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सोमवार, 3 जुलाई 2023
रविवार, 2 जुलाई 2023
मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम की ओर से 2 जुलाई 2023 को काव्य-गोष्ठी का आयोजन
मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम के तत्वावधान में रविवार दो जुलाई 2023 को काव्य-गोष्ठी का आयोजन मिलन विहार स्थित मिलन धर्मशाला में किया गया।
दुष्यंत बाबा द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ. महेश दिवाकर ने संदेश दिया -
दो पल जिनसे भी मिलो, मन में रहे विचार।
वह दो पल की ज़िंदगी, बन जाए उपहार।।
मुख्य अतिथि ओंकार सिंह ओंकार ने दोहों से वर्षा का चित्र खींचा -
सावन में लहरा रहे, ज्वार बाजरा धान।
परमल, लौकी, तोरई, टिंडे चढ़े मचान।।
आए बादल झूमकर, पड़ने लगी फुहार।
मगर टपकाने लग गए, कच्चे बने मकान।।
विशिष्ट अतिथि के रूप में रामेश्वर वशिष्ठ ने कहा ....
अब नहीं मिलता जग में सरल अन्तःकरण है।
हर कोई ओढ़े हुए, एक अपना आवरण है।।
वरिष्ठ कवि रामदत्त द्विवेदी का दर्द इन पंक्तियों में झलका -
नाम देकर के जमाने ने किया हमको अलग।
वरना हममें और तुममें भेद कुछ होता नहीं।
एक को हिन्दू बता और दूसरे को मुसलमां,
कह दिलों में नफरतों के बीज बोता कोई।।
के. पी. सिंह सरल ने सामाजिक परिस्थितियों का चित्र खींचते हुए कहा -
माता-पिता से विमुख हो, कभी न करायें प्यार। लिव इन में रहने का चलन, बन्द करें सरकार।।
पद्म सिंह बेचैन की अभिव्यक्ति थी -
कितने हैं मजबूत इन रिश्तों के धागे।
पंछी रे तुझ बिन मन नहीं लागे।।
डॉ. मनोज रस्तोगी ने सावन के संदर्भ में कुछ इस तरह से कहा....
पवन भी नहीं करती शोर।
वन में नहीं नाचता है मोर।
नहीं गूंजते हैं घरों में
अब सावन के गीत।
खत्म हो गई है अब
झूलों पर पेंग बढ़ाने की रीत।।
योगेन्द्र वर्मा व्योम ने अपने दोहों के माध्यम से आह्वान किया -
मूल्यहीनता से रही, इस सच की मुठभेड़।
जड़ से जो जुड़़कर जिये, हरे रहे वे पेड़।।
व्हाट्सएप औ' फेसबुक, ट्वीटर इंस्टाग्राम।
तन-मन के सुख-चैन को, सबने किया तमाम ।।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए राजीव प्रखर ने दोहों के माध्यम से अपनी भावनाओं को शब्दों में ढालते हुए कहा -
फाॅंसे बैठा है मुझे, यह माया का जाल।
चावल मुझसे छीन लो, आकर अब गोपाल।
मैंने तेरी याद में, ओ मेरे मनमीत।
पूजाघर में रख दिए, रचकर अनगिन गीत।।
दुष्यंत बाबा की अभिव्यक्ति थी -
भाव टमाटर खा रहे, और पैसे नटवर लाल।
भूखे खेत किसान सब, न चावल न दाल।।
रचना पाठ करते हुए जितेन्द्र जौली ने कहा -
पापी कमा लेते हैं बहुत नाम देखो।
सरेराह होता है कत्लेआम देखो।।
हमें नहीं पूछता है कोई दुनिया में,
लोग गुंडों को करते हैं सलाम देखो।
रामदत्त द्विवेदी द्वारा आभार अभिव्यक्त किया गया।
मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग कविता..... समाधान
हमने
एक ख्याति प्राप्त
डॉक्टर से कहा
महोदय
आपके होते हुए भी
पूरा देश बीमार है
अजीब अजीब बीमारियों ने
मचाया हा हा कार है
आपसी रिश्ते
आखिरी रिश्तों में
बदल रहे हैं
स्वार्थ के वेंटीलेटर से
जैसे तैसे चल रहे हैं
ईमानदारी
लकवा ग्रस्त है
मानवता
पोलियो से त्रस्त है
धार्मिक कट्टरता ने
हमारे दिलो दिमाग को
सुन्न कर दिया है
जातिवाद के कीटाणु ने
सबका विवेक हर लिया है
पूरे समाज में
कैंसर की तरह
फैल रहा भ्रष्टाचार है
क्या आपके पास
इसका कोई उपचार है
डॉक्टर बोले
यह सब
सामाजिक बीमारियां हैं
इनसे आप ही नही
हम भी परेशान हैं
समाज के अंदर ही
इनके समाधान हैं
आप अभी से
उनको खोजने में
जुट जाइए
और सफल हो जाएं
तो हमको भी बताइए
हमने
इस गंभीर समस्या पर
अपना चित्त डाला
अपने साठ साला
अनुभव का निचोड़ निकाला
अगर इन बीमारियों से
छुटकारा पाना है
नियमित रूप से
अच्छे चरित्र और
अच्छे संस्कार का
इंजेक्शन लगवाना है
✍️डॉ पुनीत कुमार
T 2/505 आकाश रेजीडेंसी
मुरादाबाद 244001
M 9837189600
शनिवार, 1 जुलाई 2023
मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद संभल) निवासी साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम् के 52 दोहे .....
