शनिवार, 28 जनवरी 2023

मुरादाबाद की संस्था "संकेत" की ओर से शनिवार 28 जनवरी 2023 को माॅं सरस्वती की वंदना पर आधारित वाट्स एप काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता - डॉ. प्रेमवती उपाध्याय ने की। मुख्य अतिथि - डॉ. पूनम बंसल और विशिष्ट अतिथि - सरिता लाल, डॉ. अर्चना गुप्ता और डॉ. संगीता महेश रहीं। संचालन राजीव प्रखर ने किया । प्रस्तुत हैं गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों द्वारा प्रस्तुत मां सरस्वती वंदना ....



मातु शारदे ज्ञान सुधा का भरदे जीवन में मधुरस ।

रोम रोम में जन जीवन के भरो प्रेम का सुखद सुरस।

✍️ डॉ प्रेमवती उपाध्याय
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

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हम करते तर्पण तुझको अर्पण
माँ तेरा बस ध्यान रहे
हे धवला वसना जीवन रसना
तेरा गौरव गान रहे

वीणा का वंदन करें अभिनंदन
भक्ति का अभिमान रहे
भव सागर तारक विघ्न विदारक
खुशियों का वरदान रहे

हे परहितकारी नैया तारी
मातृ भूमि की शान रहे
ये शंख बजा दो  शौर्य सजा दो
प्रगति का प्रतिमान रहे

है चपल दामिनी मधुर रागनी
छंदों का सम्मान रहे
अभिलाष जगा दो तिमिर भगा दो
राह कठिन आसान रहे

विनती चरणों में करें,आज करो स्वीकार।
खुल जाएं मां शारदे,ज्ञान हृदय के द्वार।।

✍️डॉ पूनम बंसल
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

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हाथ जोड़ करती मैं वंदना
दिल से करती हूं मैं अर्चना
मुझे दृष्टि में ले आओ मां
मुझे पर कृपा बरसाओ मां,

चहुं ओर कोहरा है बरपाया
मोह माया का पर्दा है छाया
ज्ञान पथ सजग बनाओ मां
सब पर कृपा बरसाओ मां,

राहें धूमिल -अन्त‌स है सूना
हर प्राणी आज हुआ है बौना
उसका स्वाभिमान बढ़ाओ मां
हम सब पर कृपा बरसाओ मां,

स्वार्थों से लिप्त ये तन मन है
अबला सा अब हर जीवन है
चक्रव्यूह से बाहर निकालो मां
हम सब पर कृपा बरसाओ मां ,

स्वर्ग इसी धरती पर बनता है
अन्तर की ज्योति जगाओ मां
कैसी होती है प्यारी सी जन्नत
जरा‌ हमको भी दिखलाओ मां,

महासरस्वती महालक्ष्मी महाकाली
तुम ही सभी स्वरूपों में बसती हो
कलयुग के हम नादान हैं बालक
हमें भक्ति के कणों से तार दो मां
शुद्ध सशक्त‌ आचरण भर दो मां
कृपा बरसा दो मां,कृपा बरसा दो मां.......

✍️सरिता लाल
मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश, भारत

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वंदना स्वीकार करना शारदे माँ शारदे।
ज्ञान के भंडार भरना शारदे माँ शारदे।

कंठ में माँ तुम सजा दो सात सुर की लहरियाँ।
भाव की दिल मे बजा दो तुम मधुर सी घण्टियाँ।
तुम बहाना प्रेम झरना शारदे माँ शारदे।
वंदना स्वीकार करना शारदे माँ शारदे।

कर्म मन से और वचन से शुद्ध हर व्यवहार हो।
मन नहीं भटके हमें इंसानियत से प्यार हो।
दुख हमारे सर्व हरना शारदे मां शारदे।
वंदना स्वीकार करना शारदे माँ शारदे।

मोह माया में जगत की फँस नहीं जायें कहीं।
पग पतन की राह में ही धँस नहीं जायें कहीं।
हाथ अपना सिर पे धरना शारदे माँ शारदे।
वंदना स्वीकार करना शारदे माँ शारदे।

✍️ डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

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माँ शारदे --माँ शारदे,
ज्ञान  का  भंडार  दे
        
हमको तम ने है छला
दिव्य ज्योति तू जला,
नव  पथ  संचार  दे।
माँ शारदे ।।

बुद्धि गम्य ज्ञान दे,
विद्या  का  दान दे ,
संकट  निस्तार दे ।
माँ शारदे ।।
           
मार्ग  अंधकार   को,
मात  तुम प्रकाश दो,
ज्योति भर उभार दे ।
माँ शारदे ।

दीप सम हम जलें                        
स्नेह भाव में पलें,
पावन संस्कार दे ।
माँ शारदे। माँ शारदे ।।

✍️अशोक विश्नोई
मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश, भारत
मो.9458149223

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माँ वीणापाणि गा रही
अंतर के पट खोले
लट   खोले   बालों  की,
लेकर कर  में  वीणा
बैठ कमल आसन पर,
स्वरसप्त है बजा रही
जिसमें विश्व चेतन का,
राग   है   सजा   रही
जड़   मानव  हृदय  में,
दिव्य दीपक जला रही।
माँ वीणापाणि गा रही

हर तार से निकल रही,
तरंग  ज्ञान   से  भरी
जो मूढ़ता को हर रही,
है ज्ञान दान कर रही
जो अंतर्तम  को स्वयं,
प्रकाशवान  कर  रही
जो  क्रुद्ध हलाहल को,
शांतअमिय में बदलरही
जो बुद्धि में सुकर्म का,
अनूप  भाव  भर   रही।
माँ वीणापाणि गा रही

सुकर्म शुभारम्भ काआलम्ब,
आलम्ब  तू स्वयं रही
विद्या    की    खान    और, 
शान   तू   स्वयं   रही
तेरे   आशीष   से   अनेक,
खल    चमक    रहे
तेरे  निज   शाप   से   हैं,
दर - दर  भटक  रहे
हर  तान  तू  सुना   रही,
है सृष्टि को जगा रही
माँ वीणापाणि गा रही

जब  से  माँ  तेरा  निज,
हाथ  विश्व   पर   रहा
विश्व का हर  एक  पल,
बन कीर्ति है चमक रहा
वैसे    ही   शारदे    तू ,
ध्यान   विश्व  का   रखना
किसी  भी  संकट   से,
दूर    विश्व    को   रखना
भक्तों    के    मन   से,
यही   पुकार   आ  रही।
माँ वीणापाणि गा रही

साथ    टूटे   शब्दों  के,
पृष्ठ   बंद   करता   हूँ
तेरे  चरण  कमलों  में,
कोटि नमन करता हूँ।
       
✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

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हाथ जोड़कर शीश नवाता, माँ ! स्वर-अक्षर धाम ।

वाणी में मधुरस-सा टपके, जनहित में हर बोल ।
ज्ञान के चक्षु सदा खुले हों, सोच बने अनमोल ।।
बुद्धि ज्ञान विवेक की दाता, करता तुम्हें प्रणाम ।
हाथ जोड़कर शीश नवाता, माँ ! स्वर-अक्षर धाम ।।

दीप जला आह्वाहन करता, ऊँचा रह मम भाल ।
सुर-लहरी दो मुझको ऐसी, सुन हों सभी निहाल ।।
उत्तम बने शब्द-संयोजन, मिले सुखद परिणाम ।
हाथ जोड़कर शीश नवाता, माँ ! स्वर-अक्षर धाम ।।

पुष्प चढ़ाकर वर यह माँगूं, सिर पर रखना हाथ ।
घर-समाज या देश सभी में, हो मेरा भी साथ ।।
ऐसी वाणी सबको देना, भजे शारदा नाम ।
हाथ जोड़कर शीश नवाता, माँ स्वर-अक्षर धाम ।।

मातु शारदे सारे मुझसे, दुर्गुण रखना दूर ।
छल-कपटी बैरी-दुश्मन मम, प्रेम करें भरपूर ।।
मुझमें इतनी क्षमता भर दो, बाधाएं दूँ थाम ।
हाथ जोड़कर शीश नवाता, माँ ! स्वर-अक्षर धाम ।।

✍️राम किशोर वर्मा
रामपुर
उत्तर प्रदेश, भारत

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O Maa Saraswati sitting on lotus,
The Goddess of dawn!
My heart is shrouded with dusk of despair.
Let the light of hope fall on me, my mother!
Let blooming buds and flowers inspire me,
To  compose the poems  of faith, hope and pleasure.

