ओ़र ग़लत भाव से मत देखो, यह सब मिथ्या है.” स्वामी जी ने नारियों के उस समूह की ओ़र एक गिद्ध द्रष्टि डालते हुए इस बात को कुछ ऐसे अंदाज़ में कहा, जैसे वे उन तमाम नारियों को ग़लत भाव से देखने के लिए परमात्मा की ओर से अधिकृत हों और जो लोग अपने पूर्व जन्मों के कर्मों की वजह से अभी इस लायक नहीं बन पाए हैं, उन्हें आगाह कर रहे हों कि इसके कितने भयंकर दुष्परिणाम होते हैं.
“दुर्योधन ने द्रौपदी को ग़लत द्रष्टि से देखा तो उसका क्या अंज़ाम हुआ ? बहुत बुरा हुआ. वह कही का नहीं रहा. राजपाट भी गया और अंत में उसकी हार हुई सो अलग.” प्रवचन अभी भी उस विषय से नहीं हट पाया था, जो आज बहुत महत्वपूर्ण था और स्वामी जी की तरफ से स्पष्टीकरण मांग रहा था. कुछ बूढ़ी औरतें जो इस बात से पूरी तरह से इत्तेफाक रखती थीं, उठकर मंच की ओर आईं और स्वामी जी के गले में फूलों का हार डालकर सबसे आगे ही बैठ गयीं.
“शास्त्रों में साफ़-साफ़ लिखा है कि अपनी बीवी के अलावा सभी औरतों को अपनी बहन-बेटियों की नज़र से देखो.” बिना उन शास्त्रों का हवाला दिए कि वे कौन से शास्त्र हैं, जिनमें इस किस्म की बातें लिखी हैं, प्रवचन आगे बढ़ रहा था.
“जो लोग फिर भी नहीं मानते और ऐसे ही नीच कर्मों में लगे रहते हैं, उन्हें ‘श्वान-योनि’ यानि कुत्ते की योनि में जन्म लेना पड़ता है और अपने मालिक से तिरस्कार का सामना करना पड़ता है. आप जगत में जितने भी कुत्ते देख रहे हैं, वे सब पिछले जन्मों में इसी प्रकार के पाप-कर्म करने की वजह से ही इस गति को यानि स्थिति को प्राप्त हुए हैं.” कुत्तों के बारे में अपनी नई थ्योरी प्रस्तुत करते हुए स्वामी जी ने एक सरसरी निगाह फिर औरतों के समूह पर डाली तो औरतों ने भी “जय हो, महाराज की जय हो”, जैसे गगन भेदी नारों से पूरा पंडाल हिलाकर रख दिया.
“सत्य बोलो, किसी का बुरा मत सोचो और अपने गुरु की शरण में ही रहो, इन बातों का ध्यान रखोगे तो जीवन जो है, वो अच्छा रहेगा, वरना यह जो जीवन है, वो कहीं का भी नहीं रहेगा यानि जीवित रहते हुए भी मरे हुए के सामान ही रहोगे.” स्वामी जी ने अपने प्रवचन को अंतिम रूप देते हुए सत्संग-आयोजक की ओर एक निगाह डालकर अपने उठने की मूक सूचना दी और उसके बाद किसी ऐसे फ़िल्मी गाने से अपनी बात पूरी की, जिसका भावार्थ कुछ इस प्रकार था कि ‘लग जा गले, कि फिर ये हसीं रात हो ना हो, शायद कि इस जनम में मुलाक़ात हो ना हो.”
“परमात्मा कहते हैं कि हे प्राणी, किसी और के गले लगने से बेहतर है कि तू मेरे गले लग जा, क्योंकि यह रात भी कपटी है, इसका कोई भरोसा नहीं कि यह फिर हो या ना हो. और यह जो जन्म तुझे मिला है, उसमें तू मुझे प्राप्त कर सके या ना कर सके, इसमें भी संशय है.” फ़िल्मी धुनों पर बने गानों का प्रसारण बहुत देर तक होता रहा और इस दौरान स्वामी जी को परमात्मा स्वरुप मानकर औरतों द्वारा उनके पैर छूकर आशीर्वाद लेने का सिलसिला भी शुरू हो गया.
✍️अतुल मिश्र, श्री धन्वंतरि फार्मेसी, मौ. बड़ा महादेव, चन्दौसी, जनपद सम्भल
शुभि ने जल्दी जल्दी सारा घर का काम निपटाया और तैयार होकर सोफे पर बैठकर छोटे बेटे कुणाल की स्कूल शर्ट का बटन टाँकने लगी , साथ ही मन में कल की घटना भी उसको रह रह कर याद आ रही थी ।
सोचने लगी "आजकल के बच्चे भी न ....पता नहीं क्या होता जा रहा है ?"