बिन सोचे समझे सदा, लिक्खे मन के भाव।
यश-अपयश से मुक्त हो, रहे सदा समभाव।।1।।
और सुनो जी अनकही, एक अनोखी बात।
शुभ प्रभात है आपसे, श्रेष्ठ आपसे रात।।2।।
पागल बनकर सुन सखी, पागल पन की बात।
तुझ बिन तपते जेठ सी, सावन की बरसात।।3।।
हमनें रिश्तों में कभी, किया नहीं व्यापार।
रहे उसूलों पर अडिग, जीत मिली या हार।।4।।
बोल बड़े अनमोल हैं, सोच-समझ कर बोल।
भटके तो कृष्णम् जहर, दें रिश्तों में घोल।।5।।
उखड़ी-उखड़ी साँस है, सपने चकनाचूर।
भारी बोझा पीठ पर, लाद चला मजदूर।। 6।।
भूख प्यास के गाँव में, देख रहा मधुमास।
मजदूरों की पीर का, है किसको आभास।।7।।
तपती-जलती रेत में, रखे जमाकर पाँव।
मेहनतकश की आंख में, उम्मीदों का गाँव।।8।।
मालिक की दुत्कार को, लिखा भाग्य में मान।
धारण की मजदूर ने, होठों पर मुस्कान।।9।।
मन नयनों पर घिर गिरा,बोतल भरी शराब।
निष्ठुर मधुशाला हुई,गड़बड़ हुए हिसाब।। 10।।
नयन कटोरे मधु भरे,अधर पी गए प्यास।
मधुशाला बहकी पड़ी,थी सागर के पास।।11।।
तन मदिरा मन होठ हैं,सदा रहेंगे पास।
जग झूठा झगड़े सभी,प्रेम अटल विश्वास।।12।।
हम क्या जाने धर्म को,क्या मजहब की शान।
प्रेम भरी डलिया पकड़,रही तड़पती जान।।13।।
मीठी सी मुस्कान को,कौन सका है तोल।
हीरे मोती लुट गए,बिन बोले अनमोल।।14।।
सासोसेसांसो से जब भी कहा,मेरी तुम में जान।सांसो से जब भी कहा,मेरी तुम में जान।
तब सांसो ने फेंक दी,तीखी सी मुस्कान।।15।।
बगुले जैसी सोच में,कोयल के व्यवहार।
मन पर डाका डालते,चापलूस मक्कार।।16।।
गर्लफ्रैंड हर बॉय का, मूल मंत्र एंजॉय।
थोड़े दिन की हाय है, फिर हो जाती बाय।।17।।
देखी भाली है नहीं, लगती जैसे फ्रेंड।
रोज धड़ाधड़ कर रही,देखो मैसेज सैंड।। 18।।
मैं गुड़िया जापान की, गूची जैसी सैंट।
पल्ले देखो पड़ गया, एंड बैंड हसबैंड।।19।।
जीजा जी होते सभी, स्वीटहार्ट नमकीन।
साली होती चाय सी,जीजी सब गमगीन।।20।।
देख-देखकर हो गयीं, जीजी जी गमगीन।
जीजा साली ढूंढते, बिस्किट में नमकीन।।21।।
पाजी के मुँह को लगा, जब अंग्रेजी प्यार।
कॉकटेल जैसा हुआ, उठा-पटक व्यवहार।।22।।
डाली पके अनार हम,भीतर बाहर रैड।
मनिया मन भर देख ले,फीके वाई जैड।।23।।
गर्मी में लगती बड़ी,अच्छी थमसप कोक।
जल्दी से लाओ सनम, छोड़ो सारे जोक।।24।।
सौतन मोबाइल बनी,मेरी सुन भरतार।
ब्रांड नई में घूमते,छोड़ पुरानी कार।।25।।
मुँह से लगी अफीम सी,अंग-अंग में भंग।
सो क्यूटी ब्यूटी भरी, अजब-गजब हर ढंग।।26।।
और बताऊँ मैं तुम्हें, एक कीमती बात।
मैं ठहरा गुड मॉर्निंग, बाकी काली रात।।27।।
डाँट प्यार फटकार है,माँ का लाड़-दुलार।
आँचल माँ की गंध का,बालक का संसार।।28।।
पाया है मां बाप से,जिसने सच्चा प्यार।
जीवन भर उसको मिला,खुशियों का भंडार।।29।।
जीवन जीना माँ बिना,चलना बोझ समेत।
दूर दूर तक जल नहीं,उड़ती तपती रेत।।30।।
चली गईं आकाश तुम, इच्छा जैसी ईश।
रखो पीठ पर हाथ माँ,देना सर आशीष।।31।।
जिसको भी माँ से मिला,पूरा सच्चा प्यार।
मुट्ठी में उसकी रहा,खुशियों का संसार।।32।।
भगवन मुझको थाम लो,मन नहि थमता आज।
मैं बालक अब क्या करूं,रोते-रोते साज।।33।।
मैया तेरी याद में,रोता मैं दिन रैन।
सत्य जानकर भी नहीं,आता मन को चैन।।34।।
मन को आता ही नहीं,कृष्णम् यह विश्वास।
माता जी अब कर रहीं,परमधाम में वास।।35।।
माँ हम सब को छोड़कर,चली गईं किस लोक।
पूछ रहा है शोक में,डूबा हुआ अशोक।।36।।
पिंडदान के हो गए,सारे पूर्ण विधान।
मां को चरणों में जगह,दे देना भगवान।।37।।
वर्तमान भटका हुआ,उलझा हुआ अतीत।
कृष्णम मां बिन जिंदगी,बिना साज का गीत।।38।।
मातृ दिवस पर राम सब,घर-घर श्रवण कुमार।
दिन में उल्लू से छिपे,मजनू के अवतार।।39।।