O Maa Bhagwati, with Veena adorned in your hands,
The Goddess of art and music!
When the tune and rhythm in my life is missing,
Fill it with sweet music of love.
O Maa, bless me with melodious songs
Of  joy, laughter and benevolence

O Maa Gayatri, Wearing rosary in your rear right hand,
the mother of prayer and meditation!
Bless me with serenity of mind and soul.
When my cup of ego is full to the brim,
Come my mother to empty it and refill
With humility and humanity.

O Maa Vageshwari, mounted on swan,
the creator of all fine arts!
You added shapes, colours and music
To the world of Lord Brahma.
O Maa, give me the insight to feel this art and music,
The empathy to feel the sufferings of the world.
Give that strength and ability to my voice and my pen,
That I can share my feelings with others
Through my poems and songs,
Which are as simple, soothing and powerful
As you are.

O Maa Bhuvneshwari,wearing white apparel,
The Goddess of wisdom and knowledge!
O Maa,give me that power,
That I can swim in the ocean of human feelings
And pick the pearls of human emotions
And embellish them in my songs,
Which get mingled with the tune of your Veena,
And I too may be in union with you.

Composed by Dr. Sangeeta Mahesh

(उपरोक्त वंदना का हिंदी अनुवाद)
हे मां सरस्वती, पद्मासनी,
भोर की देवी!
मेरा हृदय निराशा की संध्या से आच्छादित है।
आशा का प्रकाश मुझ पर पड़ने दो, मेरी माँ!
खिलती हुई कलियाँ और फूल मुझे प्रेरणा दें,
विश्वास, आशा और आनंद के गीतों को रचने के लिए।

हे माँ भगवती! वीणा धारिणी
कला और संगीत की देवी!
जब भी सुर और लय मेरे जीवन से दूर जाए,
उसे प्यार के मधुर संगीत से भर दें।
हे मां, मुझे खुशी, संतोष और परोपकार के
मधुर गीतों का आशीर्वाद दें

हे मां गायत्री, कर में मनका धारण करने वाली !
साधना और ध्यान की देवी,
मुझे मन और आत्मा की शांति का आशीर्वाद दें।
जब भी कभी मेरे अहंकार का प्याला भरने लगे,
इसे अहम के भावों से खाली कर,
विनम्रता और मानवता के भावों से भर दें।

हे माँ वागीश्वरी, हंस वाहिनी!
सभी ललित कलाओं की जननी,
भगवान ब्रह्मा की दुनिया को सुंदर बनाने के लिए
आपने उसमें रंग और भाव भरे, शब्द और संगीत दिया,
हे मां, मुझे अंतर्दृष्टि दें और योग्यता दें,
कि मैं महसूस कर सकूं, इस कला और संगीत को,
मैं महसूस कर सकूं लोगों की पीड़ा को,
मेरी कलम को, मेरी आवाज को, इतनी शक्ति दो मां,
कि मैं अपने भावों को साझा कर सकूं,
इस  दुनिया के साथ,
अपने गीतों और कविताओं से
जो हों आपका ही रूप,
सौम्य, सरल, शक्तिशाली और सुखदायी।

हे मां भुवनेश्वरी, श्वेतांबरी !
प्रज्ञा और ज्ञान की देवी,
हे माँ मुझे वह शक्ति दो,
मैं तैर सकूं मानवीय संवेदनाओं समुंदर में,
और बीन सकूं भावनाओं के मोती,
और उन्हें सजा सकूं अपने गीतों में,
जो आपकी वीणा के सुर में समा जाएं,
और मैं भी आपमें ही समाहित हो जाऊं।

✍️ डॉ. संगीता महेश
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

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हो   मेरा   चिंतन   प्रखर , बढ़े  निरंतर  ज्ञान।
हे   माँ   वीणावादिनी   ,  दो   ऐसा  वरदान।

मातु   शारदे  आपका ,  रहे   कंठ   में   वास।
वाणी  में   मेरी   सदा , घुलती  रहे  मिठास।।

यदि  मिल जाए आपकी,दया-दृष्टि  का  दान।
माता   मेरी   लेखनी , पाए  जग   में   मान।।

किया  आपने  शारदे ,  जब  आशीष  प्रदान।
रामचरित  रचकर  हुए , तुलसीदास  महान।।

हाथ जोड़कर  बस यही, विनती करे 'विवेक'।
नैतिक बल दो माँ मुझे,काम करूँ नित नेक।।

✍️ओंकार सिंह विवेक
रामपुर
उत्तर प्रदेश, भारत

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विमल वीणा पाणि निर्मल,
धवल वसना शारदे माँ।
भाव को सद् ज्ञान की शुभ, ज्योति का आधार दे माँ।

मैं रहूँ तेरी कृपा का,पात्र ऐसी युक्ति दे माँ।
भावना को छंद,कविता,गीत की अभिव्यक्ति दे माँ।
काव्य हो मेरा अलंकृत,सरस लय शृंगार दे माँ।
भाव को सद् ज्ञान की शुभ, ज्योति का आधार दे माँ।

मैं तुम्हारी अर्चना में,रत् रहूँ सद् चित्त दे माँ।
साधना को भक्ति
का,वातावरण उपयुक्त दे माँ।
फँस न जाऊँ भँवर में,निज नेह की पतवार दे माँ।
भाव को सद् ज्ञान की शुभ,
ज्योति का आधार दे माँ।

हंस वाहिनि भारती, ममता मयी वरदायिनी माँ।
बहे अविरल ज्ञान-सरिता,हृदय में स्वर दायिनी माँ।
ध्वंस कर दुर्भावना,सद्भावना- उपहार दे माँ।
भाव को सद् ज्ञान की शुभ, ज्योति का आधार दे माँ।

✍️ डॉ महेश मधुकर
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वीणापाणि शारदे!
तुमको नमन, तुमको नमन ।
नित गाऊं मातु वंदना,
अर्पित करूं शब्द सुमन ।।
मां ज्ञान दे, विज्ञान दे।
भावों को ऊंची उड़ान दे।‌
कलुषित विचार जहां भी हों
हो जाएं वह सारे दहन।।
मां...........
लेखनी, वाणी में शक्ति हो।
भाव सरस अभिव्यक्ति हो।।
मुख खोल जब भी बोलूं मैं,
निकले सदा मीठे वचन।
मां..........
मन स्वच्छ साफ विचार हो।
हृदय में प्यार ही प्यार हो।।
एकात्मता के भाव से,
सुरभित हो यह सारा चमन।
मां ................

✍️डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर
उत्तर प्रदेश, भारत

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हे माॅं वाणी दीजिए, हमें यही वरदान।
जनहित में लगता रहे, सदा हमारा ज्ञान।।
राग-द्वेष की भावना, कभी न फटके पास।
अन्तस का तम दूर हो, पाएं नया उजास।।
श्रेष्ठ कर्म कर रख सकें, मानवता का मान।
हे माॅं वाणी दीजिए, हमें यही वरदान।।

✍️ राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

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शारदे मां ज्ञान दे,
तत्व की पहचान दे।

काल की मुट्ठी खुली है,
पल मलिन हो गिर रहे हैं।
छा गया अंधियार सा है,
मोह के घन घिर रहें हैं।
दूर कर अज्ञान तम को,
मात नवल विहान दे।
शारदे मां ज्ञान दे,
तत्व की पहचान दे।

लिख रहे सब लेख जय का,
कब समर्पण को पढ़ा है।
है विहीन विनय से बुद्धि,
मद असुर सा सिर चढ़ा है।
दुर्मति के नाश को मां!
शर कलम संधान दे।
शारदे मां ज्ञान दे,
तत्व की पहचान दे।

मूढ़मति मैं जानती क्या,
विस्मयी बस देखती हूं।
माथ छोटा कल्पना का,
मात के दर टेकती हूं।
मां,मुझे अपने चरण में,
आसरे का दान दे।
शारदे मां ज्ञान दे ,
तत्व की पहचान दे।

✍️हेमा तिवारी भट्ट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

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हम सब बालक शरण तुम्हारी आन पडे़ माँ सरस्वती,
दो हमको  वरदान  हमारा  ज्ञान  बढ़े  माँ  सरस्वती,,

वरद हस्त हो शीश हमारे, क्षमाशील जन-जन मे हों,
आलौकिक छवि दिव्य आपकी, मात हमारे मन  में हो ,,
आपस मे सद्‌भाव प्रेम का  दान बढ़े माँ सरस्वती,,,
हम सब  बालक....

वीणा घरी, और स्वरवरदा बुद्धि दायिनी हो तुम ही,
श्वेत कमल घर, भाषा, वाणी, हंस वाहिनी हो तुम ही,
धवल कीर्तिमय सद्‌गुण का संधान बढ़े माँ सरस्वती,
हम सब बालक......