कल सान्या उसकी बेटी का बर्थडे था , बस बच्चों को तो मौका मिल गया गिफ्ट का फिर भले ही उसकी जरूरत हो या न हो ।
"मॉम मुझे इस बार कुछ नया गिफ्ट चाहिए ....जो मेरी किसी फ्रेंड के पास नहीं हो ।"बेटी ने ठुनकते हुए कहा था ।
"मगर बेटा ...किसी की होड़ थोड़े ही करते हैं ...जिसकी जरूरत हो ....।"
"मॉम प्लीज यह जरूरत वाली बात मुझे अच्छी नहीं लगती ....डैड देखो न मम्मा ...l"
"ठीक तो कह रही है तुम्हारी मम्मी ।"सूरज ने भी डरती हुई आवाज में कहा ।
"बस रहने ही दो मुझे नहीं जाना आपके साथ मार्केट ...।"चिढ़ते हुए सान्या ने कहा और पैर पटकते हुए मॉल से बाहर भाग गई l
"सान्या.........।"दोनों आवाज देते रह गए l
"क्या जरूरत थी उसको ज्ञान देने की ?"सूरज का भी मूड खराब हो गया ।
"आप भी न ....चढ़ा लो इस लड़की को सिर पर ...क्या समझाना बुरी बात है ?"शुभि ने चिढ़कर कहा l
"नहीं ...मगर अब कुछ माँग रही है तो देना ही होगा l"
"और क्या देना ही होगा ...डिमांड तो रोज बढ़ती ही जा रहीं हैं दोनों की ...सुर भी तो कुछ कम नहीं ।"
"अभी तो दोनों आठवीं और दसवीं कक्षा में हैं ...पता नहीं आगे क्या होगा ?"शुभि ने संदेह व्यक्त करते हुए कहा l
"शुभि तुम क्यों परेशान हो ....आजकल पेरेंट्स होना कोई इतना आसान नहीं ...हमारे तुम्हारे जैसा जिनके लिए माँ बाप की बात मानना भगवान की बात से भी ज्यादा अवश्य था ।"
तभी दरवाजे की घंटी बजती है तब शुभि की तंद्रा भंग होती है और वह उठकर दरवाजा खोलती है l
"अरे आप तो तैयार हैं ....मैँ अभी रेडी होकर आती हूँ ।"
सान्या ने बैग सोफे पर पटकते हुए कहा l
अपनी जीत पर सान्या बहुत खुश जो थी आखिर पेरेंट्स को हरा जो दिया था ।
रात खाना तभी खाया जब आज वह जो चाहेगी वह दिलाना पड़ेगा l
✍️ राशि सिंह, मुरादाबाद उत्तर प्रदेश
बहुत अच्छी मौत पायी .... किसी से कुछ नही कराया...... बैठे बैठे ही दम निकल गया......भगवान ने चलते हाथ-पैर ही उठा लिया ... 98 साल के तो हो भी गये थे।........
इस तरह की बातें उसे भीड़ से निकलते हुए सुनायी दे रही थी।
रागिनी बड़े से आगंन को तेजी से पार करती हुई , अम्मा के कमरे की तरफ गयी ......
फिर रागिनी को सुनायी दिये अम्मा के रोते रोते कहे शब्द ......