गाली मां को रात दिन,देने वाले लोग।
मातृ दिवस पर दे रहे,माता जी को भोग।।40।।
पत्नी एसी रूम में,मां को टूटी खाट।
देर रात तक जोहती,मां बेटों की बाट।।41।।
कही सुनी मन की नहीं,कभी न बैठे पास।
मां की महिमा का हमें,क्या होगा आभास।।42।।
कारण में वातावरण,का होता है हाथ।
वैसी बनती वृत्तियां,जैसा मिलता साथ।।43।।
सुख के कारण आप हैं, दुख के अपने आप।
किया धरा कुछ भी नहीं,मन का अपने ताप।।44।।
फैलाए जब भी कभी,कहीं किसी ने हाथ।
अपने सब सपने हुए,छोड़ गए सब साथ।।45।।
बंद बंद थी लाख की,खुली मिली बस राख।
मुट्ठी तू समझी नहीं,क्या होती है साख।।46।।
आन बान की शान का,अपनी रखते मान।
ऐसे राणा का करें,राष्ट्रभक्त गुणगान।।47।।
छोटी मोटी बात पर,रोना धोना छोड़।
चेतक बन कर युद्ध में,सर दुश्मन के फोड़।।48।।
बात बात पर रात दिन,रोने वाले लोग।
मामूली होते नहीं,कोरोना से रोग।।49।।
बैसाखी के हाथ जो,मांगें अपनी खैर।
वो मेरे हैं ही नहीं,काटो ऐसे पैर।।50।।
बीच धार में नांव है,हाथ नहीं पतवार।
बेबस मन नाविक बहुत,तारो पालनहार।।51।।
चलते-चलते घिस गए,पांव हमारे राम।
हम शबरी के बेर से,दे दो पूर्ण विराम।।52।।
✍️त्यागी अशोका कृष्णम्
कुरकावली, संभल
उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद के साहित्यकार श्रीकृष्ण शुक्ल की कहानी .......मानवता का धर्म
पहाड़ी घुमावदार रास्तों पर श्याम बाबू अपनी गाड़ी सहज गति से चलाते हुए जा रहे थे। अचानक एक मोड़ काटते ही सड़क किनारे भीड़ दिखाई दी। ट्रैफिक भी रुका हुआ था।श्याम सिंह ने गाड़ी से उतरकर पूछा तो पता चला एक कार नीचे गिर गयी है। तभी नीचे से एक घायल को ऊपर लाया गया। श्याम बाबू उसे देखते ही चौंक गये: अरे ये तो दिलावर है। दिलावर गंभीर रुप से घायल था और उसे तुरंत चिकित्सा की जरुरत थी। बिना एक क्षण की देरी किये श्याम बाबू चिल्लाये: अरे जल्दी करो, इसे मेरी गाड़ी में लिटा दो और अस्पताल लेकर चलो। थोड़ी ही देर में वह अस्पताल पहुँच गये। डाक्टर ने जाँच की और कहा खून बहुत बह गया है। इन्हें तुरंत दो यूनिट खून चढ़ाना जरूरी है, नहीं तो ये नहीं बचेंगे। संयोग से श्याम बाबू का और वहाँ उपस्थित दो अन्य लोगों का खून भी मैच कर गया। लगभग दो घंटे की मशक्कत के बाद आपरेशन थियेटर से डाक्टर बाहर आये और बोले , आप लोग इन्हें टाइम से ले आये। और थोड़ी देर हो जाती तो ये नहीं बचते।
श्याम बाबू ने ईश्वर का बहुत धन्यवाद किया और अपने दफ्तर में आ गये। बैठे बैठे उन्हें वो दिन स्मरण हो आया जब यही दिलावर किसी टेंडर के सिलसिले में उनसे मिला था और टेंडर न मिलने पर उन्हें खुलेआम धमका कर गया था। श्याम बाबू एक आध दिन थोड़ा विचलित हुए, फिर सब भूल गये।
दफ्तर के बाद शाम को श्याम बाबू फिर अस्पताल पहुँचे। दिलावर को होश आ चुका था।कहो दिलावर अब कैसे हो, श्याम बाबू ने उसका हाथ सहलाते हुए पूछा। तभी वहाँ खड़ी नर्स ने दिलावर को बताया, यही साब जी अपनी गाड़ी में आपको अस्पताल लाये थे, और अपना खून भी दिया था। इन्हीं की वजह से आपकी जिन्दगी बच गयी,नहीं तो यहाँ तक आते आते तमाम एक्सीडेंट के केस निपट जाते हैं।
दिलावर यह सुन कर रोने लगा और हाथ जोड़कर बोला बाबूजी आप मुझे क्षमा कर दो। मैंने आपके साथ बहुत बुरा व्यवहार किया किंतु आपने सब कुछ भुलाकर मेरी जान बचायी।
अरे, रोओ मत, श्याम बाबू उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोले: ये तो मानवता का कार्य था। कोई और भी होता तो उसे भी हम अस्पताल पहुँचाते। और तुम ज्यादा मत सोचो। मैंने तो वह बात तभी भुला दी थी। हमारा काम ही ऐसा है। जिसका काम नहीं हो पाता वो ही धमका जाता है। तुम जल्दी से ठीक हो जाओ।