बाधाऐं हर पार करें, शिक्षित हो  सफल करे जीवन,
तृष्णा,छल,झूठ,अमानुषता  विसरा कर सरल करें जीवन,
गरिमा  हमसे हम से बढ़े, राष्ट्र का मान बढ़े माँ सरस्वती"
हम सब  बालक......

✍️मनोज मनु
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

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माँ शारदे मुझको वरदान दो ।
'ममता'को चरणों मे स्थान दो ।।

तिमिर कूप से माँ निकालो मुझे,
मुझे  दो  सहारा  सँभालो  मुझे ।
मुझे बुद्धि विद्या औ सम्मान दो ।।
'ममता'को चरणों में ...........।।

भ्रमित है मनुज और विचलित है मन,
लिए  घूमता  है  हृदय  में  चुभन,
मिटा अब जगत से ये अज्ञान दो।
'ममता'को चरणों में............।।

मेरी लेखनी भक्ति रत हो सदा ।
मनुजता का पूजन करे सर्वदा।।
मुझे काव्य का मात अब ज्ञान दो।
'ममता'को चरणों में ............।।

माँ शारदे मुझको वरदान दो ।
'ममता'को चरणों में स्थान दो।।

✍️  प्रो ममता सिंह
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

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माँ शारदे वरदान दो
बल बुद्धि अरु सम्मान दो
सत पथ पर चलूँ सदा ही
मन में यही अरमान दो ।

सद्भावों की महके क्यारी
विद्या ही हो पूँजी हमारी
लोभ मोह से मुक्त हृदय हो
संतोषी हो सब नर नारी ।
सेवा से पग डिगें कभी न
कुछ ऐसे भाव दान दो ।।
माँ शारदे वरदान दो ....

सुख समृद्धि हर आँगन आये
दीन दुखी कोई रह न जाये
खुशियों पर अधिकार सभी का
जन जन बात समझ यह पाये ।
मान पराया भी मेरा हो
ऐसा मुझे संज्ञान दो ।।
माँ शारदे वरदान दो .....

चहुँदिशि फैला हो उजियारा
दिखे न साथी तम से हारा
शिक्षा की नयी ज्योति जलाकर
कर दो उजला यह जग सारा ।
अज्ञान का सब हर अंधेरा
घट घट में भर ज्ञान दो ।।
माँ शारदे वरदान दो.....

✍️डॉ. रीता सिंह
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

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सुरवंदिते!, महाभुजे! ,शुभदा! हे शारदे!
अज्ञानता के दंश से हमको  उबार दे

हे श्वेतवर्णि अम्बुजे!, तू हंसवाहिनी!
हे शक्तिदायिनी!, महाविद्या प्रदायिनी!
गोदी में लेके अम्बिके ममता दुलार दे
अज्ञानता के दंश से हमको उबार दे

हे वीणावादिनी , जया, शब्दा, स्वरागिनी
तू ही पुराण वेद की गंगा प्रवाहिनी
मरुथल में मन के अमृते सावन उतार दे
अज्ञानता के दंश से हमको उबार दे

वागेश्वरी, वरारुहा, वसुधा विराजनी
करुनामयी, कलावती ,कमला ,कृपालनी
"मासूम" को तू ज्ञान की ज्योती अपार दे
अज्ञानता के दंश से हमको उबार दे

✍️मोनिका "मासूम"
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वीणा  पाणी शारदे मां,लोक दुःख तारिणी मां,
राष्ट्रहित सोचने का ,हमको विचार दे।
जब तक जिए मात,देश हित करें नित ,
ऐसी पूत भावना तू,मन में उतार दे ।
कण कण कर वास करो,जग के संत्रास हरो,
प्रेम भक्ति भाव भर ,जन को सुधार दे।
रोम रोम गाए मैया ,तेरा गान प्रतिपल ।
निज भक्ति भाव मम,अंक में उतार दे ।1

नाश होवे बैर द्वेष, नेह होवे विकसित।                            सब सुखी होवे ऐसे ,भाव का प्रसार  कर ।
तेरा गुणगान करें ,नारी का सम्मान करें।
जग को सुधारे कोई ,ऐसा अवतार कर।             
मन के हैं जो विकार ,फैला हुआ अनाचार ।
काल रूप धारि मैया ,इन्हें तार -तार कर।
वीणा छोड़े मल्हार ,गूंजे राग हुंकार ,
वीर रस जागे ऐसे ,नाद का संचार कर ।

✍️डॉ प्रीति हुंकार
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

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काव्य की पीर उठती रहे शारदे।
काव्य रस-धार बहती रहे शारद।

लेखनी मेरी माता रुके न कभी,
यह लगातार चलती रहे शारदे।

छंद लय युक्त को ,माँ कविता मेरी,
यह सरसती महकती रहे शारदे।

काव्य में जो कहूँ ,वह बिना भय कहूँ,
भावना यह उमड़ती रहे शारदे।

सत्य पथ पर चालूं, साथ सच का गहूँ,
बात मन मे घुमड़ती रहे शारदे।

द्वेष होने न पाए किसी से मुझे
धारणा यह पनपती रहे शारदे।

ज्ञान का डीप बुझने न पाए कभी,
ज्ञान की ज्योति जलती रहे शारदे।

✍️  इन्दु रानी
अमरोहा
उत्तर प्रदेश, भारत

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हे! ,श्वेताम्बर  वीणा  पाणिनी
अज्ञान तमस  से हमें तारिणी
ऐसा जग में  प्रकाश भरो  ना
मझदार में नैया, पार करो ना
हे! श्वेताम्बर वीणा....

प्रकृति से नित प्यार  करें हम
जीवों पर सदा दया करें  हम
प्राणी मात्र से  प्रीत करे  हम
ऐसा  कुछ नवाचार  भरो ना
हे! श्वेताम्बर वीणा....

धरा  बचे  और  बचे  हरियाली
वृक्ष कटे न, कोई कटे न डाली
मानव  क्षरण  से ये  बच जाएं
ऐसा कोई अविष्कार  करो ना
हे! श्वेताम्बर वीणा....

वेदों  से  हम  शोध  करें  नित
सत्य  सनातन  करें  परिष्कृत
फिर से  कचरा मुक्त हो धरती
ऐसी युक्ति का संचार करो ना
हे! श्वेताम्बर वीणा....

✍️  दुष्यत 'बाबा'
पुलिस लाईन, मुरादाबाद।
मो0-9758000057

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श्वेत कमल है श्वेत वसन है, 
सिर पर मुकुट भाल चंदन है I
कर में  वीणा सुर है लय है,
मां की मूरत ममतामय है I
मातृ रूप का अभिनंदन है!
सरस्वती मां का वंदन  है !

मां ऊंची तुम हिमालय सी हो, 
पूजित तुम शिवालय सी हो I
विद्या के विद्यालय सी हो ,
विद्या ही जीवन में धन है !
विद्यादायिनी का  वंदन है!
सरस्वती मां का वंदन है !

माता भाग्य  हैं मेरे जागे ,
शीश झुकाए खड़ा हूं आगे I
दिल मेरा बस यह वर मांगे,
शुभ शब्दों का ज्ञान करा दे I
प्रभु का जिनमें भजन कथन है
सरस्वती मां का  वंदन है !

मुंह से निकले शीतल वाणी,
जिसको सुन हर्षित हो प्राणी I
ज्ञान दायिनी ज्ञान करा दो ,
मैं तो हूं बालक अज्ञानी I
अर्पण मेरा तन है मन है!
सरस्वती मां का वंदन है !