इतनी जल्दी मुझे अकेला छोडकर क्यो चले गये आप .....कहाँ गये आप , दिखते भी नही।
✍️ प्रीति चौधरी , गजरौला,अमरोहा
अपने कंजूस पिता के मुख से,ये बात सुनकर अंकित को बहुत आश्चर्य हो रहा था। उसके पिता ने उसके चेहरे के भाव पढ़ते हुए समझाया
"अरे भाई,इस बार चुनाव लड़ना है,तो तैयारी तो अभी से करनी पड़ेगी।और हां,अपने प्रेस फोटोग्राफर मित्र को जरूर बुला लेना।"
✍️ डॉ पुनीत कुमार, T 2/505 आकाश रेसीडेंसी, मधुबनी के पीछे, मुरादाबाद 244001,M 9837189600
गृह प्रवेश के समय अपनी सास व ननद से नौकरों जैसा व्यवहार करने वाली दीपाली के आँसू आज रोकने से भी नहीं रुक रहे थे।... रो-रो कर दीपाली तथा उसके पति का बुरा हाल था।.... वह समझ नहीं पा रहे थे।.... कि अब कहां जाएं?.... क्योंकि जिस बैंक से नीरज ने लोन लेकर घर बनाया था... इंक्वायरी होने पर वह फर्जी निकला ।सच सामने आनें पर उसके घर की नीलामी हो रही थी और नौकरी भी चली गई।.... अब नीरज व दीपाली दर-दर की ठोकरों को मोहताज व बेघर हो गये ।
✍️ स्वदेश सिंह, सिविल लाइन्स, मुरादाबाद
सांझ ढले..." जब चोंच में दाना लिए चिड़िया वापस लौटी ,तब इधर से उधर बेचैन हो उठी । उसका घोंसला उजड़ चुका था, क्योंकि जिस वृक्ष पर उसका आशियाना था, उसे काट कर मनुष्य अपनी सवारी में लाद लिया था।.... पता नहीं छोटे छोटे ची- ची करते हुए.... भूखे बच्चे अपनी मां को कहां तलाश रहे होंगे।...... अरे ,ओ क्रूर मानव! तुझे ,क्या मिला हम पंछियों का बसेरा उजाड़ कर।
✍️ रेखा रानी, विजय नगर , गजरौला, जनपद अमरोहा
थाने पहुंचे मम्मी-पापा . पोस्टमार्टम रिपोर्ट में रिपोर्ट आयी पेट में पिछले आठ दिनों से कुछ भी नहीं गया...परन्तु इसे पुलिस हत्या का सबूत नहीं मान रही पुलिस दुनिया भर के सबूत मांग रही है ....चक्कर लगा लगा कर थक गये ...अब पुलिस रिश्वत भी चाहती है...दो और जवान बेटियां घर में क्वारी बैठीं हैं....! माली हालत भी ठीक नहीं है... कार्रवाई रोकने के लिए लड़के वालों से मिली मोटी रकम के बाद पुलिस कार्यवाही कैसे करे ?......
....कैसी विडम्बना है ? एक तो ज़िगर का टुकड़ा गया .... अपराधी स्वतन्त्र घूम रहे हैं ! ऊपर से रिश्वत दोगे तभी एफ आई आर दर्ज होगी...!
.....सरवेस.... हिम्मत हारने लगा था थक चुका था भाग दौड़ करते करते...... परन्तु जब घर लौट कर घर में घुसता तो बेटी की फोटो का सामना नहीं कर पाता और लड़ने के लिए न जाने कहां से शक्ति आ जाती......दिन यूं ही गुजरते जा रहे थे.....
.......तब ही एक दिन अचानक अखबार पढ़ते पढ़ते सरवेस ड्यूटी छोड़ कर घर की ओर दौड़ा जाकर पत्नी को अखबार दिखाया.....
.......लिखा था 'भयानक हादसा एक ही घर के तीन लोगों की मौत'
कार और डंपर की भयानक टक्कर में कार बुरी तरह क्षति गस्त हो गई और उसमें बेटा मां और बाप की मृत्यु हो गई....
.....ये बेटी के सास ,ससुर और पति ही थे.....
✍️ अशोक विद्रोही, 412 प्रकाश नगर, मुरादाबाद, मोबाइल फोन नम्बर 8218825541
वाह्ह अपना पैसा व्यर्थ में बहा दूं उंह्ह !जो इतनी मेहनत से कमा कर जमा किया ,इसका रिटर्न है कोई ?ऊंह्ह ! आज राजनीति पर खर्च करूंगा तो असल के साथ-साथ सूद न मिलेगा! शिक्षा अनुदान राशि ,कन्या धन राशि समाज कल्याण राशि न जाने कितने रास्ते खुलेंगें !।
✍️ मनोरमा शर्मा, अमरोहा
झबरी बिल्ली रानी,
सूंघ रही थी कहाँ रखी है,
चिकिन, मटन, बिरियानी।
सारे घर में दौड़ दौड़कर,
हारी बिल्ली रानी,
हाथ न आया कुछ भी उसके,
मुख में आया पानी।
लेकिन झबरी बिल्ली ने भी
दिल से हार न मानी,
फ्रिज से आती हुई महक को,
वह झट से पहचानी।
लगी खोलने डोर फ्रिज का,
पंजों से अभिमानी,
फूलदान गिर गया ज़मी पर,
जागी बिटिया रानी।
पूंछ दबाकर भागी बिल्ली,
भूल गई बिरियानी,
कूद गई खिड़की से नीचे,
पकड़ न पाई नानी।
✍️वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी,मुरादाबाद/उ,प्र,मोबाइल फोन नम्बर- 9719275453
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अपने काम स्वयं करता हूंँ।
ख़ुद खाता हूँ खुद पीता हूँ।
कक्षा में रहता हूँ आगे।
खेल कूद में भी अव्वल हूंँ।
माँ पापा को तंग न करता।
होमवर्क भी खुद करता हूंँ।
सबकी ही इज्जत करता हूँ।
नहीं किसी से मैं डरता हूँ।
अब मुझको बच्चा मत समझो।
काम बड़ों जैसे करता हूँ।।
✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल, MMIG-69, रामगंगा विहार,
मुरादाबाद 244001
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बोली चिड़िया डाली डाली
कर लो उपवन की रखवालीगिन गिन काटे तरुवर सारे
लूट लिये सब चमन हमारे
देखो कैसी दशा हुई है
सूखे में बदली हरियाली ।
बोली चिड़िया.......