साब' आप इंसान नहीं इंसान के रुप में फरिश्ता हो। आपका बहुत बड़ा दिल है। जीवन में आपके किसी काम आ सका तो अपने को धन्य मानूँगा, कहते कहते दिलावर फिर रोने लगा।
रोओ मत दिलावर, सबकी रक्षा करनेवाला वह ईश्वर ही होता है, वो ही समय पर हमारे पास मदद के लिये किसी न किसी को भेज देता है। अब आगे से तुम भी यह निश्चय कर लो कि मुसीबत में यथासंभव अन्जान व्यक्ति की मदद करोगे और किसी से दुर्व्यवहार नहीं करोगे।
अच्छा चलता हूँ, कहकर श्याम बाबू अपने घर वापस आ गये।
✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद जनपद के मूल निवासी साहित्यकार स्मृतिशेष डॉ कुंअर बेचैन के दो नवगीत ----
(1)
जलती-बुझती रही
दिवस के ऑफ़िस में बिज़ली।
वर्षा थी,
यों अपने घर से
धूप नहीं निकली।
सुबह-सुबह आवारा बादल
गोली दाग़ गया
सूरज का चपरासी डरकर
घर को भाग गया
गीले मेज़पोश वाली-
भू-मेज़ रही इकली
वर्षा थी, यूँ अपने घर से
धूप नहीं निकली।
आज न आई आशुलेखिका
कोई किरण-परी
विहग-लिपिक ने
आज न खोली पंखों की छतरी
सी-सी करती पवन
पिच गई स्यात् कहीं उँगली।
वर्षा थी, यों अपने घर से
धूप नहीं निकली
ख़ाली पड़ी सड़क की फ़ाइल
कोई शब्द नहीं
स्याही बहुत
किंतु कोई लेखक उपलब्ध नहीं
सिर्फ़ अकेलेपन की छाया
कुर्सी से उछली।
वर्षा थी, यों अपने घर से
धूप नहीं निकली
(2)
है समय प्रतिकूल माना
पर समय अनुकूल भी है।
शाख पर इक फूल भी है॥
घन तिमिर में इक दिये की
टिमटिमाहट भी बहुत है
एक सूने द्वार पर
बेजान आहट भी बहुत है
लाख भंवरें हों नदी में
पर कहीं पर कूल भी है।
शाख पर इक फूल भी है॥
विरह-पल है पर इसी में
एक मीठा गान भी है
मरुस्थलों में रेत भी है
और नखलिस्तान भी है
साथ में ठंडी हवा के
मानता हूं धूल भी है।
शाख पर इक फूल भी है॥
है परम सौभाग्य अपना
अधर पर यह प्यास तो है
है मिलन माना अनिश्चित
पर मिलन की आस तो है
प्यार इक वरदान भी है
प्यार माना भूल भी है।
शाख पर इक फूल भी है॥
-कुँअर बेचैन
शुक्रवार, 30 जून 2023
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष दिग्गज मुरादाबादी की काव्य कृति ...श्री करवा चौथ व्रत कथा। उनकी यह कृति प्रज्ञा प्रकाशन मुरादाबाद से प्रकाशित हुई है। इसका संपादन किया है डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने ।
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https://acrobat.adobe.com/link/review?uri=urn:aaid:scds:US:b34d9ab7-d1f6-36ae-8a38-721fa61d2c05
::::::::प्रस्तुति:::;;;
डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822
गुरुवार, 29 जून 2023
मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी ......ओह बाबा !
पिछले 3 दिन से घर में चूल्हा नहीं जला था जलता भी कैसे घर में अन्न का एक भी दाना नहीं था....!
.......... किसी ने कुछ भी नहीं खाया था परंतु अब सहन नहीं होता ! हे भगवान आगे कैसे चलेगा.. कुछ तो मदद करो...! कहीं से तो आओ ?.... क्या मेरे बच्चे यूं ही भूखे मर जाएंगे?.... प्रभु कुछ तो चमत्कार दिखाओ .....! घर के पूजा गृह में माथा टेकते हुए संगीता बुदबुदाई !
पति का एक्सीडेंट क्या हुआ संगीता की तो दुनिया ही उजड़ गई ..... एक्सीडेंट होने के बाद वह बिस्तर पर आ गए और फिर धीरे-धीरे घर की सारी जमा पूंजी की एक-एक पाई समाप्त हो गयी...!
.......?और फिर अचानक एक दिन राधेश्याम स्वर्ग सिधार गया। और छोड़ गया अपने पीछे एक बूढ़ी मां, पत्नी और दो बेटियों को.... बेसहारा परिवार में कमाने वाला कोई भी नहीं..... जहां कहीं से मदद ली जा सकती थी ली जा चुकी थी......।
.. अब दुकानदार ने भी उधार देना बन्द कर दिया था । ऐसा लगता था कि पूरा परिवार ही भूख से दम तोड़ देगा.....!