✍️नकुल त्यागी
बुद्धि विहार
मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश, भारत

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मात सरस्वती को हम सुमिरें सारे काम सफल हो जाएं।
जोड़ें हाथ झुककर मस्तक माता तुमको रहे मनाएं।
हमको ज्ञान सदा तुम देना अंधकार सब देओ मिटाय।
सर पर हाथ तुम्हारा माता अब डर हमें किसी का नाय।
सारे काम सफल हों मैया सबकी करना सदा सहाय।
श्वेत हंस पर मात विराजे वीणा रक्खी हाथ उठाय।
जो भी ध्यान करे मैया का उसके देती काम बनाय।
जब मेरी माता कंठ विराजे वाणी में स्वर देय सजाय।
सबसे पहले सुमिरुं शारदा पीछे हाथ कलम लूँ ठाय।
शब्दों को मेरे सच्चा करना माता अरज करूँ सिर नाय।
शब्द शब्द जुड़ बने कविता शब्दों में दो भाव जगाय।
जो भी रचना सुने हमारी माता मन्त्र मुग्ध हो जाय।
ऐसा वर दे दो मेरी मैया अब कलम रुके कभी नाय।
शब्द कोष का ज्ञान हमें दो नित नए ग्रन्थ लिखें हर्षाय।
हर दम ध्यान रहे माता का चाहे दिन कैसे भी आय।
मात शरद शीश विराजे करती जाय सदा सहाय।
विनती सुनलो वीणा वाली तुमसे बात बड़ी ये नाय।
अर्ज हमारी पूरी कर दो हाथ जोड़ रहे तुम्हें मनाय।
ब्राह्मणी तुम जन्मदात्री सारे जग को मात कहाय।
बिन तेरी कृपा बिना दया के काम किसी का होना नाय।
हम भी माता तेरे बालक तुझको याद रहे दिलवाय।
माता रुष्ट कभी ना होना चाहे भूल बड़ी हो जाय।।

✍️ नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश

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जय जय माँ, जय जय माँ -2
माँ के चरणों की हम करें  आराधना
तेरे दर्शन को हम सब खड़े हैं  I
तेरी करुणा की सीमा नहीं हैं
दे दो विद्या हम जिद्द पर अड़े हैं l

शारदे हमें ज्ञान दो, विद्या का वरदान दो
कर दे मन में रोशनी, माँ सबका कल्याण हो
हर समय हर जगह बस मिलें तू,
सत्य के पथ पे अब हम चलें हैं I
तेरी करुणा की सीमा नहीं हैं
दे दो विद्या हम जिद्द पर अड़े हैं l

तुमसे मन की हर ख़ुशी,
तुम हो मेरी जिंदगी l
तेरी दिव्य ज्योति से, होती जग में रोशनी
कर दे रोशन मेरी जिंदगी अब
कब से अंधकार में हम पड़े हैं l
तेरी करुणा की सीमा नहीं हैं
दे दो विद्या हम जिद्द पर अड़े हैं l

✍️ पूजा राणा
मुरादाबाद ,उत्तर प्रदेश
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मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'अक्षरा' की ओर से वसंत पंचमी की पूर्व संध्या पर बुधवार 25 जनवरी 2023 को साहित्यकार माहेश्वर तिवारी के आवास पर 'वासंती-स्वर' काव्य-गोष्ठी का आयोजन

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'अक्षरा' की ओर से वसंतपंचमी की पूर्वसंध्या पर सुप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी जी के नवीन नगर स्थित आवास पर बुधवार 25 जनवरी 2023 को  'वासंती-स्वर' (काव्य-गोष्ठी) का आयोजन किया गया जिसमें उपस्थित स्थानीय कवियों ने वसंत पर केन्द्रित काव्य पाठ किया।

      संस्था के संयोजक योगेन्द्र वर्मा व्योम के संचालन में कवयित्री मीनाक्षी ठाकुर द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से आरम्भ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डा.आर सी शुक्ल ने सुनाया....

"भ्रमण करके विश्व का

एक माॅं की कोख से पैदा हुआ

आज बैठा वृद्ध सूखी-सी धरा पर

प्रश्न स्वयं से पूछता हूॅं।" 

 मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध हास्य व्यंग्य कवि डा. मक्खन मुरादाबादी का कहना था ....

"समर्थ पाँव

रेल,बस, विमानों में नहीं रहते

खुली छत के शौकीन

मकानों में

नहीं रहते।।"  

सुप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने वसंत-गीत प्रस्तुत किया-

"खत्म नहीं होगा बसंत का आना यह हर बार

खत्म नहीं होगा पलाश के फूलों वाला रंग

पतझरों को रौंद विहँसने-गाने का यह ढंग

खत्म नहीं होगा मनुष्य से फूलों का व्यवहार।" 

वरिष्ठ कवयित्री विशाखा तिवारी ने कविता पढ़ी-

"पेड़ों को

नव पल्लवों से

सजाने वाले

मन में होरी-ठुमरी की मिठास

घोलने वाले

ऋतुराज

तुम कहाँ विलय हो गये।" 

वरिष्ठ कवि रामदत्त द्विवेदी ने गीत प्रस्तुत किया-

 "पीढ़ियां दर पीढ़ियां दर पीढ़ियां बीतीं/

पर गरीबी हो न पाई तनिक भी रीती।"

कवि शिशुपाल 'मधुकर' ने पढ़ा- 

"बुझे हुए शोले को मैं अंगार बनाने निकला हूँ

कुंद पड़ी कलमों की अब नई धार बनाने निकला हूँ

मानवता की रक्षा हेतु मैं अपना फ़र्ज़ निभाने को

काट दे हर बंधन को वो तलवार बनाने निकला हूँ।" 

     कवयित्री डा. पूनम बंसल ने रचना प्रस्तुत की-

"अभिनंदन है शुभ वंदन है,स्वागतम ऋतुराज तुम्हारा। 

प्रेमपाश में बंधी धरा अब महक उठा है ये जग सारा।

आनंदित है सारी सृष्टि बहती सात सुरों की धारा।"

     वरिष्ठ शायर डॉ कृष्ण कुमार नाज़ ने ग़ज़ल पेश की-

"एक मछली जो मर्तबान में है

कोई दरिया भी उसके ध्यान में है

तेग़ जौहर दिखा के म्यान में है

जीत के जश्न की थकान में है

बादलों ने लिखी है नज़्म कोई

ये जो तस्वीर आसमान में है।" 

कवयित्री डॉ अर्चना गुप्ता ने रचना प्रस्तुत की- 

पुष्प महके हर तरफ उपवन बसंती हो गया

खुशबुओं में डूबकर ये मन बसंती हो गया

पात पीले झर गये/खिलने लगीं कोपल नयी

भूल सब  संताप ये  जीवन बसंती हो गया।"

      साहित्यकार डॉ. मनोज रस्तोगी ने रचना प्रस्तुत की-

"बीत गए कितने ही वर्ष ,

हाथों में लिए डिग्रियां

कितनी ही बार जलीं 

आशाओं की अर्थियां

आवेदन पत्र अब लगते 

तेज कटारों से" 

कवि समीर तिवारी ने मुक्तक प्रस्तुत किया-

"चाँदनी दीवार-सी ढहने लगी है

नींद सपनों की कथा कहने लगी है

एक चिड़िया पंख फैलाये हुए

आँख के भीतर कहीं रहने लगी है।" 

कवि योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने वासंती दोहे प्रस्तुत किए-

"खुश हो कहा वसंत ने, देख धरा का रूप

ठिठुरन के दिन जा चुके, जिओ गुनगुनी धूप

यत्र-तत्र-सर्वत्र ही, करते सब उल्लेख 

जब-जब लिखे वसंत ने, खुशबू के आलेख।" 

कवि राजीव 'प्रखर' ने दोहे पढ़े-

"गूंज उठा चहुॅं ओर है, वासंती मृदुगान

चल सर्दी अब बांध ले, तू अपना सामान

मानुष-मन है अश्व सा, इच्छा एक लगाम

जिसने पकड़ी ठीक से, जीत लिया संग्राम।" 

शायर ज़िया ज़मीर ने ग़ज़ल पेश की-

"है डरने वाली बात मगर डर नहीं रहे

बेघर ही हम रहेंगे अगर घर नहीं रहे

हैरत की बात यह नहीं ज़िंदा नहीं हैं हम

हैरत की बात यह है कि हम मर नहीं रहे।" 

कवि मनोज वर्मा मनु ने गीत प्रस्तुत किया- 

"आ गये ऋतुराज लो मौसम सुहाना आ गया, 

फूल, तरु, पल्लव, कली को मुस्कराना आ गया, 

खिल उठीं कलियां कि फिर भोरों ने की गुस्ताखियाँ,

 प्रेम-विहवल पंछियों को चहचहाना आ गया।" 

ग़ज़लकार राहुल शर्मा ने सुनाया-

 "नहीं मतलब अदब तहजीब ओ फन से

फकत फैशन में स्टाइल में गुम है

यतीमों सी  भटकती है विरासत

नई पीढ़ी तो मोबाइल में गुम है।" 

कवयित्री हेमा तिवारी भट्ट ने रचना प्रस्तुत की- 

जल रहा है ढल रहा है और फिर उग आएगा। 

हौसला सूरज है मेरा दिन नये गढ़ जाएगा।। 

हटे विचारों से शिशिर,हो बसंत सी भोर। 

हेमा मन रवि यदि बढ़े,सम्यक पथ की ओर।। 

कवयित्री मीनाक्षी ठाकुर ने सुनाया- 

"ऋतुओं के राजा से छीनी

किसने माला फ़ूलों की

गाँव शहर से हाथ मिलाकर

जंगल को लुटवा बैठे

खेतों की धानी चूनर को

टुकड़ो मे कटवा बैठे।" 

कवयित्री शशि  ने सुनाया-

"जीने कहाँ देते हैं, वो चार लोग

सुनने में अभी तक यही मिला है

 कि क्या कहेंगे चार लोग।" 

 आभार अभिव्यक्ति आशा तिवारी ने प्रस्तुत की।














































:::::प्रस्तुति:::::

योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'

संयोजक

साहित्यिक संस्था 'अक्षरा'

मुरादाबाद 

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल- 9412805981

सोमवार, 23 जनवरी 2023

मुरादाबाद मंडल के बहजोई (जनपद संभल ) के साहित्यकार दीपक गोस्वामी चिराग की कृति बाल रामायण की अतुल कुमार शर्मा द्वारा की गई समीक्षा ...रामरस में जलते दीपक की अलौकिक आभा.