बहुत हो गया अब मत काटो
खेत वनों को और न छाँटो
बने शिकारी जाल बिछाया
हर ली अपनी ही खुशहाली ।
बोली चिड़िया.....
✍️ डॉ रीता सिंह,मुरादाबाद
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घनी रात सबके सोने पर,
जब चौके में ताला होता।
आँख मारकर तब चिन्टू को,
तरकीबें लड़वाते दद्दू।
दादा-पोते की फुस-फुस से,
जब सारा घर उठकर बैठे।
नकली खर्राटे भर-भर कर,
सबको फिर भरमाते दद्दू।
दादी लड्डू बना रही हैं,
उनका हाथ बँटाते दद्दू।
उछल कूद करते बच्चों को,
पल-पल डाँट पिलाते दद्दू
✍️ राजीव 'प्रखर', मुरादाबाद
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✍️वैशाली रस्तौगी , जकार्ता (इंडोनेशिया)
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✍️ रेखा रानी
विजय नगर गजरौला
जनपद अमरोहा
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हवा बसन्ती तेज चल रही,
जाती सर्दी हाथ मल रही।
रंग बिरंगे पुष्प खिले हैं,
बृक्षों को नव बस्त्र मिले हैं।।
कैसी फूल रही अमराई,
देखो देखो गर्मी आई ।।
बच्चे दिन भर शोर मचाते,
नहाने से अब न घबराते।
बिना उठाये ही उठ जाते,
सुबह सवेरे दौड़ लगाते।।
सुस्ती सबने दूर भगाई,
देखो देखो गर्मी आई ।।
विद्यालय भी शुरू हुए हैं,
कड़क सभी फिर गुरु हुएं हैं।
विषय सभी तैयार करो अब,
बस पढ़ने में लग जाओ सब!!
निकट परीक्षा की तिथि आई,
देखो देखो गर्मी आई ।।
अब न चलेगा कोई बहाना,
पढ़ने में मन खूब लगना।
किसी विषय को भूल न जाना,
अंक सभी में अच्छे लाना।।
तभी सिद्ध हो सब चतुराई,
देखो देखो गर्मी आई ।।
✍️अशोक विद्रोही , 412 प्रकाश नगर, मुरादाबाद, मोबाइल फोन नम्बर 8218825541
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✍️डॉ शोभना कौशिक, बुद्धिविहार, मुरादाबाद
पागल हो, सब उठीं दिशाएं
गीत,खेल,फिल्मों के ट्वीटर
क्या दे देंगे माल बज़ीफ़ा
पर्यावरण राह से आये
लिबरल होकर मियां ख़लीफा
घूम रहीं समझौता करती
उड़ती फिरती पस्त हवाएं
सत्ता सुख सुविधा से ख़ारिज
पचा न पाए कंगाली को
सोन चिरैया आती दीखी
मना न पाए दीवाली को
गढ़ते गाली रोज़ निराली
विचलित फिर भी नहीं ऋचाएं
पूंछ भैंस की पकड़ चाहते
चतरू खुद को पार लगाना
डुबक भैंसिया कब जायेगी
संभव नहीं जान यह पाना
अतिशयता में अनगिन डूबे
अनदेखी कर सत्य कथाएं
✍️ डॉ. मक्खन मुरादाबादी
झ-28, नवीन नगर, कांठ रोड, मुरादाबाद 244001,उत्तर प्रदेश,भारत, मोबाइल : 9319086769