......... शाम के 8:00 बजे दरवाजे पर एकाएक दस्तक हुई..... दरवाजा संगीता ने ही खोला.... क्या बात है ? कौन है ?क्या है?
.......... ".... कुछ खाने का सामान ,राशन, घी ,तेल और कुछ फल व सब्जियां हैं"..... "कहां रखना है?" लंबे डील-डोल वाले व्यक्ति ने जवाब देते हुए प्रश्न किया !
.....संगीता ने पूछा "किसने भेजा है ? "
.....".हमें डॉ जोशी ने भेजा है. .!."
... पता गलत हो सकता है ! हमारी तो कोई जान पहचान भी डॉक्टर जोशी से नहीं है !
......."नहीं यही पता है नरोत्तम सिन्हा का यही मकान है न ?"
....... "हां मेरे दादाजी का नाम ही नरोत्तम सिन्हा था " नन्दू ने कहा......"रास्ते में पूछा था तो पता तो सही है ही"!.... और साथ में लिफाफा भी है ....!"
सभी घरवाले यह देखकर चकित थे कि ये चमत्कार कैसे हो गया..... ऐसा कौन डॉ जोशी है ? जो संकट की इस घड़ी में भगवान बन कर हमारे सम्मुख उपस्थित हो गया है।...... हम तो किसी डॉक्टर जोशी को नहीं जानते .....?हमारा उस से क्या संबंध ?
.... खैर जो भी हो यह सब सोचने समझने का समय अब नहीं था....... भूख से सभी के प्राण निकले जा रहे थे .....खाने में कुछ ब्रेड थीं ड्राई फ्रूट्स थे; नमकीन, बिस्कुट थे.......
सभी खाने पर झपट पड़े,.....! पानी पिया दूध से चाय बनाई गई !
....... लिफाफा खोला तो उसमें 500 के नोटों की गड्डी थी गिनती करने पर पता लगा कि ₹20000 थे ! सोचा सामान खत्म हो जाएगा तो कोई बात नहीं और सामान लाया जाएगा ।
.....डॉ जोशी ने ये सामान क्यों भेजा ? कुछ दिन बीते धीरे-धीरे सारा सामान खत्म होने लगा परंतु यह क्या महीना भर बाद फिर वही समान वही लिफाफा....घर में आ गया अब तो बहुत मुश्किल थी .. यह जानना भी जरूरी था आखिर ये डॉक्टर जोशी है कौन ?
......जो संकट की घड़ी में अनजाने लोगों की यों मदद कर रहा है ।
.......डॉक्टर जोशी रामनगर में कहीं रहते थे अम्मा जैसे तैसे पता लगा कर रामनगर पहुंचीं तो वहां देखा कि बहुत भीड़ लगी है जानने की कोशिश की कि क्या हुआ है?.... तो पता लगा डॉक्टर जोशी की एक्सीडेंट में मौत हो चुकी थी..... उम्र यही कोई 45 साल.... लोग कहते जा रहे थे डॉक्टर साहब बहुत भले आदमी थे ....!
हार कर अम्मा वापस आ गई पता लगाने की कोशिश बेकार गयी .......!.......
.....महीना भर बाद फिर वही गाड़ी आई और समान और लिफाफा छोड़ गयी.....अब तो डॉक्टर जोशी भी जिंदा नहीं थे....... ।
...... कुछ दिन बाद अम्मा को बाबा का संदूक खोलने पर एक डायरी मिली उस डायरी में अंदर जो लिखा था उसे देख कर अम्मा चकित रह गई .....!
.......एक पन्ने पर सारा हिसाब लिखा था जिसका अर्थ निकलता था कि हर महीने बाबा ₹1000 किसी अनाथ बच्चे जोशी को देहरादून भेजते थे ...जिससे जोशी का पूरा पढ़ाई का खर्च हॉस्टल की फीस जमा होती थी ।..... बाबा अक्सर देहरादून जाते रहते थे ....वे जब तक जिंदा रहे तब तक पैसा भेजते रहे.... और वही बालक आज एक सफल डॉ सर्जन बन गया..था...!
कुछ दिन बाद डॉक्टर जोशी के अकाउंटेंट इस परिवार का हाल जानने आए तो उन्होंने बताया कि डॉक्टर जोशी अत्यधिक बिजी रहते थे .....बहुत धर्म कर्म वाले थे जैसे ही डॉक्टर जोशी को पता लगा कि नरोत्तम सिन्हा के इकलौते बेटे की भी एक दुर्घटना में मौत हो गई तो उन्होंने इस परिवार के लिए एक बड़ा फंड बैंक में जमा किया जिससे प्रति माह इस परिवार का खर्च चल सके !
........जानकर नन्दू के मुंह से अनायास ही निकल गया *ओह बाबा !*और दो आंसू उसके गालों पर ढुलक पड़े !!
.........डॉक्टर जोशी उस दिन इसी परिवार से मिलने आ रहे थे कि रास्ते में उनका एक्सीडेंट हो गया और उनकी मृत्यु हो गई.......!