आज हम ऐसे युग में जीवन व्यतीत कर रहे हैं, जहां हम अपने आप को ही समय नहीं दे पाते। सुबह से शाम तक मशीन की तरह काम करते हुए भी, मन में चैन नहीं, आत्मा को शांति नहीं, हृदय में संतोष नहीं। जिसके पास जितनी अधिक दौलत है ,उसको उतना अधिक मानसिक असंतोष भी है क्योंकि हमारी इच्छाएं कभी पूर्ण होने का नाम नहीं लेतीं और न ही हम लालच के चलते थकान मानने को तैयार होते हैं। इस भागदौड़ में अपने रिश्ते को निभाना भी कम चुनौतीपूर्ण नहीं है। पारिवारिक रिश्तों को बांधे रखना और सास-बहू, पिता-पुत्र, मां-बेटा, भाई-भाई के प्रति कर्तव्यों का निर्वहन करना, आज के समय में तो लगभग असम्भव ही प्रतीत होता है ।ऐसे विकृत समाज को, किस तरह सुसंगठित, सुसंस्कृत एवं सुसभ्य बनाया जाए? यह एक कठिन प्रश्न है। साहित्य की भूमिका ऐसे जटिल समय में और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। गीता, रामायण और रामचरितमानस भारतीय संस्कृति के आधार हैं ,आध्यात्मिक जगत एवं मन की दृढ़ता हेतु इनका अध्ययन आवश्यक है लेकिन व्यक्ति के पास समय का अभाव है। ऐसे में कवि दीपक गोस्वामी चिराग ने, अपने शब्दों को एक ऊंची मशाल की भांति, "बाल रामायण" के रूप में प्रस्तुत किया है जिसको बच्चे  आसानी से समझ सकेंगे तथा संक्षेप में रामायण और रामचरित्र की समझ, अपने अंदर विकसित कर सकेंगे। आकर्षक तरीके से कवि ने पद्य रूप में, रामायण के प्रमुख प्रसंगों तथा सनातनी परंपराओं का उल्लेख किया है, यहां तक कि श्री राम स्तुति को भी अपने ढंग से प्रस्तुत कर, भगवान राम का गुणगान किया है। चारों भाइयों एवं उनकी पत्नियों का परिचय चार लाइनों में समेट कर, कवि ने अपनी योग्यता का परिचय दिया है-

"सिया-राम की मिल गई जोड़ी ,गया अवध को भी संदेश ।

भरत शत्रुघ्न साथ लिए फिर, दशरथ आए मिथिला देश।

लखन लाल ने पाई उर्मिला, और मांडवी भरत के साथ।

छोटे भ्राता शत्रु-दमन ने,श्रुतिकीरत का थामा हाथ।"

कई-कई प्रसंगों का विवरण कुछ ही पंक्तियों में भरना और फिर उसके दृश्यों को भी स्पष्ट कर देना, यह कठिन कार्य है। राम रावण युद्ध की मुख्य कारण बनी सूपर्नखा का, रावण के दरबार में जाकर किए गए विलाप का दृश्य देखिए-

"राम-लखन हैं वे दो भ्राता, दोनों अवधी राजकुमार।

साथ लिए इक नारी सीता,जो सुंदर है अपरंपार।

बदला मेरा ले लो भ्राता,हुआ निशाचर कुल पर वार।

छाती मेरी तब ठंडी हो,हर लाओ तुम उनकी नार।"

अरण्यकांड में हम पढ़ते हैं कि माता सीता का हरण होने पर जटायु, रावण पर हमला बोल देता है, बलशाली रावण के सामने पूरे साहस से लड़ता है, लेकिन विवश हो जाता है और भगवान राम को यह राज बताने के बाद, कि 'सीता का हरण रावण ने किया है' वह प्राणों को त्याग देता है। धर्म की राह पर न्योछावर होने वाले जटायु ने भी भगवान राम की मदद की , इससे सिद्ध होता है कि पशु-पक्षियों में भी, श्रीराम के प्रति प्रेम भरा था।इस दृश्य को दीपक जी इस प्रकार प्रस्तुत करते हैं-

"वन-वन,उपवन खोजैं राघव, नहीं मिली सीता की थाह।

पढ़ा अधमरा मिला जटायू, देख रहा रघुवर की राह।

दसकंधर ने हर ली सीता, किया गीध ने यही बयान।

ज्यौं रघुवर ने गले लगाया, छोड़ दिए फिर उसने प्रान।"

शक्ति और धन का घमण्ड, उस व्यक्ति को स्वयं को ही तोड़ देता है, क्योंकि वास्तविकता को अधिक समय तक नहीं दबाया जा सकता । एक तरफ रामा दल में भाई-भाई के प्रति अपार स्नेह दिखता है, दूसरी तरफ रावण अपने भाई विभीषण को लात मारकर अपने राज्य से निकाल देता है। इसी से रुष्ट होकर, विभीषण भाई रावण की मृत्यु का कारण बन जाता है, उधर शत्रु-दल का होने के बाद भी ,श्रीराम विभीषण को स्नेह प्रदान करते हैं । इस प्रसंग पर कवि ने लिखा है -

"भक्त विभीषण ने समझाया, रावण नहीं रहा था मान।

दसों दिशाओं का था ज्ञाता, आड़े आता था अभिमान।

ठोकर मार विभीषण को जब, दिया राज्य से उसे निकाल।

राम-भक्त था संत विभीषण, पहुंचा रामा दल तत्काल।

उत्तरकांड में राम राज्य का बहुत सुंदर दृश्य देखने में आता है, जहां धर्म है, नीति है, प्रेम है, संयम है, न्याय है, मर्यादाएं हैं, कर्तव्यनिष्ठा का भाव है, भाईचारा है। ऐसे रामराज्य की कल्पना करना जितना सुखद है, उसे स्थापित करना आज के समय में उतना ही मुश्किल भी है। रचियता ने रामराज्य का एक चित्र खींचा है-

"सिंहासन पर बैठे रघुवर,हो गए हर्षित तीनों लोक।

चहुँदिशि बरस रही थीं खुशियां,नहीं दिखे था किंचित शोक।

मालदार हो या हो निर्धन, नहीं न्याय में लगती देर।

एक घाट सब पानी पीते,या हो बकरी या हो शेर।"

"बाल रामायण" की रचना करके दीपक जी ने आज के जहरीले परिवेश में, भक्ति रस की धारा को प्रवाहमान करके, न केवल सुंदर कार्य किया है, बल्कि एक धार्मिक अनुष्ठान किया है, 108 कुंडलीय यज्ञ किया है, नई पीढ़ी को संस्कार देने की कोशिश की है, गृहस्थजनों को अपने परिवारों को संगठित रखने की अपील की है,बच्चों में माता-पिता के प्रति पवित्र भाव रखने की सीख दी है, जन-जन को धर्म के मार्ग पर चलने को प्रेरित किया है। अर्थात कुल मिलाकर संपूर्ण समाज की बिगड़ती आकृति को, सुडौलता प्रदान करने की भरपूर कोशिश की है।


कृति : "बाल रामायण" (काव्य)

रचयिता : दीपक गोस्वामी "चिराग"

प्रथम संस्करण : 2022, मूल्य: 160 ₹

प्रकाशक : सस्ता साहित्य मण्डल प्रकाशन,न‌ई दिल्ली


समीक्षक
: अतुल कुमार शर्मा

सम्भल

उत्तर प्रदेश, भारत

मो०-8273011742



वाट्स एप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से माह के प्रत्येक रविवार को वाट्सएप कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का आयोजन किया जाता है । रविवार 22 जनवरी 2023 को आयोजित 340 वें वाट्स एप कविसम्मेलन एवं मुशायरे में शामिल साहित्यकारों राजीव प्रखर, इंदु रानी, मोनिका मासूम, विनीता चौरसिया, विवेक आहूजा, राम किशोर वर्मा, सूर्यकांत द्विवेदी,शिव कुमार चंदन,हेमा तिवारी भट्ट और अशोक विद्रोही की रचनाएं उन्हीं की हस्तलिपि में


 











मुरादाबाद की साहित्यकार कंचन खन्ना का गीत ... मां भारती वंदन


 

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी का गीत ....मैं संसद से उठ आया हूँ


मैं  संसद   से    उठ  आया   हूँ 

सबकी  आँख  खोल  आया  हूँ 

गुरुओं  का आशीष  पिता   की

सीख   स्वयं   देकर  आया   हूँ।

         ....................