✍️ अशोक विद्रोही
412 प्रकाश नगर
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा .... सही निर्णय
सुधा के पति के देहांत को आज दस दिन पूरे हो गए ।उसकी दोनों बेटियां मोनिका और मीनू घर को व्यवस्थित करने में लगी थी। तभी सुधा ने आकर कहा," मीनू ,अपने चाचा से कहो कि वह अपने लिए घर देख ले।" सुनकर दोनों बेटियां अचंभित हो गई क्योंकि बचपन से ही चाचा हर्ष उनके साथ रह रहे थे ।उनके बचपन का बहुत सारा सुन्दर समय उन्होंने चाचा के साथ व्यतीत किया था । पिता ने सदैव भाई को पुत्र की तरह रखा।
मां की बात सुनकर मोनिका बोली," मां ,अब इस उम्र में चाचा कहां जाएंगे ?आप सोचो पापा ने हमेशा चाचा को अपने साथ रखा"। इस पर सुधा ने तटस्थ रहकर उत्तर दिया," अब वो चले गये। लेकिन मुझे घर खाली चाहिए और कोई आमदनी का जरिया नहीं है किराए पर मकान दूंगी जिससे मुझे किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ेगा"। सुनकर बेटियां ही नहीं दरवाजे पर खड़े उसके देवर हर्ष भी आश्चर्य चकित थे। बेटियों ने बहुत समझाने की कोशिश की मगर वो अपने निर्णय पर अडिग रही।हमेशा से आज्ञा कारी रहे हर्ष ने इसे भी स्वीकार कर लिया।रात में घर से बाहर सामान लेकर जाते हुए चाचा को देखकर सबका दिल जार जार जोर रहा था।सुधा भी तटस्थ खड़ी थी ।उसके कानों में मामी चाची के कई शब्द गूंज रहे थे," एक दो दिन मे बेटियां अपने घर चली जाएंगी तो अकेले मर्द के साथ घर में रहेगी । पीछे पता नहीं क्या क्या होगा"।अब किसी को कुछ कहने का अवसर नहीं मिलेगा समाज के कारण अपने मन पर पत्थर रखकर वह सब देख रही थी।
✍️ डॉ श्वेता पूठिया
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
बुधवार, 28 जून 2023
मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर (वर्तमान में गाजियाबाद निवासी ) की साहित्यकार रूपा राजपूत की ग़ज़ल ...जाकर वापस आने में यार! ज़माना लगता है
ख़ुद को ढूँढ़ के लाने में यार! ज़माना लगता है
यूँ पागल हो जाने में यार ! ज़माना लगता है
मेरी हँसती आँखों में आँसू ठहरे पाओगे
रोके अश्क बहाने में यार ! ज़माना लगता है
हमको उनसे इश्क़ हुआ जाने कब कह पाएँगे
दिल की बात बताने में यार! ज़माना लगता है
कितनी रातों की नींदें लूटीं उला-सानी ने
मिसरों को बैठाने में यार! जमाना लगता है
'रूपा' आख़िर कब तक तू उनका रस्ता देखेगी
जाकर वापस आने में यार! ज़माना लगता है
✍️ रूपा राजपूत
गाजियाबाद
उत्तर प्रदेश, भारत
मंगलवार, 27 जून 2023
मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता के गीत संग्रह "मेघ गोरे हुए सांवरे" की मीनाक्षी ठाकुर द्वारा की गई समीक्षा ....सांस्कृतिक मूल्यों को समेटे ,प्रेम के आभूषणों से सुसज्जित, समाज में जागृति की ज्योति जलाते गीत
सृष्टि के आरंभ में जब चारो ओर मौन था, नदियों का जल मूक होकर बह रहा था. पक्षी गुनगुनाते न थे.भँवरे गुंजन न करते थे .पवन भी मौन होकर निर्विकार भाव से बहती थी, प्रकृति के सौंदर्य के प्रति मानव मन में भावनाएँ शून्य थीं , तब सृष्टि के प्रति मानव की यह उदासीनता देखकर भगवान शिव ने अपना डमरू बजाकर नाद की उत्पत्ति की, और फिर ब्रह्मा जी के निर्देशानुसार माँ शारदे ने अपनी वीणा को बजाकर मधुर वाणी को जन्म दिया.जिसके फलस्वरूप नदियाँ कलकल करने लगीं ,पक्षी चहचहाने लगे. बादल गरजने लगे, पवन सनन- सनन का शोर मचाती इधर से उधर बहने लगी. हर ओर गीत - संगीत बजने लगा. मानव मन की भावनाएँ मुखरित होकर शब्दों का आलिंगन करने लगीं तथा स्वर और ताल की लहरियों पर नृत्य करते गीत का अवतरण हुआ. तबसे लेकर आज तक गीत लोकजीवन का अभिन्न अंग बने हुए हैं. गीत मानव मन की सबसे सहज व सशक्त अभिव्यक्ति है ही, इसके अतिरिक्त काव्यपुरुष की कंचन काया से उत्पन्न विभिन्न विधाओं की रश्मियों में सबसे चमकदार व अलंकृत विधा भी गीत ही है.गीत का उद्देश्य केवल मानव मन को आनंदित करना ही नहीं है,अपितु लोक कल्याण भी है. लोककल्याण हेतु ज्ञान का रूखा टुकड़ा पर्याप्त नहीं था .अतः जनमानस के स्मृति पटल पर ज्ञान को चिर स्थायी रखने हेतु , रूखे ज्ञान को विभिन्न रसों व छंदो में डुबोकर गीत के रूप में प्रस्तुत किया गया . इसी क्रम में डॉ अर्चना गुप्ता जी का यह गीत संग्रह " मेघ गोरे हुए साँवरे" इस उद्देश्य की पूर्ति मे सफल जान पड़ता है.