बोली  माँ   मत   दूध   लजाना

सच का  केवल  साथ  निभाना

और  पिता   ने  यह   बतलाया

कभी  पराया  धन  मत  खाना

बचपन  से   सुनता  आया   हूँ।

मैं संसद से..............


झूठों   से   नफरत   कर   लेना

सच की  दौलत  तुम  भर  लेना

जिसे  न  पूरा  कर  पाओ  तुम 

ऐसा   वादा   कर    मत   लेना

जीवन   में   गुनता  आया   हूँ।

मैं संसद से..............


सब  धर्मों   का  आदर  करना

जात-पात  से  बचकर   रहना

कोई   कितना   भी   समझाए

मानवता   से    रिश्ता   रखना 

यही  भाव   बुनता  आया   हूँ।

मैं संसद से...............


खद्दर  की   पौषाक    पहनना 

वोटर  को  भगवान   समझना

वह  जो   काम  बताएं  तुमको 

उसको   पूरे  मन   से    करना 

ऐसा   ही   करता    आया   हूँ।

मैं संसद से.............


रोज़  व्यर्थ  का   रोना - धोना 

पाला   रोज़    बदलते   रहना 

घालमेल   की  इस   संसद में

चाहे जिसको  आका   कहना

भावों  को  चुनता  आया   हूँ।

मैं संसद से......

    

✍️ वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

   मोबाइल फोन नंबर 9719275453

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मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में बरेली निवासी ) सुभाष रावत राहत बरेलवी की ग़ज़ल.... ..


 

रविवार, 22 जनवरी 2023

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल (वर्तमान में गुरुग्राम निवासी) के साहित्यकार डॉ गिरिराज शरण अग्रवाल की बाल कविता --सर्दी में मत निकलो भाई


शीत लहर आई है भाई 

सर्दी में मत निकलो भाई


कुहरा चारों ओर तना है 

जाड़े से सबको बचना है 

ठंडी-ठंडी हवा चल रही 

कमरा गर्म हमें रखना है


बंद हुआ स्कूल हमारा 

हीटर से तुम तप लो भाई


तालाबों में बर्फ जमी है

हलचल बाहर सभी थमी है 

दुबके लोग घरों में सारे 

सर्दी में बस यही कमी है 


अंदर आकर बैठो, तुम सब 

या बिस्तर में घुस लो भाई 


मफलर गर्म गले में डालो 

स्वेटर जर्सी सभी निकालो

फिर पहनेंगे ऐसा कहकर

बात नहीं तुम कल पर टालो 


सर्दी से बचना है हमको

कमर आज तुम कस लो भाई


✍️ डॉ गिरिराज शरण अग्रवाल 

ए 402, पार्क व्यू सिटी 2

सोहना रोड, गुरुग्राम 

78380 90732


मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल के साहित्यकार डॉ फहीम अहमद की बाल कविता ....घुमक्कड़ तितली


अपनी मर्ज़ी की मालिक है

तितली बड़ी घुमक्कड़।


नन्ही है पर घूम चुकी दुनिया

का चप्पा-चप्पा।

खुश होकर झूमी मस्ती में

गाती लारा-लप्पा।


थकती नहीं ज़रा भी पगली

वह है पूरी फक्कड़।


देख चुकी है वह दुनिया का

रंग बिरंगा मेला।

लगा उसे जग का हर मंज़र

फूलों सा अलबेला।


बूझे नई पहेली फूलों से

बन लाल बुझक्कड़।


हवा,रोशनी,मिट्टी,पानी,

खुशबू वाली बातें।

छिपी हुई नन्हे पंखों में

जाने क्या सौगातें।


कहां कहां से लाई क्या क्या

भूली, बड़ी भुलक्कड़।


✍️ डॉ फहीम अहमद

असिस्टेंट प्रोफ़ेसर ,हिंदी विभाग,

महात्मा गांधी मेमोरियल पी.जी.कालेज,

सम्भल  244302

 उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल  8896340824,9450285248

Email   hadi.faheem@yahoo.com

             drfaheem807@gmail.com

मुरादाबाद के साहित्यकार धन सिंह धनेंद्र की लघुकथा ...डरी सिमटी व्यथा .


कमरे मे बेटे के आने की आहट होते ही उसके पिता ने अपने बिस्तर पर उघडी़ चादर को अपने शरीर में पूरा ढक लिया और चुपचाप एक तरफ करवट लेकर सिकुड़ कर मुंह ढक कर लेट गया। जब बेटा कमरे से चला गया ,गठरी बने बूढ़े पिता ने चादर हटाई और अपने सिरहाने से अपनी दिवंगत पत्नी की छोटी सी कागज में लिपटी फोटो निकाली, उसे निहारता रहा जैसे अपनी व्यथा कहना चाह रहा हो। उसके आंसू टप-टप गिरने लगे-

   "    तुमने भी खाना कैसै खाया होगा शांति , रात के 11 बज चुके हैं मुझे अभी तक किसी ने यहां खाना नहीं दिया है। मांगूंगा तो ...... (मुंह बंद कर फूट-फूट कर रो पड़ा)" 

✍️ धन सिंह धनेंद्र 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत 



शनिवार, 21 जनवरी 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा-- कम्बल



  ....भैया कम्बल कैसे दिए हैं ।

अरे आप तो ले लो, बस दो ही बचे हैं... पैसे तो हो ही जायेंगे ।

      ठीक है, दोनों दे दो ," ग्राहक ने कहा"। 

विक्रेता ने दोनों कम्बलों के चार सौ रुपये लेकर उसे चलता किया।

   गोलू जो उधर से गुज़र रहा था, यह देखकर कह उठा,"अरे.... तुम तो अपने बच्चों के साथ कम्बल वितरण की लाइन में लगे हुए थे... अब समझा...."। 


अशोक विश्नोई

मो०9458149223

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का एकांकी ....रामपुर के राजा रामसिंह


काल : लगभग अठारह सौ ईसवी

पात्र परिचय 

पंडित रामस्वरूप जी : आयु लगभग साठ वर्ष

भगवती : पंडित रामस्वरूप जी की पत्नी, आयु लगभग 60 वर्ष

सुलोचना : पंडित रामस्वरूप जी एवं भगवती की पुत्री, आयु लगभग तेरह वर्ष

स्थान : रामपुर रियासत

पर्दा खुलता है।


पंडित रामस्वरूप गीता पढ़ रहे हैं:

धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सव:

मामका: पांडवाश्चैव किमकुर्वत संजय

धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में, रण की इच्छा पाल

क्या करते संजय कहो, पांडव मेरे लाल

सुलोचना : पिताजी ! आपने संस्कृत गीता का हिंदी दोहा किस पुस्तक से पढ़ा है ?

पंडित रामस्वरूप जी : बेटी तुम तो जानती हो, मुझे भूत और भविष्य सब अक्सर दिखाई पड़ते हैं । यह उन्हीं में से कोई एक रचना है ।

सुलोचना : पिताजी ! आप इतने विद्वान हैं, लेकिन हमारे राधा-कृष्ण और उनकी गीता इस घर की परिधि में छुपकर ही हम क्यों पढ़ते हैं ? घर के बाहर जो बड़ा-सा चौराहा है और जहॉं बहुत सुंदर वृक्ष स्थापित है, उसके नीचे हम राधा-कृष्ण की मूर्ति स्थापित करके वहॉं गीता क्यों नहीं पढ़ते? कई बार मैं आपसे कह चुकी हूॅं।

पंडित रामस्वरूप जी : बेटी ! हर बार मैंने तुम्हें समझाया है कि हमें ऐसी स्वतंत्रता रामपुर रियासत में रहते हुए प्राप्त नहीं है ।

सुलोचना : आज तो मैं अपने राधा-कृष्ण की मूर्ति ले जाकर पेड़ के नीचे रखकर वही गीता पढ़ूंगी।

भगवती देवी (अपने पति पंडित रामस्वरूप जी से):अरे भाग्यवान! सुलोचना तो बच्ची है। वह तो कुछ भी कह सकती है। लेकिन आप तो समझदार हो। उसे क्यों नहीं रोकते ? अर्थ का अनर्थ क्यों करने जा रहे हो ? घर पर बैठकर भी तो गीता पढ़ी जा सकती है ।

सुलोचना : मॉं ! तुम हर बार हमें रोक देती हो और बीच में पड़कर हमें सार्वजनिक रूप से राधा-कृष्ण की उपासना करने से मना कर देती हो ।

पंडित रामस्वरूप जी : बेटी ! समझने की कोशिश करो। तुम्हारी भलाई के लिए ही मॉं ऐसा कह रही हैं ।

(सुलोचना एकाएक राधा-कृष्ण की मूर्ति और गीता हाथ में उठाकर चौराहे पर पेड़ की तरफ दौड़ पड़ती है। भौंचक्के हुए पंडित रामस्वरूप जी और उनकी पत्नी भगवती सुलोचना …सुलोचना पुकारते हुए उस बच्ची के पीछे दौड़ने लगे । पेड़ के पास जाकर सुलोचना रुक गई । उसने राधा-कृष्ण की मूर्ति पेड़ के नीचे रख दी । गीता हाथ में लेकर बैठ गई और पढ़ने ही वाली थी कि दोनों माता-पिता पीछे-पीछे आ गए । पंडित रामस्वरूप जी सुलोचना के हाथ से गीता छीनते हुए तथा राधा कृष्ण की मूर्ति पर अपने कंधे पर पड़ा हुआ अंगोछा डाल कर रखते हुए कहने लगे )

पंडित रामस्वरूप जी: सुलोचना ! अभी यह समय नहीं आया है।

सुलोचना : कब आएगा समय ? आप तो भूत-भविष्य सब जानते हैं, फिर बताइए ?

पंडित रामस्वरूप जी :  बेटी ! अभी लंबा समय बीतेगा । मेरा और तुम्हारा दोनों के जीवन का जब अंत हो जाएगा, तब एक उदार, धर्मनिरपेक्ष शासक रामपुर रियासत में राजसिंहासन पर आसीन होंगे । उनका नाम नवाब कल्बे अली खॉं होगा । उसी समय पंडित दत्त राम नामक एक अलौकिक शक्तियों से संपन्न सत्पुरुष अपनी प्रेरणा से नवाब कल्बे अली खां को रामपुर रियासत में सर्वप्रथम सार्वजनिक मंदिर बनवाने के लिए उत्साहित करेंगे और तब नवाब साहब द्वारा आधारशिला रखकर रामपुर के पहले शिवालय का निर्माण संभव हो सकेगा ।

सुलोचना : इस कार्य में तो पचास साल से भी ज्यादा लग जाएंगे ।तो क्या तब तक हम अपने राधा-कृष्ण की मूर्ति को घर के अंदर ही पूजने के लिए अभिशप्त होंगे ?

पंडित रामस्वरूप जी : हां, जब तक पंडित दत्त राम और नवाब कल्बे अली खॉं का युग नहीं आ जाता, स्थिति आज के समान ही अंधकारमय रहेगी । सत्पुरुष तो प्रायः एक सदी बाद ही होते हैं।

सुलोचना (दुखी होकर): ऐसा कैसा रामपुर है, जहॉं राम और कृष्ण के नाम लेने के लिए सौ साल बाद नवाब कल्बे अली खां की प्रतीक्षा करनी पड़ेगी ! फिर इसका नाम रामपुर क्यों है ?

(इतना कहकर सुलोचना अपने पिता के हाथ से गीता और राधा-कृष्ण छीन लेती है तथा उन्हें अपने सीने से चिपका कर घर की तरफ दौड़ जाती है । पीछे-पीछे माता-पिता भी घर पर आ जाते हैं। घर पर सुलोचना उदास और निढाल होकर खटिया पर लेट जाती है । माता-पिता उसके पास जाते हैं और उसके बालों को सहलाते हैं । सुलोचना सुबक उठती है।)

सुलोचना : पिताजी! आप तो भूत और भविष्य दोनों जानते हैं। आपने मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया कि यह स्थान रामपुर क्यों कहलाता है ?

पंडित रामस्वरूप जी : बेटी ! यह शताब्दियों पुरानी कहानी है, जो राजा राम सिंह के अतुलनीय पौरुष, बल और वीरता से भरी हुई है । राजा राम सिंह का राज्य रामपुर, मुरादाबाद और ठाकुरद्वारा इन तीनों क्षेत्रों तक फैला हुआ था । तब यह स्थान “कठेर खंड” कहलाता था।

सुलोचना : कठेर-खंड का क्या तात्पर्य है पिताजी ? आखिर किसे कहते हैं ?

पंडित रामस्वरूप जी : बेटी ! मैं इतिहास में बहुत दूर तक तो नहीं देख पा रहा हूं, लेकिन अंतर्दृष्टि से मुझे एक ऋषि का भी दर्शन हो रहा है । इसका संबंध वेद और उपनिषद के ज्ञान से भी जान पड़ता है । लेकिन इतने पुराने इतिहास के बारे में देखते समय मेरी दृष्टि धुंधला जाती है।

सुलोचना : तो फिर जरा निकट का ही इतिहास आप देखकर हमें बताइए ?

पंडित रामस्वरूप जी : (उत्साहित होकर) हां, वह तो स्पष्ट दिख रहा है । कोई राजा रामसिंह थे,जिनका शासन महान राजाओं में सर्वश्रेष्ठ था । वह प्रजा पालक, वात्सल्य से भरे हुए तथा न्याय और नीति के मार्ग पर चलने वाले महान शासक थे । उनके राज्य में पूजा-अर्चना और हवन की सुगंध चारों ओर फैलती थी ।

सुलोचना : (हर्षित होकर) तो क्या रामपुर रियासत में भी राजा राम सिंह के यज्ञों की सुगंध प्रवाहित होती थी ?

पंडित रामस्वरूप जी : भूतकाल को देखने पर मुझे तो कुछ-कुछ ऐसा ही प्रतीत हो रहा है ।

सुलोचना : कुछ और बताइए पिताजी ! इतने महान शासक के बारे में कुछ और जानने की इच्छा है ।

पंडित रामस्वरूप जी : बेटी ! अधिक तो प्रतीत नहीं हो रहा । मैं देखने का प्रयत्न करता हूं , लेकिन पटल पर धुंध और धूल छा जाती है । बस इतना दिख पाता है कि किसी ने धोखे से एक महा प्रतापी राजा रामसिंह के जीवन का अंत कर दिया था । उसी के साथ सनातन जीवन मूल्यों से जुड़े आचार-विचार की क्षति इस कठेर-खंड में चारों तरफ छा गई।

सुलोचना : फिर मुरादाबाद का क्या हुआ पिताजी ?

पंडित रामस्वरूप जी : वह तो अभी हाल का ही इतिहास है । उस पर मुगलों का शासन स्थापित हो गया । बस रामपुर वाला हिस्सा बचा । उसका नाम रामपुर रख दिया गया ।

सुलोचना : रामपुर का नामकरण रामपुर कैसे पड़ा ? यह किसके नाम पर है ?

पंडित रामस्वरूप जी : राम का नाम तो सर्वविदित है । हजारों-लाखों वर्षों से यही तो परमेश्वर का सत्य स्वरूप है । इस नाम का संबंध उस परम ब्रह्म परमात्मा से अवश्य ही बनता है। लेकिन हां, जब तुम कठेर-खंड के पतन के बाद निर्मित रामपुर रियासत के बारे में पूछ रही हो, तो इसका अभिप्राय राजा रामसिंह से है । राजा रामसिंह की मृत्यु के बाद उनके अनुयायियों ने इस बचे-खुचे कठेर-खंड का नाम राजा राम सिंह के नाम पर रामपुर रखना अधिक उचित समझा।

सुलोचना : रामपुर कितना धन्य है, जिसका नामकरण भगवान राम और उनके भक्त राजा रामसिंह के नाम पर अनुयायियों द्वारा किया गया है । अब हम उस समय की प्रतीक्षा करेंगे, जब फिर से इस क्षेत्र में उदार विचारों की प्रधानता होगी और सबको अपने मन के अनुरूप पूजा-अर्चना का अधिकार और अवसर मिल सकेगा ।

पंडित रामस्वरूप जी : हां बेटी ! मैं भविष्य के पटल पर और भी बहुत कुछ देख रहा हूॅं। न केवल नवाब कल्बे अली खां और पंडित दत्त राम के परस्पर सहयोग और उदार विचारों के फलस्वरुप रियासत में एक मंदिर की स्थापना के महान कार्य को इतिहास के पृष्ठों पर अंकित होते हुए मुझे दिखाई पड़ रहा है, बल्कि यह भी दिख रहा है कि राजे-रजवाड़े अतीत का हिस्सा बन जाएंगे। समूचे भारत में जनता का शासन होगा । लोकतंत्र स्थापित हो जाएगा तथा फिर शोषण, उत्पीड़न, अत्याचार और शासक वर्ग की स्वेच्छाचारिता इतिहास का भूला-बिसरा अध्याय बन जाएगी ।

(सुलोचना अपने पिता के मुॅंह से यह सुनकर तालियॉं बजाने लगती है । उसकी मॉं की ऑंखों से भी ऑंसू निकल आते हैं । वह भी बेटी के साथ मिलकर तालियॉं बजाती हैं। पार्श्व में स्वर गूंजता है कि हमारी एकता अमर रहे ….हम सब भारतवासी आपस में भाई-बहन हैं..)