आपका यह गीत संग्रह ,शिल्प की कसी हुई देह में छंदो के आकर्षक परिधान पहने, पूरी सजधज के साथ आपको गीतकारों की अग्रिम पंक्ति में लाकर खड़ा कर रहा है.गीतमाला का आरंभ पृष्ठ 17 पर माँ शारदे की वंदना से होता है
कर रही हूँ वंदना दिल से करो स्वीकार माँ
लाई हूँ मैं भावनाओं के सुगंधित हार मांँ
ओज भर आवाज में तुम सर गमों का ज्ञान दो
गा सकूँ गुणगान मन से भाव में भर प्रान दो
कर सकूँ अपने समर्पित मैं तुम्हें उद्धार माँ
कर रही हूँ वंदना दिल से करो स्वीकार माँ
गीत कवयित्री डॉ अर्चना गुप्ता जी अपने शीर्षक गीत पृष्ठ संख्या 21 गीत नं. 2 "मेघ गोरे हुए सांवरे" से ही पाठकों के हृदय को स्पर्श कर जाती हैं. जब एक प्रेयसी के कोरे मन पर प्रियतम की सांँवरी छवि अंकित होती है, तब मन की उमंगें मादक घटाएँ बन कर बरस- बरस कर गाने लगती हैं..
मेघ गोरे हुए सांवरे
देख थिरके मेरे पांव रे
बह रही संदली सी पवन
आज बस मे नही मेरा मन
झूमकर गीत गाने लगीं
स्वप्न अनगिन सजाने लगी
कल्पनाओं में मैं खो गयी
याद आने लगे गाँव रे
देख थिरके मेरे पाँव रे.
डॉ अर्चना गुप्ता जी की पावन लेखनी जब भावों के रेशमी धागों में शब्दों के मोती पिरोकर ,गीतों का सुकोमल हार तैयार करती है ,तब एक श्रृंगारिक कोमलता अनायास ही पाठकों के हृदय को स्पर्श कर जाती है... पृष्ठ नं.22पर "प्यार के हार फिर मुस्कुराने लगे" गीत की पंक्तियाँ देखिएगा..
पोरुओं से उन्हें हम उठाने लगे
अश्रु भी उनको मोती के दाने लगे
जब पिरोया उन्होंने प्रणय डोर में
प्यार के हार फिर मुस्कुराने लगे
संयोग और वियोग , दोनो ही परिस्थितियों में कवयित्री ने प्रेम की उत्कंठा को बड़े यत्नपूर्वक संजोया है.प्रेम की मार्मिक अभिव्यक्ति, जब होठों के स्थान पर आंखों से निकली तो दुख और बिछोह की पीड़ा के खारेपन ने आपकी लेखनी की व्यंजना शक्ति को और भी अधिक मारक बना दिया है.पृष्ठ नं. 55 पर गीत संख्या 32 के बोल इस प्रकार हैं.
बह रहा है आंख से खारा समंदर
ज़िन्दगी कुछ इस तरह से रो रही है
रात की खामोशियाँ हैं और हम हैं
बात दिल की आँसुओं से हो रही है
नींद आंखों मे जगह लेती नहीं है
स्वप्न के उपहार भी देती नहीं है
जग रहे हैं हम और दुनिया सो रही है
बात दिल की आंसुओं से हो रही है
मगर श्रृंगार लिख कर ही आप ने अपने कर्तव्य की इति श्री नहीं की है.. आपकी लेखनी जीवन की सोयी हुई आशा को झंझोड़ती है और उसे उठकर,कर्तव्य पथ पर चलने का आह्वान भी करती है . पृष्ठ संख्या 47 पर गीत सं.25 की पंक्तियाँ देखिएगा...
पार्थ विकट हालात बहुत है मगर सामना करना होगा
अपना धनुष उठाकर तुमको, अब अपनों से लड़ना होगा
समझो जीवन एक समर है, मुख मत मोड़ो सच्चाई से
लड़ना होगा आज समर में, तुमको अपने ही भाई से
रिश्ते- नाते, संगी- साथी, आज भूलना होगा सबको
और धर्म का पालन करने, सत्य मार्ग पर चलना होगा
अपना धनुष उठाकर तुमको, अब अपनो से लड़ना होगा
डॉ. अर्चना गुप्ता जी का नारी सुलभ मन कभी प्रेयसी बन कर लाजवंती के पौधे सा सकुचाया तो , कभी मां बनकर बच्चों को दुलारता दिखता है . कभी पत्नी बनकर गृहस्थी की पोथी बांँचता है, तो कभी बहन बनकर भाई के साथ बिताये पल याद कर भावुक हो उठता है और जब यही मन बेटी बना तो पिता के प्रति प्रेम, स्नेह, आदर, और कृतज्ञता की नदी बन भावनाओं के सारे तटबंधों को तोड़ , गीत बनकर बह चला.पृष्ठ संख्या 65 पर गीत संख्या 38 हर बेटी के मन को छूती रचना अति उत्कृष्ट श्रेणी में रखी जायेगी .गीत की पंक्तियाँ बेहद मार्मिक बन पड़ी हैं...