इसके बाद पर्दा गिर जाता है।

✍️ रवि प्रकाश

बाजार सर्राफा, 

रामपुर

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल 99976 15451

मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल की हास्य कविता ....सात जन्म के साथ का वरदान


शादी की पचासवीं सालगिरह पर 

पति पत्नी ने घर में पूजा रखी,

जैसे जैसे पंडित जी बोलते गये

 वैसे वैसे दान दक्षिणा रखी,

उनकी श्रद्धा देख भगवान भी प्रसन्न हो गये, 

तुरंत आकाशवाणी हुई 

और वर माँगने का मौका दिया,

पति ने तुरंत सात जन्मों तक

एक दूसरे का साथ माँग लिया,

भगवान् ने कहा एवमस्तु , 

अगले सात जन्मों तक 

तुम्हें एक दूजे का साथ दिया

यह सुनते ही पत्नी बोली 

भगवन ये क्या कर दिया, 

ये वरदान है या सजा, 

न कोई चेंज न मजा

पूजा तो हम दोनों ने की थी,

तो वरदान इनको ही क्यों दिया,

पूजा की सारी तैयारी तो मैंने की,

वेदी मैंने  सजाई, 

प्रसाद मैंने बनाया, 

पूजा की सारी सामग्री मैं लाई,

यहाँ तक कि पंडित जी को

दक्षिणा भी मैंने थमाई

इन्होंने क्या किया सिर्फ हाथ जोड़े, 

मस्तक नवाया, आरती घुमायी, 

ये सब तो मैंने भी साथ में किया,

फिर वरदान अकेले इनको क्यों दिया,

अब मुझे भी वर दीजिए

सात जन्म वाली स्कीम को 

वापस ले लीजिए,

भगवान भी हतप्रभ हो गये, सोचने लगे,

मेरी ही बनायी नारी,

मुझ पर ही पड़ गयी भारी,

बोले: एक बार वरदान दे दिया सो दे दिया, 

दिया हुआ वरदान कभी वापस नहीं होता, 

इतना जान लो,

तुम भी कोई वरदान मांग लो,

पत्नी ने फिर दिमाग लगाया, 

तुरंत उपाय भी सूझ आया,

बोली भगवन कोई बात नहीं वरदान वापस मत लीजिए,

बस थोड़ा संशोधन कर दीजिए,

अगले जन्म में मुझे पति और इन्हें मेरी पत्नी बना दीजिए,

मैं भी चाहती हूँ, कि मैं पलंग पर बैठूँ 

और ये दूध का गिलास लेकर आयें,

मैं जब लेटूं, ये पैर दबाएं, 

मैं खाना खाऊं तो ये पंखा झुलायें,

मैं दफ्तर जाऊँ तो ये दरवाजे पर छोड़ने आयें,

और जब आऊँ तो ये दरवाजे पर खड़े मुस्काएं,

और क्या बताऊँ, 

थोड़े में ही बहुत समझ लीजिए,

बस मुझे इतना ही वरदान दे दीजिए.

भगवान कुछ कहते, इससे पहले ही पति चिल्लाया, 

भगवन ये अनर्थ मत कीजिए, हमें ऐसे ही रहने दीजिए,

सात जनम के चक्कर में

हमारे शेष जीवन का सुख चैन मत छीनिये.

प्रभु कृपा कीजिए, 

और हमें इसी जन्म में सुख-चैन से रहने दीजिए,

भगवान ने भी मौका तलाशा,  

तुरंत एवमस्तु कहा और अंतर्ध्यान हो गये 


✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल, 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद संभल ) के साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम् के सात दोहे ....


शीशे पर चलना पड़ा,तलुवे लहूलुहान।

होठों पर ओढ़े रहे, फिर भी हम  मुस्कान।। 1।।


जीवन अपने आप से,हारा एक जवान।

जहर न पीता वह अगर,बिछड़ रही थी जान।।2।।


अपनी सच्ची शान थी, छोटी सी पहचान।

 जिसके पीछे पड़ गए,मानव कई महान।।3।।


माथे पर चोटें लिखी,गहरे पड़े निशान।

देव पुरुष सब मौन थे,बहरे सबके कान ।।4।।


हमको देखो ध्यान से,लोगे खुद को जान।

ऐरे गैरे हम नहीं,जिंदा हिंदुस्तान ।।5।।


रोते रोते सीखना,है जो तुमको गान।

आंखें मेरी देखना,पूरा अनुसंधान।। 6।।


जिसने समझा वक्त पर, यहाँ वक्त का मोल।

उसे बनाया वक्त ने, दुनिया में अनमोल।। 7।।


✍️ त्यागी अशोका कृष्णम्

कुरकावली, संभल

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग्य कविता ...विकास क्या है ....,,?


विकास 

कैसा दिखता है?

कल्पना है

या वास्तविकता है

नाटा है या लंबा

गोरा है या काला

अनजान है

या फिर देखा भाला


विकास क्या है?

इसकी

क्या परिभाषा है?

कोई

खाने की चीज है

या फिर

खेल तमाशा है


शायद विकास

एक स्वादिष्ट गोली है

जिसको नेता

चुनाव से पहले

पब्लिक को खिलाते हैं

और आसानी से

चुनाव जीत जाते हैं


विकास

टी वी चैनलों पर

धड़ल्ले से बिकता है

कोई इस पर कविता

कोई बड़े बड़े

लेख लिखता है


विकास

हर किसी को

दिखता नहीं है

किसी छोटे या

बड़े स्टोर पर

मिलता नहीं है

इसकी

ऑनलाइन डिलीवरी

नहीं हो रही है

किसी मशीन में

मैन्युफैक्चरिंग

नहीं हो रही है


कुछ खास लोग ही

विकास को

महसूस कर पाते हैं

और चमचे

आंख बंद कर

उनकी हां में हां

मिलाते हैं


विकास को लेकर

सबका अलग विचार है

फुटपाथ पर

रहने वाले के लिए

विकास

सूखी रोटी के साथ 

अचार है

जिनके पास

हर तरह की

सुख सुविधा है

उनके मन में

बड़ी दुविधा है

उनको विकास का

आभास तभी होता है

जब कोई मजबूर

उनके आगे

गिड़गिड़ाता या रोता है


जैसे जैसे

समय आगे बढ़ा है

विकास का भी

विकास हो गया है

उसकी कहानी को

मिल गया है

नया कथानक

बदल चुके हैं

सभी मानक

मंदिर,मस्जिद,

चर्च, गुरुद्वारा

अब विकास

आंका जाने लगा है

इनके द्वारा 


✍️ डॉ पुनीत कुमार

T 2/505 आकाश रेजीडेंसी

मुरादाबाद 244001

M 9837189600

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में बरेली निवासी ) सुभाष रावत राहत बरेलवी का गीत ....सावन में देवी गौरा ने यों सोलह श्रृंगार किया .....

 क्लिक कीजिए 

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रविवार, 15 जनवरी 2023

मुरादाबाद की साहित्यकार प्रो ममता सिंह को राष्ट्रीय संस्था आगमन ने शान-ए-अदब खिताब से नवाजा

 मुरादाबाद की साहित्यकार  प्रो ममता सिंह को राष्ट्रीय संस्था आगमन - एक खूबसूरत शुरुआत द्वारा शान-ए-अदब खिताब से  सम्मानित किया गया। उन्हें यह सम्मान दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी के अमीर खुसरो सभागार में रविवार 15 जनवरी 2023 को आयोजित "जश्न ए ग़ज़ल" कार्यक्रम में दिया गया। संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष और संस्थापक पवन जैन ने उन्हें सम्मान स्वरूप  प्रशस्ति पत्र, स्मृति चिन्ह प्रदान किया।

     आयोजन में देश के विभिन्न हिस्सों से आए शायरों ने अपने कलाम पेश किए। अतिथियों के रूप में वरिष्ठ शायर लक्ष्मी शंकर बाजपेई जी, ममता किरण जी, कमला सिंह ज़ीनत , देव साध, ओमप्रकाश यति उपस्थित रहे।