मेरे अंदर जो बहती है, उस नदिया की धार पिता
भूल नहीं सकती जीवन भर, मेरा पहला प्यार पिता
मेरी इच्छाओं के आगे, वे फौरन झुक जाते थे
मगर कभी मेरी आँखों में, आँसू देख न पाते थे
मेरे ही सारे सपनों को देते थे आकार पिता
भूल नहीं सकतीं जीवन भर मेरा पहला प्यार पिता
आपकी कलम ने जब देशभक्ति की हुंकार भरी तो भारतीय नारी के आदर्श मूल्यों का पूरा चित्र ही गीत के माध्यम से खींच दिया, जब वो अपने पति को देश सेवा के लिए हंँसते- हँसते विदा करती है..तब. पृष्ठ संख्या 113 ,गीत संख्या 76 पर ओजस्वी कलम बोल उठती है
जाओ साजन अब तुम्हे कर्तव्य है अपना निभाना
राह देखूंगी तुम्हारी शीघ्र ही तुम लौट आना
सहचरी हूँ वीर की मै , जानती हूँ धीर धरना
ध्यान देना काम पर चिंता जरा मेरी न करना
भाल तुम माँ भारती का, नभ तलक ऊंचा उठाना
जाओ साजन अब तुम्हे कर्तव्य है अपना निभाना
इसी क्रम में एक नन्ही बच्ची के माध्यम से एक सैनिक के परिवार जनो की मन: स्थिति पर लिखा गीत पढ़कर तो आंखे स्वयं को भीगने से नहीं रोक पायीं.... पृष्ठ संख्या 121 ,गीत संख्या 82..
सीमा पर रहते हो पापा, माना मुश्किल है घर आना
कितना याद सभी करते हैं, चाहूँ मै बस ये बतलाना
दादी बाबा की आंखों में, पापा सूनापन दिखता है
मम्मी का तकिया भी अक्सर मुझको गीला मिलता है
देख तुम्हारी तस्वीरों को, अपना मन बहलाते रहते,
गले मुझे लिपटा लेते ये, जब मैं चाहूँ कुछ समझाना
कितना याद सभी करते हैं, चाहूँ मैं बस ये बतलाना
इसी क्रम में आपकी लेखनी ने जब तिरंगे के रंगों को मिलाकर माँ भारती का श्रृंगार किया तो अखंड भारत की तस्वीर जीवंत हो उठी .पृष्ठ संख्या 117 पर .हिंदुस्तान की शान में लिखा ,भारत सरकार द्वारा दस हजार रूपये. की धनराशि से पुरस्कृत गीत नं. 79 आम और खास सभी पाठकों से पूरे सौ में सौ अंक प्राप्त करता प्रतीत होता है.गीत के बोल हैं...
इसकी माटी चंदन जैसी, जन गन मन है गान
जग में सबसे प्यारा है ये अपना हिंदुस्तान
है पहचान तिरंगा इसकी, सबसे ऊंची शान
जग में सबसे प्यारा है ये अपना हिंदुस्तान
सर का ताज हिमालय इसका, नदियों का आँचल है
ऋषियों मुनियों के तपबल से, पावन इसका जल है
वेद पुराणों से मिलता है, हमें यहाँ पर ज्ञान
जग में सबसे प्यारा है ये, अपना हिंदुस्तान
इसके अतिरिक्त वक्त हमारे भी हो जाना, ये सूर्यदेव हमको लगते पिता से, कुछ तो अजीब हैं हम, ओ चंदा कल जल्दी आना, पावन गंगा की धारा, मैं धरा ही रही हो गये तुम गगन. आदि गीत आपकी काव्यकला का उत्कृष्ट प्रमाण देते हैं.
डा. अर्चना जी के गीतों की भाषा -शैली सभी मानकों पर खरी उतरती हुई,आम बोलचाल की भाषा है,शब्द कहीं से भी जबरन थोपे हुए प्रतीत नहीं होते हैं. आपकी लेखनी पर- पीड़ा की सशक्त अभिव्यक्ति करने में भी सफल रही है. सांस्कृतिक मूल्यों को समेटे सभी गीत गेयता, लय, ताल व संगीत से अलंकृत हैं.प्रेम के आभूषणों से सुसज्जित, समाज में जागृति की ज्योति जलाते, उत्सवों को मनाते, प्रकृति के सानिध्य में अध्यात्म की वीणा बजाते और देश सेवा को समर्पित गीतों का यह संग्रह , सुंदर छपाई, जिल्द कवर पर छपे मनभावन वर्षा ऋतु के चित्र के साथ रोचक व प्रशंसनीय बन पड़ा है . मेरा विश्वास है कि डा. अर्चना गुप्ता जी के ये साँवरे सलोने गीत हर वर्ग के पाठकों का मन मोह लेंगे.
कृति : मेघ गोरे हुए सांँवरे (गीत संग्रह)
कवयित्री : डॉ अर्चना गुप्ता
प्रकाशक : साहित्यपीडिया पब्लिशिंग, नोएडा 201301
प्रकाशन वर्ष : 2021
मूल्य : 299₹
समीक्षक: मीनाक्षी ठाकुर
मिलन विहार
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत